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क्रिसमस पर निबंध-Essay on Christmas In Hindi

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क्रिसमस पर निबंध (Essay on Christmas In Hindi) :

भूमिका : विश्व परिवर्तन शील है। सभी दिन कभी भी एक तरह के नहीं होते हैं। कभी मनुष्य अपने कामों में व्यस्त रहता है तो कभी अपने अलग-अलग त्यौहारों से अपना मनोरंजन करता है। इसी वजह से देश के अलग-अलग देशों में अलग-अलग तरह के त्यौहार मनाए जाते हैं।

उनमे से कुछ त्यौहारों को सिर्फ थकान को मिटाकर मनोरंजन के लिए मनाया जाता है तो कुछ त्यौहार किसी महापुरुष के जीवन की घटनाओं पर आधारित होते हैं। संसार में कुछ त्यौहारों को महान पुरुषों के जन्म दिवस के रूप में भी मनाया जाता है। जन्म दिवस में से बड़े दिन को ईसा मसीह के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है। धरती पर प्रभु यीसू के जन्म की खुशियों में यह पर्व सरे विश्व में मनाया जाता है। दीन-दुखियों के दर्द को समझने वाले इस महान पुरुष के जन्मदिन 25 दिसम्बर को मनाया जाता है।

तात्पर्य व स्वरूप : प्रभु यीसू के जन्मदिन को बड़ा दिन या क्रिसमस के रुप में मनाया जाता है। सारे संसार में इस दिन को 25 दिसम्बर को मनाया जाता है। अगर देखा जाये तो यह दिन महत्व की दृष्टि से सबसे बड़ा होता है। बड़े दिन की महिमा बहुत ऊँची होती है इसी वजह से इसे बड़ा दिन कहा जाता है। आज के दिन प्रभु यीसू का जन्म होने की वजह से यह दिन सबके लिए बहुत सौभाग्य का दिन था। इस दिन को पुरे संसार में बहुत ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है।

बाइबल की कथा : बाइबिल की कथा के अनुसार नाजरेथ नगर में एक युसूफ नामक व्यक्ति रहते थे। उनके साथ मरियम नामक लडकी की सगाई हुई थी। एक दिन सपने में एक दूत ने मरियम से कहा था कि आप पर प्रभु की कृपा है। आप गर्भवती होंगी और एक पुत्र को जन्म देंगी जिसका नाम ईसा रखा जायेगा।

वे बहुत महान होंगे और उन्हें प्रभु के पुत्र के नाम से जाना जायेगा। कुछ समय के बाद वहां के शासक ने जनगणना का आदेश दिया था। जब युसूफ और मरियम वैतलहम में नाम लिखवाकर वापस लौट रहे थे तो मरियम को प्रसव पीड़ा होने लगी। उस दिन भाग्य की वजह से एक सराय के मालिक ने उन्हें सराय में रुकने की इजाजत दे दी थी।

मरियम ने घोड़ों के तबेले में संसार के महान बालक ईसा को जन्म दिया था। वह चरवाहों का क्षेत्र था। वहाँ पर चरवाहे रात के समय अपने जानवरों की सुरक्षा के लिए जागे रहते थे। एक स्वर्गदूत ने उन चरवाहों से कहा कि वैतलहम में तुम्हारे मुक्तदाता ईसा मसीह का जन्म हो चुका है।

उसने कहा कि तुम्हे लड़का कपड़े और चीरना में लेटा हुआ मिलेगा। उसी को मसीह समझो। चरवाहे स्वर्गदूत से डर गये थे लेकिन उसकी घोषणा पर बहुत खुश हुए थे। वे सब उसी समय वैतलहम के लिए चल दिए उन्होंने मरियम , युसूफ और बालक को देखा था।

बालक का जन्म : एक बार राजा के आदेश से जनगणना के लिए मरियम और उसके मंगेतर युसूफ दोनों वैतलहम नामक शहर में आये। वहाँ के सभी सराय और घर भर चुके थे इसलिए मरियम को एक गरीब आदमी ने एक जानवरों के रहने के स्थान में जगह दी थी , उसी जगह पर यीसू का जन्म हुआ था।

इस तरह से यीसू का जन्म किसी राजमहल में नहीं हुआ था बल्कि एक ऐसी जगह पर हुआ था मनुष्य के रहने के लिए नहीं बल्कि जानवरों के रहने के लिए थी क्योंकि संसार के प्रभु ने गरीबी में जन्म लेना अच्छा समझा होगा। जिस दिन यीसू का जन्म हुआ था उस दिन आकाश में एक तारा उदित हुआ था।

तीन ज्योतिषियों ने उस तारे को देखा और देखते-देखते येरुशलम पहुंच गये। वे तीनों लोगों से पूंछ रहे थे कि यहूदियों के नवजात रजा कहाँ पर हैं ? हम उन्हें नमस्कार करना चाहते हैं। वे उस बालक को खोजते-खोजते वैतलहम के अस्तबल में पहुंचे। वहाँ पहुंचकर उन्होंने मरियम और ईसा को प्रणाम किया।

यीसू को गरीबों का हित करके गरीबों के दर्जे को उपर उठाना था। इसी वजह से इस महान मानव के इस दुनिया में आने की ख़ुशी में 25 दिसम्बर को बड़े दिन के रूप में मनाया जाता है। इसी वजह से इस दिन को ईसाई लोग बड़ी धूम-धाम से मनाते हैं। लेकिन यह पर्व सिर्फ ईसाई ही नहीं बल्कि हर जाति और घर्म के लीगों के लिए बहुत ख़ुशी का दिन है।

नामकरण : जन्म के आठवें दिन उस बालक का नाम जीसस क्राईस्ट और यीसू रखा गया था वो बाद में ईसा मसीह जी के नाम से जाने जाने लगे थे। वह बालक दिव्य था। उस बालक ने सिर्फ 12 साल की उम्र में ही शास्त्रार्थ में बड़े-बड़े ज्ञानियों को परास्त कर दिया था।

ईसा मसीह जी के बहुत से साल पर्यटन , चिन्तन-मनन और ओ एकांतवास में बीते थे। कई सालों की अथक तपस्या के बाद ही ईसा मसीह जी अपनी शुद्ध आत्मा के साथ गलीलिया लौटे थे। ईसा मसीह जी का यश पुरे देश में सुगंध की तरह फ़ैल गया था। वे सभागारों के बीच ज्ञानवर्धक और शिक्षाप्रद उद्बोधन देने लगे थे।

दीन-दुखियों का सहायक : ईसा मसीह जी ने अनेक दुःखियों , रोगियों और पीड़ितों के दुखों को दूर किया था और उन्हें सांत्वना प्रदान की थी। ईसा मसीह जी ने अज्ञानियों को ज्ञान दिया था और अंधों को आँखें दी थीं। सभी लोगों ने इस बात पर पूर्ण विश्वास कर लिया था कि ईसा मसीह जी प्रभु के पुत्र हैं।

ईसा मसीह जी ने अपने समय में अन्चारों और पापों से देश को मुक्त किया था और गिरजाघरों को भी पवित्र करवाया था। ईसा मसीह जी ने दूसरों के दुखों को दूर करने के लिए खुद को सूली पर चढ़ा दिया था। वे दूसरों को हमेशा खुश रहने की प्रेरणा देते थे। पाप तथा पुन्य के बीच के अंतर को भी उन्होंने बहुत ही अच्छी तरह से समझाया था।

विरोधी : जिस तरह से ईसा मसीह जी का प्रभाव बढ़ता जा रहा था इस बात से तत्कालीन राजा बहुत चिंता में पड़ गये थे। उन्होंने जलन की वजह से ईसा को अपराधी बनाकर सभा में पेश करवाया। सभाध्यक्ष ईसा को निर्दोष मानकर उन्हें बन्धनमुक्त कराना चाहते थे। इन सब पर सभा के पुरोहितों और सदस्यों ने चिल्ला-चिल्लाकर कहा था कि इसे क्रूस दिया जाए , इसे क्रूस दिया जाए।

सभाध्यक्ष के सामने कोई भी विकल्प नहीं था। उसने ईसा को सैनिकों के हवाले कर दिया था। ईसा मसीह जी को क्रूस का दंड दिया गया था। उनके सर पर काँटों का किरीट और हाथ-पांव पर कीलें थीं। ईसा मसीह जी के अंगों से खून बहने लगा था। ईसा जी को इस दशा में देखकर जनता बुरी तरह से रोने लगी थी। ईसा जी ने लोगों को सांत्वना दी थी। शुक्रवार को ईसा मसीह ने अपने प्राणों को त्यागा था।

त्यौहार का मनाना : क्रिसमस आने से कुछ दिन पहले ही लोग घरों को सजाने और साफ-सफाई करने में लग जाते हैं। ईसा मसीह जी के बाद उनके शिष्यों ने इस दिन को बहुत ही ख़ुशी के साथ मनाने लगे थे। तभी से यह पर्व हर साल 25 दिसम्बर को यीसू जन्म दिवस के रूप में मनाने की परम्परा बन गयी थी। जब 24 दिसम्बर की रात को 12 बजे जब 25 दिसम्बर के दिन की शुरुआत होती है तब सरे गिरजेघरों के घंटे बजने लगते हैं।

ये घंटे बजकर ख़ुशी का शुभ संदेश देते हैं। घंटों की ध्वनि के साथ सब श्रद्धालुओं के ह्रदय के तार आह्लाद के साथ झंकृत हो जाते हैं। गिरजाघरों के घंटों की यह ध्वनि प्रभु यीसू के जन्म का संदेश देती है। उसके बाद सभी गिरजाघरों में प्रार्थना सभाएँ होती हैं। इन प्रार्थना सभाओं में सभी जन शामिल होते हैं।

इन प्रार्थना सभा में सभी लोग प्रार्थना करते हैं और एक-दुसरे को बधाई देते हैं और इस पर्व को शुरू करते हैं। 25 दिसम्बर के शुरू होते ही यह त्यौहार मनाना शुरू हो जाता है। क्योंकि यह धारणा है कि ईसा मसीह का जन्म ठीक रात के बारह बजे हुआ था। यह दिन बहुत ही शुद्ध और पवित्र होता है।

खासकर ईसाई लोग 25 दिसम्बर को बड़ी धूमधाम से मनाते हैं। 24 तारीख को ही रात को ईसा मसीह के आने की ख़ुशी में घरों को रौशनी से जगमगा देते हैं। इस दिन स्त्री , पुरुष , बच्चे और वृद्ध सभी लोग अपने समर्थ के अनुसार नये कपड़े बनवाते हैं। इस दिन घर में नए सामान को लाने की भी परम्परा है।

इस दिन घरों में मिठाईयां और अच्छे-अच्छे स्वादिष्ट पकवान बनाए जाते हैं। इस दिन के अवसर पर एक-दुसरे के घर में मिठाईयां बांटी जाती हैं। इस दिन सभी घरों में बहुत चहल-पहल होती है। गिरजाघरों की शोभा का अनुमान भी नहीं लगाया जा सकता है। इस दिन लोग घर-घर जाकर और गाने गाकर इस शुभ संदेश को देते हैं।

प्रेम व बन्धुत्व का पर्व : बड़ा दिन प्रेम और प्यार का दिन होता है जो सब लोगों को ईसा के प्यार का संदेश देता है। इस दिन लोग घर-घर जाकर एक-दुसरे को बधाई देते हैं। अन्य धर्म के लोग भी अपने ईसाई भाईयों को बड़े दिन की बधाई देने के लिए उनके घर जाते हैं और उनके गले मिलते हैं।

इस दिन ईसा मसीह जी ने धरती पर आकर सभी को प्यार का संदेश दिया था। उन्होंने पृथ्वी पर दुखी आत्माओं को प्यार की अमृत बूंद से शांति दी थी। इस दिन बच्चे बड़े प्यार से सेंटाक्लॉंस को बहुत अधिक याद करते हैं। लम्बे बालों , सफेद लम्बी दाड़ी और रंग-बिरंगे वस्त्र पहनने वाले सेंटाक्लॉंस इस दिन सभी को उपहार देने जरुर आते हैं। भुत से लोग सेंटाक्लॉंस बनकर बच्चों को गिफ्ट देते हैं जिससे बच्चे बहुत खुश हो जाते हैं।

उपसंहार : क्रिसमस को मनाने का मूल उद्देश्य महान युवक ईसा मसीह जी को याद करना है जो दया , प्रेम , क्षमा और धैर्य के अवतार माने जाते थे। विश्व में ईसा मसीह जी के जन्म से दिव्य संदेश से विश्व शांति की प्रेरणा मिलती है। इस अवसर केवल त्यौहार को ही नहीं मना लेना ही काफी नहीं होता है।

इस पर्व का फल तभी सफल होगा जब लोग इसके संदेशों को अपने जीवन में अपनायेगे। ईसा मसीह जी ने लड़ना नहीं सिखाया था , उन्होंने जोड़ना सिखाया था , प्यार करना सिखाया था , और सबको सहनशीलता का पथ भी पढ़ाया था। हम सब लोग प्रभु यीसू को श्रद्धापूर्वक नमन करते हैं।

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मानवाधिकार पर निबंध-Essay On Human Rights In Hindi

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मानवाधिकार पर निबंध (Essay On Human Rights In Hindi) :

भूमिका : मानवाधिकारों का विचार मानव इतिहास से ही हो रहा है लेकिन इस अवधारणा में पहले से बहुत भिन्नता आ गई है। मानव अधिकार वे होते हैं जो मानव व्यवहार के मानकों को स्पष्ट करते हैं। एक इन्सान होने की वजह से ऐसे बहुत से मौलिक अधिकार होते हैं जिनका वह स्वाभाविक रूप से हकदार होता है। ये सभी अधिकार कानून द्वारा संरक्षित हैं।

जैसे-जैसे समय बदलता जाता है वैसे-वैसे ही अधिकारों में भी परिवर्तन होते रहते हैं। मानवाधिकारों को ही सार्वभौमिक अधिकार कहा जाता है। मानव अधिकार निर्विवाद आधिकार होते हैं। इसी वजह से पृथ्वी पर रहने वाला हर एक व्यक्ति इंसान होने की वजह से अधिकारों का हकदार होता है। इन अधिकारों का हर व्यक्ति अपना लिंग , जाति , धर्म और संस्कृति और स्थान की बिना किसी परवाह के हकदार होता है।

सार्वभौमिक मानव अधिकार : बहुत से सार्वभौमिक मानव अधिकारों में स्वतंत्रता और व्यक्तिगत सुरक्षा , भाषण की स्वतंत्रता , विवाह और परिवार के अधिकार , आन्दोलन की स्वतंत्रता , संपत्ति की स्वतंत्रता , शिक्षा की स्वतंत्रता , शांतिपूर्ण विधानसभा और संघ के अधिकार , गोपनीयता , परिवार , घर और पत्राचार से हस्तक्षेप की स्वतंत्रता , सरकार में और चुनावों में भाग लेने की स्वतंत्रता , राय और सूचना के अधिकार , पर्याप्त जीवन स्तर के अधिकार , सामाजिक सुरक्षा के अधिकार , निजी सुरक्षा का अधिकार , समानता का अधिकार , भेदभाव से स्वतंत्रता का अधिकार , दासता से स्वतंत्रता का अधिकार , अत्याचार से स्वतंत्रता का अधिकार , निर्वासन से स्वतंत्रता का अधिकार , निर्दोष माने जाने का अधिकार , अन्य देशों में प्रवास का अधिकार , राष्ट्रीयता को बदलने का अधिकार , विश्वास और धर्म की स्वतंत्रता , जीने का अधिकार , संस्कृतिक जीवन में भाग लेने का अधिकार , वांछनीय कामों और ट्रेड यूनियनों में भाग लेने का अधिकार , अवकाश और विश्राम का अधिकार , राज्य या व्यक्तिगत हस्तक्षेप से स्वतंत्रता के अधिकार शामिल होते हैं।

मानवाधिकारों का उल्लंघन : मानव अधिकारों को विभिन्न कानूनों के द्वारा संरक्षित रखा गया है लेकिन फिर भी कुछ लोग , समूह और सरकार इन कानूनों का उल्लंघन करते रहते हैं। कभी-कभी जब पूछताछ की जाती है तो पता चलता है कि पुलिस के द्वारा मारपीट पर रोक लगाने के बाद भी इसका उल्लंघन किया जाता है।

इसी तरह से गुलामी से स्वतंत्रता को मूल मानव अधिकार कहा जाता है लेकिन फिर भी आज के समय में भी गुलामी और दास प्रथा का अवैध रूप से चलन हो रहा है। मानव अधिकारों के दुरूपयोग पर नजर रखने के लिए कई संस्थान बनाये गये हैं। सरकारें और कुछ गैर सरकारी संगठन भी इनकी जाँच करते हैं।

इन अधिकारों का उल्लंघन तब किया जाता है जब राज्य द्वारा की गयी कार्यवाही में इन अधिकारों की उपेक्षा ,अस्वीकार या दुरूपयोग किया जाता है। मानव अधिकारों के दुरूपयोग की जाँच करने के लिए ही संयुक्त राष्ट्र समिति की स्थापना की गई है। इन अधिकारों पर इतनी नजर रखी जाती है कि किसी जगह पर इन अधिकारों का हनन तो नहीं हो रहा है।

ये सभी संगठन मानव अधिकारों के बारे में जागरूकता फ़ैलाने का काम करते हैं ताकि लोगों को अधिकारों के बारे में जानकारी मिल सके। उन्होंने अमानवीय प्रथाओं के विरुद्ध भी विरोध किया है। इन विरोधों की वजह से ही कई कार्यवाही देखने को मिली हैं जिनसे स्थिति में बहुत सुधार हुआ है।

बुनियादी मानवाधिकार : हर व्यक्ति के पास स्वतंत्र जीवन जीने , उचित परीक्षण का , सोच ,विचार और धर्म का , दासता से स्वतंत्र का , अत्याचार से स्वतंत्र का , बोलने का और आन्दोलन की स्वतंत्रता का अधिकार होता है। अंतर्राष्ट्रीय कानूनों के अनुसार हर व्यक्ति को अत्याचारों से बचने का अधिकार प्राप्त है।

लगभग 20 वीं शताब्दी के मध्य से इस पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया है। हर इन्सान को किसी भी तरह से किसी की हिंसा से बचने का अधिकार होता है। हर व्यक्ति को निष्पक्ष न्यायालय के द्वारा निष्पक्ष सुनवाई का अधिकार होता है। उचित परीक्षणों में उचित समय पर सुनवाई , जन सुनवाई और वकील के प्रबंध आदि के अधिकार मिले होते हैं।

हर व्यक्ति को विचार और विवेक की स्वतंत्रता होती है इसके साथ-साथ उसे अपना धर्म चुनने की भी स्वतंत्रता होती है। प्रत्येक देश अपने नागरिक को सोचने और ईमानदार विश्वासों का निर्माण करने का स्वतंत्र रूप से अधिकार देता है। हर व्यक्ति को अपनी पसंद का धर्म चुनने का अधिकार होता है और समय-समय पर इसे अपनी इच्छा के अनुसार बदलने का स्वतंत्र रूप से अधिकार होता है।

गुलामी या दास प्रथा पर पूरी तरह से रोक लगा दी गई है लेकिन फिर भी कुछ भागों में इसका अवैध रूप से पालन किया जाता है। अंतर्राष्ट्रीय कानूनों के तहत अत्याचारों पर रोक लगाई गई है। हर व्यक्ति अत्याचार को न सहने के लिए स्वतंत्र होता है। पृथ्वी पर रहने वाले हर इन्सान को जीवित रहने का अधिकार होता है।

जीवन के अधिकार में किसी भी प्रकार से मौत की सजा , आत्मरक्षा , गर्भपात , इच्छामृत्यु और युद्ध जैसे मामले शामिल नहीं होते हैं। हर इन्सान को स्वतंत्र रूप से बोलने और जनता में अपनी राय रखने का अधिकार होता है लेकिन इस अधिकार में कुछ सीमाएं भी होती हैं जैसे – अश्लीलता , गडबडी , और दंगे भडकाना आदि। हर व्यक्ति को आंदोलनों में भाग लेने का स्वतंत्र रूप से अधिकार होता है हर व्यक्ति को अपने देश के किसी भी हिस्से में घुमने , रहने , काम या अध्धयन करने का अधिकार होता है।

मानव अधिकारों का वर्गीकरण : अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मानवाधिकारों को व्यापक रूप से वर्गीकृत किया गया है। नागरिक , राजनीतिक और सामाजिक अधिकार जिनमें आर्थिक और संस्कृतिक अधिकार शामिल होते हैं। नगरिक और राजनीतिक अधिकार व्यक्ति की स्वायत्तता को प्रभावित करने वाले कामों के संबंध में सरकार की शक्ति को सीमित करता है। यह अधिकार लोगों को सरकार की भागीदारी और कानूनों के निर्धारण में योगदान करने का मौका देता है।

सामाजिक अधिकार सरकार को एक सकारात्मक और हस्तक्षेपवादी तरीके से काम करने के लिए संकेत देते हैं जिससे मानव जीवन और विकास के लिए आवश्यक जरूरतें पूरी हो सकें। हर देश की सरकार अपने देश के सभी नागरिकों की भलाई सुनिश्चित करने की उम्मीद करती है। हर व्यक्ति को सामाजिक सुरक्षा का अधिकार प्राप्त होता है।

उपसंहार : बहुत से कानूनों का लोगों द्वारा कई बार उल्लंघन किया जा रहा है। जो लोग अधिकारों का उल्लंघन करता है उन लोगों पर नजर रखने के लिए बहुत से संगठन बनाये गए हैं। ये सभी संगठन इन सभी अधिकारों की सुरक्षा के लिए कदम उठाते हैं। हर मनुष्य को अपने मूल अधिकारों का आनन्द लेने का अधिकार होता है।

कभी-कभी इन अधिकारों का सरकार द्वारा दुरूपयोग किया जाता है। इन सभी मूल अधिकारों से एक व्यक्ति को वंचित रखना अमानवीय होता है। इसी वजह से इन अधिकारों की सुरक्षा के लिए कई संगठनों को स्थापित किया गया है। इन सभी अधिकारों का उद्देश्य होता है कि लोग अच्छी तरह से जीवन व्यतीत कर सकें।

प्राचीनकाल में इनके न होने की वजह से लोगों को बहुत सी समस्याओं का सामना करना पड़ा था। इन मानवीय अधिकारों के लागू हो जाने की वजह से आज के समय में लोग बहुत खुश हैं। इन अधिकारों का प्रयोग हमेशा सही तरीके से किया जाना चाहिए इनका कभी भी गलत तरीके से प्रयोग नहीं करना चाहिए। अगर हम इन अधिकारों का दुरूपयोग करते हैं तो इससे हमारे समाज को बहुत हानि होती है।

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हिंदी दिवस के महत्व पर निबंध-Hindi Diwas Essay In Hindi

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हिंदी दिवस के महत्व पर निबंध (Hindi Diwas Essay In Hindi) :

भूमिका : हमारा भारत पश्चिमी रीती-रिवाजों से बहुत प्रभावित है। भारतीय लोग वहां के लोगों की तरह पोशाक पहनते हैं। भरतीय वहां की जीवन शैली का पालन करते हैं , उनकी ही भाषा को बोलना चाहते हैं और हर एक चीज में उनके जैसा बनना चाहते हैं। वे इस बात को समझना ही नहीं चाहते हैं कि भारतीय संस्कृतिक विरासत और मूल्य पश्चिमी संस्कृति की तुलना में अधिक समृद्ध है।

1949 में भारत की संविधान सभा ने हिंदी भाषा की देश की आधिकारिक भाषा के रूप में अपनाया था। भारत के संविधान ने देवनागरी लिपि में लिखी हुई हिंदी भाषा को 1950 में अनुच्छेद 343 के तहत देश की आधिकारिक भाषा के रूप में अपनाया था। इसके साथ-साथ भारत सरकार के स्तर पर अंग्रेजी और हिंदी दोनों भाषाओँ का औपचारिक रूप से प्रयोग किया जाने लगा।

साल 1949 में 14 सितम्बर को हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाने लगा था। हिंदी भाषा का सम्मान करना हर भारतीय का कर्तव्य होता है। हिंदी दिवस भारत में हिंदी का विकास करने के लिए बहुत बड़े पैमाने पर मनाया जाता है। भारत एक ऐसा देश है जहाँ पर बहुत अधिक संस्कृतियाँ पाई जाती हैं।

इन संस्कृतिक भिन्नता की वजह से कई तरह की भाषाएँ भी सम्मिलित होती है। इतनी भाषाओँ के होने की वजह से यहाँ के औपचारिक कार्यों में यह तय कर पाना कठिन हो जाता है कि किस भाषा में सभी औपचारिक कार्य किये जाएँ। इसी वजह से हिंदी को एक मुख्य भाषा के रूप में स्थापित करने की कोशिश की गई है।

इतिहास : हमारा देश कई विधाओं का मिश्रण हैं। उनमें कई भाषाओँ का समावेश है। भारत देश की इन सभी भाषाओँ में हिंदी को देश की मातृभाषा का दर्जा दिया गया है। आज हिंदी दुनिया में सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषाओँ में से एक है। हिंदी भाषा का सम्मान देने के लिए हर साल 14 सितम्बर को हिंदी दिवस और राष्ट्रिय एकता दिवस मनाया जाता है।

हिंदी भाषा को 14 सितम्बर 1949 के दिन आजादी के बाद देश की मातृभाषा का गौरव प्राप्त हुआ था। उसी दिन को याद करने में 1953 में निर्णय लिया गया , जिसके फलस्वरूप हर साल 14 सितम्बर को हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाने लगा था।

14 सितम्बर को स्वदेश में हिंदी दिवस को मनाया जाता है विश्व स्तर पर भी इस खास दिवस को मनाया जाता है। सबसे पहले 10 जनवरी 1975 को नागपुर महाराष्ट्र में विश्व हिंदी दिवस मनाया गया था। उसके बाद 10 जनवरी 2006 को विश्व हिंदी दिवस के रूप में मनाये जाने का ऐलान किया गया था।

हिंदी दिवस का महत्व : हिंदी दिवस हर साल हमें हमारी असली पहचान को याद दिलाता है और देश के सभी लोगों को एक जुट करता है। हम जहाँ भी जाते हैं हमारी भाषा , संस्कृति और मूल्य हमारे साथ रहने चाहिए और यह अनुश्मार्क के रूप में काम करता है। हिंदी दिवस हमें देशभक्ति की भावना के लिए प्रेरित करता है।

आज के समय में लोग हिंदी से ज्यादा अंग्रेजी सीखना पसंद करते हैं क्योंकि अंग्रेजी को पूरी दुनिया में बोला जाता है। अंग्रेजी भी भारत की अधिकारिक भाषाओँ में से एक है। हिंदी दिवस का यह बहुत अधिक महत्व है कि यह हमें हमेशा यह याद दिलाता रहता है कि हिंदी हमारी अधिकारिक भाषा है और यह बहुत अधिक महत्व रखती है।

हिंदी दिवस उत्सव : हिंदी दिवस को स्कूलों , कॉलेजों , और कार्यालयों के साथ-साथ राष्ट्रिय स्तर पर भी मनाया जाता है। इस दिवस पर देश के राष्ट्रपति उन लोगों को पुरस्कार देते हैं जिन्होंने हिंदी भाषा के किसी भी क्षेत्र में उत्कृष्टता प्राप्त की है। स्कूलों व कॉलेजों में प्रबन्धन समिति के द्वारा हिंदी वाद-विवाद , कविता , कहानी बोलने की प्रतियोगिताएं भी रखी जाती हैं।

संस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है और शिक्षक भी हिंदी दिवस के महत्व को समझाने के लिए भाषण देते हैं। बहुत से स्कूल और इंटर स्कूल भी हिंदी वाद-विवाद , हिंदी निबन्ध , कानी लेखन और कविता प्रतियोगिताएं का आयोजन करते हैं। यह दिन हिंदी भाषा को सम्मान देने का होता है जो नई पीढ़ी में लुप्त होता जा रहा है।

हिंदी दिवस को कई कार्यालयों और सरकारी संस्थानों में भी मनाया जाता है। आज के समय में लोग भारतीय संस्कृति को आनन्दित करने के लिए भारतीय जातीय परिधान को पहनते हैं। हिंदी दिवस पर महिलाएं सूट और साड़ियाँ पहनती हैं तो पुरुष कुर्ता पजामा पहनते हैं।

हिंदी दिवस के दिन संस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं और लोग भी उनमे बहुत ही उत्साह के साथ भाग लेते हैं। इस दिन बहुत से लोग हिंदी कविता पढ़ते हैं र हिंदी के महत्व के बारे में भी समझाते हैं।

सबसे अधिक बुलने वाली भाषा : हिंदी भाषा भारत में सबसे व्यापक रूप से प्रयोग की जाने वाली भाषा है। हालाँकि लोग अंग्रेजी भाषा के प्रति आकर्षित होते हैं बहुत से स्कूलों और अन्य जगहों पर इस पर जोर दिया जाता है लेकिन फिर भी हिंदी भाषा हमारे देश में सबसे व्यापक रूप से बोली जाने वाली भाषा के रूप में बनी हुई है।

जब वर्ष 2001 में जनगणना का आयोजन किया गया था तब 422 लाख से भी ज्यादा लोगों ने हिंदी का अपनी मातृभाषा के रूप में उल्लेख किया था। देश में किसी भी अन्य भाषा का कुल आबादी का 10% से अधिक उपयोग नहीं किया जाता है। उत्तर भारत की अधिकांश आबादी हिंदी बोलने वाली है।

उत्तर प्रदेश , मध्य प्रदेश , बिहार , झारखंड , छत्तीसगढ़ , हरियाणा , राजस्थान , उत्तराखंड , और झारखण्ड सहित कई भारतीय राज्यों में हिंदी भाषा को अधिकारिक भाषा के रूप में स्वीकार कर लिया गया है। बिहार देश का पहला राज्य था जिसने अपनी एकमात्र अधिकारिक भाषा के रूप में हिंदी को अपनाया था। बंगाली , तेलुगु और मराठी देश की एनी व्यापक रूप से बोली जाने वाली भाषा है।

