Quantcast
Channel: hindimeaning.com
Viewing all 910 articles
Browse latest View live

पर्यावरण पर निबंध-Essay On Environment In Hindi

$
0
0

पर्यावरण पर निबंध (Essay On Environment In Hindi) :

भूमिका : इस बात को अच्छी तरह से समझ लेना बहुत जरूरी है कि पर्यावरण जलवायु , स्वच्छता , प्रदूषण तथा वृक्ष का संपूर्ण योग है। जो हमारे दैनिक जीवन से सीधा संबंध रखता है तथा उसे प्रभावित करता है वैज्ञानिक प्रगति के परिणामस्वरूप मिलों , कारखानों तथा वाहनों की संख्या इतनी बढ़ गई है कि आजकल पर्यावरण की समस्या उत्पन्न हो गई है।

मानव और पर्यावरण एक-दूसरे पर निर्भर होते हैं। अगर हमारी जलवायु में थोडा सा भी परिवर्तन होता है तो इसका सीधा असर हमारे शरीर पर दिखने लगता है। अगर ठंड ज्यादा पडती है तो हमें सर्दी हो जाती है लेकिन अगर गर्मी ज्यादा पडती है तो हम सहन नहीं कर पाते हैं।

पर्यावरण प्राकृतिक परिवेश है जो पृथ्वी पर बढने , पोषण और नष्ट करने में सहायता करती है। प्राकृतिक पर्यावरण पृथ्वी पर जीवन के अस्तित्व में एक महान भूमिका निभाता है और यह मनुष्य , जानवरों और अन्य जीवित चीजों को विकसित करने में मदद करता है। मनुष्य अपनी कुछ बुरी आदतों और गतिविधियों से अपने पर्यावरण को प्रभावित कर रहे हैं।

पर्यावरण का अर्थ : पर्यावरण का तात्पर्य हमारे चारों ओर के वातावरण और उसमें निहित तत्वों और उसमें रहने वाले प्राणियों से है। हम अपने चारों ओर उपस्थित वायु , भूमि , जल , पशु-पक्षी , पेड़ पौधे आदि सभी को अपने पर्यावरण में शामिल करते हैं। जिस तरह से हम अपने पर्यावरण से प्रभावित होते हैं उसी तरह से हमारा पर्यावरण हमारे द्वारा किए गए कृत्यों से प्रभावित होता है।

लकड़ी के लिए काटे गए पेड़ों से जंगल समाप्त हो रहे हैं और जंगलों के समाप्त होने का असर जंगल में रहने वाले प्राणियों के जीवन पर पड़ रहा है। जीवों की बहुत सी प्रजातियाँ विलुप्त हो गई है और बहुत सी जातियां विलुप्त होने की कगार पर हैं। आज के समय में शेर अथवा चीतों के द्वारा गाँव में घुसने और वहाँ पर रहने वाले मनुष्यों को हानि पहुँचाने की बात बहुत आम हो गई है।

लेकिन ऐसा क्यूँ हो रहा है ? यह इसलिए हो रहा है क्योंकि हमने इन प्राणियों से इनका घर छीन लिया है और अब ये प्राणी गांवों और शहरों की तरफ जाने के लिए मजबूर हो गए हैं और अपने जीवन यापन के लिए मनुष्यों को हानि पहुँचाने लगे हैं। पर्यावरण से तात्पर्य केवल हमारे आस-पास के वातावरण से नहीं है बल्कि हमारा सामाजिक और व्यवहारिक वातावरण भी इसमें शामिल है। मानव के आस-पास उपस्थित सोश्ल , कल्चरल , एकोनोमिकल , बायोलॉजिकल और फिजिकल आदि सभी तत्व जो मानव को प्रभावित करते हैं वे सभी वातावरण में शामिल होते हैं।

पर्यावरण प्रदुषण के कारण : पर्यावरण प्रदुषण के बहुत से कारण है जिससे हमारा पर्यावरण बहुत अधिक प्रभावित होता है। मानव द्वारा निर्मित फैक्ट्री से निकलने वाले अवशेष हमारे पर्यावरण को प्रदूषित करते हैं। लेकिन यह भी संभव नहीं है कि इस विकास की दौड़ में हम अपने पर्यावरण को सुरक्षित रखने के लिए अपने विकास को नजर अंदाज कर दें।

हम कुछ बातों को ध्यान में रखकर अपने पर्यावरण को दूषित होने से बचा सकते हैं। कारखानों की चिमनियाँ नीची लगी होती हैं जिसकी वजह से उनसे निकलने वाला धुआं हमारे चारों ओर वातावरण में फैल जाता है। आज के समय में घर में इतने सदस्य नहीं होते हैं जितने अधिक वाहन होते हैं। घर का छोटा बच्चा भी साइकिल की जगह पर गाड़ी चलाना पसंद करता है।

मिलों , कारखानों तथा व्यवसायिक इलाकों से बाहर निकलने वाले धुएं तथा विषैली गैसों ने पर्यावरण की समस्या को उत्पन्न कर दिया है। बसों , करों , ट्रकों , टंपुओं से इतना अधिक धुआं और विषैली गैसी निकलती है जिससे प्रदुषण की समस्या और अधिक गंभीर होती जा रही है।

बहती नदियों के पानी में सीवर की गंदगी इस तरह से मिल जाती है जिससे मनुष्यों और पशुओं के पीने का पानी गंदा हो जाता है जिसके परिणामस्वरूप दोनों निर्बलता , बीमारी तथा गंभीर रोगों के शिकार बन जाते हैं। बड़े-बड़े नगरों में झोंपड़ियों के निवासियों ने इस समस्या को बहुत अधिक गंभीर कर दिया है।

शहरीकरण और आधुनिकीकरण पर्यावरण प्रदुषण के प्रमुख कारण हैं। मनुष्य द्वारा अपनी सुविधाओं के लिए पर्यावरण को नजर अंदाज करना एक बहुत ही आम बात हो गई है। मनुष्य बिना कुछ सोचे समझे पेड़ों को काटता जा रहा है लेकिन वह यह नहीं सोचता है कि जीवन जीने के लिए वायु हमें इन्हीं पेड़ों से प्राप्त होती है।

बढती हुई आबादी हमारे पर्यावरण के प्रदुषण का एक बहुत ही प्रमुख कारण है। जिस देश में जनसंख्या लगातार बढ़ रही है उस देश में रहने और खाने की समस्या भी बढती जा रही है। मनुष्य अपनी सुख-सुविधाओं के लिए पर्यावरण को महत्व नहीं देता है लेकिन वह भूल जाता है कि बिना पर्यावरण के उसकी सुख-सुविधाएँ कुछ समय के लिए ही हैं।

पर्यावरण की रक्षा के लिए कदम : हम जिस पर्यावरण में रहते हैं वह बहुत तेजी से दूषित होता जा रहा है। हमें आवश्यकता है कि हम अपने पर्यावरण की देखरेख और संरक्षण ठीक तरीके से करें। हमारे देश में पर्यावरण संरक्षण की परम्परा बहुत पहले से चली आ रही है। हमारे पूर्वजों ने विभिन्न जीवों को देवी देवताओं की सवारी मानकर और विभिन्न वृक्षों में देवी देवताओं का निवास मानकर उनका संरक्षण किया है।

पर्यावरण संरक्षण मानव और पर्यावरण के बीच संबंधों को सुधारने की एक प्रक्रिया होती है जिसके दो उद्देश्य होते हैं। पहला उन क्रियाकलापों का प्रबंधन होता है जिनकी वजह से पर्यावरण को हानि होती है। दूसरा मानव की जीवन शैली को पर्यावरण की प्राकृतिक व्यवस्था के अनुरूप आचरणपरक बनाना जिससे पर्यावरण की गुणवत्ता बनी रह सके।

कारखानों से निकलने वाले धुएं और पदार्थों का उचित प्रकार से निस्तारण किया जाना चाहिए। प्रदुषण और गंदगी की समस्या का निदान बहुत अधिक आवश्यक है ताकि हमारे पर्यावरण की सुरक्षा हो सके। सभी मिलों , कारखानों तथा व्यवसायिक इलाकों में अभिलम्ब प्रदुषण नियंत्रण के लिए संयत्र लगाए जाने चाहिएँ।

इन संयंत्रों के द्वारा धुएं और विषैली गैसों को सीधे आकाश में ही निष्काषित किया जाना चाहिए। बड़े नगरों में बसों , कारों , ट्रकों , स्कूटरों के रखरखाव की उचित व्यवस्था होनी चाहिए और उनकी नियमित रूप से चेकिंग भी करवानी चाहिए। हरे पौधों का रोपण किया जाना चाहिए तथा बड़े-बड़े पेड़ों की सुरक्षा की जानी चाहिए।

शांतिपूर्ण जीवन के लिए शोरगुल वाली ध्वनि को सिमित और नियंत्रित किया जाना चाहिए। पर्यावरण की सुरक्षा के लिए सभी पुरुषों , महिलाओं और बच्चों को अपना पूरा सहयोग देना चाहिए। विषैले और खतरनाक अपशिष्ट पदार्थों के निपटान के लिए सख्त कानूनों का प्रावधान होना चाहिए। संसाधनों के सर्वोत्तम उपयोग के लिए जनजागरण किया जाना चाहिए।

कृषि में रासायनिक कीटनाशकों का कम प्रयोग करना चाहिए। वन प्रबंधन से वनों के क्षेत्रों में वृद्धि करनी चाहिए। विकास योजनाओं को आरम्भ करने से पहले पर्यावरण पर उनके प्रभाव का आंकलन कर लेना चाहिए। मनुष्य को अपने प्रयासों से इस समस्या को कम करने की कोशिश करनी चाहिये।

जो कारखाने स्थापित हो चुके हैं उन्हें तो दूसरे स्थान पर स्थापित नहीं किया जा सकता है लेकिन अब सरकार को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि जो भी नए कारखाने खुलें वो शहर से दूर हो। कारखानों द्वारा किया गया प्रदुषण शहर की जनता को प्रभावित न करे। मनुष्य को अपने द्वारा किए गए प्रदुषण को कम करने की कोशिश करनी चाहिए।

जितना हो सके वाहनों का कम प्रयोग करना चाहिए। पब्लिक ट्रांसपोर्ट का उपयोग करके भी इस समस्या को कम किया जा सकता है। हमारे वैज्ञानिकों द्वारा भी धुएं को काबू करने के लिए प्रयास किए जाने चाहिएँ। जंगलों की कटाई पर सख्त सजा सुनाई जानी चाहिए तथा नए पेड़ लगाए जाने चाहिएँ।

विश्व पर्यावरण दिवस : विश्व पर्यावरण दिवस को 5 जून से 16 जून के बीच मनाया जाता है। विश्व पर्यावरण के दिन हर जगह पर पेड़ पौधे लगाए जाते हैं और पर्यावरण से संबंधित बहुत से कार्य किए जाते हैं जिसमें 5 जून का विशेष महत्व होता है। आज के समय में मनुष्य को अपने स्तर पर पर्यावरण को संतुलित रखने के लिए प्रयास करना चाहिए।

पर्यावरण प्रदुषण से मुक्त होना किसी भी एक समूह की कोशिश की बात नहीं है। इस समस्या पर कोई भी नियम या कानून लागु करके काबू नहीं पाया जा सकता है। अगर प्रत्येक मनुष्य इसके दुष्प्रभाव के बारे में सोचे और आगे आने वाली पीढ़ी के बारे में सोचे तो शायद इस समस्या से निजात पाया जा सकता है।

उपसंहार : कुछ राज्य सरकारों ने पर्यावरण की सुरक्षा के लिए बहुत से कानून भी पास किए हैं। केन्द्रीय सरकार के अंतर्गत पर्यावरण की सुरक्षा के लिए एक मंत्रालय कार्यरत है। इस समस्या के समाधान के लिए जन साधारण का सहयोग बहुत ही सहायक एवं उपयोगी सिद्ध हो सकता है। विकास की कमी और विकास प्रक्रियाओं से भी चुनौतियाँ उत्पन्न होती हैं। अधिक व्यवहार्य भविष्य की खोज केवल उन्मूलन के साधनों के विकास को खत्म करने के बहुत जोरदार प्रयास के संदर्भ में सार्थक हो सकती है।

The post पर्यावरण पर निबंध-Essay On Environment In Hindi appeared first on hindimeaning.com.


मेरी माँ पर निबंध-My Mother Essay In Hindi

$
0
0

मेरी माँ पर निबंध (Essay On Mother In Hindi) :

भूमिका : माँ शब्द की कोई परिभाषा नहीं होती है यह शब्द अपनेआप में पूरा होता है। माँ शब्द को किसी भी तरह से परिभाषित नहीं किया जा सकता है। असहनीय शारीरिक पीड़ा के बाद एक बच्चे को जन्म देने वाली माँ को भगवान का दर्जा दिया जाता है क्योंकि माँ जननी होती है और भगवान ने माँ के द्वारा ही पूरी सृष्टि की रचना की है।

पहले तो माँ एक बच्चे को जन्म देती है फिर अपने कष्टों और शारीरिक पीडाओं को भूलकर बच्चे का पूरा पालन पोषण करती है। माँ हमारे जीवन का एक बहुत ही महत्वपूर्ण हिस्सा होती है क्योंकि माँ बच्चे की प्रथम पाठशाला होने के साथ-साथ एक अच्छी शिक्षक व दोस्त भी होती है और बच्चे को सही राह दिखाती है।

माँ दुनिया में सबसे अधिक प्यार दुलार केवल अपने बच्चे से करती है लेकिन जब बच्चा गलत राह पर चलने लगता है तो माँ अपने कर्तव्यों को निभाना भी अच्छी तरह से जानती है। एक माँ कभी नहीं चाहती कि उसका बच्चा किसी भी गलत संगत में पडकर अपने भविष्य को खराब कर ले। माँ हमेशा अपने बच्चे की परवाह करती है।

भगवान का एक रूप : माँ दुनिया में भगवान का एक दूसरा रूप होती है जो हमारे दुःख लेकर हमे प्यार देती है और अच्छा इन्सान बनाती है। ऐसा माना जाता है की भगवान हर किसी स्थान पर नहीं रह सकता इसलिए उसने माँ को बनाया है हालाँकि माँ के साथ कुछ महत्वपूर्ण क्षणों को वर्णित किया जा सकता है।

हमेशा साथ रहने वाले भगवान के रूप में इस संसार में सभी के जीवन में माँ सबसे अलग होती है जो अपने बच्चों के सभी दुःख ले लेती है और उन्हें प्यार तथा संरक्षण देती है। हमारे शास्त्रों में माँ को देवी के समान पूजनीय माना जाता है। माँ हर मुश्किल घड़ी में अपने बच्चों का साथ देती है और अपने बच्चे को हर दुःख से बचाती है।

माँ असहनीय कष्टों को सहकर भी चुप रहती है लेकिन अगर बच्चे को जरा सी चोट लग जाती है तो वह बहुत दुखी और परेशान हो जाती है। बच्चे का दुःख माँ से देखा नहीं जाता है। भगवान ने माँ को बच्चों के दुःख हरने और उन्हें प्यार तथा सुरक्षा प्रदान करने के लिए बनाया है।

एक माँ आभाष से यह जान लेती है कि उसका बच्चा किसी संकट में है वह अपने बच्चे के लिए पूरे देश , समाज और दुनिया से लड़ जाती है। भगवान ने इस शक्ति को माँ को प्रदान किया है ताकि माँ अपने बच्चे की रक्षा कर सके। माँ दुनिया का सबसे आसान शब्द है और इस शब्द में भगवान खुद वास करते हैं।

मदर डे : माँ के प्रेम को किसी भी एक दिन में बांध पाना बहुत मुश्किल है लेकिन फिर भी मदर डे मनाया जाता है जिससे बच्चा माँ को वह प्यार और सम्मान दे सके जिसकी वह हकदार होती है। भारत देश में मदर डे को हर वर्ष मई महीने के दुसरे रविवार को मनाया जाता है जिससे बच्चे एक दिन पूरी तरह से अपने सारे काम भूलकर अपनी माँ के साथ समय बिता सकें और उनका ध्यान रख सकें।

अगर देखा जाए तो हर दिन माँ की पूजा की जानी चाहिए लेकिन माँ के महत्व और उनके त्याग के प्रतीक में यह दिन खास तौर पर मनाया जाता है। जब बच्चा बड़ा हो जाता है तो उसकी जिम्मेदारी भी बढ़ जाती है और उसे अन्य काम भी होते हैं इसलिए वह हर दिन अपनी माँ के साथ समय व्यतीत नहीं कर पाता है। माँ के साथ समय व्यतीत करने के लिए वह मदर डे मनाता है।

इस एक दिन को वह बच्चे के रूप में जीना बहुत पसंद करता है। बच्चा यह चाहता है कि उसकी माँ उससे पहले की तरह प्यार करने लगे , उसकी चिंता करे , उसे कहानियाँ सुनाए। मदर डे को मदर टेरेसा जी की याद में मनाया जाता है। मदर टेरेसा जी ममता की देवी थीं। उन्हें भगवान का दूसरा रूप माना जाता था इसलिए उनके सम्मान में हर साल मदर डे मनाया जाता है।

माँ का महत्व : समाज और परिवार में माँ का बहुत महत्व होता है। माँ के बिना जीवन की उम्मीद भी नहीं की जा सकती है। अगर माँ न होती तो हमारा अस्तित्व भी नहीं होता। खुशी छोटी हो या बड़ी माँ उसमें बढ़-चढकर हिस्सा लेती है क्योंकि माँ के लिए हमारी खुशी ज्यादा मायने रखती है।

माँ बिना किसी लालच के अपने बच्चे को प्यार करती है और बदले में केवल बच्चे से प्यार ही चाहती है। हर किसी के जीवन में माँ एक अनमोल इन्सान होती है जिसके बारे में शब्दों में कहा नहीं जा सकता है। एक माँ बच्चे की छोटी-से-छोटी जरूरत का ध्यान रखती है। माँ बिना किसी व्यक्तिगत लाभ के हमारी प्रत्येक जरूरत का ध्यान रखती है।

माँ का पूरा दिन बच्चों की जरूरतें पूरा करने में बीत जाता है लेकिन वह बच्चों से कुछ भी वापस नहीं मांगती है। एक माँ वह इन्सान होती है जो अपने बच्चों के बुरे दिनों और बिमारियों में उनके लिए रात-रात भर जागती है। माँ हमेशा अपने बच्चों को सही राह पर आगे बढने के लिए बच्चे का मार्गदर्शन करती है।

माँ हमें जीवन में सही कार्य करने के लिए प्रेरित करती है। माँ बच्चे की सबसे पहली अध्यापक होती है जो उसे बोलना , चलना सिखाती है। एक माँ ही बच्चे को अनुशासन का पालन करना , अच्छा व्यवहार करना और देश , समाज , परिवार के लिए हमारी जिम्मेदारी और भूमिका को समझाती है।

माँ की ममता : माँ अपने बच्चे की पसंद-नापसंद को सबसे बेहतर समझती है और बच्चे को सही गलत में अंतर करना सिखाती है। इस दुनिया में माँ की तुलना किसी और से नहीं की जा सकती है क्योंकि बच्चे को पालने के लिए माँ के जितना स्नेह , त्याग और अनुशासन कोई और नहीं कर सकता है।

समाज और देश के प्रति हमारी जिम्मेदारियों के सही मायने भी हमारी माँ ही सिखाती है। माँ ही बच्चे को नई-नई बातें सिखाती है और सही सीख के साथ आगे बढने के लिए प्रेरित करती है जिससे हम पीछे न रह सकें। बच्चे बड़े होने पर अपने स्तर पर माँ और उनके जीवन को अलग-अलग पहचान और महत्व देते हैं लेकिन माँ बिना किसी पहचान और लालच के अपने बच्चों के लिए कष्ट व प्रताड़ना को सहती हुई पालन पोषण करती है।

हम कहीं भी रहे माँ का आशीर्वाद हमारे साथ रहता है। माँ के आशीर्वाद के बिना रहना हमारे लिए कल्पना से परे है। माँ के प्रेम की तुलना किसी और चीज से करना सूरज के सामने दिया जलाने के समान है। सुबह के समय वह बहुत ही प्यार के साथ बच्चे को उठाती है और रात के समय वह बहुत प्यार के साथ कहानियाँ सुनाकर बच्चे को सुलाती है।

माँ बच्चे को स्कूल जाने के लिए तैयार होने में बच्चे मदद करती है और बच्चे के लिए सुबह का नाश्ता और दोपहर का खाना भी बना कर देती है। माँ दोपहर को बच्चे के स्कूल से आने का इंतजार करते हुए दरवाजे पर खड़ी रहती है। माँ बच्चे का होमवर्क करवाती है। परिवार के सदस्य अन्य कामों में व्यस्त रहते हैं लेकिन माँ सिर्फ बच्चे के लिए समर्पित रहती है।

जब बच्चे को कोई हानि होती है तो माँ को दूर से ही आभाष हो जाता है कि उसकी संतान पर कोई संकट है। माँ की ममता ऐसी होती है कि बच्चा अपनी माँ से बिना डरे हर बात साँझा कर लेता है। चाहे बच्चा कितना भी बड़ा हो जाये लेकिन वह माँ के लिए सदैव ही बच्चा रहता है और एक बच्चे की तरह ही उसकी देखभाल करती है।

माँ की आवश्यकता : हमारे लिए माँ सबसे अच्छा खाना बनाने वाली , सबसे अच्छी बातें करने वाली , सबसे अच्छा सोचने वाली और सभी दुखों के सामने पहाड़ की तरह खड़ी रहने वाली है लेकिन माँ जरूरत पड़ने पर अपने बच्चे के अच्छे भविष्य के लिए उसे डांट भी सकती है। माँ बच्चे को सही कामों के लिए सदैव समर्थन देती है।

माँ हमेशा परिवार को एक बंधन में बांधकर रखती है। माँ अपने बच्चों के बारे में जानती है और माँ यह भी जानती है कि बच्चे को किस प्रकार सही रास्ता दिखाना है। माँ का सबसे अधिक समय संतान की देखभाल में ही गुजरता है। एक माँ ही संतान में संस्कार प्रदान करती है। एक माँ बच्चे की सबसे पहली गुरु होती है। माँ बच्चे को चलना , बोलना सिखाती है।

आरंभ में संतान सबसे अधिक माँ के संपर्क में होती है इसलिए माँ के मार्गदर्शन में ही संतान का विकास होता है। केवल माँ ही अपने बच्चे में महान संतों , महा पुरुषों की जीवनी सुनकर महान व्यक्ति बनने के संस्कारों को कूट-कूटकर भारती है। एक माँ ही संतान को सामाजिक मर्यादाओं में रहना सिखाती है।

एक माँ ही संतान को उच्च विचारों का महत्व बताती है। एक माँ अपनी संतान को चरित्रवान , गुणवान बनाने में अपना पूरा योगदान देती है। किसी भी व्यक्ति का चरित्र उसकी माँ की बुद्धिमता पर निर्भर करता है। एक माँ अपने संतान के लिए सर्वाधिक प्रिय होती है। एक माँ अपनी संतान के लिए पूरे संसार से लड़ जाती है लेकिन माँ का संतान के प्रति अँधा प्रेम संतान के लिए अहितकर सिद्ध होता है।

उपसंहार : आज की भाग दौड़ की जिन्दगी में मनुष्य अपनी दूसरी परेशानियों या खुशियों को अधिक प्राथमिकता देते हैं और दूसरी बातों की वजह से अपनी जननी को नजर अंदाज कर देते हैं। हमें कभी भी अपनी जननी को नहीं भूलना चाहिए क्योंकि उनके एहसान को हम कभी नहीं चुका सकते इसलिए आप अपनी खुशियों और दुखों में कहीं पर भी हों लेकिन अपनी माँ को न भूलें और न ही उसे कभी अकेला छोड़ें।

The post मेरी माँ पर निबंध-My Mother Essay In Hindi appeared first on hindimeaning.com.

स्वच्छ भारत अभियान-Swachh Bharat Mission In Hindi

$
0
0

स्वच्छ भारत अभियान (Swachh Bharat Abhiyan In Hindi) :

भारत को स्वच्छ बनाने के लक्ष्य के साथ नई दिल्ली के राजघाट पर 2 अक्टूबर , 2014 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के द्वारा स्वच्छ भारत अभियान की शुरुआत की गई। स्वच्छ भारत अभियान का लक्ष्य है कि 2 अक्टूबर , 2019 तक हर परिवार को शौचालय सहित स्वच्छता सुविधा उपलब्ध कराना है , ठोस और द्रव अपशिष्ट निपटान व्यवस्था , गाँव में सफाई , सुरक्षित तथा पर्याप्त मात्रा में पीने का पानी उपलब्ध हो।

यह भारत के राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी जी को उनके 150वें जन्मदिवस पर सबसे उपयुक्त श्रद्धांजलि होगी। यह बहुत ही महत्वपूर्ण बात है कि इस अभियान को सफल बनाने के लिए प्रधानमंत्री जी स्वंय एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। राजघाट में उन्होंने खुद सडकों को साफ करके इस मुहीम की शुरुआत की।

जबकि यह बात पहले ही निर्धारित कर दी गई थी कि यह अभियान सिर्फ सरकार ही कर्तव्य नहीं है बल्कि राष्ट्र को स्वच्छ बनाने की जिम्मेदारी इस देश के सभी नागरिकों की है। स्वच्छ भारत अभियान के तहत 4041 सांविधिक नगरों के सडक , पैदल मार्ग और अन्य कई स्थल आते हैं। इस अभियान में स्वस्थ और सुखी जीवन के लिए महात्मा गाँधी जी के स्वच्छ भारत के सपने को आगे बढ़ाया गया है। भारत के शहरी विकास , पेयजल और स्वच्छता मंत्रालय के तहत इस अभियान को ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में लागू किया गया है।

इण्डिया यानि भारत एक बहुत ही प्राचीन सभ्यता है। भारत को एक पवित्र राष्ट्र माना जाता है इसके लोग बहुत धार्मिक हैं। भारत देश में विभिन्न धर्मों के लोग रहते हैं जैसे – हिन्दू , मुस्लिम , ईसाई , सिक्ख ,पारसी , जैन आदि। सभी धर्मों के लोग अपने धर्मों का पूरी निष्ठा के साथ पालन करते हैं। यह हमारे देश की कडवी सच्चाई है कि सभी स्वच्छता और धर्म परायणता केवल धार्मिक गतिविधियों और रसोई तक ही सीमित है।

हम सभी भारतीय अपने आस-पास की गंदगी के लिए गंभीर नहीं हैं भारत में किसी भी स्थान पर गंदगी का ढेर देखा जा सकता है। भारत देश के किसी भी नागरिक के व्यवहार में अपने आस-पास के वातावरण को साफ और स्वच्छ रखना नहीं है। ज्यादा-से-ज्यादा हम अपने घर को साफ रखते हैं। हम किसी सडक , पार्क , रास्ते या सार्वजनिक स्थान के बारे में हम जरा भी चिंतित नहीं होते हैं। हाल ही में नई सरकार सत्ता में आई है और उसकी मुख्य प्राथमिकता भारत को स्वच्छ करने की है।

इसी लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए सरकार ने एक अभियान की शुरुआत की जसका नाम स्वच्छ भारत अभियान है। सरकार ने महात्मा गाँधी जी को इस अभियान से जोड़ा है क्योंकि गाँधी जी देश में स्वच्छता के कार्यों के बहुत बड़े समर्थक थे और जीवन भर साफ-सफाई और स्वच्छता की गतिविधियों से जुड़े रहे। स्वच्छ भारत अभियान की शुरुआत सरकार द्वारा देश को स्वच्छता के प्रतीक के रूप में पेश करना है।

स्वच्छ भारत का सपना महात्मा गाँधी के द्वारा देखा गया था जिसके सन्दर्भ में गाँधी जी ने कहा कि स्वच्छता स्वतंत्रता से ज्यादा जरूरी है उनके अपने समय में वो देश की गरीबी और गंदगी से अच्छे से अवगत थे इसी वजह से उन्होंने अपने सपनों को पाने के लिए कई सारे प्रयास किये लेकिन सफल न हो सके। इस अभियान को लागू करने के लिए बहुत सारी नीतियाँ और प्रक्रिया है जिसमें तीन चरण है , योजना चरण , कार्यान्वयन चरण , निरंतरता चरण।

स्वच्छ भारत अभियान का इतिहास :

स्वच्छ भारत अभियान आज तक स्वच्छता से संबंधित लिया गया एक बड़ा कदम है। स्वच्छ भारत अभियान को विश्वस्तर पर प्रसिद्ध करने के लिए और आम जनता को इसके प्रति जागरूक करने के लिए स्कूलों तथा कॉलेजों के विद्यार्थियों सहित लगभग 3 लाख सरकारी कर्मचारियों ने इसके प्रारंभ होने के दिन इसमें भाग लिया था। 1500 लोगों की मौजूदगी में 2 अक्टूबर , 2014 को राष्ट्रपति भवन में इस कार्यक्रम को आयोजित किया गया था।

इस अभियान की शुरुआत भारतीय राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने झंडा दिखाकर की थी। इस मुहीम को आगे बढ़ाने के लिए व्यापार , खेल , और फिल्म उद्योग से जुड़े नौ प्रसिद्ध व्यक्तियों को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नामित किया। नरेंद्र मोदी जी ने उन नौ व्यक्तियों से निवेदन किया कि वे और नौ व्यक्तियों को इस अभियान से जोड़ें और स्वच्छता के इस आन्दोलन को देश के कोने-कोने में रहने वाले हर भारतीय तक पहुंचाएं।

नरेंद्र मोदी ने कहा कि इस मुहीम को एक चुनौती की तरह लेना चाहिए तथा व्यक्तिगत तौर पर दूसरे नौ लोगों को आमंत्रित करना चाहिए जिससे स्वच्छता का यह दृष्टिकोण साल 2019 तक पूरा हो सके और इतिहास में हमेशा के लिए भारत एक स्वच्छ देश बन सके। स्वच्छ भारत अभियान से प्रेरणा लेकर 3 जनवरी , 2015 को , इंडो-नेपाल डॉक्टर एशोसियन ने एक मुहिम की शुरुआत की जिसे स्वच्छ भारत नेपाल -स्वच्छ भारत नेपाल अभियान कहा गया है।

इसकी शुरुआत इंडो-नेपाल बार्डर क्षेत्र , सुनौली-बेलिहिया हुई। भारत में स्वच्छता के दूसरे कार्यक्रम जैसे केन्द्रिय ग्रामीण स्वच्छता कार्यक्रम का प्रारंभ सन् 1986 में पूरे देश में हुआ जो कि गरीबी रेखा से नीचे के लोगों के व्यक्तिगत इस्तेमाल के लिए स्वास्थ्यप्रद शौचालय बनाने पर केन्द्रित था।

इसका उद्देश्य सूखे शौचालयों को अल्प लागत से तैयार स्वास्थ्यप्रद शौचालयों में बदलना , खासतौर से ग्रामीण महिलाओं के लिए शौचालय का निर्माण करना , तथा दूसरी सुविधाएँ जैसे – हैण्ड पंप , नहान-गृह , स्वास्थ्यप्रद , हाथों की सफाई आदि। यह लक्ष्य था कि सभी उपलब्ध सुविधाएँ ठीक ढंग से ग्राम पंचायत द्वारा पोषित की जाएगी।

गाँव की उचित सफाई व्यवस्था जैसे जल निकासी व्यवस्था , सोखने वाला गड्ढा , ठोस और द्रव अपशिष्ट का निपटान , स्वास्थ्य शिक्षा के प्रति जागरूकता , सामाजिक , व्यक्तिगत , घरेलू और पर्यावरणीय साफ-सफाई व्यवस्था आदि की जागरूकता हो। ग्रामीण साफ-सफाई कार्यक्रम का पुनर्निर्माण करने के लिए भारतीय सरकार द्वारा सन् 1999 में भारत में सफाई के पूर्ण स्वच्छता अभियान की शुरुआत हुई।

पूर्ण स्वच्छता अभियान को बढ़ावा देने के लिए साफ-सफाई कार्यक्रम के तहत जून 2003 के महीने में निर्मल ग्राम पुरस्कार की शुरुआत हुई। यह एक प्रोत्साहन योजना थी जिसे भारत सरकार द्वारा सन् 2003 में लोगों को पूर्ण स्वच्छता की विस्तृत सुचना देने पर पर्यावरण को साफ रखने के लिए साथ ही पंचायत , ब्लॉक और जिलों द्वारा गाँव को खुले में शौच करने से मुक्त करने के लिए प्रारंभ की गई थी।

निर्मल भारत अभियान की शुरुआत सन् 2012 में हुई थी और उसके बाद स्वच्छ भारत अभियान की शुरुआत 2 अक्टूबर , 2014 में हुई। जबकि इसके पूर्व में भारतीय सरकार द्वारा चलाए जा रहे है सभी सफाई व्यवस्था और स्वच्छता कार्यक्रम वर्तमान 2014 के स्वच्छ भारत अभियान के जितना प्रभावकारी नहीं थे।

गाँधी जी के साफ-सफाई के प्रति विचार :

महात्मा गाँधी स्वच्छता के बहुत बड़े समर्थक थे। महात्मा गाँधी जी गंदी सडकों , रास्तों , मन्दिरों और खास तौर से हरिजन बस्ती के बारे में बहुत अधिक चिंतित रहते थे। दक्षिण अफ्रीका से लौटने के तुरंत बाद उन्होंने महसूस किया कि स्वच्छता और साफ-सफाई के मामले में भारत देश की स्थिति बहुत खराब है।

गाँधी जी ने लोगों को प्रेरणा देने की जिम्मेदारी अपने ऊपर ली और व्यक्तिगत रूप से भारत को गंदगी मुक्त बनाने का फैसला किया। 4 फरवरी , 1916 से पहले बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के लोकार्पण कार्यक्रम में जनसमूह को संबोधित करते हुए , गांधीजी ने स्वच्छता के महत्व को बताया और हर जगह फैली गंदगी और मैल को लेकर अपना दर्द तथा दुःख व्यक्त किया।

गाँधी जी ने अपने विश्वनाथ मंदिर के दर्शन का उदाहरण दिया और उसके अंदर और चारों तरफ फैली गंदगी के बारे में बताया। उन्होंने कहा – क्या ये महान मंदिर हमारे चरित्र को नहीं बताता है ? अपने दुःख को व्यक्त करते हुए उन्होंने पूछा क्या अंग्रेजों के देश से चले जाने के बाद भी मंदिर गंदा और मैला रहेगा। इसलिए उनके लिए सफाई उतनी ही महत्वपूर्ण है जितनी राष्ट्र की आजादी।

गाँधी जी का हमेशा ही यह विचार रहा है कि सभी को पहले खुद को बदलना चाहिए जो वो दुनिया में देखना चाहते हैं। इसलिए गाँधी जी को जब भी और जहाँ भी समय मिलता था वो खुद सफाई करने लग जाते थे। रचनात्मक कार्यक्रम के तहत उन्होंने पुरे भारत देश का भ्रमण किया , अंग्रेजों के खिलाफ बड़े संघर्ष के लिए लोगों को तैयार करने के अलावा वो साफ-सफाई तथा स्वच्छता के महत्व के बारे में भी लोगों को भाषण देते थे।

गाँधी जी ने हमेशा साफ-सफाई और स्वास्थ्य विज्ञान के बारे में ग्रामीणों को शिक्षित करने की जरूरत पर जोर दिया। गाँधी जी के अनुसार आश्रम का सच्चा कार्य बीमारी से बचाव करने के लिए लोगों को शिक्षित करना था। गाँधी जी और उनके स्वंयसेवक ग्रामीणों के साथ एक विशाल जन-संपर्क कार्यक्रम का संचालन करते थे वे स्वच्छता की जरूरत रहने की जगह को साफ रखने और व्यक्तिगत स्वच्छता के बारे में बात किया करते थे।

एक बार गांधीजी आश्रम के निकट ग्रामीण जमीन से मल ढकने को मना कर देते है। यह मानते हुए कि ये एक भंगी का कार्य है और पापमय है गांवों में साफ-सफाई के कार्यों को गांधीजी खुद देखते थे। गांधीजी के आश्रम में सभी साफ-सफाई के कार्य उनके साथ रहने वाले लोग करते थे। आश्रम की जमीन पर कोई भी गंदगी या मैला कहीं भी नहीं पाया जाता था।

यहाँ वहाँ गड्ढा होता था जिसमें सारा कूड़ा फेंका जाता था , एक अलग से खाद का गड्ढा होता है , सब्जियों के छिलके और बचे हुए खाने को उसमें डाला जाता था। बेकार पानी का इस्तेमाल बागबानी के लिए होता था। गाँधी जी हमेशा अपनी पत्रिका हरिजन में स्वच्छता के महत्व को लिखते थे।

इसलिए हमारे राष्ट्रपिता न सिर्फ अंग्रेजों की दासता के खिलाफ लड़े बल्कि स्वास्थ्य और साफ-सफाई को लेकर लोगों के गलत कार्य-प्रणाली के खिलाफ भी लड़े। गांधीजी ने पूरे जीवनभर लोगों को खुद के और सार्वजनिक स्वास्थ्य को बेहतर रखने के लिए प्रोत्साहित किया। इसलिए महात्मा गाँधी को उनके जन्मदिवस 2 अक्टूबर को सरकार ने स्वच्छ भारत अभियान की शुरुआत कर अच्छा संकेत और उचित श्रद्धांजलि दी है।

स्वच्छ भारत अभियान का उद्देश्य :

2 अक्टूबर , 2019 तक स्वच्छ भारत के मिशन और दृष्टि को पूरा करने के लिए भारतीय सरकार द्वारा कई सारे लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए स्वच्छ भारत अभियान की शुरुआत की गई जो कि महान महात्मा गाँधी का 150वाँ जन्मदिवस होगा। सरकार द्वारा ये घोषित किया गया है कि यह अभियान राजनीति के ऊपर हो और देशभक्ति से प्रेरित है।

स्वच्छ भारत अभियान के द्वारा भारत देश में खुले में मलत्याग की व्यवस्था का जड से उत्पादन , अस्वास्थ्यकर शौचालयों को बहने वाले शौचालयों में बदलना , हाथों से मल की सफाई करने की व्यवस्था को हटाना , लोगों के व्यवहार में बदलाव कर अच्छे स्वास्थ्य के विषय में जागरूक करना आदि उद्देश्य निश्चित किये गए हैं।

स्वच्छ भारत अभियान के द्वारा जन जागरूकता पैदा करने के लिए सार्वजनिक स्वास्थ्य और साफ-सफाई के कार्यक्रम से लोगों को जोडा जा सकता है। स्वच्छता अभियान का उद्देश्य साफ-सफाई से संबंधित सभी व्यवस्था को नियंत्रित , डिजाइन और संचालन करने के लिए शहरी स्थानीय निकाय को मजबूत बनाना है।

इस अभियान का उद्देश्य पूरी तरह से वैज्ञानिक प्रक्रियाओं से निपटानों का दुबारा प्रयोग और म्युनिसिपल ठोस अपशिष्ट का पुनर्चक्रण करना है और सभी संचालनों के लिए पूंजीगत व्यय में निजी क्षेत्रकों को भाग लेने के लिए जरूरी वातावरण और स्वच्छता अभियान से संबंधित खर्च उपलब्ध कराना है।

कॉरपोरेट भारत :

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के बुलावे पर ध्यान देते हुए कॉरपोरेट भारत ने भी इस अभियान को सफल बनाने के लिए उत्साह के साथ कदम बढ़ाया। कॉरपोरेट सामाजिक जिम्मेदारी के तहत स्वच्छता गतिविधियों में सार्वजनिक और निजी कंपनियों को जोड़ा जा रहा है जो कि कंपनी अधिनियम 2013 के तहत कानूनी जरूरत है।

सीएसआर एक क्रियाविधी है जिसके द्वारा कंपनियां पूरे समाज के भले कार्यों में पूंजी लगाती है। अभी ही बड़े कॉरपोरेट घराने जैसे – एलएनटी , वेदांत , भारती , टीसीएस , अंबुजा सीमेंट , टोयोटा किरलोस्कर , मारुती , टाटा मोटर्स , कोका कोला , डॉबर्र , आदित्य बिरला , अदानी , इंफोसिस , टीवीएस और कई दूसरों के पास निश्चित किये गए बजट स्वच्छ भारत अभियान के लिए हैं।

एक अनुमान के अनुसार कॉरपोरेट सेक्टर के द्वारा 1000 करोड़ की कीमत की कई स्वच्छता परियोजनाएं पाईपलाइन में है। दूर-दराज के गांवों में शौचालय बनाने सहित इन परियोजनाओं में व्यवहार में बदलाव लाने के लिए कार्यशाला चलाना , कचरा प्रबंधन तथा साफ पानी और दूसरी चीजों में साफ-सफाई के क्रिया कलाप आदि है।

स्वच्छ भारत अभियान के लिए एक बोली में कॉरपोरेट्स धन को आमंत्रित करना , अभी सरकार ने यह फैसला लिया कि इस स्कीम में कॉरपोरेट भागीदारी को सीएसआर खर्चे में गिनती होगी और बाद में इसे स्पष्ट करने के लिए कॉरपोरेट मामलों के मंत्रालय ने भी कंपनी अधिनियम के शेड्यूल 7 को संशोधित किया ये उल्लेखित करने के लिए कि स्वच्छ भारत कोष में योगदान सीएसआर के योग्य होगा इसलिए न केवल सरकारी और निजी शख्स बल्कि कॉरपोरेट क्षेत्रक भी भारत को स्वच्छ बनाने में अपनी भूमिका निभा रहे हैं।

स्वच्छ भारत अभियान में योगदान :

भारत देश में रह रहे सभी नागरिकों के प्रयासों के द्वारा भारत को एक स्वच्छ भारत बनाने के लिए स्वच्छ भारत अभियान की शुरुआत हुई। इसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा स्पष्ट रूप से घोषित किया गया कि कोई भी इस कार्यक्रम में किसी भी समय सक्रिय रूप से भाग ले सकता है।

उसे केवल गंदी जगह की तस्वीर लेनी है और इसके बाद उस जगह की सफाई करने के बाद तस्वीर लेनी है तथा पहली और बाद की तस्वीरों को सोशल मिडिया वेबसाईटों जैसे फेसबुक , ट्विटर आदि पर अपलोड करना है जिससे इसी तरह का कार्य करने के लिए दूसरे आम लोग इससे परिचित और प्रेरित हो स्वच्छ भारत के दृष्टिकोण को पूरा कर सके।

भारतीय जनता से भारतीय प्रधानमंत्री के द्वारा इस तरह की अपील के बाद यह भारत के लोगों द्वारा तेजी से शुरू हुआ। इस मुहीम के शुरू होने के दिन से ही लोग बहुत सक्रिय और प्रेरित हुए तथा इसको वैश्विक बनाने के लिए पहले और बाद की फोटो लेकर सोशल मिडिया वेबसाइटों पर अपलोड कर उसी तरह शुरू किया गया।

स्वच्छ भारत अभियान को स्कूल , कॉलेज , विश्वविद्यालय के छात्रों और दूसरे शैक्षणिक संस्थानों के द्वारा भी किया जा रहा है। दैनिक रूटीन कार्य और दूसरे व्यवसायिक गतिविधियों में लगे देश के युवा भी इस कार्यक्रम में भाग लेते है तथा इसी तरह का कार्य करते है। सभी क्रियाकलाप प्रसिद्ध व्यक्तित्व , विद्यार्थी तथा देश के युवा द्वारा समर्थित होता है और आम जन को इसमें सक्रियता से भाग लेने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है।

अपनी आस-पास की जगह को साफ-सुथरा और उत्तम करने के लिए हमें भारतीय होने के नाते अपने हाथों में झाड़ू लेने की जरूरत है। अधिकतर स्कूल और कॉलेज के विद्यार्थियों ने ग्रुप कार्यक्रम में भाग लिया था तो हम क्यूँ पीछे हैं ? हमें भी इसमें पूरी सक्रियता से भाग लेना चाहिए। इस अभियान को सफल अभियान बनाने के लिए कई स्वतंत्र एप्लीकेशन प्रोग्राम डेवलपर ने मोबाईल तकनीक का इस्तेमाल करके कई मोबाईल एप्लिकेशन बनाए। मिडिया ने भी अपने लेख और खबर प्रकाशन के द्वारा इस अभियान को बढ़ावा दिया।

स्वच्छ भारत अभियान से जुड़े मशहूर लोग :

स्वच्छ भारत अभियान को सफल बनाने के लिए इसमें बहुत से मशहूर लोगों ने भाग लिया जैसे – आमिर खान , अमिताभ बच्चन , रितिक रोशन , सचिन तेंदुलकर , मृदुला सिन्हा जी , अनिल अंबानी , बाबा रामदेव , शशि थरूर , कमल हसन , प्रियंका चौपडा , एम.वेंकैया नायडु , अमित शाह , सलमान खान , तर्क मेहता का उल्टा चश्मा की टीम , अनुपम खेर , परिणिति चौपडा , अक्षय कुमार , आलिया भट्ट , नेहा धूपिया , अजय देवगन , सुभाष घई , गगन नारंग , विजेंदर सिंह , मनोज तिवारी , मैरी कोम , नागार्जुन , तमन्ना भाटिया , हेमा मालिनी कपिल शर्मा , v.v.s. लक्ष्मण , सौरव गांगुली , किरन बेदी , रमोजी राव , आदि।

स्वच्छ भारत अभियान के नारे :

स्वच्छ भारत अभियान में बहुत से नारे प्रयोग में लाये गए थे।
1. विकसित राष्ट्र की हो कल्पना , अब हमें देश है स्वच्छ बनना।
2. स्वच्छता अपनाओ , अपने घर को सुंदर बनाओ।
3. घर समाज को रखो साफ , भविष्य नहीं करेगा वरना माफ।
4. तभी आएगा नया सवेरा , जब होगा साफ-सुथरा समाज हमारा।
5. अपना देश भी साफ हो , इसमें हम सबका हाथ हो।
6. सभी लोग करो गुणगान , गंदगी से होगा सबको नुकसान।
7. हर व्यक्ति की यही पुकार , स्वच्छ देश हो अपना यार।
8. गांधीजी का था यही इरादा , स्वच्छ हो देश हमारा।
9. क्लीन सिटी , ग्रीन सिटी , यही है ड्रीम सिटी।
10. गांधीजी ने दिया संदेश , स्वच्छ रखो भारत देश।
11. बच्चे बूढों का यही है कहना , गंदगी में कभी न रहना।
12. गाँधी जी के सपने को करें साकार , स्वच्छता की हो देश में भरमार।
13. स्वच्छता का रखा करिए ध्यान , इससे बनेगा देश महान।
14. आओ मिलकर करे यह काम , स्वच्छता का चलाए अभियान।
15. अब सभी को जगना है , गंदगी को दूर करना है।
16. स्वच्छता है एक बड़ा अभियान , आप भी अपना दे योगदान।
17. स्वच्छता अपनाओ , समाज में खुशियाँ लाओ।
18. स्वच्छता का जब करोगे काम , विकसित राष्ट्रों में आएगा अपना नाम।
19. स्वच्छता का कर्म अपनाओ , इसे अपना धर्म बनाओ।
20. देश में विकास आएगा , जब हर व्यक्ति स्वच्छता अपनाएगा।
21. स्वच्छ भारत , स्वस्थ भारत।
22. अब हमने यह ठाना है , भारत स्वच्छ बनाना है।
23. स्वच्छता का दीप जलाएंगे , चारों ओर उजियाला फैलायेंगे।
24. स्वच्छता की ज्योति जलाओ , देश को सुंदर बनाओ।
25. अब हम करें कुछ ऐसा काम , जिससे बनी रहे देश की शान।
26. सभी रोगों की बस एक दवाई , घर में रखो साफ-सफाई।
27. एक इण्डिया , क्लीन इण्डिया।
28. जहाँ है सफाई , वही है पढाई।
29. अगर करोगे खुले में शौच , जल्दी हो जाएगी मौत।
30. धरती माता करे पुकार , आस-पास का करो सुधार।
31. हम सब को बताएंगे , स्वच्छता अपनाएंगे।
32. हर जन को दो यह संदेश , स्वच्छ-सुंदर हो अपना देश।
33. हम सब का एक ही नारा , साफ-सुथरा हो देश हमारा।
34. कदम से कदम मिलाओ , स्वच्छता को अपनाओ।
35. स्वच्छता अपनाएं , बिमारियों की दूर भगाएं।
36. हाथ से हाथ मिलाना है , गंदगी नहीं फैला है , स्वच्छता को हमेशा के लिए अपनाना है।
37. युवा शक्ति है सब पे भारी , उठाओ झाड़ू गंदगी बहार करो सारी।
38. अब ना होगा बिमारियों का वार , उठाओ स्वच्छता का हथियार।
39. स्वच्छता है देश का सौन्दर्य , जिसे लाना है हमारा कर्तव्य।
40. गांधीजी के स्वच्छ भारत सपने को करेंगे साकार , चलो सब मिल के देंगे अपना सहयोग पूरा , स्वच्छता की देश में हो भरमार।
41. साफ-सफाई की परिभाषा है मन की पवित्रता।
42. गांधीजी का था यही इरादा , स्वच्छ हो देश हमारा।
43. गांधी जी ने दिया संदेश , स्वच्छ रखो भारत देश।
44. साफ-सुथरा मेरा मन , देश मेरा सुंदर हो , प्यार फैले सडकों पर , कचरा डिब्बे के अंदर हो।
45. खुले में शौच को हटाओ , शौचालय अपनाओ।
46. लोटा बोतल बंद करो , शौचालय का प्रबंधन करो।
47. शौचालय का करो प्रयोग , गाँव में न हो कोई रोग।
48. बाहर भी दिखाएंगे अपने घर वाले संस्कार , तभी होगा स्वच्छ भारत का सपना साकार।
49. लगा सको तो बाग लगाओ , आग लगाना मत सीखो , फैला सको तो प्यार फैलाओ , कचरा फैलाना मत सीखो।
50. करे प्रतिज्ञा रखेंगे स्वच्छता का ध्यान , तभी बनेगा अपना भारत महान।
51. अब हमने यह ठाना है , हिंदुस्तान को स्वच्छ बनाना है।
52. स्वच्छता ही सेवा है।
53. माँ कसम , देश को स्वच्छ रखेंगे हम।
54. कूड़े-कचरे के खिलाफ अब तो हमने छेड़ दी है जंग , हिंदुस्तान को स्वच्छ बनाकर हम लेंगे दम।
55. साफ-सफाई रखना बोझ नहीं , कर्तव्य है।
56. स्वच्छ वातावरण ही स्वच्छ मानसिकता को जन्म देता है।
57. अपनाओ भारत स्वच्छता अभियान , बढ़ेगा देश का गौरव और बढ़ेगी देश की शान।
58. एक काम सब लोग करें , कूड़ेदान का प्रयोग करें।
59. बदलेंगे हम देश का हाल , स्वच्छता को बनाएंगे एक मिसाल।
60. हरियाली हम फैलाएंगे , भारत स्वच्छ बनायेंगे।
61. उन सब को बधाई है , जिनके घर में सफाई है।
62. मिलकर हम सब कसम ये खाएं , अपने देश को स्वच्छ बनाएं।
63. अपने देश का करो सम्मान , अपनाओ स्वच्छ भारत अभियान।
64. आलस्य को भगाओ भीतर से , सफाई शुरू कर घर से।
65. रीत नई चलाते हैं , साफ-सफाई अपनाते हैं।
66. हर दिल की अब यह चाहत है , साफ-सुथरा अपना भारत हो।
67. बीमारियाँ हमें भगानी हैं , स्वच्छता अपनानी है।
68. सफाई से खुद को स्वच्छ बनाना है स्वच्छता से पूरे विश्व में अपनी पहचान बनाना है।
69. खुबसुरत होगा देश हर छोर , क्योंकि हम करेंगे सफाई चारों ओर।
70. साथी रे हाथ से हाथ मिलाना , गंदगी को दूर भगाना है।
71. जहाँ रहती है साफ-सफाई , वहीं होती है अच्छे मन से पढाई।
72. गाँव-गाँव गली-गली ऐसी ज्योति जलाएंगे , पूरे भारत को स्वच्छ बनायेंगे।
73. सबको जागरूक बनाना है स्वच्छता अपनी आदत में अपनाना है।
74. स्वच्छता का रखना हमेशा ध्यान , तभी तो बनेगा मेरा भारत देश महान।
75. सफाई से जिसने नाता तोडा , खुले रूप से उसने बीमारी से नाता जोड़ा।
76. देश भी साफ हो , जिसमें सबका हाथ हो।
77. जागो युवा जागो स्वच्छ भारत हैं तुम्हारा अधिकार लेकिन उठाओ पहले अपने कर्तव्य का भार।
78. सीमा पर लड़ना ही नहीं है देशभक्ति का नाम , स्वच्छ बने देश करो ऐसा काम।
79. क्या दोगे आने वाले कल को ? पूर्वजों से तुम्हें स्वतंत्र आसमान मिला न करो बड़ा वादा बीएस दिओ स्वच्छ आसमा की छाया।

स्वच्छ भारत अभियान स्थापना दिवस :

2 अक्टूबर , 2014 गाँधी जयंती के दिन भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने स्वच्छ भारत अभियान की शुरुआत की। स्वच्छ भारत अभियान की शुरुआत करते समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने महात्मा गाँधी और पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री को श्रद्धांजलि देते हुए गाँधी जी के स्वच्छ भारत के सपने को पूरा करने की बात कही।

सन् 2019 में महात्मा गाँधी जी की 150 वीं जयंती है और मोदी जी ने 2019 तक गाँधी जी के स्वच्छ भारत के सपने को पूरा करने की बात कही। लेकिन यह स्वच्छ भारत का सपना किसी एक भारतीय या किसी एक सरकार का नहीं है अगर देश के 125 करोड़ लोग इसमें मिलकर हिस्सा ले तभी गाँधी जी के स्वच्छ भारत के सपने को पूरा किया जा सकता है।

अगर सभी भारत वासी यह संकल्प लें कि वे न तो गंदगी फैलायेंगे और न ही किसी को फैलाने देंगे तभी स्वच्छ भारत अभियान संभव है। अगर देखा जाए तो भारत का हर व्यक्ति साल में 100 घंटे योगदान करता है तो यह संभव है कि 2019 तक भारत देश को स्वच्छ किया जा सकता है।

स्वच्छ भारतीय अभियान की आवश्यकता :

अपने उद्देश्य की प्राप्ति तक भारत में इस मुहिम की कार्यवाही लगातार चलती रहनी चाहिए। भौतिक , मानसिक , सामाजिक और बौद्धिक कल्याण के लिए भारत देश के लोगों में इसका एहसास होना बहुत जरूरी है। भारत कि सामाजिक स्थिति को बढ़ावा देने के लिए है जो हर तरफ स्वच्छता लाने से शुरू किया जा सकता है।

यह बहुत जरूरी है कि भारत के हर घर में शौचालय हो साथ ही खुले में शौच की प्रवृति को खत्म करने की जरूरत है। अस्वास्थ्यकर शौचालय को पानी से बहने वाले शौचालयों से बदलने की बहुत आवश्यकता है। हाथ के द्वारा की जाने वाली साफ-सफाई की व्यवस्था का जड़ से खात्मा जरूरी है।

नगर निगम के कचरे का पुनर्चक्रण और दुबारा इस्तेमाल , सुरक्षित समापन , वैज्ञानिक तरीके से मल प्रबंधन को लागू करना है। स्वंय के स्वास्थ्य के प्रति भारत के लोगों की सोच और स्वभाव में परिवर्तन लाना और स्वास्थ्यकर साफ-सफाई की प्रक्रियों का पालन करना है। ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोगों में वैश्विक जागरूकता का निर्माण करने के लिए और सामान्य लोगों को स्वास्थ्य से जोड़ने के लिए इस अभियान की आवश्यकता है।

इसमें काम करने वाले लोगों को स्थानीय स्तर पर कचरे के निष्पादन का नियंत्रण करना , खाका तैयार करने के लिए मदद करना आवश्यक है। सारे भारत में साफ-सफाई की सुविधा को विकसित करने के लिए निजी क्षेत्रों की हिस्सेदारी बढ़ाना आवश्यक है।

भारत को स्वच्छ और हरियाली युक्त बनाना है। इस अभियान के द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों में जीवन की गुणवत्ता में सुधार लाना है। स्वास्थ्य शिक्षा कार्यक्रमों के माध्यम से समुदायों और पंचायती राज संस्थानों को लगातार साफ-सफाई के प्रति जागरूक करना बहुत जरूरी है। बापू जी के सपने को साकार करने के लिए इन सब को करना बहुत आवश्यक है।

स्वच्छ भारत स्वच्छ विद्यालय अभियान :

स्वच्छ भारत स्वच्छ विद्यालय अभियान केन्द्रिय मानव संसाधन मंत्रालय द्वारा चलाया गया है और इसका मुख्य उद्देश्य भी स्कूलों में स्वच्छता लाना है। इस अभियान के तहत 15 सितम्बर , 2014 से 31 अक्टूबर , 2014 तक केन्द्रिय विद्यालय और नवोदय विद्यालय संगठन जहाँ कई सारे स्वच्छता क्रिया-कलाप आयोजित किये गए जैसे – विद्यार्थियों द्वारा स्वच्छता के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा , इससे संबंधित महात्मा गाँधी जी की शिक्षा , स्वच्छता और स्वास्थ्य विज्ञान के विषय पर चर्चा , स्वच्छता क्रियाकलाप आदि पर चर्चा करना है।

इस योजना के तहत स्कूल क्षेत्रों में सफाई , महान व्यक्तियों के योगदान पर भाषण , निबंध लेखन , प्रतियोगिता , कला , फिल्म , चर्चा , चित्रकारी तथा स्वास्थ्य और स्वच्छता पर नाटक मंचन आदि हैं। इसके अतिरिक्त सप्त में दो बार साफ-सफाई अभियान चलाया जाना जिसमें शिक्षक , विद्यार्थी और माता-पिता सभी भाग लेंगे।

शहरी क्षेत्रों में स्वच्छ भारत अभियान :

शहरी क्षेत्रों में स्वच्छ भारत अभियान का लक्ष्य कर नगर में ठोस कचरा प्रबंधन सहित लगभग सभी 1.04 करोड़ घरों को 2.6 लाख सार्वजनिक शौचालय , 2.5 लाख समुदायिक शौचालय उपलब्ध कराना है। सामुदायिक शौचालय के निर्माण की योजना रिहायशी इलाकों में की गई है जहाँ पर व्यक्तिगत घरेलू शौचालय की उपलब्धता मुश्किल है इसी तरह से सार्वजनिक शौचालय की प्राधिकृत स्थानों पर जैसे – बस अड्डों , रेलवे स्टेशन , बाजार आदि जगहों पर।

शहरी क्षेत्रों में स्वच्छ भारत अभियान कार्यक्रम को पांच वर्षों के अंदर अथार्त 2019 तक पूरा करनेकी योजना है। इस अभियान में ठोस कचरा प्रबंधन की लागत लगभग 7366 करोड़ रूपए , 1828 करोड़ जन सामान्य को जागरूक करने के लिए , 655 करोड़ रूपए सामुदायिक शौचालयों के लिए , 4165 करोड़ रूपए निजी घरेलू शौचालयों के लिए आदि।

वह कार्यक्रम जिन्हें पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है खुले में शौच की प्रवृति को जड से समाप्त करना , अस्वास्थ्यकर शौचालय को पानी से बहने वाले शौचालयों में परिवर्तन , खुले हाथों से साफ-सफाई की प्रवृति को हटाना , लोगों की सोच में परिवर्तन लाना और ठोस कचरा प्रबंधन करना है।

ग्रामीण क्षेत्रों में स्वच्छ भारत अभियान :

ग्रामीण स्वच्छ भारत मिशन एक ऐसा अभियान है जिसमें ग्रामीण भारत में स्वच्छता कार्यक्रम को अमल में लाना है। ग्रामीण क्षेत्रों को स्वच्छ बनाने के लिए सबसे पहले सन् 1999 में भारतीय सरकार द्वारा निर्मल भारत अभियान की स्थापना की गई थी लेकिन अब उसका पुर्नगठन स्वच्छ भारत अभियान के रूप में किया गया है।

इस योजना का मुख्य उद्देश्य ग्रामीणों को खुले में शौच करने की मजबूरी से रोकना है इसलिए सरकार ने 11 करोड़ 11 लाख शौचालयों के निर्माण के लिए 1 लाख 34 हजार करोड़ की राशि खर्च करने की योजना बनाई है। सरकार ने कचरे को जैविक खाद और इस्तेमाल करने लायक उर्जा में परिवर्तित करने की भी योजना बनाई है। इसमें ग्राम पंचायत , जिला परिषद और पंचायत समिती की बहुत अच्छी भागीदारी है।

इस योजना के मुख्य उद्देश्य ग्रामों क्षत्रों के लोगों के जीवन स्तर में सुधार लाना , 2019 के लक्ष्य को पूरा करने के लिए ग्रामीण क्षेत्रों की साफ-सफाई के लिए लोगों को प्रेरित करना , आवश्यक साफ-सफाई की सुविधाओं को लगातार उपलब्ध कराने के लिए पंचायती राज संस्थान और समुदाय आदि को प्रेरित करना चाहिए , ग्रामीण क्षेत्रों में ठोस और द्रव कचरा प्रबंधन पर मुख्यतौर से ध्यान देना चाहिए तथा उन्नत पर्यावरणीय साफ-सफाई व्यवस्था का विकास करना जो समुदायों द्वारा प्रबंधनीय हो , ग्रामीण क्षेत्रों में लगातार साफ-सफाई और पारिस्थितिक सुरक्षा को प्रोत्साहित करना आदि हैं।

The post स्वच्छ भारत अभियान-Swachh Bharat Mission In Hindi appeared first on hindimeaning.com.

ताजमहल का इतिहास और रहस्मयी बातें-Taj Mahal History In Hindi

$
0
0

ताजमहल (Taj Mahal In Hindi) :

इश्क एक इबादत है तो ताजमहल उसकी जानदार तस्वीर। मोहब्बत की इस निशानी को देखकर लोग आज भी प्यार पर भरोसा करते हैं क्योंकि इस प्यार में समर्पण , त्याग , खुशी और वह सब कुछ है जो इश्क को एक मुकम्मल जहा देता है। ताजमहल प्यार की मिसाल माना जाने वाला दुनिया के सात अजूबों में से एक और भारत देश का गर्व है।

ताजमहल सफेद संगमरमर से शाहजहाँ द्वारा अपनी बेगम मुमताज महल की याद में बनवाई गई एक अद्भुत ईमारत है। दुनिया का हर इंसान आज ताजमहल देखने की इच्छा रखता है क्योंकि ताजमहल को प्यार का मंदिर माना जाता है। ताजमहल भारत के आगरा शहर में यमुना किनारे स्थित एक विश्व धरोहर मकबरा है।

ताजमहल मुगल वास्तुकला का एक बहुत ही उत्कृष्ट नमूना है। ताजमहल सन् 1983 में यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल बना था। ताजमहल को विश्व धरोहर के साथ सर्वत्र प्रशंसा पाने वाली अत्युत्तम मानवी कृतियों में से एक बताया गया है। ताजमहल को भारत की इस्लामी कला का भारत रत्न भी घोषित किया गया है।

ताजमहल दूसरी संगमरमर की सिल्लियों की बड़ी-बड़ी परतों से ढंक कर बनाई गई इमारतों की तरह न बनकर इसका सफेद गुंबद टाइल आकार में संगमरमर से ढंका हुआ है। ताजमहल इमारत समूह की संरचना की खास बात है कि यह पूरी तरह सममितीय है। ताजमहल का निर्माण कार्य सन् 1648 के लगभग पूरा हुआ था। ताजमहल का प्रधान रूपांकनकर्ता उस्ताद अहमद लाहौरी को माना जाता है। ताजमहल भारत की ही नहीं बल्कि पुरे संसार की पहचान बन चुका है।

ताजमहल कहाँ स्थित है : ताजमहल यमुना नदी के किनारे आगरा शहर में स्थित है। ऐसा माना जाता है कि ताजमहल के निर्माण के लिए शाहजहाँ को अपना एक महल जमीन के बदले में देना पड़ा था। आगरा शहर को सन् 1504 में इब्राहिम लोदी ने बसाया था। ताजमहल का निर्माण शाहजहाँ ने अपनी पत्नी मुमताज महल की याद में करवाया था।

मुमताज महल कौन थीं : मुमताज महल का जन्म 1 सितम्बर , 1593 को हुआ था। मुमताज महल परसिया देश की राजकुमारी थीं। मुमताज महल का विवाह उस व्यक्ति से हुआ था जो शाहजहाँ की सेना में भर्ती था। शाहजहाँ ने उसे मरवा दिया और मुमताज से निकाह कर लिया। मुमताज महल शाहजहाँ की तीसरी बेगम थीं। ऐसा माना जाता है कि मुमताज महल शाहजहाँ की सबसे चहेती बेगम थीं। शाहजहाँ मुमताज से बहुत प्यार करते थे। 17 जून , 1631 में 37 वर्ष की आयु में अपनी चौदहवीं संतान गौहर बेगम को जन्म देते हुए मुमताज महल की मृत्यु हो गई थी।

ताजमहल का इतिहास (Taj Mahal History In Hindi) :

सन् 1631 में शाहजहाँ के साम्राज्य ने हर जगह अपनी जीत का परचम लहराया था। उस समय पर शाहजहाँ की सभी बेगमों में से सबसे प्रिय बेगम मुमताज महल थीं। लेकिन मुमताज महल जी की मृत्यु अपनी चौदहवीं संतान गौहर बेगम को जन्म देते समय हो गई थी। मुमताज महल की मृत्यु का शाहजहाँ पर बहुत असर हुआ था उनकी मृत्यु के बाद शाहजहाँ की हालत भी बहुत खराब हो गई थी।

ताजमहल का निर्माण मुगल सम्राट शाहजहाँ ने अपनी पत्नी मुमताज महल की याद में करवाया था। ताजमहल का निर्माण कार्य सन् 1632 में शुरू हो गया था। शाहजहाँ चाहते थे की मुमताज और उनकी प्रेम कहानी को दुनिया हमेशा याद रखे इसलिए उनकी याद में वे कुछ ऐतिहासिक धरोहर बनाना चाहते थे जिसकी वजह से ताजमहल का निर्माण हुआ था।

ताजमहल का निर्माण सन् 1643 के लगभग हो गया था लेकिन फिर भी इसकी सुंदरता को बढ़ाने के लिए इस पर 10 साल और काम किया गया था। ताजमहल का निर्माण लगभग सन् 1653 में पूरा हो गया था। कहा जाता है कि शाहजहाँ मरते दम तक मुमताज को भूल नहीं पाए थे।

सन् 1983 में ताजमहल को यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल बना दिया गया। ताजमहल को विश्व धरोहर के साथ-साथ अत्युत्तम मानवी कृतियों में से एक भी बताया गया। ताजमहल को भारत की इस्लामी कला का रत्न भी घोषित किया गया। 2007 में ताजमहल को दुनिया के सात अजूबों में से एक घोषित किया गया है।

वास्तुकला और बनावट :

ताजमहल की वास्तुशैली फारसी , तुर्क , भारतीय और इस्लामी वास्तुकला के घटकों का अनोखा सम्मेलन है। ताजमहल का निर्माण पर्शियन और प्राचीन मुगल परंपराओं को ध्यान में रखते हुए किया गया। ताजमहल का निर्माण दूसरी इमारतों जैसे – गुर-इ-अमीर , हुमायूँ का मकबरा , इत्माद-उद-दूलह मकबरा और जामा मस्जिद से प्रेरणा लेकर किया गया।

प्राचीनकाल में इमारतों का निर्माण प्राय: लाल पत्थर से किया जाता था लेकिन शाहजहाँ ने ताजमहल के निर्माण के लिए सफेद संगमरमर को चुना। इस पत्थर से ताजमहल की सुन्दरता को चार चाँद लग गए। सफेद संगमरमर पर कई प्रकार की नक्काशी तथा हीरे जड़कर ताजमहल की दीवारों को सजाया था।

ताजमहल में गुंबद पर जो कलश स्थापित है वह 1800 ईस्वी तक सोने का था लेकिन अब वह कांसे का बना है। इस कलश पर चंद्रमा बना है। अपने नियोजन के कारण चन्द्र एवं कलश की नोक मिलकर एक त्रिशूल का आकार बनती है जो हिन्दू भगवान शिव का चिन्ह है। ताजमहल का शिखर एक उलटे रखे कमल से अलंकृत है।

बेगम मुमताज महल कब्र :

मुमताज महल को मरने के बाद बुरहानपुर में दफनाया गया लेकिन बाद में शाहजहाँ ने उनके शव को कब्र से निकलवा कर ले गए थे। ताजमहल के मध्य में मुमताज महल की कब्र को रखा गया है। बेगम मुमताज महल जी की कब्र काफी बड़ी और सफेद संगमरमर से बनी हुई है। मुमताज महल की कब्र को बहुत अलंकृत किया गया है।

मुस्लिम परंपरा के अनुसार कब्र की विस्तृत सज्जा मन है। इसलिए शाहजहाँ और मुमताज के पार्थिव शरीर को इन कब्रों के नीचे तुलनात्मक रूप से साधारण कब्रों में दफन किया गया हैं जिनके मुख दाये एवं मक्का की तरफ हैं। बेगम मुमताज महल की कब्र आंतरिक कक्ष में स्थित है।

मुमताज महल की कब्र का आधार लगभग 55 मीटर का बना हुआ है। मुमताज महल की कब्र का आधार और ऊपर का श्रुंगारदान रूप में बहुत ही बहुमूल्य पत्थरों और रत्नों से जड़ा है। इस पर किया गया सुलेखन मुमताज की पहचान और प्रशंसा है। शाहजहाँ की कब्र मुमताज महल की कब्र के दक्षिण की तरफ है। ताजमहल के पीछे बहुचर्चित कथा भी है जिसके अनुसार मानसून की पहली वर्षा की बूंदें इनकी कब्र पर गिरती हैं।

मुमताज मकबरे का सच :

पुरुषोत्तम ओक ने अपनी पुस्तक में लिखा है कि वास्तव में शाहजहाँ ने वहां पर अपनी दौलत छुपा कर रखी है इसलिए उसे कब्र के रूप में प्रचारित किया गया। अगर वास्तव में शाहजहाँ ने ताजमहल का निर्माण किया होता तो इतिहास में ताजमहल में मुमताज को किस दिन दफन किया गया था इसका उल्लेख जरुर किया गया होता।

ओक के अनुसार ताजमहल जयपुर के राजा का महल था। शाहजहाँ ने जयपुर के राजा से ताजमहल को हडप लिया था। एक हडपे हुए पुराने महल में दफनाए जाने के कारण उस दिन का कोई महत्व नहीं ? शाहजहाँ के लिए मुमताज के कोई मायने नहीं थे। जिस महल में हजारों सुंदर स्त्रियाँ हों उसमें भला सभी की मृत्यु का लेखा-जोखा कैसे रखा जा सकता है।

जिस शाहजहाँ ने मुमताज के जीवित रहने पर कोई निवास नहीं बनवाया था वह मुमताज के मरने पर भला इतना भव्य महल कैसे बनवा सकता है। आगरा शहर से 600 किलोमीटर की दुरी पर बुरहानपुर में मुमताज महल की कब्र है जो आज तक वैसी-की-वैसी बनी हुई है। बाद में मुमताज महल के नाम से आगरे के ताजमहल में एक कब्र बनी जो नकली हैं। बुरहानपुर से मुमताज महल के शव को लाने का नाटक किया गया था।

माना जाता है कि मुमताज महल को दफनाने के बहाने से शाहजहाँ ने राजा जयसिंह से उनका महल हडप लिया था और वहाँ पर अपनी सारी लूटी हुई संपत्ति को छुपा कर रखा था जो आज भी छुपी हुई है। मुमताज महल की मृत्यु सन् 1631 को बुरहानपुर के बुलारा महल में हुई थी। वहीं पर मुमताज महल को दफनाया गया था। लेकिन ऐसा माना जाता है कि 6 महीने बाद मुमताज महल के शरीर को राजकुमार शाह शूजा की निगरानी में आगरा लाया गया था।

आगरा के दक्षिण में उन्हें अस्थाई तौर पर फिर से दफनाया गया था और उन्हें अपने मुकाम यानी ताजमहल में दफन कर दिया गया था। पुरुषोत्तम के अनुसार शाहजहाँ ने मुमताज महल के दफन स्थान को इतना सुंदर बनाया था तो इतिहासकारों ने यह सोचा कि शाहजहाँ मुमताज से बहुत प्यार करता होगा। तब इतिहासकारों ने ताजमहल को प्रेम का प्रतीक लिखना शुरू कर दिया।

इतिहासकारों ने शाहजहाँ और मुमताज की गाथा को लैला-मजनू , रोमियो-जूलियट जैसा लिखा जिसकी वजह से फिल्में भी बनी और दुनिया भर में ताजमहल प्रेम का प्रतीक बन गया। मुमताज से विवाह करने के बाद शाहजहाँ ने अनेक विवाह किए थे अत: मुमताज की मृत्यु पर उनकी कब्र के लिए इतना खर्चीला ताजमहल बनवाने का कोई विशेष कारण नजर नहीं आता है।

मुमताज का कोई खास योगदान भी नहीं था जो उसे ताजमहल जैसे भव्य नगर में दफनाया जाए। मुमताज महल का नाम चर्चा में इसलिए आया था क्योंकि उन्होंने युद्ध के रास्ते के दौरान एक बेटी को जन्म दिया था और वह मर गई थी। शाहजहाँ के बादशाह बनने के दो-तीन साल बाद ही मुमताज की मृत्यु हो गई थी।

इतिहास में कहीं भी मुमताज और शाहजहाँ के प्यार का उल्लेख नहीं है। यह सब बाते अंग्रेज शासनकाल के इतिहासकारों की मनगढंत कल्पना है जिसे भारतीय इतिहासकारों ने विस्तार दिया है। शाहजहाँ युद्ध कार्य में ही व्यस्त रहता था। शाहजहाँ अपने सभी विरोधियों को मारकर गद्दी पर बैठा था। ब्रिटिश ज्ञानकोष के अनुसार ताजमहल में अतिथिगृह , पहरेदारों के लिए कक्ष , अश्वशाला आदि भी हैं किसी मृतक के लिए इन सबकी क्या आवश्यकता है।

ताजमहल के निर्माण का इतिहास :

ताजमहल की नींव को एक विशेष प्रकार की लकड़ी से बनाया गया है। ताजमहल को 28 प्रकार के बेशकीमती पत्थरों से सजाया गया था लेकिन बाद में अंग्रेज उन पत्थरों को निकालकर ले गए थे। ताजमहल को बनाने में लगभग 32 मिलियन रूपए का खर्चा हुआ था। ताजमहल का निर्माण करवाने के 25000 से भी अधिक कारीगरों को लगाया गया था जिनमें मजदूर , पेंटर , आर्टिस्ट और कई कलाकार भी शामिल थे।

ताजमहल के निर्माण में लगने वाले सामान को स्थानांतरित करने के लिए 1500 हाथियों का उपयोग किया गया था। ताजमहल के प्रधान रूपांकनकर्ता उस्ताद अहमद लाहौरी को माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि जिन कारीगरों ने ताजमहल का निर्माण किया था शाहजहाँ ने उनके हाथ कटवा दिए थे। ताजमहल की कुल ऊँचाई तकरीबन 73 मीटर रखी गई थी।

ताजमहल को बनाने के लिए आठ देशों से सामान मंगवाया गया और तुर्की , फारसी व भारतीय कई जगह के कारीगरों ने काम किया। ताजमहल की मीनारों को बाहर की ओर झुका हुआ बनाया गया था क्योंकि अगर कोई भी समस्या जैसे – भूकंप , आक्रमण हो तो मीनारें बाहर की ओर गिरें और गुंबद को कोई नुकसान न पहुंचे।

ताजमहल से जुडी रोचक बातें :

ताजमहल शाहजहाँ ने बनवाया लेकिन इस बात का आज तक कोई सबूत नहीं मिला है। ऐसा माना जाता है कि शाहजहाँ ने नदी के किनारे पर काले पत्थर से एक और ताजमहल बनाने की योजना बनाई थी लेकिन अपने बेटे औरंगजेब से ही युद्ध होने की वजह से उनकी यह योजना सफल न हो सकी थी। ताजमहल को शाहजहाँ की तीसरी पत्नी की याद में बनवाया गया था जिसे बनाने के लिए लगभग 18 साल लग गए थे।

ताजमहल के निर्माण में तीन करोड़ रूपए खर्च हुए थे जिसकी कीमत आज के समय में लगभग 64 अरब रुपयों के बराबर है। हर साल ताजमहल को देखने के लिए लगभग 40 से 50 लाख लोग आते हैं जिनमें से 30% लोग विदेशी होते हैं। ताजमहल ने धर्म , संस्कृति और भूगोल की सीमाओं को पार करके लोगों के दिलों से व्यक्तिगत एवं भावनात्मक प्रतिक्रिया कराई है। आगरा के ताजमहल को भारत की शान और प्रेम का प्रतीक माना जाता है।

ताजमहल के चारों तरफ की मीनारों की छाया एक अलग ही आईने जैसा प्रतिबिम्ब निर्मित करती है। इसे बहुत से लोग चमत्कार कहते हैं बल्कि कई आर्किटेक्चर भी इस पहेली को सुलझ नहीं पाए हैं। ताजमहल दिन में अलग-अलग समय में अलग-अलग रंगों में दिखाई देता है। सुबह के समय हल्का सा गुलाबी और शाम में दुधेरी सफेद जैसा और रात में हल्का सुनहरा दिखाई देता है। लोगों का रंगों के बदलने से तात्पर्य महिलाओं के स्वभाव के बदलने से है।

ताजमहल की दीवारों में पहले बहुत बहुमूल्य रत्न लगे हुए थे लेकिन सन् 1857 की क्रांति में ब्रिटिशों ने उसे काफी हानि पहुंचाई थी। सन् 1971 के भारत और पाकिस्तान युद्ध के समय ताजमहल के चारों ओर बांस का घेरा बनाकर हरे रंग के कपड़े से ढंक दिया गया था जिससे दुश्मनों की नजर ताजमहल पर न पड़े। ताजमहल कुतुबमीनार से भी 4.5 फुट ज्यादा ऊँचा है।

ताजमहल बनाने वाले कारीगरों के हाथ तो काटे गए थे लेकिन उन्हें इन सब के बदले उन्हें बहुत सारा इनाम दिया गया था। ताजमहल बनाने वाले मजदूरों को चाशनी में डूबा पेठा खिलाया जाता था जिससे उन्हें काम करने के लिए ताकत मिल सके। ताजमहल में स्थित मुमताज महल की कब्र पर हमेशा बुँदे टपकती हैं जबकि इमारत में कोई छेद नहीं है।

शाहजहाँ की अन्य पत्नियों और उनके सबसे प्रिय नौकर को ताजमहल के परिसर में ही दफनाया गया था। ताजमहल जयपुर के राजा जयसिंह की भूमि पर बना था जिसके बदले में शाहजहाँ ने जयसिंह को आगरा में एक महल दिया था।

ताजमहल का सच (Truth of Taj Mahal In Hindi) :

भारतीय इतिहास के पन्नों में यह लिखा है कि ताजमहल को शाहजहाँ ने मुमताज के लिए बनवाया था। शाहजहाँ मुमताज से बहुत प्यार करता था। पूरी दुनिया में ताजमहल को प्रेम का प्रतिक माना जाता है लेकिन इतिहासकारों का मानना है की ताजमहल को शाहजहाँ ने नहीं बनवाया था ताजमहल पहले से ही बना हुआ था।

शाहजहाँ ने ताजमहल में कुछ हेर-फेर करके इसे इस्लामिक की तरह करवा दिया था। भारतीय इतिहास में लिखा है कि मुमताज महल की मृत्यु 1631 में हुई थी और उन्हें 6 महीने बाद ही मुमताज को ताजमहल में फिर से दफनाया गया था लेकिन ताजमहल का निर्माण 1632 में शुरू हुआ था और 1653 में इसका निर्माण पूरा हुआ था। मुमताज को कभी ताजमहल में दफनाया ही नहीं गया था यह सबकुछ मनगढंत बातें हैं जो अंग्रेज और मुस्लिम इतिहासकारों ने लिखी थीं।

असल में सन् 1632 में ताजमहल को इस्लामिक लुक देने का काम शुरू हुआ था। सन् 1649 में ताजमहल का का मुख्य द्वार बना था जिस पर कुरान की आयतें तराशी गईं थीं। ताजमहल क मुख्य द्वार के ऊपर हिन्दू शैली का छोटे गुम्बद के आकार का मंडप है और दिखने में बहुत ही भव्य लगता है।

ताजमहल के नदी की तरफ दरवाजे के लकड़ी के एक टुकड़े की एक अमेरिकन प्रयोगशाला में की गई कार्बन जाँच से यह पता चला था कि वह लक्सी का टुकड़ा शाहजहाँ के काल से लगभग 300 साल पहले का है क्योंकि ताजमहल के दरवाजों को 11 विन सदी से ही मुस्लिम आक्रमकों द्वारा कई बार तोडकर खोला गया था जिसकी वजह से फिर से बंद करने के लिए दुसरे दरवाजे भी लगाए गए हैं। ताजमहल और भी अधिक पुराना हो सकता है। असल में ताजमहल को सन् 1115 में अथार्त शाहजहाँ के समय से लगभग 500 वर्ष पूर्व बनवाया गया था।

ताजमहल के लिए हिन्दू पक्ष के दावे :

हिन्दू पक्ष के अनुसार ताजमहल का असली नाम तेजो महालय है। ताजमहल वास्तव में एक शिव मंदिर है। आम तौर पर कहा जाता है कि ताजमहल का नाम मुमताज महल जो वहाँ पर दफन की गईं थीं उनकी वजह से पड़ा था। यह बात दो वजहों से ठीक नहीं बैठती है – पहली तो यह कि शाहजहाँ की बेगम का नाम मुमताज महल नहीं था और दूसरा यह कि किसी इमारत का नाम रखने के लिए किसी औरत के नाम से मुम को हटा देने से कोई अर्थ नहीं निकलता है।

ताजमहल शब्द के अंत जो महल शब्द है वो मुस्लिम शब्द है ही नहीं। अफगानिस्तान से लेकर अल्जीरिया तक किसी भी देश में कोई भी ऐसी ईमारत नहीं है जिसका नाम महल से पुकारा जाए। पूरे भारतवर्ष में 12 ज्योतिर्लिंग है। ऐसा लगता है कि तेजो महालय जिसे अब ताजमहल के नाम से जाना जाता है उनमें से ही एक है जिसे नागनाथेश्वर के नाम से जाना जाता था क्योंकि उसके जलहरी को नाग के द्वारा लपेटा हुआ जैसा बनाया गया था।

जब से शाहजहाँ ने उस पर कब्जा किया उसकी पवित्रता और हिंदुत्व समाप्त हो गए। मुमताज का नाम ज़ से समाप्त होता है न कि ज से इसलिए भवन का नाम ताज़ होना चाहिए था न कि ताज।

The post ताजमहल का इतिहास और रहस्मयी बातें-Taj Mahal History In Hindi appeared first on hindimeaning.com.