संसार में व्यापक रूप से बोली जाने वाली चौथी भाषा : हिंदी भाषा दुनिया की चौथी व्यापक रूप से बोली जाने वाली भाषा है। हिंदी भारत में ज्यादातर जनसंख्या हिंदी बोलने वाली है। अन्य देश जहाँ पर व्यापक रूप से हिंदी बोली जाती है वे देश हैं – पाकिस्तान , नेपाल , मॉरिशस , फिजी , गुयाना और सूरीनाम आदि। पूरी दुनिया भर में लोग हिंदी गीतों और फिल्मों को बहुत पसंद करते है। जो स्पष्ट रूप से हिंदी भाषा के प्रति प्रेम को परिभाषित करता है।

हिंदी को प्राथमिकता न मिलना : दुर्भाग्य से भले ही हिंदी भाषा चौथी व्यापक रूप से बोली जाने वाली भाषा है लेकिन इसके मूल देश में ही लोग इसे कुछ महत्व नहीं देते हैं। स्कूल से लेकर कॉलेज , कार्यलयों तक सभी जगह अंग्रेजी को ही प्राथमिकता दी जाती है और हिंदी को अंग्रेजी से पिछाड दिया जाता है। आज के समय में माता-पिता , शिक्षकों और हर व्यक्ति द्वारा लिखित और मौखिक दोनों रूप से ही अंग्रेजी भाषा को सीखने के महत्व पर जोर दिया जाना मानो एक आम बात हो गयी है क्योंकि इससे रोजगार प्राप्त करने में बहुत मदद मिलती है।

यह देखकर बहुत दुःख होता है कि नौकरियों और पाठ्यक्रमों के लिए भी लोगों को स्मार्ट होने की जरूरत पडती है क्योंकि नौकरी पर रखने वाले अधिकारी भी उन्हें अग्रेजी के संबंधित ज्ञान के आधार पर ही चुनाव करते हैं। बहुत से लोग सिर्फ इस वजह से काम करने के मौके को छोड़ देते हैं क्योंकि वे अंग्रेजी को धाराप्रवाह नहीं बोल पते हैं भले ही वे काम के बारे में पूरी तरह से जानते हों।

महत्व और प्रतिष्ठा से संबंधित घटनाएँ : बहुत से स्कूल और अन्य संस्थान हर वर्ष हिंदी दिवस मानते हैं। यहाँ पर इस दिन के सम्मान में विशेष समारोहों का आयोजन भी किया जाता है। भारत के पर्व पर राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने हिंदी से संबंधित बहुत से क्षेत्रों में उत्कृष्टता के लिए बहुत से श्रेणियों में पुरस्कार भी प्रदान किये हैं।

हिंदी दिवस के सम्मान में भी विज्ञानं भवन नई दिल्ली में एक समारोह भी आयोजित किया गया था। हिंदी दिवस पर विभागों , मंत्रालयों , राष्ट्रीयकृत बैंकों और सार्वजनिक उपक्रमों को राजभाषा पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया है।

भोपाल में आयोजित होने वाले एक विश्व हिंदी सम्मेलन में भी प्रधामंत्री जी ने कहा कि अंग्रेजी , हिंदी और चीनी डिजिटल दुनिया पर शासन करने जा रहे हैं ताकि भाषा के महत्व पर जोर दिया जा सके। हमारे केन्द्रीय मंत्री राजनाथ सिंह ने भी संयुक्त राष्ट्र में हिंदी के लिए अधिकारिक भाषा का दर्जा लेने का भी मुद्दा उठाया था।

हिंदी का योगदान : भारत देश में हिंदी को अधिकारिक भाषा के रूप में स्वीकृत करने का कदम स्वागत योग्य है हालाँकि हर साल हिंदी दिवस को मनाने का फैसला वाकई काबिले तारीफ है। हिंदी दिवस एक अनुस्मारक है कि जहाँ भी जाएँ हमें अपने आदर्शों और संस्कृति को नहीं भूलना चाहिए। यही हमें परिभाषित करता है और हमें इसका अंड उठाना चाहिए।

यह दिन विभिन्न सरकारी संस्थानों में उत्साह से मनाया जाता है। बहुत से भारतीयों की कोशिशों की वजह से हिंदी के प्रचार-प्रसार बड़ी तेजी से हो रहा है। पूरी दुनिया में अपने मेहनत और बुद्धिमानी से भारतियों ने उन्नति का मगर खोला है उसे सभी देश ये मानने लगे हैं भारतियों से संबंध अच्छे बनाने के लिए हिंदी एक बेहतरीन माध्यम है।

आज के समय में करोड़ों लोग हिंदी भाषा में कंप्यूटर का प्रयोग कर रहे हैं जी हिंदी के वर्चस्व के लिए एक बहुत बड़ी उपलब्धि है। आज का दौर डिजिटलाईजेशन का है जिसमें भारत के गांवों को भी इससे जोड़ा जा रहा है इंटरनेट को हर कोने तक पहुंचने की पूरी कोशिश की जा रही है। इन सब के लिए हिंदी माध्यम का जरिया पूरी तरह बन गया सके इसके प्रयास लगतार जारी हैं। इन कदमों को उठाने में काफी सफलता भी हासिल हुई है।

हिंदी दिवस मनाने का कारण : हिंदी दिवस को मनाना आज के समय में बहुत अनिवार्य हो गया है। आज के समय में लोग सिर्फ अंग्रेजी पर ही ध्यान दिया जाता है। लोगों के बीच सिर्फ उन्हीं लोगों को पढ़ा लिखा माना जाता है जो लोग अंग्रेजी बोल पाते हैं और लिख पाते हैं।

कई जगहों पर तो हिंदी बोलने वाले व्यक्तियों के स्टेट्स पर बहुत फर्क पड़ने लगता है। किसी भी भाषा के साथ उसकी संस्कृति जुडी होती है। हमारे भारत की संस्कृति का इतिहास बहुत ही गौरवशाली रहा है। जो भी भारतीय इस सांस्कृतिक इतिहास को पूर्ण रूप से नहीं अपनाता है वह भी पूर्ण रूप से भारतीय नहीं होता है।

अत: हमें अपनी संस्कृति को समझने के लिए हिंदी को जानना बहुत जरूरी होता है। देश के लोगों को आज तक अंग्रेजी भाषा के ज्ञान को पूर्ण रूप से प्राप्त नहीं किया है। कई बार लोग अंग्रेजी भाषा को बोलते समय हिंदी का सहारा लेते हैं। अगर किसी व्यक्ति को हिंदी अच्छी तरह से आती है तो वह किसी भी स्थान पर हिंदी का प्रतिष्ठित रूप से प्रयोग कर सकता है।

हिंदी में ऐसी बहुत सी रचनाएँ हुयी हैं जिन्हें पढकर और उन पर अम्ल करके व्यक्ति के जीवन को बदला जा सकता है। इस तरह की रचनाओं को पढने और समझने के लिए हिंदी को सीखना बहुत जरूरी होता है। हिंदी भाषा से राष्ट्र की एकता और अखंडता को बनाए रखा जा सकता है।

हिंदी दिवस उस दिन को याद करने के लिए मनाया जाता है जिस दिन हिंदी भाषा हमारे देश की अधिकारिक भाषा बनी थी। हिंदी दिवस को जो अंग्रेजी भाषा से प्रभावित हैं उनके बीच हिंदी भाषा के महत्व पर जोर देने और हर पीढ़ी के बीच में इसको बढ़ावा देने के लिए मनाया जाता है।

इससे युवाओं को अपने पूर्वजों के इतिहास को याद दिलाया जा सकता है। इस बात से किसी भी तरह का कोई फर्क नहीं पड़ता है कि हम कहाँ तक पहुंच गये हैं और हम क्या करते हैं। अगर हम अपने देश के इतिहास को जान लेंगे तो हम देश की पकड़ को मजबूत बना सकते हैं। हर साल 14 सितम्बर को हिंदी दिवस मनाने से भारतीय संस्कृति को संजोया जा सकता है और हिंदी भाषा का सम्मान भी किया जा सकता है।

उपसंहार : अंग्रेजी एक दुनिया भर में बोली जाने वाली भाषा है लेकिन इसके महत्व को अनदेखा नहीं किया जा सकता है। हमें यह कभी नहीं भूलना चाहिए कि हम एक भारतीय हैं और हमें अपनी राष्ट्र भाषा का सम्मान करना चाहिए। हिंदी भाषा को अधिकारिक भाषा के रूप में अपनाने से यह सिद्ध होता है कि जो लोग सत्ता में रहते हैं वो सभी हिंदी के महत्व को पहचानते हैं और यह इच्छा करते हैं कि लोग हिंदी भाषा को भी महत्व दें।

हिंदी दिवस हमारे सांस्कृतिक जड़ों को फिर से देखने और अपनी समृद्धता का जश्न मनाने का दिन होता है। हिंदी हमारी मातृभाषा है और हमें उसका आदर करना चाहिए और उसका मूल्य समझना चाहिए। हिंदी दिवस को बहुत से स्थानों पर बहुत ही उत्साह के साथ मनाया जाता है। यही समय है जब लोगों को हिंदी दिवस के महत्व को समझना चाहिए क्योंकि हिंदी हमारी राष्ट्र भाषा और हमारी संस्कृतिक आधा को याद करने का दिन है।

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दशहरा पर निबंध-Essay On Dussehra In Hindi

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दशहरा पर निबंध (Essay On Dussehra In Hindi) :

भूमिका : भारत एक ऐसा देश है जो अपनी संस्कृति , परम्परा , निष्पक्षता , और त्यौहारों के लिए बहुत प्रसिद्ध है। भारत एक मेलों और त्यौहारों का देश है जहाँ पर हर त्यौहार को उत्साह और विश्वास के साथ मनाया जाता है। इन त्यौहारों से हमें सच्चाई , आदर्श और नैतिकता की शिक्षा मिलती है।

हमारे प्रत्येक त्यौहार का किसी-न-किसी ऋतू से संबंध होता है। दशहरा शीत ऋतू के प्रधान त्यौहारों में से एक होता है। दशहरा आश्विन मास की शुक्ल दसमी की तारीख को मनाया जाता है। भारत में दशहरा पर्व हिन्दुओं की चिर संस्कृति का प्रतीक होता है। इस दिन श्री राम जी ने लंकापति रावण पर विजय प्राप्त की थी।

इसी वजह से इसे विजय दशमी भी कहा जाता है। दशहरा सितम्बर या अक्तूबर मास में मनाया जाता है। दशहरा एक जातीय त्यौहार हैक्योंकि इसे सिर्फ हिन्दू ही नहीं बल्कि अन्य सम्प्रदाय के लोग भी मनाते हैं। इसका संबंध विशेष रूप से क्षत्रियों से होता है। इस त्यौहार का इंतजार लोग बड़े ही धैर्य के साथ करते हैं। इस दिन लोगों को एक दिन का अवकास प्रदान किया जाता है जिसकी वजह से लोग दशहरे के पर्व को को ख़ुशी और आनन्द से मना सकें।

मूल उद्देश्य : किसी भी त्यौहार को मनाने के पीछे हमेशा एक मूल उद्देश्य छिपा होता है। हमारे धर्म ग्रंथों में दशहरा से संबंधित कई घटनाएँ मिल जाती हैं। दशहरे के दिन माँ दुर्गा ने नौ दिन तक युद्ध करने के पश्चात दसवें दिन महिषासुर नामक राक्षस का वध किया था। इसी वजह से दशहरे के अवसर पर नवरात्रियों का बहुत महत्व होता है।

वीर पांडवों ने लक्ष्य को भेदकर द्रोपदी का वरण किया था। महाभारत युद्ध भी विजयदशमी को ही शुरू किया गया था। इसी दिन भगवान श्री राम ने दस दिन के घोर युद्ध के बाद आश्विनी मास की शुक्ल दशमी को रावण का वध किया था क्योंकि रावण के कारण देव और मानव दोनों ही बहुत परेशान थे। इस दिन श्री राम की विजय पर सभी ने खुशियाँ मनायी थीं।

मनाने का कारण : जब भगवान राम का वनवास चल रहा था तो रावण छल से सीता माता का अपहरण करके ले गया था। श्री राम ने सुग्रीव , हनुमान और अन्य मित्रों की सहायता से लंका पर आक्रमण किया और रावण को मारकर लंका पर विजय प्राप्त की थी। उसी दिन से यह दिन विजय दशमी के रूप में मनाया जाता है।

इसी दिन को भगवान श्री राम ने पाप पर पुन्य , अधर्म पर धर्म और असत्य पर सत्य की जीत का प्रतीक बनाया था। इस दिन श्री राम ने अत्याचारी रावण को मारकर भारतीय संस्कृति और उसकी महान परम्पराओं की पुनः प्रतिष्ठा स्थापित की थी।

दुर्गा पूजा : माँ दुर्गा ने इस दिन महिषासुर पर विजय प्राप्त की थी इसी ख़ुशी की वजह से माँ दुर्गा के श्रद्धालु इस दिन माँ दुर्गा की पूजा करते हैं माँ दुर्गा की आठ हाथों वाली मूर्ति बनाकर उसकी नौ दिनों तक पूजा की जाती है और इस अवसर पर बहुत से भक्त नवरात्रि का वृत भी रखते हैं दुर्गा पूजा का विशिष्ट महत्व विशेष रूप से बंगाल में है। इसके अतिरिक्त एनी कई देशों में भी दुर्गा पूजा भुत ही उल्लास और ख़ुशी के साथ मनायी जाती है।

शस्त्र पूजन : दशहरे को वर्षा ऋतू के अंत में मनाया जाता है। श्री राम की जीत के अतिरिक्त इस दिन का एक और भी महत्व है। प्राचीनकाल में लोग अपनी प्रत्येक यात्रा को इसी दिन शुरू करना शुभ मानते थे। वर्षा ऋतू के आने की वजह से क्षत्रिय राजा और व्यापारी अपनी यात्रा को स्थगित कर देते थे।

वर्षा ऋतू में क्षत्रिय अपने-अपने शस्त्रों को बंद करके रख देते थे और शीत ऋतू के आने पर ही निकालते थे। वे अपने शस्त्रों की पूजा करते थे और उनकी धार को और तेज करते थे। रजा लोग अपनी विजय यात्रा और रण यात्रा को भी इसी दिन से शुरू करते थे क्योंकि उस समय में बड़ी-बड़ी नदियों पर पुल नहीं होते थे।

वर्षा ऋतू में उन पुलों को पार करना असंभव होता था इसी वजह से जब वर्षा ऋतू खत्म हो जाती थी तभी यात्राओं का शुभारम्भ होता था। व्यापारी वर्षा ऋतू में माल खरीदते थे और वर्षा ऋतू के अंत में उसे बेचने के लिए चल देते थे। इसी समय पर साधू परमात्मा और उपदेशक धर्म का प्रचार करने के लिए अपनी यात्रा आरंभ करते थे। उसी परम्परा के अनुसार आज भी लोग अपनी यात्राओं का शुभारम्भ दशहरे के दिनों से करते हैं।

झाँकियाँ : अलग-अलग स्थानों पर यह दिन अलग-अलग तरीके से मनाया जाता है। जो बड़े-बड़े नगर होते हैं वहाँ पर रामायण के सभी पात्रों की झांकियां निकली जाती हैं। लोग इन झांकियों को बड़ी श्रद्धा और उत्साह के साथ देखते हैं। भारत की राजधानी दिल्ली का दशहरा बहुत ही प्रसिद्ध होता है।

दशहरे के दिन माँ दुर्गा की प्रतिमा को ट्रक और गाड़ियों में लादकर गलियों और बाजारों से एक जुलुस की तरह निकाला जाता है और फिर प्रतिमा को नदियों या फिर पवित्र सरोवरों और सागरों में विसर्जित कर दिया जाता है। इस अवसर पर लोग अपने-अपने घर में स्थापित प्रतिमा को बड़ी धूमधाम और नृत्य के द्वारा विसर्जित की विधि को पूरा करते हैं।

रामलीलाएँ : राम की रावण पर विजय के मौके पर नवरात्रियों में राम के जीवन पर आधारित रामलीला का आयोजन किया जाता है। रामलीला की धूम को उत्तर भारत में स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। दिल्ली में रामलीला मैदान , परेड ग्राउंड और कई जगहों पर वृद्ध रूप से रामलीला का आयोजन किया जाता है।

दशहरे का दिन रामलीला का अंतिम दिन होता है। दशहरे के दिन पर रावण , कुंभकर्ण और मेघनाथ के पुतले बनाये जाते हैं। इन पुतलों में अनेक प्रकार के छोटे और बड़े बम्बों को लगाया जाता है। शाम के समय में राम और रावण के दलों में कृत्रिम लड़ाई करवाई जाती है और राम रावण को मार कर लंका पर विजय प्राप्त करते हैं।

इसके पश्चात रावण , कुंभकर्ण और मेघनाथ के पुतलों को जलाया जाता है तब पटाखों की आवाज करते हुए जलते पुतलों को देखने का आनन्द ही अलग होता है। पुतलों को नष्ट करने के बाद राम के राज तिलक का अभिनय किया जाता है जिसे देखकर प्रत्येक व्यक्ति का ह्रदय आनन्दमग्न हो जाता है। दशहरे के अवसर पर जगह-जगह पर मेला लगाया जाता है और लोग मिठाईयां और खिलौनों को लेकर घर जाते हैं।

बुराई पर अच्छाई की विजय : हमारा भारत एक धर्म प्रधान देश है। भारत के सभी पर्वों का संबंध धर्म , दर्शन और अध्यात्म से होता है। माँ दुर्गा और भगवान श्री राम ये दैवीय शक्ति अथार्त सत्य के प्रतीक हैं इसके विपरीत महिषासुर , रावण , मेघनाथ और कुम्भकर्ण ये सभी आसुरी शक्ति के अथार्त असत्य के प्रतीक थे इसलिए विजयदशमी दैवीय शक्ति आसुरोई शक्ति पर या असत्य पर सत्य की विजय का प्रतीक है।

हमारे अंदर दैवीय और असुरी दोनों प्रकार की शक्तियाँ विद्यमान होती हैं जो हमेशा हमें शुभ और अशुभ कामों के लिए प्रेरित करती हैं। जो व्यक्ति अपनी असुरी शक्तियों पर विजय प्राप्त कर लेता है केवल वही अपने इवन में श्री राम और माँ दुर्गा की तरह महान बन पाता है।

इसके विरुद्ध जो व्यक्ति असुरी शक्तियों के अधीन होता है वः रावण और महिषासुर जैसा बन जाता है। दशहरे को मनाने से हमें उस दिन की याद आती है जब श्री राम ने अपनी संस्कृति का विदेशों में भी प्रसार किया था और आर्य समाज की नीव को लंका में रखा था। श्री राम जी की तरह के पितृ भक्त और लक्ष्मण जैसे भ्रातृभक्त और सीता माता की तरह की पतिवृता और धैर्य से काम लेने वाली तथा हनुमान की तरह का स्वामी भक्त बनने की हमेशा प्रेरणा मिलती है।

उपसंहार : हमें केवल अपने त्यौहारों को परम्परागत ढंग से मनाना ही नहीं चाहिए बल्कि उनके आदर्शों पर चलकर अपने जीवन को चरितार्थ करना चाहिए। हमें माँ दुर्गा की तरह बनने का प्रयास करना चाहिए जिस प्रकार उन्होंने कल्याणार्थ के लिए बड़े-बड़े काम किये थे उसी तरह हमें भी लोगों की सेवा हेतु हमेशा तत्पर रहना चाहिए।

दशहरे के दिन कुछ असभ्य लोग शराब पीते हैं और आपस में लड़ाई झगड़ा करते हैं। यह बात अच्छी नहीं है। अगर व्यक्तियों द्वारा इस तुहार को ठीक तरीके से मनाया जाता है तो इससे कई प्रकार के आशातीत लाभ मिलते हैं। राम के जीवन पर प्रकाश डालें और उस समय के इतिहास को ध्यान में रखें।

इस तरह से दशहरा हमें उन गुणों को धारण करने का उपदेश देता है जो गुण राम में विद्यमान थे। दशहरा मेला उत्सव का मुख्य आकर्षण है। शहरों में सभी लोगों के लिए मेले का आयोजन किया जाता है और बच्चों के खेलने के लिए गेमों का आयोजन भी किया जाता है। कोटा मेला और मैसूर मेला दशहरे के प्रसिद्ध मेले हैं।

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कंप्यूटर पर निबंध-Essay On Computer In Hindi

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कंप्यूटर पर निबंध (Essay On Computer In Hindi) :

भूमिका : आवश्यकता आविष्कार की जननी होती है। अपनी आवश्यकता को पूरा करने के लिए ही आज तक मनुष्य हमेशा से नवीनतम आविष्कारों को सफल बनता आया है। मनुष्य ने विज्ञानं की सहायता से द्रुतगामी आवागमन के साधनों को बना लिया है।

मनुष्य ने अपनी सुख-सुविधाओं को पूरा करने के लिए प्राकृतिक साधनों का दोहन कर उन्हें अपने अनुचर बना लिया है। विज्ञानं ने मनुष्य को आज तक बहुत प्रकार की सुविधाएँ उपलब्ध कराई हैं। उन सारी सुविधाओं में कंप्यूटर का एक विशेष स्थान है। कंप्यूटर की सहायता से हर काम को अभिलम्ब किया जा सकता है।

इसी वजह से रोज इसकी उपयोगिता इतनी अधिक बढती जा रही है। हर उन्नत और प्रगतिशील देश स्वंय को कंप्यूटरमय बना रहा है। आज के समय में भी कंपूटर के प्रति आकर्षण बढ़ रहा है। मनुष्य अपनी हर कठिन समस्या को कंप्यूटर से ही हल करना चाहता है। कंप्यूटर एक कठिनतम प्रश्नों और समस्याओं को आसानी से हल करने का एक बहुत ही अच्छा साधन है।

कंप्यूटर का अर्थ : यह विज्ञानं की एक महान देन है तो सभी लोगों को यह याद अवश्य रखना चाहिए कंप्यूटर क्या है और यह कैसे काम करता है ? कंप्यूटर एक इलेक्ट्रॉनिक यंत्र है। कंप्यूटर एक जिज्ञासा उत्पन्न होने वाला स्वाभाविक है। कंप्यूटर एक ऐसे यांत्रिक मष्तिष्कों का रूपात्मक , समन्वयात्मक योग और गुणात्मक घनत्व है जो तेज गति से कम-से-कम समय में ज्यादा-से-ज्यादा काम कर सकता है।

गणना के क्षेत्र में कंप्यूटर का बहुत विशेष महत्व है। विज्ञानं ने गणितीय गणनाओं के लिए बहुत से गणनायंत्रों का आविष्कार किया है परन्तु कंप्यूटर की किसी से भी तुलना नहीं की जा सकती है। कंप्यूटर का काम होता है अभिकलन और परिकलन करना। शुरू में इसे सिर्फ गणित के क्षेत्र में प्रयोग करने के लिए बनाया गया था।

अभिकलन में योग , गुणन , विभाजन , वर्गमूल , व्यकलन को जानने जैसी सभी क्रियाएं सम्मिलित होती थी। कंप्यूटर का काम इन सब का तुरंत हल निकालना था। अब कंप्यूटर का काम सिर्फ गणित के क्षेत्र तक ही सिमित नहीं है बल्कि अब इसका प्रयोग हर क्षेत्र में किया जाता है और क्षेत्र की समस्याओं को यह आसानी से हल करने वाला यंत्र बन चुका है।

कंप्यूटर का अविष्कार और कार्य प्रणाली : सबसे पहले कंप्यूटर को 19 वीं शताब्दी में चार्ल्स बेवेज ने बनाया था। जब विभिन्न समस्याओं को हल करने के लिए यंत्र बनाया गया था उसे ही कंप्यूटर कहते हैं। लेकिन कंप्यूटर कोई मानवेतर वस्तु नहीं है , न ही कोई जादू की छड़ी है जिसे घुमाया और काम हो गया और यह कोई ईश्वरीय शक्ति भी नहीं है जो असंभव को भी संभव करके दिखा दे।

कंप्यूटर एक मानव कृत है। कंप्यूटर केवल उन्हीं समस्याओं को हल कर सकता है जिन्हें मनुष्य हल करने में ज्यादा समय लेता हो या उस काम को कई लोग मिलकर हल करते हों। कंप्यूटर में केवल किसी समस्या या उसके हल को अंकित किया जाता है। एक हल जिसे कई लोग मिलकर लम्बे समय में निकालते हैं उसे ही कंप्यूटर में अंकित किया जाता है।

जब कोई व्यक्ति उस प्रश्न के मुख्य हल को ढूंढता है तो बटन दबाने से उस प्रश्न का हल उसके सामने आ जाता है जो उसमें पहले से ही अंकित किया गया था। जिस तरह से एक कैलकुलेटर में सभी अंकों के योग , व्यकलन , गुणन , विभाजन और वर्गमूल आदि हलकर अंकित किये जाते हैं।

जब हम किसी भी संख्या का योग करते हैं तो उसका उत्तर हमारे सामने आ जाता है क्योंकि उसमें पहले से ही उसका उत्तर अंकित किया गया होता है। बहुत सी ऐसी संख्याएं होती हैं जिनका हल बटन दबाने से हमारे सामने नहीं आता है क्योंकि उसका हल उसमें अंकित ही नहीं होता है।

इसी तरह से विश्व की अन्य समस्याएं भी हैं। उन सभी के हल उनके विशेषज्ञों से पूंछकर उसमें हल अंकित कर लिए जाते हैं। जरूरत के समय में उसका हल हम बटन दबाते ही मालूम कर लेते हैं। किसी भी एक कंप्यूटर में लाखों समस्यायों के हलों को अंकित कर लिया जाता है। यदि कोई समस्या ऐसी होती है जिसका हल कंप्यूटर में अंकित नहीं किया गया होता है कंप्यूटर में उसका उत्तर सॉरी के नाम से लिखा हुआ आता है।

कंप्यूटर की विशेषता : कंप्यूटर एक बहुत ही आज्ञाकारी यंत्र होता है। कंप्यूटर अपने कर्तव्यों का पालन बहुत ही अच्छी तरह से करता है। क्न्प्युँत्र कभी भी एक जैसे कामों को बार-बार करने से थकता नहीं है और बहुत ही तेजी से भी काम करता है। यह बात जानकर बहुत हैरानी होती है वर्तमान का कंप्यूटर प्रति सेकेंड में दस लाख से भी ज्यादा संक्रियाएं कर सकता है।

सबसे पहले कंप्यूटर की सबसे बड़ी यह विशेषता थी कि यह लम्बी से लम्बी गणनाओं को करने और उन्हें मुद्रित करने की क्षमता रखता था। कंप्यूटर खुद ही गणना करके कठिन-से-कठिन समस्याओं का समाधान जल्दी कर देता है। कंप्यूटर में की जाने वाली गणनाओं में एक विशेष तरह की भाषा में निर्देशों को तैयार किया जाता है।

इन सभी निर्देशों और प्रयोगों को कंप्यूटर की संज्ञा दी जाती है। कंप्यूटर का जो भी परिणाम होता है वह शुद्ध होता है। अशुद्ध उत्तर का उत्तरदायित्व उस पर नहीं बल्कि उसके प्रयोक्ता पर होता है। कंप्यूटर ने अपने सफल प्रयोगों से बहुत से क्षेत्रों में अपनी योग्यता को सिद्ध किया है। कंप्यूटर में लाखों और करोड़ों हलों को अंकित करने की प्रबल क्षमता होती है।

विभिन्न क्षेत्रों में कंप्यूटर का उपयोग : खेल के क्षेत्र में , औद्योगिक क्षेत्र में , युद्ध के क्षेत्र में और अनेक अन्य क्षेत्रों में भी कंप्यूटर का प्रयोग किया जा सकता है। कंप्यूटर का प्रयोग परीक्षा फल के निर्माण में , अन्तरिक्ष यात्रा में , मौसम संबंधी जानकारी में , चिकित्सा में और चुनावों में भी किया जा रहा है।

भारत के गणित क्षेत्र में भी कंप्यूटर का बहुत प्रयोग किया गया है। बी किसी भी व्यक्ति को यात्रा करनी होती है तो भारतीय रेलवे प्रशासन ने दिल्ली में जनता के द्वारा यात्रा के आरक्षण के लिए कंप्यूटरों के द्वारा प्रवेश की व्यवस्था को भी उपलब्ध कर दिया है वे इस सुविधा को अन्य क्षेत्रों पर भी उपलब्ध करने की कोशिश कर रहे हैं बड़े-बड़े संगठनों में भी कंप्यूटर का प्रयोग किया जाता है।

कई जगहों पर विद्यालय और विश्वविद्यालय भी इसका प्रयोग परिणामों को तैयार करने में भी करते हैं। कंप्यूटरों का सबसे अधिक व्यापक प्रयोग उपग्रहों को आकाश में छोड़ने और चन्द्रमा पर मनुष्यों को भेजने तथा उड़ान यंत्रों को नियंत्रित करने के लिए भी कंप्यूटरों का प्रयोग किया जाता है। इस तरह से कंप्यूटर मानव के हर क्रियाकलाप को प्रभावित कर रहा है।

आर्थिक विकास के लिए लाभकारी : भारतीय बैंकों और अन्य उपक्रमों के खतों का संचालन और हिसाब-किताब रखने के लिए कंप्यूटर का प्रयोग किया जा रहा है। समाचार-पत्रों और पुस्तकों के प्रकाशन में भी कंप्यूटर अपनी विशेष भूमिका निभा रहा है। कंप्यूटर से संचालित फोटो कंपोजिंग मशीन के माध्यम से छपने की सामग्री को भी टंकित किया जा सकता है।

जो मेटर टंकित होता है उसे कंप्यूटर पर देखा जा सकता है। संचार का एक महत्वपूर्ण साधन भी कंप्यूटर है। कंप्यूटर नेटवर्क के माध्यम से देशों के प्रमुख नगरों को एक-दुसरे के साथ जोड़े जाने की व्यवस्था पर बहुत ध्यान दिया जा रहा है। जो आधुनिक कंप्यूटर होता है वह डिजाइन तैयार करने में भी सहायक होता है।

भवनों , मोटर-गाड़ियों , हवाई जहाजों और घरों के डिजाइनों को बनाने में भी कंप्यूटर ग्राफिक्स का बहुत प्रयोग किया जा रहा है। एक कंप्यूटर में कलाकार की भूमिका का निर्वाह करने की क्षमता पाई जाती है। अन्तरिक्ष के क्षेत्र में भी कंप्यूटर ने अपने विशेष कमाल दिखाया है। कंप्यूटर की सहायता से अन्तरिक्ष के व्यापक चित्रों को उतारा जा रहा है। इन सभी चित्रों का विश्लेष्ण भी कंप्यूटर के माध्यम से ही किया जाता है।