भारतीय मोर-About Peacock In Hindi

$
0
0

भारतीय मोर (About Peacock In Hindi) :

मोर इस पृथ्वी पर सुंदर पक्षियों में से एक है। मोर बहुत ही सुंदर और आकर्षक पक्षी है। मोर को भारत के राष्ट्रिय पक्षी होने का गौरव हासिल है। मोर अपने रंग-बिरंगे पंख फैलाकर और शानदार नृत्य के लिए संसारभर में प्रसिद्ध है। मोर के सिर पर कलगी होने की वजह से इसे पक्षियों का राजा भी कहा जाता है।

मोर का बजन ज्यादा होने की वजह से मोर ज्यादा लंबे समय तक उड़ नहीं सकता है। मोर एक प्रकार का पक्षी है जो अपनी लंबी और इंद्रधनुषी पूंछ के लिए प्रसिद्ध है। मोर को राष्ट्रिय पक्षी भारतीय जीवन , संस्कृति , सभ्यता , इसकी सुन्दरता और उपयोगिता के साथ लंबे सहयोग के कारण इस मान्यता को प्राप्त हुआ है।

मोर की आकृति (Peacock’s shape In Hindi) :

मोर दिखने में मुर्गे की तरह लगता है लेकिन यह मुर्गे से बड़ा होता है। भारतीय मोर की शारीरिक संरचना अन्य मोरों से अलग होती है। मोर गिद्ध से भी बड़ा होता है। मोर का वजन 6 किलोग्राम से लेकर 10 किलोग्राम तक होता है। मोर के सिर पर कलगी होती है और इसका सिर बहुत ही छोटा होता है। मोर के सिर पर छोटे-छोटे पंख होते हैं जो प्राय: हरे और भूरे रंग के होते हैं।

मोर की आँखें गहरे भूरे रंग की होती हैं। मोर के पंख हरे-नीले रंग के होते हैं। मोर के पंखों पर नीले रंग की चित्ती को आसानी से देखा जा सकता है। मोर के पैर लंबे और कुरूप होते हैं। मोर की गर्दन बहुत लंबी होती है और गर्दन का रंग सुंदर नीला मखमली होता है। मोर की लंबाई 1 मीटर के आस-पास होती है। मोर की अपेक्षा मोरनी भूरे रंग की होती है और आकार में छोटी होती है।

मोर के नाम (More Name of peacock In Hindi) :

मोर की गर्दन का रंग नीला होने की वजह से इसे नीलकंठ नाम से भी पुकारा जाता है। मोर को नील मोर के नाम से भी जाना जाता है। मोर साँपों को मारकर खाता है इसलिए मोर को संस्कृत में भुजंगभुक भी कहा जाता है। मोर को फारसी में ताउस कहते हैं। मोर का वैज्ञानिक नाम पावो क्रिस्टटस है।

मोर के प्रकार (Types of Peacocks In Hindi) :

संसार में मोर की तीन जातियां पाई जाती हैं जिनमें से भारतीय मोर सबसे आकर्षक और सुंदर होता है। मोर तीन प्रकार के होते हैं भारतीय मोर , हरी मोर , कांगो मोर।

मोर का निवास (Peacock’s Residence In Hindi) :

मोर भारत की सभी जगहों पर पाया जाता है। मोर मुख्य रूप से एक भारतीय पक्षी है लेकिन यह भारत के अतिरिक्त नेपाल , श्रीलंका , भूटान , बांग्लादेश , म्यांमार और पाकिस्तान के अनेक भागों में पाया जाता है। मोर अधिकतर खेतों और बगीचों में पाए जाते हैं। मोर भारत देश की विभिन्न जगहों पर पाए जाते हैं जैसे – उत्तर प्रदेश , हरियाणा , राजस्थान आदि। मोर भारत के कई स्थानों में हरियाली वाली जगहों पर पाया जाता है।

मोर जंगल में रहना अधिक पसंद करता है क्योंकि वहाँ पर उसे खाने और रहने में आसानी होती है। मोर अक्सर ऐसी जगह पर रहना पसंद करते हैं जहाँ पर पानी आसानी से उपलब्ध हो। मोर मुख्य तौर पर एशिया के दक्षिण और दक्षिणपूर्वी हिस्सों में पाया जाता है। मोर एक मुश्किल पक्षी होता है चरम जलवायु परिस्थितियों में इसकी अद्वितीय अनुकूलन क्षमता है इस वजह से यह राजस्थान के गर्म , शुष्क रेगिस्तान क्षेत्र में रह सकता है और स्थ ही यूरोप और अमेरिका के ठंडे मौसम के साथ अच्छी तरह से समायोजित कर सकता है।

आमतौर पर मोर स्थायी जल स्त्रोत के पास झाड़ियों या जंगलों में रहना पसंद करते हैं। रात के समय मोर लंबे पेड़ों की निचली शाखाओं पर आराम से सोता है। मोर जंगल में आधे सूखे घास के मैदानों से लेकर नम पेड़ों वाले जंगल की विशाल रेंज तक पाए जाते हैं। मोर मनुष्य निवास के खेतों , गांवों और शहरी क्षेत्रों के आस-पास पाए जाते हैं।

मोर का भोजन (Peacock’s Food In Hindi) :

मोर का मुख्य भोजन कीड़े-मकौड़े , फल सब्जियां , अनाज होता है। मोर शाकाहारी और मांसाहारी दोनों प्रकार का होता है। मोर को खाने में सांप भी बहुत प्रिय लगते हैं। मोर टमाटर , घास , अमरुद , केला , अफीम की फसल के कोमल अंकुर , हरी और लाल मिर्च बहुत ही चाव से खाता है। मोर छिपकली और कई तरह के कीड़े-मकौड़े खा सकते हैं और अनाज के दाने भी खा सकते हैं। लोग मोर को पसंद करते हैं और मोर जंगल का भोंपू भी होता है।

मोर का जीवनकाल (Peacock’s Lifetime In Hindi) :

मोर का जीवनकाल लगभग 15 से 20 वर्ष तक होता है। मोर का जीवनकाल 22 से 25 साल तक भी माना जाता है और बहुत से ऐसे लोग हैं जिन्होंने मोर को 40 साल तक भी जीते हुए देखा है।

मोर का स्वभाव (Peacock’s Nature In Hindi) :

मोर जंगल का बहुत ही सुंदर , चौकन्ना , शर्मीला और चतुर पक्षी है। मोर ज्यादा देर तक हवा में नहीं उड़ सकता है। वह उड़ने की जगह पर चलना पसंद करता है। मोर झुण्ड में रहना पसंद करता है और एक झुड में 5 से 8 मोर होते हैं। वर्षा के मौसम में मोर बादलों की काली घटा को देखकर पंख फैलाकर नाचने लगता है।

मोर को आराम करना बहुत पसंद होता है सर्दियों के दिनों में वह आधे दिन तक आराम करता रहता है और दोपहर के समय पेड़ों की ऊँची शाखाओं पर बैठकर अपने साथियों के पंख संवारता रहता है। मोर ज्यादा गर्मी सहन नहीं कर पाते हैं। ज्यादा गर्मी होने पर वे पेड़ों की ऊँची शाखाओं पर चढ़ जाते हैं।

जब नर मोर मादा मोर को आकर्षित करता है केवल तभी मोर अपने पंख फलकर सुंदर नृत्य करता है। मयूर नृत्य समूह में किया जाता है। नृत्य के समय मोर पंख फैलाकर बहुत ही धीमी गति से बहुत सुंदर नृत्य करता है। मोर के अण्डों में से 30 दिनों के आस-पास अंडे निकल आते हैं। बच्चे बहुत छोटे होते हैं और हल्के कत्थई रंग के होते हैं। मोर बहुत दूर तक की आवाज को सुनने की क्षमता रखता है।

मोर कभी भी जंगल में मनुष्य के समक्ष नहीं नाचता है क्योंकि मोर नाचते समय बेसुध हो जाता है और दुश्मन उसे आसानी से पकड़ लेते हैं। मोर को जब किसी के आने का आभाष होता है तो यह झाड़ियों में तेजी से भाग जाता है। मोर को धूल से स्नान करना बहुत प्रिय होता है। मोर अपने पंखों का प्रयोग अपने साथियों को आकर्षित करने के लिए करता है। जिस मोर के पंख ज्यादा आकर्षित और बड़े होते हैं वह अपने साथियों को बहुत ही जल्द आकर्षित कर लेता है।

भौतिक लक्षण (Physical Characteristics In Hindi) :

प्रजातियों के नरों को मोर कहा जाता है और दुनिया भर में मोर की सराहना की जाती है। मोर चोंच की नोक से लगभग 195 से 225 सेंटीमीटर की लंबाई तक ट्रेन की समाप्ति तक बढ़ सकते हैं। मोर का औसतन वजन 5 किलोग्राम तक कर सकते हैं। मोर के सिर , स्तन और गर्दन रंग में नील होते हैं। मोर के पास आँखों के चरों ओर सफेद रंग की पेंच हैं।

मोर के सिर के शीर्ष पर ईमानदार पंख का एक शिखर है जो दिखने में नील रंग और आधे चन्द्र के समान है। मोर की सबसे उल्लेखनीय विशेषता उसकी सुदर पूंछ है जिसे ट्रेन के रूप में भी जाना जाता है। यह ट्रेन पूरी तरह से केवल चार वर्ष के अंडे सेने के बाद ही विकसित होती है।

मोर के 200 अजीब प्रदर्शन पंख पीछे से बढ़ते हैं और बहुत लंबा उपरी पूंछ कवर्स का हिस्सा होता है। ट्रेन पंखों को संशोधित किया जाता है ताकि उनके पास पंख न जाएं और इसलिए वे ढीले से जुड़े होते हैं। रंग विस्तृत माइक्रोस्ट्रक्चरस का एक परिणाम है जो ऑप्टिकल घटनाओं का एक प्रकार का उत्पादन करता है।

हर रेलगाड़ी पंख एक आँख वाले अथार्त ओसेलस वाले अंडाकार क्लस्टर से समाप्त होती है जो बहुत ही आकर्षक होती है। इसकी पीठ के पंख भूरे रंग के होते हैं लेकिन छोटे और सुस्त होते हैं। भारतीय मोर की जांघों का रंग चमकता है और वे हिंद से ऊपर के पैर पर प्रेरणा देते हैं। मोरनी में चमकीले रंग बहुत कम होते हैं। मोरनी मुख्यतः भूरे रंग की होती है। मोरनी के पास कभी-कभी शिखा होती है लेकिन वह रंग में भूरे रंग की होती है।

मोरनी पूरी तरह से विस्तृत ट्रेन की कमी रखती हैं लेकिन उनके पास गहरे भूरे इंख की पूंछ के पंख होते हैं। वे सफेद चेहरे और पेट के साथ-साथ भूरे रंग की पीठ , हिन्द गर्दन और एक धातु हरी ऊपरी स्तन है। मूंछें 0.95 मीटर की लंबाई तक बढती हैं और कहीं 2.75 से 4 किलोग्राम के बीच वजन करती हैं।

भारतीय मोर प्रजातियों में पाए जाने वाले कुछ रंग भिन्नताएं हैं। आबादी के भीतर आनुवंशिक भिन्नता से उत्पन्न उत्परिवर्तन से काले कंधे भिन्नता का परिणाम होता है। मेलेनिन का उत्पादन करने वाले जिन में उत्परिवर्तन , सफेद मोहरों के परिणामस्वरूप क्रीम और भूरा चिन्हों के साथ सफेद पंख होते हैं।

मोर से जुड़े तथ्य (Facts related to peacocks In Hindi) :

मोरनी प्रत्येक साल में दो बार अंडे देती है जिनकी संख्या छ: से आठ होती है। मोर नृत्य के माध्यम से मोरनी को प्रजनन के लिए तैयार करता है। मोर को भगवान शिव के पुत्र कार्तिकेय की सवारी माना जाता है। मोर की आँखों की देखने की क्षमता बहुत अधिक होती है। मोर को भारतीय वन्य-जीवन अधिनियम 1972 के तहत संरक्षण दिया गया है और मोर की लगातार घटती हुयी संख्या को रोकने के लिए भारतीय सरकार ने सन् 1982 में मोर के शिकार पर प्रतिबन्ध लगाया था।

मोर आज के समय में लूप होने की कगार पर हैं लोग जहाँ पर इसकी सुंदरता को निहारते हैं वहीं दूसरी ओर मोर का शिकार भी करते हैं। देवी-देवताओं से संबंध होने की वजह से इसे हिन्दू समाज में दिव्य पक्षी माना जाता है। कोई भी हिन्दू मोर का वध नहीं करता है। पूरे शरीर के मुकाबले मोर की टागें बदसूरत होती हैं इसके पीछे एक किस्सा है।

एक बार मैना को किसी शादी में जाना था कि तभी मैना को अपने बदसूरत पैरों का ध्यान आया। मैना मोर के पास गई और कहने लगी कि मामा थोड़ी देर के लिए अपनी टाँगें बदल सकते हैं। मोर इस बात के लिए तैयार हो गया। बाद में मैना ने मोर की टाँगें वापस नहीं की थीं जिसका दुःख मोर को आज भी होता है। मोर किसी भी प्रकार से मनुष्य को हानि नहीं पहुंचाता है।

कहा जाता है कि मोर से प्रभावित होकर शाहजहाँ ने मयूरासन बनवाया था। मोर का नाम फारसी में ताउस होने की वजह से शाहजहाँ ने अपने सिंहासन का नाम तख्त ए ताऊस रखा था। वह सिंहासन बेशकीमती जवाहरातों से सात साल में बनकर तैयार हुआ था। कहा जाता है कि इस मयूरासन को नादिरशाह लूटकर ईरान ले गया था।

मोर के पंख को भगवान कृष्ण अपने सिर पर लगाते थे जिसकी वजह से मोर भारत में सभी जगहों में प्रिय है। मोर हर साल अपने पंख बदलता है। मोर के पुराने पंख झड़ जाते हैं और उसकी जगह पर नए पंख आ जाते हैं। बहुत से प्राचीन सिक्कों और आकृतियों में मोर के पंख बने हुए मिले हैं। मोर का रंग जन्मजात ऐसा नहीं होता है। बचपन में इसका रंग मोरनी की तरह होता है। कुछ महीनों के बाद इसके रंग में बदलाव आता है और इसके पंखों का विकास होता है।

मोर के लाभ (Benefits of Peacocks In Hindi) :

मोर किसान का एक बहुत ही अच्छा दोस्त साबित होता है। मोर किसान की फसल को बर्बाद करने वाले कीटों को खाता है। मोर के पंखों का प्रयोग सजावट के काम में किया जाता है। मोर के पंखों को गुलदानों में सजाया जाता है। पंखों को वृत्ताकार बनाकर उनके पंख बनाए जाते हैं जो गर्मियों में हवा करने में बहुत ही काम आते हैं। मोर के पंखों का प्रयोग देवी-देवताओं पर चढ़ाने के लिए भी किया जाता है।

मोर के पंखों का प्रयोग जादू-टोने में भी किया जाता है। मोर के पंख का प्रयोग जले हुए भाग पर दवाई लगाने के लिए भी किया जाता है। बुरी नजर से बच्चों को बचाने के लिए मोर पंखों से बच्चों की हवा की जाती है और उनके गले में बांधा जाता है। मोर अपन चोंच से सांप को मारकर दुसरे प्राणियों की रक्षा करता है और अपनी भूख भी मिटाता है।

ऐसा माना जाता है कि मोर के पंखों में कुछ विशेष प्रकार के पदार्थ होते हैं जो जड़ी-बूटी में काम आते हैं। मोर के पंखों को हिन्दू धर्म में शुभ माना जाता है। मोर के खुबसुरत पंखों का प्रयोग लकड़ी के साथ सजावट के लिए और कई प्रकार की फैंसी वस्तुओं के लिए कुटीर उद्योगों में किया जाता है।

मोर राष्ट्रिय पक्षी (Peacock national bird In Hindi) :

मोर भारत का राष्ट्रिय पक्षी है। मोर को भारत का राष्ट्रिय पक्षी 26 जनवरी , 1963 में भारत सरकार द्वारा घोषित किया गया था। छठी शताब्दी में कवि कालिदास ने भी मोर को राष्ट्रिय पक्षी का दर्जा दिया था। मोर दुसरे पक्षियों की तुलना में बड़ा और र्न्ग्बिर्न्गा पक्षी होता है। मोर के सिर पर जन्म से ही मुकुट के रूप में कलगी होती है। मोर के पंख लंबे सतरंगी और चमकदार होते हैं।

मोर की गर्दन लंबी और चमकदार नीले रंग की होती है। मोर के पंजे नुकीले और तीखे होते है जिनका प्रयोग मोर सांप और चूहों को खाने के लिए प्रयोग करता है। मोर भारत और श्रीलंका का राष्ट्रिय पक्षी है। मोर को राष्ट्रिय पक्षी इसलिए बनाया गया क्योंकि पहले यह भारत में ही पाया जाता था।

राष्ट्रिय पक्षी के लिए पहले सारस , हंस , ब्राम्हिणी काइट के नामों पर भी विचार किया गया था लेकिन मोर को ही चुना गया। इसके पीछे बहुत से कारण हैं। नेशनल बर्ड सिलेक्शन के लिए 1960 में तमिलनाडु राज्य के उधगमंडलम में एक मीटिंग हुई थी। मीटिंग की गाइडलाइन्स के अनुसार देश के प्रत्येक हिस्से में पाए जाने वाले पक्षी को नेशनल बर्ड के लिए चुनना जरूरी था। आम आदमी उस पक्षी को भी जानता हो और वो भारतीय संस्कृति का हिस्सा हो , इन बातों पर मोर सबसे अधिक खरा उतरा था।

मोर संरक्षण कानून (Peacock Protection law In Hindi)

हमारे देश में मोर का शिकार करने वाले अपराधी को सरकार द्वारा दंड दिया जाता है। भारत में मोर की सुरक्षा के लिए सन् 1972 में मोर संरक्षण कानून बनाया गया। यह संरक्षण कानून मोर की संख्या बढ़ाने और उनकी रक्षा करने के लिए बड़ा ही अच्छा कानून है।

मोर की संख्या में बढ़ोतरी करने के लिए सरकार कई तरह के मोर संरक्षण के अभियान चलाती रहती है। इस कानून के बनने के बाद से मोर की संख्या में बहुत सुधार हुआ है। यह सरकार ने यह कानून बनाया गया तो मोर की संख्या बढने लगी इसके अतिरिक्त सरकार ने मोर के बचाव के लिए तथा उनकी सुरक्षा व्यवस्था के लिए कई प्रकार के संगठन तथा कानून बनाए हुए हैं।

The post भारतीय मोर-About Peacock In Hindi appeared first on hindimeaning.com.

दीपावली की शुभकामना सन्देश-Diwali Wishes In Hindi

$
0
0

Diwali Wishes In Hindi :

|| ॐ गणेशाय नमः ||
लक्ष्मीजी और गणेशजी की कृपा से आपको कामयाबी, सुख, शान्ति और समृद्धि प्रदान हो।
शुभ दीपावली

Choti Diwali 2018– 6th November – Tuesday

Diwali / Deepawali 2018 – 7th November – Wednesday

Lakshmi Puja Muhurta = 17:57 to 19:53 , Duration = 1 Hour 55 Mins


Diyon ki roshni se jhilmilata aangan ho,
patakhon ki goonjo se aasman roshan ho,
aisi aaye jhum ke yeh diwali,
har taraf kushiyon ka mausam ho,
HAPPY DIWALI TO ALL FRIENDS.


Tamaan jahaan jagmagaya,
Fir seTyohar Roshni ka aaya,
Koi tumhe hamnse pehle
Na dede badhayian Isliye,
ye paigam e mubarak sabse pehle humne bhijwaya!
Diwali Mubarak


Muskarte hanste deep tum jalana,
Jivan main nai khushiyon ko lana,
Dukh dard apne bhool kar,
Sabko gale lagna, sabko gale lagna,
Appko is diwali ki shubhkamnaye.


Iss diwali pe hamari dua hai ki,
Apka har sapnna pura ho,
Duniya ke unche mukam apke ho,
Shoharat ki bulandiyon par naam apka ho!
Wish U a very Happy Diwali!


Deep jalte jagmagate rahe,
Hum aapko aap hame yaad aate rahe,
Jab tak zindagi hai,
Dua hai hamari,
Aap chand ki tarah zagmagate rahe.
Happy Diwali


Safalta kadam chumti rahe,
Khushi aaspas ghumti rahe,
Yash itna faile ki KASTURI sharma jaye,
Laxmi ki kripa itni ho ki BALAJI bhi dekhte rah jaye.
Happy Diwali


Pal pal sunhare phool khile,
Kabhi na ho kaanto ka saamna,
Jindagi aapki khushiyo se bhari rahe,
Dipawali par humaari yahi shubhkaamna.


Koyee majaburi nahi, dil kare to yaad karna,
risto bhid se furasat, mile to yad karna,
hai DUWA ki har khushi ho naseeb tujhe,
phir bhi kabhi aakhe bhar aayee to, hame yaad karna!!


Phool ki shuruvat kali se hoti hai,
Zindagi ki shuruvat pyar se hoti hai,
Pyar ki shuruvat apno se hoti hai aur
apno ki shuruvat aapse hoti hai.

Happy Diwali


दीप से दीप जले तो हो दीपावली
उदास चेहरे खिलें तो हो दीपावली
बाहर की सफाई तो हो चुकी बहुत
दिल से दिल मिले तो हो दीपावली


रोशन हो दीपक और सारा जग जगमगाये
लिए साथ सीता मैय्या को राम जी हैं आये
हर शहर यु लगे मनो अयोध्या हो
आओ हर द्वार हर गली हर मोड़ पे हम दीप जलाये


D=dil se
i=is diwali ke
w=waqt
a=apke
l=liye
i=ishwar
…se prathna karte hey “Happy diwali”


झिलमिलाते दीपों की
रोशनी से प्रकाशित
ये दीपावली आपके
घर में
सुख समृद्धि और
आशीर्वाद ले कर आए
शुभ दीपावली!


जगमग थाली सजाओ,
मंगल दीपो को जलाओ,
अपने घरों और दिलों में
आशा की किरण जगाओ,
खुशियों और समृद्धि से
भरा हो आपका जीवन,
इसी कामना के साथ
शुभ दीपावली


चलो आज फिर एक दीप जलाया जाये
रूठे हुए को फिर मनाया जाये
पोंछ कर आँखों में छिपी उदासी को
जख्मो पे मलहम लगाया जाये


इस दिवाली में हमारी
कामना है कि आपका हर
सपना पूरा हो,
और आप सफलता के
उंचे मुकाम पर हांे
दीपावली की हार्दिक बधाई
और शुभकामनाएं!


लक्ष्मी आए इतनी कि
सब जगह आपका नाम हो,
दिन रात व्यापार बढ़े
आपका इतना अधिक काम हो,
घर और समाज में
आप बनंे सरताज,
यहीं कामना है हमारी
आपके लिए,
दिवाली की ढेरों शुभकामनाएं!


दीपावली में खूब
बम, पटाखे चलाएं
पड़ोसियों की नींद उड़ाएं
और लोगों को बहरा
बनाएं आपको दीपावली की हार्दिक
बधाई!


दीपक की रोशनी
मिठाईयों की मिठास
पटाखों की बौछार
धन धान की बरसात हर पल
हर दिन आपके लिए लाए
धनतेरस का त्यौहार
हैप्पी दिवाली!


खुशी आसपास घूमती रहे,
यश इतना फैले की
कस्तूरी शरमा जाए,
लक्ष्मी की कृपा इतनी हो कि
बालाजी भी देखते रह जाएं,
हैप्पी दिवाली!


रात थी पूरी काली
लाइफ थी एकदम खाली
फिर सब कुछ गया बदल
जब आप आए हमारे
घर दिवाली पर..
हैप्पी वाली दिवाली है!


सागर भरी खुशियां,
आसमान भरा प्यार,
मिठाई की खुशबू,
दीपों की बहार,
मुबारक हो आपको
दिवाली का त्यौहार
हैप्पी दिवाली!!


मैं अपना मन केवल
पूजा, अर्चना, आरती,
साधना, भक्ति, भावना
में ही लगाना चाहता हूं,
आपका क्या प्लान है?


इस दिवाली पर हमारी
कामना है कि आपका हर
सपना पूरा हो और आप
सफलता के उंचे
मुकाम पर पहुंचे
दीपावली की शुभकामनाएं
आपको और आपके अपनों को।


राम जी आपके
दुखों का नाश करें
और आपके जीवन में
सुख लाएं, रोशनी के दीये आपके
घर में खुशहाली लाएं,
दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं!


दीयों से रोशन हो आपके घर द्वार,
खुशियां आएं बार बार, सफलता हर
दम करे आपका इंतज़ार,
शुभ कामनाओं के साथ
मनाओ दिवाली का त्यौहार


दिवाली की लाइट
करे सब को डिलाइट
पकड़ो मस्ती की फ्लाइट और
धूम मचाओ आॅल नाइट
हैप्पी दिवाली!


इस दीवाली के अवसर पर हम
चाहते हैं आपकी खुशी पूरे ईमान से
यही दुआ है कि सब हसरतें पूरी हो आपकी,
और आप मुस्कुराएं दिल-ओ-जान से!


दीयों की रोशनी,
पटाखों का धमाल,
सूरज की किरणें खुशियों की
बौछार, चांद की
चांदनी अपनों का प्यार,
मुबारक हो आपको
दिवाली का त्यौहार!


पेट्रोल हाइक है
इन्कम टाइट है
जेब खाली है
फिर भी आप सबको
हैप्पी वाली दिवाली है!


आए अमावस्या की सुहानी रात
माँ लक्ष्मी का आशीर्वाद
जगमगाते दीपों के साथ
धरती पर चमकते सितारों की
बारात खुशियों भरी
शुभ दीपावली!


दीप जलते जगमगाते रहें,
हम आपको आप हमें
याद आते रहे,
जब तक जि़ंदगी है,
दुआ है हमारी
आप चांद की तरह
जगमगाते रहें,
हैप्पी दिवाली!


झिलमिलाते दीपों की रोशनी से प्रकाशित ये दीपावली आपके
घर में सुख समृद्धि और आशीर्वाद ले कर आए. शुभ दीपावली!


ये दिवाली आपके जीवन में खुशियों की बरसात लाए,
धन और शौहरत की बौछार करे, दिवाली की हार्दिक शुभकामनाएं!


दीपक का प्रकाश हर पल आपके जीवन में नई रोशनी लाए,
बस यही शुभकामना है आपके लिए इस दीपावली में। शुभ दीपावली!


दीपावली आए तो रंगी रंगोली, दीप जलाए, धूम धड़ाका, छोड़ा पटाखा,
जली फुलझडि़यां सबको भाए…आप सबको दीपावली की शुभकामनाएं!


दीपावली में दीपों का दीदार हो,
और खुशियों की बौछार हो। शुभ दीपावली!


इस दिवाली में यही कामना है कि सफलता आपके कदम चूमे
और खुशी आपके आसपास हो। माता लक्ष्मी की कृपा आप पर बनी रहे।


दीवाली है रौशनी का त्यौहार, लाये हर चेहरे पर मुस्कान,
सुख और समृधि की बहार, समेट लो सारी खुशियाँ, अपनों का साथ और
प्यार इस पावन अवसर पर आप सभी को दीवाली का प्यार.


दीप से दीप जले तो हो दीपावली उदास चेहरे खिलें तो हो दीपावली
बाहर की सफाई तो हो चुकी बहुत दिल से दिल मिले तो हो दीपावली !
शुभ दीवाली


धन लक्ष्मी से भर जाये घर हो वैभव अपार खुशियो के दीपो से सज्जित हो सारा संसार
आंगन आये बिराजे लक्ष्मी करे विश्व सत्कार मन आंगन मे भर दे उजाला दीपो का त्योहार.!


दीप जलते रहे मन से मन मिलते रहे गिले सिकवे सारे मन से निकलते रहे
सारे विश्व मे सुख-शांति की प्रभात ले आये ये दीपो का त्योहार खुशी की सोंगात ले आये


कह दो अंधेरों से कहीं और घर बना लें
मेरे मुल्क में रौशनी का सैलाब आया है.


आज दीपावली मनाने से पहले देश के उन वीरों को भी याद करें
जो दिन-रात हमारे चैन-सुख के लिये सीमा पर निगरानी रखते हैं.


दिवाली के बाद की सुबह उनके लिये बड़ी खुशियाँ लेकर आती है,
कुछ पटाखे तुम बिना जले ही फेँक दिया करो यारो.


जगमग थाली सजाओ, मंगल दीपो को जलाओ,
अपने घरों और दिलों मैं आशा की किरण जगाओ,
खुशियाँ और समृधि से भरा हों आपका जीवन,
इसी कामना के साथ शुभ दीपावली


हरदम खुशियाँ हो साथ, कभी दामन ना हो खाली,
हम सभी की तरफ से, आपको.. शुभ दीपावली!


आई आई दिवाली आई, साथ माँ कितनी खुशियाँ लायी,
धूम मचाओ मौज मनाओ, आप सभी को दिवाली की बधाई. शुभ दीवाली।


सुख समृधि आपको मिले इस दीवाली पर,
दुख से मुक्ति मिले इस दीवाली पर,
माँ लक्ष्मी का आशीर्वाद हो आपके साथ
और लाखों खुशिया मिले इस दीवाली पर.


रोशन हो दीपक और सारा जग जगमगाये
लिए साथ सीता मैय्या को राम जी हैं आये
हर शहर यु लगे मनो अयोध्या हो
आओ हर द्वार हर गली हर मोड़ पे हम दीप जलाये.


दीपावली की शुभ बेला में
अपने मन का अन्धकार मिटायें
मिठाइयां खाएं, पटाखे चलाएं
और दीपों के इस त्यौहार को मनाएं.


होगी रौशनी और सजेगे घर और बाजार
मिल कर गले एक दूजे के बनायेगे खुशियों का त्यौहार,
देखो आ रही है दिवाली
हा जी आ रही है दिवाली हो जाओ तैयार.


अँधेरा हुवा हे देर रात के साथ,
नयी सुबह आई हे दिवाली लेके साथ,
अब आँखे खोल दो और देखो मैसेज आये हे,
और दिवाली की सुभकामना साथ लाया हे!


मुस्कुराते हँसते दीप तुम जलाना
जीवन में नयी खुशियो को लाना
दुःख दर्द अपने भूल कर,
सबको गले लगाना
और प्यार से दिवाली मनाना..!!!

!!  दिवाली की शुभकामनाएं   !!


सुख आये शांति आये आपके जीवन में,
समृधि आये खुशियां आये आपके जीवन में,
रहो आप हर परेशानी से दूर
और इस दीवाली लक्ष्मी आये आपके जीवन में..


सुख समृधि आपको मिले इस दीवाली पर,
दुख से मुक्ति मिले इस दीवाली पर,
माँ लक्ष्मी का आशीर्वाद हो आपके साथ
और लाखों खुशिया मिले इस दीवाली पर.

! शुभ दीवाली !


रोशन हो दीपक और सारा जग जगमगाये
लिए साथ सीता मैय्या को राम जी हैं आये
हर शहर यु लगे मनो अयोध्या हो
आओ हर द्वार हर गली हर मोड़ पे हम दीप जलाये


दीप से दीप जले तो हो दीपावली
उदास चेहरे खिलें तो हो दीपावली
बाहर की सफाई तो हो चुकी बहुत
दिल से दिल मिले तो हो दीपावली

! शुभ दीवाली !

The post दीपावली की शुभकामना सन्देश-Diwali Wishes In Hindi appeared first on hindimeaning.com.

पत्र लेखन उदाहरण सहित-Letter Writing In Hindi

$
0
0

पत्र लेखन (Application In Hindi) :

पत्र का शाब्दिक अर्थ होता है – ऐसा कागज जिस पर कोई बात लिखी या छपी हो। पत्र लेखन के माध्यम से हम अपने भावों और विचारों को व्यक्त कर सकते हैं। पत्रों के माध्यम से एक व्यक्ति अपनी बातों को लिखकर दूसरों तक पहुँचा सकता है। पत्र को अभिव्यक्ति का एक सशक्त माध्यम भी माना जाता है। इससे अपनी बातों को लिखकर बहुत दूर तक पहुंचाया जा सकता है। जिन बातों को लोग कहने में हिचकिचाते हैं उन बातों को पत्रों के माध्यम से आसानी से समझाया या कहा जा सकता है।

पत्र लेखन का प्रयोग बहुत से कामों में किया जाता है। आजकल हमारे पास हाल-चाल पूछने के लिए बहुत से आधुनिक साधन हैं। लकिन बहुत से कार्यों में पत्र लेखन ही करना पड़ता है। पत्र लेखन बहुत ही पुराना साधन है। पहले आधुनिक साधन नहीं थे इसलिए पत्रों के माध्यम से ही एक-दूसरे से बात हुआ करती थी। इसे कला की संज्ञा दी जाती है। पत्रों में आजकल कलात्मक अभिव्यक्तियाँ हो रही हैं।

साहित्य में भी इनका प्रयोग किया जाने लगा है। एक अच्छा पत्र लिखने क लिए कलात्मक सौन्दर्यबोधक भावनाओं का अभिव्यंजन किया जाता है। एक पत्र के द्वारा लेखक की भावनाएं नहीं बल्कि उसका व्यक्तित्व भी उभरता है। पत्र लेखन से हम व्यक्ति के चरित्र , दृष्टिकोन , संस्कार , मानसिक , स्थिति , आचरण का पता चलता है। इस तरह की अभिव्यक्ति व्यवसायिक पत्रों की अपेक्षा सामाजिक और साहित्यिक पत्रों में ज्यादा किया जाता है।

1. पत्र को साहित्य की वह विद्या माना जाता है इससे मनुष्य समाज में रहते हुए अपने भावों और विचारों को दूसरों से संप्रेषित करने के लिए पत्रों का प्रयोग किया जाता है। अत: व्यावसायिक , सामाजिक , कार्यालय से संबंधित विचारों को पत्रों के माध्यम से ही व्यक्त किया जाता है।

2. पत्रों के माध्यम से मित्रों और परिजनों के साथ संबंध स्थापित किये जा सकते हैं। इनके माध्यम से मनुष्य प्रेम , सहानुभूति , क्रोध प्रकट किये जा सकते हैं।

3. जब कार्यालय और व्यवसाय मे मुद्रित रूप में पत्रों का विशेष प्रयोग किया जाता है। मुद्रित रूप के पत्रों को सुरक्षित रखा जा सकता है।

4. छात्रों क जीवन में भी पत्रों का बहुत महत्व होता है। छात्र को अवकाश लेने , फ़ीस माफ़ी , स्कूल छोड़ने , स्कोलरशिप पाने , व्यवसाय चुनने , नौकरी पाने के लिए पत्र की जरूरत पडती है।

5. पत्रों के द्वारा सामाजिक संबंधों को मजबूत किया जाता है। पत्र को भविष्य का दस्तावेज भी कहा जा सकता है।

पत्र लेखन के लिए आवश्यक बातें :

(1) जिसके लिए पत्र लिखा जाता है उसके लिए शिष्टाचार पूर्ण शब्दों का प्रयोग करने चाहिए।
(2) पत्र में ह्रदय के भाव स्पष्ट दिखाई देने चाहिए।
(3) पत्र की भाषा आसान और स्पष्ट होनी चाहिए।
(4) पत्र में बेकार बातें नहीं लिखनी चाहिए उसमे मुख्य विषय के बारे में ही बातें लिखी जाती हैं।
(5) पत्र में आशय स्पष्ट करने के लिए छोटे शब्दों का प्रयोग करना चाहिए।
(6) पत्र लिखने के बाद उससे दुबारा जरुर पढना चाहिए।
(7) पत्र प्राप्तकर्ता की आयु , संबंध और योग्यता को ध्यान में रखकर भाषा का प्रयोग करना होता है।
(8) अनावश्क विस्तार से हमेशा बचना चाहिए।
(9) पत्र में लिखा हुआ लेख साफ व स्वच्छ होना चाहिए।
(10) भेजने वाले और प्राप्त करने वाले का पता साफ लिखा होना चाहिए।

पत्रों के प्रकार (Types of letters In Hindi) :

(1) निजी पत्र – Personal Letter
(2) प्रार्थना पत्र – Request Letter
(3) व्यवसायिक पत्र – Business Letter
(4) सरकारी पत्र – Official Letter


1) Format of निजी पत्र – Personal Letter
In personal letter, please take care that the address and date comes upper right side of the letter. The format is: (व्यक्तिगत पत्र में, कृपया ध्यान रखें कि पता और तिथि पत्र के ऊपरी दाईं ओर आती हैं। व्यक्तिगत पत्र का Format इस प्रकार है) : –

कश्मीरी गेट,
नई दिल्ली – 110001,
भारत
25th जुलाई, 2017

प्रिय मित्र,

नमस्कार/नमस्ते!

————————– संदेश (Message) ————————

तुम्हारा मित्र,
शिवम्


2) Format of प्रार्थना पत्र – Request Letter

सेवा में,
श्रीमान प्रधानाचार्य जी,
…..पब्लिक स्कूल,
कृष्णा कालोनी, भिवानी

विषय : बीमारी के कारण चार दिन के अवकाश हेतु।

आदरणीय/मान्यवर महोदय,

————————– संदेश (Message) ————————

धन्यवाद,
दिनांक : 25th जुलाई, 2017

आपका आज्ञाकारी
शिवम् अत्री,
कक्षा: आठवी ‘क’


3) Format of व्यवसायिक पत्र – Business Letter
Writing to a publishing house asking for the information on the availability of new novels. (नए उपन्यासों की उपलब्धता के बारे में जानकारी देने के लिए एक प्रकाशन घर पर लेखन) :-

सेवा में,
प्रबंधक महोदय,
राम पब्लिशिंग हाउस,
कनॉट प्लेस, दिल्ली

विषय : नये उपन्यास की उपलब्धता।
मान्यवर,

————————– संदेश (Message) ————————

धन्यवाद,
कश्मीरी गेट,
नई दिल्ली – 110001,
दिनांक : 25th जुलाई, 2017

                                                                                                                                                                         भवदीय
शिवम् अत्री


4) Format of सरकारी पत्र – Official Letter
Writing a letter to the regional income tax officer on a mistake in income tax account for the current year.(चालू वर्ष के लिए आयकर खाते में एक गलती पर क्षेत्रीय आयकर अधिकारी को एक पत्र लिखना।) :-

सेवा में,
श्रीयुत आयकर आधिकारी,
नई दिल्ली विभाग,
नई दिल्ली

विषय : आयकर में त्रुटि।
मान्यवर,

————————– संदेश (Message) ————————

धन्यवाद,
कश्मीरी गेट,
नई दिल्ली – 110001,
दिनांक : 25th जुलाई, 2017

                                                                                                                                                                         भवदीय
शिवम् अत्री

The post पत्र लेखन उदाहरण सहित-Letter Writing In Hindi appeared first on hindimeaning.com.

हनुमान चालीसा। अष्ट सिद्धि नौ निधि नाम

$
0
0

अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता , अस बर दीन जानकी माता॥

[आपको माता श्री जानकी से ऐसा वरदान मिला हुआ है, जिससे आप किसी को भी आठों सिद्धियां और नौ निधियां दे सकते है।]

1.) अणिमा → जिससे साधक किसी को दिखाई नहीं पड़ता और कठिन से कठिन पदार्थ में प्रवेश कर जाता है।

2.) महिमा → जिसमें योगी अपने को बहुत बड़ा बना देता है।

3.) गरिमा → जिससे साधक अपने को चाहे जितना भारी बना लेता है।

4.) लघिमा → जिससे जितना चाहे उतना हल्का बन जाता है।

5.) प्राप्ति → जिससे इच्छित पदार्थ की प्राप्ति होती है।

6.) प्राकाम्य → जिससे इच्छा करने पर वह पृथ्वी में समा सकता है, आकाश में उड़ सकता है।

7.) ईशित्व → जिससे सब पर शासन का सामर्थ्य हो जाता है।

8.) वशित्व → जिससे दूसरों को वश में किया जाता है।

The post हनुमान चालीसा। अष्ट सिद्धि नौ निधि नाम appeared first on hindimeaning.com.


भारतीय संविधान-Indian Constitution In Hindi-Bharat Ka Samvidhan

$
0
0

भारतीय संविधान (Indian Constitution In Hindi) :

भारत का संविधान भारत का सर्वोच्च विधान है। भारत , संसदीय प्रणाली की सरकार वाला एक प्रभुत्तासंपन्न , समाजवादी , धर्मनिरपेक्ष और लोकतंत्रात्मक गणराज्य है। यह गणराज्य भारतीय संविधान द्वारा शासित है। भारतीय संविधान संविधान सभा के द्वारा 26 नवंबर , 1949 को पारित हुआ और 26 जनवरी , 1950 से प्रभावी हुआ।

बाबासाहेब डॉ भीम राव अंबेडकर को भारत के संविधान का निर्माता माना जाता है। वे संविधान मसौदा समिति के अध्यक्ष थे और उन्हें संविधान का फाइनल ड्राफ्ट तैयार करने में 2 साल 11 महीने और 18 दिन लगे थे। सारे देश में 26 नवंबर को संविधान दिवस के तौर पर मनाया जाता है। संविधान में प्रशासन या सरकार के अधिकार , उसके कर्तव्य और नागरिकों के अधिकार को विस्तार से बताया गया है।

मसौदा तैयार करने वाली समिति ने संविधान हिंदी और अंग्रेजी में हाथ से लिखकर कैलिग्राफ किया गया था और इसमें कोई टाइपिंग या प्रिंटिंग शामिल नहीं थी। 448 अनुच्छेद , 12 अनुसूची , 5 परिशिष्ट और 100 संसाधनों के साथ दुनिया का सबसे बड़ा संविधान है। संविधान में सरकार के संसदीय स्वरूप की व्यवस्था की गई है जिसकी संरचना कतिपय एकात्मक विशिष्टताओं सहित संघीय हो। केन्द्रिय कार्यपालिका का सांविधानिक प्रमुख राष्ट्रपति है।

भारत का संविधान : संविधान का निर्माण संविधान सभा द्वारा किया गया। संविधान सभा का गठन कैबिनेट मिशन 1946 के प्रावधानों के अनुसार किया गया। संविधान सभा का प्रथम अधिवेशन 9 दिसंबर , 1946 को डॉ सच्चिदानंद की अध्यक्षता में हुआ। 11 दिसंबर , 1946 को डॉ राजेन्द्र प्रसाद को संविधान सभा का स्थायी अध्यक्ष चुना गया।

डॉ भीमराव अम्बेडकर की अध्यक्षता वाली प्रारूप समिति ने संविधान का निर्माण अंतिम रूप से किया। 26 नवंबर , 1949 को संविधान अंगीकृत , अधिनियम हुआ। 26 जनवरी , 1950 से संविधान लागू हुआ। भारत इसी दिन से गणतंत्र बना। मूल संविधान में 22 भाग 8 अनुसूचियां तथा 395 अनुच्छेद थे। आज वर्तमान में 12 अनुसूचियां हैं।

भारतीय संविधान का दो तिहाई भाग भारत शासन अधिनियम 1935 से लिया गया है। भारतीय संविधान के निर्माण में विभिन्न देशों के संविधान से उनके महत्वपूर्ण तत्व लिए गए हैं। संविधान की प्रस्तावना को संविधान की कुंजी कहा जाता है। 42 संशोधन 1976 द्वारा प्रस्तावना में पंथ निरपेक्ष , समाजवादी और अखण्डता शब्द जोड़े गए।

भारतीय संविधान का इतिहास (History of Indian Constitution)

द्वितीय विश्वयुद्ध के समापन के बाद जुलाई 1945 में ब्रिटेन ने भारत संबंधी अपनी नई नीति की घोषणा की तथा भारत की संविधान सभा के निर्माण के लिए एक कैबिनेट मिशन भारत भेजा गया जिसमें 3 मंत्री थे। 15 अगस्त , 1947 को भारत के आजाद हो जाने के बाद संविधान सभा की घोषणा हुई और इसने अपना काम 9 दिसंबर , 1946 से शुरू कर दिया।

संविधान सभा के सदस्य भारत के राज्यों की सभाओं के निर्वाचित सदस्यों के द्वारा चुने गए थे। जवाहरलाल नेहरु , डॉ भीमराव अम्बेडकर , डॉ राजेन्द्र प्रसाद , सरदार वल्लभ भाई पटेल , मौलाना अबुल कलम आजाद आदि इस सभा के प्रमुख सदस्य थे। इस संविधान सभा ने 2 साल 11 महीने 18 दिन में कुल 114 दिन बैठक की।

इसकी बैठकों में प्रेस और जनता को भाग लेने की स्वतंत्रता थी। भारत के संविधान के निर्माण में डॉ भीमराव अम्बेडकर ने प्रमुख महत्वपूर्ण भूमिका निभाई इसलिए उन्हें संविधान का निर्माता कहा जाता है। संविधान को 26 जनवरी , 1950 को लागू किया गया था।

भारतीय संविधान के स्त्रोत :

भारतीय संविधान के प्रमुख स्त्रोत राष्ट्र – विविध स्त्रोत इस प्रकार से हैं।

1. संयुक्त राज्य अमेरिका – मौलिक अधिकार , न्यायिक पुनर्विलोकन , संविधान की सर्वोच्चता , न्यायपालिका की स्वतंत्रता , निर्वाचित राष्ट्रपति एवं उस पर महाभियोग , न्यायधीशों को हटाने की विधि एवं वित्तीय आपात , उच्चतम न्यायालय का गठन एवं न्यायाधीशों को हटाने की प्रक्रिया।

2. ब्रिटेन – संसदीय शासन प्रणाली , एकल नागरिकता व विधि निर्माण की प्रक्रिया , विधि का शासन।

3. आयरलैंड – नीति निर्देशक तत्व , राष्ट्रपति के निर्वाचक मंडल की व्यवस्था , आपातकालीन उपबंध।

4. ऑस्ट्रेलिया – प्रस्तावना की भाषा , संघ राज्य संबंध तथा शक्तियों का विभाजन , समवर्ती सूचि का प्रावधान।

5. सोवियत रूस – मूल कर्तव्य।

6. जापान – विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया।

7. फ्रांस – गणतंत्रात्मक शासन पद्धति।

8. कनाडा – संघात्मक शासन व्यवस्था एवं अवशिष्ट शक्तियों का केंद्र के पास होना।

9. दक्षिण अफ्रीका – संविधान संसोधन की प्रक्रिया।

10 जर्मनी – आपातकालीन उपबंध।

संविधान के भाग , अनुच्छेद और विवरण :-

भाग 1 : संघ और उसका राज्य क्षेत्र :

अनुच्छेद 1 – संघ का नाम और राज्य क्षेत्र

अनुच्छेद 2 – नए राज्य का प्रवेश या स्थापना

अनुच्छेद 3 – नए राज्यों का निर्माण और वर्तमान राज्यों के क्षेत्रों , सीमाओं या नामों में परिवर्तन

अनुच्छेद 4 – पहली अनुसूची और चौथी अनुसूचियों के संशोधन तथा अनुपूरक और परिणामिक विषयों का उपबंध करने के लिए अनुच्छेद 2 और अनुच्छेद 3 के अधीन बनाई गई विधियाँ

भाग 2 : नागरिकता

अनुच्छेद 5 – संविधान के प्रारंभ पर नागरिकता

अनुच्छेद 6 – पाकिस्तान से भारत को प्रव्रजन करने वाले कुछ व्यक्तियों के नागरिकता के अधिकार या भारत आने वाले व्यक्तियों को नागरिकता के अधिकार

अनुच्छेद 7 – पाकिस्तान का प्रव्रजन करने वाले कुछ व्यक्तियों के नागरिकता के अधिकार या पाकिस्तान जाने वाले व्यक्तियों के लिए नागरिकता के अधिकार

अनुच्छेद 8 – भारत के बाहर रहने वाले भारतीय उद्भव के कुछ व्यक्तियों में नागरिकता के अधिकार

अनुच्छेद 9 – विदेशी राज्य की नागरिकता , स्वेच्छा से अर्जित करने वाले व्यक्तियों का नागरिक न होना

अनुच्छेद 10 – नागरिकता के अधिकारों का बना रहना

अनुच्छेद 11 – संसद द्वारा नागरिकता के अधिकार का विधि द्वारा विनियमन किया जाना

भाग 3 : मौलिक अधिकार

साधारण :

अनुच्छेद 12 – परिभाषा
अनुच्छेद 13 – मूल अधिकारों से असंगत या उनका अल्पीकरण करने वाली विधियाँ

समता का अधिकार :

अनुच्छेद 14 – विधि के समक्ष समानता
अनुच्छेद 15 – धर्म , मूलवंश , जाति , लिंग या जन्म स्थान के आधार पर विभेद का प्रतिषेध
अनुच्छेद 16 – लोक नियोजन के विषय में अवसर की समानता
अनुच्छेद 17 – अस्पृश्यता का अंत
अनुच्छेद 18 – उपाधियों का अंत

स्वतंत्रता का अधिकार :

अनुच्छेद 19 – वाक-स्वतंत्रता आदि विषयक कुछ अधिकारों का संरक्षण
अनुच्छेद 20 – अपराधों के लिए दोषसिद्धि के संबंध में संरक्षण
अनुच्छेद 21 – प्राण और दैहिक स्वतंत्रता का संरक्षण
अनुच्छेद 22 – कुछ दशाओं में गिरफ्तारी और निरोध से संरक्षण

शोषण के विरुद्ध अधिकार :

अनुच्छेद 23 – मानव , दुर्व्यवहार और बलात्श्रम का प्रतिषेध
अनुच्छेद 24 – कारखानों आदि में बालकों के नियोजन का प्रतिषेध

धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार :

अनुच्छेद 25 – अंत:करण की और धर्म की अबाध रूप से मानने , आचरण और प्रचार करने की स्वतंत्रता
अनुच्छेद 26 – धार्मिक कार्यों के प्रबंध की स्वतंत्रता
अनुच्छेद 27 – किसी भी विशिष्ट धर्म की अभिवृद्धि के लिए करों के संदाय के बारे में स्वतंत्रता
अनुच्छेद 28 – कुल शिक्षा संस्थाओं में धार्मिक शिक्षा या धार्मिक उपासना में उपस्थित होने के बारे में स्वतंत्रता

संस्कृति और शिक्षा संबंधी अधिकार :

अनुच्छेद 29 – अल्पसंख्यक-वर्गों के हितों का संरक्षण
अनुच्छेद 30 – शिक्षा संस्थाओं की स्थापना और प्रशासन करने का अल्पसंख्यक-वर्गों का अधिकार
अनुच्छेद 31 – [ निरसन ]

कुछ विधियों की व्यावृत्ति :

अनुच्छेद 31 क – संपदाओं आदि के अर्जन के लिए उपबंध करने वाली विधियों की व्यावृत्ति
अनुच्छेद 31 ख – कुछ अधिनियमों और विनियमों का विधिमान्यकरण
अनुच्छेद 31 ग – कुछ निदेशक तत्वों को प्रभावित करने वाली विधियों की व्यावृत्ति
अनुच्छेद 31 घ – [ निरसन ]

संविधानिक उपचारों का अधिकार :

अनुच्छेद 32 – इस भाग द्वारा प्रदत्त अधिकारों को प्रवर्तित कराने के लिए उपचार
अनुच्छेद 32 क – [ निरसन ]
अनुच्छेद 33 – इस भाग द्वारा प्रदत्त अधिकारों का बलों आदि को लागू होने में , उपांतरण करने की संसद की शक्ति
अनुच्छेद 34 – जब किसी क्षेत्र में सेना विधि प्रवृत्त हो तब इस भाग द्वारा प्रदत्त अधिकारों पर निर्बंधन
अनुच्छेद 35 – इस भाग के उपबंधों को प्रभावी करने का विधान

भाग 4 – राज्य के नीति निर्देशक तत्व :

अनुच्छेद 36 – परिभाषा
अनुच्छेद 37 – इस भाग में अंतर्विष्ट तत्वों का लागू होना
अनुच्छेद 38 – राज्य लोक कल्याण की अभिवृद्धि के लिए सामाजिक व्यवस्था बनाएगा
अनुच्छेद 39 – राज्य द्वारा अनुसरणीय कुछ नीति तत्व
अनुच्छेद 39 क – समान न्याय और नि:शुल्क विधिक सहायता
अनुच्छेद 40 – ग्राम पंचायतों का संगठन
अनुच्छेद 41 – कुछ दशाओं में काम , शिक्षा और लोक सहायता पाने का अधिकार
अनुच्छेद 42 – काम की न्यायसंगत और मानवोचित दशाओं का तथा प्रसूति सहायता का उपबंध
अनुच्छेद 43 – कर्मकारों के लिए निर्वाह मजदूरी आदि
अनुच्छेद 43 क – उद्योगों के प्रबंध में कर्मकारों का भाग लेना
अनुच्छेद 44 – नागरिकों के लिए एक समान सिविल संहिता
अनुच्छेद 45 – बालकों के लिए नि:शुल्क और अनिवार्य शिक्षा का उपबंध
अनुच्छेद 46 – अनुसूचित जाति , अनुसूचित जनजाति तथा अन्य दुर्बल वर्गों के शिक्षा और अर्थ संबंधी हितों की अभिवृद्धि
अनुच्छेद 47 – पोषाहार स्तर और जीवन स्तर को ऊँचा करने तथा लोक स्वास्थ्य को सुधार करने का राज्य का कर्तव्य
अनुच्छेद 48 – कृषि और पशुपालन का संगठन
अनुच्छेद 48 क – पर्यावरण का संरक्षण , संवर्धन , वन तथा वन्य जीवों की रक्षा
अनुच्छेद 49 – राष्ट्रिय महत्व के संस्मारकों , स्थानों और वस्तुओं का संरक्षण
अनुच्छेद 50 – कार्यपालिका से न्यायपालिका का पृथक्करण
अनुच्छेद 51 – अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा की अभिवृद्धि

भाग 4 ए : मूल कर्तव्य :

अनुच्छेद 51 ए – मूल कर्तव्य

भाग 5 : संघ सरकार

अध्याय 1. कार्यपालिका – राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति

अनुच्छेद 52 – भारत के राष्ट्रपति
अनुच्छेद 53 – संघ की कार्यपालिका शक्ति
अनुच्छेद 54 – राष्ट्रपति का निर्वाचन
अनुच्छेद 55 – राष्ट्रपति के निर्वाचन की रीति
अनुच्छेद 56 – राष्ट्रपति की पदावधि
अनुच्छेद 57 – पुनर्निर्वाचन के लिए पात्रता
अनुच्छेद 58 – राष्ट्रपति निर्वाचित होने के लिए अर्हताएं
अनुच्छेद 59 – राष्ट्रपति पद के लिए शर्तें
अनुच्छेद 60 – राष्ट्रपति द्वारा शपथ या प्रतिज्ञान
अनुच्छेद 61 – राष्ट्रपति पर महाभियोग चलाने की प्रक्रिया
अनुच्छेद 62 – राष्ट्रपति पद में रिक्ति को भरने के लिए निर्वाचन करने का समय और आकस्मिक रिक्ति को भरने के लिए निर्वाचित व्यक्ति की पदावधि
अनुच्छेद 63 – भारत का उपराष्ट्रपति
अनुच्छेद 64 – उपराष्ट्रपति का राज्य सभा का पदेन सभापति होना
अनुच्छेद 65 – राष्ट्रपति के पद में आकस्मिक रिक्ति के दौरान या उसकी अनुपस्थिति में उपराष्ट्रपति का राष्ट्रपति के रूप में कार्य करना या उसके कृत्यों का निर्वहन
अनुच्छेद 66 – उपराष्ट्रपति का निर्वाचन
अनुच्छेद 67 – उपराष्ट्रपति की पदावधि
अनुच्छेद 68 – उपराष्ट्रपति पद में रिक्ति के स्थान को भरने के लिए निर्वाचन करने का समय और आकस्मिक रिक्ति को भरने के लिए निर्वाचित व्यक्ति की पदावधि
अनुच्छेद 69 – उपराष्ट्रपति द्वारा शपथ या प्रतिज्ञान
अनुच्छेद 70 – अन्य आकस्मिकताओं में राष्ट्रपति के कृत्यों का निर्वहन
अनुच्छेद 71 – राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति के निर्वाचन से संबंधित या संसक्त विषयत
अनुच्छेद 72 – क्षमता आदि की और कुछ मामलों में दंडादेश के निलंबन , परिहार या लघुकरण की राष्ट्रपति की शक्ति
अनुच्छेद 73 – संघ की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार

मंत्री-परिषद  :

अनुच्छेद 74 – राष्ट्रपति को सहायता और सलाह देने के लिए मंत्री परिषद
अनुच्छेद 75 – मंत्रियों के बारे में अन्य उपबंध

भारत का महान्यायवादी :

अनुच्छेद 76 – भारत का महान्यायवादी

सरकारी कार्य का संचालन :

अनुच्छेद 77 – भारत सरकार के कार्य का संचालन
अनुच्छेद 78 – राष्ट्रपति को जानकारी देने आदि के संबंध में प्रधानमंत्री के कर्तव्य

अध्याय 2. संसद – साधारण

अनुच्छेद 79 – संसद का गठन
अनुच्छेद 80 – राज्य सभा की संरचना
अनुच्छेद 81 – लोक सभा की संरचना
अनुच्छेद 82 – प्रत्येक जनगणना के पश्चात पुनः समायोजन
अनुच्छेद 83 – संसद के सदनों की अवधि
अनुच्छेद 84 – संसद की सदस्यता के लिए अर्हता
अनुच्छेद 85 – संसद के स्तर , सत्रावसान और विघटन
अनुच्छेद 86 – सदनों के अभिभाषण का और उनको संदेश भेजने का राष्ट्रपति का अधिकार
अनुच्छेद 87 – राष्ट्रपति का विशेष अभिभाषण
अनुच्छेद 88 – सदनों के बारे में मंत्रियों और महान्यायवादी के अधिकार

संसद के अधिकारी :

अनुच्छेद 89 – राज्य सभा के सभापति और उपराष्ट्रपति
अनुच्छेद 90 – उपसभापति का पद रिक्त होना , पदत्याग और पद से हटाया जाना
अनुच्छेद 91 – सभापति के पद के कर्तव्यों का पालन करने या सभापति के रूप में कार्य करने की उपसभापति या अन्य व्यक्ति की शक्ति
अनुच्छेद 92 – जब सभापति या उपसभापति को पद से हटाने का कोई संकल्प विचाराधीन है तब उसका पीठासीन न होना
अनुच्छेद 93 – लोकसभा और अध्यक्ष , उपाध्यक्ष
अनुच्छेद 94 – अध्यक्ष और उपाध्यक्ष का पद रिक्त होना , पदत्याग तथा पद से हटाया जाना
अनुच्छेद 95 – अध्यक्ष के पद के कर्तव्यों को पालन करने या अध्यक्ष के रूप में कार्य करने की उपाध्यक्ष या अन्य व्यक्ति की शक्ति
अनुच्छेद 96 – जब अध्यक्ष या उपाध्यक्ष को पद से हटाने का कोई संकल्प विचाराधीन है तब उसका पीठासीन न होना
अनुच्छेद 97 – सभापति और उपसभापति तथा अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के वेतन और भत्ते
अनुच्छेद 98 – संसद का सचिवालय

कार्य संचालन :

अनुच्छेद 99 – सदस्यों स्वर शपथ या प्रतिज्ञान
अनुच्छेद 100 – सदनों में मतदान , रिक्तियों के होते हुए भी सदनों की कार्य करने की शक्ति और गणपूर्ति

सदस्यों की निरर्हताएँ :

अनुच्छेद 101 – स्थानों का रिक्त होना
अनुच्छेद 102 – सदस्यता के लिए निरर्हताएं
अनुच्छेद 103 – सदस्यों की निरर्हताओं से संबंधित प्रश्नों पर विनिश्चय
अनुच्छेद 104 – अनुच्छेद 99 के अधीन शपथ लेने या प्रतिज्ञान करने से पहले या निरर्हित किए जाने पर बैठने और मत देने के लिए शक्ति

संसद और उसके सदस्यों की शक्तियाँ , विशेषाधिकार और उन्मुक्तियां :

अनुच्छेद 105 – संसद के सदनों की तथा उनके सदस्यों और समितियों की शक्तियाँ , विशेषाधिकार आदि
अनुच्छेद 106 – सदस्यों के वेतन और भत्ते

विधायी प्रक्रिया :

अनुच्छेद 107 – विधेयकों के पुनः स्थापन और पारित किए जाने के संबंध में उपबंध
अनुच्छेद 108 – कुछ दशाओं में दोनों सदनों की संयुक्त बैठक
अनुच्छेद 109 – धन विधेयकों के संबंध में विशेष प्रक्रिया
अनुच्छेद 110 – धन विधेयक की परिभाषा
अनुच्छेद 111 – विधेयकों पर अनुमति

वित्तीय विषयों के संबंध में प्रक्रिया :

अनुच्छेद 112 – वार्षिक वित्तीय विवरण
अनुच्छेद 113 – संसद में प्राक्कलनों के संबंध में प्रक्रिया
अनुच्छेद 114 – विनियोग विधेयक
अनुच्छेद 115 – अनुपूरक , अतिरिक्त या अधिक अनुदान
अनुच्छेद 116 – लेखानुदान , प्रत्ययानुदान और अपवादानुदान
अनुच्छेद 117 – वित्त विधेयकों के बारे में विशेष उपबंध

साधारणतया प्रक्रिया :

अनुच्छेद 118 – प्रक्रिया के नियम
अनुच्छेद 119 – संसद में वित्तीय कार्य संबंधी प्रक्रिया का विधि द्वारा विनियमन
अनुच्छेद 120 – संसद में प्रयोग की जाने वाली भाषा
अनुच्छेद 121 – संसद में चर्चा पर निर्बंधन
अनुच्छेद 122 – न्यायालयों द्वारा संसद की कार्यवाहियों की जाँच न किया जाना

अध्याय 3. राष्ट्रपति की विधायी शक्तियाँ :

अनुच्छेद 123 – संसद के विश्रांतिकाल में अध्यादेश प्रख्यापित करने की राष्ट्रपति की शक्ति

अध्याय 4. संघ की न्यायपालिका :

अनुच्छेद 124 – उच्चतम न्यायालय की स्थापना और गठन
अनुच्छेद 125 – न्यायधीशों के वेतन आदि
अनुच्छेद 126 – कार्यकारी मुख्य न्यायमूर्ति की नियुक्ति
अनुच्छेद 127 – तदर्थ न्यायधीशों की नियुक्ति
अनुच्छेद 128 – उच्चतम न्यायालय की बैठकों में सेवानिवृत्त न्यायधीशों की उपस्थिति
अनुच्छेद 129 – उच्चतम न्यायालय का अभिलेख न्यायालय होना
अनुच्छेद 130 – उच्चतम न्यायालय का स्थान
अनुच्छेद 131 – उच्चतम न्यायालय की आरंभिक अधिकारिता
अनुच्छेद 131 क – [ निरसन ]
अनुच्छेद 132 – कुछ मामलों में उच्च न्यायालयों से अपीलों में उच्चतम न्यायालय की अपीली अधिकारिता
अनुच्छेद 133 – उच्च न्यायालयों में सिविल विषयों से संबंधित अपीलों में उच्चतम न्यायालय की अपीली अधिकारिता
अनुच्छेद 134 – दांडिक विषयों में उच्चतम न्यायालय की अपीली अधिकारिता
अनुच्छेद 134 क – उच्चतम न्यायालय में अपील के लिए प्रमाणपत्र
अनुच्छेद 135 – विद्यमान विधि के अधीन फेडरल न्यायालय की अधिकारिता और शक्तियों का उच्चतम न्यायालय द्वारा प्रयोक्तव्य होना
अनुच्छेद 136 – अपील के लिए उच्चतम न्यायालय की विशेष इजाजत
अनुच्छेद 137 – निर्णयों या आदेशों का उच्चतम न्यायालयों द्वारा पुनर्विलोकन
अनुच्छेद 138 – उच्चतम न्यायालय की अधिकारिता की वृद्धि
अनुच्छेद 139 – कुछ रिट निकालने की शक्तियों का उच्चतम न्यायालय को प्रदत्त किया जाना
अनुच्छेद 139 क – कुछ मामलों का अंतरण
अनुच्छेद 140 – उच्चतम न्यायालय की आनुषंगिक शक्तियाँ
अनुच्छेद 141 – उच्चतम न्यायालय द्वारा घोषित विधि का सभी न्यायालयों पर आबद्धकर होना
अनुच्छेद 142 – उच्चतम न्यायालय की डिक्रियों और आदेशों का प्रवर्तन और प्रकटीकरण आदि के बारे में आदेश
अनुच्छेद 143 – उच्चतम न्यायालय से परामर्श करने की राष्ट्रपति की शक्ति
अनुच्छेद 144 – सिविल और न्यायिक प्राधिकारियों द्वारा उच्चतम न्यायालय
अनुच्छेद 144 क – [ निरसन ]
अनुच्छेद 145 – न्यायालय के नियम आदि
अनुच्छेद 146 – उच्चतम न्यायालय के अधिकारी और सेवक तथा व्यय
अनुच्छेद 147 – निर्वचन

अध्याय 5. भारत के नियंत्रक-महालेखापरीक्षक :

अनुच्छेद 148 – भारत का नियंत्रक – महा लेखापरीक्षक
अनुच्छेद 149 – नियंत्रक महा लेखापरीक्षक के कर्तव्य और शक्तियाँ
अनुच्छेद 150 – संघ के और राज्यों के लेखाओं का प्रारूप
अनुच्छेद 151 – संपरीक्षा प्रतिवेदन

भाग 6 – राज्य सरकार से संबंधित :

अध्याय 1. साधारण :

अनुच्छेद 152 – परिभाषा

अध्याय 2. कार्यपालिका राज्यपाल

अनुच्छेद 153 – राज्यों के राज्यपाल
अनुच्छेद 154 – राज्य की कार्यपालिका शक्ति
अनुच्छेद 155 – राज्यपाल की नियुक्ति
अनुच्छेद 156 – राज्य की पदावधि
अनुच्छेद 157 – राज्यपाल के पद के लिए शर्तें
अनुच्छेद 158 – राज्यपाल पद के लिए शर्तें
अनुच्छेद 159 – राज्यपाल द्वारा शपथ या प्रतिज्ञान
अनुच्छेद 160 – कुछ आकस्मिकताओं में राज्यपाल के कृत्यों का निर्वहन
अनुच्छेद 161 – क्षमा आदि की और कुछ मामलों में दंडादेश के निलंबन , परिहार या लघुकरण की राज्यपाल की शक्ति
अनुच्छेद 162 – राज्य की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार

मंत्रिपरिषद :

अनुच्छेद 163 – राज्यपाल को सहायता और सलाह देने के लिए मंत्री परिषद
अनुच्छेद 164 – मंत्रियों के बारे में अन्य उपबंध

राज्य का महाविधवक्ता :

अनुच्छेद 165 – राज्य का महाधिवक्ता

सरकारी कार्य का संचालन :

अनुच्छेद 166 – राज्य की सरकार के कार्य का संचालन
अनुच्छेद 167 – राज्यपाल को जानकारी देने आदि के संबंध में मुख्यमंत्री के कर्तव्य

अध्याय 3. राज्य का विधान मंडल – साधारण :

अनुच्छेद 168 – राज्यों के विधानमंडलों का गठन
अनुच्छेद 169 – राज्यों में विधान परिषदों का उत्सादन या सृजन
अनुच्छेद 170 – विधान सभाओं की संरचना
अनुच्छेद 171 – विधान परिषदों की संरचना
अनुच्छेद 172 – राज्यों की विधान मंडलों की अवधि
अनुच्छेद 173 – राज्य के विधानमंडल की सदस्यता के लिए अर्हता
अनुच्छेद 174 – राज्य के विधानमंडल के सत्र , सत्रवहसान और विघटन
अनुच्छेद 175 – सदन और सदनों में अभिभाषण का और उनको संदेश भेजने का राज्यपाल का अधिकार
अनुच्छेद 176 – राज्यपाल का विशेष अभिभाषण
अनुच्छेद 177 – सदनों के बारे में मंत्रियों और महाधिवक्ता के अधिकार

राज्य के विधानमंडल के अधिकारी :

अनुच्छेद 178 – विधानसभा का अध्यक्ष और उपाध्यक्ष
अनुच्छेद 179 – अध्यक्ष और उपाध्यक्ष का पद रिक्त होना , पदत्याग और पद से हटाया जाना
अनुच्छेद 180 – अध्यक्ष के पद के कर्तव्यों का पालन करने या अध्यक्ष के रूप में कार्य करने की उपाध्यक्ष या अन्य व्यक्ति की शक्ति
अनुच्छेद 181 – जब अध्यक्ष या उपाध्यक्ष को पद से हटाने का कोई संकल्प विचाराधीन है तब उसका पीठासीन न होना
अनुच्छेद 182 – विधान परिषद का सभापति और उपसभापति
अनुच्छेद 183 – सभापति और उपसभापति का पद रिक्त होना , पदत्याग और पद से हटाया जाना
अनुच्छेद 184 – सभापति के पद के कर्तव्यों का पालन करने या सभापति के रूप में कार्य करने की उपसभापति या अन्य व्यक्ति की शक्ति
अनुच्छेद 185 – जब सभापति या उपसभापति को पद से हटाने का कोई संकल्प विचाराधीन है तब उसका पीठासीन न होना
अनुच्छेद 186 – अध्यक्ष और उपाध्यक्ष तथा सभापति और उपसभापति के वेतन और भत्ते
अनुच्छेद 187 – राज्य के विधानमंडल का सचिवालय

कार्य संचालन :

अनुच्छेद 188 – सदस्यों द्वारा शपथ या प्रतिज्ञान
अनुच्छेद 189 – सदनों में मतदान , रिक्तियों के होते हुए भी सदनों की कार्य करने की शक्ति और गणपूर्ति

सदस्यों की निरर्हताएं :

अनुच्छेद 190 – स्थानों का रिक्त होना
अनुच्छेद 191 – सदस्यता के लिए निरर्हताएं
अनुच्छेद 192 – सदस्यों की निरर्हताओं से संबंधित प्रश्नों पर विनिश्चय
अनुच्छेद 193 – अनुच्छेद 188 के अधीन शपथ लेने या प्रतिज्ञा करने से पहले या आर्हित न होते हुए या निरर्हित किए जाने पर बैठने और मत देने के लिए शक्ति

राज्यों के विधानमंडलों और उनके सदस्यों की शक्तियाँ , विशेषाधिकार और उन्मुक्तियां :

अनुच्छेद 194 – विधानमंडलों के सदनों की और सदस्यों की तथा समितियों की शक्तियाँ , विशेषाधिकार आदि
अनुच्छेद 195 – सदस्यों के वेतन और भत्ते

विधायी प्रक्रिया :

अनुच्छेद 196 – विधेयकों के पुनः स्थापन और पारित किए जाने के संबंध में उपबंध
अनुच्छेद 197 – धन विधेयकों से भिन्न विधेयकों के बारे में विधान परिषद की शक्तियों पर निर्बंधन
अनुच्छेद 198 – धन विधेयकों के संबंध में विशेष प्रक्रिया
अनुच्छेद 199 – धन विधेयक की परिभाषा
अनुच्छेद 200 – विधेयकों पर अनुमति
अनुच्छेद 201 – विचार के लिए आरक्षित विधेयक

वित्तीय विषयों के संबंध में प्रक्रिया :

अनुच्छेद 202 – वार्षिक वित्तीय विवरण
अनुच्छेद 203 – विधानमंडल में प्राक्कलनों के संबंध में प्रक्रिया
अनुच्छेद 204 – विनियोग विधेयक
अनुच्छेद 205 – अनुपूरक , अतिरिक्त या अधिक अनुदान
अनुच्छेद 206 – लेखानुदान , प्रत्ययानुदान और अपवादानुदान
अनुच्छेद 207 – वित्त विधेयकों के बारे में विशेष उपबंध

साधारणतया प्रक्रिया :

अनुच्छेद 208 – प्रक्रिया के नियम
अनुच्छेद 209 – राज्य के विधानमंडल में वित्तीय कार्य संबंधी प्रक्रिया का विधि द्वारा विनियमन
अनुच्छेद 210 – विधानमंडल में प्रयोग की जाने वाली भाषा
अनुच्छेद 211 – विधानमंडल में चर्चा पर निर्बंधन
अनुच्छेद 212 – न्यायालयों द्वारा विधानमंडल की कार्यवाहियों की जाँच न किया जाना

अध्याय 4. राज्यपाल की विधायी शक्ति :

अनुच्छेद 213 – विधानमंडल के विश्रांतिकाल में अध्यादेश प्रख्याति करने की राज्यपाल की शक्ति

अध्याय 5. राज्यों के उच्च न्यायालय :

अनुच्छेद 214 – राज्यों के लिए उच्च न्यायालय
अनुच्छेद 215 – उच्च न्यायालयों का अभिलेख न्यायालय होना
अनुच्छेद 216 – उच्च न्यायालयों का गठन
अनुच्छेद 217 – उच्च न्यायालय के न्यायधीश की नियुक्ति और उसके पद की शर्तें
अनुच्छेद 218 – उच्चतम न्यायालय से संबंधित कुछ उपबंधों का उच्च न्यायालयों का लागू होना
अनुच्छेद 219 – उच्च न्यायालयों के न्यायधीशों द्वारा शपथ या प्रतिज्ञान
अनुच्छेद 220 – स्थायी न्यायाधीश रहने के पश्चात विधि व्यवसाय पर निर्बंधन
अनुच्छेद 221 – न्यायाधीशों के वेतन आदि
अनुच्छेद 222 – किसी न्यायाधीश का एक उच्च न्यायालय से दूसरे उच्च न्यायालय को अंतरण
अनुच्छेद 223 – कार्यकारी मुख्य न्यायमूर्ति की नियुक्ति
अनुच्छेद 224 – ऊपर और कार्यकारी न्यायाधीशों की नियुक्ति
अनुच्छेद 224 क – उच्च न्यायालयों की बैठकों में सेवानिवृत्ति न्यायधीशों की नियुक्ति
अनुच्छेद 225 – विद्यमान उच्च न्यायालयों की अधिकारिता
अनुच्छेद 226 – कुछ रिट निकालने की उच्च न्यायालय की शक्ति
अनुच्छेद 226 क – [ निरसन ]
अनुच्छेद 227 – सभी न्यायालयों के अधीक्षण की उच्च न्यायालय की शक्ति
अनुच्छेद 228 – कुछ मामलों का उच्च न्यायालय को अंतरण
अनुच्छेद 228 क – [ निरसन ]
अनुच्छेद 229 – उच्च न्यायालयों के अधिकारी और सेवक तथा व्यय
अनुच्छेद 230 – उच्च न्यायालयों की अधिकारिता का संघ राज्य क्षेत्रों पर विस्तार
अनुच्छेद 231 – दो या अधिक राज्यों के लिए एक ही उच्च न्यायालय की स्थापना

अध्याय 6. अधीनस्थ न्यायालय :

अनुच्छेद 232 – जिला न्यायधीशों की नियुक्ति
अनुच्छेद 233 – कुछ जिला न्यायधीशों की नियुक्तियों का और उनके द्वारा किए गए निर्णयों आदि का विधिमान्यकरण
अनुच्छेद 234 – न्यायिक सेवा में जिला न्यायधीशों से भिन्न व्यक्तियों की भर्ती
अनुच्छेद 235 – अधीनस्थ न्यायालयों पर नियंत्रण
अनुच्छेद 236 – निर्वचन
अनुच्छेद 237 – कुछ वर्ग या वर्गों के मजिस्ट्रेटों पर इस अध्याय के उपबंधों का लागू होना

भाग 7 – पहली अनुसूची के भाग ख के राज्य :

अनुच्छेद 238 – [ निरसन ]

भाग 8 – केंद्र शासित प्रदेशों का प्रशासन :

अनुच्छेद 239 – संघ राज्यक्षेत्रों का प्रशासन
अनुच्छेद 239 क – कुछ संघ राज्य क्षेत्रों के लिए स्थानीय विधानमंडलों या मंत्री-परिषदों का या दोनों का सृजन
अनुच्छेद 239 ख – दिल्ली के संबंध में विशेष उपबंध
अनुच्छेद 239 खक – सांविधानिक तंत्र के विफल हो जाने की दशा में उपबंध
अनुच्छेद 239 खख – विधानमंडल के विश्रांतिकाल में अध्यादेश प्रख्यापित करने की प्रशासक की शक्ति
अनुच्छेद 240 – कुछ संघ राज्य क्षेत्रों के लिए विनियम बनाने की राष्ट्रपति की शक्ति
अनुच्छेद 241 – संघ राज्य क्षेत्रों के लिए उच्च न्यायालय
अनुच्छेद 242 – [ निरसन ]

भाग 9 – पंचायत :

अनुच्छेद 243 – परिभाषाएं
अनुच्छेद 243 क – ग्राम सभा
अनुच्छेद 243 ख – पंचायतों का गठन
अनुच्छेद 243 ग – पंचायतों की संरचना
अनुच्छेद 243 घ – स्थानों का आरक्षण
अनुच्छेद 243 ड – पंचायतों की अवधि आदि
अनुच्छेद 243 च – सदस्यता के लिए निरर्हताएं
अनुच्छेद 243 छ – पंचायतों की शक्तियाँ , प्राधिकार और उत्तरदायित्व
अनुच्छेद 243 झ – वित्तीय स्थिति के पुनर्विलोकन के लिए वित्त आयोग का गठन
अनुच्छेद 243 ञ – पंचायतों के लेखाओं की संपरीक्षा
अनुच्छेद 243 ट – पंचायतों के लिए निर्वाचन
अनुच्छेद 243 ठ – संघ राज्य क्षेत्रों को लागू होना
अनुच्छेद 243 ड – इस भाग का कतिपय क्षेत्रों को लागू न होना
अनुच्छेद 243 ढ – विद्यमान विधियों और पंचायतों का बना रहना
अनुच्छेद 243 ण – निर्वाचन संबंधी मामलों में न्यायलयों के हस्तक्षेप का वर्जन

भाग 9 ए – नगरीय निकाय :

अनुच्छेद त – परिभाषाएं
अनुच्छेद थ – नगरपालिकाओं का गठन
अनुच्छेद द – नगरपालिकाओं की संरचना
अनुच्छेद ध – वार्ड समितियों आदि का गठन और संरचना
अनुच्छेद न – स्थानों का आरक्षण
अनुच्छेद प – नगरपालिकाओं की अवधि आदि
अनुच्छेद फ – सदस्यता के लिए निरर्हताएं
अनुच्छेद ब – नगरपालिकाओं की शक्तियाँ , प्राधिकार और उत्तरदायित्व
अनुच्छेद भ – नगरपालिकाओं द्वारा कर अधिरोपित करने की शक्ति और उनकी निधियां
अनुच्छेद म – वित्त आयोग
अनुच्छेद य – नगरपालिकाओं के लेखों की संपरीक्षा
अनुच्छेद यक – नगरपालिकाओं के लिए निर्वाचन
अनुच्छेद यख – संघ राज्यक्षेत्रों का लागू होना
अनुच्छेद यग – इस भाग का कतिपय क्षेत्रों का लागू न होना
अनुच्छेद यघ – जिला योजना के लिए समिति
अनुच्छेद यड – महानगर योजना के लिए समिति
अनुच्छेद यच – विद्यमान विधियों और नगरपालिकाओं का बना रहना
अनुच्छेद यछ – निर्वाचन संबंधी मामलों में न्यायालयों के हस्तक्षेप का वर्जन

भाग 10 – अनुसूचित और जनजाति क्षेत्र :

अनुच्छेद 244 – अनुसूचित क्षेत्रों और जनजाति क्षेत्रों का प्रशासन
अनुच्छेद 244 क – असम के कुछ जनजाति क्षेत्रों को समाविष्ट करने वाला एक स्वशासी राज्य बनाना और उसके लिए स्थानीय विधानमंडल या मंत्रीपरिषद का या दोनों का सृजन

भाग 11 – संघ और राज्यों के बिच संबंध :

अध्याय 1. विधायी संबंध – विधायी शक्तियों का वितरण

अनुच्छेद 245 – संसद द्वारा राज्यों के विधानमंडलों द्वारा बनाई गई विधियों का विस्तार
अनुच्छेद 246 – संसद द्वारा और राज्य के विधानमंडलों द्वारा बनाई गई विधियों की विषयवस्तु
अनुच्छेद 247 – कुछ अतिरिक्त न्यायालयों की स्थापना का उपबंध करने की संसद की शक्ति
अनुच्छेद 248 – अवशिष्ट विधायी शक्तियाँ
अनुच्छेद 249 – राज्य सूची में विषय के संबंध में राष्ट्रिय हित में विधि बनाने की संसद की शक्ति
अनुच्छेद 250 – यदि आपात की उदघोषणा प्रवर्तन में हो तो राज्य सूचि में विषय के संबंध में विधि
अनुच्छेद 251 – संसद द्वारा अनुच्छेद 249 और अनुच्छेद 250 के अधीन बनाई गई विधियों और राज्यों के विधान मंडलों द्वारा बनाई गई विधियों में असंगति
अनुच्छेद 252 – दो या अधिक राज्यों के लिए उनकी सहमति से विधि बनाने की संसद की शक्ति और ऐसी विधि का किसी अन्य राज्य द्वारा अंगीकार किया जाना
अनुच्छेद 253 – अंतर्राष्ट्रीय करारों को प्रभावी करने के लिए विधान
अनुच्छेद 254 – संसद द्वारा बनाई गई विधियों और राज्यों के विधानमंडलों द्वारा बनाई गई विधियों में असंगति
अनुच्छेद 255 – सिफारिशों और पूर्व मंजूरी के बारे में अपेक्षाओं को केवल प्रक्रिया के विषय मानना

अध्याय 2. प्रशासनिक संबंध साधारण

अनुच्छेद 256 – राज्यों की ओर संघ की बाध्यता
अनुच्छेद 257 – कुछ दशाओं में राज्यों पर संघ का नियंत्रण
अनुच्छेद 257 क – [ निरसन ]
अनुच्छेद 258 – कुछ दशाओं में राज्यों को शक्ति प्रदान करने आदि की संघ शक्ति
अनुच्छेद 258 क – संघ को कृत्य सौंपने की राज्यों की शक्ति
अनुच्छेद 259 – [ निरसन ]
अनुच्छेद 260 – भारत के बाहर के राज्य क्षेत्रों के संबंध में संघ की अधिकारिता
अनुच्छेद 261 – सार्वजनिक कार्य , अभिलेख और न्यायिक कार्यवाहियां

जल संबंधी विवाद :

अनुच्छेद 262 – अन्तरराज्यिक नदियों या नदी दुनों के जल संबंधी विवादों का न्यायनिर्णयन

राज्यों के बीच समंवय :

अनुच्छेद 263 – अंतरराज्य परिषद के संबंध में उपबंध

भाग 12. वित्त , संपत्ति , संविदाएं और वाद :

अध्याय 1. वित्त – साधारण :

अनुच्छेद 264 – विधि के प्राधिकार के बिना करों का अधिरोपण न किया जाना
अनुच्छेद 265 – विधि के प्राधिकार के बिना करों का अधिरोपण न किया जाना
अनुच्छेद 266 – भारत और राज्यों के संचित निधियां और लोक लेखे
अनुच्छेद 267 – आकस्मिकता निधि

संघ और राज्यों के बीच राजस्वों का वितरण :

अनुच्छेद 268 – संघ द्वारा उदगृहीत किया जाने वाले किन्तु राज्यों द्वारा संगृहीत और विनियोजित किए जाने वाले शुल्क
अनुच्छेद 269 – संघ द्वारा उदगृहीत और संगृहीत किन्तु राज्यों को सौंपे जाने वाले कर
अनुच्छेद 270 – उदगृहीत कर और उनका संघ तथा राज्यों के बीच वितरण
अनुच्छेद 271 – कुछ शुल्कों और करों पर संघ के प्रयोजनों के लिए अधिभार
अनुच्छेद 272 – [ निरसन ]
अनुच्छेद 273 – जूट पर और जूट उत्पादों का निर्यात शुल्क के स्थान पर अनुदान
अनुच्छेद 274 – ऐसे कराधान पर जिसमें राज्य हितबद्ध है , प्रभाव डालने वाले विधेयकों के लिए राष्ट्रपति की पूर्व सिफारिश की अपेक्षा
अनुच्छेद 275 – कुछ राज्यों को संघ अनुदान
अनुच्छेद 276 – वृत्तियों , व्यापारों , आजीविकाओं और नियोजनों पर कर
अनुच्छेद 277 – व्यावृत्ति
अनुच्छेद 278 – [ निरसन ]
अनुच्छेद 279 – शुद्ध आगम आदि की गणना
अनुच्छेद 280 – वित्त आयोग
अनुच्छेद 281 – वित्त आयोग की सिफारिशें

प्रकीर्ण वित्तीय उपबंध :

अनुच्छेद 282 – संघ या राज्य द्वारा अपने राजस्व के लिए जाने वाले व्यय
अनुच्छेद 283 – संचित निधियों , आकस्मिकता निधियों और लोक लेखों में जमा धनराशियों की अभिरक्षा आदि
अनुच्छेद 284 – लोक सेवकों और न्यायालयों द्वारा प्राप्त वादकर्ताओं की जमा राशियों और अन्य धनराशियों की अभिरक्षा
अनुच्छेद 285 – संघ और संपत्ति को राज्य के कराधार से छूट
अनुच्छेद 286 – माल के क्रय या विक्रय पर कर के अधिरोपण के बारे में निर्बंधन
अनुच्छेद 287 – विद्युत पर करों से छूट
अनुच्छेद 288 – जल या विद्युत के संबंध में राज्यों द्वारा कराधार से कुछ दशाओं में छूट
अनुच्छेद 289 – राज्यों की संपत्ति और आय को संघ और कराधार से छूट
अनुच्छेद 290 – कुछ व्ययों और पेंशनों के संबंध में समायोजन
अनुच्छेद 290 क – कुछ देवस्वम निधियों की वार्षिक संदाय
अनुच्छेद 291 – [ निरसन ]

अध्याय 2. उधार लेना :

अनुच्छेद 292 – भारत सरकार द्वारा उधार लेना
अनुच्छेद 293 – राज्यों द्वारा उधार लेना

अध्याय 3. संपत्ति संविदाएं , अधिकार , दायित्व , बाध्यताएं और वाद :

अनुच्छेद 294 – कुछ दशाओं में संपत्ति , आस्तियों , अधिकारों , दायित्वों और बाध्यताओं का उत्तराधिकार
अनुच्छेद 295 – अन्य दशाओं में संपत्ति , आस्तियों , अधिकारों , दायित्वों और बाध्यताओं का उत्तराधिकार
अनुच्छेद 296 – राजगामी या व्यपगत या स्वामीविहीन होने से प्रोदभूत संपत्ति
अनुच्छेद 297 – राज्य क्षेत्रीय सागर खण्ड या महाद्वीपीय मग्नतट भूमि में स्थित मूल्यवान चीजों और अनन्य आर्थिक क्षेत्र संपत्ति स्त्रोतों का संघ में निहित होना
अनुच्छेद 298 – व्यापर करने आदि की शक्ति
अनुच्छेद 299 – संविदाएं
अनुच्छेद 300 – वाद और कार्यवाहियां

अध्याय 4. संपत्ति का अधिकार :

अनुच्छेद 300 क – विधि के प्राधिकार के बिना व्यक्तियों को संपत्ति से वंचित न किया जाना

भाग 13 – भारत के राज्य क्षेत्र के भीतर व्यापर , वाणिज्य और समागम भारत के संघ राज्य क्षेत्र :

अनुच्छेद 301 – व्यापार , वाणिज्य और समागम की स्वतंत्रता
अनुच्छेद 302 – व्यापार , वाणिज्य और समागम पर निर्बंधन अधिरोपित करने की संसद की शक्ति
अनुच्छेद 303 – व्यापार और वाणिज्य के संबंध में संघ और राज्यों की विधायी शक्तियों पर निर्बंधन
अनुच्छेद 304 – राज्यों के बीच व्यापार , वाणिज्य और समागम पर निर्बंधन
अनुच्छेद 305 – विद्यमान विधियों और राज्यों के एकाधिकार का उपबंध करने वाली विधियों की व्यावृत्ति
अनुच्छेद 306 – [ निरसन ]
अनुच्छेद 307 – अनुच्छेद 301 से अनुच्छेद 304 के प्रयोजनों को कार्यान्वित करने के लिए प्राधिकारी की नियुक्ति

भाग 14 – संघ और राज्यों के अधीन सेवाएं :

अध्याय 1. सेवाएं :

अनुच्छेद 308 – निर्वचन
अनुच्छेद 309 – संघ या राज्य की सेवा करने वाले व्यक्तियों की भर्ती और सेवा की शर्तें
अनुच्छेद 310 – संघ या राज्य की सेवा करने वाले व्यक्तियों की पदावधि
अनुच्छेद 311 – संघ या राज्य के अधीन सिविल हैसियत में नियोजित व्यक्तियों का पदच्युत किया जाना या पंक्ति में अवनत किया जाना
अनुच्छेद 312- अखिल भारतीय सेवाएं
अनुच्छेद 312 क – कुछ सेवाओं के अधिकारियों की सेवा की शर्तों में परिवर्तन करने या उन्हें प्रतिसंहृत करने की संसद की शक्ति
अनुच्छेद 313 – संक्रमण कालीन उपबंध
अनुच्छेद 314 – [ निरसन ]

अध्याय 2. लोक सेवा आयोग :

अनुच्छेद 315 – संघ और राज्यों के लिए लोक सेवा आयोग
अनुच्छेद 316 – सदस्यों की नियुक्ति और पदावधि
अनुच्छेद 317 – लोक सेवा आयोग के किसी सदस्य का हटाया जाना और निलंबित किया जाना
अनुच्छेद 318 – आयोग के सदस्यों और कर्मचारिवृंद की सेवा की शर्तों के बारे में विनियम बनाने की शक्ति
अनुच्छेद 319 – आयोग के सदस्यों द्वारा ऐसे सदस्य न रहने पर पद धारण करने के संबंध में प्रतिषेध
अनुच्छेद 320 – लोक सेवा आयोगों के कृत्य
अनुच्छेद 321 – लोक सभा आयोगों के कृत्यों का विस्तार करने की शक्ति
अनुच्छेद 322 – लोक सेवा आयोगों के व्यय
अनुच्छेद 323 – लोक सेवा आयोगों के प्रतिवेदन

भाग 14 क. – अभिकरण :

अनुच्छेद 323 क – प्रशासनिक अधिकरण
अनुच्छेद 323 ख – अन्य विषयों के लिए अधिकरण

भाग 15 – निर्वाचन :

अनुच्छेद 324 – निर्वाचनों के अधीक्षण , निदेशन और नियंत्रण का निर्वाचन आयोग में निहित होना
अनुच्छेद 325 – धर्म , मूलवंश , जाति या लिंग के आधार पर किसी व्यक्ति का निर्वाचक नामावली में सम्मिलित किए जाने के लिए अपात्र न होना और उसके द्वारा किसी विशेष निर्वाचक नामावली में सम्मिलित किये जाने का दावा न किया जाना
अनुच्छेद 326 – लोकसभा और राज्यों की विधान सभाओं के लिए निर्वाचनों का व्यस्क मताधिकार के आधार पर होना
अनुच्छेद 327 – विधानमंडल के लिए निर्वाचनों के संबंध में उपबंध करने की संसद की शक्ति
अनुच्छेद 328 – किसी राज्य के विधानमंडल के लिए निर्वाचनों के संबंध में उपबंध करने की उस विधानमंडल की शक्ति
अनुच्छेद 329 – निर्वाचन संबंधी मामलों में न्यायालयों के हस्तक्षेप का वर्जन
अनुच्छेद 329 क – [ निरसन ]

भाग 16 – कुछ वर्गों के संबंध में विशेष उपबंध :

अनुच्छेद 330 – लोकसभा में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए स्थानों का आरक्षण
अनुच्छेद 331 – लोकसभा में आंग्ल भारतीय समुदाय का प्रतिनिधित्व
अनुच्छेद 332 – राज्यों की विधानसभाओं में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए स्थानों का आरक्षण
अनुच्छेद 333 – राज्यों की विधान सभाओं में आंग्ल भारतीय समुदाय का प्रतिनिधित्व
अनुच्छेद 334 – स्थानों के आरक्षण और विशेष प्रतिनिधित्व का साठ साल के बाद न रहना
अनुच्छेद 335 – सेवाओं और पदों के लिए अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के दावे
अनुच्छेद 336 – कुछ सेवाओं में आंग्ल भारतीय स्मेदय के लिए विशेष उपबंध
अनुच्छेद 337 – आंग्ल भारतीय समुदाय के लाभ के लिए शैक्षिक अनुदान के लिए विशेष उपबंध
अनुच्छेद 338 – राष्ट्रिय अनुसूचित जाति आयोग
अनुच्छेद 338 क – राष्ट्रिय अनुसूचित जनजाति आयोग
अनुच्छेद 339 – अनुसूचित क्षेत्रों के प्रशासन और अनुसूचित जनजातियों के कल्याण के बारे में संघ का नियंत्रण
अनुच्छेद 340 – पिछड़े वर्गों की दशाओं के अन्वेषण के लिए आयोग की नियुक्ति
अनुच्छेद 341 – अनुसूचित जातियां
अनुच्छेद 342 – अनुसूचित जनजातियाँ

भाग 17 – राजभाषा :

अध्याय 1. संघ की भाषा :

अनुच्छेद 343 – संघ की राजभाषा
अनुच्छेद 344 – राजभाषा के संबंध में आयोग और संसद की समिति

अध्याय 2. प्रादेशिक भाषाएँ :