उपसंहार : इस तरह से भारत में कंप्यूटर का रोज प्रयोग बढ़ रहा है। बहुत से क्षेत्रों ने कंप्यूटर में उन्नति कर ली है जैसे- बंगलौर , हैदराबाद , गुडगाँव , नोयडा और मोहाली आदि। भारत में कंप्यूटर का भविष्य बहुत ही उज्ज्वल है लेकिन कंप्यूटर ने मनुष्य को अपंग बना दिया है।

कंप्यूटर की वजह से समाज में बेकारी की समस्या भी उत्पन्न हुयी है इसी वजह से हमें उन कामों को करने के लिए कंप्यूटर की सहायता नहीं लेनी चाहिए जिन्हें हम सरलता से कर सकते है। हमें पूरी तरह से यंत्रों पर निर्भर नहीं रहना चाहिए। कंप्यूटर का प्रयोग केवल कठिन समस्याओं को हल करने के लिए ही किया जाना चाहिए और हमें उसका दस नहीं अपितु मित्र बनना चाहिए।

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भगत सिंह पर निबंध-Essay On Bhagat Singh In Hindi

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भगत सिंह पर निबंध (Essay On Bhagat Singh In Hindi) :

भूमिका : इस विश्व में हजारों-लाखों लोग जन्म लेते हैं और मर जाते हैं लेकिन कोई भी उनका नाम नहीं जानता। लेकिन कुछ लोग ऐसे होते हैं जिनका नाम भूला नहीं जाता है और वे मर कर भी अमर हो जाते हैं। उन लोगों का नाम बहुत आदर और सम्मान से लिया जाता है उनके नाम लेने से ही जीवन में प्रेरणा उत्पन्न हो जाती है।

भारत का भाग्य पराधीनता की भयानक और काली रात के अंधकार में डूबा था। भारत के वासी अपने ही आकश ,अपनी ही धरती और अपने ही घरों में परतंत्र और गुलाम थे। उन सब का भाग्य विदेशी शासकों इ दया और कृपा पर निर्भर करता था। वे सभी लोग इतने भी स्वतंत्र नहीं थे कि अपनी इच्छा , कल्पना , भावना और विचारों को प्रकट कर सकें।

अपनी प्रगति , न्याय और सम्मान के लिए भी वे विदेशियों पर निर्भर करते थे। इस अन्याय को खत्म करने और भारत को आजा कराने वाले शहीदों में भगत सिंह जी का नाम अविस्मरणीय है। भगत सिंह जी ने भारत को स्वतंत्र कराने के लिए जी आहुति दी थी उसकी वजह से आई क्रांति से विदेशी शासन बहुत बुरी तरह घबरा गया।

भारत माँ के लाडले भगत सिंह जी की अमर गाथा के नायक हैं। भगत सिंह जी की माँ पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा था जब उनके 22 साल के बेटे को फांसी पर लटका दिया गया था। भगत सिंह जी का नाम भारत के महान रत्नों में से एक है। जब तक हमारा भारत देश है तब तक भगत सिंह जी का नाम है। भारत को आजाद कराने के लिए भारत के क्रांतिकारियों ने कितने दुःख और बलिदान दिए हैं उनका अनुमान भी नहीं लगाया जा सकता है।

भगत सिंह जन्म : भगत सिंह जी भारत के क्रांतिकरी युवाओं में से एक थे। भगत सिंह जी का जन्म 28 सितम्बर , 1907 को पाकिस्तान के बंगा में हुआ था। भगत सिंह जी के पिता का नाम सरदार किशन सिंह संधू था और माता का नाम विद्यावती कौर था। भगत सिंह जी एक सिख थे। भगत सिंह जी की दादी ने इनका नाम भागाँवाला रखा था क्योंकि उनकी दादी जी का कहना था कि यह बच्चा बड़ा भाग्यशाली होगा।

भगत सिंह शिक्षा : भगत सिंह जी ने अपनी प्रारम्भिक शिक्षा अपने गाँव से पूरी की थी। भगत सिंह जी ने 1916 से 1917 में डी. ए. वी. कॉलेज से अपनी हाईस्कूल की परीक्षा को पास किया था। डी. ए. वी. करने के बाद उन्होंने नेशनल कॉलेज से बी. ए. की थी। भगत सिंह जी ने सन् 1923 में एफ. ए. की परीक्षा उतीर्ण की थी।

भगत सिंह का जीवन : भगत सिंह जी बचपन से ही निर्भीक प्रवृति के थे। वे बचपन से ही वीरों के खेल खेला करते थे। वे अक्सर दो दलों बनाकर लड़ाई करना और तीर कमान चलाने जैसे खेल खेला करते थे। बचपन से ही उनमें देशप्रेम की भावना कूट-कूटकर भरी थी।

बचपन में भगत सिंह जी ने अपने पिता की बंदूक को खेत में गाढ़ दिया था। जब उनके पिता ने इस काम का कारण पूछा तो उन्होंने कहा कि एक बंदूक से कई बंदूके होंगी और उन्हें मैं अपने साथियों में बाँट दूंगा। इनसे हम अंग्रेजों से लड़ेंगे और भारत माता को आजाद करायेंगे।

जनरल डायर ने सन् 1919 में जलियाँवाला बाग़ में गोलिया चलवाई थीं जिसकी वजह से हजारों बेकसूर और निहत्थे लोग मारे गये थे। उस समय भगत सिंह सिर्फ 11 साल के थे तब उन्होंने बाग की मिटटी को सर से छूकर भारत को स्वतंत्र कराने के लिए जीवन भर संघर्ष करने की प्रतिज्ञा ली थी।

भगत सिंह जी जब डी. ए. वी. की परीक्षा के समय उन्होंने जुगलकिशोर , भाई परमानन्द और जयचन्द्र विद्यालंकार जैसे क्रांतिकारियों से दोस्ती की थी और वे पढाई करने के साथ-साथ क्रन्तिकारी गतिविधियों में भाग भी लेते थे। उनके दोस्तों की वजह से ही उनकी पहचान लाला लाजपतराय से हुई थी। एफ. ए. के बाद उनके विवाह की तैयारियां की जाने लगी थीं जिसकी वजह से उन्हें घर छोड़ना पड़ा और कानपूर चले गये।

भगत सिंह का संकल्प : जब जलियांवाला बाग़ के हत्याकांड के बाद लाल लाजपतराय की मृत्यु हो गयी थी जिसकी वजह से भगत सिंह को भुत घर धक्का लगा था। इस वजह से वे ब्रिटिश क्रूरता को सहन नहीं कर सके और लाल लाजपतराय की मृत्यु का बदला लेने का निश्चय किया। इस बदले को शुरू करने के लिए उनका पहला कदम था सॉन्डर्स को मारना था। सॉन्डर्स को मारने के बाद उन्होंने विधानसभा सत्र के दौरान केंद्रीय संसद में बम्ब फेंका था। उन्हें अपने किये हुए कार्यों की वजह से गिरफ्तार कर लिया गया था।

स्वतन्त्रता संग्राम में क्रांति : ब्रिटिश लोगों के खिलाफ लड़ने की जिन लोगों की शैली गाँधीवादी नहीं थी वे उन युवाओं में शामिल थे। उनका विश्वास लाल-बाल-पाल के चरमपन्थी तरीकों में विश्वास रखता था। भगत सिंह जी ने यूरोपीय क्रांतिकारी आन्दोलन का अध्धयन किया तथा अराजकता और साम्यवाद के प्रति आकर्षित हो गये थे।

भगत सिंह जी ने उन लोगों को अपने साथ लिया जो अहिंसा की जगह पर आक्रामक तरीके से क्रांति लाने में विश्वास रखते थे। उनके काम के तरीकों की वजह से लोग भगत सिंह जी को नास्तिक , साम्यवादी और समाजवादी के रूप में जानने लगे थे।

पुनर्निर्माण की आवश्यकता : भगत सिंह को इस बात का एहसास हुआ कि केवल ब्रिटिशों को देश से बहर निकालने से देश के लिए अच्छा नहीं है। भगत सिंह इस बात को समझ गये थे कि जब तक भारत की राजनीति का पुनर्निर्माण नहीं होता तब तक ब्रिटिश शासन का विनाश नहीं किया जा सकता है।

भारत की राजनीति के पुनर्निर्माण के लिए श्रमिकों को शक्ति दी जानी चाहिए। भगत सिंह जी ने बीके दत्त के साथ सन् 1929 में एक बयान में क्रांति के बारे में राय जाहिर की जिसमें उन्होंने कहा कि क्रांति का मतलब है चीजों को वर्तमान क्रम से जो स्पष्ट रूप से अन्याय पर निर्भर हैं उन्हें बदलना चाहिए। मजदूर देश का सबसे महत्वपूर्ण तत्व होते हैं लेकिन फिर भी उनके मालिकों के द्वारा उन्हें लूटा जा रहा है और उन्हें उनके अधिकारों से वंचित रखा जा रहा है।

किसान देश के लिए अनाज उगता है लेकिन उसके खुद के खाने के लिए कुछ नहीं होता है और बुनकर जो दुसरे लोगों के लिए कपड़ा बुनते हैं उनके पास अपने बच्चों का वस्त्र ढंकने के लिए भी कपड़े नहीं होते हैं , जो मिस्त्री और मजदूर होते हैं वो दुसरे लोगों के लिए शानदार महल बनाते हैं लेकिन उनके खुद के रहने के लिए छत भी नहीं होती है। लाखों पूंजीपति लोग अपने शौक पूरा करने के लिए लाखों रुपए खर्च कर देते हैं।

संगठन में भाग : भारत की आजादी के लिए अपने संघर्ष के दौरान उन्होंने सन् 1924 में सबसे पहले हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएसन में भाग लिया था। इसके बाद उन्होंने सोहन सिंह जोशी और श्रमिक और किसान पार्टी के साथ काम करना शुरू कर दिया और जल्दी से ही पंजाब की एक क्रांतिकारी पार्टी के रूप में काम करने के मूल उद्देश्य से ही इस संगठन को बनाने की जरूरत महसूस की थी और इस दिशा में उन्होंने अच्छा काम भी किया था। भगत सिंह जी ने लोगों को संघर्ष में सम्मिलित होने और ब्रिटिश शासन के चंगुल से देश को आजाद कराने के लिए प्रेरित किया।

विचारों में परिवर्तन : भगत सिंह के परिवार ने पूरी तरह से गाँधीवादी विचारधारा का हमेशा से समर्थन किया था। भगत सिंह जी भी महात्मा गाँधी जी के विचारों का समर्थन करते थे। लेकिन उनका गाँधी जी के विचारों से मोहभंग हो गया था। भगत सिंह जी को लगा था कि अहिंसक आन्दोलन से कुछ हांसिल नहीं होगा सिर्फ संघर्ष से ही अंग्रेजों को देश से बाहर निकाला जा सकता है।

उनकी किशोरावस्था में दो प्रमुख घटनाएँ हुईं जिसकी वजह से उनके विचारों में बहुत बदलाव हुआ है। जब चौरी-चौरा घटना हुयी थी तो महात्मा गाँधी जी ने असहयोग आन्दोलन को वापस लेने की घोषणा कर दी थी। भगत सिंह के अनुरूप यह निर्णय ठीक नहीं था।

इसके बाद उन्होंने जो असहयोग आन्दोलन था जिसका नेतृत्व गाँधी जी कर रहे थे उससे बहुत दूरियां बना लीं। इसके पश्चात् वे युवा क्रन्तिकारी आन्दोलन में सम्मिलित हुए और अंग्रेजों को बाहर निकालने के लिए हिंसा की वकालत करने लगे थे। भगत सिंह जी ने कई तरह के क्रांतिकारी कृत्यों में भाग लिया और बहुत से युवकों को इसमें भाग लेने के लिए प्रेरित किया।

राजनीति में प्रवेश : राजनीति में भगत सिंह जी का प्रवेश सन् 1925 को हुआ था। सन् 1922 में लखनऊ में स्टेशन से 12 किलोमीटर की दुरी पर जब काकोरी रेलवे स्टेशन पर क्रांतिकारियों ने सरकारी खजाने को लूटा था तो राम प्रसाद बिस्मिल्ला और गेंदालाल क नेतृत्व में अशफाक खां को गिरफ्तार कर लिया गया था।

अशफाक और रामप्रसाद जी को फांसी दे दी गयी थी। चन्द्रशेखर जी ने उनकी फांसी की सजा को रद्द करवाने के लिए नेहरु जी और गाँधी जी से सहायता मांगी थी। चन्द्रशेखर आजाद जी क्रांतिकारियों के दल को दुबारा से संगठित करने के लिए भगत सिंह से मिले थे।

अंग्रेजों के विरुद्ध क्रांतिकारियों के दल ने हथियारों को इकट्ठा किया जिसकी वजह से सरकार में उनसे भी उत्पन्न हो गया था। सन् 1927 में भगत सिंह जी दल के प्रचार और प्रसार के लिए अमृतसर पहुंचे थे तो पुलिसवालों को पीछा करते देखकर वे एक वकील के घर आकर छुप गये थे और अपनी पिस्तौल को भी वहीं पर छिपा दिया था।

लेकिन अंग्रेजों ने उन पर दशहरे के जुलुश में बम्ब फेंकने का झूठा आरोप लगाकर गिरफ्तार किया गया जिसकी वजह से उनकी क्रांतिकारी गतिविधियों को रोका जा सके। उनसे 40000 रूपए में जमानत की मांग की गयी जिसे दो देशवासियों ने देकर जमानत प्राप्त की थी।

इसके बाद उन्हें किसी भी प्रकार से किसी का खौफ नहीं था और वे फिर से क्रांतिकारी कामों में जुट गये। भगत सिंह जी को सन् 1929 को 307 के तहत विस्फोट पदार्थों को रखने के अपराध में आजीवन कारावास की सजा सुनाई गयी थी।

भगत सिंह की मृत्यु : भगत सिंह जी को 23 मार्च 1931 को नियमों के विरुद्ध फांसी की सजा दी गयी थी। जब इन तीनों वीरों को फंसी दी जा रही थी तो उनके चेहरे पर जरा सा भी भी नहीं था। आजादी के परवाने ‘ मेरा रंग दे बसंती चोला ‘ कहते हुए सुखदेव , राजगुरु और भगत सिंह को फांसी पर चढ़ा दिया गया था।

तीनों वीर पुरुषों को फांसी देने के बाद अग्रेजी सरकार को डर था कि अगर किसी को इन तीनों की फांसी के बारे में पता चला पुरे देश में उनके विरुद्ध आन्दोलन शुरू हो जायेंगे। ब्रिटिश सरकार ने उनके शरीर को सतलुज नदी के किनारे जला दिया था।

जब तीनों की लाशों को जलाया जा रहा था तो गाँव के लोगों ने उन्हें देख लिया था गाँव के लोगों ने अंग्रेजों पर आक्रमण कर दिया जिससे डर कर अंग्रेज वहाँ से भाग गये और गाँव वालों ने भगत सिंह , राजगुरु , और सुखदेव की लाशों का अच्छी तरह से दाह संस्कार किया था।

उपसंहार : भगत सिंह भारत के एक सच्चे देशभक्त थे। उन्होंने केवल देश को आजाद करने की लड़ाई ही नहीं लड़ी थी बल्कि देश को आजाद करने के लिए भी बड़े-से-बड़े बलिदान को देने से भी पीछे नहीं हटे थे। भगत सिंह केवल 22 साल के थे जब उन्होंने देश को बचाने के लिए ख़ुशी-ख़ुशी फांसी पर चढ़ गये थे।

उनकी वीरता की कहानियाँ आज भी देश में सुनाई जाती हैं। जिस तरह से भारत के क्रांतिकारियों ने भारत को स्वतंत्र करने में अपना योगदान दिया है उसी तरह हमें भी भारत को आगे ले जाने में अपना योगदान देना चाहिए।

सभी भारतवासियों को बगत सिंह जी पर बहुत गर्व होता है। भगत सिंह जी अगर चाहते तो ख़ुशी जिंदगी व्यतीत कर सकते थे लेकिन उहोने क्रांतिकारी रास्ते को अपने जीवन का आदर्श बनाया था हमें भी भगत सिंह जी से प्रेरणा लेनी चाहिए।

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स्वामी विवेकानंद पर निबंध-Essay on Swami Vivekananda In Hindi

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स्वामी विवेकानंद पर निबंध (Essay on Swami Vivekananda In Hindi) :

भूमिका : हमारे भारत देश में अनेक योगियों , ऋषियों , मुनियों , विद्वानों , महान पुरुषों और महात्माओं ने जन्म लिया है जिन्होंने भारत को सम्मानपूर्ण स्थान दिलाया है। इन महान पुरुषों में से एक स्वामी विवेकानन्द भी थे। उन्होंने अमेरिका जैसे देश में भारत माता का नाम रोशन किया था। स्वामी विवेकानन्द जी एक महान आयोजक और वक्ता थे।

इस देश में और विदेशों में गरीबों के लिए उनका दिल धराशायी है। वेदांत को विदेशों में संदेश भेजने में सफलतापुर्वक श्रेय जाता है। स्वामी जी को एक बौद्धिक दिग्गज के रूप में देखा जा सकता है जिसने पूर्वी और पश्चिम के बीच एक पुल बनाया है। इसके साथ-साथ तर्क और विश्वास के बीच भी पुल बनाया था।

लेकिन इन सभी के पीछे उनकी बुनियादी प्रेरणा और उनकी आध्यात्मिक प्राप्ति थी। आधुनिक युग में भारत देश के युवा बहुत से महान पुरुषों के विचारों को आदर्श मानकर उनसे प्रेरित होते हैं युवाओं के वे मार्गदर्शक और भारतीय गौरव होते हैं उन्हीं में से एक स्वामी विवेकानन्द भी थे। भारत की गरिमा को वैश्विक स्तर पर सम्मान के साथ बरकार रखने के लिए स्वामी विवेकानन्द जी ने बहुत प्रयास किये थे।

स्वामी जी का जन्म : स्वामी विवेकानन्द जी का जन्म 12 जनवरी 1863 को हुआ था। स्वामी जी की माता का नाम भुवनेश्वरी देवी और पिता का नाम विश्वनाथ दत्ता था। स्वामी विवेकानन्द जी का नाम नरेन्द्र नाथ दत्ता रखा गया था। स्वामी जी के पिता पाश्चात्य सभ्यता में विश्वास रखते थे। वे अपने बेटे को भी अंग्रेजी पढ़ाकर पाश्चात्य सभ्यता के ढंग पर ही चलाना चाहते थे।

5 साल की उम्र में उन्हें मेट्रोपोलीयन इंस्टीट्यूट में प्रवेश दिलाया गया था। सन् 1879 में उन्हें जनरल असेम्बली कालेज में उच्च शिक्षा पाने के लिए प्रवेश दिलाया गया। यहाँ पर उन्होंने इतिहास , दर्शन , साहित्य आदि बहुत से विषयों का अध्धयन किया। स्वामी जी ने बी०ए० की परीक्षा को प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण किया था।

प्रारम्भिक जीवन : स्वामी जी को उनके प्रारम्भिक जीवन में नरेंद्रनाथ के नाम से पहचाना जाता था। संपन्न और धार्मिक परिवार में बालक का पालन-पोषण बड़े लाड-प्यार से हुआ था। अत: यह बालक बचपन से ही हठी बन गया था। स्वामी विवेकानन्द जी ने अपने काम और प्रेरणा के लिए अपनी स्वंय की आत्मा की आध्यात्मिक गहराई के साथ एक मजबूत स्पर्श से ज्ञान को प्राप्त किया।

यह उनके व्यक्तित्व का वह पहलू था जो सभी को पोषण प्रदान करता है। उन्होंने अपने पिता से बहुत कुछ सीखा था। स्वामी जी सत्ता और धर्म को शंका की दृष्टि से देखते थे। लेकिन स्वामी जी एक जिज्ञासु प्रवृति के व्यक्ति थे।

रामकृष्ण के शिष्य : रामकृष्ण परमहंस जी की प्रशंसा सुनकर स्वामी जी पहले उनसे तर्क करने के विचार से मिलने गये थे लेकिन परमहंस जी ने स्वामी को देखते ही पहचान लिया था कि वे वही थे जिनका उनको कई दिनों से इंतजार था। जब स्वामी जी रामकृष्ण के सामने एक युवा के रूप में आए तो उन्होंने कहा था कि उनकी आँखें एक योगी की आँखें हैं और अपने दुसरे शिष्यों से नरेंद्र या विवेकानन्द को बुलाने के लिए कहा था।

रामकृष्ण जी एक उच्च कर्म के आध्यात्मिक व्यक्तित्व थे। जब श्री रामकराहन ने उनकी आँखों में देखा तो पाया कि उनकी आखें खुजली गईं और उनका आधा दिमान भीतर कुछ देख रहा था और सिर्फ दूसरा आधा दिमाग ही दुनिया के बारे में जनता था। श्री रामकृष्ण जी ने कहा – यह महान योगियों की आँखों की विशेषता थी।

स्वामी जी को इस अंतर की जरूरत थी जो निरंतर उसे भीतर की आत्मा के करीब खींचती थी। विवेकानन्द जी आध्यात्मिक आनन्द का आनन्द लेना चाहते थे लेकिन रामकृष्ण जी ने उन्हें बताया कि वह किसी अलग उद्देश्य के लिए किया गया था और वह एक सामान्य संतों की तरह नहीं था।

जो वो खुद के लिए आध्यात्मिक उत्साह का आनन्द ले रहे थे। स्वामी जी एक ऐसे व्यक्ति थे जो भारत और विदेशों में लाखों लोगों के प्रेरणा के स्त्रोत थे। परमहंस जी की कृपा से उन्हें आत्म-साक्षात्कार हुआ जिसकी वजह से वे परमहंस के प्रमुख शिष्य बन गए थे।

ईश्वर प्रेम : स्वामी जी की बुद्धि बचपन से ही बहुत तेज थी और परमात्मा को पाने की इच्छा भी उनके मन में बहुत प्रबल थी। इसी वजह से वे सबसे पहले ब्राह्मण समाज में गए थे लेकिन वहाँ पर उनके मन को संतोष नहीं हुआ। स्वामी जी ने उच्च कोटि की शिक्षा प्राप्त की थी। सन् 1884 में पिता जी के निधन के बाद उन्हें संसार से अरुचि पैदा हो गयी थी।

स्वामी जी ने रामकृष्ण परमहंसा से दीक्षा ले सन्यासी बनने की इच्छा प्रकट की। परमहंस जी ने उन्हें समझाया था कि सन्यास का सच्चा उद्देश्य मानव सेवा करना होता है। मानव सेवा से ही जीवन में मुक्ति मिल सकती है। परमहंस ने उन्हें दीक्षा दे दी और उनका नाम विवेकानन्द रख दिया था।

सन्यास लेने के बाद उन्होंने सभी धर्मों के ग्रन्थों का गहन अध्ययन करना शुरू कर दिया था। श्री रामकृष्ण के पैरों पर बैठकर उन्होंने गुणों को विकसित किया और उच्चतम आध्यात्मिक प्राप्ति के आदमी बन गए थे। स्वामी विवेकानन्द जी अपना जीवन अपने गुरु श्री रामकृष्ण परमहंस जी को अर्पित कर चुके थे।

जब गुरु देव के शरीर त्याग के दिन निकट थे तो अपने घर और कुटुम्ब की नाजुक हालत की और खुद के भोजन की परवाह न करते हुए गुरु की सेवा में हमेशा हाजिर रहे। गुरूजी का शरीर बहुत कमजोर हो गया था। कैंसर की वजह से गले से थूक , रक्त , कफ निकलता था जिसकी सफाई का स्वामी जी बहुत अधिक ध्यान रखते थे।

एक बार किसी ने गुरु देव की सेवा में नफरत और लापरवाही दिखाई और नफरत से नाक भौहें सिकोडी। यह सब कुछ देखकर स्वामी जी को गुस्सा आ गया। स्वामी जी ने उस गुरुभाई को पाठ पढ़ाते हुए और गुरुदेव की प्रत्येक वस्तु के प्रति प्रेम दर्शाते हुए उनके सिराने पर रखी रखत और कफ की पूरी थूकदानी को पी गये थे। गुरु के प्रति ऐसी अनन्य भक्ति और निष्ठा के प्रताप से ही उन्होंने अपने शरीर और उनके आदर्शों की उत्तम सेवा की थी।

व्यक्तित्व : पिता जी की मृत्यु के बाद घर का सारा भार स्वामी जी के कंधों पर आ गया। उस समय घर की दशा बहुत खराब थी। लेकिन कुशल यही था कि स्वामी जी का विवाह नहीं हुआ था। बहुत अधिक गरीबी में भी स्वामी जी बड़े अथिति सेवी थे। स्वामी जी खुद भूखे रहकर अथिति को भोजन कराते थे और खुद बाहर वर्षा में भीगते रहते थे और अथिति को सोने के लिए अपना बिस्तर दे देते थे।

स्वामी जी ने अपने चरित्र का भवन आध्यात्मिकता की चट्टान की बुनियाद पर बनाया था। जो कि बुद्धिमता और क्षीण दिल के सशक्त व्यक्तित्व में अभिव्यक्ति प्राप्त करता था। कोई भी व्यक्ति इस बिंदु पर बल देने में मदद नहीं कर सकता क्योंकि स्वामी जी के कई व्यक्तित्व थे और वे विभिन्न रंगों में प्रकट हो सकते थे।

उनकी महानता के बारे में बहुत कुछ अनंत था। यह उपलब्धियों की दुनिया में परिचित उत्तीर्ण महानता के विपरीत है। इस प्रकार की महानता को समय का प्रवाह एक अजीब तरह से प्रभावित करता है। यह इसे कमजोर करने और नष्ट करने की जगह इसे और मजबूत करता है।

वेदों में जड़ें और वहां से पौष्टिकता पैदा करने से इस प्रकार के पुरुषों और महिलाओं के व्यक्तित्व और काम कुछ आकर्षक लगने लगते हैं और उनके पास एक स्थाई चरित्र होता है। स्वामी जी ने आत्मिक प्राप्ति के सागर में गहराई से दुबकी लगाई थी , स्वामी जी ने उसी संदेश को नहीं दिया था बल्कि एक ही रूप में संदेश दिया था जैसा की पश्चिम को दिया था।

स्वामी जी ने लोगों की जरूरतों के अनुरूप अपने संदेशों को अलग किया लेकिन इन सभी रूपों में एक केंद्रीय विषय की अभिव्यक्ति होती है और वह है आध्यात्मिकता। स्वामी जी अपने आप को गरीबों का सेवक कहते थे। स्वामी जी का स्वरूप बड़ा ही सुंदर और भव्य था। स्वामी जी का शरीर गठा हुआ था। उनके मुखमंडल पर तेज था। उनका स्वभाव अति सरल और व्यवहार अति विनम्र था।

विश्व धर्म सम्मेलन में भाग : स्वामी जी ने शिकांगों में सन् 1883 में विश्व धर्म सम्मेलन में भाग लिया था और भाषण भी दिया था। स्वामी विवेकानन्द जी वहन पर भारत के प्रतिनिधि के रूप में पहुंचे थे। भाषण का आरम्भ उन्होंने बहनों और भाईयों शब्द से किया था। इस सम्बोधन से ही लोगों ने तालियाँ बजानी शुरू कर दी थीं।

स्वामी जी के भाषण को लोगों ने बहुत ही ध्यानपूर्वक सुना था। स्वामी जी ने कहा था कि संसार में एक ही धर्म होता है वह है मानव धर्म। राम , कृष्ण , मुहम्मद भी इसी धर्म का प्रचार करते रहे हैं। धर्म का उद्देश्य पानी मात्र को शांति देना होता है। शांति को प्राप्त करने के लिए द्वेष , नफरत , कलह उपाय नहीं होते हैं बल्कि प्रेम होता है। हिन्दू धर्म का यही संदेश होता है। सभी में एक ही आत्मा का निवास होता है। स्वामी जी के इस भाषण से सभी बहुत प्रभावित हुए थे।

अमेरिका में प्रचार : यूरोप और अमेरिका के लोग उस समय पराधीन भारतवासियों को बहुत ही हीन दृष्टि से देखते थे। वहाँ के लोगों ने बहुत कोशिशें की कि स्वामी जी को सर्वधर्म सम्मेलन में बोलने का अवसर ही न मिले। एक अमेरिकन प्रोफेसर पर उन्हें थोडा समय मिला लेकिन उनके विचारों को सुनकर सभी विद्वान् हैरान रह गये।

उसके बाद अमेरिका में उनका बहुत स्वागत किया गया। वहन पर स्वामी जी के भक्तों का एक बड़ा समुदाय हो गया था। स्वामी जी तीन साल तक अमेरिका में रहे थे और वहाँ के लोगों को भारतीय तत्वज्ञान की अद्भुत ज्योति प्रदान करते रहे थे। इसके बाद स्वामी जी ने बहुत से स्थानों पर व्याख्यान दिए हैं।

ऐसी अनेक संस्थाओं की स्थापना हुई जिनका उद्देश्य वेदांत का प्रचार करना था। स्वामी जी ने जापान , फ्रांस और इंग्लेंड में भी मानव धर्म का प्रचार किया था। स्वामी जी की एक शिष्या भी थी जिनका नाम निवेदिता था। उन्होंने कलकत्ता में रहकर सेवा कार्य किया था।

देशवासियों को पत्र : जब स्वामी जी 25 वर्ष के थे तो उन्होंने गेरुआ रंग के वस्त्र पहन लिए इसके बाद उन्होंने पैदल ही पुरे भारतवर्ष की यात्रा की थी। स्वामी जी ने जापान में अपने देशवासियों के नाम पत्र लिखा था। उस पत्र में स्वामी जी ने लिखा था कि तुम बातें बहुत करते हो लेकिन करते कुछ नहीं हो। उन्होंने उदाहरण के तौर पर कहा जापानवासियों को देखो इससे तुम सभी की आँखें खुल जाएँगी। उठो जागो और रुढियों के बंधन को काट दो। तुम्हारा जीवन सिर्फ सम्पत्ति कमाने के लिए नहीं बल्कि देश प्रेम की बलिदेवी पर समर्पित करने के लिए है।

राम कृष्ण मिशन की स्थापना : स्वामी जी चार साल तक अमेरिका और यूरोप में हिन्दू धर्म का प्रचार करते रहे। इसके बाद वे भारत लौट आए थे। स्वामी जी ने कलकत्ता में राम कृष्ण मिशन की स्थापना की थी। इस मिशन की अनेक शाखाएं देश के विभिन्न भागों में स्थित हैं।