अनुच्छेद 345 – राज्य की राजभाषा या राजभाषाएं
अनुच्छेद 346 – एक राज्य और दुसरे राज्य के बीच या किसी राज्य और संघ के बीच पत्रादि की राजभाषा
अनुच्छेद 347 – एक राज्य और दूसरे राज्य के बीच या किसी राज्य और संघ के बीच पत्रादि की राजभाषा

अध्याय 3. उच्चतम न्यायालय , उच्च न्यायालयों आदि की भाषा :

अनुच्छेद 348 – उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों में और अधिनियमों , विधेयकों के लिए प्रयोग की जाने वाली भाषा
अनुच्छेद 349 – भाषा से संबंधित कुछ विधियाँ अधिनियमित करने के लिए विशेष प्रक्रिया

अध्याय 4. विशेष निदेश :

अनुच्छेद 350 – व्यथा के निवारण के लिए अभ्यावेदन में प्रयोग की जाने वाली भाषा
अनुच्छेद 350 क – प्राथमिक स्तर पर मातृभाषा में शिक्षा की सुविधाएँ
अनुच्छेद 350 ख – भाषाई अल्पसंख्यक वर्गों के लिए विशेष अधिकारी
अनुच्छेद 351 – हिंदी भाषा के विकास के लिए निदेश

भाग 18 – आपात उपबंध :

अनुच्छेद 352 – आपात की उदघोषणा
अनुच्छेद 353 – आपात की उदघोषणा का प्रभाव
अनुच्छेद 354 – जब आपात की उदघोषणा प्रवर्तन में है तब राजस्वों के वितरण संबंधी उपबंधों का लागू होना
अनुच्छेद 355 – बाह्य आक्रमण और आंतरिक अशांति से राज्य की संरक्षा करने का संघ का कर्तव्य
अनुच्छेद 356 – राज्यों सांविधानिक तंत्र के विफल हो जाने की दशा में उपबंध
अनुच्छेद 357 – अनुच्छेद 356 के अधीन की गई उदघोषणा के अधीन विधायी शक्तियों का प्रयोग
अनुच्छेद 358 – आपात के दौरान अनुच्छेद 19 के उपबन्धों का निलंबन
अनुच्छेद 359 – आपात के दौरान भाग 3 द्वारा प्रदत्त अधिकारों के प्रवर्तन का निलंबन
अनुच्छेद 359 क – [ निरसन ]
अनुच्छेद 360 – वित्तीय आपात के बारे में उपबंध

भाग 19 – प्रकीर्ण :

अनुच्छेद 361 – राष्ट्रपति और राज्यपालों और राजप्रमुखों का संरक्षण
अनुच्छेद 361 क – संसद और राज्यों के विधान मंडलों की कार्यवाहियों की प्रकाशन का संरक्षण
अनुच्छेद 361 ख – लाभप्रद राजनीतिक पद पर नियुक्ति के लिए निरर्हता
अनुच्छेद 362 – [ निरसन ]
अनुच्छेद 363 – कुछ संधियों , करारों आदि से उत्पन्न विवादों में न्यायालयों के हस्तक्षेप का वर्जन
अनुच्छेद 363 क – देश राज्यों के शासकों को दी गई मान्यता की समाप्ति और निजी थैलियों का अंत
अनुच्छेद 364 – महापत्तनों और विमंक्षेत्रों के बारे में विशेष उपबंध
अनुच्छेद 365 – संघ द्वारा दिए गए निदेशों का अनुपालन करने में या उनको प्रभावी करने में असफलता का प्रभाव
अनुच्छेद 366 – परिभाषाएं
अनुच्छेद 367 – निर्वचन

भाग 20 – संविधान संशोधन :

अनुच्छेद 368 – संविधान का संशोधन करने की संसद की शक्ति और उसके लिए प्रक्रिया

भाग 21 – अस्थायी , परिवर्ती और विशेष प्रावधान :

अनुच्छेद 369 – राज्य सूची के कुछ विषयों के संबंध में विधि बनाने की संसद की इस प्रकार अस्थायी शक्ति मानो वे समवर्ती सूची के विषय हों
अनुच्छेद 370 – जम्मू और कश्मीर राज्य के संबंध में अस्थायी उपबंध
अनुच्छेद 371 – महाराष्ट्र और गुजरात राज्यों के संबंध में विशेष उपबंध
अनुच्छेद 371 क – नागालैंड राज्य के संबंध में विशेष उपबंध
अनुच्छेद 371 ख – असम राज्य के संबंध में विशेष उपबंध
अनुच्छेद 371 ग – मणिपुर राज्य के संबंध में विशेष उपबंध
अनुच्छेद 371 घ – आंध्र प्रदेश राज्य के संबंध में विशेष उपबंध
अनुच्छेद 371 ड – आंध्र प्रदेश में केन्द्रिय विश्वविद्यालय की स्थापना
अनुच्छेद 371 च – सिक्किम राज्य के संबंध में विशेष उपबंध
अनुच्छेद 371 छ – मिजोरम राज्य के संबंध में विशेष उपबंध
अनुच्छेद 371 ज – अरुणाचल प्रदेश राज्य के संबंध में विशेष उपबंध
अनुच्छेद 371 झ – गोवा राज्य के संबंध में विशेष उपबंध
अनुच्छेद 372 – विद्यमान विधियों का प्रवृत्त बने रहना और उनका अनुकूलन
अनुच्छेद 372 क – विधियों का अनुकूलन करने की राष्ट्रपति की शक्ति
अनुच्छेद 373 – निवारक निरोध में रखे गए व्यक्तियों के संबंध में कुछ दशाओं में आदेश करने की राष्ट्रपति की शक्ति
अनुच्छेद 374 – फेडरल न्यायालय के न्यायधीशों और फेडरल न्यायालय में या सपरिषद हिज मेजेस्टी के समक्ष लंबित कार्यवाहियों के बारे में उपबंध
अनुच्छेद 375 – संविधान के उपबंधों के अधीन रहते हुए न्यायालयों , प्राधिकारियों और अधिकारियों का कृत्य करते रहना
अनुच्छेद 376 – उच्च न्यायालयों के न्यायधीशों के बारे में उपबंध
अनुच्छेद 377 – भारत के नियंत्रक महालेखा परीक्षक के बारे में उपबंध
अनुच्छेद 378 – लोक सेवा आयोगों के बारे में उपबंध
अनुच्छेद 378 क – आंध्र प्रदेश विधानसभा की अवधि के बारे में विशेष उपबंध
अनुच्छेद 379 से 391 – [ निरसन ]
अनुच्छेद 392 – कठिनाईयों को दूर करने की राष्ट्रपति की शक्ति

भाग 22 – संक्षिप्त नाम , प्रारंभ और निरसन हिंदी में प्राधिकृत पाठ :

अनुच्छेद 393 – संक्षित नाम
अनुच्छेद 394 – प्रारंभ
अनुच्छेद 394 क – हिंदी भाषा में प्राधिकृत पाठ
अनुच्छेद 395 – [ निरसन ]

भारतीय संविधान की अनुसूचियां :

पहली अनुसूची : इसमें भारतीय संघ के 29 घटक राज्यों एवं 7 संघ शासित क्षेत्रों का उल्लेख है।

दूसरी अनुसूची : पदाधिकारियों के वेतन भत्ते एवं पेंशन।

तीसरी अनुसूची : शपथ ग्रहण का प्रारूप।

चौथी अनुसूची : राज्यों एवं संघ क्षेत्रों का राज्य सभा में प्रतिनिधित्व।

पांचवी अनुसूची : अनुसूची क्षेत्रों और अनुसूचित जनजातियों के प्रशासन और नियंत्रण के बारे में।

छठवी अनुसूची : असम , मेघालय , त्रिपुरा एवं मिजोरम राज्यों के जनजातीय क्षेत्रों के प्रशासन का प्रावधान है।

सातवी अनुसूची : केंद्र और राज्यों के बीच शक्तियों का बटवारा। संघ सूचि में 97 , राज्य सूचि में 61 तथा समवर्ती सूचि में 52 विषय हैं।

आठवी अनुसूची : आठवी अनुसूची में भारत की 22 भाषाओँ का उल्लेख है।

नौवीं अनुसूची : पहला संविधान संशोधन 1951 द्वारा जोड़ा गया। इसमें राज्य द्वारा सम्पत्ति के अधिग्रहण के विधियों का उल्लेख है।

दसवी अनुसूची : दल बदल संबंधी प्रावधान। 52 वे संविधान 1985 द्वारा जोड़ा गया।

ग्यारहवीं अनुसूची : इसमें पंचायती राज संस्थाओं के 29 विषयों का उल्लेख है। 73 वें संशोधन द्वारा 1993 में जोड़ा गया।

बारहवीं अनुसूची : नगरीय निकायों के 18 विषय। 74 वें संशोधन द्वारा 1993 में जोड़ा गया।

संविधान में संशोधन :

संशोधन के प्रस्ताव की शुरुआत संसद में होती है जहाँ इसे एक बिल के रूप में पेश किया जाता है। इसके बाद इसे संसद के प्रत्येक सदन के द्वारा अनुमोदित किया जाना चाहिए। प्रत्येक सदन में इसे उपस्थित सांसदों का दो तिहाई बहुमत और मतदान प्राप्त होना चाहिए और सभी सदस्यों का साधारण बहुमत प्राप्त होना चाहिए।

इसके बाद विशिष्ट संशोधनों को कम से कम आधे राज्यों की विधायिकाओं के द्वारा भी अनुमोदित किया जाना चाहिए। एक बार जब सभी अन्य अवस्थाएं पूरी कर ली जाती हैं संशोधन के लिए भारत के राष्ट्रपति की स्वीकृति प्राप्त की जाती है लेकिन यह अंतिम प्रावस्था केवल एक ही औपचारिकता है। समाजवादी शब्द संविधान के 1976 में हुए 42 वें संशोधन अधिनियम द्वारा प्रस्तावना में जोड़ा गया था।

विशेषताएं :

संविधान प्रारूप समिति तथा सर्वोच्च न्यायालय ने भारतीय संविधान को संघात्मक संविधान माना है लेकिन विद्वानों में मतभेद है। अमेरिकी विद्वान इसको छद्म संघात्मक संविधान कहा जाता है हालाँकि पूर्वी संविधानवेत्ता कहते हैं कि अमेरिकी संविधान ही एकमात्र संघात्मक संविधान नहीं हो सकता।

संविधान का संघात्मक होना उसमें निहित संघात्मक लक्षणों पर निर्भर करता है किन्तु माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने इसे पूर्ण संघात्मक माना है। भारतीय संविधान के प्रस्तावना के अनुसार भारत एक सम्प्रुभतासम्पन्न , समाजवादी , धर्मनिरपेक्ष , लोकतांत्रिक , गणराज्य है। संविधान संघ राज्यों के परस्पर समझौते से नहीं बना है।

राज्य अपना पृथक संविधान नहीं रख सकते हैं केवल एक ही संविधान केंद्र तथा राज्य दोनों पर लागू होता है। भारत में द्वैध नागरिकता नहीं है केवल भारतीय नागरिकता है। भारतीय संविधान में आपातकाल लागू करने के उपबंध है। अनुच्छेद 352 के लागू होने पर राज्य केंद्र शक्ति पृथक्करण समाप्त हो जाएगा तथा वह एकात्मक संविधान बन जाएगा।

इस स्थिति में केंद्र राज्यों पर पूर्ण सम्प्रभु हो जाता है। राज्यों का नाम , क्षेत्र तथा सीमा केंद्र कभी भी परिवर्तित कर सकता है अत: राज्य भारतीय संघ के अनिवार्य घटक नहीं हैं। केंद्र संघ को पुर्ननिर्मित कर सकती है। संविधान की 7वीं अनुसूची में तीन सूचियाँ हैं संघीय , राज्य तथा समवर्ती। अनुच्छेद 155 में राज्यपालों की नियुक्ति पूर्णत: केंद्र की इच्छा से होती है इस प्रकार केंद्र राज्यों पर नियंत्रण रख सकता है।

अनुच्छेद 360 में वित्तीय आपातकाल की दशा में राज्यों के वित्त पर भी केंद्र का नियंत्रण हो जाता है। इस दशा में केंद्र राज्यों को धन व्यय करने हेतु निर्देश दे सकता है। प्रशासनिक निर्देश केंद्र राज्यों को राज्यों की संचार व्यवस्था किस प्रकार लागू की जाए के बारे में निर्देश दे सकते हैं। यह निर्देश किसी भी समय दिया जा सकता है।

अनुच्छेद 312 में अखिल भारतीय सेवाओं का प्रावधान है ये सेवक नियुक्ति , प्रशिक्षण , अनुशासनात्मक क्षेत्रों में पूर्णत: केंद्र के अधीन है जबकि ये सेवा राज्यों में देते है राज्य सरकारों का इन पर कोई नियंत्रण नहीं है। 12 राज्यों की कार्यपालिक शक्तियाँ संघीय कार्यपालिक शक्तियों पर प्रभावी नहीं हो सकती है।

भारतीय संविधान के महत्वपूर्ण तथ्य :

भारतीय संविधान का निर्माण करने वाली संविधान सभा का गठन जुलाई 1946 को कैबिनेट मिशन के आधार पर हुआ था। संविधान सभा की पहली बैठक 9 दिसंबर , 1946 को संसद भवन के केन्द्रिय कक्ष में आयोजित की गई थी। डॉ सच्चिदानंद सिन्हा को संविधान सभा के अस्थाई अध्यक्ष के रूप में चुना गया था।

संविधान सभा के उपाध्यक्ष के रूप में एच.सी. मुखर्जी एवं विधिक सलाहकार के रूप में न्यायधीश वी.एन.राव को चुना गया था। संविधान सभा में हैदराबाद रियासत के प्रतिनिधि सम्मिलित नहीं हुए थे। जवाहर लाल नेहरु द्वारा 13 दिसंबर , 1946 उद्देश्य प्रस्ताव प्रस्तुत किया गया था। 22 जनवरी , 1947 को उद्देश्य प्रस्ताव पारित कर दिया गया तथा संविधान निर्माण के लिए विभिन्न समितियों की नियुक्ति हुई।

प्रारूप समिति संविधान सभा की सभी समितियों में सबसे महत्वपूर्ण समिति थी , जिसने मुख्य संविधान का निर्माण किया। प्रारूप समिति के सात सदस्य थे – डॉ बी.आर.अंबेडकर , एन.गोपालास्वामी आयंगर , अल्लादी कृष्णस्वामी अय्यर , डॉ के.एम.मुंशी , सय्यैद मोहम्मद सादुल्ला , बी.एल.मित्र , डी.पी.खेतान आदि। प्रारूप समिति के अध्यक्ष डॉ भीमराव अम्बेडकर थे जिन्हें भारतीय संविधान का जंक भी कहा जाता है।

संविधान को अंतिम रूप से पारित करते समय संविधान सभा के 284 सदस्य उपस्थित थे जिन्होंने इस पर हस्ताक्षर किए। संविधान की स्वीकृति 26 नवंबर , 1949 को हुई जिसके बाद कुछ अनुच्छेद तुरंत लागू कर दिए गए जैसे – नागरिकता , निर्वाचन , अंतरिम संसद से संबंधित उपबंध और अस्थाई एवं संक्रमणीय उपबंध आदि। संविधान सभा की अंतिम बैठक 24 जनवरी , 1950 को संपन्न हुई थी। 26 जनवरी , 1950 को संविधान पूर्ण रूप से लागू कर दिया गया था।

संविधान निर्माण के लिए लगभग 60 देशों के संविधान का अध्धयन किया गया था। संविधान को पारित करते समय संविधान में 12 भाग , 365 अनुच्छेद , 8 अनुसूचियाँ थीं लेकिन वर्तमान समय में 22 भाग , 395 अनुच्छेद और 12 अनुसूचियां हैं। सम्पूर्ण संविधान निर्माण में 2 साल 11 महीने 18 दिन का समय लग गया था। संविधान सभा द्वारा राष्ट्रगान को 24 जनवरी , 1950 को अंगीकृत किया गया जिसकी रचना रविंद्रनाथ टैगोर ने मूलतः बांग्ला भाषा में की थी।

भारत देश के राष्ट्रिय ध्वज तिरंगा का अंतिम प्रारूप 22 जुलाई , 1947 को स्वीकार किया गया था। तिरंगे की लंबाई एवं चौडाई का अनुपात 3:2 है। भारतीय संविधान संसार का सबसे बड़ा लिखित संविधान है। इस संविधान में कठोरता एवं लचीलापन का अनुपम समावेश है। संविधान निर्माण के लिए लगभग 60 देशों के संविधान का अध्धयन किया गया था।

भारतीय संविधान के स्त्रोत में सबसे प्रमुख स्त्रोत भारत शासन अधिनियम 1935 है। भारतीय संविधान के भाग 20 के अनुच्छेद 368 में संविधान संशोधन की प्रक्रिया का वर्णन किया गया है। संविधान में पहला संशोधन सन् 1951 में किया गया था। लोकसभा में सदस्यों की संख्या 525 से 545 संविधान के 31 वें संशोधन द्वारा किया गया। भारतीय संविधान की प्रस्तावना में समाजवादी , पंथनिरपेक्ष और राष्ट्र की अखण्डता शब्द 42 वें संविधान संशोधन अधिनियम 1976 द्वारा जोड़ा गया।

44 वें संविधान संशोधन 1978 द्वारा संपत्ति के अधिकार को मूल अधिकार से हटाकर केवल कानूनी या विधिक अधिकार किया गया। मतदाताओं की आयु सीमा 21 से घटाकर 18 संविधान के 61 वें संशोधन 1988 में की गई। 69 वें संविधान संशोधन 1991 द्वारा दिल्ली को राष्ट्रिय राजधानी क्षेत्र का दर्जा दिया गया। 86 वे संविधान संशोधन 2002 द्वारा शिक्षा के अधिकार को मूल अधिकार में सम्मिलित किया गया।

संविधान के भाग 3 में अनुच्छेद 14 से 32 तक 6 मौलिक अधिकारों का वर्णन है। जीवन एवं व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार अनुच्छेद 20 एवं 21 को छोडकर संविधान संकटकाल में नागरिकों के मौलिक अधिकारों को स्थगित करने की व्यवस्था करता है। नीति निर्देशक तत्वों का वर्णन संविधान के भाग 4 में अनुच्छेद 36 से 51 तक है।

नीति निर्देशक तत्व संविधान में सम्मिलित करने की सिफारिश तेजबहादुर स्वरूप समिति द्वारा की गई थी। संविधान के भाग 1 में अनुच्छेद 1 से 4 तक भारतीय संघ और क्षेत्रों का वर्णन है। संविधान के अनुसार भारत राज्यों का संघ है। जम्मू कश्मीर राज्य को संविधान के अनुच्छेद 370 के अनुसार एक विशेष राज्य का दर्जा प्राप्त है। जम्मू कश्मीर भारत का एकमात्र ऐसा राज्य है जिसके लिए संविधान में अलग से प्रावधान है।

जम्मू कश्मीर राज्य का एक अलग संविधान है और यहाँ के नागरिकों को दोहरी नागरिकता प्राप्त है। संविधान में मूल कर्तव्य सरदार स्वर्ण सिंह समिति के सुझाव से 1976 में 42 वें संविधान संशोधन अधिनियम द्वारा जोड़ा गया था। भारत के संविधान के भाग 5 में अनुच्छेद 52 से 78 तक संघीय या केन्द्रिय कार्यपालिका का वर्णन है जिसमें राष्ट्रपति , उपराष्ट्रपति , मंत्रिपरिषद , महान्यायवादी आते हैं।

भारतीय गणराज्य का संवैधानिक अध्यक्ष राष्ट्रपति होता है। राष्ट्रपति कार्यपालिका का औपचारिक प्रधान होता है तथा वास्तविक कार्यकारी मंत्रीमंडल होता है। संविधान के अनुच्छेद 54 के अनुसार राष्ट्रपति का निर्वाचन एक निर्वाचन मंडल के सदस्यों द्वारा अप्रत्यक्ष रूप से आनुपातिक प्रतिनिधित्व पद्धति के आधार पर एकल संक्रमणीय मत द्वारा होता है। राष्ट्रपति अपने पद की शपथ सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायधीश के समक्ष लेता है और त्यागपत्र उपराष्ट्रप्ति को देता है।

भारत देश के राष्ट्रपति का कार्यकाल 5 साल का होता है। इससे पहले राष्ट्रपति को पद से केवल महाभियोग द्वारा ही हटाया जा सकता है। अनुच्छेद 72 के अनुसार राष्ट्रपति किसी भी अपराध के लिए दोषी व्यक्ति को माफ कर सकता है , दंड को स्थगित कर सकता है या दंड में परिवर्तन कर सकता है। संविधान के अनुच्छेद 74 के अनुसार राष्ट्रपति को परामर्श देने के लिए एक मंत्रिपरिषद होगी जिसका प्रधान प्रधानमंत्री होगा।

संविधान के अनुच्छेद 79 के अनुसार भारतीय संसद का निर्माण राष्ट्रपति तथा दोनों सदनों से मिलकर बना है। संसद के उच्च भवन को राज्यसभा कहा जाता है। राज्यसभा का पदेन सभापति भारत का उपराष्ट्रपति होता है। राज्यसभा एक पूर्ण निकाय है यह कभी पूर्णत: विघटित नहीं होती है। राज्यसभा के सदस्यों का कार्यकाल 6 साल का होता है। लोकसभा को संसद का निम्न सदन भी कहा जाता है।

लोकसभा के सदस्यों की संख्या अधिकतम 552 हो सकती है अभी वर्तमान समय में इसकी संख्या 545 है। लोकसभा और राज्यसभा की संयुक्त बैठक की अध्यक्षता लोकसभा अध्यक्ष करता है। लोकसभा सदस्य के लिए उम्मीदवार की उम्र 25 साल होना जरूरी है। लोकसभा स्थायी सदन नहीं है इसका कार्यकाल 5 साल होता है। संविधान के अनुच्छेद 124 से 147 तक भारत के उच्चतम न्यायालय के विभिन्न प्रावधान हैं।

मूल संविधान में सर्वोच्च न्यायालय के न्यायधीशों की संख्या आठ थी। 2008 से न्यायधीशों की संख्या मुख्य न्यायधीश के साथ 31 कर दी गई है। संविधान के भाग 15 में अनुच्छेद 324 से लेकर 329 तक निर्वाचन एवं निर्वाचन आयोग का वर्णन है। निर्वाचन आयोग में एक मुख्य निर्वाचन आयुक्त एवं अन्य निर्वाचन आयुक्त होते हैं जिनकी नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है।

भारतीय संविधान में तीन तरह के आपातकालीन उपबंध की व्यवस्था है – अनुच्छेद 352 में युद्ध , बाह्य आक्रमण या सशस्त्र विद्रोह , दूसरा अनुच्छेद 356 में राज्य में संवैधानिक तंत्र का विफल होना और तीसरा अनुच्छेद 360 में वित्तीय आपात की उद्धोषणा। भारत में आज तक कुल तीन बार राष्ट्रिय आपातकाल लगाया जा चुका है। संविधान के 44 वें संशोधन अधिनियम 1978 द्वारा आंतरिक अशांति के स्थान पर सशस्त्र विद्रोह शब्द जोड़ा गया।

पंजाब पहला राज्य था जहाँ राष्ट्रपति शासन लागू किया गया था एवं सर्वाधिक बार राष्ट्रपति शासन उत्तर प्रदेश में लगाया गया था। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 343 में राजभाषा का विवरण दिया गया है। संविधान के मूल भाग में केवल 14 भाषाओं को मान्यता दी गई थी और वर्तमान में संविधान की आठवीं अनुसूची में 22 भाषाएँ सम्मिलित हैं।

The post भारतीय संविधान-Indian Constitution In Hindi-Bharat Ka Samvidhan appeared first on hindimeaning.com.

भारत का सच्चा इतिहास-History Of India In Hindi

$
0
0

History Of India In Hindi :

भारत के इतिहास को अगर विश्व के इतिहास के महान अध्यायों में से एक कहा जाए तो कुछ गलत नहीं होगा। भारतीय इतिहास का वर्णन करते हुए भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु ने कहा था कि विरोधाभासों से भरा लेकिन मजबूत अदृश्य धागों से बंधा।

भारतीय इतिहास की यह विशेषता है कि वह खुद को तलाशने की सतत प्रक्रिया में लगा रहता है और निरंतर बढ़ता रहता है इसलिए इसे एक बार समझने की कोशिश करने वालों को यह मायावी लगता है। इस महाद्वीप का इतिहास लगभग 75,000 साल पुराना है और इसका प्रमाणहोमो सेपियंस की मानव गतिविधि से मिलता है। यह बहुत ही आश्चर्य की बात है कि 5,000 साल पहले सिंधु घाटी सभ्यता के वासियों ने कृषि और व्यापार पर आधारित एक शहरी संस्कृति विकसित कर ली थी।

पूर्व ऐतिहासिक काल (Pre Historic Period In Hindi) :

पाषाण युग : मध्य भारत में हमें पुरापाषाण काल की मौजूदगी दिखाई देती है। पाषाण युग 5,00,000 से 2,00,000 साल पहले से शुरू हुआ था और तमिलनाडु में हाल ही में हुई खोजों में इस क्षेत्र में सबसे पहले मानव की उपस्थिति का पता चलता है। देश के उत्तर पश्चिमी हिस्से से 2,00,000 साल पहले के मानव द्वारा बनाए गए हथियार भी खोजे गए हैं। इस युग को पूरापाषाण काल के नाम से ही जाना जाता था।

इसके विकास के भूपटन में हमें चार मंच दिखाई देते हैं और चौथा मंच ही चारो भागो का मंच के नाम से ही जाना जाता है जिसे और दो भाग प्लीस्टोसन ओए होलोसन में बांटा गया है। इस जगह की सबसे प्राचीन पुरातात्विक जगह पूरापाषाण होमिनिड है जो सोन नदी घाटी पर स्थित है। सोनियन स्थान हमें सिवाल्किक क्षेत्र जैसे भारत , पाकिस्तान और नेपाल में दिखाई देते है।

मध्य पाषाण : आधुनिक मानव आज से तकरीबन 12000 साल पहले ही भारतीय उपमहाद्वीप में स्थापित हो गया था। उस समय में अंतिम हिम युग समाप्ति पर ही था और मौसम भी गर्म और सुखा बन चुका था। भारत में मानवी समाज का पहला समझौता भारत में भोपाल के पास ही की जगह भीमबेटका पाषाण आश्रय स्थल में दिखाई देता है। मध्य पाषाण कालीन लोग शिकार करते , मछली पकड़ते और अनाज को इकट्ठा करने में लगे रहते थे।

निओलिथिक : निओलिथिक खेती तकरीबन 7000 साल पहले इंडस वैली क्षेत्र में फैली हुई थी और निचली गंगेटिक वैली में 5000 साल पहले फैली थी। बाद में दक्षिण भारत और मालवा में 3800 साल पर आई थी।

ताम्रपाशान युग : इसमें केवल विदर्भ और तटीय कोकण क्षेत्र को छोडकर आधुनिक महाराष्ट्र के सभी क्षेत्र शामिल हैं।

कांस्य युग : भारत में कांस्य युग की शुरुआत तकरीबन5300 साल पहले इंडस वैली सभ्यता के साथ ही हुई थी। इंडस नदी के बीच में यह युग था और इसके सहयोगी लगभग घग्गर-हकरा नदी घाटी , गंगा-यमुना डैम , गुजरात और उत्तरी पूर्वी अफगानिस्तान तक फैले हुए है। यह युग हमें अधिकतर आधुनिक भारत और पाकिस्तान में दिखाई देता है।

उस समय उपमहाद्वीप का पहला शहर इंडस घाटी सभ्यता हडप्पा संस्कृति में ही था। यह संसार में सबसे प्राचीन शहरी सभ्यताओं में से एक था। इसके बाद इंडस वैली नदी के किनारे ही हडप्पा ने भी हस्तकला और नए तंत्रज्ञान में अपनी सभ्यता को विकसित किया और कॉपर , कांस्य , लीड और टिन का उत्पादन करने लगे।

पूरी तरह से विकसित इंडस सभ्यता की समृद्धि आक से लगभग 4600 से 3900 साल पहले ही हो चुकी थी। भारतीय उपमहाद्वीप पर यह शहरी सभ्यता की शुरुआत भर थी। इस सभ्यता में शहरी सेंटर जैसे धोलावीरा , कालीबंगा , रोपर , राखिगढ़ी और लोथल भी शामिल हैं और वर्तमान पाकिस्तान में भी हडप्पा , गनेरीवाला और मोहनजोदड़ो शामिल है। यह सभ्यता ईटों से बने अपने जलनिकास यंत्र और बहु-कथात्मक घरों के लिए प्रसिद्ध थी।

इस सभ्यता के समय में ही उनके कम होने के संकेत दिखाई देने लगे थे। 3700 साल पहले ही इनके द्वारा विकसित किए गए बहुत से शहरों को उन्होंने छोड़ दिया था लेकिन इंडस वैली सभ्यता का पतन अचानक नहीं हुआ था इनका पतन होने के बाद भी सभ्यता के कुछ लोग छोटे गाँव में अपना गुजरा करते थे।

भारतीय उपमहाद्वीप में कांस्य युग की शुरुआत लगभग 3300 ईसा पूर्व सिंधु घाटी सभ्यता के साथ हुई थी। भारतीय इतिहास का एक हिस्सा होने के अतिरिक्त यह मेसोपोटामिया और प्राचीन मिस्त्र के साथ-साथ विश्व की शुरुआती सभ्यताओं में से एक है। इस युग के लोगों ने धातु विज्ञान और हस्तशिल्प में नई तकनीक विकसित की और तांबा , पीतल , सीसा और टिन का उत्पादन किया।

प्रारंभिक ऐतिहासिक काल (Initial Historical Period In Hindi) :

वैदिक काल : भारत पर हमला करने वालों में पहले आर्य थे। आर्य लगभग 1500 ईसा पूर्व उत्तर से आए थे और अपने साथ मजबूत सांस्कृतिक परंपरा लेकर आए। संस्कृत भाषा उनके द्वारा बोली जाने वाली सबसे प्राचीन भाषाओँ में से एक थी और वेदों को लिखने में भी इसका उपयोग हुआ जो 12 वीं ईसा पूर्व के हैं और प्राचीनतम ग्रंथ माने जाते हैं।

वेदों को मेसोपोटामिया और मिस्त्र ग्रंथों के बाद सबसे पुराना ग्रंथ माना जाता है। उपमहाद्वीप में वैदिक काल लगभग 1500-500 ईसा पूर्व तक रहा और इसमें ही प्रारंभिक भारतीय समाज में हिन्दू धर्म और अन्य सांस्कृतिक आयामों की नींव पड़ी। आर्यों ने पूरे उत्तर भारत में खासतौर पर गंगा के मैदानी इलाकों में वैदिक सभ्यता का प्रसार किया।

वेद भारत के सबसे प्राचीन शिक्षा स्त्रोतों में से एक है लेकिन 5 वी शताब्दी तक इसे केवल मौखिक रूप में ही बताया जाता था। धार्मिक रूप से चार वेद हैं ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद और अथर्ववेद। ऋग्वेद के अनुसार सभी राज्यों में सबसे पहले आर्य भारत में स्थापित हुए थे और जहाँ पर वे स्थापित हुए थे उस जगह को 7 नदियों की जगह भी कहा जाता था। वास्तव में उस जगह का नाम सप्तसिंधवा था। सभी वेदों में कुछ छंद हैं जिनमे भगवान और दूसरों की स्तुति की गई है। वेदों में दूसरी बहुमूल्य जानकारियां भी मिल जाती हैं।

महाजनपद : महा शब्द का अर्थ है महान और जनपद का अर्थ है किसी जनजाति का आधार। इस काल में भारत में सिंधु घाटी सभ्यता के बाद शहरीकरण का सबसे बड़ा उदय देखा गया था। वैदिक युग के अंत में पूरे उपमहाद्वीप में कई छोटे राजवंश और राज्य पनपने लगे थे।

इसका वर्णन बौद्ध और जैन साहित्यों में भी है जो 1000 ईसा पूर्व प्राचीन हैं। 500 ईसा पूर्व तक 16 गणराज्य या महाजनपद स्थापित हो चुके थे जैसे – कासी, कोसाला, अंग, मगध, व्रजी, मल्ला, चेडी, वत्स या वम्स, कुरु, पंचाला, मत्स्य, सुरसेना, असाका, अवंति, गंधारा और कंबोजा।

पर्शियन और ग्रीक आक्रमण :

5 वीं शताब्दी के लगभग भारत के उत्तरी-पश्चिमी भाग पर अचेमेनिद साम्राज्य और एलेग्जेंडर दी ग्रेट की ग्रीक सेना ने आक्रमण किया था। उस समय पर्शियन सोच , शासन प्रणाली और जीवन जीने के तरीकों का भारत में आगमन हुआ था इसका सबसे ज्यादा प्रभाव हमें मौर्य सम्राज्य के समय में दिखाई पड़ता है।

लगभग 520 सदी से अचेमेनिद साम्राज्य के शासक दरिउस प्रथम भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तरी-पश्चिमी भाग पर शासन कर रहे थे। बाद में एलेग्जेंडर ने उसके भू-भाग को जित लिया था। उस समय का एक इतिहासकार हेरोडोटस ने लिखा था कि जीता हुआ हिस्सा एलेग्जेंडर के साम्राज्य का सबसे समृद्ध हिस्सा था।

अचेमेनिद ने तकरीबन 186 सैलून तक शासन किया था और इसलिए आज भी उत्तरी भारत में ग्रीक सभ्यता के कुछ लक्ष्ण देखे जा सकते हैं। गरेको-बुद्धिज्म ही ग्रीक और बुद्धिज्म की संस्कृतियों का मिलाप है। इस तरह से संस्कृतियों का मिलाप चौथी शताब्दी से 5 वीं शताब्दी तक लगभग 800 सालों तक चलता रहा।

इस भाग को हम आज वर्तमान समय में अफगानिस्तान और पाकिस्तान के नाम से जानते हैं। संस्कृतियों के मिलाप ने महायान बुद्ध लोगों को बहुत प्रभावित किया और साथ ही चीन , कोरिया , जापान और इबेत में भी हमें इसके प्रभाव देखने को मिलते हैं।

फारसी और यूनानी विजय :

उपमहाद्वीप का अधिकतर उत्तर पश्चिमी क्षेत्र जो वर्तमान में पाकिस्तान और अफगानिस्तान है में फारसी आक्मेनीड साम्राज्य के डायरिस द ग्रेट के शासन में सी. 520 ईसा पूर्व में आया और करीब दो सदियों तक रहा। 326 ईसा पूर्व में सिकंदर ने एशिया माइनर और आक्मेनीड साम्राज्य विजय प्राप्त की फिर उसने भारतीय उपमहाद्वीप की उत्तर पश्चिमी सीमा पर पहुंचकर राजा पोरस को हराया और पंजाब के अधिकतर इलाके पर कब्जा किया।

मौर्य साम्राज्य :

मौर्य वंशजों का मौर्य साम्राज्य 322-185 ईसा पूर्व तक रहा और यह प्राचीन भारत के भौगोलिक रूप से व्यापक एवं राजनीतिक और सैन्य मामले में बहुत शक्तिशाली राज्य था। मौर्य वंश का संस्थापक चन्द्रगुप्त मौर्य था। 322 ई.पू. में चन्द्रगुप्त मौर्य ने चाणक्य की मदद से नन्द वंश के अंतिम शासक धनानंद की हत्या करके मौर्य साम्राज्य की स्थापना की थी।

चन्द्रगुप्त मौर्य ने इसे उपमहाद्वीप में मगध जो आज के समय में बिहार है में स्थापित किया और महान राजा अशोक के शासन में यह बहुत उन्नत हुआ था। यूनानी साहित्य में चन्द्रगुप्त मौर्य को सैंड्रोकोट्स कहा गया है। 305 ई.पू. में चन्द्रगुप्त का संघर्ष सिकंदर के सेनापति सेल्युक्स निकोटर से हुआ जिसमें चन्द्रगुप्त को विजय प्राप्त हुई थी। चन्द्रगुप्त के शासनकाल में मेगस्थनीज दरबार में आया और पांच सैलून तक पाटलिपुत्र रहा था।

मगध साम्राज्य : मगध पुराने भारत के 16 साम्राज्यों में से एक है। स साम्राज्य का मुख भाग गंगा नदी के दक्षिण में बसा बिहार था। इसलि पहले राजधानी राजगृह और पाटलिपुत्र थी जिसे आज वर्तमान समय में राजगीर और पटना के नाम से जाना जाता है। मगध साम्राज्य में अधिकतर बिहार और बंगाल का भाग ही शामिल था जिनमे थोडा उत्तर प्रदेश और उड़ीसा भी दिखाई देते हैं।

प्राचीन मगध साम्राज्य की जानकारी हमें जैन और बुद्ध लेखों में मिलती है इसके साथ ही रामायण , महाभारत और पुराण में भी इसका वर्णन किया गया है। मगध राज्य और साम्राज्य को वैदिक ग्रंथों में 600 बीसी से पहले ही लिखा गया था। जैन और बुद्ध धर्म के विकास में मगध ने बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इन साम्राज्यों ने ही प्राचीन भारत में विज्ञान , गणित , धर्म , दर्शनशास्त्र और खगोलशास्त्र के विकास पर जोर दिया था। इन साम्राज्यों का शासनकाल भारत में स्वर्ण युग के नाम से भी जाना जाता है।

मध्यकालीन भारतीय इतिहास (Medieval Indian History In Hindi)

मुगल साम्राज्य : फरगाना वैलर जो आज का उजबेकिस्तान है के तैमूर और चंगेज खान के वंशज बाबर ने सन् 1526 में खैबर दर्रे को पार किया और वहां मुगल साम्राज्य की स्थापना की जहाँ आज अफगानिस्तान , पाकिस्तान , भारत और बांग्लादेश है। सन् 1600 तक मुगल वंश ने अधिकतर भारतीय उपमहाद्वीप पर राज किया। सन् 1700 के बाद इस वंश का पतन होने लगा और आखिरकार भारत के पहले स्वतंत्रता संग्राम के समय सन् 1857 में पूरी तरह खात्मा हो गया।

आधुनिक भारतीय इतिहास (Modern Indian History In Hindi) :

उपनिवेश काल : 16 वीं सदी में पुर्तगाल , नीदरलैंड , फ़्रांस और ब्रिटेन से यूरोपीय शक्तियों ने भारत में अपने व्यापार केंद्र स्थापित किए। बाद में आंतरिक मतभेदों का फायदा उठाकर उन्होंने अपनी कॉलोनियां स्थापित कर लीं।

ब्रिटिश राज : सन् 1600 में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के भारत आने पर यहाँ महारानी विक्टोरिया के शासन का ब्रिटिश राज शुरू हुआ। यह सन् 1857 में भारत की स्वतंत्रता की पहली लड़ाई के बाद समाप्त हुआ। लगभग 90 साल तक ब्रिटिशों ने भारत पर राज किया था। उनके पूरे साम्राज्य को आठ मुख्य भागों में बांटा गया है – बर्मा , बंगाल , मद्रास , बॉम्बे , उत्तर प्रदेश , मध्य भाग , पंजाब और असम।

जिनमें कलकत्ता के गवर्नर जनरल ही गवर्नमेंट के मुख्य अधिकारी होते थे। भारत के ब्रिटिश राज में शामिल होने के बाद ब्रिटिशों ने भारत की संस्कृति और समय पर बहुत अत्याचार भी किए। वे भारत से कई बहुमूल्य चीजे ले गए। उन्होंने अखण्ड भारत का विभाजन दो टुकड़ों में कर दिया था और जहाँ पर राजाओं का शासनकाल था उन भागों को भी उन्होंने आक्रमण करके हथिया लिया था।

वे भारत से कई बहुमूल्य चीजे ले गए थे जिनमे भारत का कोहिनूर हिरा भी शामिल है। अकाल और बाढ़ के समय बहुत से लोगों की मृत्यु भी हो गई थी सरकार ने लोगों की पर्याप्त सहायता नहीं की थी। उस वक्त कोई भी भारतीय ब्रिटिशों को टैक्स देने में सक्षम नहीं था लेकिन फिर जो भारतीय टैक्स नहीं देता था उसे ब्रिटिश लोग जेल में डाल देते थे।

ब्रिटिश राज के राजनीतिक विरोधियो को भी जेल जाना पड़ता था। लगभग 100 साल तक भारत पर राज करने के बाद उन्होंने फूट डालो और राज करो नीति को लागू किया था और भारत-पाकिस्तान विभाजन के दौरान कई लोगों की मौत हो गई थी। ब्रिटिशों ने भारतीयों पर अत्याचार करने के साथ-साथ भारतीयों के लिए कई अच्छे काम भी किए। उन्होंने रेलरोड और टेलीफोन का निर्माण किया और व्यापार , कानून और पानी की सुविधाओं को भी विकसित किया था।

इनके द्वारा किए गए इन कार्यों परिणाम भारत के विकास और समृद्धि में हुआ था। उन्होंने इंडियन सिविल सर्विस का निर्माण किया और कई जरूरी नियम और कानून बनवाए। उन्होंने भारत देश में विधवा महिलाओं को जलाने की प्रथा पर भी रोक लगाई थी। जब ब्रिटिश लोग भारत पर राज कर रहे थे तो इसका आर्थिक लाभ ब्रिटेन को हो रहा था। भारत में सस्ते दामों में कच्चे काम का उत्पादन किया जाता था और उन्हें विदेशों में भेजा जाता था। उस समय भारतीयों को भी ब्रिटिशों द्वारा बनाई गई चीजों का ही उपयोग पड़ता था।

सतवहना साम्राज्य : सतवहना साम्राज्य हमें 230 बीसी के लगभग दिखाई देता है। इस साम्राज्य को लोग आंध्रस के नाम से भी जाना जाता था। लगभग 450 साल तक बहुत से सतवहना राजाओं ने उत्तरी और मध्य भारत के बहुत से भागों में राज किया था।

पश्चिमी क्षत्रप : लगभग 350 साल तक 35 से 405 साल तक सका किंग ने भारत पर राज किया था। उन्होंने भारत के पश्चिमी और मध्य भागों पर राज किया था। आज वर्तमान समय में यह भाग गुजरात , महाराष्ट्र , राजस्थान और मध्य प्रदेश राज्यों में आते हैं। कुल मिलाकर वे 27 स्वतंत्र शासक थे जिन्हें क्षत्रप के नाम से जाना जाता था। सका शासक ने राजा कुशन और राजा सतवहना के साथ मिलकर भारत पर शासन किया था। कुशन राजा भारत के उत्तरी भाग पर शासन करते थे और सतवहना रजा भारत , मध्य और दक्षिणी भागों पर राज करते थे।

इंडो-सायथिंस : इंडो-सायथिंस भारत में साइबेरिया के बैक्टीरिया , सोग्डाना , कश्मीर और अरचोइसा जैसी जगहों से गुजरने के बाद आए थे। दूसरी शताब्दी से पहली शताब्दी तक उनका आना शुरू था। उन्होंने भारत के इंडो-ग्रीक शासकों को हर दिया था और गंधार से मथुरा तक राज करने लगे थे।

गुप्त साम्राज्य : गुप्त साम्राज्य का शासनकाल 320 से 550 एडी के दरमियाँ था। गुप्त साम्राज्य ने बहुत से उत्तरी-मध्य भाग को हथिया लिया था। पश्चिमी भारत और बांग्लादेश में भी उनका कुछ राज्य था। गुप्त समाज के लिए भी हिन्दू मान्यताओं को मानते थे। गुप्त साम्राज्य को भारत का स्वर्णिम युग कहा जाता था। इतिहासकारों ने गुप्त साम्राज्य को हान सम्रजू , टंग साम्राज्य और रोमन साम्राज्य के अनुरूप ही बताया।

हूँ आक्रमण : पाँचवीं शताब्दी के पहले भाग में कुछ लोगों का समूह अफगानिस्तान में स्थापित हो गया था। वे कुछ समय बाद बहुत शक्तिशाली बन चुके थे। उन्होंने बामियान को अपनी राजधानी बनाया था। इसके बाद उन्होंने भारत के उत्तरी-पश्चिम भाग पर आक्रमण करना भी शुरू कर दिया था।

गुप्त साम्राज्य के शासक स्कंदगुप्त ने उनका सामना कर उन्हें कुछ सालों तक तो अपने साम्राज्य से दूर रखा था लेकिन अंततः हूँ को जीत प्राप्त हुई और फिर उन्होंने धीरे-धीरे शेष उत्तरी भारत पर भी आक्रमण करना शुरू किया। इसी के साथ गुप्त साम्राज्य का भी अंत हो गया था।

आक्रमण के बाद उत्तरी भारत का बहुत सा हिस्सा प्रभावित हो गया था लेकिन हूँ की सेना ने इसके बाद डेक्कन प्लाटौ और दक्षिणी भारत पर आक्रमण नहीं किया था। इसलिए भारत ने यह भाग उस समय शांतिपूर्ण थे। लेकिन कोई भी हूँ कि किस्मत के बारे में नहीं जनता था। कुछ इतिहासकारों के अनुसार समय के साथ-साथ वे भी भारतीय लोगों में ही शामिल हो गए थे।

हर्ष साम्राज्य : गुप्त साम्राज्य के पतन के बाद कनौज के हर्ष ने ही उत्तरी भारत के सभी भागों को मिलाकर एक विशाल साम्राज्य की नींव रखी। उनकी मौत के बाद बहुत से साम्राज्यों ने उत्तरी भारत को संभालने और शासन करने की कोशिश की लेकिन सभी असफल रहे। कोशिश करने वाले उन साम्राज्यों में मालवा के प्रतिहार , बंगाल के पलास और डेक्कन के राष्ट्रकूट भी शामिल हैं।

प्रतिहार , पलास और राष्ट्रकूट : परिहार रजा का साम्राज्य राजस्थान और भारत के कुछ उत्तरी भागों में छठी से 11 वी शताब्दी के बिच था। पलास भारत के पूर्वी भागों पर राज करते थे वे वर्तमान भारत के बिहार , झारखण्ड और पश्चिम बंगाल और बांग्लादेश जैसे राज्यों पर शासन करते थे।

पलास का शासनकाल 8 से 12 वी शताब्दी के बीच था। भारत के दक्षिणी भाग में मालखेडा के राष्ट्रकूट के शासन था उन्होंने चालुक्य के पतन के बाद 8 से 10 वी शताब्दी तक राज किया था। यह तीनों साम्राज्यों हमेशा पूरे उत्तरी भारत पर शासन करना चाहते थे लेकिन चोल राज के बलशाली और शक्तिशाली होने के बाद वे असफल हुए।

राजपूत :- 6 वी शताब्दी में बहुत से राजपूत राजा राजस्थान में स्थापित होने के इरादों से आये थे। कुछ राजपूत राजा भारत के उत्तरी भाग में राज करते थे उनमे से कुछ भारतीय इतिहास में 100 से भी ज्यादा साल तक राज कर चुके थे।

विजयनगर साम्राज्य : 1336 में हरिहर और बुक्का नाम के दो भाइयों ने मिलकर विजयनगर साम्राज्य की स्थापना वर्तमान भारत के कर्नाटक राज्य में की थी। इस साम्राज्य का सबसे प्रसिद्ध राजा कृष्णदेवराय था। 1565 में इस साम्राज्य के शासकों को एक युद्ध में पराजय का सामना करना पड़ा था। दक्षिण भारत के बहुत से शासकों के अरब और इंडोनेशिया और दूसरे पूर्वी देशों के साथ व्यापारिक संबंध भी थे।

इस्लामिक सल्तनत : 500 साल पहले ही इस्लाम धर्म के लोग पूरे भारत में फैल चुके थे। 10 वी और 11 वी शताब्दी में ही तुर्क और अफगानी शासकों ने भारत पर आक्रमण किया था और दिल्ली की सल्तनत स्थापित की। 16 वी शताब्दी की शुरुआत में जंघिम खान के वंशज ने ही मुगल साम्राज्य की स्थापना की जिन्होंने लगभग 200 साल तक राज किया। 11 वी से 15 वी शताब्दी में दक्षिण भारत को हिन्दू चोला और विजयनगर साम्राज्य ने सुरक्षित रखा। इस समय दो प्रणाली – हिन्दू और मुस्लिम को प्रचलित करना और घुल मिलकर रहने को अपनाया गया था।

दिल्ली सल्तनत : गुलाम साम्राज्य की शुरुआत कुतुबुद्दीन ऐबक ने की थी। वे उनमें से एक थे जिन्होंने आर्किटेक्चरल धरोहर को बनाने की शुरुआत की थी और सबसे पहले उन्होंने मुस्लिम धर्म के हित में कुतुबमीनार का निर्माण करवाया था। चौगल खेलते समय ही कुतुबुद्दीन ऐबक की मौत हो गई थी। अपने घोड़े से गिरने की वजह से उनकी मौत हो गई थी। इसके बाद इल्तुमिश उनके उत्तराधिकारी बनी और साथ ही पहली महिला शासक भी बनी थी।

मैसूर साम्राज्य : मैसूर का साम्राज्य ही दक्षिण भारत का साम्राज्य था। लोगों के अनुसार सन् 1400 में वोदेयार्स ने मैसूर साम्राज्य की स्थापना की थी। इसके बाद हैदर अली और उनके बेटे टीपू सुल्तान ने वोदेयार के साथ लड़ाई की थी। इसके साथ-साथ उन्होंने ब्रिटिश राज के विरुद्ध भी उनका विरोध किया था लेकिन अंततः उन्हें हार का सामना करना पड़ा था। ब्रिटिश राज में वोदेयार राजा कर्नाटक पर राज करते थे। जब 15 अगस्त , 1947 को भारत आजाद हुआ था तब वोदेयार साम्राज्य भी भारत का ही हिस्सा बना गया था।

पंजाब : गुरु नानक ने सिक्ख धर्म और उनके अनुयायियों की खोज की थी। सिक्खों की ताकत उत्तर भारत में समय के साथ-साथ बढती जा रही थी। उत्तरी भारत के ज्यादातर भागो पर सिक्ख शासको का ही राज था। सिक्ख साम्राज्य में रणजीत सिंह सबसे प्रसिद्ध और प्रक्रम्मी शासक थे। अपनी मौत के वक्त उन्होंने सिक्ख साम्राज्य को बॉर्डर को भी विकसित किया था और अपने साम्राज्य में पंजाब और वर्तमान कश्मीर और पाकिस्तान का कुछ भाग भी शामिल कर लिया था।

सिक्खों और ब्रिटिश सेना के बीच इतिहास में कई लड़ाईयां हुयी थीं। जब तक महाराज रणजीत सिंह जिन्दा थे तब तक ब्रिटिश अधिकारियो को सुल्तेज नदी पार करने में कभी सफलता नहीं मिली। उनकी मौत के बाद उन्होंने पूरे पंजाब को हथिया लिया था और सिक्ख शासकों का पतन कर दिया था।

दुर्रानी साम्राज्य : बहुत कम वक्त के लिए अहमद शाह दुर्रानी उत्तरी भारत के कुछ भागों में राज करने लगे थे। इतिहासकारों ने उनके साम्राज्य को दुर्रानी साम्राज्य का ही नाम दिया था। 1748 में उन्होंने इंडस नदी पार की और लाहौर पर आक्रमण किया जो आज आकिस्तान का एक भाग है। इसके साथ-साथ उन्होंने पंजाब के कई भागों पर भी आक्रमण किया था और फिर दिल्ली पर आक्रमण किया उस समय दिल्ली मुगल साम्राज्य की राजधानी थी। उन्होंने भारत से बहुत सी मूल्यवान चीजे ले गई थी जिसमें भारत का प्रसिद्ध कोहिनूर हिरा भी शामिल है।

कोलोनियल समय : कोलोनियल समय अथार्त वह समय जब पश्चिमी देशों ने भारत पर शासन किया था। इन देशों ने दूसरे देशों जैसे एशिया , अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका पर भी शासन किया था।

कंपनी राज : सन् 1600 से ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कंपनी भारत में आई और सबसे पहले बंगाल में स्थापित हुई थी। सन् 1700 के बीच में कंपनी ने भारत पर बहुत प्रभाव डाला और भारत पर बहुत से राज्यों को अपने अधीन कर लिया था और 1757 में प्लासी का युद्ध जीतने के बाद ब्रिटिश अधिकारों की ही बंगाल का गवर्नर बनाया गया था और तभी से भारत में कंपनी राज की शुरुआत हुई थी।

युद्ध के 100 साल बाद ईस्ट इण्डिया कंपनी ने पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में अपनी छाप छोड़ी थी। वे व्यापार , राजनीति और सैन्य बल के जोर पर ही शासन करते थे लेकिन 1857 में भारतियों ने कंपनी का बहुत विरोध किया और इस विरोध ने जल्द ही एक क्रांति का रूप भी ले लिया था और परिणामस्वरूप कंपनी का पतन हो गया। इसके बाद 1858 में भारत भी ब्रिटिश साम्राज्य का ही एक भाग बन गया था और रानी विक्टोरिया भारत ही पहले रानी बनी थी।

बंगाल का विभाजन ( 1905 ) : 19 जुलाई , 1905 को लार्ड कर्जन भारत आये थे। 16 अक्टूबर , 1905 को बंगाल को दो भागों में बांटा गया था। एक भाग वेस्ट बंगाल बना जिसकी राजधानी कलकत्ता बनी और दूसरा भाग ईस्ट बंगाल बना जिसकी राजधानी देक्का बना। बंगाल के विभाजन के विरोध में विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार किया गया था।

असहयोग आंदोलन ( 1921 ) : यह गाँधी जी का प्रथम जन आंदोलन था उस समय के वाइसराय लार्ड चेम्सफोर्ड थे। असहयोग आंदोलन में बहुत मुख मागें रखी गयीं थीं जैसे – रोलेक्त एक्ट को रद्द किया जाए , जलियावाला बाग पीड़ितों को न्याय दिया जाए , खिलाफत आंदोलनकारियों को न्याय दिया जाए , भारत के लिए स्वराज्य की मांग , वित्तीय सहायता के लिए तिलक फंड बनाया जाए , गाँधी जी ने केसरी हिन्द की उपाधि को त्याग दिया , चरखा और कड़ी भारत का राष्ट्रिय प्रतीक बने आदि।

असहयोग आन्दोलन के समय चोरीचोरा कांड हुआ। इस कांड में 2000 की भीड़ शराब के दुकान के पास धरना प्रदर्शन के लिए गए जिनमें से 3 लोगों को अंग्रेज पुलिस वालों ने मार दिया उसके बाद गुस्साई भीड़ ने 23 पुलिस वालों को जिन्दा जला दिया इस कांड के बाद असहयोग आंदोलन बंद हुआ। इस कांड के समय लार्ड रीडिंग भारत के वाइसराय थे।

स्वतंत्रत अभियान : बहुत से भारतीय ब्रिटिश राज से मुक्त होना चाहते थे। भारतीय स्वतंत्रता अभियान का संघर्ष बहुत लंबा और दर्दभर था। भारत के स्वतंत्रता के लिए सेकड़ों-हजारों महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी वो ने अपना जीवन बलिदान किया। भारतीय स्वतंत्रत अभियान के संघर्ष में मुख्य नेता महात्मा गाँधी थे। गाँधी को अहिंसा पर पूर्ण विश्वास था और अहिंसा के बल पर ही 15 अगस्त , 1947 को भारत को आजादी मिली और देश आजाद बन गया था।

साइमन कमिसन ( 3 फरवरी 1927 -1928 ) : जॉन साइमन साइमन कमिसन के प्रमुख थे। इन्हें संवैधानिक गतिविधियों को सुधारने के लिए भारत भेजा गया था। 7 स्द्सुय आए थे जो यूनाइटेड किंगडम के पार्लियामेंट सदस्य थे। इसे वाइट कमिसन भी कहा गया था क्योंकि इसमें कोई भी भारतीय नहीं था। साइमन कमिसन के विरुद्ध लाहौर में एक आंदोलन रखा गया जिसका नेतृत्व लाला लाजपतराय ने किया था। इस आंदोलन में लाठी चार्ज में चोटिल हो जाने से लाला लाजपत राय मारे गए थे।

हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन ( 1928 ) : साल 1928 में पहले इसे हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन नाम से जाना जाता था। इसके बाद सदस्य चन्द्रशेखर आजाद , भगत सिंह , सुखदेव , बटुकेश्वर दत्ता और राजगुरु थे। इस दल को गरम दल भी कहते हैं। ए.एस.पी. जे.पी.सौन्देर्स को 1 दिसंबर , 1928 को सुखदेव , राजगुरु और भगत सिंह जी ने मारा था। बटुकेश्वर दत्ता और भगत सिंह ने सभा में दो बम लगाए थे जिसके बाद इन दोनों को गिरफ्तार किया गया था और 23 मार्च , 1931 को सुखदेव , राजगुरु और भगत सिंह को फंसी हुई थी।

सविनय अवज्ञा आंदोलन ( 1930 ) : सविनय अवज्ञा आंदोलन गाँधी जी का दूसरा जन आंदोलन था। इस आंदोलन का प्रमुख कारण गाँधी जी का 11 सूत्रीय मांगो को लार्ड इरविन द्वारा नहीं मानना था। इसे कर नहीं आंदोलन भी कहा जाता है। इसे साल 1931 में गाँधी इरविन समझौते के द्वारा खत्म कर दिया गया था। इस आंदोलन के समय ही गाँधी जी ने 12 मार्च , 1930 में दांडी मार्च किया यह यात्रा लगभग 390 किलोमीटर की थी।

गाँधी इरविन समझौता : गाँधी इरविन समझौता 5 मार्च , 1931 को किया गया था। इस समझौते में गाँधी जी को कुछ शर्तें माननी पड़ी थीं जैसे – सविनय अवज्ञा आन्दोलन बंद किया गया , कांग्रेस दूसरे गोलमेज सम्मेलन में भाग लेगा , आंदोलन के दौरान अंग्रेजों द्वारा भारतियों पर किए गए अत्याचार पर कोई जाँच आयोग नहीं बनाया जाएगा आदि।

लार्ड इरविन ने भी कुछ शर्तें मानी थीं जैसे – नमक कानून हटेगा , कांग्रेसियों की जप्त संपतियों को वापस दिया जाएगा , महिलाओं को शराब और अफीम की दुकानों के समक्ष शांति पूर्ण ढंग से धरना प्रदर्शन की इजाजत दी जाएगी। हिंसा में लिप्त दोषियों को छोडकर शेष सभी भारतीय बंदियों को रिहा कर दिया जाएगा।

गोलमेज सम्मेलन : कांग्रेस ने सिर्फ दूसरे गोलमेज सम्मेलन में भाग लिए। डॉ बी.आर.अम्बेडकर इकलौते नेता थे जिन्होंने तीनों गोलमेज सम्मेलनों में भाग लिया। प्रथम गोलमेज सम्मेलन 12 नवंबर , 1930 में रामसे म्क्दोनाल्ड प्रधानमंत्री द्वारा सैंट जेम्स पैलेस लंदन में हुआ था इसमें 89 सदस्यों ने भाग लिया था। द्वितीय गोलमेज सम्मेलन 7 सितम्बर , 1931 में हुआ था।

इस सम्मेलन में कांग्रेस ने भाग लिया था। सरोजनी नायडू ने भारतीय महिलाओं का प्रतिनिधित्व किया था। यह मीटिंग असफल रही थी और इसके असफल होने का कारण बी.आर.अम्बेडकर और गाँधी जी के बीच दलित वर्गों को पृथक निर्वाचन को लेकर विवाद था। तीसरा गोलमेज सम्मेलन 17 नवंबर , 1932 को रखा गया था।

पूना समझौता ( 24 सितम्बर , 1932 ) : पूना समझौता गाँधी जी और बी.आर.आम्बेडकर के बीच म्क्दोनाल्ड अवार्ड को अस्वीकार करने के लिए समझौता किया गया था। म्क्दोनाल्ड अवार्ड के विरोध में गाँधी जी ने यरवदा जेल पुणे में अनसन रख। यह गाँधी जी का यह सबसे लंबा अनसन था। इस आंदोलन में मध्यस्थ के नाम मदनमोहन मालवी , राजेन्द्र प्रसाद , पुरुषोत्तम दास टंडन आदि थे।

अगस्त प्रस्ताव ( 8 अगस्त , 1940 ) : वाइसराय लिनलिथगो ने दूसरे विश्व युद्ध में भारत का सहयोग पाने के लिए अगस्त प्रस्ताव लाया था। इसे कांग्रेस और मुस्लिम संघ ने ठुकरा दिया था।

व्यक्तिगत सत्याग्रह ( 17 अक्टूबर , 1940 ) : व्यक्तिगत सत्याग्रह का मुख्य कारण अगस्त प्रस्ताव था। इसके पहले सत्याग्रही आचार्य विनोबा भावे जी थे और दूसरे जवाहरलाल नेहरु जी थे। यह सत्याग्रह गाँधी जी के सत्याग्रह पर आधारित था।

क्रिप्स मिशंस ( 23 मार्च , 1942 ) : स्टैफोर्ड क्रिप्स की अध्यक्षता में क्रिप्स मिशंस लाया गया था। इसे भारतियों का सहयोग पाने के लिए लाया गया था। गाँधी जी ने इसे ” A post dated cheque ” कहा था। इसे कांग्रेस और मुस्लिम संघ दोनों ने ठुकरा दिया था।

भारत छोड़ो आंदोलन ( 9 अगस्त , 1942 ) : भारत छोड़ो आंदोलन को अगस्त क्रांति और वर्धा प्रस्ताव भी कहते हैं। यह गाँधी जी का अंतिम जन आंदोलन था। गाँधी जी ने इस आंदोलन को बॉम्बे के गोवालिया टैंक मैदान से शुरू किया था। उस वक्त गाँधी जी का नारा ” करो या मरो ” था।

कैबिनेट मिशन ( 24 मार्च , 1946 ) : भारत की पूर्ण स्वाधीनता की मांग को मानते हुए ब्रिटिश कैबिनेट ने भारत में ब्रिटिश कैबिनेट मिशन भेजा। इस समय इंग्लैण्ड के प्रधानमंत्री क्लेमेंट अत्त्ली थे। इस समय में भारत के वाइसराय अर्चिबल्ड वावेल थे। इस मिशन का मुख्य उद्देश्य भारत को संघ बनाना , भारत में अंतरिम सरकार बनाना , संविधान निर्माता सभा का निर्माण करना , मुस्लिम संघ द्वारा इसे अपनाया जाना आदि थे। इस मिशन में तीन मुख्य सदस्य थे – लार्ड पल्थिक्क लॉरेंस , सर स्टैफ़ोर्ड क्रिप्स , ए.वी. अलेक्सेंडर।

अत्तली की घोषणा ( 20 फरवरी , 1947 ) : ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ने ब्रिटेन के संसद में घोषणा किया कि भारत को 30 जून 1948 से पहले पूर्ण रूप से आजदी दे दी जाएगी। लार्ड वावेल को हटा कर लार्ड माउंटबैटन को भारत का वाइसराय बनाकर भारत भेजा गया था।

माउंटबैटन प्लेन ( 3 जून , 1947 ) : भारत को दो भागों में बांटा गया जो आज के समय पाकिस्तान और हिंदुस्तान हैं। रेडक्लिफ आयोग का गठन किया गया। 15 अगस्त , 1947 को भारत का विभाजन पूरा हुआ था और इसके साथ ही भारत आजाद हुआ था।

प्राचीन भारतीय इतिहास का घटनाक्रम (Events of ancient Indian history In Hindi) :

प्रागैतिहासिक काल ( 400000 ई.पू. – 1000 ई.पू. ) : यह वह समय था जब केवल भोजन इकट्ठा करने वाले मानव ने आग और पहिए की खोज की।

सिंधु घाटी सभ्यता ( 2500 ई.पू. – 1500 ई.पू. ) : इसका यह नाम सिंधु नदी की वजह से आया और यह कृषि करके उन्नत हुई थी। यहाँ के लोग प्राकृतिक संसाधनों को भी पूजा करते थे।

महाकाव्य युग ( 1000 ई.पू. – 600 ई.पू. ) : इस कालखण्ड में वेदों का संकलन हुआ और वर्णों के भेद हुए जैसे – आर्य और दास।

हिन्दू धर्म और परिवर्तन ( 600 ई.पू. – 322 ई.पू. ) : इस समय में जाति प्रथा बहुत सख्त हो गई थी और यही वह समय था जब महावीर और बुद्ध का आगमन हुआ और उन्होंने जातिवाद के विरुद्ध बगावत की। इस काल में महाजनपदों का गठन हुआ था और बिम्बिसार के शासन में मगध आया , अजात शत्रु , शिसुनंगा और नंदा राजवंश बने।

मौर्य काल ( 322 ई.पू. – 185 ई.पू. ) : चन्द्रगुप्त द्वारा स्थापित इस साम्राज्य में पूरा उत्तर भारत था और बिंदुसार ने इसे और बढ़ाया था। इस काल में हुए कलिंग युद्ध के बाद रजा अशोक ने बौद्ध धर्म अपनाया।

आक्रमण ( 185 ई.पू. – 320 ईस्वी ) : इस अवधि में बैक्ट्रियन , पार्थियन , शक और कुषाण के आक्रमण हुए। व्यापार के लिए मध्य एशिया खुला , सोने के सिक्कों का चलन और साका युग का प्रारंभ हुआ।

डेक्कन और दक्षिण ( 65 ई.पू. – 250 ईस्वी ) : इस काल में दक्षिण भाग पर चोल , चेर और पंड्या का शासन रहा और इसी समय में अजंता एलोरा गुफाओं का निर्माण हुआ संगम साहित्य और भारत में ईसाई धर्म का आगमन हुआ।

गुप्त साम्राज्य ( 320 ईस्वी – 520 ईस्वी ) : इस काल में चन्द्रगुप्त प्रथम ने गुप्त साम्राज्य की स्थापना की। उत्तर भारत में शास्त्रीय युग का आगमन हुआ। समुद्रगुप्त ने अपने राजवंश का विस्तार किया और चन्द्र्गुत द्वितीय ने शोक के खिलाफ युद्ध किया। इस युग में ही शाकुंतलम और कामसूत्र की रचना हुई। आर्यभट्ट ने खगोल विज्ञानं में अद्भुत काम किए और भक्ति पन्थ भी इस समय उभरा।

छोटे राज्यों का काल ( 500 ईस्वी – 606 ईस्वी ) : इस युग में हूणों के उत्तर भारत में आने से मध्य एशिया और ईरान में पलायन देखा गया था। उत्तर में कई राजवंशों के परस्पर युद्ध करने से बहुत से छोटे राज्यों का निर्माण हुआ।

हर्षवर्धन ( 606 ई – 647 ईस्वी ) : हर्षवर्धन के शासनकाल में प्रसिद्ध चीनी यात्री हेन त्सांग ने भारत की यात्रा की। हूणों के हमले से हर्षवर्धन का राज्य कई छोटे राज्यों में बंट गया। यह वह समय था जब डेक्कन और दक्षिण बहुत शक्तिशाली बन गए।

दक्षिण राजवंश ( 500 ई – 750 ईस्वी ) : इस युग में चालुक्य , पल्लव और पंड्या साम्राज्य पनपा और पारसी भारत आए।

चोल साम्राज्य ( 9वीं सदी ई – 13 वीं सदी ईस्वी ) : विजयालस द्वारा स्थापित चोल साम्राज्य ने समुद्र निति अपनाई। अब मन्दिर सांस्कृतिक और सामाजिक केंद्र होने लगे और द्रविड़ियन भाषा फलीफूली।

उत्तरी साम्राज्य ( 750 ई – 1206 ईस्वी ) : इस समय राष्ट्रकूट ताकतवर हुआ प्रतिवार ने अवंति और पलस ने बंगाल पर शासन किसा। इस युग ने राजपूत कुलों का उदय देखा। खजुराहो , कांचीपुरम , पुरी में मंदिरों का निर्माण हुआ और लघु चित्रकारी शुरू हुई। इस अवधि में तुर्कों का आक्रमण हुआ।

सन् 1857 के प्रसिद्ध व्यक्ति (Famous person of 1857) :

बहादुर शाह ज़फर : अधिकांश भारतीय विद्रोहियों ने बहादुर शाह ज़फर को भारत का राजा चुना और उनके अधीन वे एकजुट हो गए। अंग्रेजों की साजिश के सामने वो भी नहीं टिक पाए। उनके पतन से भारत में तीन सदी से ज्यादा पुराने मुगल शासन का अंत हो गया।

बख्त खान : ईस्ट इण्डिया कंपनी में सूबेदार रहे बख्त खान ने रोहिल्ला सिपाहियों की एक सेना का निर्माण किया। मई 1857 में अंग्रेजों के विरुद्ध मेरठ में सिपाहियों के विद्रोह करने के बाद वो दिल्लू में सिपाही सेना के कमांडर बन गए।

मंगल पांडे : 34 वीं बंगाल नेटिव इंफैंट्री का हिस्सा रहे मंगल पांडे को 29 मार्च 1857 को बैरकपुर में एक वरिष्ठ अंग्रेज अधिकारी पर हमला करने के लिए जाना जाता है। इस घटना को ही भारत की स्वतंत्रता संग्राम की शुरुआत माना जाता है।

नाना साहिब : निर्वासित मराठा पेशवा बाजी राव द्वितीय के दत्तक पुत्र नाना साहिब ने कानपुर में विद्रोह का नेतृत्व किया था।

रानी लक्ष्मीबाई : रानी लक्ष्मीबाई तात्या टोपे के साथ मिलकर अंग्रेज सैनिकों के विरुद्ध बहादुरी से लड़ीं। 17 जून 1858 को ग्वालियर के फूल बाग इलाके के पास अंग्रेजों से लड़ते हुए उन्होंने अपना जीवन न्यौछावर कर दिया।

तात्या टोपे : नाना साहिब के करीबी सहयोगी और सेनापति तात्या टोपे ने रानी लक्ष्मीबाई के साथ मिलकर अंग्रेजों से लड़ाई लड़ी।

वीर कुंवर सिंह : वर्तमान में बिहार के भोजपुर जिले का हिस्सा रहे जगदीशपुर के राजा ने अंग्रेजों के विरुद्ध सशस्त्र सेना का नेतृत्व किया।

भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन और महात्मा गाँधी : 20 वीं सदी में महात्मा गाँधी ने लाखों लोगों का नेतृत्व किया और सन् 1947 में स्वतंत्रता के लिए एक अहिंसक सविनय अवज्ञा आंदोलन चलाया।

आजादी और विभाजन : अंग्रेजों की फूट डालो और राज करो की नीति के कारण पिछले कुछ सैलून में हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच धार्मिक तनाव बढ़ता गया खासतौर पर पंजाब और पश्चिम बंगाल जैसे प्रान्तों में। महात्मा गाँधी ने दोनों धार्मिक समुदायों से एकता बनाए रखने की भी अपील की।

दूसरे विश्व युद्ध के बाद कमजोर अर्थव्यवस्था से जूझ रहे अंग्रेजों ने भारत छोड़ने का फैसला किया जिससे अंतरिम सरकार बनाने का रास्ता बना। आखिरकार भारत और पाकिस्तान का बंटवारा हुआ और अंग्रेजों के कब्जे से इस क्षेत्र को सन् 1947 में आजादी मिली।

आजादी के बाद के काल : कई सभ्यताओं जैसे ग्रीक , रोमन और मिस्त्र ने उदय और पतन देखा। भारतीय सभ्यता और संस्कृति इससे अछूत रही। इस पेश पर एक के बाद एक कई आक्रमण हुए। कई साम्राज्य आए और अलग-अलग हिस्सों पर शासन किया लेकिन भारतवर्ष की अदम्य आत्मा पराजित नहीं हुई।

आज के समय में संसार के सबसे बड़े लोकतंत्र और सबसे जीवंत गणराज्य के तौर पर विश्व में देखा जाता है। यह एक उभरती हुई वैश्विक महाशक्ति और दक्षिण एशिया का एक प्रभावशाली देश है। भारत एशिया का सबसे बड़ा देश है और संसार का सातवां सबसे बड़ा और जनसंख्या के तौर पर दूसरा सबसे बड़ा देश है। इसमें एशिया का एक तिहाई हिस्सा है और मानव जाति का सातवां भाग इसमें है।

The post भारत का सच्चा इतिहास-History Of India In Hindi appeared first on hindimeaning.com.

श्री भैरव चालीसा-Bhairav Chalisa In Hindi & English

$
0
0

*श्री भैरव चालीसा*

॥ दोहा ॥

श्री गणपति, गुरु गौरि पद, प्रेम सहित धरि माथ ।
चालीसा वन्दन करों, श्री शिव भैरवनाथ ॥

श्री भैरव संकट हरण, मंगल करण कृपाल ।
श्याम वरण विकराल वपु, लोचन लाल विशाल ॥

|| चौपाई ||

जय जय श्री काली के लाला । जयति जयति काशी-कुतवाला ॥
जयति बटुक भैरव जय हारी । जयति काल भैरव बलकारी ॥

जयति सर्व भैरव विख्याता । जयति नाथ भैरव सुखदाता ॥
भैरव रुप कियो शिव धारण । भव के भार उतारण कारण ॥

भैरव रव सुन है भय दूरी । सब विधि होय कामना पूरी ॥
शेष महेश आदि गुण गायो । काशी-कोतवाल कहलायो ॥

जटाजूट सिर चन्द्र विराजत । बाला, मुकुट, बिजायठ साजत ॥
कटि करधनी घुंघरु बाजत । दर्शन करत सकल भय भाजत ॥

जीवन दान दास को दीन्हो । कीन्हो कृपा नाथ तब चीन्हो ॥
वसि रसना बनि सारद-काली । दीन्यो वर राख्यो मम लाली ॥

धन्य धन्य भैरव भय भंजन । जय मनरंजन खल दल भंजन ॥
कर त्रिशूल डमरु शुचि कोड़ा । कृपा कटाक्ष सुयश नहिं थोड़ा ॥

जो भैरव निर्भय गुण गावत । अष्टसिद्घि नवनिधि फल पावत ॥
रुप विशाल कठिन दुख मोचन । क्रोध कराल लाल दुहुं लोचन ॥

अगणित भूत प्रेत संग डोलत । बं बं बं शिव बं बं बोतल ॥
रुद्रकाय काली के लाला । महा कालहू के हो काला ॥

बटुक नाथ हो काल गंभीरा । श्वेत, रक्त अरु श्याम शरीरा ॥
करत तीनहू रुप प्रकाशा । भरत सुभक्तन कहं शुभ आशा ॥

त्न जड़ित कंचन सिंहासन । व्याघ्र चर्म शुचि नर्म सुआनन ॥
तुमहि जाई काशिहिं जन ध्यावहिं । विश्वनाथ कहं दर्शन पावहिं ॥

जय प्रभु संहारक सुनन्द जय । जय उन्नत हर उमानन्द जय ॥
भीम त्रिलोकन स्वान साथ जय । बैजनाथ श्री जगतनाथ जय ॥

महाभीम भीषण शरीर जय । रुद्र त्र्यम्बक धीर वीर जय ॥
अश्वनाथ जय प्रेतनाथ जय । श्वानारुढ़ सयचन्द्र नाथ जय ॥

निमिष दिगम्बर चक्रनाथ जय । गहत अनाथन नाथ हाथ जय ॥
त्रेशलेश भूतेश चन्द्र जय । क्रोध वत्स अमरेश नन्द जय ॥

श्री वामन नकुलेश चण्ड जय । कृत्याऊ कीरति प्रचण्ड जय ॥
रुद्र बटुक क्रोधेश काल धर । चक्र तुण्ड दश पाणिव्याल धर ॥

करि मद पान शम्भु गुणगावत । चौंसठ योगिन संग नचावत ।
करत कृपा जन पर बहु ढंगा । काशी कोतवाल अड़बंगा ॥

देयं काल भैरव जब सोटा । नसै पाप मोटा से मोटा ॥
जाकर निर्मल होय शरीरा। मिटै सकल संकट भव पीरा ॥

श्री भैरव भूतों के राजा । बाधा हरत करत शुभ काजा ॥
ऐलादी के दुःख निवारयो । सदा कृपा करि काज सम्हारयो ॥

सुन्दरदास सहित अनुरागा । श्री दुर्वासा निकट प्रयागा ॥
श्री भैरव जी की जय लेख्यो । सकल कामना पूरण देख्यो ॥

॥ दोहा ॥

जय जय जय भैरव बटुक, स्वामी संकट टार ।
कृपा दास पर कीजिये, शंकर के अवतार ॥
जो यह चालीसा पढ़े, प्रेम सहित सत बार ।
उस घर सर्वानन्द हों, वैभव बड़े अपार ॥

|| इति श्री भैरव चालीसा समाप्त ||


Bharav Chalisa (English)

DOHA
!! Shri Ganapati, guru  prem sahita dhari math,
Chaisa vandan karo  shri shiv bhairavanath,
Shri bhairav sankat manga karan kripa,
Shyam varan vikra vapu  ochan aa visha !!

!!  Jai jai shri kai ke aa  jaiati jaiati kashii- kutvaa,
Jaiati ‘batuk- bhairav’ bhayharI  jaiati ‘kaa- bhairav’ bakari,
Jaiati ‘nath- bhairav’ vikhyata  jaiati ‘sarv- bhairav’ sukhdata,
Bhairav roop kiyo shiv dharan  bhav ke bhar utaran karan !!

!!  Bhairav roop suni hvai bhay doori sab vidhi hoe kamana puri,
Shesh mahesh aadi gun gayo kashii- kotavaa kahaayo,
Jata jut shir chandra virajat  baa, mukut, bijyath sajat,
Kati kardhani ghungharu bajat darshan karat saka bhay bhajat !!

!!  Jiivan daan daas ko diino  kinho kripa nath tab chinho,
Vasi rasna bani sarad- kai  dinho var rakho mam ai,
Dhanya dhanya bhairav bhay bhanjan  jai manuranjan kha da bhanjan,
Kar trishu damaru shuchi kodaa  kripa kataksh suyash nahin thoda !!

!! Jo bhairav nirbhae gun gavat  asht sidhi nav nidhi pha vavat,
Roop visha kathin dukh mochan  krodh kara aa duhu ochan,
Aaginat bhoot pret sang doat  bam bam bam shiv bam bam boat,
Rudrakae kai ke aa maha kahu ke ho aa !!

!!  Batuk nath ho kaa gambhir  shvet, rakt aru shyam sharer,
Karat tinhun roop parkasha bharat subhaktn kahan shubh asha,
Ratn jadit kanchan singhasan vyaghra charm shuchi narm suanan,
Tumahi jai kashihi jana dhyavahi ishvanaath kahan darshan paavahn !!

!!  Jaia prabhu saharak sunand jai, jaia unnat har umanand jai,
Bheem triochan svaan sath jai vaijnath shri jagatanath jai,
Maha bheem bhishan sharer jai  rudra trayambak dheer veer, jai
Ashvanath jai premnath jai svanarudh saychandar nath jai !!

!!  Nimish digambar chakranath jai gahat nathan nath hath jai,
Treshesh bhutesh chandar jai  krodh vasat amresh nand jai,
Shri vaman nakuesh chand jai  krityau kirat prachand jai,
Rudra batuk krodhesha kaa dhar  chakra tund dash panivya dar !!

!!  Kari mad paan shambhu gungavat  chaunsath yogini sang nachavat,
Karat drip jan par bahu dhanga  kashii kotva adbanga,
De kaa bhairav jab sota nase paap mota se mota,
Jankar nirma hoye sharera  mite saka sankat bhav peera !!

!!  Shri bhairav bhuton ke raja badha harat karat shubh kaja,
Aiadi ke dukh nivarao  sada kripa kari kaaj samharao,
Sundar daas sahit anuraga  shri durvasa nikat prayaga,
“Shri bhairava ji ki jai” ekhyo  saka kamana puran dekhyo !!

 DOHA

!!  Jai Jai Jai Bhairav Batuk Swami Sankat Taar  Kripa Daas par kije Shankar ke Avtar,
Jo yeh Chaisa Pade prem sahit saat baar us par sarvnand ho,vaibhav bade apar !!

The post श्री भैरव चालीसा-Bhairav Chalisa In Hindi & English appeared first on hindimeaning.com.

श्री विष्णु चालीसा-Vishnu Chalisa In Hindi & English

$
0
0

*श्री विष्णु चालिसा*

||दोहा||

विष्णु सुनिए विनय सेवक की चितलाय।
कीरत कुछ वर्णन करूं दीजै ज्ञान बताय॥

||चौपाई||

नमो विष्णु भगवान खरारी, कष्ट नशावन अखिल बिहारी।
प्रबल जगत में शक्ति तुम्हारी, त्रिभुवन फैल रही उजियारी॥

सुन्दर रूप मनोहर सूरत, सरल स्वभाव मोहनी मूरत।
तन पर पीताम्बर अति सोहत, बैजन्ती माला मन मोहत॥

शंख चक्र कर गदा बिराजे, देखत दैत्य असुर दल भाजे।
सत्य धर्म मद लोभ न गाजे, काम क्रोध मद लोभ न छाजे॥

सन्तभक्त सज्जन मनरंजन दनुज असुर दुष्टन दल गंजन।
सुख उपजाय कष्ट सब भंजन, दोष मिटाय करत जन सज्जन॥

पाप काट भव सिन्धु उतारण, कष्ट नाशकर भक्त उबारण।
करत अनेक रूप प्रभु धारण, केवल आप भक्ति के कारण॥

धरणि धेनु बन तुमहिं पुकारा, तब तुम रूप राम का धारा।
भार उतार असुर दल मारा, रावण आदिक को संहारा॥

आप वाराह रूप बनाया, हरण्याक्ष को मार गिराया।
धर मत्स्य तन सिन्धु बनाया, चौदह रतनन को निकलाया॥

अमिलख असुरन द्वन्द मचाया, रूप मोहनी आप दिखाया।
देवन को अमृत पान कराया, असुरन को छवि से बहलाया॥

कूर्म रूप धर सिन्धु मझाया, मन्द्राचल गिरि तुरत उठाया।
शंकर का तुम फन्द छुड़ाया, भस्मासुर को रूप दिखाया॥

वेदन को जब असुर डुबाया, कर प्रबन्ध उन्हें ढुढवाया।
मोहित बनकर खलहि नचाया, उसही कर से भस्म कराया॥

असुर जलन्धर अति बलदाई, शंकर से उन कीन्ह लड ाई।
हार पार शिव सकल बनाई, कीन सती से छल खल जाई॥

सुमिरन कीन तुम्हें शिवरानी, बतलाई सब विपत कहानी।
तब तुम बने मुनीश्वर ज्ञानी, वृन्दा की सब सुरति भुलानी॥

देखत तीन दनुज शैतानी, वृन्दा आय तुम्हें लपटानी॥
हो स्पर्श धर्म क्षति मानी, हना असुर उर शिव शैतानी॥

तुमने ध्रुव प्रहलाद उबारे, हिरणाकुश आदिक खल मारे।
गणिका और अजामिल तारे, बहुत भक्त भव सिन्धु उतारे॥

हरहु सकल संताप हमारे, कृपा करहु हरि सिरजन हारे।
देखहुं मैं निज दरश तुम्हारे, दीन बन्धु भक्तन हितकारे॥

चहत आपका सेवक दर्शन, करहु दया अपनी मधुसूदन।
जानूं नहीं योग्य जब पूजन, होय यज्ञ स्तुति अनुमोदन॥

शीलदया सन्तोष सुलक्षण, विदित नहीं व्रतबोध विलक्षण।
करहुं आपका किस विधि पूजन, कुमति विलोक होत दुख भीषण॥

करहुं प्रणाम कौन विधिसुमिरण, कौन भांति मैं करहु समर्पण।
सुर मुनि करत सदा सेवकाई हर्षित रहत परम गति पाई॥

दीन दुखिन पर सदा सहाई, निज जन जान लेव अपनाई।
पाप दोष संताप नशाओ, भव बन्धन से मुक्त कराओ॥

सुत सम्पति दे सुख उपजाओ, निज चरनन का दास बनाओ।
निगम सदा ये विनय सुनावै, पढ़ै सुनै सो जन सुख पावै॥


Vishnu Chalisa Lyrics in English

Doha

Vishnu Suniye Vinay Savak Ki Chitlaya |
Kirat Kuch Varnan Karu Dije Gyan Bataya ||

Namo Vishnu Bhagwan Kharari |
Kashat Nashavan Akhil Vihari ||
Prabal Jagat Mai Shakti Tumhari |
Tribhuvan Fal Rahi Ujiyari ||

Sundar Roop Manohar Surat |
Saral Swabhav Mohini Murat ||
Tan Par Pitambar Ati Sohat |
Bejanti Mala Maan Mohat ||

Shankh Chakr Kar Gada Viraje |
Dekhat Detaye Asur Dal Bhaje ||
Satay Dharam Mad Lobh Na Gaje |
Kam Krodh Mad Lobh Na Chaje ||

Santbhakt Sajan Manranjan |
Danuj Asur Dushtan Dal Ganjan ||
Such Upjaye Kashat Sab Bhanjan |
Dhosh Mitaye Karat Jan Sannjan ||

Pap Kat Bhav Sindu Utaran |
Kasht Nashkar Bakat Ubharn ||
Karat Anek Roop Prabhu Dharan |
Kaval Aap Bhagati Ke Karan ||

Dharani Dhenu Ban Tumhi Pukara |
Tab Tum Roop Ram Ka Dhara ||
Bhar Uthar Asur Dal Maar |
Ravan Aadik Ko Sanhara ||

Aap Varah Roop Banaya |
Hiranyash Ko Maar Giraya ||
Dhar Matyas Tan Sindu Banaya |
Chodah Ratann Ko Nikalaya ||

Amilakh Aasur Dundu Machaya |
Roop Mohini Aap Dikhaya ||
Devan Ko Amarat Pan Karaya |
Asuran Ko Chabi Se Bahalaya ||

Kurm Roop Dhar Sindu Mathaya |
Mandrachal Giri Turan Uthaya ||
Shankar Ka Tum Fand Chudaya |
Bhasmasur Ka Roop Dekhaya ||

Vedan Ko Jab Asur Dubaya |
Kar Prabanda Unhee Tuntalaya ||
Mohit Banker Khalahi Nachaya |
Ushi Kar Se Bahasam Karaya ||

Asur Jalandar Ati Baldai |
Sankar Se Un Kinhi Ladayi ||
Har Par Shi Sakal Banaye |
Kin Sati Se Chal Khal Jayi ||

Sumiran Kin Tumhe Shivrani |
Batlai Sab Vipat Kahani ||
Tab Tum Bane Muneshwar Gyani |
Varnda Ki Sab Surti Bhulani ||

Ho Shaparsh Dharm Sharati Mani |
Hani Asur Uur Shiv Sanatni ||
Tumne Dhur Prahlad Ubhare |
Hirnakush Aadik Khal Mare ||

Ganika Aur Ajamil Tare |
Bhahut Bhakt Bhav Sindu Utare ||
Harhu Sakal Santap Hamare |
Krapa Karhu Kari Sirjan Hare ||

Dekhhu Mai Nit Darsh Tumhare |
Din Bandu Bhaktan Hitkare ||
Chahat Apka Sevak Darshan |
Karhu Daya Apni Madhusudan ||

Janu Nahi Yogay Jap Poojan |
Hoye Yagy Shistuti Anumotan ||
Shildaya Santosh Shishan |
Vidhit Nahi Vatrbhodh Vilshan ||

Karhu Apka Kis Vidhi Poojan |
Kumati Vilok Hote Dukh Bhishan ||
Karhu Pradam Kon Vidisumiran |
Kon Bhati Mai Karhu Samarpan ||

Sur Munni Karat Sada Sivkai |
Harshit Rahat Param Gati Paye ||
Din Dukhin Par Sada Sahai |
Nij Jan Jan Lave Apnayi ||

Pap Dosh Santap Nashao |
Bhav Bandan Se Mukat Karayo ||
Sut Sampati De Such Upjao |
Nij Charan Ka Das Banao ||

Nigam Sada Se Vanay Sunao |
Patte Sune So Jan Such Pave ||

The post श्री विष्णु चालीसा-Vishnu Chalisa In Hindi & English appeared first on hindimeaning.com.