संदेश : भारतीय सन्दर्भ में उन्होंने देखा था कि आध्यात्मिकता का मार्ग भौतिक और सामाजिक उन्नति के माध्यम से होता है। इस समाप्ति के लिए स्वामी जी वेदांत को एक सामाजिक दर्शन और दृष्टिकोण , एक बार गतिशील और व्यवहारिक रूप से आकर्षित करते थे। भारत के लिए स्वामी जी ने मानव-निर्मित धर्म का संदेश दिया और राष्ट्र का विश्वास तथा संकल्प लिया।

प्यार और करुणा : जब स्वामी जी को पराने भारत की महिमा पर गर्व महसूस हुआ तो वे उसे अवन्ती और दुर्भाग्य की गहराई में देखने के लिए गंभीर रूप से पीड़ित थे। अपने देशवासियों के प्रति प्रेम , उनकी उम्र में पुराणी भुखमरी , अज्ञानता और सामाजिक विकलांगों के दुःख उन्हें बहुत गहराई में ले गये।

इस स्थिति के साथ सामना करने के लिए उनकी सारी मात्रा में आध्यात्मिकता और गतिशील दर्शन होने चाहिए। आध्यात्मिकता और गतिशील दर्शन में करुणा और प्रेम के प्रवाह में प्रलोभन और सेवा के एक राष्ट्रिय संदेश के रूप में पहुंचे थे। वेदांत एक बार फिर गतिशील और व्यवहारिक बन गया। यह स्वामी जी को सिर्फ एक महान ऋषि नहीं बनाता है बल्कि एक देशभक्त और युगनिर्माता भी बनाता है।

समाजिक जागरूकता : स्वमी जी के द्वारा राष्ट्रिय जागरूकता की एक लहर रही थी। स्वामी जी के द्वारा देशप्रेम और आम आदमी के बहुत से सुधार करने के लिए एक महान संघर्ष जारी कर रखा था। हमने जो भी राजनीतिक स्वतंत्रता के माध्यम से प्राप्त किया है वह सामाजिक जागरूकता के माध्यम से और राष्ट्रिय एकता के रूप में स्वामी जी द्वारा दिए गये भारत की आध्यात्मिकता के प्राचीन संदेश की ओर उन्मुखीकरण से आया है।

स्वामी जी मृत्यु : बहुत ज्यादा परिश्रम की वजह से स्वामी जी का स्वास्थ्य गिरने लगा था। 4 जुलाई , 1902 में स्वामी जी की मृत्यु हो गयी थी। स्वामी जी ने जीवन के थोड़े से समय में यह कमाल कर दिखाया था जिसे लम्बा जीवन होने के बाद भी लोग नहीं कर पाते हैं।

उपसंहार : स्वामी विवेकानन्द जी महामानव के रूप में अवतरित हुए। स्वामी जी ने प्रचार-प्रसार में जो भूमिका प्रस्तुत की है वह अतुलनीय है। स्वामी जी भारत माँ के सच्चे पुत्र थे। स्वामी जी ने भारत का गौरव बढ़ाया और संसार के समक्ष भारत की एक अनुपम तस्वीर प्रस्तुत की थी।

स्वामी जी ने सच्चे धर्म की व्याख्या करते हुए कहा था कि धर्म वह होता है जो भूखे को अन्न दे सके और दुखियों के दुखों को दूर कर सके। स्वामी विवेकानन्द जी ने अपने स्पर्श के साथ दुनिया में एक गतिशील विश्व प्रेमी के रूप में गये थे। भारत के गौरव को देश-देशांतरों में उज्ज्वल करने के लिए उन्होंने हमेशा प्रयास किया था।

स्वामी जी के कार्य आज भी आदर्श और प्रेरणा के स्त्रोत हैं। कन्याकुमारी में समुद्र के बीच बना विवेकानन्द स्मारक इनकी स्मृति को संजोकर रखे हुए है। स्वामी जी ज्ञान की एक ऐसी मसाल प्रज्ज्वलित कर गये जो संसार को सदैव ही आलौकित करती रहेगी।

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शिक्षक पर निबंध-Essay On Teacher In Hindi

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शिक्षक पर निबंध (Essay On Teacher In Hindi) :

भूमिका : शिक्षक भगवान द्वारा दिया गया एक सुंदर उपहार होता है। एक शिक्षक भगवान की तरह होता है क्योंकि भगवान पुरे संसार का निर्माता होता है और एक शिक्षक अच्छे राष्ट्र का निर्माता होता है। एक विद्यार्थी के जीवन में शिक्षक एक ऐसा महत्वपूर्ण प्राणी होता है जो अपने ज्ञान , धैर्य , प्यार और देख-भाल से उसके पूरे जीवन को एक मजबूत आकार देता है।

एक शिक्षक के पास बहुत सारे गुण होते हैं। वह अपने विद्यार्थी के जीवन को सफल बनाने में हर प्रकार से दक्ष होता है। एक शिक्षक बहुत समझदार होता है। एक शिक्षक को यह पता होता है कि विद्यार्थी का मन पढाई में कैसे लगाते हैं। पढाई के दौरान एक शिक्षक रचनात्मकता का इस्तेमाल करता है जिससे विद्यार्थी एकाग्र हो सके।

एक शिक्षक ज्ञान का भंडार होता हैऔर उसके पास धैर्य और विश्वास होता है जो विद्यार्थियों के भविष्य की जिम्मेदारी लेता है। शिक्षक का उद्देश्य केवल अपने विद्यार्थियों को सफल और खुश देखना होता है। शिक्षक समाज में बहुत प्रतिष्ठित लोग होते हैं जो अपनी शिक्षा के जादू के माध्यम से आम लोगों की जीवन शैली और दिमागी स्तर को बढ़ाने की जिम्मेदारी लेते हैं।

अपने बच्चों के लिए माता-पिता एक शिक्षक से बहुत उम्मीदें करते हैं। एक शिक्षक की भूमिका कक्षा से लेकर खेल तक सभी छात्रों के लिए बदलती रहती है। हर किसी के जीवन में शिक्षक एक महत्वपूर्ण प्राणी होता है जो हमारे जीवन में अलग-अलग कार्य करता हुआ प्रतीत होता है।

शिक्षक का महत्व : एक शिक्षक का सिर्फ विद्यार्थी जीवन में ही नहीं बल्कि हर क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण स्थान और महत्व होता है। शिक्षक के पास सभी गुण होते हैं जिन्हें वह अपने विद्यार्थियों में बाँट देता है। शिक्षक को पता होता है कि सबके पास ग्रहण करने की एक सी क्षमता नहीं होती है इसलिए एक शिक्षक अपने प्रत्येक छात्र की क्षमता का अवलोकन करता है और उसी के अनुसार वह बच्चे को शिक्षा ग्रहण करने में मदद करता है।

एक शिक्षक ज्ञान , स्मृद्धि और प्रकाश का बड़ा स्त्रोत होता है जिससे जीवन भर के लिए लाभ प्राप्त किया जा सकता है। हर शिक्षक अपने विद्यार्थी को उनका रास्ता चुनने में मदद करते हैं। शिक्षा के क्षेत्र में शिक्षक एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। एक शिक्षक ही होता है जो अपने विद्यार्थी को बड़ों का आदर और सम्मान करना सिखाता है।

वह अपने विद्यार्थी को उचित-अनुचित , धर्म-अधर्म , मान-अपमान के बीच के भेद को स्पष्ट रूप से समझाता है। एक शिक्षक ही अपने विद्यार्थी को ज्ञान , कौशल और सकारात्मक व्यवहार से सज्जित करते हैं जिसकी वजह से विद्यार्थी कभी भी कुछ खोया हुआ महसूस नहीं करते हैं।

वह उन्हें समय के सदुपयोग , समय के नियम और समय की पाबंदी के बारे में ज्ञान कराता है। वो अपने विद्यार्थियों को शिक्षा के लक्ष्य के बारे में हमेशा समझाते रहते हैं। एक अच्छा शिक्षक ही अपने विद्यार्थियों पर एक अच्छा प्रभाव छोड़ता है। जब कोई भी विद्यार्थी गलती करता है तो शिक्षक उसे इसका सबक सिखाते हैं और उसकी गलती का भी एहसास दिलाते हैं।

एक शिक्षक ही उन्हें होने वाली बिमारियों से बचने के अच्छे तरीके बता सकता है और उन्हें बिमारियों से बचाने के लिए प्रयास भी करता है। एक शिक्षक हमें साफ सुथरे वस्त्र पहनने , स्वस्थ खाना खाने , गलत भोजन से दूर रहने , अपने माता-पिता का ध्यान रखने , दूसरों से अच्छा व्यवहार करने और अपना कार्य पूर्ण करने के महत्व को समझाता है।

बच्चे का भविष्य और वर्तमान दोनों ही एक शिक्षक बनाता है। जीवन भर अच्छे विद्यार्थियों का निर्माण करके वह एक अच्छे समाज को भी बढ़ावा देता है। एक शिक्षक को ही पता होता है की उसका छात्र किस प्रकार की संगति में रहता है और किस प्रकार की संगति को धारण करता है।

शिक्षक की लोकप्रियता का कारण : एक शिक्षक बिना किसी स्वार्थ के हमें सफलता का रास्ता दिखाता है। शिक्षक एक अच्छे व्यवहार और नैतिकता के व्यक्ति के लिए बहुत अच्छी तरह से विद्यार्थी को शिक्षित करते हैं। शिक्षक विद्यार्थी को अकादमिक रूप से बेहतरीन बनाते हैं और जीवन में हमेशा अच्छा करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।

एक शिक्षक कभी भी अपने अच्छे और बुरे विद्यार्थियों में भेदभाव नहीं करता उसके लिए सभी विद्यार्थी एक समान होते हैं। एक शिक्षक अपने प्रयासों से कमजोर बच्चे को भी समझदार बना देता है और उसे प्रगति के मार्ग पर ले आता है। एक महान शिक्षक अपने विद्यार्थियों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देने के लिए अपना पूरा जीवन व्यतीत कर देता है।

जो छात्र दुसरे छात्रों से अलग होते हैं वो उन्हें अलग प्रकार से समझाते हैं जिससे वे भी शिक्षा ग्रहण कर सकें। एक शिक्षक निस्वार्थ भाव से अपने प्रत्येक छात्र को शिक्षा देता है और उससे अपने जीवन में प्रगति करने के योग्य बनाता है। उनके समर्पित कार्य की तुलना किसी अन्य कार्य से नहीं की जा सकती है।

एक अच्छा शिक्षक ही अपने सभी विद्यार्थियों का ध्यान रखता है। एक अच्छा शिक्षक ही अपने विद्यार्थियों के खाने की आदत , स्वच्छता का स्तर , दूसरों से व्यवहार , और पढाई की ओर एकाग्रता के बारे में जानता है। शिक्षक कभी भी अपना धैर्य नहीं खोता है और हर विद्यार्थी को उसके अनुसार पढाता है। एक शिक्षक हमेशा पाने विद्यार्थियों को अच्छी और ज्ञानपूर्ण बातें ही बताता है।

जीवन में विजय और सफलता प्राप्त करने के लिए शिक्षा एक बड़ी शक्ति होती है इसी लिए देश के भविष्य को और युवाओं के जीवन की जिम्मेदारी शिक्षक को दी जाती है। एक शिक्षक ही बच्चों को बचपन से सामाजिक , मानसिक और बौद्धिक रूप से काबिल बनाता है।

कक्षा में आने से पहले ही शिक्षक अपने शिक्षा के विषय को सुनिश्चित कर लेता है। शिक्षकों के पढ़ाने की खासियत अलग होती है वे विषयों के अनुसार अपने ज्ञान , कौशल , और व्यवहार को बदल लेते हैं। वे अपने जीवन का सबसे बहतरीन प्रयास करते हैं और हमें हमारे लक्ष्य तक पहुंचने में मदद करते हैं।

शिक्षक बनने के लिए परिश्रम : एक अच्छा शिक्षक बनने के लिए बहुत मेहनत करनी पडती है। हमेशा अपने से बड़ों का आदर करो और उनकी हर बात मनो। माता-पिता की आज्ञा का पालन करना चाहिए और उनकी किसी भी बात को काटना नहीं चाहिए। माता-पिता और बड़ों का हमेशा सम्मान करना चाहिए। समाज के और अपनी शिक्षा के प्रति एक्ताग्र्ता को बढ़ाना चाहिए।

अपने शिक्षक द्वारा दी जाने वाली शिक्षा को ग्रहण करना चाहिए और परीक्षा के अच्छे परिणाम के लिए बहुत मेहनत करनी चाहिए। एक अच्छा शिक्षक बनने के लिए ह्रदय में एकता का भाव होना चाहिए। किसी भी व्यक्ति से भेदभाव नहीं करना चाहिए। हर किसी को एक नजर से देखना चाहिये। अपने से छोटों को हमेशा अच्छे बातें बतानी चाहियें और सहपाठियों से हमेशा एकता बनाकर रखनी चाहिए। अपने शिक्षक से हमेशा प्रेरणा लेनी चाहिए।

उपसंहार : एक शिक्षक का हमारे जीवन में बहुत महत्व होता है। शिक्षक के बिना जीवन में कोई भी मानसिक , सामाजिक और बौद्धिक रूप से विकास नहीं कर सकता है। शिक्षक कभी भी बुरे नहीं होते हैं यह केवल उनकी शिक्षा देने के तरीके पर निर्भर करता है जो एक-दुसरे से अलग होता है और विद्यार्थियों के दिमाग में उनकी छवि को बनाता है।

योग्य शिक्षकों को सरकार द्वारा सम्मानित किया जाता है। शिक्षकों के सम्मान में हर साल 5 सितम्बर को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस दिन विद्यालयों में विशेष समारोह होता है जिसमें बच्चे बड़े ही उत्साह के साथ भाग लेते हैं। राष्ट्रपति जी के द्वारा योग्य शिक्षकों को पद और पुरस्कारों से सम्मानित किया जाता है।

राष्ट्र उन सभी शिक्षकों को सम्मानित करता है जो अज्ञान रूपी अंधकार को मिटाने में हमारी सहायता करते हैं। एक शिक्षक ज्ञान रूपी सागर होता है हमें जितना उनसे जब तक हो सके किसी-न-किसी विषय के बारे में ज्ञान प्राप्त करते रहना चाहिए।

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मदर टेरेसा पर निबंध-Mother Teresa Essay In Hindi

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मदर टेरेसा पर निबंध (Mother Teresa Essay In Hindi) :

भूमिका : मदर टेरेसा को उन महान लोगों में गिना जाता है जिन्होंने अपने जीवन को दूसरों के लिए समर्पित कर दिया था। मदर टेरेसा एक ऐसी महान आत्मा थीं जिन्होंने अपना पूरा जीवन लोगों की सेवा और भलाई करने में लगा दिया था। हमारी दुनिया को ऐसे ही महान लोगों की जरूरत है जो मानवता की सेवा को सबसे बड़ा धर्म समझते हैं। मदर टेरेसा भारतीय नहीं थीं फिर भी उन्होंने हमारे भारत देश को बहुत कुछ दिया था। आज जब वे हमारे बीच इस दुनिया में नहीं हैं फिर भी पूरी दुनिया में उनके काम को एक मिसाल की तरह जाना जाता है। मदर टेरेसा मानवता की एक जीती-जागती मिसाल थीं।

मदर टेरेसा का नाम लेते ही मन में माँ की भावनाएं उमड़ने लगती हैं। मदर टेरेसा मानवता के लिए काम करती थीं। वे दीन-दुखियों की सेवा करती थीं। मदर टेरेसा को दया की देवी , दीन हीनों की माँ और मानवता की मूर्ति कहा जाता था। इनके माध्यम से ईश्वरीय प्रकाश को देखा जा सकता था। मदर टेरेसा जी ने अपने जीवन को तिरस्कृत , असहाय , पीड़ित , निर्धन , कमजोर लोगों की सेवा करने में लगा दिया था। मदर टेरेसा जी ने अपाहिजों , अंधों , लूले लंगडो तथा दीन-हीनों की सेवा को अपना धर्म बना लिया था।

जन्म : मदर टेरेसा का जन्म 26 अगस्त , 1910 को मेसिड़ोनियो की राजधानी स्कोप्जे शहर में हुआ था। उनकी माता का नाम Dranafile Bojaxhiu था और पिता का नाम Nikollë Bojaxhiu था। मदर टेरेसा का जन्म एक अल्बेनियाई परिवार में हुआ था। मदर टेरेसा जी के पिता धार्मिक विचारों के व्यक्ति थे। मदर टेरेसा का नाम एग्नेस गोंझा बोयाजिजू था।

अल्बेनियन में गोंझा का अर्थ था फूलों की कली। मदर टेरेसा एक ऐसी कली थीं जिन्होंने दीन-दुखियों की जिंदगी में प्यार की खुशबु को भरा था। मदर टेरेसा के पांच भाई-बहन थे जो सभी उनसे बड़े थे। जब वे 9 साल की थीं तब उनके पिता जी का देहांत हो गया था।

प्रारम्भिक जीवन : मदर टेरेसा एक सुंदर , परिश्रमी एवं अध्ध्यनशील लडकी थीं। टेरेसा को पढना , गीत गाना बहुत पसंद था। मदर टेरेसा को यह अनुभव हो गया था कि वे अपना सारा जीवन मानव सेवा में बिता देंगी। उन्होंने पारम्परिक वस्त्रों को त्यागकर नीली किनारी की साडी पहनने का फैसला किया और तभी से वे मानवता की सेवा का काम करने लगीं थीं।

12 साल की उम्र में उन्होंने नन बनने का फैसला किया 18 साल की उम्र में कलकत्ता में आइरेश नौरेटो नन मिशनरी में शामिल होने का फैसला लिया। प्रतिज्ञा लेने के बाद वे सेंट मैरी हाईस्कूल कलकत्ता में अध्यापिका बन गईं थीं। मदर टेरेसा जी बीस साल तक अध्यापक पद पर कार्य करती रहीं और फिर प्रधान अध्यापक पद पर भी बहुत ईमानदारी से कार्य किया।

लेकिन उनका मन कहीं और ही था। झोंपड़ी में रहने वाले लोगों की पीड़ा और दर्द ने टेरेसा जी को बैचैन सा कर दिया था। मदर टेरेसा एक त्याग की मूर्ति थीं। वे जिस घर में रहती थीं वहां पर नंगे पैर चलती थीं। वे एक छोटे से कमरे में रहती थीं तथा अपने अतिथियों से मिला करती थीं।

उस कमरे में सिर्फ एक मेज और एक कुर्सी होती थी। मदर टेरेसा जी हर व्यक्ति से मिला करती थीं और सभी से प्रेम भाव से वार्तालाप किया करती थीं तथा सभी की बातों को सुनती थीं। मदर टेरेसा के तौर तरीके बहुत ही विनम्र होते थे। उनकी आवाज में सज्जनता और विनम्रता साफ झलकती थी।

मदर टेरेसा जी की मुस्कान उनकी ह्रदय की गहराई से निकलती थी। सभी काम समाप्त हो जाने के बाद वे पत्र पढ़ा करती थीं जो उनके पास आया करते थे। वे विश्वास रखती थीं कि सारी बुराईयाँ घर से पैदा होती हैं। वे शांति और प्रेम की दूत थीं। अगर घर में प्रेम होता है तो यह स्वाभाविक है कि सभी लोगों में शांति बने।

भारत आगमन : मदर टेरेसा आयरलैंड से 6 जनवरी , 1929 को कोल्कता में लोरेटो कान्वेंट पहुंची थीं। इसके बाद उन्होंने पटना से होली फैमिली हॉस्पिटल से आवश्यक नर्सिंग ट्रेनिंग पूरी की और सन् 1948 को वापस कलकत्ता आईं थीं। सन् 1948 में उन्होंने वहाँ के बच्चों को पढ़ाने के लिए एक स्कूल खोला जिसके बाद उन्होंने मिशनरीज ऑफ़ चैरिटी की स्थापना की थी।

मदर टेरेसा जी ने सन् 1952 में कलकत्ता में निर्मल ह्रदय और निर्मला शिशु भवन के नाम से भी आश्रम खोले। निर्मल ह्रदय आश्रम का काम बीमारी से पीड़ित रोगियों की सेवा करना था। निर्मला शिशु भवन आश्रम की स्थापना अनाथ और बेघर बच्चों की सहायता के लिए की गयी थी जहाँ पर वे पीड़ित रोगियों व गरीबों की खुद सेवा करती थीं।

मदर टेरेसा जी ने भारत में सबसे पहले दार्जिलिंग में सेवा करना शुरू किया था। सन् 1929 से लेकर 1948 तक वे निरक्षकों को पढ़ाने का काम करती रहीं थीं। वे बच्चों को पढ़ाने में अधिक रूचि लेती थीं और बच्चों से प्रेम करती थीं। सन् 1931 में उन्होंने अपना नाम बदलकर टेरेसा रखा था। सन् 1946 में ईश्वरीय प्रेरणा से उन्होंने मानव के कष्टों को दूर करने की प्रतिज्ञा ली थी।

सेवा कार्य : शुरू में मदर टेरेसा मरणासन्न गरीबों की खोज में शहर भर में घुमती थीं तब उनके पास सिर्फ डेढ़ रुपए होते थे। पहले तो ये क्रिकलेन में रहती थीं लेकिन बाद में वे सर्कुलर रोड पर रहने लगीं थीं। इस समय में यह इमारत मदर हॉउस के नाम से पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है।

मदर टेरेसा जी ने एक संगठन की शुरुआत की थी जिसमें अपने बहनों और भाईयों के सहयोग से गरीबों की भलाई के लिए नि:शुल्क किया था। यह संगठन आज के समय में एक विश्व व्यापी संगठन बन चुका है। 10 सितम्बर , 1946 को अपनी आत्मा की आवाज सुनने के बाद उन्होंने अपने प्रधान अध्यापक पद को छोडकर बहुत गरीब लोगों के लिए सेवा कार्य करने का निश्चय किया।

मदर टेरेसा जी ने पटना के अंदर नर्सिंग का प्रशिक्षण लिया और कलकत्ता की गलियों में घूम-घूम कर दया और प्रेम का मिशन प्रारम्भ किया था। मदर टेरेसा जी कमजोर त्यागे हुए और मरते हुए लोगों को सहारा देती थीं। टेरेसा जी ने कलकत्ता निगम से एक जमीन का टुकड़ा माँगा और उस पर एक धर्मशाला को स्थापित किया। उन्होंने इस छोटी सी शुरुआत के बाद 98 स्कूटर , 425 मोबाईल डिस्पेंसरीज , 102 कुष्ठ रोगी दवाखाना , 48 अनाथालय और 62 ऐसे घर बनाये थे जिसमें दरिद्र लोग रह सकें।

मिशनरीज ऑफ़ चैरिटी : मदर टेरेसा जी ने एक मिशनरीज ऑफ़ चैरिटी की स्थापना की थी जिसे रोमन कैथोलिक चर्च ने 7 अक्टूबर , 1950 को मान्यता दी थी। मदर टेरेसा जी की मशीनरीज संस्था ने सन् 1996 तक लगभग 125 देशों में 755 निराश्रित गृह खोले थे। इनसे लगभग 5 लाख लोगों क भूख मिटाई जाने लगी थी।

मदर टेरेसा जी सुबह से लेकर शाम तक अपनी मशीनरी बहनों के साथ व्यस्त रहा करती थीं। मदर टेरेसा जी ने 13 मार्च , 1997 को मशीनरीज ऑफ़ चैरिटी का मुखिया पद छोड़ दिया था जिसके कुछ महीनों बाद उनकी मृत्यु हो गई थी। मदर टेरेसा जी की मृत्यु के समय तक मशीनरीज ऑफ़ चैरिटी में 4000 सिस्टर और 300 और संस्थाएं काम कर रही थीं। जो संसार के 123 देशों में समाजसेवा का काम करती थीं।

सम्मान और पुरस्कार : मदर टेरेसा जी को सन् 1931 को 23वां पुरस्कार मिला था। उन्हें शांति पुरस्कार और टेम्पलेटन फाउंडेशन पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। मदर टेरेसा जी को उनकी सेवाओं के लिए सेविकोत्तम की पदवी से भी सम्मानित किया गया था।

मदर टेरेसा जी को मानवता की सेवा के लिए अनेक अंतर्राष्ट्रीय सम्मान और पुरस्कार प्राप्त हुए हैं। मदर टेरेसा जी को सन् 1962 में उनकी समाजसेवा और जनकल्याण की भावना के आधार पर उन्हें पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। नोबल प्राइज फाउंडेशन ने सन् 1979 में मदर टेरेसा को संसार के सर्वोच्च पुरस्कार नोबल पुरस्कार से सम्मानित किया था।

यह पुरस्कार उन्हें शांति के लिए उनकी प्रवीणता के लिए दिया गया था। मदर टेरेसा को सन् 1980 में देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान के रूप में भारत रत्न सम्मान से सम्मानित किया गया था। मदर टेरेसा जी को सभी पुरस्कारों से जो भी राशी प्राप्त हुई थी उसे उन्होंने मानव के कार्यों में लगा दिया था।

मृत्यु : मदर टेरेसा जी को सन् 1983 में सबसे पहली बार दिल का दौरा पड़ा था। उस समय मदर टेरेसा रोम में पॉप जॉन पॉल द्वितीय से मिलने के लिए गई थीं। इसके बाद सन् 1989 में उन्हें दूसरा दिल का दौरा पड़ा था। जैसे-जैसे उनकी उम्र बढती जा रही थी उसी तरह से उनका स्वास्थ्य भी बिगड़ता जा रहा था। मदर टेरेसा जी की मृत्यु 5 सितम्बर , 1997 को कलकत्ता में तीसरे दिल के दौरे की वजह से हुई थी।

उपसंहार : जिस तरह से मदर टेरेसा जी ने दीन-दुखियों की सेवा की थी उसे देखते हुए पॉप जॉन पॉल द्वितीय ने 19 अक्टूबर , 2003 को रोम में मदर टेरेसा जी को धन्य घोषित कर दिया था। मदर टेरेसा जी आज हमारे बीच नहीं हैं लेकिन उनकी मशीनरी आज भी समाजसेवा के कामों में लगी हुई है।

मदर टेरेसा का संदेश था कि हमें एक-दुसरे से इस तरह प्रेम करना चाहिए जिस तरह से भगवान हम सबसे करता है। तभी हम अपने विश्वास में , देश में , घर में और अपने ह्रदय में शांति को ला सकते हैं। जनता ने उनका दिल खोलकर सम्मान किया। इतना सब होने के बाद भी उनमे घमंड का लेष भी नहीं था।

सेवा कार्य को ही उन्होंने अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया था और उसी में अपना सारा जीवन लगा दिया था। मदर टेरेसा जी वास्तव में दया , सेवा और ममता की मूर्ति थीं। उनके दर्शन से बहुत से लोगों को राहत मिलती थी जिसकी वजह से वे अपने दुखों को भी भूल जाते थे। उन्होंने अपने सेवा कार्यों से लोगों के दिलों को जीत लिया था। यही कारण है कि आज भी मदर टेरेसा जी का नाम आदर और श्रद्धा से लिया जाता है।

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रबिन्द्रनाथ टैगोर पर निबंध-Essay On Rabindranath Tagore In Hindi

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रबिन्द्रनाथ टैगोर पर निबंध (Essay On Rabindranath Tagore In Hindi) :

भूमिका : किसी भी देश की संस्कृति और सभ्यता मात्र घटनाओं , तिथियों , सिद्धांतों और नियमों की स्थापना से रूप नहीं लेती है बल्कि उसका सत्य और यतार्थ उन मनीषियों के जीवन और कार्य से रूपायित होते हैं जो मानवता का मार्ग दर्शन करते हैं। वे देश और काल की परिधि से भी नहीं घिरे होते हैं।

वे क्षुद्र बन्धनों में कभी नहीं बंधते हैं। रविन्द्र नाथ ठाकुर जी ने अपनी काव्यकला से संसार भर में ख्याति प्राप्त कर नोबल पुरस्कार प्राप्त करके भारतीय कविता और कवियों का मन बढ़ाया था। आज के समय में उन्हें कवि गुरु के नाम से संबोधित किया जाता है।

रविन्द्र नाथ टैगोर जी को विश्वविख्यात साहित्यकार , चित्रकार , पत्रकार , अध्यापक , तत्वज्ञानी , संगीतज्ञ , दार्शनिक , शिक्षाशास्त्री के रूप में आज भी याद किया जाता है। रविन्द्र नाथ टैगोर जी ने बंगाल में नवजागृति लाने में अपना एक महत्वपूर्ण योगदान दिया था।

रविन्द्र नाथ जी को उन लोगों की पंक्ति में गिना जाता है जिन्होंने देश के नाम को पूरी दुनिया में अमर कर दिया था। विश्व साहित्य के अद्वितीय योगदान देने वाले महान कवि उपन्यासकार और साहित्य के प्रकाश स्तम्भ के रूप में टैगोर जी को आज भी याद किया जाता है। सही अर्थों में कहा जाये तो वे एक ऐसे प्रकाश स्तम्भ थे जिन्होंने अपने प्रकाश से पुरे संसार को आलोकित किया था।

जन्म : रविन्द्र नाथ टैगोर का जन्म 7 मई , 1861 को कलकत्ता में हुआ था। इनका पूरा नाम रविन्द्र नाथ ठाकुर था। इनके पिता का नाम देबेन्द्रनाथ टैगोर था और माता का नाम सारदा देवी था। इनका जन्म कलकत्ता के एक धनी परिवार में हुआ था। ये अपने पिता की 15 संतानों में से 14 नम्बर की सन्तान थे।

शिक्षा : रविन्द्र नाथ जी को सबसे पहले ओरियंटल सेमेनरी स्कूल में भर्ती करवाया गया था लेकिन उनका वहां पर मन न लगने की वजह से उन्हें वहाँ से घर वापस लाया गया था। रविन्द्र नाथ जी की अधिकांश शिक्षा घर पर ही हुई थी। रविन्द्र नाथ जी को संस्कृत , बंगला , अंग्रेजी , चित्रकला और संगीत की शिक्षा के लिए अलग-अलग अध्यापकों को घर पर ही नियुक्त किया गया था।