महात्मा गांधी-Mahatma Gandhi In Hindi

$
0
0

महात्मा गांधी (About Gandhi ji In Hindi) :

हमारे भारत देश की भूमि ऐसे महान पुरुषों की जन्मस्थली और कर्मस्थली रही है जिन्होंने अपनी कार्यशैली से न सिर्फ जनमानस को प्रेरणा दी बल्कि अपने व्यक्तित्व एवं कार्यों का प्रकाश भारतवर्ष में ही नहीं संसार भर में फैलाया था। जब भी हम अपने देश भारत के इतिहास की बात करते हैं तो उसमें स्वतंत्रता संग्राम की बात जरुर होती है और इस स्वतंत्रता संग्राम में किन-किन सैनानियों ने भाग लिया इस बात पर भी चर्चा अवश्य होती है।

स्वतंत्रता में गाँधी जी ने बहुत ही महत्वपूर्ण योगदान दिया था जिसकी वजह से भारत के साथ-साथ पूरे विश्व के लोगों में महात्मा गाँधी के बारे में जानने के लिए उत्सुकता रहती है। क्योंकि गाँधी जी की वजह से ही हम लोग आजाद हो पाए हैं। महात्मा गाँधी जी उन महान देशभक्तों में से एक थे जिनके कठिन प्रयासों की वजह से हमारा देश अंग्रेजों की गुलामी से आजाद हो सका। गाँधी जी के शांति , सत्य और अहिंसा का पालन करने के रवैये की वजह से उन्हें महात्मा कहकर संबोधित किया जाता था।

गाँधी जी का जन्म : गाँधी जी का जन्म 2 अक्टूबर , 1869 में गुजरात के काठियावाड एजेंसी के पोरबंदर में हुआ था। गाँधी जी के पिता का नाम करमचंद गाँधी था और माता का नाम पुतलीबाई था। पुतलीबाई करमचंद गाँधी जी की चौथी पत्नी थीं। गाँधी जी के पिता हिन्दू धर्म की पंसारी जाति से संबंध रखते थे। गाँधी जी की माता एक धार्मिक विचारों वाली महिला थीं। गाँधी जी के पिता अपने पूरे परिवार में अधिक पढ़े-लिखे थे। गाँधी जी के पिता काठियावाड़ में एक दीवान के पद पर कार्यरत थे।

गाँधी जी का विवाह : गाँधी जी का 13 वर्ष की उम्र में कस्तूरबा बाई माखनजी कपाडिया के साथ विवाह हो गया था। गाँधी जी अपनी पत्नी से उम्र में एक साल छोटे थे। गाँधी जी ने अपनी पत्नी का नाम छोटा करके कस्तूरबा कर दिया और उन्हें प्यार से बा कहकर बुलाते थे। यह विवाह उनके माता-पिता द्वारा तय किया गया व्यवस्थित बाल विवाह था जो उस समय उस क्षेत्र में बहुत प्रचलित था।

लेकिन उस क्षेत्र में यह रीति थी कि किशोर दुल्हन को अपने माता-पिता के घर और अपने पति से अलग अधिक समय तक रहना पड़ता था। 15 साल की उम्र में मोहनदास और कस्तूरबा को पहली सन्तान हुई लेकिन वह केवल कुछ दिनों तक ही जीवित रही और इसी साल उनके पिता करमचंद का भी निधन हो गया था। उसके बाद मोहनदास और कस्तूरबा को चार संताने हुई जिनमे से पहली हरिलाल गाँधी (1888) , दूसरी मणिलाल गाँधी (1892) , तीसरी रामदास गाँधी (1897) और चौथी देवदास गाँधी (1900)।

गाँधी जी का प्रारंभिक जीवन : गाँधी जी का जन्म गुजरात राज्य के पोरबन्दर में हुआ था। गाँधी जी के पिता पोरबंदर में दीवान थे और उनकी माता एक धार्मिक महिला थीं। गाँधी जी की माँ बहुत अधिक धार्मिक प्रवृति की महिला थीं जिनका प्रभाव मोहनदास करमचन्द गाँधी जी पर पड़ा था और इन्ही मूल्यों ने आगे चलकर उनके जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

गाँधी जी की माँ नियमित रूप से वृत रखती थीं और परिवार में किसी के बीमार पड़ जाने पर उसकी सेवा सुश्रुषा में दिन-रात एक कर देती थीं। इस तरह मोहनदास जी ने स्वभाविक रूप से अहिंसा , शाकाहार , आत्मशुद्धि के लिए वृत और विभिन्न धर्मों और पंथों को मानने वालों के बीच परस्पर सहिष्णुता को अपनाया।

गाँधी जी बचपन से ही थोड़े संकोची , आज्ञाकारी और हमेशा बड़ों का मान-सम्मान करते थे। सन् 1883 में साढ़े 13 साल में गाँधी जी का विवाह हो गया था। जब गाँधी जी 15 साल के थे तब इनकी पहली संतान का जन्म हुआ था लेकिन वह ज्यादा दिनों तक जीवित नहीं रह सकी थी। इसी साल गाँधी जी के पिता का भी देहांत हो गया था। इसके बाद गाँधी जी की चार संताने हुईं थीं।

गाँधी जी के विचार : गांधी जी सत्य और अहिंसा को जीवन में सर्वाधिक महत्व देते थे। सत्याग्रह और असहयोग द्वारा उन्होंने अंग्रेजों का मुकाबला किया। गाँधी जी सभी मनुष्यों को एक समान मानते थे। धर्म , जाति , सम्प्रदाय , रंग , नस्ल के आधार पर किए जाने वाले भेदभाव को मानवता के विरुद्ध कलंक मानते थे। गाँधी जी ने अछूतों को हरिजन कहा। वे आर्थिक असमानता को मिटाकर वर्गविहीन , जातिविहीन समाज की स्थापना करना चाहते थे।

गाँधी जी ने शरीरिक श्रम व सामाजिक न्याय को विशेष महत्व दिया। वे प्रजातांत्रिक राज्य को कल्याणकारी राज्य मानते थे। गाँधी जी के अनुसार नैतिक आचरण का जीवन में विशेष महत्व होना चाहिए। सत्य , न्याय , धर्म , अहिंसा , अपरिग्रह , निस्वार्थ सेवा मानवता की सच्ची सेवा है। दीन-दुखियों की सेवा ही सच्चा धर्म है।

गाँधी जी ने राष्ट्रिय और अंतर्राष्ट्रीय विचारों के तहत वसुधैव कुटुम्बकम की भावना को विशेष महत्व दिया। किसी भी राष्ट्र के समुचित उत्थान के लिए परिवार , जाति , गाँव , प्रदेश तथा देश की समस्याओं का सुधार होना चाहिए। खुद सुधरो , तो जग सुधरेगा यह उनका मानना था।

गांधीजी का शिक्षा दर्शन : गाँधी जी का शिक्षा दर्शन बहुत ही व्यापक था। वे शिक्षा को व्यक्ति के शारीरिक , मानसिक , आध्यात्मिक विकास की प्रक्रिया और उद्देश्य मानते थे। शिक्षा को बेरोजगारी के खिलाफ एक प्रकार का बीमा होना चाहिए , जो व्यक्ति को किसी प्रकार का कौशल प्रदान करे। उनकी बुनियादी शिक्षा प्रणाली इसी सिद्धांत पर आधारित थी। कुटीर उद्योग धंधों का प्रशिक्षण व मातृभाषा का ज्ञान शिक्षा की अनिवार्य प्रक्रिया मानते थे।

गाँधी जी का कार्य और उपलब्धियां : गाँधी जी ने सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। मोहनदास करमचन्द गाँधी जी जो महात्मा गाँधी जी के नाम से मशहूर हैं ने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के एक प्रमुख राजनैतिक नेता थे। सत्याग्रह और अहिंसा के सिद्धांतों पर चलकर उन्होंने भारत को आजादी दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। उनके इन सिद्धांतों ने पूरी दुनिया में लोगों को नागरिक अधिकारों एवं स्वतंत्रता आंदोलन के लिए प्रेरित किया।

उन्हें भारत का राष्ट्रपिता भी कहा जाता है। सुभाष चन्द्र बोस ने साल 1944 में रंगून रेडियो से गाँधी जी के नाम जारी प्रसारण में उन्हें राष्ट्रपिता कहकर संबोधित किया था। महात्मा गाँधी जी पूरी मानव जाति के लिए एक मिशाल हैं। उन्होंने हर परिस्थिति में अहिंसा और सत्य का पालन किया और लोगों से भी इनका पालन करने के लिए कहा। उन्होंने अपना जीवन सदाचार में गुजारा। वह हमेशा परंपरागत भारतीय पोशाक धोती व सूत से बनी शाल पहनते थे।

हमेशा शाकाहारी भोजन खाने वाले इस महापुरुष ने आत्मशुद्धि के लिए कई बार लंबे उपवास भी रखे थे। सन् 1915 में भारत वापस आने से पहले गाँधी जी ने एक प्रवासी वकील के रूप में दक्षिण अफ्रीका में भारतीय समुदाय के लोगों के नागरिक अधिकारों के लिए संघर्ष किया।भारत आकर गांधी जी ने समूचे देश का भ्रमण किया और किसानों , मजदूरों तथा श्रमिकों को भारी भूमि कर और भेदभाव के खिलाफ संघर्ष करने के लिए एकजुट किया।

सन् 1921 में उन्होंने भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस की बागडोर संभाली और अपने कामों से देश के राजनैतिक , सामाजिक और आर्थिक परिदृश्य को प्रभावित किया। उन्होंने सन् 1930 में नमक सत्याग्रह और इसके बाद सन् 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन में बहुत अधिक प्रसिद्धि प्राप्त की थी। भारत के स्वतंत्रता संघर्ष के दौरान कई मौकों पर गाँधी जी कई वर्षों तक जेल में भी रहे थे।

विदेश में शिक्षा और वकालत (Foreign Education and Advocacy In Hindi) :

महात्मा गाँधी जी की प्रारंभिक शिक्षा काठियावाड़ से हुई थी। उसके बाद गाँधी जी ने सन् 1881 में राजकोट से हाई स्कुल की परीक्षा पास की थी। सन् 1887 में गाँधी जी ने मैट्रिक की परीक्षा पास की और मैट्रिक के बाद की परीक्षा गाँधी जी ने भावनगर के शामलदास कॉलेज से पूरी की थी। शामलदास कॉलेज से पढाई के समय गाँधी जी अप्रसन्न थे क्योंकि उनके परिवार के लोग उन्हें बैरिस्टर बनाना चाहते थे।

मोहनदास जी अपने परिवार में सबसे ज्यादा पढ़े-लिखे थे इसलिए उनके परिवार वाले ऐसा मानते थे कि वह अपने पिता और चाचा के उत्तराधिकारी बन सकते थे। उनके एक परिवारिक मित्र मावजी दवे ने ऐसी सलाह दी की अगर एक बार मोहनदास जी ने लन्दन से बैरिस्टर बन जाएँ तो उनको आसानी से दीवान की पदवी मिल सकती थी। गाँधी जी की माँ पुतलीबाई और परिवार के एनी सभी सदस्यों ने उनके विदेश जाने के विचार का विरोध किया पर मोहनदास के आश्वासन पर तैयार हो गए थे।

सन् 1888 में मोहनदास यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन में क़ानूनी पढाई करने और बैरिस्टर बनने के लिए इंग्लैण्ड चले गए। भारत छोड़ते समय जैन भिक्षु बेचारजी के समक्ष हिन्दुओं को मांस , शराब तथा संकीर्ण विचारधारा को त्यागने के लिए अपनी माता जी को दिए एक वचन ने उनके शाही राजधानी लन्दन में बिताये गए समय को बहुत प्रभावित किया।

गाँधी जी भारतीय संस्कारों में पले-बढ़े थे उन्हें वहां की पाश्चात्य सभ्यता से समन्वय करने में बहुत कठिनाई हुई। गाँधी जी ने पश्चात्य सभ्यता का अनुकरण करके भी देखा किन्तु जीत उनके पारिवारिक संस्कारों की ही हुई। गांधीजी ने यहाँ रहकर पारिवारिक संस्कारों का पूर्णत: पालन किया। गाँधी जी ने अपनी माँ को वचन दिया था और इसी वचन के अनुसार लंदन में अपना समय गुजारा था।

गाँधी जी को लंदन में शाकाहारी खाने से संबंधित कुछ कठिनाईयों का सामना भी करना पड़ा और कभी-कभी भूखा भी रहना पड़ता था। धीरे-धीरे उन्होंने शाकाहारी भोजन वाले होटलों का पता लगाया और बाद में वेजिटेरियन सोसाइटी की सदस्यता भी ग्रहण कर ली थी। इस सोसाइटी के कुछ सदस्य थियोसोफिकल सोसाइटी के सदस्य भी थे और उन्होंने मोहनदास को गीता पढने का सुझाव दिया।

इस सोसाइटी की स्थापना 1875 में विश्व बंधुत्व को प्रबल करने के लिए की गई थी और इसे बौद्ध धर्म एवं सनातन धर्म के साहित्य के अध्धयन के लिए समर्पित किया गया था। उन लोगों ने महात्मा गाँधी जी को श्रीमद्भागवद्गीता पढने के लिए प्रेरित किया। हिन्दू , ईसाई , बौद्ध , इस्लाम और एनी धर्मों के बारे में पढने से पहले गाँधी जी ने धर्म में विशेष रूचि नहीं दिखाई थी।

इंग्लैण्ड और वेल्स बार एसोसिएशन में वापस बुलावे पर वे भारत लौट आए किंतु बंबई में वकालत करने में उन्हें कोई खास सफलता नहीं मिली। बाद में एक हाई स्कूल शिक्षक शिक्षक के रूप में अंशकालिक नौकरी का प्रार्थना पत्र अस्वीकार कर दिया जाने पर उन्होंने जरुरतमंदों के लिए मुकदमें की अर्जियां लिखने के लिए राजकोट को ही अपना स्थायी मुकाम बना लिया था। परन्तु एक अंग्रेज अधिकारी की मूर्खता के कारण उन्हें यह कारोबार भी छोड़ना पड़ा।

अपनी आत्मकथा में उन्होंने सन् 1893 में एक भारतीय फर्म से नेटाल दक्षिण अफ्रीका में जो उन दिनों ब्रिटिश साम्राज्य का भाग हटा था एक साल के करार पर वकालत का कारोबार स्वीकार कर लिया। जून 1891 में गाँधी जी बैरिस्टर बनकर भारत लौट गए और वहां जाकर उन्हें अपनी माँ की मौत के बारे में पता चला। उन्होंने बॉम्बे में वकालत की शुरुआत की पर उन्हें कोई खास सफलता नहीं मिली थी।

इसके बाद वो राजकोट चले गए जहाँ उन्होंने जरुरतमंदों के लिए मुकदमे की अर्जियां लिखने का काम शुरू कर दिया लेकिन कुछ समय बाद उन्हें यह काम भी छोड़ना पड़ा था। अंत में सन् 1893 में एक भारतीय फर्म से नेटल में एक साल के करार पर वकालत का कार्य स्वीकार कर लिया।

गाँधी जी का दक्षिण अफ्रीका गमन : गाँधी जी 24 साल की उम्र में दक्षिण अफ्रीका पहुंचे। वह प्रिटोरिया स्थित कुछ भारतीय व्यापारियों के न्यायिक सलाहकार के तौर पर वहां गए थे। उन्होंने अपने जीवन के 21 साल दक्षिण अफ्रीका ने बिताए जहाँ उनके राजनैतिक विचार और नेतृत्व कौशल का विकास हुआ। दक्षिण अफ्रीका में उनको गंभीर नस्ली भेदभाव का सामना करना पड़ा था।

एक बार ट्रेन में प्रथम श्रेणी कोच की वैध टिकट होने के बाद भी उन्हें तीसरी श्रेणी के डिब्बे में जाने के लिए कहा गया था जब उन्होंने इस बात से इंकार किया तो उन्हें ट्रेन से बाहर फेंक दिया गया था क्योंकि वे एक काले भारतीय थे। यह सभी घटनाएँ उनके जीवन में महत्वपूर्ण मोड़ बन गई थीं और मौजूदा सामाजिक और राजनैतिक अन्याय के प्रति जागरूकता का कारण बनीं।

दक्षिण अफ्रीका में भारतियों पर हो रहे अन्याय को देखते हुए गाँधी जी के मन में ब्रिटिश साम्राज्य के अंतर्गत भारतियों के सम्मान और स्वंय अपनी पहचान से संबंधित प्रश्न उठने लगे। दक्षिण अफ्रीका में गांधीजी ने भारतियों को अपने राजनैतिक और सामाजिक अधिकारों के लिए संघर्ष करने के लिए प्रेरित किया। गाँधी जी ने दक्षिण अफ्रीका में रंग भेद का विरोध किया जिस वजह से उन्हें बहुत बड़ी मुशीबत का सामना करना पड़ा।

लेकिन वे इन सब से डिगे नहीं बल्कि अफ्रीका में रह रहे हिंदुस्तानियों को सम्मान दिलाने के लिए और तेजी से सक्रिय हो गए। मई 1894 में गाँधी जी ने नेटाल में इंडियन कांग्रेस की स्थापना की। सन् 1896 में भारत आकर दक्षिण अफ़्रीकी भारतियों के लिए उन्होंने आन्दोलन शुरू कर दिया। गाँधी जी उसी साल अपने परिवारसहित वहां आ बसे थे।

उन्होंने भारतियों की नागरिकता संबंधित मुद्दे को भी दक्षिण अफ्रीकी सरकार के सामने उठाया और सन् 1906 के जुलु युद्ध में भारतियों को भर्ती करने के लिए ब्रिटिश अधिकारीयों को सक्रिय रूप से प्रेरित किया। गांधीजी के अनुसार अपनी नागरिकता के दावों को कानूनी जामा पहनाने के लिए भारतियों को ब्रिटिश युद्ध प्रयासों में सहयोग देना चाहिए। गाँधी जी दक्षिण अफ्रीका 20 सालों तक रहे थे।

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का संघर्ष : सन् 1914 में गांधीजी दक्षिण अफ्रीका से भारत वापस लौट आए। इस समय तक गाँधी एक राष्ट्रवादी नेता और संयोजक के रूप में प्रतिष्ठित हो चुके थे। गाँधी जी उदारवादी कांग्रेस नेता गोपाल कृष्ण गोखले के कहने पर भारत आए थे और शुरुआती दौर में गाँधी जी के विचार काफी हद तक गोखले जी के विचारों से प्रभावित थे। आरंभ में गाँधी जी ने देश के विभिन्न भागों का दौरा किया और राजनैतिक , आर्थिक और सामाजिक मुद्दों को समझने की कोशिश की थी।

चम्पारण और खेडा सत्याग्रह : भारत लौटने के बाद गाँधी जी स्वतंत्रता संग्राम में शामिल हो गए और भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस अधिवेशन में उन्होंने अपने विचारों को व्यक्त किया। बिहार के चम्पारण और गुजरात के खेडा में हुए आंदोलनों ने गाँधी जी को भारत में पहली राजनैतिक सफलता दिलाई थी। चंपारण और खेडा में अंग्रेजी हुकुमत का संरक्षण पाकर जमींदार गरीब किसानों का शोषण कर रहे थे।

चंपारण में ब्रिटिश जमींदार किसानों को खाद्य फसलों की खेती करने की जगह नील की खेती करने के लिए मजबूर करते थे और नील को एक निश्चित कीमत पर बेचने के लिए भी मजबूर करते थे। अंग्रेज उनसे बहुत ही सस्ते मूल्य पर फसल खरीदते थे जिससे किसानों की स्थिति बदतर होती जा रही थी। इस वजह से वे बहुत अधिक गरीबी से घिर गए।

एक बहुत ही विनाशकारी अकाल के बाद अंग्रेजी सरकार ने बहुत से दमनकारी कानून लगा दिए जिनका भार दिन-प्रतिदिन बढ़ता ही गया। वहां की स्थिति बहुत ही निराशाजनक हो गई थी। गाँधी जी ने जमींदारों के विरुद्ध विरोध प्रदर्शन और हड़तालों का नेतृत्व किया जिसके बाद गरीब और किसानों की मांगों को माना गया।

सन् 1918 में गुजरात में स्थित खेडा बाढ़ और सूखे की चपेट में आ गया था जिसकी वजह से किसान और गरीबों की स्थिति बदतर हो गई और लोग कर को माफ़ करने की मांग करने लगे। खेडा में गाँधी जी के मार्गदर्शन में सरदार पटेल ने अंग्रेजों के साथ इस समस्या पर विचार-विमर्श के लिए किसानों का नेतृत्व किया। इसके बाद अंग्रेजों ने राजस्व संग्रहण से मुक्ति देकर सभी कैदियों को रिहा कर दिया।

इस तरह से चंपारण और खेडा के बाद गाँधी जी की ख्याति पूरे देश में फ़ैल गई और वह स्वतंत्रता आंदोलन के एक महत्वपूर्ण नेता बनकर उभरे थे। ये दोनों सत्याग्रह ब्रिटिश लैंडलार्ड के विरुद्ध चलाया गया था। चंपारण और खेडा के उस सफल सत्याग्रह के बाद जिसमें गाँधी जी ने गरीब किसानों को जमीदारों के जुर्म से मुक्ति दिलाई जिस कारण महात्मा गाँधी का स्तर बहुत ऊँचा हो गया था और आम लोगों के प्रति उनके निस्वार्थ सेवा भाव से लोगों में गाँधी जी की एक अलग ही छवि बन गई।

महात्मा गाँधी के स्वतंत्रता संग्राम में आने से पूरे भारत में उम्मीद की एक लहर दौड़ पड़ी थी क्योंकि अभी तक किसी को भी इतनी भारी तादात में लोगों का समर्थन नहीं मिला था।

खेडा गाँव में पहला आश्रम : गुजरात के खेडा गाँव में एक आश्रम बनाकर गांधीजी तथा उनके समर्थकों ने इस गाँव की सफाई का कार्य आरंभ किया तथा विद्यालय और अस्पताल भी निर्मित किए। इस आश्रम में उनके बहुत सारे समर्थकों और नए स्वेच्छिक कार्यकर्ताओं को संगठित किया गया।

उन्होंने गाँव का एक विस्तृत अध्धयन और सर्वेक्षण किया गया जिसमें प्राणियों पर हुए अत्याचार के भयानक कांडों का लेखाजोखा रखा गया और इसमें लोगों की अनुत्पादकीय सामान्य अवस्था को भी शामिल किया गया था। खेडा सत्याग्रह की वजह से महात्मा गाँधी को गिरफ्तार कर यह जगह छोड़ने का आदेश दिया गया जिसके विरोध में लाखों लोगों ने प्रदर्शन किया।

गाँधी जी के समर्थक व हजारों लोगों ने रैलियां निकालीं और उन्हें बिना किसी शर्त के रिहा करने के लिए आवाज उठाई जिसके फलस्वरूप उन्हें रिहाई मिली। जिन जमींदारों ने अंग्रेज के मार्गदर्शन में किसानों का शोषण किया और गरीब लोगों को क्षति पहुंचाई।

उनके विरोध में कई प्रदर्शन हुए जिनका मार्गदर्शन गाँधी जी ने स्वं किया। उनकी देश के लिए निस्वार्थ सेवा को तथा देशवासियों के लिए प्रेम को देखते हुए लोगों ने उन्हें बापू कहकर संबोधित किया। खेडा और चंपारण में सत्याग्रह में सफलता पाने के बाद महात्मा गाँधी पूरे देश के बापू बन गए।

खिलाफत आंदोलन : गाँधी जी को सन् 1919 में इस बात का एहसास होने लगा कि कांग्रेस कहीं-न-कहीं पर कमजोर पद रही है तो गाँधी जी ने काग्रेस की डूबती हुई नैया को बचाने के लिए और हिन्दू-मुस्लिम एकता के द्वारा ब्रिटिश सरकार को बाहर निकालने के लिए अनेक प्रयास शुरू कर दिए। कांग्रेस में और मुसलमानों के बीच अपनी लोकप्रियता फ़ैलाने का मौका गाँधी जी को खिलाफत आन्दोलन के माध्यम से मिला था।

गाँधी जी अपने उद्देश्यों को पूरा करने के लिए मुस्लिम समाज के पास गए। खिलाफत एक विश्वव्यापी आन्दोलन था जिसके द्वारा खलीफा के गिरते प्रभुत्व का विरोध सारी दुनिया के मुसलमानों द्वारा किया जा रहा था। प्रथम विश्वयुद्ध में पराजित होने के बाद ओटोमन साम्राज्य विखंडित कर दिया गया था जिसके कारण मुसलमानों को अपने धर्म और धार्मिक स्थलों की सुरक्षा को लेकर चिंता बनी हुई थी।

भारत में खिलाफत का नेतृत्व आल इण्डिया मुस्लिम कांफ्रेंस द्वारा किया जा रहा था। धीरे-धीरे गाँधी जी इसके मुख्य प्रवक्ता बन गए। इस आन्दोलन में मुसलमानों को बहुत स्पोर्ट किया और गाँधी जी के स प्रयास ने उन्हें राष्ट्रिय नेता बना दिया और कांग्रेस में उनकी खास जगह बन गई थी।

लेकिन सन् 1922 में खिलाफत आन्दोलन बुरी तरह से बंद हो गया और इसके बाद भारतीय मुसलमानों के साथ एकजुटता व्यक्त करने के लिए उन्होंने अंग्रेजों द्वारा दिए सम्मान और मैडल वापस कर दिया। इसके बाद गाँधी जी न केवल कांग्रेस बल्कि देश के एकमात्र ऐसे नेता बन गए जिसका प्रभाव विभिन्न समुदायों के लोगों पर पड़ा था।

असहयोग आंदोलन (Non-Cooperation Movement In Hindi) :

इस आन्दोलन को शुरू करने के पीछे महात्मा गाँधी जी की यह सोच थी कि भारत में ब्रिटिश सरकार सिर्फ़ इसलिए राज कर पा रही हैं क्योंकि उन्हें भारतीय लोगों द्वारा ही सपोर्ट किया जा रहा है तो अगर उन्हें यह सपोर्ट मिलना ही बंद हो जाए तो ब्रिटिश सरकार के लिए भारतीयों पर राज करना बहुत मुश्किल होगा इसलिए उन्होंने गाँधी जी से अपील की कि वे ब्रिटिश सरकार के किसी भी काम में सहयोग न दें परन्तु इसमें किसी भी तरह की हिंसात्मक गतिविधि सम्मिलित न हो।

गाँधी जी का मानना था कि भारत में अंग्रेजी हुकुमत भारतियों के सहयोग से ही संभव हो पाई थी और अगर हम सब मिलकर अंग्रेजों के विरुद्ध हर बात पर असहयोग करें तो आजादी संभव है। गाँधी जी द्वारा चलाये गए तीन आंदोलनों में से यह सबसे पहला आन्दोलन था। गाँधी जी की बढती हुई लोकप्रियता ने उन्हें कांग्रेस का सबसे बड़ा नेता बना दिया था और अब वह इस स्थिति में थे कि अंग्रेजों के खिलाफ असहयोग , अहिंसा तथा शांतिपूर्ण प्रतिकार जैसे अस्त्रों का प्रयोग कर सकें।

13 अप्रैल , 1919 को बैशाखी के दिन रोलेक्त एक्ट के विरोध के लिए अमृतसर के जलियांवाला बाग में एक सभा हो रही थी जिसमें जनरल डायर नाम के एक ब्रिटिश ऑफिसर ने बिना किसी कारण के निर्दोष लोगों पर गोलियां चलवा दी। इस प्रकार अचानक भीड़ में गोलियां चलवाने से वहां उपस्थति 1000 से भी ज्यादा लोग मरे गए थे और 2000 से भी ज्यादा लोग घायल हो गए थे।

इस नरसंहार से पूरे भारत में ब्रिटिश सरकार के प्रति आक्रोश फैल गया। ब्रिटिश सरकार द्वारा किए गए इस अत्याचार से महात्मा गाँधी को बहुत बड़ा आघात लगा। गाँधी जी ने स्वदेशी नीति को अपनाया जिसमें विदेशी वस्तुओं विशेष रूप से अंग्रेजी वस्तुओं का बहिष्कार करना था। गाँधी जी का कहना था कि सभी भारतीय अंग्रेजों द्वारा बनाए वस्त्रों की अपेक्षा हमारे अपने लोगों द्वारा हाथ से बनाई गई खादी के वस्त्र पहनें। गाँधी जी ने पुरुषों और महिलाओं को रोज सूत कातने के लिए कहा।

इसके अतिरिक्त गाँधी जी ने ब्रिटेन की शैक्षिक संस्थाओं और अदालतों का बहिष्कार किया , सरकारी नौकरियों को छोड़ने तथा अंग्रेजी सरकार से मिले तमगों और सम्मान को वापस लौटाने का भी अनुरोध किया था। इस आन्दोलन में लोगों ने सरकार को सहयोग देना बंद कर दिया जैसे छात्रों ने स्कूल जाना छोड़ दिया , वकीलों ने अदालत जाने से मना कर दिया एवं पूरे देश में लोगों ने ब्रिटिश सरकार का सहयोग करना बंद कर दिया।

असहयोग आन्दोलन का उद्देश्य था कि किसी तरह की हिंसा न करते हुए भारतियों के द्वारा अंग्रेज सरकार की किसी भी तरह की मदद ने की जाए। असहयोग आन्दोलन को अपार सफलता मिल रही थी जिससे समाज के सभी वर्गों में जोश और भागीदारी बढ़ गई लेकिन फरवरी 1922 में इसका अंत चौरी-चौरा कांड के साथ हो गया था।

क्योंकि यह असहयोग आन्दोलन संपूर्ण देश में अहिंसात्मक तरीके से चलाया जा रहा था तो इस दौरान उत्तर प्रदेश राज्य के चौरी-चौरा नामक स्थान पर जब कुछ लोग शांतिपूर्ण तरीके से रैली नकाल रहे थे तब अंग्रेजी सैनिकों ने उन पर गोली चला दी और कुछ लोगों की इसमें मौत हो गई थी। तब इस गुस्से से भरी भीड़ ने पुलिस स्टेशन में आग लगा दी और वहां उपस्थित 22 सैनिकों की भी हत्या कर दी।

तब गाँधी जी का कहना था कि हमें संपूर्ण आन्दोलन के दौरान किसी भी हिंसात्मक गतिविधि को नहीं करना था शायद हम अभी आजादी पाने के लायक नहीं हुए हैं। इस हिंसक घटना के बाद गाँधी जी ने असहयोग आन्दोलन को वापस ले लिया। उन्हें गिरफ्तार कर राजद्रोह का मुकदमा चलाया गया जिसमें उन्हें 6 साल की कैद की सजा सुनाई गई थी। खराब स्वास्थ्य की वजह से उन्हें फरवरी 1924 में सरकार द्वारा रिहा कर दिया गया था।

स्वराज और नमक सत्याग्रह (Swaraj and Salt Satyagraha In Hindi) :

असहयोग आन्दोलन के दौरान गिरफ्तारी के बाद गाँधी जी फरवरी 1924 में रिहा हुए और सन् 1928 तक सक्रिय राजनीति से दूर ही रहे। इस दौरान वह स्वराज्य पार्टी और कांग्रेस के बीच मनमुटाव को कम करने में लगे रहे और इसके अतिरिक्त अस्पृश्यता , शराब , अज्ञानता और गरीबी के विरुद्ध भी लड़ते रहे।

इसी वक्त अंग्रेजी सरकार के सर जॉन साइमन के नेतृत्व में भारत के लिए एक नया संवैधानिक सुधार आयोग बनाया लेकिन उसका एक भी सदस्य भारतीय नहीं था जिसकी वजह से भारतीय राजनैतिक दलों ने इसका बहिष्कार किया। इसके बाद दिसंबर 1928 में कलकत्ता अधिवेशन में गाँधी जी ने अंग्रेजी हुकुमत को भारतीय साम्राज्य को सत्ता प्रदान करने के लिए कहा और ऐसा न करने पर देश की आजादी के लिए असहयोग आन्दोलन का सामना करने के लिए तैयार रहने के लिए भी कहा था।

अंग्रेजों के द्वारा कोई जवाब न मिलने पर 31 दिसंबर , 1929 को लाहौर में भारत का झंडा फहराया गया और कांग्रेस ने 26 जनवरी , 1930 का दिन भारतीय स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाया। स्वराज शब्द का अर्थ होता है अपना राज्य , स्वराज्य आन्दोलन को चलाने का उद्देश्य था स्वाधीनता प्राप्त करना।

कुछ लोगों ने पूर्ण स्वाधीनता को दुलर्भ मानते हुए अच्छी सरकार को वरीयता दी लेकिन गाँधी जी के अनुसार स्वराज्य का अर्थ जन प्रतिनिधियां द्वारा संचालित एक ऐसी व्यवस्था से था जो आम आदमी की अपेक्षाओं और जरूरतों के अनुकूल हो। अत: महात्मा गाँधी जी के स्वराज्य का विचार अंग्रेज सरकार की आर्थिक , सामाजिक , राजनितिक , कानून एवं शैक्षणिक संस्थाओं के बहिष्कार का आन्दोलन था।

नमक सत्याग्रह गाँधी जी के द्वारा चलाया गया एक बहुत ही महत्वपूर्ण सत्याग्रह था और उस समय ब्रिटिश सरकार ने रोजमर्रा की जरूरत की सभी चीजों पर भी अपना एकाधिकार जमा रखा था और उस समय देशवासियों को रोज इस्तेमाल होने वाले नमक को बनाने का भी अधिकार नहीं था एवं देशवासियों को इंग्लैण्ड से आने वाले नमक के लिए उसके वास्तविक मूल्य से कई गुणा पैसे चुकाने पड़ते थे।

इस आन्दोलन में लोगों ने सरकार को सहयोग देना बंद कर दिया जैसे छात्रों ने स्कूल जाना छोड़ दिया , वकीलों ने अदालत जाने से मना कर दिया एवं पूरे देश में लोगों ने ब्रिटिश सरकार का सहयोग करना बंद कर दिया। असहयोग आन्दोलन का उद्देश्य था कि किसी तरह की हिंसा न करते हुए भारतियों के द्वारा अंग्रेज सरकार की किसी भी तरह की मदद ने की जाए।

इसके बाद गाँधी जी ने सरकार द्वारा नमक पर कर लगाए जाने के विरोध में नमक सत्याग्रह चलाया जिसके अंतर्गत उन्होंने 12 मार्च से 6 अप्रैल तक अहमदाबाद से दांडी , गुजरात तक लगभग 388 किलोमीटर की यात्रा की। इस यात्रा का उद्देश्य खुद नमक उत्पन्न करना था। इस यात्रा में हजारों भारतियों ने भाग लिया और अंग्रेजी सरकार को विचलित करने में भी सफल रहे। इस दौरान सरकार ने लगभग 60 हजार से भी ज्यादा लोगों को गिरफ्तार करके जेल भेजा गया।

इसके पश्चात लार्ड इरविन के प्रतिनिधित्व वाली सरकार ने गाँधी जी के साथ विचार-विमर्श करने का निर्णय लिया जिसके फलस्वरूप गाँधी-इरविन संधि पर मार्च 1931 में हस्ताक्षर हुए। गाँधी इरविन संधि के तहत ब्रिटिश सरकार ने सभी कैद भारतियों को रिहा करने की अनुमति दे दी थी।

इसी समझौते के परिणामस्वरूप गाँधी जी ने कांग्रेस के एकमात्र प्रतिनिधित्व के रूप में लन्दन में आयोजित गोलमेज सम्मेलन में भाग लिया लेकिन यह सम्मेलन कांग्रेस और दूसरे राष्ट्रवादियों के लिए बहुत निराशाजनक रहा। इसके बाद गाँधी जी को फिर से गिरफ्तार कर लिए गया और सरकार ने राष्ट्रवादी आन्दोलन को कुचलने की कोशिश की। सन् 1934 में गाँधी जी ने कांग्रेस की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया।

गाँधी जी ने राजनितिक गतिविधियों की जगह पर अब रचनात्मक कार्यक्रमों के माध्यम से सबसे निचले स्तर से राष्ट्र के निर्माण पर अपना ध्यान लगाया। गाँधी जी ने ग्रामीण भारत को शिक्षित करने , छुआछूत के विरुद्ध आन्दोलन जारी रखने , कताई , बुनाई और अन्य कुटीर उद्योगों को बढ़ावा देने और लोगों की आवश्यकताओं के अनुकूल शिक्षा प्रणाली बनाने का काम शुरू किया।

गोलमेज सम्मेलन (Round Table Conference In Hindi) :

जनवरी 1931 को महात्मा गाँधी जी को जेल से रिहा कर दिया गया था और उसके बाद उन्होंने लार्ड इरविन के साथ समझौता किया जिसमें उन्होंने नमक सत्याग्रह खत्म करने के बदले हजारों राजनितिक कैदियों को छोड़ने की शर्त रखी। इस समझौता का नमक अधिनियम पर बहुत बड़ा प्रभाव हुआ और समुद्र तट पर रहने वालों को नमक बनाने का अधिकार मिल गया।

इस समझौते को स्वराज के मील का पत्थर मानते हुए इंडियन नेशनल कांग्रेस का एकमात्र प्रतिनिधि बनकर गाँधी जी ने अगस्त 1931 में भारतीय संवैधानिक सुधार के लिए गोलमेज सम्मेलन में भाग लिया हालाँकि यह सम्मेलन निरर्थक सिद्ध हुआ था। महात्मा गाँधी जी ने भारत लौटकर नए वायसराय लार्ड विल्लिंगडॉन कार्यवाई की मांग पूरी न करने का विरोध में जनवरी 1932 खुद को एक बार फिर जेल में बंद होने का फैसला किया।

उसी साल उन्होंने जातिप्रथा में अछूतों को अलग निर्वाचन क्षेत्र आवंटित करने अंग्रेजों के खिलाफ 6 दिन का उपवास किया। जनता के विरोध ने अंग्रेजी सरकार को प्रस्ताव मानने पर मजबूर कर दिया। अंत में उनकी जेल से रिहाई के बाद गाँधी जी ने 1934 में इंडियन नेशनल कांग्रेस छोड़ दी और नेतृत्व जवाहरलाल नेहरु को सौंप दिया। एक बार फिर उन्होंने राजनीति से दूर रहकर शिक्षा , गरीबी और ग्रामीण क्षेत्रों की समस्याओं में अपना ध्यान लगाना शुरू कर दिया।

हरिजन आंदोलन (Harijan movement In Hindi) :

भारतवर्ष में वर्णव्यवस्था के विकृत हो आने से जाति-पाति का भेदभाव अपने चरम सीमा पर पहुंच चूका था और दलितों को अछूत समझा जाता था। यह देखकर कि दलित नाम ही अपमानजनक लगने लगा है गुजरात के एक दलित ने महात्मा गाँधी जी से दलितों के लिए हरिजन नाम का सुझाव दिया। गाँधी जी को यह नाम पसंद आया था और इसके बाद यह नाम बहुत तेजी से प्रचलन में आया।

गाँधी जी ने इस आन्दोलन के माध्यम से जाति भेदभाव और छुआछूत की विकृत परंपरा के अंत की शुरुआत कर दी। हालाँकि हरिजनों ने गाँधी जी की अपेक्षा डॉ बी.आर.अम्बेडकर को अपना नेता चुना था लेकिन महात्मा गाँधी जी के द्वारा किए गए हरिजन आन्दोलन ने हरिजनों के विकास एवं उत्थान में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

दलित नेता बी.आर.अम्बेडकर की कोशिशों के परिणामस्वरूप अंग्रेज सरकार ने अछूतों के लिए एक नए संविधान के अंतर्गत पृथक निर्वाचन मंजूर कर दिया था। येरवडा जेल में बंद गाँधी जी ने इसके विरोध में सितंबर 1932 में छ: दिन का उपवास किया और सरकार को एक समान व्यवस्था अपनाने के लिए मजबूर किया।

अछूतों के जीवन को सुधारने के लिए गाँधी जी द्वारा चलाए गए अभ्यं की यह शुरुआत थी। 8 मई , 1933 को गाँधी जी ने आत्म-शुद्धि के लिए 21 दिन का उपवास किया और हरिजन आन्दोलन को आगे बढ़ाने के लिए एक-वर्षीय अभियान की शुरुआत की। अम्बेडकर जैसे दलित नेता इस आन्दोलन से खुश नहीं थे और गाँधी जी के द्वारा दलितों के लिए हरिजन शब्द का उपयोग करने की निंदा भी की।

भारत छोड़ो आंदोलन (Quit India Movement In Hindi) :

द्वितीय विश्व युद्ध की शुरुआत में गाँधी जी अंग्रेजों को अहिंसात्मक नैतिक सहयोग देने के पक्षधर थे लेकिन कांग्रेस के बहुत से नेता इस बात से नाखुश थे कि जनता के प्रतिनिधियों के परामर्श लिए बिना ही सरकार ने देश को युद्ध में झोंक दिया था। गाँधी जी ने घोषणा की कि एक तरफ भारत को आजदी देने से इंकार किया जा रहा था और दूसरी तरफ लोकतान्त्रिक शक्तियों की जीत के लिए भारत को युद्ध में शामिल किया जा रहा था।

जैसे-जैसे युद्ध बढ़ता गया गाँधी जी और कांग्रेस ने भारत छोड़ो आन्दोलन की मांग को तीव्र कर दिया। भारत छोड़ो आन्दोलन की शुरुआत महात्मा गाँधी जी ने अगस्त 1942 में की थी। लेकिन इसके संचालन में हुई गलतियों के कारण यह आन्दोलन जल्द ही धराशायी हो गया। भारत छोड़ो स्वतंत्रता आन्दोलन के संघर्ष का सर्वाधिक शक्तिशाली आन्दोलन बन गया जिसमें व्यापक हिंसा और गिरफ्तारी हुई।

इस संघर्ष में हजारों स्वतंत्रता सेनानियों या तो मारे गए या घायल हो गए और हजारों को गिरफ्तार भी कर लिया गया। गाँधी जी ने यह स्पष्ट कर दिया था कि वे ब्रिटिश युद्ध प्रयासों को तब तक समर्थन नहीं देंगे जब तक भारत की तत्काल आजादी न दे दी जाए। गाँधी जी ने यह भी कह दिया था कि व्यक्तिगत हिंसा के बावजूद यह आन्दोलन बंद नहीं होगा।

उनका मानना था कि देश में फैली सरकारी अराजकता असली अराजकता से भी खतरनाक है। गाँधी जी ने सभी कांग्रेसियों और भारतियों को अहिंसा के साथ करो या मरो के साथ अनुशासन बनाए रखने को कहा। जैसा सबका अनुमान था अंग्रेजी सरकार ने गाँधी जी और कांग्रेस कार्यकारणी समिति के सभी सदस्यों को मुम्बई में 9 अगस्त , 1942 को गिरफ्तार कर लिया और गाँधी जी को पुणे के आंगा खां महल ले जाया गया जहाँ पर उन्हें दो साल तक बंदी बनाकर रखा गया।

इसी दौरान गाँधी जी की पत्नी कस्तूरबा बाई का देहांत 22 फरवरी , 1944 को हो गया और कुछ समय बाद गाँधी जी भी मलेरिया से पीड़ित हो गए। अंग्रेज गाँधी जी को इस हालत में जेल में नहीं छोड़ सकते थे इसलिए आवश्यक उपचार के लिए 6 मई 1944 को गाँधी जी को रिहा कर दिया गया।

आंशिक सफलता के बावजूद भारत छोड़ो आन्दोलन ने भारत को संगठित कर दिया और द्वितीय विश्व युद्ध के अंत तक ब्रिटिश सरकार ने स्पष्ट कर दिया कि बहुत जल्द भारत की सत्ता भारतीयों के हाथों में सौंप दी जाएगी। गाँधी जी ने भारत छोड़ो आन्दोलन समाप्त कर दिया और सरकार ने लगभग 1 लाख राजनैतिक कैदियों को रिहा कर दिया।

देश का विभाजन और आजादी : द्वितीय विश्व युद्ध समाप्त होते-होते ब्रिटिश सरकार ने देश को आजाद करने का संकेत दे दिया था। भारत की आजादी के आन्दोलन के साथ-साथ , जिन्ना के नेतृत्व में एक अलग मुसलमान बाहुल्य देश की मांग भी तीव्र हो गई थी और 40 के दशक में इन ताकतों ने एक अलग राष्ट्र पाकिस्तान की मांग को वास्तविकता में बदल दिया था। गाँधी जी देश का बंटवारा नहीं चाहते थे क्योंकि यह उनके धार्मिक एकता के सिद्धांत से बिलकुल अलग थ लेकिन ऐसा हो नहीं पाया और अंग्रेजों ने देश को दो टुकड़ों भारत और पाकिस्तान में विभाजित कर दिया।

गाँधी जी की मृत्यु (Gandhiji’s death In Hindi) :

30 जनवरी , 1948 को राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी की दिल्ली के बिरला हाउस में शाम के समय हत्या कर दी गई थी। गाँधी जी एक प्रार्थना सभा को संबोधित करने जा रहे थे तब नाथूराम गोडसे ने उनके सीने में तीन गोलियां दाग दीं। ऐसा माना जाता है कि हे राम उनके मुख से निकले आखिरी शब्द थे। नाथूराम गोडसे और उनके सहयोगियों पे मुकदमा चलाया गया और सन् 1949 में उन्हें मौत की सजा सुनाई गई।

भारत के स्वतंत्रता नायक महात्मा गाँधी की मृत्यु पर पूरे देश ने शोक मनाया था। गाँधी जी एक ऐसे महान नेता थे जो बिना किसी अस्त्र-शस्त्र के ही अंग्रेज सरकार को देश से बाहर निकालने में सफल हुए थे। गाँधी जी ने अपना पूरा जीवन देश के कल्याण के लिए समर्पित कर दिया। अपने कार्यों , विचारों एवं अनुशासन के कारण से उनका जीवन पूरे संसार के लिए प्रेरणा का श्रोत है।

गाँधी की अंतिम यात्रा और अस्थियाँ : गांधीजी की मौत पर पूरे देश ने शोक व्यक्त किया। महात्मा गाँधी की शवयात्रा में बीस लाख लोग पांच मील तक चलते रहे और राजघाट तक पहुंचने में पांच घंटे लगे जहाँ पर उनकी हत्या हुई थी। गाँधी जी के शरीर को एक हथियार वाहन पर लाया गया था जिसके ढांचे को रातों रात बदला गया था जिसमें एक ऊँची मंजिल बनाई गई जिससे लोग उनके अंतिम दर्शन कर सकें।

इस वाहन को चलाने के लिए इंजन का प्रयोग नहीं किया गया था इसके बजाए 50 लोगों ने रस्सी से इस वाहन को खींचा था। उस दिन गाँधी जी के शोक में सारे राजकीय प्रतिष्ठान बंद रहे थे। सरकार ने यह विश्वास दिलाया था कि दोषी दल मुस्लिम नहीं था। कांग्रेस ने दाह संस्कार के दो सप्ताह तक स्थिथि को संभाले रखा ताकि कोई दंगा न भडके। सरकार के इस निर्णय से हिन्दुओं के दिल से शोक का बोझ उठ गया और कांग्रेस पार्टी की अहमियत बढ़ गई।

सरकार ने इसके बाद RSS और मुस्लिम नेशनल गार्ड के 2 लाखों की गिरफ्तारी की। हिन्दू प्रथा के अनुसार उनकी अस्थियाँ नदी में बहा दी गईं। गाँधी जी की अस्थियों को कलश में भरकर देशभर की अलग-अलग स्मारकों में भेजा गया। सबसे ज्यादा इलाहबाद के संगम में प्रवाहित की गईं थीं। गाँधी जी की कुछ अस्थियाँ नील नदी और युगांडा में भी बहाई गईं थीं।

गाँधी जी की कुछ रोचक बातें : महात्मा गाँधी जी को भारत के राष्ट्रपिता का ख़िताब भारत सरकार ने नहीं दिया था उन्हें एक बार सुभाषचन्द्र बोस ने उन्हें राष्ट्रपिता कहकर संबोधित किया था। गाँधी जी की मृत्यु पर एक अंग्रेजी अफसर ने कहा था की जिस गाँधी को उन्होंने इतने सालों तक कुछ नहीं होने दिया ताकि भारत में हमारे खिलाफ जो माहौल है वो और न बिगड़ जाए उस गाँधी जी को स्वतंत्र भारत एक साल भी जिन्दा नहीं रख सका।

गांधीजी ने स्वदेशी आन्दोलन भी चलाया था जिसमें उन्होंने सभी लोगों से विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार करने की मांग की और फिर स्वदेशी कपड़ों आदि के लिए खुद चरखा चलाया और कपड़ा भी बनाया। गाँधी जी ने देश-विदेश में कुछ आश्रमों की स्थापना भी की। गाँधी जी आत्मिक शुद्धि के लिए बहुत कठिन उपवास भी किया करते थे। गाँधी जी ने जीवन भर हिन्दू-मुस्लिम एकता के लिए प्रयास किया।

The post महात्मा गांधी-Mahatma Gandhi In Hindi appeared first on hindimeaning.com.