सन् 1868 से सन् 1874 तक इन्होने स्कूली शिक्षा प्राप्त की थी। सन् 1874 के बाद इनकी स्कूली शिक्षा बंद हो गई थी। 17 साल की उम्र में वकालत की पढाई के लिए इन्हें इनके भाई के साथ इंग्लेंड भेजा गया था। वहां पर इन्होने यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन में कुछ समय तक हेनरी माले नामक अध्यापक से अंग्रेजी की शिक्षा प्राप्त की थी। वे वहां पर एक साल तक रहे थे।

विवाह : रविन्द्र नाथ टैगोर जी का विवाह 9 दिसम्बर , 1883 को मृणालिनी देवी से हुआ था। रविन्द्र नाथ जी ने सन् 1910 में अमेरिका से लौटने पर प्रतिमा देवी नाम की एक विधवा से विवाह करके ‘ विधवा विवाह ‘ की प्रेरणा देने की कोशिश की थी। इससे पहले ही उनकी पहली पत्नी का देहांत हो गया था।

जीवन : रविन्द्र नाथ के परिवार के लोग सुशिक्षित और कला प्रेमी थे। माता जी की मृत्यु के बाद इनकी खेल-कूद में रूचि नहीं रही थी। वे अकेले बैठे सोचते रहते थे , अपनी बात किसी से नहीं कहते थे और अपनी बातों को कविता के रूप में लिखने का प्रयास करते थे।

13 वर्ष की उम्र में उनकी सबसे पहली कविता पत्रिका में छपी थी। टैगोर जी एक दार्शनिक , कलाकार और समाज सुधारक भी थे। कलकत्ता के निकट इन्होने एक स्कूल की स्थापना की थी जो आज विश्व भारती के नाम से बहुत प्रसिद्ध है। रविन्द्र नाथ जी ने उस स्कूल में खुद एक अध्यापक के पद पर कार्य किया था।

उनका यह विद्यालय उदारता एवं विभिन्न संस्कृतियों का एक संगम स्थल है। इस विद्यालय को विश्व की अद्वितीय शैक्षिक संस्था के रूप से भी जाना जाता है। इन्हें अभिनय और चित्रकला का बड़ा शौक था। ये दर्शनशास्त्र से भी बहुत अधिक लगाव रखते थे। रविन्द्र नाथ जी सन् 1905 तक एक बहुत बड़े कवि के रूप में प्रसिद्ध हो गये थे।

रविन्द्र नाथ जी सन् 1906 में गठित राष्ट्रिय शिक्षा परिषद से जुड़े जिसमें उन्होंने शिक्षा के सुधार के विषय में अच्छी सलाह सरकार तक पहुंचाई थी। सन् 1907 में वे बंगीय साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष के रूप में चुने गये थे। रविन्द्र नाथ जी एक सच्चे और महान देशभक्त भी थे। उन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से देशभक्ति की भावना को सभी के ह्रदय में जागृत किया था।

जिसके फलस्वरूप वे स्वतंत्रता के लिए प्रेरित हो उठे थे। सन् 1905 के बंग-भंग के दौरान वे विभिन्न आंदोलनों में भाग लेते रहे थे। जब सन् 1919 में जलियांवाला बाग हत्याकांड हुआ था तो उन्होंने अंग्रेजों द्वारा दी गई सर की उपाधि को वापस लौटा दिया था। टैगोर जी स्वतंत्रता को मानव की प्रकृति और अधिकार मानते थे। स्वदेशी आन्दोलन में उनकी भूमिका बहुत ही सक्रिय रही थी।

व्यक्तित्व : रविन्द्र नाथ टैगोर जी विश्व कवि ही नहीं थे वे देश और मानवता के पुजारी भी थे। रविन्द्र नाथ जी एक चित्रकार , संगीतज्ञ , पत्रकार , अध्यापक , दार्शनिक , शिक्षाशास्त्री , महान प्रकृति प्रेमी और साहित्यकार भी थे। रविन्द्र नाथ जी साहित्यकार व्यक्तित्व में विशेषता यह थी कि उनकी अधिकांश रचनाएँ बंगला में ही लिखी गई थीं।

इन रचनाओं में प्राकृतिक दृश्यों और वातावरण का मनमोहक संसार ही चित्रित नहीं है बल्कि उनमें मानवीयता का भी उद्घोष है। रविन्द्र नाथ जी की साहित्यिक प्रतिभा सर्वतोमुखी थी। रविन्द्र नाथ जी ने कहानियां , नाटक , उपन्यास , निबंध और कविताएँ भी लिखी थीं।

उन्होंने अपनी रचनाओं में मानवीय दुखों और निर्बलताओं को बहुत ही कलात्मक ढंग से लिखा है। वे किसी भी सिद्धांत के पोषक नहीं हैं। मन और आत्मा से लिखी गईं उनकी रचनाएँ कहीं-कहीं दार्शनिक हो चली हैं। वे राष्ट्रीयता और विश्वमानवता के पोषक थे। वे गाँव के विकास को देश का समूचा विकास मानते थे।

कार्यकलाप : जब ये 13 साल के थे तब इनकी पहली कविता अभिलाषा एक तत्वभूमि नाम की पत्रिका में छपी थी। इंग्लेंड से वापस आने के बाद वे घर के शांतपूर्ण वातावरण में बंगला भाषा में लिखने का कार्य शुरू करने लगे थे। उन्हें इस कार्य में बहुत जल्दी प्रसिद्धि प्राप्त हुई थी।

रविन्द्र नाथ जी ने अनेक कविताएँ , लघु कहानियाँ , उपन्यास , नाटक और निबन्ध लिखे थे। इनकी सभी रचनाएँ सर्वप्रिय हुई थीं। इनकी बहुत सी रचनाओं का अनुवाद अंग्रेजी भाषा में किया जा चुका है। रविन्द्र नाथ जी ने सन् 1877 तक अनेक रचनाएँ की थीं जिनका प्रकाशन अनेक पत्रिकाओं में हुआ था।

सन् 1892 में रविन्द्र नाथ जी ने हिन्दू-मुस्लिम एकता , घरेलू उद्योंगों के विषयों पर बहुत ही गंभीर लेख लिखे थे। इसी के साथ ही उनका कविता लेखन भी चलता रहा था। सन् 1907 से पहले उनका गोरा नामक उपन्यास प्रकाशित हो गया था। अपनी पत्नी के देहांत से पहले उन्होंने गीतांजली नामक ग्रन्थ की रचना कर दी थी और उसका अंग्रेजी अनुवाद भी कर दिया था।

शिक्षा दर्शन : टैगोर जी एक महान शिक्षाशास्त्री थे। रविन्द्र नाथ जी के अनुसार सर्वोत्तम शिक्षा वही है जो सम्पूर्ण दुनिया के साथ-साथ हमारे जीवन का भी सामंजस्य स्थापित करती है। शिक्षा का काम मनुष्य को इस स्थिति तक पहुंचाना है। रविन्द्र नाथ जी ने शिक्षा को विकास की प्रिक्रिया माना है और उसे मनुष्य के शारीरिक , बौद्धिक , आर्थिक , व्यावसायिक तथा आध्यात्मिक विकास का आधार माना है।

रविन्द्र नाथ जी ने शिक्षा को प्राचीन भारतीय आदर्श का स्थान दिया है। टैगोर जी के अनुसार वही शिक्षा श्रेष्ठ है जो मनुष्य को आध्यात्मिक दर्शन देकर जीवन-मरण से मुक्ति दिलाती है। उनके अनुसार शिक्षा का उद्देश्य बालक को पूर्ण जीवन की प्राप्ति कराना है जिससे बालक का पूर्ण विकास हो सके।

शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य बालक के समस्त अंगों और इन्द्रियों को प्रशिक्षित कर जीवन की वास्तविकता से परिचित करवाना , उसे पर्यावरण की जानकारी देकर उससे अनुकूलन स्थापित करवाना , बालक को धैर्य , आत्मानुशासन , नैतिक एवं आध्यात्मिक गुणों की शिक्षा देना होता है।

टैगोर जी का मानना था कि पेड़ों पर चढना , तालाबों में डुबकियाँ लगाना , पेड़ों से फल तोडना , फूलों को तोडना , प्रकृति के साथ अनेक तरह की अठखेलियाँ करने से बालक के शरीर के साथ-साथ मस्तिष्क के आनन्द और बचपन के स्वाभाविक आवेगों की भी संतुष्टि होती है। विद्यालयों को प्रकृति के सान्निध्य में होना चाहिए। उनका विकास केवल जीव मात्र की सेवा में होना चाहिए।

बालक वृक्षों के माध्यम से पशु-पक्षी , जल तथा हवा के रहस्यों को प्राप्त कर सकें। रविन्द्र जी के पाठ्यक्रम में इतिहास , विज्ञान , प्रकृति , भूगोल , साहित्य , नाटक , भ्रमण , बागवानी , प्रयोगशाला , ड्राइंग , खेलकूद , समाज सेवा के विषय सहित बहुत से क्रिया प्रधान पाठ्यक्रम शामिल थे। उन्होंने भ्रमण को ही उत्तम शिक्षा की विधि माना था। उन्होंने शिक्षा को एक बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान दिया था।

विद्यालयों को प्रकृति और समाज के बीच संतुलन स्थापित करने वाला होना चाहिए। रविन्द्र नाथ जी ने शिक्षा के सर्वोत्तम आदर्शों को स्थापित करने के लिए लगातार संघर्ष किया था। रविन्द्र नाथ जी ने शिक्षा के क्षेत्र में नवीन प्रयोगों को करके उसे आदर्श जीवन का एक सजीव प्रतिक बना दिया था। वे भारतीय संस्कृति के अतीत और गौरव के संरक्षक थे। रविन्द्र नाथ जी ने देश के कोने-कोने में भारतीय सांस्कृतिक आदर्शों का प्रचार भी किया था।

सम्मान व पुरस्कार : रविन्द्र नाथ जी की साहित्य सेवाओं के लिए उन्हें सन् 1913 को नोबल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।

मृत्यु : रविन्द्र नाथ जी की मृत्यु 7 अगस्त , 1941 को कलकत्ता में किडनी इंफेक्शन की वजह से हुई थी।

उपसंहार : महान व्यक्तित्व केवल अपनी प्रगति तक सिमित और संतुष्ट नहीं रहते हैं। उनक ध्येय पूरी मानव जाति के कल्याण से होता है। आज के समय में जब भी राष्ट्रगान के मधुर स्वर कानों में पड़ते हैं तो सभी को कविगुरु रविन्द्र नाथ जी की याद आ जाती है। भारत के इतिहास में रविन्द्र नाथ जी को युगों तक याद किया जायेगा।

रविन्द्र नाथ जी का जीवन साहित्यकार , शिक्षाशास्त्री , अध्यापक और एक दार्शनिक के रूप में देश के लोगों को प्रेरणा देता रहेगा। गाँधी जी को राष्ट्रपति की उपाधि रविन्द्रनाथ टैगोर जी ने दी थी। टैगोर जी की मृत्यु पर गाँधी जी ने कहा था – ‘ हमने केवल एक विश्वकवि को नहीं बल्कि एक राष्ट्रवादी मानवता के पुजारी को खो दिया।

उन्होंने शांतिनिकेतन के रूप में राष्ट्र के लिए नहीं बल्कि पुरे संसार के लिए अपनी एक विरासत छोड़ी है। रविन्द्र नाथ जी ने सामाजिक और सांस्कृतिक धरातल पर जन जागरण और सेवा का क्षेत्र अपनाया और साहित्य सृजन से इस भाव की कलात्मक अभिव्यक्ति भी की थी। रविन्द्र नाथ जी समाज की रचना के पक्षपाती रहे थे।

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सुभाष चन्द्र बोस पर निबंध (Essay On Subhash Chandra Bose In Hindi)

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सुभाष चन्द्र बोस पर निबंध (Essay On Subhash Chandra Bose In Hindi) :

भूमिका : देश की स्वतंत्रता के लिए भारतियों ने जिस यज्ञ को शुरू किया था उसमें जिन-जिन स्वतंत्रता सेनानियों ने अपने प्राणों का बलिदान दिया था उसमें सुभाष चन्द्र बोस भी थे। सुभाष चन्द्र बोस जी का नाम बहुत ही स्नेह और श्रद्धा के साथ लिया जाता है।

वीर पुरुष हमेशा एक ही बार मृत्यु का वरण करते हैं लेकिन वे अमर हो जाते हैं उनके यश और नाम को मृत्यु मिटा नहीं पाती है। सुभाष चन्द्र बोस जी ने स्वतंत्रता के लिए जिस रस्ते को अपनाया था वह सबसे अलग था। स्वतंत्रता की बलिवेदी पर मर मिटने वाले वीर पुरुषों में से सुभाषचन्द्र बोस का नाम अग्रगण्य है।

वे अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध करके देश को आजाद कराना चाहते थे। बोस जी ने भारतवासियों का आह्वान किया ‘ तुम मुझे खून दो , मैं तुम्हें आजादी दूंगा ‘। सुभाष चन्द्र बोस जी की इस दहाड़ से अंग्रेजों की सत्ता हिलने लगी थी। उनकी इसी आवाज के पीछे लाखों हिन्दुस्तानी लोग कुर्बान होने के लिए तत्पर हो गये।

जन्म : नेताजी सुभाष चन्द्र बोस जी का जन्म 23 जनवरी , 1897 को उड़ीसा प्रान्त प्रान्त के कटक में हुआ था। इनके पिता का नाम जानकीनाथ बोस था और माता का नाम प्रभावती बोस था। इनके पिता एक वकील थे और बंगाल विधानसभा के अध्यक्ष भी रहे थे। नेता जी अपने 14 बहन-भाइयों में से नौवीं संतान थे। सुभाष चन्द्र जी के 7 भाई और 6 बहनें भी थीं। अपने बहन भाइयों में से सबसे ज्यादा लगाव उन्हें शरदचंद्र बोस से था।

शिक्षा : बोस जी को बचपन से ही पढने-लिखने का बहुत शौक था। बोस जी की प्रारम्भिक शिक्षा कटक के एक प्रतिष्ठित विद्यालय रेवेंशॉव कॉलेजिएट स्कूल में हुई थी। मैट्रिक की परीक्षा को बोस जी ने कलकत्ता के प्रेसिडेंसी कालेज से प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की थी।

बोस जी ने सन् 1915 को बीमार होने के बाद भी 12 की परीक्षा को द्वितीय श्रेणी से उत्तीर्ण किया था। अंग्रेजी में उनके इतने अच्छे नम्बर आए थे कि परीक्षक को विवश होकर यह कहना ही पड़ा था कि ‘ इतनी अच्छी अंग्रेजी तो मैं स्वंय भी नहीं लिख सकता ‘। बोस जी ने सन् 1916 में अपनी आगे की पढाई के लिए कलकत्ता के प्रेसिडेंसी कॉलेज में दाखिला लिया जहाँ पर इनकी मुलाकात डॉ सुरेश बाबू से हुई थी।

उन्होंने कलकत्ता के स्काटिश कालेज से ही सन् 1919 में बी० ए० की परीक्षा को प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण किया था। बी०ए० की परीक्षा के बाद पिता के आदेश पर उन्हें आई०सी०एस० की परीक्षा के लिए इंग्लैण्ड पड़ा था। इंग्लेंड में इन्होने कैंब्रिज यूनिवर्सिटी में प्रवेश लेना पड़ा था और वहीं से आई०सी०एस० की परीक्षा को उत्तीर्ण करने के बाद स्वदेश लौटे और यहाँ एक उच्च पदस्थ अधिकारी बन गए।

जीवन : सुभाष चन्द्र बोस जी की मुलाकात सुरेश बाबू से प्रेसिडेंसी कॉलेज में हुई थी। सुरेश बाबू देश-सेवा हेतु उत्सुक युवकों का संगठन बना रहे थे। क्योंकि युवा सुभाष चन्द्र बोस में ब्रिटिश हुकुमत के विरुद्ध विद्रोह का कीड़ा पहले से ही कुलबुला रहा था इसी वजह से उन्होंने इस संगठन में भाग लेने में बिलकुल भी देरी नहीं की थी।

यहीं पर उन्होंने अपने जीवन को देश सेवा में लगाने की कठोर प्रतिज्ञा ली थी। सुभाष चन्द्र बोस जी को कलेक्टर बनकर ठाठ का जीवन व्यतीत करने की कोई इच्छा नहीं थी। उनके परिवार वालों ने उन्हें बहुत समझाया , कई उदाहरणों और तर्कों से सुभाष चन्द्र जी की रह को मोड़ने की कोशिश की लेकिन परिवार वाले किसी भी प्रयत्न में सफल नहीं हुए।

सुभाष चन्द्र बोस एक सच्चे सेनानी थे। भारत के स्वतंत्रता आन्दोलन में बोस जी का एक महत्वपूर्ण योगदान रहा था। सुभाष चन्द्र बोस जी ने गाँधी जी के विपरीत हिंसक दृष्टिकोण को अपनाया था। बोस जी ने स्वतंत्रता संग्राम के लिए क्रांतिकारी और हिंसक तरीके की वकालत की थी। बोस जी ने भारतीय कांग्रेस से अलग होकर आल इण्डिया फारवर्ड की स्थापना की थी।

स्वतन्त्रता आन्दोलन में प्रवेश : सुभाष चन्द्र बोस जी अरविन्द घोष और गाँधी जी के जीवन से बहुत अधिक प्रभावित थे। सन् 1920 में गाँधी जी ने असहयोग आन्दोलन चलाया हुआ था जिसमें बहुत से लोग अपना-अपना काम छोडकर भाग ले रहे थे। इस आन्दोलन की वजह से लोगों में बहुत उत्साह था।

सुभाष चन्द्र बोस जी ने अपनी नौकरी को छोडकर आन्दोलन में भाग लेने का दृढ निश्चय कर लिया था। सन् 1920 के नागपुर अधिवेशन ने उन्हें बहुत प्रभावित किया था। 20 जुलाई , 1921 में सुभाष चन्द्र बोस जी गाँधी जी से पहली बार मिले थे। सुभाष चन्द्र बोस जी को नेताजी नाम भी गाँधी जी ने ही दिया था।

गाँधी जी उस समय में स्वतंत्रता आंदोलन का नेतृत्व कर रहे थे जिसमें लोग बहुत ही बढ़-चढ़कर भाग ले रहे थे। क्योंकि बंगाल में असहयोग आंदोलन का नेतृत्व दासबाबू कर रहे थे इसलिए गाँधी जी ने बोस जी को कलकत्ता जाकर दासबाबू से मिलने की सलाह दी। बोस जी कलकत्ता में असहयोग आंदोलन में दासबाबू के सहभागी बन गए थे।

सन् 1921 में जब प्रिंस ऑफ़ वेल्स के भारत आने पर उनके स्वागत का पुरजोर से बहिष्कार किया गया था तो उसके परिणामस्वरूप  ही बोस जी को 6 महीने के लिए जेल जाना पड़ा था। कांग्रेस द्वारा सन् 1923 में स्वराज पार्टी की स्थापना की गई। इस पार्टी के अध्यक्ष मोतीलाल नेहरु , चितरंजन दास थे। इस पार्टी का उद्देश्य विधान सभा से ब्रिटिश सरकार का विरोध करना था।

स्वराज पार्टी ने महापालिका के चुनाव को जीत लिया था जिसकी वजह से दासबाबू कलकत्ता के महापौर बन गए थे। महापौर चुने जाने के बाद दासबाबू ने बोस जी को महापालिका का कार्यकारी अधिकारी बना दिया था। इसी दौरान सुभाष चन्द्र बोस जी ने बंगाल में देशभक्ति की ज्वाला को भड़का दिया था जिसकी वजह से सुभाष चन्द्र बोस देश के एक महत्वपूर्ण युवा नेता और क्रांति के अग्रदूत बन गये थे।

इसी दौरान बंगाल में किसी विदेशी की हत्या कर दी गई थी। हत्या करने के शक में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस को गिरफ्तार कर लिया गया था। बोस जी अपनी जी-जान से आन्दोलन में भाग लेने लगे और कई बार जेल यात्रा भी करनी पड़ी। सन् 1929 और सन् 1937 में वे कलकत्ता अधिवेशन के मेयर बने थे। सन् 1938 और 1939 में वे कांग्रेस के सभापति के रूप में चुने गये थे।

सन् 1920 में सुभाष चन्द्र बोस जी को भारतीय जनपद सेवा में चुना गया था लेकिन खुद को देश की सेवा के लिए समर्पित कर देने की वजह से उन्होंने गाँधी जी के असहयोग आन्दोलन में शामिल हो गये थे। सुभाष चन्द्र बोस जी ने सन् 1921 में अपनी नौकरी को छोडकर राजनीति में प्रवेश किया।

क्रांति का सूत्रपात : सुभाषचन्द्र बोस जी के मन में छात्र काल से ही क्रांति का सूत्रपात हो गया था। जब कॉलेज के समय में एक अंग्रेजी के अध्यापक ने हिंदी के छात्रों के खिलाफ नफरत से भरे शब्दों का प्रयोग किया तो उन्होंने उसे थप्पड़ मार दिया। वहीं से उनके विचार क्रांतिकारी बन गए थे।

वे एक पक्के क्रांतिकारी रोलेक्ट एक्ट और जलियांवाला बाग के हत्याकांड से बने थे। नेताजी सुभाष चन्द्र बोस भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के एक सबसे प्रमुख नेता थे। बोस जी ने जनता के बीच राष्ट्रिय एकता , बलिदान और साम्प्रदायिक सौहार्द की भावना को जागृत किया था।

कांग्रेस से त्याग पत्र : वे क्रांतिकारी विचारधारा रखते थे इसलिए वे कांग्रेस के अहिंसा पूर्ण आन्दोलन में विश्वास नहीं रखते थे इसलिए उन्होंने कांग्रेस से त्यागपत्र दे दिया था। बोस जी अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध छेडकर देश को स्वाधीन करना चाहते थे। उन्होंने देश में हिन्दू-मुस्लिम एकता के लिए फारवर्ड ब्लाक की स्थापना की।

उनके तीव्र क्रांतिकारी विचारों और कार्यों से त्रस्त होकर अंग्रेजी सरकार ने उन्हें जेल भेज दिया। जेल में उन्होंने भूख हड़ताल कर दी जिसकी वजह से देश में अशांति फ़ैल गयी थी। जिसके फलस्वरूप उनको उनके घर पर ही नजरबंद रखा गया था। बोस जी 26 जनवरी , 1942 को पुलिस और जासूसों को चकमा दिया था।

वे जियाउद्दीन के नाम से काबुल के रास्ते से होकर जर्मनी पहुंचे थे। जर्मनी के नेता हिटलर ने उनका स्वागत किया। बोस जी ने जर्मनी रेडियो केंद्र से भारतवासियों के नाम स्वाधीनता का संदेश दिया था। देश की आजादी के लिए किया गया उनका संघर्ष , त्याग और बलिदान इतिहास में सदैव प्रकाशमान रहेगा।

आजाद हिन्द सेना : बोस जी ने देखा कि शक्तिशाली संगठन के बिना स्वाधीनता मिलना मुश्किल है। वे जर्मनी से टोकियो गए और वहन पर उन्होंने आजाद हिन्द फ़ौज की स्थापना की। उन्होंने इंडियन नेशनल आर्मी का नेतृत्व किया था। यह अंग्रेजों के खिलाफ लडकर भारत को स्वाधीन करने के लिए बनाई गई थी। आजाद हिन्द ने यह फैसला किया कि वे लड़ते हुए दिल्ली पहुंचकर अपने देश की आजादी की घोषणा करेंगे या वीरगति को प्राप्त होंगे। द्वितीय महायुद्ध में जापान के हार जाने की वजह से आजाद हिन्द फ़ौज को भी अपने शस्त्रों को त्यागना पड़ा।

सुभाष चन्द्र बोस की मृत्यु : जापान के हार जाने की वजह से आजाद हिन्द फ़ौज को भी आत्म-समर्पण करना पड़ा था। जब नेताजी विमान से बैंकाक से टोकियो जा रहे थे तो मार्ग में विमान में आग लग जाने की वजह से उनका स्वर्गवास हो गया था। लेकिन नेताजी के शव या कोई चिन्ह न मिलने की वजह से बहुत से लोगों को नेताजी की मौत पर संदेह हो रहा है।

18 अगस्त , 1945 को टोकियो रेडियो ने इस शोक समाचार को प्रसारित किया कि सुभाष चन्द्र बोस जी एक विमान दुर्घटना में मारे गए। लेकिन उनकी मृत्यु आज तक एक रहस्य बनी हुई है। इसीलिए देश के आजाद होने पर सरकार ने उस रहस्य की छानबीन के लिए एक आयोग भी बिठाया लेकिन उसका भी कोई परिणाम नहीं निकला।

उपसंहार : नेताजी भारत के ऐसे सपूत थे जिन्होंने भारतवासियों को झुकना नहीं बल्कि शेर की तरह दहाड़ना चाहिए। खून देना एक वीर पुरुष का ही काम होता है। नेताजी ने जो आह्वान किया वह सिर्फ आजादी प्राप्त तक ही सीमित नहीं था बल्कि भारतीय जन-जन को युग-युग तक के लिए एक वीर बनाना था। आजादी मिलने के बाद एक वीर पुरुष ही अपनी आजदी की रक्षा कर सकता है। आजादी को पाने से ज्यादा आजादी की रक्षा करना उसका कर्तव्य होता है।

ऐसे वीर पुरुष को भारत इतिहास में बहुत ही श्रद्धा से याद किया जायेगा। नेता जी सुभाष चन्द्र बोस जी की याद में हर साल 23 जनवरी को देश प्रेम दिवस के रूप में मनाया जाता है। देश प्रेम दिवस के दिन को फारवर्ड ब्लाक की पार्टी के सदस्यों में एक भव्य तरीके से मनाया जाता है। सभी जिला प्रशासन और स्थानीय निकायों में भी इस दिन को मनाया जाता है। बहुत से गैर सरकारी संगठनों द्वारा इस दिन रक्त शिविरों का आयोजन किया जाता है। इस दिन स्कूलों और कॉलेजों में विभिन्न गतिविधियाँ आयोजित की जाती हैं।

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बाल दिवस पर निबंध (Essay On Children’s Day In Hindi)

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बाल दिवस पर निबंध (Essay On Children’s Day In Hindi) :

भूमिका : जन्म दिवस मनाना हमारे भारत की एक प्राचीन परम्परा है। हम अपने महापुरुषों के जन्म दिनों को मनाकर उन्हें अपनी श्रद्धा अर्पित करते हैं और अपने व्यवहारिक जीवन में उनके आदर्शों पर चलने की कोशिश करते हैं। पंडित जवाहर लाल नेहरु जी भी उन महापुरुषों में से एक हैं जिनका जीवन भावी पीढ़ी के लिए एक प्रेरणा स्त्रोत हैं। पंडित जवाहर लाल नेहरु जी का जन्म 14 नवम्बर , 1889 को इलाहबाद में हुआ था।

उनके जन्म दिवस को हर साल बाल दिवस के रूप में मनाया जाता है। देश के आजद होने पर नेहरु जी हमारे देश के प्रथम प्रधानमंत्री निर्वाचित किया गया था। देशवासियों ने उनके जन्म दिन 14 नवम्बर को नेहरु जन्म दिवस के नाम से मनाना चाहा लेकिन नेहरु जी हमेशा बच्चों से प्यार करते थे। उनका सुकोमल ह्रदय बच्चों के प्यार से खिल उठता था , प्रधानमंत्री होने पर भी जो बच्चों में घुल-मिल जाते थे , उन्हें गले लगाते थे उन्होंने अपना जन्म दिन बाल दिवस के रूप में मनाने की अनुमति दी।

तभी से लोग नेहरु जी के जन्म दिन को बाल दिवस के रूप में मनाते आए हैं। सन् 1925 में बाल दिवस की नींव को रखा गया था। बच्चों के कल्याण के लिए विश्व कांफ्रेंस में बाल दिवस को मनाने के लिए सबसे पहले घोषणा हुई थी लेकिन सन् 1954 में इसे पूरी दुनिया में मान्यता प्राप्त हुई थी। नेहरु जी का मानना था कि देश के अच्छे विकास के लिए बच्चों को कमजोर , गरीब और उचित ढंग से विकास न होने से बचाना चाहिए।

बच्चों के विकास का दिन : अपने जन्म दिन को बाल दिवस के रूप में मनाने का उद्देश्य नेहरु जी के लिए सिर्फ बच्चों को प्यार करना ही नहीं था अपितु बच्चों का सर्वांगीण विकास करना भी था। नेहरु जी इस बात को जानते थे कि भारत एक गरीब देश है। भारत के बच्चों की हालत भी दयनीय थी।

आज का बालक कल के होने वाले देश का नायक है इसलिए बच्चों की हालत हर स्थिति में सुधरनी चाहिए। अगर देश को उन्नत और विकसित करना बनाना है तो देश के बच्चों की हालत सुधारनी चाहिए जिन बच्चों पर देश का भविष्य निर्भर करता है। इसीलिए बाल दिवस के अवसर पर सरकार बच्चों के विकास के लिए भिन्न-भिन्न योजनाएँ बनाती है।

बाल पूर्णता: बच्चों के लिए समर्पित होता है। इस दिन विशेष रूप से बच्चों के लिए कार्यक्रम एवं खेल-कूद से जुड़े बहुत से आयोजन करवाए जाते हैं। बच्चे देश का भविष्य होते हैं वे एक ऐसे बीज की तरह होते हैं जिन्हें दिया गया पोषण उनके विकास और गुणवत्ता पर निर्धारित करेगा। यही वजह है कि इस दिन बच्चों से जुड़े विभिन्न मुद्दों जैसे – शिक्षा , संस्कार , स्वास्थ्य , मानसिक और शारीरिक विकास के लिए बहुत ही आवश्यक विषयों पर विचार विमर्श किया जाता है।

दिल्ली का बाल भवन : 14 नवम्बर को सारे देश में बाल दिवस को बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। दिल्ली के बाल भवन में उस दिन चहल-पहल निराली ही होती है। इस दिन यहाँ पर सारे देश भर के बच्चे बड़े हर्ष के साथ भाग लेने के लिए आते हैं। यहाँ पर बच्चों की विविध विषयों पर राष्ट्रिय स्तर पर प्रतियोगिताएं होती हैं।

सुबह से लेकर रात तक विविध प्रकार के कार्यक्रम होते रहते हैं। इस दिन के अवसर पर यहाँ विभिन्न खेलों का आयोजन होता है। अच्छे-अच्छे खिलाडियों को पुरस्कार देकर प्रोत्साहित किया जाता है। विभिन्न विषयों पर परागत बालकों को राष्ट्रपति द्वारा राष्ट्रिय पुरस्कार देकर सम्मानित किया जाता है।

शाम को बाल कलाकारों द्वारा सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है जिसमें बालक और बालिकाओं द्वारा संगीत , नाटक और नृत्य का प्रदर्शन किया जाता है। इन सभी आयोजनों में देश भर के हर आयु के बच्चे भाग लेते हैं। इन कार्यक्रमों का आयोजन बाल भवन सोसाइटी के द्वारा किया जाता है। जिसकी बहुत से देशों में शाखाएं उपस्थित होती हैं।

लेकिन दिल्ली बाल भवन में यह पर्व राष्ट्रिय स्तर पर मनाया जाता है। बहुत स्कूलों और संस्थानों में बाल मेला और प्रतियोगिताएं करवाई जाती हैं जिससे बच्चों की क्षमता और प्रतिभा को और अधिक बढ़ावा मिल सके। इस दिन पर विशेष रूप से गरीब बच्चों को मूलभूत सुविधाओं को उपलब्ध कराने के लिए और बाल श्रम एवं बाल शोषण जैसे मुद्दों पर बहुत ही गंभीरता से विचार विमर्श किया जाता है।

बाल दिवस की आवश्यकता : बच्चे नाजुक मन के होते हैं और प्रत्येक छोटी चीज या बात उनके दिमाग पर असर डालती है। उन्हीं का आज देश का आने वाला कल बनेगा जो बहुत ही महत्वपूर्ण है। इसी वजह से उनके क्रियाकलापों , उन्हें दिए जाने वाले ज्ञान और संस्कारों पर बहुत ही विशेष रूप से ध्यान दिया जाना चाहिए।

इसके साथ-साथ बच्चों का मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य का भी ध्यान रखना बहुत जरूरी होता है। बच्चों को सही शिक्षा , पोषण , संस्कार मिलें यह हमारे देश के लिए बहुत जरूरी होता है क्योंकि आज के बच्चे ही कल का भविष्य होते हैं। इस दिन बच्चे अपनी बनाई हुई वस्तुओं का प्रदर्शन करते हैं जिसमें बच्चे अपनी कला का प्रदर्शन करते हैं।

नृत्य , गान और नाटक से वे अपनी मानसिक और शारीरिक क्षमता का प्रदर्शन करते हैं। हमें बच्चों की शिक्षा की तरफ ध्यान देना चाहिए क्योंकि बच्चे कल का भविष्य होते हैं। इस खास तौर पर बाल श्रम रोधी कानूनों को पूरी तरह से लागू करना चाहिए। अनेक कनून होने के बाद भी बाल श्रमिकों की संख्या में साल-दर-साल वृद्धि होती जा रही है।

इन बच्चों का असली स्थान कारखानों में नहीं बल्कि स्कूलों में होता है। बच्चों के उज्ज्वल भविष्य को बनाने के लिए उनमे सुधार के साथ-साथ देश में बच्चों के महत्व , वास्तविक स्थिति के बारे में लोगों को जागरूक करने के लिए हर साल बाल दिवस मनाना बहुत ही आवश्यक होता है।

बाल दिवस उत्सव सभी के लिए एक मौका उपलब्ध कराता है जो कि खासतौर पर बच्चों के लिए होता है। बच्चों के प्रति अपने कर्तव्य और जिम्मेदारियों के एहसास के द्वारा ही बच्चों के भविष्य के बारे में सोचने के लिए लोगों को सोचने के लिए मजबूर करता है। यह लोगों को बच्चों की सही स्थिति के बारे में जागरूकता उत्पन्न करता है।

विद्यालयों में बाल दिवस : सभी विद्यालयों के छात्र कई दिनों पूर्व से बाल दिवस की प्रतीक्षा करते हैं। इस दिन राष्ट्रिय स्तर पर राजकीय अवकाश घोषित नहीं होता लेकिन विद्यालयों में यह पर्व हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। 14 नवम्बर को सभी छात्र विद्यालय में उपस्थित होते हैं। इस दिन बच्चे बहुत ही खुश और उत्साहित होते हैं।

वे सज-धज कर अपने विद्यालय जाते हैं। दिन भर विभिन्न कार्यक्रम चलते हैं। बच्चे बहुत से विशेष कार्यक्रमों में भाग लेते हैं। यह दिन बच्चों के लिए बहुत ही हर्ष का दिन होता है। सबसे पहले विभिन्न प्रकार के खेल-कूदों का आयोजन किया जाता है जिसमें विभिन्न छात्रों की रूचि के अनुकूल प्रतियोगिताएं होती हैं।

खेल-कूदों के बाद एक सभा का आयोजन किया जाता है। सभा के अंत में सभी बच्चों को पुरस्कार देकर सम्मानित किया जाता है और मिठाईयां बांटी जाती हैं। सभी छात्र ख़ुशी-ख़ुशी अपने-अपने घर चले जाते है। बच्चे अपने चाचा नेहरु जी को बहुत ही स्नेह और प्रेम के साथ याद करते हैं।

विद्यालयों में बच्चे पंक्तिबद्ध होकर गली-मोहल्लों और सडकों पर नारे लगाते हुए निकलते हैं। वे समाज को बच्चों के अधिकारों के प्रति सचेत करते हैं। वे सभी लोगों में पर्यावरण जागरूकता को फैलाते हैं। बच्चों को नारे लगाने के बाद खाने की पूरी व्यवस्था की जाती है उनके खाने के लिए टोफियाँ , मिठाईयां , बिस्कुट और फल दिए हैं।

उपसंहार : बाल दिवस हमें प्रगति के रास्ते पर आगे बढने का संदेश देता है। बच्चों की प्रगति पर ही देश की प्रगति निर्भर करती है इसलिए हर छात्र को बाल दिवस के दिन प्रतिज्ञा लेनी चाहिए कि वे अपनी बुरी आदतों को त्याग कर अपने जीवन को उज्ज्वल बनाने के लिए मेहनत करेंगे।

इस अवसर पर हम सभी को नेहरु जी के जीवन से प्रेरणा लेकर नेहरु जी की तरह देश की सेवा और रक्षा के लिए अपने सारे भेद-भाव भुलाकर , मिलजुल कर देश को आगे बढ़ाने में अपना योगदान देना चाहिए। बच्चों के रहन-सहन के स्तर को ऊँचा करने की हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए। इन्हें स्वस्थ , निर्भीक और योग्य नागरिक बनाने का प्रयास किया जाना चाहिए।

बाल दिवस विभिन्न प्रकार की हलचलों से परिपूर्ण होता है। इस दिन सभी बच्चे अपने चाचा नेहरु जी को श्रद्धा के सतत पुष्प अर्पित करते हैं। हमें बाल दिवस को ज्यादा-से-ज्यादा प्रेरक और प्रतीकात्मक रूप से मनाना चाहिए जिससे बच्चों का हर तरह से सांस्कृतिक और बौद्धिक विकास हो सके। ऐसा करने से ही हमारा राष्ट्र समुन्नत और सबल हो सकेगा।

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गणेश चतुर्थी पर निबंध-Essay On Ganesh Chaturthi In Hindi

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गणेश चतुर्थी पर निबंध (Essay On Ganesh Chaturthi In Hindi) :

भूमिका : भगवान गणेश , माता पारवती और भगवान शिवजी के पुत्र हैं। गणेश चतुर्थी पर गणेश , शिवजी और पारवती जी की पूजा बड़ी ही धूमधाम से की जाती है। भारत में गणेश चतुर्थी को बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है। गणेश चतुर्थी का त्यौहार कार्यालय हो या स्कूल-कॉलेज हर जगह पर मनाया जाता है।

इस दिन सभी कार्यालयों और शिक्षा संस्थानों को बंद करके भगवान गणेश जी की पूजा की जाती है। बहुत से लोग घरों में श्री गणेश जी की पूजा करते हैं। इस दिन पर सभी भक्त गणेश जी की आरती गाते हैं और भगवान को भोग के रूप में मोदक चढाते हैं। मोदक गणेश जी की बहुत ही पसंदीदा मिठाई है।

इस दिन को सबसे भव्य और बड़े तौर पर भारत के महाराष्ट्र राज्य में मनाया जाता है। महाराष्ट्र में इस त्यौहार को इसलिए धूमधाम से मनाया जाता है क्योंकि बहुत सालों पहले छत्रपति शिवाजी महाराज ने इसकी शुरुआत की थी। गणेश चतुर्थी को सबसे अधिक और जबर्दस्त तरीके से महाराष्ट्र और भारत के सभी हिन्दुओं में मनाया जाता है।

गणेश जी के नाम : गणेश जी के मुख्य रूप से 12 नाम हैं। उनके 12 नामों का वर्णन नारद पुराण में मिलता है। गणेश जी को मुख्य रूप से सुमुख , एकदंत , कपिल , गजकर्ण , लंबोदर , विकट , विघ्न-नाशक , विनायक , धूम्रकेतु , गणाध्यक्ष , भालचंद्र , गजानन आदि नामों से भी पुकारा जाता है।

गणेश जी की पूजाविधि : सुबह-सुबह सबसे पहले नहा-धोकर लाल वस्र पहने जाते हैं क्योंकि लाल वस्त्र भगवान गणेश जी को अधिक प्रिय लगते हैं। पूजा के दौरान श्री गणेश जी का मुख उत्तर या पूर्व की दिशा में रखा जाता है। सबसे पहले पंचामृत से गणेश जी का अभिषेक किया जाता है।

पंचामृत में सबसे पहले दूध से गणेश जी का अभिषेक किया जाता है उसके बाद दही से , फिर घी से , शहद से और अंत में गंगा जल से अभिषेक किया जाता है। गणेश जी पर रोली और कलावा चढाया जाता है। सिंदूर गणेश जी को बहुत अधिक प्रिय होता है इसलिए उनको सिंदूर चढाया जाता है।

रिद्धि-सिद्धि के रूप में दो सुपारी और पान चढ़ाए जाते हैं। इसके बाद फल , पीला कनेर और दूब फूल चढाया जाता है। उसके बाद उनकी मनपसन्द मिठाई मोदक को भोग स्वरूप चढाया जाता है। भोग चढ़ने के बाद सभी परिवारजनों द्वारा मिलकर गणेश जी की आरती गाई जाती है। श्री गणेश जी के 12 नामों का और उनके मंत्रों का उच्चारण किया जाता है।

पौराणिक कथा : माता पारवती भगवान शिवजी की धर्म पत्नी थीं। माता पारवती ने अपने शरीर के मैल को उतारकर एक पुतला बनाया जिसमें उन्होंने प्राण डाल दिए और उससे एक पुत्र को उत्पन्न किया जिनका नाम गणेश रखा गया। एक बार जब माता पारवती स्नान करने गईं थीं तो उन्होंने जाने से पहले अपने पुत्र गणेश को कहा कि जब तक मैं स्नान करके न लौटूं तब तक स्नान घर के अंदर किसी को भी आने मत देना।

वह बालक द्वार पर पहरेदारी करने लगता है। थोड़ी देर बाद शिवजी वहाँ पर पहुंचे थे। गणेश जी को इस बात का पता नहीं था कि शिवजी उनके पिता हैं। गणेश जी ने शिवजी को अंदर जाने से रोका। शिवजी ने गणेश जी को बहुत समझाया लेकिन गणेश जी ने उनकी बात नहीं मानी। क्रोध में आकर शिवजी ने अपने त्रिशूल से गणेश जी का सिर धड से अलग कर दिया।

गणेश जी की दर्द भरी आवाज को सुनकर माता पारवती बाहर आईं तो अपने पुत्र के मृत शरीर को देखकर दुःख से रोने लगीं। क्रोध में आकर माता पारवती जी ने शिवजी को अपने पुत्र को जीवित करने के लिए कह दिया। शिवजी को अपनी गलती का एहसास हुआ लेकिन वे उस अलग किए हुए सिर को वापस नहीं जोड़ सकते थे इसलिए उन्होंने नंदी को आदेश दिया कि धरती पर जिस बच्चे की माँ बच्चे की तरफ पीठ करके सो रही हो उसका सिर काटकर ले आना।

उनको सबसे पहले एक हाथी का बच्चा दिखा जिसकी माँ उसकी तरफ पीठ करके सो रही थी वे उसका सिर काटकर शिवजी के पास ले गए। शिवजी ने अपनी शक्ति के बल पर हाथी के सिर को धड से जोडकर गणेश जी को जीवित कर दिया। उस बच्चे को सभी गणों का स्वामी घोषित कर दिया जाता है तभी से उनका नाम गणपति रख दिया जाता है। तब सभी देवताओं के द्वारा गणेश जी को आशीर्वाद दिया जाता है।

सबसे पहले गणेश जी की पूजा क्यों होती है : शिवजी ने गणेश जी को आशीर्वाद देते हुए कहा कि जब भी पृथ्वी पर किसी भी नए और अच्छे कार्य की शुरुआत की जाएगी तो वहाँ पर सबसे पहले गणेश जी का नाम लिया जायेगा और गणेश जी की आराधना करने वाले व्यक्ति के सभी दुःख दूर हो जाएंगे। इसी वजह से हम भारतीय जब कुछ भी अच्छा और नया शुरू करने जैसे – विवाह , नए व्यापर की शुरुआत , नया घर प्रवेश , शिशु के पहली बार स्कूल जाने से पहले गणेश जी की पूजा करते हैं। पूजा करते समय सुख-शांति की कामना करते हैं।

गणेश चतुर्थी को मनाने का तरीका : इस दिन को भगवान गणेश जी के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है। यह भारत देश के सभी त्यौहारों में सबसे बड़ा त्यौहार माना जाता है। भारत देश में इस त्यौहार को भाद्रपद माह में शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है। इस त्यौहार को पूरे 11 दिनों तक मनाया जाता है जिसे पूरा भारत हर्षोल्लास के साथ मनाता है।

गणेश चतुर्थी के दिन बाजारों में बहुत चहल-पहल रहती है। इस दिन बाजारों में श्री गणेश जी की सुंदर मूर्तियाँ और उनके चित्र बिकते हैं। मिट्टी से बनाई गईं श्री गणेश जी की मूर्तियाँ बहुत ही भव्य लगती हैं। सभी लोग गणेश भगवान जी की मूर्ति को अपने-अपने घरों में उचित स्थान पर स्थापित करते हैं।

जिस समय से भगवान गणेश घर में पधारते हैं उसी समय से सारे घर का माहौल भक्तिमय हो जाता है। गणेश चतुर्थी के दिन सभी भक्त अपने घरों , दफ्तरों या शैक्षिक संस्थानों में गणेश जी की मूर्ति को सजाते हैं उस दिन वहाँ पर गणेश जी की आरती और मन्त्रों के उच्चारण के साथ-साथ उनकी पूजा भी की जाती है।

लोग गणेश जी की पूजा में लाल चन्दन , कपूर , नारियल , गुड , दूर्वा घांस , और उनकी मन पसंद मिठाई का एक विशेष स्थान होता है। लोग भगवान से सुख-शांति की कामना करते हैं और साथ में ज्ञान का दान भी मांगते हैं। पूजा होने के बाद सभी लोगों को प्रसाद दिया जाता है। घरों में पकवान और मिठाईयां बनाई जाती हैं और श्री गणेश जी को भोग स्वरूप चढाई जाती हैं।

रोज लोग मंत्रों का उच्चारण करते हैं और गणेश जी की आरती गाकर गणेश जी की पूजा करते हैं और अपने सभी दुखों को हरने की कामना करते हैं। गणेश चतुर्थी के अवसर पर जगह-जगह पर गणेश पूजा के लिए लोग पंडाल भी लगाते हैं। पुरे पंडाल को फूलों से सजाया जाता है। और गणेश जी की प्रतिमा को स्थापित किया जाता है। हिन्दू धर्म के अनुसार गणेश जी की प्रतिदिन पूजा की जाती है।

उस दिन के बाद दस दिनों तक मूर्ति को वहीं पर रखा जाता है। लोग रोज भगवान के दर्शन के लिए वहाँ पर आते हैं और पूजा भी करते हैं। दस दिनों के बाद गणेश जी की मूर्ति को समुद्र या नदियों में विसर्जित कर दिया जाता है। पुरे धूमधाम और हर्षोल्लास के साथ भगवान गणेश जी की मूर्ति का विसर्जन किया जाता है। इस प्रकार से श्रीगणेश जी की पूजा संपन्न होती है। श्री गणेश भगवान की पूजा के बिना हर पूजा को अधुरा माना जाता है।

चाँद को देखना अशुभ क्यों होता है : गणेश चतुर्थी के दिन चन्द्रमा को देखना अशुभ माना जाता है। इसके पीछे भी एक कथा जुडी हुई है इसकी कथा के अनुसार एक बार चन्द्रमा ने भगवान गणेश जी के मोटे पेट पर मजाक उड़ाया था जिस पर क्रोधित होकर गणेश जी ने चन्द्रमा को श्राप दे दिया था।

जिसके परिणाम स्वरूप चन्द्रमा काला पड़ गया और जो भी चन्द्रमा को देखेगा उस पर चोरी का आरोप लगेगा। इस बात को सुनकर चन्द्रमा भयभीत हो गया और गणेश जी से श्राप से मुक्ति के लिए आराधना करने लगा। गणेश जी चन्द्रमा की आराधना से खुश हो गए और उन्होंने चन्द्रमा को श्राप से मुक्त कर दिया सिवाय भादवा मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी के दिन के। इसी लिए ऐसा माना जाता है कि इस दिन जो भी चाँद को देखता है वह कलंक का भागीदारी बनता है।

मूषक वाहन कैसे बने : महामेरु पर्वत पर एक ऋषि रहता था। उस पर्वत पर उसका आश्रम था। उसकी पत्नी अत्यंत सुंदर थी। एक दिन ऋषि लकड़ियाँ लाने के लिए वन में गए हुए थे उस समय वहाँ पर क्रोंच नामक गंधर्व आ पहुंचा था। गंधर्व ऋषि की पत्नी को देखकर व्याकुल हो उठा और उसने ऋषि की पत्नी का हाथ पकड़ लिया उसी समय वहाँ पर ऋषि भी आ गए।

गंधर्व की इस दुष्टता को देखते हुए ऋषि ने उसे श्राप दे दिया। गंधर्व को जब अपनी गलती का एहसास हुआ तो वह ऋषि से रहम की वेदना करने लगा और अपने श्राप को वापस लेने की विनती की। ऋषि ने उनकी इस दशा पर उनसे कहा कि मैं अपने श्राप को वापस तो नहीं ले सकता हूँ लेकिन धरती पर मूषक बनकर श्राप भुगतने में ही तुम्हारी भलाई है। द्वापर युग में पराशर ऋषि के आश्रम भगवान गणपति गजनंद के रूप में अवतार लेगें तुम उनके वहन बनोगे और हमेशा ही सम्मानित किए जाओगे।

उपसंहार : गणेश चतुर्थी के दिन गणेश भगवान को अपने घर में प्रवेश कराकर घर की सभी समस्याओं और कष्टों को दूर किया जाता है। गणेश चतुर्थी महाराष्ट्र राज्य के लोगों का सबसे अधिक पसंदीदा और प्रमुख त्यौहार होता है। यह दिन बहुत ही पवित्र होता है इस लिए इस त्यौहार को बड़े-बड़े अभिनेताओं द्वारा भी मनाया जाता है।

उनके व्यक्तित्व में हाथी के गुणों की प्रतिष्ठा की गई है। हाथी में बुद्धि , बल और धैर्य होता है इसलिए गणेशजी की पूजा बल , बुद्धि और धैर्य से संपन्न देवता की पूजा होती है। गणेश चतुर्थी के शुभ अवसर पर हमें उनसे इन्हीं गुणों को धारण करना चाहिए।

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जल बचाओ पर निबंध-Essay On Save Water In Iindi

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जल बचाओ पर निबंध (Essay On Save Water In Iindi) :

भूमिका : जल हमें और दुसरे प्राणियों को पृथ्वी पर जीवन प्रदान करता है। जल भगवान का एक सुंदर उपहार है जो उन्होंने हमें दिया है। पृथ्वी पर जीवन को जारी रखना बहुत जरूरी है। पानी के बिना किसी भी गृह पर जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। पृथ्वी एकमात्र ऐसा गृह है जहाँ पर आज तक जीवन और पानी दोनों विद्यमान हैं।

हमें अपने जीवन में जल के महत्व को समझना चाहिए और जल को बचाने के लिए हर संभव प्रयास करने चाहिए। हमारी पृथ्वी का लगभग 71% भाग जल से घिरा हुआ है जिसमें पीने योग्य पानी की बहुत ही कम मात्रा है। पानी को संतुलित करने का चक्र अपने आप ही चलता रहता है जैसे वर्षा और वाष्पीकरण।

धरती पर पीने लायक पानी की सुरक्षा और कमी की समस्या है। पीने का पानी बहुत ही कम मात्रा में उपलब्ध है। जल संरक्षण लोगों की आदतों से संभव हो सकता है। स्वच्छ जल बहुत से तरीकों से भारत और पूरी दुनिया के लोगों के जीवन को बहुत अधिक प्रभावित कर रहा है। स्वच्छ जल की कमी एक बहुत बड़ी समस्या बनती जा रही है। इस समस्या को दूर करने के लिए वैश्विक स्तर पर कोशिशें करनी चाहियें।

जल संरक्षण : जीवन को धरती पर संतुलित करने के लिए विभिन्न माध्यमों के द्वारा जल संरक्षण ही जल बचना होता है। पृथ्वी पर सुरक्षित और पीने के पानी की कमी की वजह से जल संरक्षण और जल बचाओ अभियान बहुत जरूरी हो चुका है। औद्योगिक कचरे के कारण रोज पानी के बड़े-बड़े स्त्रोत दूषित हो रहे हैं।

जल संरक्षण में अधिक कार्यक्षमता लाने के लिए सभी औद्योगिक बिल्डिंगें ,अपार्टमेन्टस , स्कूल , अस्पताल आदि सबी को उचित जल प्रबंधन को बढ़ावा देना चाहिए। पानी की कमी और साधारण पानी की कमी से होने वाली समस्याओं के बारे में लोगों को जागरूक करना चाहिए। लोगों द्वारा जल बर्बादी के व्यवहार को मिटाने के लिए तुरिसकी बहुत जरूरत है।

गांवों के लोगों द्वारा बरसात के पानी को इकट्ठा करना आरंभ करना चाहिए। जल के उचित रख-रखाव और बरसात के पानी को इकट्ठा करने के लिए बड़े-बड़े तालाबों को बनाना चाहिए। जल संरक्षण के लिए युवा छात्रों को अधिक जागरूक होने की जरूरत है और साथ में इस मुद्दे की समस्या और समाधान पर एकाग्र होने की जरूरत है।

विकासशील देशों में रहने वाले लोगों को जल की असुरक्षा और कमी बहुत प्रभावित कर रही है। आपूर्ति से बढकर मांग वाले क्षेत्रों में वैश्विक जनसंख्या के 40% लोग रहते हैं। आने वाले दशकों में यह स्थिति और भी खराब हो जाएगी क्योंकि आने वाले समय में जनसंख्या , कृषि , उद्योग सभी कुछ बढ़ेगा।

जल संरक्षण के उपाय : लोगों को अपने बागान या उद्यान में केवल तभी पानी देना चाहिए जब जरूरत हो। पानी को पाइप की जगह पर फुहारे से देने से बहुत अधिक मात्रा में पानी को बचाया जा सकता है। सुखा अवरोधी पौधा लगाकर भी जल संरक्षण किया जा सकता है। पाइपलाइन और नलों के जोड़ों को ठीक प्रकार से लगाना चाहिए जिससे पानी रिसकर बर्बाद न हो।

गाड़ी को धोने के लिए पाइप की जगह पर बाल्टी और मग का प्रयोग करना चाहिए जिससे पानी को बचाया जा सके। फुहारे के तेज बहाव के लिए अवरोधक भी लगाने चाहियें। कपड़ों और बर्तनों को धोने के लिए कपड़े और बर्तन धोने की मशीन का प्रयोग करना चाहिए। रोज पानी बचाने के लिए शौच में कम पानी का प्रयोग करना चाहिए।

फलों और सब्जियों को धोने के लिए नलों की जगह पर पानी से भरे हुए बर्तनों का प्रयोग करना चाहिए। बरसात के पानी को इकट्ठा करके शौच , उद्योगों , पीने और खाना पकाने के लिए प्रयोग करना चाहिए। सभी लोगों को जल के प्रति अपनी जिम्मेदारी को समझना चाहिए और पानी और भोजन पकाने में अधिक पानी के प्रयोग से बचना चाहिए।

फुहारे से नहाने की जगह पर बाल्टी का प्रयोग करना चाहिए। होली के त्यौहार के समय पर पानी के ज्यादा प्रयोग से बचना चाहिए और सुखी और सुरक्षित होली को बढ़ावा देना चाहिए। इस्तेमाल करने के बाद नल को बंद कर देना चाहिए जिससे पानी को बचाया जा सके। गर्मी के समय में कूलर में आवश्यकता के अनुकूल ही पानी का प्रयोग करना चाहिए।

पानी पीने के लिए छोटे ग्लास का प्रयोग करना चाहिए क्योंकि ज्यादातर लोग बड़े ग्लास में पानी छोड़ देते हैं छोटे ग्लास का प्रयोग करने से पानी की बर्बादी को कम किया जा सकता है। बचे हुए पानी को पौधों में डाल देना चाहिए। फल-सब्जियों को धोने के बाद पानी को पेड़-पौधों में डाल देना चाहिए। नल को पूरा नहीं खोलना चाहिए इससे पानी ज्यादा बर्बाद होता है।

जल संरक्षण का कारण : हमारे जीवन में जल का बहुत महत्व होता है उसकी कीमत को समझना चाहिए। ऑक्सीजन , पानी और भोजन के बिना जीवन संभव नहीं है। लेकिन इन तीनों में सबसे जरूरी तत्व जल होता है। हमारी धरती पर 1% से भी कम पानी पीने योग्य है। लोग स्वच्छ जल का महत्व समझना तो शुरू कर रहे हैं लेकिन उसे बचाने के लिए कोशिश नहीं करते हैं।

पृथ्वी पर जीवन को जारी रखने के लिए पानी को बचाना एक अच्छी आदत होती है और इसके लिए जितनी हो सके कोशिश करनी चाहिए। कुछ सालों पहले दुकानों पर पानी नहीं बेचा जाता था लेकिन आज सभी दुकानों पर पीने के पानी की थैलियाँ और बोतल मिलती हैं। पहले समय में लोग दुकानों पर पानी को बिकता देखकर बहुत ही आश्चर्यचकित हो गए और अपने अच्छे स्वास्थ्य के लिए 20 या उससे अधिक रुपए में पानी को खरीदने के लिए तैयार हो जाते थे।

आने वाले समय में पूरी दुनिया में पीने के पानी की समस्या और भी अधिक बढ़ जाएगी। 4 मिलियन से भी ज्यादा लोग पानी की बिमारियों के कारण मर जाते हैं। विकासशील देश के लोग साफ पानी की कमी और गंदे पानी की वजह से ओने वाली बिमारियों से पीड़ित होते हैं। एक दिन के समाचारों को तैयार करने के लिए 300 लिटर पानी का प्रयोग किया जाता है इसीलिए खबरों के दुसरे माध्यम के वितरण को बढ़ावा देना चाहिए।

हर 15 सेकेण्ड में पानी से होने वाली बीमारी की वजह से एक बच्चा मर जाता है। पूरी दुनिया के लोगों में पानी की बोतलों का प्रयोग शुरू कर दिया है जिसकी कीमत $60 से $80 बिलियन प्रति साल है। बहुत से देशों में लोगों को पीने के पानी के लिए बहुत लंबी दुरी तय करनी पडती है। भारत के लोग पानी से होने वाली बीमारी से बहुत अधिक पीड़ित हैं जिसकी वजह से भारत की अर्थव्यवस्था प्रभावित हो रही है।

जल संरक्षण के नारे : जल संरक्षण के लिए बहुत से नारों का प्रयोग किया जाता है। कुछ इस प्रकार हैं :-

1. बूंद-बूंद नहीं बरतेंगे , तो बूंद-बूंद को तरसेंगे।
2. हाथ से हाथ मिलाना है पानी को बचाना है।
3. जल है तो कल है , यह हमारे लिए कुदरत की देन है।
4. जल है जीवन का अनमोल रतन , इसे बचाने का करो जतन।
5. पानी को मानो अनमोल , क्योंकि यही है जीवन का असली मोल।
6. जल संरक्षण की लायें सोच , नहीं तो पानी के लिए तरसेंगे रोज।
7. लाल-पीला हरा नीला , इस होली खेलेंगे रंग ना हो कर गीला।
8. बारिश के पानी को बचाना है , घरेलू कामों में लगाना है।
9. जल ही जीवन है।
10. आओ सब मिलकर कसम खाएं , बूंद-बूंद पानी को बचाएं।
11. जल हमारे लिए सोना है , इसे कभी नहीं खोना है।
12. ना करो पानी को हर समय नष्ट , सहना पड़ेगा जीवन भर इसका कष्ट।
13. दूषित न करो जल को , नष्ट ना करो आने वाले कल को।
14. अगर करना है हमारे भविष्य को सुरक्षित , करना होगा बूंद-बूंद पानी को सुरक्षित।
15. जल को बचाने के लिए दृढ संकल्प लेना है , पानी बचाओ जीवन बचाओं का नारा फैलाना है।
16. नल से टिप-टिप पानी गिरने ना दें , पानी को बर्बाद होने ना दें।
17. स्वस्थ जीवन की अगर कर रहे हो खोज , बचाओ पानी रोज।
18. जल संरक्षण को हमें आज ही अपनाना है , अपने आने वाले कल को पानी की कमी से बचाना है।
19. चलो हम सब मिलकर संकल्प लें , पानी को नीचे न बहने दें।
20. पानी बिना जीवन नहीं , इसका संरक्षण हमारे लिए बोझ नहीं।
21. पानी बचाओ , जीवन बचाओ।
22. पानी की रक्षा , देश की रक्षा।
23. बिना जल जीवन में बदहाली , जल से ही है जीवन में हरियाली।
24. बूंद-बूंद जल से भरती है गागर , गागर से मिलकर बनता है सागर।
25. जल से फसल उगती है , जल से प्यास बुझती है।
26. पानी का रखो मान , देश बनेगा तभी महान।
27. स्वस्थ जीवन के लिए योग करो , पानी का उपयोग करो।

उपसंहार : यदि हम इन सभी बातों का ध्यान रखेंगे और बच्चों में भी इन आदतों को डालेंगे तो एक बहुत बड़े भाग में पानी को बचा पाएंगे। ऐसा करने से निश्चित रूप से धरती और धरती पर विकसित होने वाली प्राकृतिक एवं जीवन खुशहाल होगा। गंदा जल स्वच्छ जल को भी गंदा कर देता है। क्योंकि जल में पेयजल की मात्रा धरती पर बहुत ही सिमित होती है इसलिए इसका सदुपयोग कुछ लोगों के लिए बहुत ही फल दायक सिद्ध होगा।

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राष्ट्रीय एकता पर निबंध-Rashtriya Ekta Essay In Hindi

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राष्ट्रीय एकता पर निबंध (Rashtriya Ekta Essay In Hindi) :

भूमिका : भारत एक विशाल देश है। इसकी भौगोलिक और प्राकृतिक स्थिति ऐसी है कि इस एक देश में अनेक देशों की कल्पना को सहज रूप से किया जा सकता है। इस देश में 6 ऋतुओं का एक अद्भुत क्रम है। देश में एक ही समय में एक क्षेत्र में गर्मी का वतावरण होता है तो एक तरफ सर्दी का वातावरण होता है। एक क्षेत्र में हरियाली होती है तो दुसरे क्षेत्र में दूर-दूर तक रेती के अलावा और कुछ दिखाई नहीं देता है।

जनसंख्या की दृष्टि से भारत का संसार में दूसरा स्थान है। भारत में हिन्दू , सिक्ख , ईसाई , मुसलमान , पारसी , बौद्ध धर्म आदि सभी धर्मों और संप्रदायों के लोग रहते हैं। सभी लोग भारत को राष्ट्र कहने में गौरव का अनुभव करते हैं। भारत देश किसी भी एक धर्म , जाति , वंश या संप्रदाय का देश नहीं है। भारत में आचार-विचार , रहन-सहन , भाषा और धर्म आदि सभी विभिन्नताओं का होना स्वभाविक है।

इन विभिन्नताओं में अनेकता में एकता के दर्शन भारत की सर्वप्रमुख विशेषता है। इसी विशेषता और समन्वय की भावना के कारण भारतीय संस्कृति अजर-अमर बन गयी है। जब किसी उद्देश्य को पूरा करने के लिए बहुत से लोग मिलकर काम करते हैं तो उसे संगठन कहते हैं। संगठन ही सभी शक्तियों की जड़ होता है। एकता एक महान शक्ति है इसी के बल पर अनेक राष्ट्रों का निर्माण हुआ था। सभी लोगों के पूजा स्थल व उपासना विधि अलग होते हुए भी सभी लोग एक ही ईश्वर की पूजा करते हैं।

सभी में एक भारतीयता की भावना व राष्ट्रीय एकता है। इसी तरह भारत कश्मीर से कन्याकुमारी और असम से काठियावाड़ तक एक व्यापक अखण्ड भारत है जिसके पश्चिम में पाकिस्तान, पूर्व में बर्मा , बांग्लादेश , उत्तर में नगाधिराज हिमालय व दक्षिण में हिन्द महासागर है। उक्त सीमाओं से घिरा हुआ यह देश हमारा भारत है। इसका कहीं से भी कोई खण्ड अलग न हो , इसको अखण्ड भारत कहते हैं। देश की एकता व अखंडता हमेशा बनी रहे यह सभी भारतवासियों का कर्तव्य होता है।

एकता को खतरा : अंग्रेजों ने भारत में एकछत्र राज्य करने के लिए सबसे पहले यहाँ की एकता पर प्रहार किया क्योंकि कोई भी शासक अपना प्रभुत्व जमाने के लिए जनता में एकता नहीं चाहता है। इसलिए अंग्रेजों ने फूट डालो राज करो की प्रबल नीति अपनाई जिसके कारण वे सैंकड़ों वर्षों तक भारत के सशक्त शासक बने रहे।

जिसका परिणाम यह हुआ कि भारत में धर्मों व जातियों तथा वर्गों के आधार पर कलह , दंगे भडकते रहते हैं। वे कभी किसी एक धर्म के लोगों को संरक्षण देते और दूसरों को तंग करते तो कभी दुसरे धर्मों के लोगों को प्रोत्साहित करते थे जिससे जनता परस्पर लडती रहे। फिर भारत के स्वतंत्र होने पर अंग्रेज भारत की अखंडता समाप्त करके ही गये थे।

भारत का विभाजन होना अंग्रेजों की नीति थी। इस तरह से उन्होंने हमारी एकता और अखण्डता को तोडा था। आज के समय में भारत में समय-समय पर साम्प्रदायिक दंगे होते रहते हैं। एक धर्म के लोग दूसरे धर्म के लोगों से लड़ते रहते हैं। देश में कई जगहों पर वर्ग संघर्ष छिड़ा रहता है। स्वर्ण और हरिजनों के कलह भी देखने को मिलते हैं।

आज के समय में आरक्षण और अनारक्षण पर लड़ाई-झगड़ा चलता रहता है। भाषा के आधार पर भी कई जगहों पर झगड़ा होता रहता है। दक्षिण में हिंदी के विरोध में सरकारी सम्पत्ति को क्षति पहुंचाई जाती है। उत्तर भारत में अंग्रेजी का विरोध प्रबल है। कहीं पर उर्दू का विरोध हुआ था तो कहीं पर हिंदी का विरोध हुआ।

इस तरह से ही राष्ट्रिय एकता खतरे में पड़ी थी। राष्ट्रिय अखण्डता भी विगत दशकों से संकट में है। कुछ आतंकवादी अलग जगह चाहते हैं। कश्मीर के आतंकवादी अलग कश्मीर की मांग कर रहे हैं। कुछ समय से अब पुरे भारत में हिन्दू आतंकवाद ने भी अपने पैर फैलाकर हमारी सरकार को परेशान कर दिया है। इस तरह कतिपय स्वार्थी तत्व भारत को छिन्न-छिन्न कर देना चाहते हैं।

भेदभाव के कारण : देश और राष्ट्र में अंतर होता है। देश का संबंध सीमाओं से होता है क्योंकि देश एक निश्चित सीमा से घिरा हुआ होता है। राष्ट्र का संबंध भावनाओं से होता है क्योंकि एक राष्ट्र का निर्माण देश के लोगों की भावनाओं से होता है। जब तक किसी देश के वासियों की विचारधारा एक नहीं होती है वह राष्ट्र कहलाने का हकदार नहीं होता है।

हमारे यहाँ आज तक शासकों ने अपने स्वार्थों की वजह से इस देश को राष्ट्र नहीं बनने दिया था। आज राजनैतिक नेताओं ने अपनी दलगत राजनीति की वजह से देश को राष्ट्र बनाने में बाधा पहुंचाई है। वोट प्राप्त करने के लिए सारे देश को धर्मों , जातियों , भाषाओँ की संकीर्ण धाराओं में बाँट दिया है।

अभी देश के नेताओं , अधिकारीयों व जनता में राष्ट्रिय भावना जाग्रत नहीं हुई है। वे पहले कोई और होते हैं और फिर बाद में भारतीय होते हैं। जब कोई भी व्यक्ति सत्ता में आता है तो वह अपने वहाँ के वर्ग का समर्थन करते हुए दिखाई देता है। वोटों की राजनीति सभी को लड़ाने का काम करती है।

इसी कारण से नेताओं की तुष्टिकरण की नीति देश को राष्ट्र बनने से रोक रही है। आज देश के लोग ही संविधान के प्रति जल रहे हैं। कहीं-कहीं पर राष्ट्र ध्वज को जलाने और उसे फाड़ने के समाचारों को भी सुना जाता है। जब राष्ट्रिय गीत गया जाता है उस समय खड़े न रहना एक साधारण सी बात बन गई है। इस सभी गलतियों के लिए दंडों को निर्धारित किया गया है लेकिन किसी को भी दंड नहीं दिया जाता है।

यही है नेताओं की तुष्टिकरण की नीति। इसकी वजह से देशद्रोहियों को अक्सर बढ़ावा मिलता है। आज के समय में देश में देश-द्रोहियों , राजनेताओं को बहुत अधिक प्रोत्साहन मिलता है। इसी वजह से सभी में राष्ट्रिय भावना का आभाव बढ़ता ही जा रहा है जिसकी वजह से देश की एकता और अखंडता खतरे में पड़ रही है। देश में भ्रष्टाचार , अनाचार , बेईमानी , धोखाधड़ी उच्च स्तर पर छाए हुए है।

भारत में उत्पन्न समस्याएँ : स्वतंत्रता प्राप्त होने के बाद से ही देश में अनेक समस्याएं उत्पन्न होती रही है। इन समस्या में साम्प्रदायिक की समस्या सबसे प्रमुख समस्या है। हमारे देश का विभाजन भी इसी समस्या की वजह से हुआ था। कुछ स्वार्थी लोगों ने हमारे देश में साम्प्रदायिकता की भावना को फैला दिया था जिसकी वजह से हम आज तक उससे मुक्त नहीं हो पाए हैं। हमें अपनी स्वतंत्रता की रक्षा के लिए और प्रगति के लिए राष्ट्रिय एकता पर विशेष ध्यान देना चाहिए। हर वर्ग में एकता के बिना कोई भी देश उन्नति नहीं कर सकता है। वर्तमान समय के देश में अनुशासन और आपसी वातावरण की बहुत जरूरत है।

दूषित राजनीति : कुछ सालों से हमारे देश का वातावरण दूषित राजनीति की वजह से विषैला होता जा रहा है। धर्म में अंधे होने के कारण लोग आपस में झगड़ रहे हैं। अपने-अपने स्वार्थों की पूर्ति में लगे हुए लोग आपसी प्रेम को निरंतर भूलते जा रहे हैं। स्वार्थ की भावनाओं , प्रांतीयता एवं भाषावाद की वजह से राष्ट्रिय भावना बहुत प्रभावित हो रही है।

हमारे देश के लोगों में संकीर्णता की भावना पनप रही है और व्यापक दृष्टिकोण लुप्त होता जा रहा है। इसी वजह से विश्व-बन्धुत्व की भावना अपने परिवार तक ही सीमित होकर रह गई है। अगर कोई कोशिश भी करता है तो वह प्रदेश स्तर तक जाकर ही असफल हो जाता है। इसी के फलस्वरूप साम्प्रदायिक ताकतें मजबूत होती जा रही हैं।

असमानताओं में समानता : जम्मू-कश्मीर , असम आदि प्रदेशों में नर-संहार के किस्से सुनने को मिलते हैं। इन सब के लिए स्वार्थी नेता जिम्मेदार हैं , जो अपना उल्लू सीधा करने के लिए देश को दांव पर लगा रहे हैं। अनेक प्रकार की विषमताओं के होते हुए भी जब हम राष्ट्रिय एकता के बारे में सोचते हैं तो हमें पता चलता है कि इस राष्ट्रिय एकता की वजह से धार्मिक भावना , आध्यात्मिकता , समन्वय की भावना , दार्शनिक दृष्टिकोण , साहित्य , संगीत और नृत्य आदि ऐसे अनेक तत्व हैं जो देश को एकता के सूत्र में बांधे हुए हैं।

सिर्फ जनता को एकजुट होकर कोशिश करने की जरूरत है। आज के समय में राष्ट्रिय एकता के लिए व्यक्तिगत और सार्वजिनक संपत्ति की सुरक्षा का प्रबंध करना जरूरी है। शत्रुपक्ष पर कठोर दंडनीति लागू की जानी चाहिए। पुलिस की गतिविधियों पर भी नियंत्रण रखना चाहिए।

आज के समय में सभी संगठनों को मिलकर राष्ट्रिय एकता के लिए कोशिश करनी चाहिए। हमारी स्वतंत्रता राष्ट्रिय एकता पर निर्भर करती है। इसके अभाव की वजह से स्वतंत्रता असंभव है। हमारी स्वतंत्रता के लिए हमें पूरी कोशिश करनी चाहिए , हमें एकजुट होकर राष्ट्रिय एकता की रक्षा करनी चाहिए , जिससे हम और हमारे वंशज खुली हवा में साँस ले सकें।

भारतीय संस्कृति और सभ्यता : भारतीय संस्कृति भावात्मक एकता का आधार है लेकिन बहुत बार राजनीतिक स्वार्थ , अस्पर्शयता , साम्प्रदायिक तनाव , भाषा भेद , क्षेत्रीय मोह तथा जातिवाद आदि की संकीर्णता की भावनाओं के प्रबल होने पर हमारी भावात्मक एकता को खतरा पैदा हो जाता है।

परिणामस्वरूप अदूरदर्शी , मंद बुद्धि , धर्मांध लोग गुमराह होकर अपने छोटे-छोटे स्वार्थों की पूर्ति के लिए अलग-अलग रास्ते की मांग करने लगते हैं। राजनीतिक दलबंदी का सहयोग पाकर ये स्वार्थ कई बार भयंकर रूप धारण कर लेते हैं। राष्ट्रिय एकता के लिए भावात्मक एकता बहुत जरूरी होती है।

भावात्मक एकता बनाये रखने के लिए भारत सरकार हमेशा से ही प्रयत्नशील रही है। हमारे संविधान में ही धर्म निरपेक्ष , समाजवादी समाज की परिकल्पना की गयी है। धार्मिक और सामाजिक क्षेत्र में भी ऐसे अनेक संगठन बनाये गए हैं जो राष्ट्रिय एकता के लिए प्रयत्नशील रहते हैं। सच्चा साहित्य भी प्रथक्तावादी प्रवृत्तियों का विरोधी रहा है।

अनेकता में एकता : वर्तमान समय में भावात्मक एकता के लिए सरकार को चाहिए कि वह राष्ट्रिय शिक्षा की व्यवस्था करें। चल-चित्र , दूरदर्शन और रेडियो भी राष्ट्रिय एकता में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह कर सकते हैं। सामूहिक खेल-कूद , सांस्कृतिक कार्यक्रम तथा धार्मिक और शैक्षिक यात्राएं भी राष्ट्रिय और भावात्मक एकता में सहायक हो सकती है।

ह्रदय परिवर्तन और सद्भावना वातावरण बनाने की बहुत अधिक जरूरत है। धार्मिक संकीर्णता और साम्प्रदायिक मोह राष्ट्रिय एकता में सबसे बाधक तत्व हैं। धर्म , ज्ञान और विश्वास में नहीं , वह तो कर्म और आचरण में बस्ता है। वास्तव में पूछा जाये तो सभी धर्म एक हैं , केवल पूजा विधियाँ भिन्न-भिन्न हैं।

इसी भिन्नता की वजह से एक ही धर्म के भिन्न-भिन्न रूप होते हैं। प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी ने भी देशवासियों को संकीर्णता से ऊपर उठकर धर्म के व्यापक रूप की प्रेरणा देते हुए कहा था कि हे मेरे देश के लोगों ! धर्म को एकवचन में ही रहने दो। हमारे देश में लोग धर्म के नाम पर कुछ लोग स्वार्थों की पूर्ति करने के लिए अनेक लोगों की शक्ति का दुरूपयोग करके राष्ट्रिय भावना का हनन कर रहे हैं।

उपसंहार : किसी भी देश की रक्षा और प्रगति देश की एकता और अखंडता पर निर्भर करती है। हमारे देश में जब तक उच्च स्तर पर राष्ट्रिय भावना नहीं आती है तब तक राष्ट्रिय एकता भी नहीं आती है। भारत देश को सबल बनाने के लिए साम्प्रदायिक सद्भाव और सौहार्द बनाये रखने की जरूरत है।

हमें इस बात को हमेशा याद रखना चाहिए कि प्रेम से प्रेम और नफरत से नफरत उत्पन्न होती है। हमारा रास्ता प्रेम और अहिंसा का होना चाहिए। नफरत और हिंसा सब तरह की बुराईयों की जड़ होती है। संतों , महात्माओं और धर्म गुरुओं ने भी यह संदेश दिया है कि किसी में भी छोटे -बड़े का भेदभाव नहीं होता है।

सभी धर्मों में सत्य , प्रेम , समता , सदाचार और नैतिकता का पाठ विस्मरण होता है। प्रार्थना और आराधना की पद्धति अलग हो सकती है लेकिन उसकी उनके लक्ष्य हमेशा एक ही होते हैं। मन्दिर , मस्जिद , गुरुद्वारे और चर्च सभी धार्मिक स्थल एक ही संदेश देते हैं।

यह ख़ुशी की बात है कि हमारा देश राष्ट्रिय एकता के लिए राष्ट्र की आय का तीन प्रतिशत व्यय कर रहा है और हमारी सरकार भी इसके लिए अनेक प्रयास कर रही है। हम भारतवासियों से प्रार्थना करते हैं कि वे भी अपने पूर्वजों की तरह एकता के सूत्र में बंध जाएँ क्योंकि यही सच्चे अर्थों में देश की उन्नति की आपकी उन्नति होती है।

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स्वच्छता पर निबंध-Swachata Par Nibandh

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स्वच्छता पर निबंध (Swachata Par Nibandh) :

भूमिका : स्वच्छता का अर्थ होता है हमारे शरीर , मन और हमारे चारों तरफ की चीजों को साफ करना। प्रारम्भिक जीवन से ही खेती की जानी चाहिए। स्वच्छता मानव समुदाय का एक आवश्यक गुण होता है। यह विभिन्न प्रकार की बिमारियों से बचाव के सरलतम उपायों में से एक सबसे प्रमुख उपाय है।

यह जीवन की आधारशिला होती है। इसमें मानव की गरिमा , शालीनता और आस्तिकता के दर्शन होते हैं। स्वच्छता के द्वारा मनुष्य की सात्विक वृत्ति को बढ़ावा मिला है। रोजमर्रा के जीवन में हमें अपने बच्चों को साफ-सफाई के महत्व और इसके उद्देश्यों को भी समझाना चाहिए।

स्वच्छता का महत्व : मानसिक , शारीरिक , बौद्धिक और सामाजिक हर तरीके से स्वस्थ रहने के लिए स्वच्छता बहुत जरूरी होती है। स्वच्छता गंदगी को दूर रखने के अभ्यस्त कामों को संदर्भित करता है जो व्यक्तिगत और पर्यावर्णीय स्वच्छता प्रथाओं के बाद अच्छे स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए होता है।

यह साफ होने की स्थिति को संदर्भित करता है। यह कार्य बाध्यकारी नहीं होता है। स्वच्छता को मनुष्य को स्वंय करना चाहिए। हमारी भारतीय संस्कृति में भी वर्षों से यह मान्यता है कि जहाँ पर सफाई होती है वहाँ पर लक्ष्मी का वास होता है। हमारे भारत के धर्मग्रन्थों में साफ-सफाई और स्वच्छता के बारे में बहुत से निर्देश दिए गए हैं।

हमारे भारत देश की वास्तविकता यह है कि यहाँ पर अन्य स्थानों की अपेक्षा मन्दिरों में सबसे अधिक गंदगी पाई जाती है। धार्मिक स्थलों पर विभिन्न आयोजनों पर लाखों श्रद्धालु पहुंचते लेकिन साथ ही स्वच्छता के महत्व से अनजान होकर वहाँ पर बहुत बड़ी मात्रा में गंदगी फैलाते हैं। स्वस्थ मन , शरीर और आत्मा के लिए स्वच्छता बहुत ही महत्वपूर्ण होती है।

भारत जैसे गर्म देश में स्वास्थ्य के लिए स्नान बहुत आवश्यक होता है। स्वच्छता में आचरण की शुद्धता बहुत जरूरी होती है। शुद्ध आचरण से मनुष्य का चेहरा तेजोमय रहता है। सभी लोग उस व्यक्ति को आदर की दृष्टि से देखते हैं। उनके सामने मनुष्य खुद ही अपना सिर झुका देता है। उस व्यक्ति के प्रति लोगों में अत्यंत श्रद्धा होती है। स्वास्थ्य रक्षा के लिए स्वच्छता बहुत अनिवार्य होती है। जब मनुष्य स्वच्छ रहता है तो उसमें एक तरह की स्फूर्ति और प्रसन्नता का संचरण होता है।

स्वच्छता की आवश्यकता : साफ-सुथरा रहना मनुष्य का प्राकृतिक गुण है। वह अपने और आस-पास के क्षेत्र को साफ रखना चाहता है। वह अपने कार्यस्थल पर गंदगी नहीं फैलने देता। अगर वह सफाई नहीं रखेगा तो साँपों , बिच्छुओं , मक्खियों , मच्छरों तथा अन्य हानिकारक कीड़े-मकोड़ों आपके घर में प्रवेश करेंगें जिससे अनेक प्रकार के रोग और विषैले कीटाणु घर में चारों तरफ फ़ैल जायेंगे।

बहुत से लोगों का यह कहना होता है कि यह काम सरकारी एजंसियों का होता है इसलिए खुद कुछ न करके सारी जिम्मेदारी सरकार पर छोड़ देती है जिसकी वजह से लोग अपने कर्तव्य के प्रति जागरूक नहीं हो पाते हैं और चारों तरफ गंदगी फैला देते हैं। जिसकी वजह से अनेक प्रकार के रोग और बीमारियाँ पैदा हो जाती हैं।

जब तक स्वच्छता के महत्व को नहीं समझेंगे तब तक हम अपने आप को सभ्य और सुसंस्कृत नहीं कह सकते हैं। आज के समय में 60 फीसदी से ज्यादा लोग खुले में शौच करने जैसी बुरी आदतों की वजह से बहुत सी जानलेवा बिमारियों को उत्पन्न कर रहे हैं। अच्छे स्वास्थ्य के लिए शरीर की सफाई बहुत आवश्यक होती है। ऐसा माना जाता है कि गंदगी और बीमारी हमेशा एक साथ शरीर में जाते हैं। शरीर को स्वस्थ और बिमारियों से रहित रखने के लिए स्वच्छता बहुत ही आवश्यक होती है।

स्वच्छता के उपाय : अगर हम अपने घर और आस-पास के क्षेत्र में साफ-सफाई रखेंगें तो हम बहुत से रोगों के कीटाणुओं को नष्ट कर देंगे। सफाई रखकर मनुष्य अपने चित्त की प्रसन्नता प्राप्त कर सकता है। सफाई मनुष्य को अनेक प्रकार से रोगों से बचाती है। साफ-सफाई के माध्यम से मनुष्य अपने आस-पास के वातावरण को दूषित होने से बचा सकता है।

कुछ लोग साफ-सफाई को बहुत कम महत्व देते हैं और ऐसे स्थानों पर रहते हैं जहाँ पर आस-पास कूड़ा कचरा फैला होता है। उन्हें अपने व्यवहार में परिवर्तन करना चाहिए और आस-पास के क्षेत्र को साफ और स्वच्छ रखना चाहिए। स्वच्छता का संबंध खान-पान और वेश-भूषा से भी होता है।

रसोई की वस्तुओं और खाने-पीने की वस्तुओं का विशेष रूप से ध्यान रखना बहुत जरूरी होता है। बाजार से लाए जाने वाले फल , सब्जी और अनाज को अच्छी तरह से धोकर प्रयोग में लाना चाहिए। पीने के पानी को हमेशा साफ बर्तन में और ढककर रखना चाहिए। गंदे कपड़े कीटाणु युक्त होते हैं इसलिए हमें हमेशा कीटाणु रहित और साफ-सुथरे कपड़ों का प्रयोग करना चाहिए।

अपने शरीर की स्वच्छता का ध्यान रखना भी बहुत जरूरी होता है। प्रतिदिन स्नान करना चाहिए और अपने शरीर की गंदगी को साफ करना चाहिए। सभी को सप्ताह में कम से कम दो दिन साबुन से स्नान करना चाहिए ताकि शरीर में छिपे कीटाणुओं को नष्ट किया जा सके। नाखूनों को बढने नहीं देना चाहिए क्योंकि नाखूनों में होने वाली गंदगी से अनेक प्रकार की बीमारियाँ फैलती हैं।

जिस प्रकार से घर की सफाई में घर के सदस्यों की भूमिका होती है उसी प्रकार बाहर की सफाई में समाज की बहुत भूमिका होती है। बहुत से लोग घर की गंदगी को घर से बाहर डाल देते हैं उन्हें घर की गंदगी का निष्पादन ठीक प्रकार से करना चाहिए। आत्मिक उन्नति के लिए सभी निवास स्थानों के वातावरण को साफ और स्वच्छ रखना चाहिए।

राष्ट्रपति जी की तरह हमें भी स्वच्छता पर पूरा जोर देना चाहिए। स्वच्छता में बाधक बनने वाले तत्वों को पहचान कर उनके प्रसार पर रोक लगानी चाहिए। स्वच्छता न होने के दुष्प्रभाव सभी समुदायों पर पड़ते हैं। ये सभी समुदाय बिमारियों के प्रकोप एवं खराब स्वास्थ्य के रूप में परिलक्षित होते हैं।

देश और समाज को स्वच्छ और स्वस्थ बनाए रखने के लिए अनेक साधन और उपाय हैं। स्वच्छता के लिए बहुत सी सरकारी , गैर सरकारी संस्थाओं द्वारा यह संचालित हैं और बहुत से संचालन व्यक्तिगत रूप से निजी स्तर पर होते हैं। जो नई सरकार आई है उसकी मुख्य प्राथमिकता भारत को स्वच्छ करने की है। गंदे भोजन से हमेशा दूर रहना चाहिए।

अस्वच्छता से हानियाँ : जब लोग ऐसे स्थानों पर रहते हैं जहाँ पर चारों तरफ कूड़ा-कचरा फैला होता है और नालियों में गंदा जल और सडती हुई वस्तुएं पड़ी रहती हैं जिसकी वजह से उस क्षेत्र में बहुत बदबू उत्पन्न हो जाती है , वहां से गुजरना भी बहुत मुश्किल हो जाता है ऐसे स्थानों पर लोग अनेक प्रकार की संक्रामक बिमारियों से ग्रस्त हो जाते हैं।

वहां की गंदगी से जल , थल , वायु आदि की स्वच्छता पर बहुत ही विपरीत प्रभाव पड़ता है। अगर हम बाजार के मैले और अधिक कीटाणुयुक्त भोजन को खाते हैं तो हमारे शरीर में बहुत से रोग उत्पन्न हो जाते हैं। जब गंदगी को घर से बाहर फेंक दिया जाता है तो वह फिर से घर में चली जाती है।

इससे घर के आस-पास का वातावरण दूषित हो जाता है। लेकिन आधुनिक सभ्यता और हानिकारक उद्योगों के फैलाव की वजह से पूरी दुनिया में प्रदुषण का संकट खड़ा हो जायेगा। भारतिय कहीं भी कूड़ा-कचरा फेंकने की आदत से मजबूर होते हैं और चारों ओर साफ-सफाई के लिए गंभीर नहीं है। अगर शरीर की स्वच्छता नहीं रखी जाएगी तो मनुष्य को बहुत जल्दी त्वचा और अन्य प्रकार के त्वचा रोग हो जाते हैं।

स्वच्छता के लिए नारे : स्वच्छता के लिए बहुत से नारों का प्रयोग किया जाता है।

1. हम सभी का एक ही नारा , साफ सुथरा हो देश हमारा।
2. स्वच्छता का दीप जलाएँगे , चरों ओर उजियाला फैलाएँगे।
3. सफाई अपनाएं , बीमारी हटाएँ।
4. हम सब ने अब ये ठाना हैं , भारत स्वच्छ बनाना है।
5. करें हम ऐसा काम , बनी रहेगी देश की शान।
6. स्वच्छ भारत स्वस्थ भारत।
7. साफ सुथरा मेरा मन , देश मेरा सुंदर हो , प्यार फैले सडकों पर , कचरा डिब्बे के अंदर हो।
8. सभी रोगों की एक दवाई घर में रखो साफ सफाई।
9. मैं शपथ लेता हूँ कि मैं स्वंय स्वच्छता के प्रति सजग रहूँगा और उसके लिए समय दूंगा , हर साल 100 घंटे यानी हर सप्ताह दो घंटे श्रम।
10. प्रदुषण से पीड़ित लगते गाँव-शहर बेजान , स्वच्छता से होगी अब गाँव-शहर की पहचान।
11. गाँव-शहरों में लग गए साफ-सफाई के काम , स्वच्छता के लिए होगा नगर का रोशन नाम।
12. गंदगी न फैलाओ बताओ सबको साफ-सफाई के गुर , साफ-सफाई करते रहो नहीं तो हो जाओगे रोने को मजबूर।
13. रखे स्वच्छता यही स्वस्थ्यता का आधार है , सुंदर गाँव-शहर बनने के यही तो आसार है।
14. कचरों से भरा हो यदि रास्ता हमारा , सफाई से सुंदर बनेगा नगर न्यारा।
15. स्वच्छता सुन्दरता के लिए साफ-सफाई करते रहो , नगर हो प्रदुषण से मुक्त कुछ ऐसा काम करते रहो।
16. साफ-सफाई के लिए हुआ ये कैसा अजब कमाल , स्वच्छता के लिए हटाया सबने प्रदुषण का जाल।
17. आओ मिल जुलकर स्वच्छता अभियान के गीत गाए , स्वच्छता अभियान हो सफल मिलकर खुशिया मनाए।
18. आइये साफ-सफाई करके दिखाए , नगर को स्वच्छ और सुंदर बनाए।
19. स्वच्छता होगी तभी तो कुछ बात होगी , स्वच्छ नगरों में यही गिनती खास होगी।
20. कचरा गाँव-शहर फ़ैलाने से मच्छर सुनाएँगे राग , बीमारियाँ पनपेंगी , लग जायेगा प्रदुषण का दाग।
21. स्वच्छता अभियान से जागरूकता लाए , साफ-सफाई करने में मिलकर हाथ बटाए।
22. सफाई करने से नगर में उजियारा छाया , कचरे से मुक्त नगर सबके मन को भाया।

उपसंहार : देश में स्वच्छता रखना केवल सरकार का ही नहीं अपितु सभी का कर्तव्य होता है। देशवासियों को मिलकर स्वच्छता के प्रति अपने कर्तव्य को निभाना चाहिए। समाज के सभी सदस्यों को आस-पास की सफाई में अपना योगदान देना चाहिए। नदियों , तालाबों , झीलों और झरनों के पानी में गंदगी को जाने से रोकने के लिए सभी को अपना योगदान देना चाहिए।

सरकार को भी वायु में मिलने वाले तत्वों की प्रक्रिया पर रोक लगानी चाहिए। हमें अधिक-से-अधिक पेड़ लगाकर वायु को शुद्ध करना चाहिए। मनुष्य में स्वच्छता का विचार उत्पन्न करने के लिए शिक्षा का प्रचार करना अनिवार्य होता है। शिक्षा पाने से ही मनुष्य खुद स्वच्छता की ओर प्रवृत हो जाता है। स्वच्छता उत्तम स्वास्थ्य का मूल होता है।

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स्वच्छ भारत अभियान पर निबंध (Swachh Bharat Abhiyan Essay In Hindi)

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स्वच्छ भारत अभियान पर निबंध (Essay On Swachh Bharat Abhiyan In Hindi) :

भूमिका : स्वच्छ भारत अभियान को सरकार द्वारा देश को स्वच्छता के प्रतिक के रूप में शुरू किया गया है। स्वच्छ भारत का सपना महात्मा गाँधी जी ने देखा था। अपने सपने के सन्दर्भ में गाँधी जे ने कहा कि स्वच्छता स्वतंत्रता से ज्यादा जरूरी है और स्वतंत्रता ही स्वस्थ और शांतिपूर्ण जीवन का एक अनिवार्य भाग है। महात्मा गाँधी जी अपने समय में देश की गरीबी और गंदगी से अच्छी तरह अवगत थे इसीलिए उन्होंने अपने सपने को पूरा करने के लिए बहुत से प्रयास किये लेकिन वो उसमें सफल न हो सके।

अगर आंकड़ों की बात की जाये तो बहुत ही कम लोग ऐसे हैं जिनके घरों में शौचालय हैं। इसलिए सरकार गंभीर रूप से सभी को महात्मा गाँधी जी के सपने के साथ जोड़ने का प्रयास कर रही है। इस अभियान को सफल बनाने के लिए सरकार ने सभी लोगों से निवेदन किया वे अपने आस-पास की और दूसरी जगहों की सफाई के लिए साल में केवल 100 घंटों के लिए अपना योगदान दे।

इसको लागू करने के लिए बहुत सारी नीतियाँ और प्रिक्रिया हैं। स्वच्छ भारत अभियान के जरिए भारत को स्वच्छ बनाना हर भारतीय का सपना होता है। सभी के जीवन में स्वच्छता का बहुत अधिक महत्व होता है। अगर हम स्वच्छ और सुंदर माहौल में न रहें तो हमें गंदगी से अनेक प्रकार की बिमारियों और परेशानियों का सामना करना पड़ता है जिसके लिए हम खुद जिम्मेदार होते हैं। हम सभी यही सोचते हैं कि हम अपने घर और आस पास की सफाई रखें लेकिन सफाई करने के बाद कूड़े-कचरे को इधर-उधर फेंक देते हैं।

स्वच्छता अभियान : स्वच्छ भारत अभियान एक राष्ट्रिय स्वच्छता मुहिम है जो भारत सरकार द्वारा स्थापित किया गया है। स्वच्छ भारत अभियान के तहत 4041 सांविधिक नगरों के सडक , पैदल मार्ग और अन्य कई स्थान आते हैं। यह एक बहुत ही बड़ा आन्दोलन है जिसके तहत भारत को 2019 तक पूरी तरह से स्वच्छ बनाना है।

भारत में स्वस्थ और सुखी जीवन के लिए महात्मा गाँधी जी के स्वच्छ भारत के सपने को आगे बढ़ाया गया है। स्वच्छ भारत अभियान को 2 अक्टूबर 2014 को महात्मा गाँधी जी के जन्म दिवस के शुभ अवसर पर शुरू किया गया है और 2 अक्टूबर 2019 तक पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है।

भारत सरकार द्वारा शहरी विकास , पेयजल और स्वच्छता मंत्रालय के तहत इस अभियान को ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में लागु किया गया है। इस मिशन का पहला स्वच्छता अभियान भारतीय प्रधानमंत्री द्वारा पहले ही शुरू किया जा चुका था। स्वच्छ भारत अभियान के द्वारा सफाई व्यवस्था की समस्या का समाधान निकालना साथ में सभी को स्वच्छता की सुविधा के निर्माण द्वारा पूरे भारत में मल प्रबंधन करना है।

स्वच्छता अभियान की आवश्यकता : अपने उद्देश्य की प्राप्ति तक भारत में स्वच्छता अभियान की कार्यवाई लगातार चलती रहनी चाहिए। भौतिक , मानसिक , सामाजिक , बौद्धिक कल्याण के लिए भारत के लोगों में इसका एहसास होना बहुत ही जरूरी है। यह भारत की सामाजिक स्थिति को बढ़ावा देने के लिए है जो हर तरफ स्वच्छता लाने से शुरू किया जा सकता है।

भारत के प्रत्येक घर में शौचालय होना बहुत ही जरूरी होता है और खुले में शौच करने की प्रवृति को बंद किया जाना भी बहुत जरूरी है। अस्वास्थ्यकर शौचालयों को पानी से बहने वाले शौचालयों में बदलने की जरूरत है। हाथ से की जाने वाली सफाई व्यवस्था को खत्म किया जाना चाहिए।

नगर के कचरे का पुनर्चक्रण और दुबारा इस्तेमाल , सुरक्षित समापन , वैज्ञानिक तरीके से मल प्रबंधन को लागू करना चाहिए। भारत के लोगों की खुद के स्वास्थ्य के प्रति सोच और स्वाभाव में परिवर्तन लाना और स्वास्थ्यकर साफ-सफाई की प्रक्रियों का पालन करना चाहिए।

ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोगों में वैश्विक जागरूकता का निर्माण करने के लिए और सामान्य लोगों को स्वास्थ्य से जोड़ने के लिए इसे चलाना बहुत जरूरी है। इसमें काम करने वाले लोगों के द्वारा स्थानीय स्तर पर कचरे के निष्पादन का नियंत्रण करना और खाका तैयार करने में मदद करना जरूरी है।

पुरे भारत में साफ-सफाई की सुविधा को विकसित करने के लिए निजी क्षेत्रों की हिस्सेदारी बढ़ाना जरूरी है। भारत को स्वच्छ और हरियाली युक्त बनाने के यह लिए बहुत आवश्यक है। ग्रामीण क्षेत्रों में जीवन की गुणवत्ता में सुधार लाने के लिए बहुत ही जरूरी है।

स्वास्थ्य शिक्षा कार्यक्रमों के माध्यम से समुदायों और पंचायती राज संस्थानों को लगातार साफ-सफाई के प्रति जागरूक करने के लिए बहुत ही आवश्यक है। वास्तव में ही महात्मा गाँधी जी के सपने को सच करने के लिए यह सब करना बहुत ही जरूरी है।

शहरी क्षेत्रों में स्वच्छ भारत अभियान : शहरी क्षेत्रों में स्वच्छ भारत अभियान का लक्ष्य हर नगर में ठोस कचरा प्रबंधन सहित लगभग सभी 1.04 करोड़ घरों , 2.5 लाख सार्वजनिक शौचालयों , 2.4 लाख सामुदायिक शौचालय उपलब्ध कराना है। सामुदायिक शौचालयों के निर्माण की योजना को रिहायशी इलाकों में किया गया है जहाँ पर व्यक्तिगत घरेलू शौचालय की उपलब्धता मुश्किल है।

इसी तरह से सार्वजनिक शौचालयों की प्राधिकृत स्थानों जैसे बीएस अड्डों , रेलवे स्टेशन , बाजार आदि जगहों पर उपलब्धता करायी गई है। शहरी क्षेत्रों में स्वच्छता अभियान को पांच वर्षों के अंदर पूरा करने की योजना है। शहरी क्षेत्रों में खुले में शौच की प्रवृति को जड़ से हटाना , अस्वास्थ्यकर शौचालयों को पानी से बहाने वाले शौचालयों में परिवर्तित करना , खुले हाथों से साफ-सफाई की प्रवृति को हटाना , लोगों की सोच में परिवर्तन लाना और ठोस कचरे का प्रबंधन करना आदि लक्ष्य रखे गए हैं।

ग्रामीण क्षेत्रों में स्वच्छ भारत अभियान : ग्रामीण क्षेत्रों में स्वच्छ भारत अभियान एक ऐसा अभियान है जिससे ग्रामीण भारत में स्वच्छता कार्यक्रम को अमल में लाना है। ग्रामीण क्षेत्रों को स्वच्छ बनाने के लिए इससे पहले भारतीय सरकार द्वारा निर्मल भारत अभियान की स्थापना की गई थी लेकिन अब इस समय इसका पुनर्गठन स्वच्छ भारत अभियान के रूप में किया गया है।

ग्रामीण क्षेत्रों में स्वच्छ भारत अभियान का उद्देश्य ग्रामीणों को खुले में शौच करने की मजबूरी से रोकना , इस उद्देश्य को पूरा करने के लिए सरकार ने 11 करोड़ 11 लाख शौचालयों के निर्माण के लिए एक लाख करोड़ रुपए की राशी को खर्च करने की योजना बनाई है।

सरकार ने कचरे को जैविक खाद और इस्तेमाल करने लायक उर्जा में परिवर्तित करने की योजना भी है। इससे ग्राम पंचायत , जिला परिषद , पंचायत समिति की बहुत अच्छी भागीदारी है। ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के जीवन स्तर में सुधार करने के लिए इसे चलाया गया है।

2019 तक स्वच्छ भारत के लक्ष्य को पूरा करने के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में साफ-सफाई के लिए लोगों को प्रेरित करना है। साफ-सफाई की जरूरी सुविधाओं ओ लगातार उपलब्ध करने के लिए पंचायती राज संस्थान , समुदाय आदि को प्रेरित करते रहना चाहिए। ग्रामीण क्षेत्रों में लगातार साफ-सफाई और पारिस्थितिक सुरक्षा को प्रोत्साहित करना है।

स्वच्छ भारत स्वच्छ विद्यालय अभियान : स्वच्छ भारत अभियान केन्द्रिय मानव संसाधन मंत्रालय द्वारा चलाया गया है और इसका उद्देश्य भी स्कूलों में स्वच्छता लाना है। इस अभियान के तहत 25 सितम्बर 2014 से 31 अक्टूबर 2014 तक केन्द्रिय विद्यालय और नवोदय विद्यालय संगठन जहाँ कई सारे स्वच्छता क्रियाकलाप आयोजित किये गये हैं जैसे विद्यार्थियों द्वारा स्वच्छता के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा , इससे संबंधित महात्मा गाँधी की शिक्षा , स्वच्छता और स्वच्छता और स्वास्थ्य विज्ञान के विषय पर चर्चा , स्वच्छता क्रियाकलाप।

इसके द्वारा स्कूल क्षेत्र में सफाई , महान व्यक्तियों के योगदान पर भाषण , निबन्ध लेखन प्रतियोगिता , कला , फिल्म , चर्चा , चित्रकारी , स्वास्थ्य और स्वच्छता पर नाटक मंचन किया जाता है। इसके अलावा सप्ताह में दो बार साफ-सफाई अभियान चलाया जाना जिसमें शिक्षक , विद्यार्थी ओए माता-पिता सभी हिस्सा लेंगे।

स्वच्छ भारत अभियान पर नारे : स्वच्छ भारत अभियान के लिए बहुत से नारों का प्रयोग किया जाता है।

1. जागो युवा जागो स्वच्छ भारत हैं तुम्हारा अधिकार लेकिन उठाओं पहले कर्तव्य का भार।

2. सीमा पर लड़ना ही नहीं है देशभक्ति का नाम स्वच्छ बने देश करो ऐसा काम।

3. कदम से कदम मिलाओ स्वच्छता की तरफ हाथ बढाओ।

4. क्या दोगे आने वाले को ? पूर्वजों से तुम्हे स्वतंत्र आसमान मिला न करो कोई बड़ा वादा बस दो स्वच्छ आसमा की छाया।

5. युवा शक्ति हैं सब पे भारी , उठाओं झाड़ू गंदगी बाहर करो सारी।

6. स्वच्छता ही हैं देश का सौन्दर्य , जिसे लाना हैं हमारा कर्तव्य।

7. एक कदम स्वच्छता की ओर।

8. एक नया सवेरा लायेंगे , पूरे भारत को स्वच्छ और सुंदर बनायेंगे।

9. देश भी साफ हो , जिसमे सबका साथ हो।

10. अब सबकी बस एक ही पुकार , स्वच्छ भारत हो यार।

11. स्वच्छता का रखना हमेशा ध्यान , तभी तो बनेगा हमारा भारत महान।

12. आओ मिलकर सबको जगाये , गंदगी को स्वच्छता से दूर भगाए।

13. स्वच्छता अपनाना है समाज में खुशियाँ लाना है।

14. कदम से कदम बढ़ाते जाओ , स्वच्छता की तरफ मिलकर जुट जाओ।

15. युवा शक्ति है सब पर भारी , चलो करो अब स्वच्छ भारत की तैयारी।

16. आओ मिलजुलकर खुशिया मनाये , भारत को स्वच्छ बनाये।

17. स्वच्छ भारत अभियान में सब मिल जाओ , मिलकर सब अपने प्यारे भारत को स्वच्छ बनाओ।

18. सफाई से खुद को स्वच्छ बनाना है स्वच्छता से पूरे विश्व में अपनी पहचान बनाना है।

19. अब हर भारतियों ने मन में यही ठाना है पूरे भारत को स्वच्छ बनाना है।

20. करो कुछ ऐसा काम , की स्वच्छ भारत के चलते हो विश्व में भारत की शान।

21. गाँव गाँव गली गली ऐसी ऐसी ज्योति जलाएंगे , पूरे भारत को स्वच्छ बनायेंगे।

22. खूबसूरत होगा देश का हर छोर , क्यूंकि कम करेंगे गंदगी चारो ओर।

23. गांधीजी के सपनों का भारत बनायेंगे , चारों तरफ स्वच्छता फैलाएँगे।

24. चलाओ जोरों से स्वच्छता अभियान , तभी यो बनेगा हमारा भारत महान।

25. स्वच्छ भारत है एक बड़ा अभियान , सब मिलके करे अपना योगदान।

26. बापू का घर घर पहुंचे संदेश , स्वच्छ और सुंदर हो अपना देश।

उपसंहार : 2019 तक भारत को स्वच्छ और हरा-भरा बनाने के लिए स्वच्छ भारत अभियान एक बहुत ही अच्छा कदम है। अगर भारत की जनता द्वारा प्रभावी रूप से इसका अनुसरण किया गया तो आने वाले समय में स्वच्छ भारत अभियान से सारा देश भगवान का निवास स्थल बन जायेगा।

क्योंकि स्वच्छता से भगवान का गर्मजोशी से स्वागत शुरू हो चुका है तो हमें भी अपने जीवन में स्वच्छता को जारी रख कर उनको बनाए रखने की जरूरत है , एक स्वस्थ देश और स्वस्थ समाज को जरूरत है कि उसके नागरिक स्वस्थ रहें और हर व्यवसाय में स्वच्छ हों।

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बेटी बचाओ बेटी पढाओ पर निबंध-Beti Bachao Beti Padhao In Hindi

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बेटी बचाओ बेटी पढाओ पर निबंध (Beti Bachao Beti Padhao In Hindi) :

भूमिका : पृथ्वी पर मानव जाति का अस्तित्व , आदमी और औरत दोनों की समान भागीदारी के बिना संभव नहीं होता है। दोनों ही पृथ्वी पर मानव जाति के अस्तित्व के साथ-साथ किसी भी देश के विकास के लिए समान रूप से जिम्मेदार है। महिलाएं पुरुषों से अधिक महत्वपूर्ण होती हैं क्योंकि महिलाओं के बिना मानव जाति की निरंतरता के बारे में कल्पना भी नहीं की जा सकती हैं क्योंकि महिलाएं ही मानव को जन्म देती हैं।

लडकियाँ प्राचीनकाल से भारत में बहुत प्रकार के अपराधों से पीड़ित हैं। सबसे बड़ा अपराध कन्या भ्रूण हत्या है जिसमें अल्ट्रासाउंड के माध्यम से लिंग परीक्षण के बाद लडकियों को माँ के गर्भ में ही मार दिया जाता है। बेटी बचाओ अभियान को सरकार द्वारा स्त्री भ्रूण के लिंग चयनात्मक गर्भपात के साथ-साथ बालिकाओं के विरुद्ध अन्य अपराधों को समाप्त करने के लिए शुरू किया गया है।

भारतीय समाज में लडकियों की स्थिति बहुत समय से विवाद का विषय बनी हुई है। आमतौर पर प्राचीन समय से ही देखा जाता है कि लडकियों को खाना बनाने और गुड़ियों के साथ खेलने में शामिल होने की मान्यता होती है जबकि लडके शिक्षा और अन्य शारीरिक गतिविधियों में शामिल होते हैं। ऐसी पुराणी मान्यताओं की वजह से लोग महिलाओं के खिलाफ हिंसा करने को आतुर हो जाते हैं। इसका परिणाम समाज में बालिकाओं की संख्या लगातार कम होने से देखा जा सकता है।

कन्या भ्रूण हत्या का कन्या शिशु अनुपात कमी पर प्रभाव : कन्या भ्रूण हत्या अस्पतालों में चयनात्मक लिंग परीक्षण के बाद गर्भपात के माध्यम से किया जाने वाला एक बहुत ही भयानक कार्य होता है। यह भयानक कार्य भारत में लडकियों की अपेक्षा लडकों की अधिक चाह की वजह से उत्पन्न हुआ है। इस समस्या ने भारत में बहुत हद तक कन्या शिशु लिंग अनुपात में कमी की है।

यह समस्या देश में अल्ट्रासाउंड तकनीकी की वजह से ही संभव हो पाया है। इस समस्या ने समाज में लिंग भेदभाव और लडकियों के लिए असमानता के कारण बड़े और भयानक दानव का रूप ले लिया है। भारत में महिला लिंग अनुपात में भारी कमी 1991 की राष्ट्रिय जनगणना के बाद देखी गई थी।

बाद में 2001 की राष्ट्रिय जनगणना के बाद इसे समाज की एक बिगडती हुई समस्या के रूप में घोषित किया गया था। महिला की आबादी में 2011 तक कमी जारी रही थी। बाद में कन्या शिशु के अनुपात को नियंत्रित करने के लिए सरकार द्वारा इस प्रथा पर सख्ती से प्रतिबंध लगाया गया था।

सन् 2001 में मध्य प्रदेश में लडकियों/लडकों का अनुपात 932/1000 था और 2011 में यह अनुपात 912/1000 तक कम हो गया था। इसका अर्थ यह है कि यह समस्या आज तक जारी है और आने वाले 2021 तक यह समस्या 900/1000 तक कम हो जाएगी।

बेटी बचाओ बेटी पढाओ जागरूकता अभियान : बेटी बचाओ बेटी पढाओ एक ऐसी योजना है जिसका अर्थ होता है कन्या शिशु को बचाओ और इन्हें शिक्षित करो। इस योजना को भारतीय सरकार के द्वारा 22 जनवरी , 2015 को कन्या शिशु के लिए जागरूकता का निर्माण करने के लिए और महिला कल्याण में सुधार करने के लिए शुरू किया गया था।

इस अभियान को कुछ गतिविधियों जैसे – बड़ी रेलियों , दीवार लेखन , टीवी विज्ञापनों , होर्डिंग , लघु एनिमेशन , वीडियो फिल्मों , निबन्ध लेखन , वाद-विवाद आदि को आयोजित करने के द्वारा लोगों में जागरूकता फ़ैलाने के लिए शुरू किया गया था। इस अभियान को बहुत से सरकारी और गैर सरकारी संस्थानों द्वारा समर्थित किया गया है।

यह योजना पूरे भारत देश में कन्या शिशु बचाओ के सन्दर्भ में जागरूकता फ़ैलाने में बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका को निभाने के साथ ही भारतीय समाज में लडकियों के स्तर में भी सुधार करेगी। बेटी बचाओ बेटी पढाओ योजना देश की बेटियों की आने वाली जिन्दगी को सुधारने वाली मुहीम और हमारे देश की भविष्य लिखने वाली अहम कलम है जो आने वाली पीढ़ियों के लिए एक बहुत ही सुरक्षित वातावरण लाएंगी।

इस अभियान को समाज के हर वर्ग के लोगों ने बहुत ही प्रोत्साहित किया है। हमारे समाज में ऐसे बहुत से घर या परिवार हैं जहाँ पर लडकियों को बराबर नहीं समझा जाता है लडके लडकियों में भेदभाव किया जाता है। लडकियों को परिवार में वह दर्जा नहीं मिलता है जिसकी वे हकदार होती हैं।

लडकियों को अपने ही परिवार में अपने पक्ष को रखने का अधिकार भी नहीं दिया जाता है। लडकियों को वस्तु की तरह समझा जाता है जिन्हें स्नेह भावना , प्यार और ममता बस एक सपने के समान लगता है। इन सभी कुरीतियों को खत्म करने और समाज के मनोभाव को सुधारने के लिए ही बेटी बचाओ बेटी पढाओ अभियान को चलाया गया है।

बेटी बचाओ बेटी पढाओ अभियान के प्रभावशाली कदम : सालों से भारतीय समाज में माता-पिता के द्वारा लडके के जन्म की इच्छा की वजह से महिलाओं की स्थिति बहुत अधिक पिछड़ गई है। जिसने समाज में लिंग असमानता को उत्पन्न किया और लिंग समानता को लाकर इसे हटाना बहुत जरूरी है।

सरकार द्वारा लडकियों को बचाने और शिक्षित करने के लिए बहुत से कदम उठाए गये हैं। इस विषय में सबसे पहली पहल बेटी बचाओ बेटी पढाओ है जिसे बहुत ही सक्रिय रूप से सरकार , एनजीओ , कॉर्पोरेट समूहों और मानव अधिकार कार्यकर्ताओं और गैर सरकारी संगठनों द्वारा समर्थित किया गया है।

समाज में अत्यधिक गरीबी ने महिलाओं के विरुद्ध सामाजिक बुराई जैसे दहेज प्रथा को पैदा कर दिया है जिसने महिलाओं की स्थिति को और भी अधिक बुरा कर दिया है। माता-पिता का यह मानना होता है कि लडकियाँ पैसे खर्च करवाती हैं जिसकी वजह से वो लडकियों को कई प्रकार से जन्म से पहले या बाद में मार देते हैं।

कन्याओं और महिलाओं को बचाने के लिए इन मुद्दों को जल्दी खत्म करना बहुत ही जरूरी है। लडकों और लडकियों को शिक्षा देने के माध्यम से इस समस्या को खत्म किया जा सकता है। महिलाओं का सशक्तिकरण कन्याओं के जीवन को बचाने को एक बहुत ही प्रभावशाली यंत्र है। बेटी बचाओ के सन्दर्भ में कुछ प्रभावशाली अभियानों के द्वारा लोगों में जागरूकता फैलानी चाहिए।

एक लडकी माँ के गर्भ के साथ-साथ बाहर भी असुरक्षित होती है। लडकी जीवन पर्यन्त उन पुरुषों के माध्यम से कई मायनों में डरती रहती है जिन्होंने उन्हें जन्म दिया है। जिस पुरुष ने उसे जन्म दिया है वह उससे शासित होती है जो हमारे लिए बहुत ही शर्म की बात होती है। कन्याओं को बचाने और उनके सम्मान को बनाने के लिए शिक्षा सबसे बड़ी क्रांति है।

लडकी को सभी क्षेत्र में समान अवसर देने चाहिए। सभी सार्वजनिक स्थानों पर लडकियों के लिए रक्षा और सुरक्षा आयोजित करनी चाहिए। एक लडकी का परिवार भी बालिका बचाओं अभियान को सफल बनाने के लिए बहुत ही बेहतर लक्ष्य हो सकते हैं। विभिन्न सामाजिक संगठनो ने महिला स्कूलों में शौचालय के निर्माण से अभियान में मदद की है। बालिकाओं और महिलाओं के विरुद्ध अपराध भारत में वृद्धि और विकास के रास्ते में बहुत बड़ी बाधा है।

कन्या भ्रूण हत्या बड़े मुद्दों में से एक है लेकिन अस्पतालों में लिंग निर्धारण , स्कैन परीक्षण , उल्ववेधन के लिए अल्ट्रासाउंड पर रोक लगाकर सरकार ने इस पर प्रतिबन्ध लगा दिया है। इन कदमों को समाज के लोगों को यह बताने के लिए लिया गया है कि लडकियाँ समाज में अपराध नहीं होती है अपितु भगवान का दिया हुआ एक बहुत ही खुबसुरत तोहफा होती हैं।

बेटी बचाओ बेटी पढाओ अभियान की आवश्यकता : बेटी किसी भी क्षेत्र में लडकों की तुलना में कम सक्षम नहीं होती है और अपने सबसे सर्वश्रेष्ठ योगदान देती है। सन् 1961 से कन्या भ्रूण हत्या एक गैर क़ानूनी अपराध होता है और लिंग परीक्षण चुनाव के बाद गर्भपात को रोकने के लिए प्रतिबंधित कर दिया गया है।

लोगों को लडकियों को बचाने के लिए नियमों का बहुत ही सख्ती से पालन करना चाहिए। लडकियाँ लडकों की अपेक्षा अधिक आज्ञाकारी , कम हिंसक और अभिमानी साबित होती हैं। लडकियाँ अपने माता-पिता की और उनके कार्यों की अधिक परवाह करने वाली होती हैं। एक महिला अपने जीवन में माता , पत्नी , बेटी , बहन की भूमिका निभाती है।

प्रत्येक मनुष्य को यह सोचना चाहिए कि उसकी पत्नी किसी और आदमी की बेटी है और भविष्य में उसकी बेटी किसी और की पत्नी होगी। इसीलिए हर किसी को महिला के प्रत्येक रूप का सम्मान करना चाहिए। एक लडकी अपनी जिम्मेदारियों के साथ-साथ अपनी पेशेवर जिम्मेदारियों को भी बहुत ही वफादारी से निभाती है जो लडकियों को लडकों से अधिक विशेष बनाती है। लडकियाँ मानव जाति के अस्तित्व का परम कारण होती हैं।

बेटी बचाओ बेटी पढाओ में उद्देश्य : बेटी बचाओ बेटी पढाओ मिशन का उद्देश्य समाज में लिंग संतुलन को बरकरार रखना होता है। इस मिशन का मूल उद्देश्य समाज में पनपते लिंग असंतुलन को नियंत्रित करना है। हमारे समाज में कन्या भ्रूण हत्या बढती ही जा रही है जिसकी वजह से हमारे देश का भविष्य एक चिंताजनक विषय बन चुका है।

इस अभियान के द्वारा कन्या भ्रूण हत्या के विरुद्ध आवाज उठाई गयी है। यह अभियान हमारे घर की बहु-बेटियों पर होने वाले अत्याचार के विरुद्ध एक संघर्ष है। इस अभियान के द्वारा समाज में लडकियों को समान अधिकार दिलाए जा सकते हैं। आज के समय में हमारे समाज में लडकियों के साथ अनेक प्रकार के अत्याचार किये जा रहे हैं जिनमें से दहेज प्रथा भी एक है। इस योजने के विरुद्ध इस अभियान को चलाया जाना एक बहुत ही बड़ी लड़ाई है।

लडकियों को समाज में कन्या भ्रूण हत्या का सामना करना पड़ता है। लेकिन अगर कोई लडकी पैदा भी हो जाती है तो जन्म के बाद बहुत सारे सामाजिक अत्याचारों का सामना करना पड़ता है जैसे – लडकियों को शिक्षा प्राप्त करने से वंचित रखना , उन्हें समाज में अपने सही अधिकार के लिए लड़ना आदि। इन सभी आत्याचारों को खत्म करने के लिए यह अभियान बहुत हद तक सफल रहा है।

इस अभियान के द्वारा हमारे समाज में बेटियों को हक दिलाना और उन्हें अपनी जिन्दगी जीने की छूट देना संभव हो सकता है। आज के समय में हर परिवार में लडके और लडकियों में कहीं-न-कहीं अंतर किया जाता है जिसमें गलती हमारी सोच की होती है। बहुत से परिवारों में लडकियों को लडकों जितना दर्जा नहीं दिया जाता है। लडकियों को कुछ करने की आजादी नहीं होती है।

बेटी बचाओ बेटी पढाओ अभियान के द्वारा हम लडकियों पर होने वाले अत्याचारों को कुछ हद तक रोक सकते हैं। इस अभियान के माध्यम से ही कन्या भ्रूण हत्या को रोका जा सकता है। इस अभियान के माध्यम से लडकियों के लिए समाज में एक सुरक्षित माहौल पैदा किया जा सकता है। इससे लडकियों को खुली जिंदगी जीने के अवसर मिल जाता है और समाज की लड़का लडकी की सोच पर लगाम लगाया जा सकता है।

बेटियों को पढ़ाकर हम अपने समाज की प्रगति को एक गति प्रदान कर सकते हैं। हम अपनी बेटियों को पढ़-लिखकर अपने सपनों को हासिल करने का मौका दे सकते हैं जो भविष्य में कन्या भ्रूण हत्या और दहेज प्रथा को ना कहने की हिम्मत देगा। बेटी बचाओ बेटी पढाओ अभियान हमारे देश के प्रधानमंत्री द्वारा चलाया गया एक मुख्य अभियान है। भारत का यह सपना है कि लडकियों को उनका अधिकार देना चाहिए और एक स्वस्थ समाज का निर्माण करना चाहिए।

उपसंहार : भारत के प्रत्येक नागरिक को कन्या शिशु बचाओ के साथ-साथ इनका समाज में स्तर सुधारने के लिए सभी नियमों और कानूनों का अनुसरण करना चाहिए। लडकियों को उनके माता-पिता द्वारा लडकों के समान समझा जाना चाहिए और उन्हें सभी कार्यक्षेत्रों में समान अवसर प्रदान करने चाहिए।

बेटी बचाओं अभियान को लोगों द्वारा एक विषय के रूप में नहीं लिया जाना चाहिए ये एक सामाजिक जागरूकता का मुद्दा है जिसे गंभीरता से लेने की जरूरत लेनी चाहिए। लोगों द्वारा लडकियों को बचाना और सम्मान किया जाना चाहिए क्योंकि लडकियाँ पुरे संसार के निर्माण की शक्ति रखती हैं।

लडकियाँ भी देश के विकास और वृद्धि के लिए समान रूप से आवश्यक होती हैं। एक बेटी से नफरत , मृत्यु और अपमान नहीं किया जाना चाहिए। समाज और देश की भलाई के लिए उसे सम्मानित और प्यार किया जाना चाहिए। लडकियाँ लडकों की तरह देश के विकास में समान रूप से भागीदार है।

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