श्री ब्रह्मा चालिसा-Brahma Chalisa in Hindi & English

$
0
0

*श्री ब्रह्मा चालिसा*

।। दोहा ।।

जय ब्रह्मा जय स्वयम्भू, चतुरानन सुखमूल।
करहु कृपा निज दास पै, रहहु सदा अनुकूल।।
तुम सृजक ब्रह्माण्ड के, अज विधि घाता नाम।
विश्वविधाता कीजिये, जन पै कृपा ललाम।।

।। चौपाई ।।

जय जय कमलासान जगमूला, रहहू सदा जनपै अनुकूला।
रुप चतुर्भुज परम सुहावन, तुम्हें अहैं चतुर्दिक आनन।

रक्तवर्ण तव सुभग शरीरर, मस्तक जटाजुट गंभीरा।
ताके ऊपर मुकुट बिराजै, दाढ़ी श्वेत महाछवि छाजै।

श्वेतवस्त्र धारे तुम सुन्दर, है यज्ञोपवीत अति मनहर।
कानन कुण्डल सुभग बिराजहिं, गल मोतिन की माला राजहिं।

चारिहु वेद तुम्हीं प्रगटाये, दिव्य ज्ञान त्रिभुवनहिं सिखाये।
ब्रह्मलोक शुभ धाम तुम्हारा, अखिल भुवन महँ यश बिस्तारा।

अर्द्धागिनि तव है सावित्री, अपर नाम हिये गायत्री।
सरस्वती तब सुता मनोहर, वीणा वादिनि सब विधि मुन्दर।

कमलासन पर रहे बिराजे, तुम हरिभक्ति साज सब साजे।
क्षीर सिन्धु सोवत सुरभूपा, नाभि कमल भो प्रगट अनूपा।

तेहि पर तुम आसीन कृपाला, सदा करहु सन्तन प्रतिपाला।
एक बार की कथा प्रचारी, तुम कहँ मोह भयेउ मन भारी।

कमलासन लखि कीन्ह बिचारा, और न कोउ अहै संसारा।
तब तुम कमलनाल गहि लीन्हा, अन्त बिलोकन कर प्रण कीन्हा।

कोटिक वर्ष गये यहि भांती, भ्रमत भ्रमत बीते दिन राती।
पै तुम ताकर अन्त न पाये, ह्वै निराश अतिशय दुःखियाये।

पुनि बिचार मन महँ यह कीन्हा महापघ यह अति प्राचीन।
याको जन्म भयो को कारन, तबहीं मोहि करयो यह धारन।

अखिल भुवन महँ कहँ कोई नाहीं, सब कुछ अहै निहित मो माहीं।
यह निश्चय करि गरब बढ़ायो, निज कहँ ब्रह्म मानि सुखपाये।

गगन गिरा तब भई गंभीरा, ब्रह्मा वचन सुनहु धरि धीरा।
सकल सृष्टि कर स्वामी जोई, ब्रह्म अनादि अलख है सोई।

निज इच्छा इन सब निरमाये, ब्रह्मा विष्णु महेश बनाये।
सृष्टि लागि प्रगटे त्रयदेवा, सब जग इनकी करिहै सेवा।

महापघ जो तुम्हरो आसन, ता पै अहै विष्णु को शासन।
विष्णु नाभितें प्रगट्यो आई, तुम कहँ सत्य दीन्ह समुझाई।

भटहै जाई विष्णु हितमानी, यह कहि बन्द भई नभवानी।
ताहि श्रवण कहि अचरज माना, पुनि चतुरानन कीन्ह पयाना।

कमल नाल धरि नीचे आवा, तहां विष्णु के दर्शन पावा।
शयन करत देखे सुरभूपा, श्यायमवर्ण तनु परम अनूपा।

सोहत चतुर्भुजा अतिसुन्दर, क्रीटमुकट राजत मस्तक पर।
गल बैजन्ती माल बिराजै, कोटि सूर्य की शोभा लाजै।

शंख चक्र अरु गदा मनोहर, पघ नाग शय्या अति मनहर।
दिव्यरुप लखि कीन्ह प्रणामू, हर्षित भे श्रीपति सुख धामू।

बहु विधि विनय कीन्ह चतुरानन, तब लक्ष्मी पति कहेउ मुदित मन।
ब्रह्मा दूरि करहु अभिमाना, ब्रह्मारुप हम दोउ समाना।

तीजे श्री शिवशंकर आहीं, ब्रह्मरुप सब त्रिभुवन मांही।
तुम सों होई सृष्टि विस्तारा, हम पालन करिहैं संसारा।

शिव संहार करहिं सब केरा, हम तीनहुं कहँ काज धनेरा।
अगुणरुप श्री ब्रह्मा बखानहु, निराकार तिनकहँ तुम जानहु।

हम साकार रुप त्रयदेवा, करिहैं सदा ब्रह्म की सेवा।
यह सुनि ब्रह्मा परम सिहाये, परब्रह्म के यश अति गाये।

सो सब विदित वेद के नामा, मुक्ति रुप सो परम ललामा।
यहि विधि प्रभु भो जनम तुम्हारा, पुनि तुम प्रगट कीन्ह संसारा।

नाम पितामह सुन्दर पायेउ, जड़ चेतन सब कहँ निरमायेउ।
लीन्ह अनेक बार अवतारा, सुन्दर सुयश जगत विस्तारा।

देवदनुज सब तुम कहँ ध्यावहिं, मनवांछित तुम सन सब पावहिं।
जो कोउ ध्यान धरै नर नारी, ताकी आस पुजावहु सारी।

पुष्कर तीर्थ परम सुखदाई, तहँ तुम बसहु सदा सुरराई।
कुण्ड नहाइ करहि जो पूजन, ता कर दूर होई सब दूषण।

॥ इति श्री ब्रह्मा चालीसा ॥


*Brahma Chalisa in English*

॥Doha॥

Jai Brahma Jai Sayambhu,
Chaturaanan Sukhamool ।

Karahu Kripaa Nij Daas Pai,
Rahahu Sadaa Anukool।

Tum Srijak Brahmaand Ke,
Aj Vidhi Ghaataa Naam।

Vishwavidhaataa Kijiye,
Jan Pai Kripaa Lalaam ।

॥॥Chaupaai॥

Jai Jai Kamalaasan Jagamoola,
Rahahu Sadaa Janapai Anukoolaa ।

Roop Chaturbhuj Param Suhaavan,
Tumhe Ahain Chaturdik Aanan ।

Raktavarn Tav Subhag Shareera,
Mastak Jataajoot Gambheeraa ।

Taake Upar Mukut VIraajai,
Daadhi Sweta Mahaachhavi Chhaajai ।

Sveta Vastra Dhaare TumSUndar,
Hai Yagyopaveet Ati Manahar ।

Kaanan Kundal Subhag Viraajahi,
Gal Motin Ki Maalaa Raajahi।

Chaarihu Ved Tumhi Pragataaye,
Divy Gyaan Tribhuvanahi Sikhaaye ।

Brahmalok Shubh Dhaam Tumhaaraa,
Akhil Bhuvan Mahan Yash Vistaaraa ।

Ardhaagini Tav Hai Saavitri,
Apar NaamHiye Gaayatri।

Saraswati Tab Sutaa Manohar,
Veena Vaadini Sab Vidhi Mundar ।

Kamalaasan ParRahe Viraaje,
Tum Haribhakti Saaj Sab Saajebr ।

Ksheer Sindhu Sovat Surabhupaa,
Naabhi Kamal Bho Pragat Anoopaa ।

Tehi Par Tum Aasin Kripaalaa,
Sadaa Karahu Santan Pratipaalaabr ।

Ek Baar Ki Kathaa Prachaari,
Tum Kahan Moh Bhayeu Man Bhaari ।

Kamalaasan Lakhi Kinh Bichaaraa,
Aur Na Kou Ahai Sansaaraa ।

Tab TumKamalanaal Gahi Linhaa,
Ant Vilokan Kar Pran Kinhaabr ।

Kotik Varsh Gaye Yahi Bhaanti,
Bhramat Bhramat Beete Din Raati ।

Pai Tum Taakar Ant Na Paaye,
Hwai Niraash Atishay Dukhiyaaye ।

Puni Bichaar Man Mahan Yah Kinhaa
Mahaapagh Yah Ati Praachin ।

Yaako Jan Bhayo Ko Kaaran,
Tabahi Mohi Karayo Yah Dhaaranbr ।

Akhil Bhuvan Mahan Kahan Koi Naahin,
Sab Ahai Nihit Mo Maahinbr ।

Yah Nishchay Kari Garab Badhaayo,
Nij Kahan Brahm Maani Sukhapaaye।

Gagan Giraa Tab Bhai Gambheera,
Brahmaa Vachan Sunahu Dhari Dheera ।

Sakal Srishti Kar Swaami Joi,
Brahm Anaadi Alakh Hai Soi ।

Nij Ichchhaa In Sab Niramaaye,
Brahmaa Vishnu Mahesh Banaaye ।

Srishti Laagi Pragate Trayadevaa,
Sab Jag Inaki Karihai Sevaa ।

Mahaapagh Jo Tumharo Aasan,
Taa Pai Ahai Vishnu Ko Shaasan ।

Vishnu Naabhitein Pragatyo Aai,
TumKahan Saty Dinh Samujhaai।

Bhaitahu Jaai Vishnu Hitamaani,
Yah Kahi Band Bhai Nabhavaani ।

Taahi Shravan Kahi Acharaj Maanaa,
Puni Chaturaanan Kinh Payaanaa ।

Kamal Naal Dhari Neeche Aavaa,
Tahaan Vishnu Ke Darshan Paavaa ।

Shayan Karat Dekhe Surabhupaa,
Shyaamavarn Tanu Param Anoopaa ।

Sohat Chaturabhujaa Ati Sundar,
Kreet Mukut Raajat Mastak Par ।

Gal Baijanti Maal Viraajai,
Koti Surya Ki Shobhaa Laajai।

Shankh Chakra Aru Gadaa Manohar,
Pagh Naag Shaiyaa Ati Manahar ।

Divya Roop Lakhi Kinh Pranaamu,
Harshit Bhe Shreepati Sukh Dhaamubr ।

Bahu Vidhi Vinay Kinh Chaturaanan,
Tab Laxmi Pati Kaheu Mudit Man ।

Brahma Doori Karahu Abhimaanaa,
Brahmaaroop Ham Dou Samaanaabr ।

Teeje Shree Shivashankar Aahin,
Brahmaroop Sab Tribhuvan Maanhi ।

Tum So Hoi Srishti Vistaaraa,
Ham Paalan Karihain Sansaaraa ।

Shiv Shanhaar Karahin Sab Keraa,
Hamteenahun Kahan Kaaj Ghaneraa।

Agunaroop Shree Brahmaa Bakhaanahu,
Niraakaar Tinakahan Tum Jaanahu ।

Ham Saakaar Roop Traydevaa,
Karihain Sadaa Brahm Ki Sevaa ।

Yah Suni BrahmaaParam Sihaaye,
Parabrahm Ke Yash Ati Gaaye ।

So Sab Vidit Ved ke Naamaa,
Mukti Roop So Param Lalaamaa।

Yahi Vidhi Prabhu Bho Janam Tumhaaraa,
Puni TumPragat Kinh Sansaaraa ।

Naam Pitaamah Sundar Paayeu,
Jad Chetan Sab Kahan Niramaayeu ।

Linh Anek BaarAvataaraa,
Sundar Suyash Jagat Vistaaraa।

Devadanuj Sab Tum Kahan Dhyaavahi,
Manavaanchhit TumSan Sab Paavahin ।

Jo Kou Dhyaan Dharai Nar Naari,
Taaki Aas Puraavahu Saari ।

Pushkar Teerth Param Sukhadaai,
Tahan TumBasahu Sadaa Suraraai ।

Kund Nahaai Karahi Jo Pujan,
Taa Kar Door Hoi Sab Dooshan।

॥It’s Brahmaa Chalisa॥

The post श्री ब्रह्मा चालिसा-Brahma Chalisa in Hindi & English appeared first on hindimeaning.com.

श्री विन्ध्येश्वरी चालीसा-Vindheshwari Chalisa In Hindi & English

$
0
0

*श्री विन्ध्येश्वरी चालीसा*

|| दोहा ||

दोहा नमो नमो विन्ध्येश्वरी, नमो नमो जगदम्ब।
सन्तजनों के काज में करती नहीं विलम्ब।

|| चौपाई ||

जय जय विन्ध्याचल रानी, आदि शक्ति जग विदित भवानी।
सिंहवाहिनी जय जग माता, जय जय त्रिभुवन सुखदाता।

कष्ट निवारिणी जय जग देवी, जय जय असुरासुर सेवी।
महिमा अमित अपार तुम्हारी, शेष सहस्र मुख वर्णत हारी।

दीनन के दुख हरत भवानी, नहिं देख्यो तुम सम कोई दानी।
सब कर मनसा पुरवत माता, महिमा अमित जग विख्याता।

जो जन ध्यान तुम्हारो लावे, सो तुरतहिं वांछित फल पावै।
तू ही वैष्णवी तू ही रुद्राणी, तू ही शारदा अरु ब्रह्माणी।

रमा राधिका श्यामा काली, तू ही मातु सन्तन प्रतिपाली।
उमा माधवी चण्डी ज्वाला, बेगि मोहि पर होहु दयाला।

तू ही हिंगलाज महारानी, तू ही शीतला अरु विज्ञानी।
दुर्गा दुर्ग विनाशिनी माता, तू ही लक्ष्मी जग सुख दाता।

तू ही जाह्नवी अरु उत्राणी, हेमावती अम्बे निरवाणी।
अष्टभुजी वाराहिनी देवी, करत विष्णु शिव जाकर सेवा।

चौसठ देवी कल्यानी, गौरी मंगला सब गुण खानी।
पाटन मुम्बा दन्त कुमारी, भद्रकाली सुन विनय हमारी।

वज्र धारिणी शोक नाशिनी, आयु रक्षिणी विन्ध्यवासिनी।
जया और विजया बैताली, मातु संकटी अरु विकराली।

नाम अनन्त तुम्हार भवानी, बरनै किमि मानुष अज्ञानी।
जापर कृपा मातु तव होई, तो वह करै चहै मन जोई।

कृपा करहुं मोपर महारानी, सिद्ध करिए अब यह मम बानी।
जो नर धरै मात कर ध्याना, ताकर सदा होय कल्याना।

विपति ताहि सपनेहु नहिं आवै, जो देवी का जाप करावै।
जो नर कहं ऋण होय अपारा, सो नर पाठ करै शतबारा।

निश्चय ऋण मोचन होइ जाई, जो नर पाठ करै मन लाई।
अस्तुति जो नर पढ़ै पढ़ावै, या जग में सो अति सुख पावै।

जाको व्याधि सतावे भाई, जाप करत सब दूर पराई।
जो नर अति बन्दी महं होई, बार हजार पाठ कर सोई।

निश्चय बन्दी ते छुटि जाई, सत्य वचन मम मानहुं भाई।
जा पर जो कछु संकट होई, निश्चय देविहिं सुमिरै सोई।

जा कहं पुत्र होय नहिं भाई, सो नर या विधि करे उपाई।
पांच वर्ष सो पाठ करावै, नौरातन में विप्र जिमावै।

निश्चय होहिं प्रसन्न भवानी, पुत्र देहिं ताकहं गुण खानी।
ध्वजा नारियल आनि चढ़ावै, विधि समेत पूजन करवावै।

नित्य प्रति पाठ करै मन लाई, प्रेम सहित नहिं आन उपाई।
यह श्री विन्ध्याचल चालीसा, रंक पढ़त होवे अवनीसा।

यह जनि अचरज मानहुं भाई, कृपा दृष्टि तापर होइ जाई।
जय जय जय जग मातु भवानी, कृपा करहुं मोहिं पर जन जानी।

|| इति श्री विन्ध्येश्वरी चालीसा समाप्त ||


*Vindheshwari Chalisa In English*

DOHA

Namo namo vindhyeshvari namo namo jagadamba.
Santajanon ke kaaja men karati nahin vilamba.

Jaya jaya jaya vindhyaachala raani aadi shakti jaga vidita bhavaani.
Sinhavaahini jai jaga maataa jaya jaya jaya tribhuvana sukhadaataa.

Kashta nivaarini jaya jaga devi jaya jaya jaya jaya asuraasura sevi.
Mahimaa amita apaara tumhaari shesha sahasa mukha varnata haari.

Dinana ke duhkha harata bhavaani nahin dekhyo tuma sama koi daani.
Saba kara manasaa puravata maataa mahimaa amita jagata vikhyaataa.

Jo jana dhyaana tumhaaro laavai so turatahi vaanchhita phala paavai.
Tuu hi vaishnavi tuu hi rudraani tuu hi shaaradaa aru brahmaani.

Ramaa raadhikaa shaamaa kaali tuu hi maata santana pratipaali.
Umaa maadhavi chandi jvaalaa begi mohi para hohu dayaalaa.

Tuu hi hingalaaja mahaaraani tuu hi shitalaa aru vgyaani.
Durgaa durga vinaashini maataa tuu hi lakshmi jaga sukhadaataa.

Tuu hi jaanhavi aru utraani hemaavati ambe nirvaani .
Ashtabhuji vaaraahini devi karata Vishnu shiva jaakara sevi.

Chonsaththi devi kalyaani gauri mangalaa saba guna khaani.
PaaTana mumbaa danta kumaari bhadrakaali suna vinaya hamaari.

Vajradhaarini shoka naashini aayu rakshini vindhyavaasini.
Jayaa aura vijayaa baitaali maatu sugandhaa aru vikaraali.

Naama ananta tumhaara bhavaani baranain kimi maanusha agyaani.
Jaa para kripaa maatu tava hoi to vaha karai chahai mana joi.

Kripaa karahu mo para mahaaraani siddhi kariya ambe mama baani.
Jo nara dharai maatu kara dhyaanaa taakara sadaa hoya kalyaanaa.

Vipatti taahi sapanehu nahin aavai jo devi kara jaapa karaavai.
Jo nara kahan rina hoya apaaraa so nara paatha karai shata baaraa.

Nishchaya rina mochana hoi jaai jo nara paatha karai mana laai.
Astuti jo nara padhe padhaave yaa jaga men so bahu sukha paavai.

Jaako vyaadhi sataavai bhaai jaapa karata saba duuri paraai.
Jo nara ati bandi mahan hoi baara hajaara paatha kara soi.

Nishchaya bandi te chhuti jaai satya bachana mama maanahu bhaai.
Jaa para jo kachhu sankata hoi nishchaya debihi sumirai soi.

Jo nara putra hoya nahin bhaai so nara yaa vidhi kare upaai.
Paancha varsha so paatha karaavai nauraatara men vipra jimaavai.

Nishchaya hoya prasanna bhavaani putra dehi taakahan guna khaani .
Dhvajaa naariyala aani chadhaavai vidhi sameta puujana karavaavai.

Nita prati paatha karai mana laai prema sahita nahin aana upaai.
Yaha shri vindhyaachala chalisa ranka padhata hove avanisaa.

Yaha jani acharaja maanahu bhaai kripaa drishti taapara hoi jaai.
Jaya jaya jaya jagamaatu bhavaani kripaa karahu mo para jana jaani.

|| Iti Shri Vindhayswari Chalisa ends ||

The post श्री विन्ध्येश्वरी चालीसा-Vindheshwari Chalisa In Hindi & English appeared first on hindimeaning.com.


श्री पितर चालीसा-Pitar Chalisa In Hindi & English

$
0
0

*श्री पितर चालीसा*

||दोहा||

हे पितरेश्वर आपको दे दियो आशीर्वाद,
चरणाशीश नवा दियो रखदो सिर पर हाथ।
सबसे पहले गणपत पाछे घर का देव मनावा जी।
हे पितरेश्वर दया राखियो, करियो मन की चाया जी।।

||चौपाई||

पितरेश्वर करो मार्ग उजागर, चरण रज की मुक्ति सागर।
परम उपकार पित्तरेश्वर कीन्हा, मनुष्य योणि में जन्म दीन्हा।
मातृ-पितृ देव मन जो भावे, सोई अमित जीवन फल पावे।
जै-जै-जै पित्तर जी साईं, पितृ ऋण बिन मुक्ति नाहिं।

चारों ओर प्रताप तुम्हारा, संकट में तेरा ही सहारा।
नारायण आधार सृष्टि का, पित्तरजी अंश उसी दृष्टि का।
प्रथम पूजन प्रभु आज्ञा सुनाते, भाग्य द्वार आप ही खुलवाते।
झुंझनू में दरबार है साजे, सब देवों संग आप विराजे।

प्रसन्न होय मनवांछित फल दीन्हा, कुपित होय बुद्धि हर लीन्हा।
पित्तर महिमा सबसे न्यारी, जिसका गुणगावे नर नारी।
तीन मण्ड में आप बिराजे, बसु रुद्र आदित्य में साजे।
नाथ सकल संपदा तुम्हारी, मैं सेवक समेत सुत नारी।

छप्पन भोग नहीं हैं भाते, शुद्ध जल से ही तृप्त हो जाते।
तुम्हारे भजन परम हितकारी, छोटे बड़े सभी अधिकारी।
भानु उदय संग आप पुजावै, पांच अँजुलि जल रिझावे।
ध्वज पताका मण्ड पे है साजे, अखण्ड ज्योति में आप विराजे।

सदियों पुरानी ज्योति तुम्हारी, धन्य हुई जन्म भूमि हमारी।
शहीद हमारे यहाँ पुजाते, मातृ भक्ति संदेश सुनाते।
जगत पित्तरो सिद्धान्त हमारा, धर्म जाति का नहीं है नारा।
हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई सब पूजे पित्तर भाई।

हिन्दू वंश वृक्ष है हमारा, जान से ज्यादा हमको प्यारा।
गंगा ये मरुप्रदेश की, पितृ तर्पण अनिवार्य परिवेश की।
बन्धु छोड़ ना इनके चरणाँ, इन्हीं की कृपा से मिले प्रभु शरणा।
चौदस को जागरण करवाते, अमावस को हम धोक लगाते।

जात जडूला सभी मनाते, नान्दीमुख श्राद्ध सभी करवाते।
धन्य जन्म भूमि का वो फूल है, जिसे पितृ मण्डल की मिली धूल है।
श्री पित्तर जी भक्त हितकारी, सुन लीजे प्रभु अरज हमारी।
निशिदिन ध्यान धरे जो कोई, ता सम भक्त और नहीं कोई।

तुम अनाथ के नाथ सहाई, दीनन के हो तुम सदा सहाई।
चारिक वेद प्रभु के साखी, तुम भक्तन की लज्जा राखी।
नाम तुम्हारो लेत जो कोई, ता सम धन्य और नहीं कोई।
जो तुम्हारे नित पाँव पलोटत, नवों सिद्धि चरणा में लोटत।

सिद्धि तुम्हारी सब मंगलकारी, जो तुम पे जावे बलिहारी।
जो तुम्हारे चरणा चित्त लावे, ताकी मुक्ति अवसी हो जावे।
सत्य भजन तुम्हारो जो गावे, सो निश्चय चारों फल पावे।
तुमहिं देव कुलदेव हमारे, तुम्हीं गुरुदेव प्राण से प्यारे।

सत्य आस मन में जो होई, मनवांछित फल पावें सोई।
तुम्हरी महिमा बुद्धि बड़ाई, शेष सहस्र मुख सके न गाई।
मैं अतिदीन मलीन दुखारी, करहुं कौन विधि विनय तुम्हारी।
अब पित्तर जी दया दीन पर कीजै, अपनी भक्ति शक्ति कछु दीजै।

दोहा पित्तरों को स्थान दो, तीरथ और स्वयं ग्राम।
श्रद्धा सुमन चढ़ें वहां, पूरण हो सब काम।
झुंझनू धाम विराजे हैं, पित्तर हमारे महान।
दर्शन से जीवन सफल हो, पूजे सकल जहान।।
जीवन सफल जो चाहिए, चले झुंझनू धाम।
पित्तर चरण की धूल ले, हो जीवन सफल महान।।

 

The post श्री पितर चालीसा-Pitar Chalisa In Hindi & English appeared first on hindimeaning.com.

श्री रामदेव चालीसा-Ramdev Chalisa In Hindi & English

$
0
0

*श्री रामदेव चालीसा*

||दोहा||

श्री गुरु पद नमन करि, गिरा गनेश मनाय।
कथूं रामदेव विमल यश, सुने पाप विनशाय।।
द्वार केश से आय कर, लिया मनुज अवतार।
अजमल गेह बधावणा, जग में जय जयकार।।

||चौपाई||

जय जय रामदेव सुर राया, अजमल पुत्र अनोखी माया।
विष्णु रूप सुर नर के स्वामी, परम प्रतापी अन्तर्यामी।

ले अवतार अवनि पर आये, तंवर वंश अवतंश कहाये।
संज जनों के कारज सारे, दानव दैत्य दुष्ट संहारे।

परच्या प्रथम पिता को दीन्हा, दूश परीण्डा माही कीन्हा।
कुमकुम पद पोली दर्शाये, ज्योंही प्रभु पलने प्रगटाये।

परचा दूजा जननी पाया, दूध उफणता चरा उठाया।
परचा तीजा पुरजन पाया, चिथड़ों का घोड़ा ही साया।

परच्या चैथा भैरव मारा, भक्त जनों का कष्ट निवारा।
पंचम परच्या रतना पाया, पुंगल जा प्रभु फंद छुड़ाया।

परच्या छठा विजयसिंह पाया, जला नगर शरणागत आया।
परच्या सप्तम सुगना पाया, मुवा पुत्र हंसता भग आया।

परच्या अष्टम बौहित पाया, जा परदेश द्रव्य बहु लाया।
भंवर डूबती नाव उबारी, प्रगट टेर पहुँचे अवतारी।

नवमां परच्या वीरम पाया, बनियां आ जब हाल सुनाया।
दसवां परच्या पा बिनजारा, मिश्री बनी नमक सब खारा।

परच्या ग्यारह किरपा थारी, नमक हुआ मिश्री फिर सारी।
परच्या द्वादश ठोकर मारी, निकलंग नाड़ी सिरजी प्यारी।

परच्या तेरहवां पीर परी पधारया, ल्याय कटोरा कारज सारा।
चैदहवां परच्या जाभो पाया, निजसर जल खारा करवाया।

परच्या पन्द्रह फिर बतलाया, राम सरोवर प्रभु खुदवाया।
परच्या सोलह हरबू पाया, दर्श पाय अतिशय हरषाया।

परच्या सत्रह हर जी पाया, दूध थणा बकरया के आया।
सुखी नाडी पानी कीन्हों, आत्म ज्ञान हरजी ने दीन्हों।

परच्या अठारहवां हाकिम पाया, सूते को धरती लुढ़काया।
परच्या उन्नीसवां दल जी पाया, पुत्र पाया मन में हरषाया।

परच्या बीसवां पाया सेठाणी, आये प्रभु सुन गदगद वाणी।
तुरंत सेठ सरजीवण कीन्हा, उक्त उजागर अभय वर दीन्हा।

परच्या इक्कीसवां चोर जो पाया, हो अन्धा करनी फल पाया।
परच्या बाईसवां मिर्जो चीहां, सातों तवा बेध प्रभु दीन्हां।

परच्या तेईसवां बादशाह पाया, फेर भक्त को नहीं सताया।
परच्या चैबीसवां बख्शी पाया, मुवा पुत्र पल में उठ धाया।

जब-जब जिसने सुमरण कीन्हां, तब-तब आ तुम दर्शन दीन्हां।
भक्त टेर सुन आतुर धाते, चढ़ लीले पर जल्दी आते।

जो जन प्रभु की लीला गावें, मनवांछित कारज फल पावें।
यह चालीसा सुने सुनावे, ताके कष्ट सकल कट जावे।

जय जय जय प्रभु लीला धारी, तेरी महिमा अपरम्पारी।
मैं मूरख क्या गुण तव गाऊँ, कहाँ बुद्धि शारद सी लाऊँ।

नहीं बुद्धि बल घट लवलेशा, मती अनुसार रची चालीसा।
दास सभी शरण में तेरी, रखियों प्रभु लज्जा मेरी।


*Ramdev Chalisa In English*

||doha||

shree guru pad naman kari, gira ganesh manaay.
kathoon raamadev vimal yash, sune paap vinashaay..
dvaar kesh se aay kar, liya manuj avataar.
ajamal geh badhaavana, jag mein jay jayakaar..

||chaupaee||

jay jay raamadev sur raaya, ajamal putr anokhee maaya.
vishnu roop sur nar ke svaamee, param prataapee antaryaamee.

le avataar avani par aaye, tanvar vansh avatansh kahaaye.
sanj janon ke kaaraj saare, daanav daity dusht sanhaare.

parachya pratham pita ko deenha, doosh pareenda maahee keenha.
kumakum pad polee darshaaye, jyonhee prabhu palane pragataaye.

paracha dooja jananee paaya, doodh uphanata chara uthaaya.
paracha teeja purajan paaya, chithadon ka ghoda hee saaya.

parachya chaitha bhairav maara, bhakt janon ka kasht nivaara.
pancham parachya ratana paaya, pungal ja prabhu phand chhudaaya.

parachya chhatha vijayasinh paaya, jala nagar sharanaagat aaya.
parachya saptam sugana paaya, muva putr hansata bhag aaya.

parachya ashtam bauhit paaya, ja paradesh dravy bahu laaya.
bhanvar doobatee naav ubaaree, pragat ter pahunche avataaree.

navamaan parachya veeram paaya, baniyaan aa jab haal sunaaya.
dasavaan parachya pa binajaara, mishree banee namak sab khaara.

parachya gyaarah kirapa thaaree, namak hua mishree phir saaree.
parachya dvaadash thokar maaree, nikalang naadee sirajee pyaaree.

parachya terahavaan peer paree padhaaraya, lyaay katora kaaraj saara.
chaidahavaan parachya jaabho paaya, nijasar jal khaara karavaaya.

parachya pandrah phir batalaaya, raam sarovar prabhu khudavaaya.
parachya solah haraboo paaya, darsh paay atishay harashaaya.

parachya satrah har jee paaya, doodh thana bakaraya ke aaya.
sukhee naadee paanee keenhon, aatm gyaan harajee ne deenhon.

parachya athaarahavaan haakim paaya, soote ko dharatee ludhakaaya.
parachya unneesavaan dal jee paaya, putr paaya man mein harashaaya.

parachya beesavaan paaya sethaanee, aaye prabhu sun gadagad vaanee.
turant seth sarajeevan keenha, ukt ujaagar abhay var deenha.

parachya ikkeesavaan chor jo paaya, ho andha karanee phal paaya.
parachya baeesavaan mirjo cheehaan, saaton tava bedh prabhu deenhaan.

parachya teeesavaan baadashaah paaya, pher bhakt ko nahin sataaya.
parachya chaibeesavaan bakhshee paaya, muva putr pal mein uth dhaaya.

jab-jab jisane sumaran keenhaan, tab-tab aa tum darshan deenhaan.
bhakt ter sun aatur dhaate, chadh leele par jaldee aate.

jo jan prabhu kee leela gaaven, manavaanchhit kaaraj phal paaven.
yah chaaleesa sune sunaave, taake kasht sakal kat jaave.

jay jay jay prabhu leela dhaaree, teree mahima aparampaaree.
main moorakh kya gun tav gaoon, kahaan buddhi shaarad see laoon.

nahin buddhi bal ghat lavalesha, matee anusaar rachee chaaleesa.
daas sabhee sharan mein teree, rakhiyon prabhu lajja meree.

The post श्री रामदेव चालीसा-Ramdev Chalisa In Hindi & English appeared first on hindimeaning.com.

श्री खाटू श्याम चालीसा-Khatu Shyam Chalisa In Hindi & English

$
0
0

*श्री खाटू श्याम चालीसा*

||दोहा||

श्री गुरु चरण ध्यान धर, सुमिरि सच्चिदानन्द।
श्याम चालीसा भजत हूँ, रच चैपाई छन्द।।

||चौपाई||

श्याम श्याम भजि बारम्बारा, सहज ही हो भवसागर पारा।
इन सम देव न दूजा कोई, दीन दयालु न दाता होई।

भीमसुपुत्र अहिलवती जाया, कहीं भीम का पौत्र कहाया।
यह सब कथा सही कल्पान्तर, तनिक न मानों इनमें अन्तर।

बर्बरीक विष्णु अवतारा, भक्तन हेतु मनुज तनु धारा।
वसुदेव देवकी प्यारे, यशुमति मैया नन्द दुलारे।

मधुसूदन गोपाल मुरारी, बृजकिशोर गोवर्धन धारी।
सियाराम श्री हरि गोविन्दा, दीनपाल श्री बाल मुकुन्दा।

दामोदर रणछोड़ बिहारी, नाथ द्वारिकाधीश खरारी।
नरहरि रूप प्रहलद प्यारा, खम्भ फारि हिरनाकुश मारा।

राधा वल्लभ रुक्मिणी कंता, गोपी बल्लभ कंस हनंता।
मनमोहन चितचोर कहाये, माखन चोरि चोरि कर खाये।

मुरलीधर यदुपति घनश्याम, कृष्ण पतितपावन अभिराम।
मायापति लक्ष्मीपति ईसा, पुरुषोत्तम केशव जगदीशा।

विश्वपति त्रिभुवन उजियारा, दीनबन्धु भक्तन रखवारा।
प्रभु का भेद कोई न पाया, शेष महेश थके मुनियारा।

नारद शारद ऋषि योगिन्दर, श्याम श्याम सब रटत निरन्तर।
कवि कोविद करि सके न गिनन्ता, नाम अपार अथाह अनन्ता।

हर सृष्टि हर युग में भाई, ले अवतार भक्त सुखदाई।
हृदय माँहि करि देखु विचारा, श्याम भजे तो हो निस्तारा।

कीर पड़ावत गणिका तारी, भीलनी की भक्ति बलिहारी।
सती अहिल्या गौतम नारी, भई श्राप वश शिला दुखारी।

श्याम चरण रच नित लाई, पहुँची पतिलोक में जाई।
अजामिल अरु सदन कसाई, नाम प्रताप परम गति पाई।

जाके श्याम नाम अधारा, सुख लहहि दुख दूर हो सारा।
श्याम सुलोचन है अति सुन्दर, मोर मुकुट सिर तन पीताम्बर।

गल वैजयन्तिमाल सुहाई, छवि अनूप भक्तन मन भाई।
श्याम श्याम सुमिरहुं दिनराती, शाम दुपहरि अरु परभाती।

श्याम सारथी सिके रथ के, रोड़े दूर होय उस पथ के।
श्याम भक्त न कहीं पर हारा, भीर परि तब श्याम पुकारा।

रसना श्याम नाम पी ले, जी ले श्याम नाम के हाले।
संसारी सुख भोग मिलेगा, अन्त श्याम सुख योग मिलेगा।

श्याम प्रभु हैं तन के काले, मन के गोरे भोले भाले।
श्याम संत भक्तन हितकारी, रोग दोष अघ नाशै भारी।

प्रेम सहित जे नाम पुकारा, भक्त लगत श्याम को प्यारा।
खाटू में है मथुरा वासी, पार ब्रह्म पूरण अविनासी।

सुधा तान भरि मुरली बजाई, चहुं दिशि नाना जहाँ सुनि पाई।
वृद्ध बाल जेते नारी नर, मुग्ध भये सुनि वंशी के स्वर।

दौड़ दौड़ पहुँचे सब जाई, खाटू में जहाँ श्याम कन्हाई।
जिसने श्याम स्वरूप निहारा, भव भय से पाया छुटकारा।

||दोहा||

श्याम सलोने साँवरे, बर्बरीक तनु धार।
इच्छा पूर्ण भक्त की, करो न लाओ बार।


*Khatu Shyam Chalisa In English*

||doha||

shree guru charan dhyaan dhar, sumiri sachchidaanand.
shyaam chaaleesa bhajat hoon, rach chaipaee chhand..

||chaupaee||

shyaam shyaam bhaji baarambaara, sahaj hee ho bhavasaagar paara.
in sam dev na dooja koee, deen dayaalu na daata hoee.

bheemasuputr ahilavatee jaaya, kaheen bheem ka pautr kahaaya.
yah sab katha sahee kalpaantar, tanik na maanon inamen antar.

barbareek vishnu avataara, bhaktan hetu manuj tanu dhaara.
vasudev devakee pyaare, yashumati maiya nand dulaare.

madhusoodan gopaal muraaree, brjakishor govardhan dhaaree.
siyaaraam shree hari govinda, deenapaal shree baal mukunda.

daamodar ranachhod bihaaree, naath dvaarikaadheesh kharaaree.
narahari roop prahalad pyaara, khambh phaari hiranaakush maara.

raadha vallabh rukminee kanta, gopee ballabh kans hananta.
manamohan chitachor kahaaye, maakhan chori chori kar khaaye.

muraleedhar yadupati ghanashyaam, krshn patitapaavan abhiraam.
maayaapati lakshmeepati eesa, purushottam keshav jagadeesha.

vishvapati tribhuvan ujiyaara, deenabandhu bhaktan rakhavaara.
prabhu ka bhed koee na paaya, shesh mahesh thake muniyaara.

naarad shaarad rshi yogindar, shyaam shyaam sab ratat nirantar.
kavi kovid kari sake na ginanta, naam apaar athaah ananta.

har srshti har yug mein bhaee, le avataar bhakt sukhadaee.
hrday maanhi kari dekhu vichaara, shyaam bhaje to ho nistaara.

keer padaavat ganika taaree, bheelanee kee bhakti balihaaree.
satee ahilya gautam naaree, bhee shraap vash shila dukhaaree.

shyaam charan rach nit laee, pahunchee patilok mein jaee.
ajaamil aru sadan kasaee, naam prataap param gati paee.

jaake shyaam naam adhaara, sukh lahahi dukh door ho saara.
shyaam sulochan hai ati sundar, mor mukut sir tan peetaambar.

gal vaijayantimaal suhaee, chhavi anoop bhaktan man bhaee.
shyaam shyaam sumirahun dinaraatee, shaam dupahari aru parabhaatee.

shyaam saarathee sike rath ke, rode door hoy us path ke.
shyaam bhakt na kaheen par haara, bheer pari tab shyaam pukaara.

rasana shyaam naam pee le, jee le shyaam naam ke haale.
sansaaree sukh bhog milega, ant shyaam sukh yog milega.

shyaam prabhu hain tan ke kaale, man ke gore bhole bhaale.
shyaam sant bhaktan hitakaaree, rog dosh agh naashai bhaaree.

prem sahit je naam pukaara, bhakt lagat shyaam ko pyaara.
khaatoo mein hai mathura vaasee, paar brahm pooran avinaasee.

sudha taan bhari muralee bajaee, chahun dishi naana jahaan suni paee.
vrddh baal jete naaree nar, mugdh bhaye suni vanshee ke svar.

daud daud pahunche sab jaee, khaatoo mein jahaan shyaam kanhaee.
jisane shyaam svaroop nihaara, bhav bhay se paaya chhutakaara.

||doha||

shyaam salone saanvare, barbareek tanu dhaar.
ichchha poorn bhakt kee, karo na lao baar.

The post श्री खाटू श्याम चालीसा-Khatu Shyam Chalisa In Hindi & English appeared first on hindimeaning.com.

श्री गिरिराज चालीसा-Giriraj Chalisa In Hindi & English

$
0
0

*श्री गिरिराज चालीसा*

||दोहा||

बन्दहुँ वीणा वादिनी, धरि गणपति को ध्यान।
महाशक्ति राधा, सहित कृष्ण करौ कल्याण।
सुमिरन करि सब देवगण, गुरु पितु बारम्बार।
बरनौ श्रीगिरिराज यश, निज मति के अनुसार।

||चौपाई||

जय हो जय बंदित गिरिराजा, ब्रज मण्डल के श्री महाराजा।
विष्णु रूप तुम हो अवतारी, सुन्दरता पै जग बलिहारी।
स्वर्ण शिखर अति शोभा पावें, सुर मुनि गण दरशन कूं आवें।
शांत कंदरा स्वर्ग समाना, जहाँ तपस्वी धरते ध्याना।

द्रोणगिरि के तुम युवराजा, भक्तन के साधौ हौ काजा।
मुनि पुलस्त्य जी के मन भाये, जोर विनय कर तुम कूं लाये।
मुनिवर संघ जब ब्रज में आये, लखि ब्रजभूमि यहाँ ठहराये।
विष्णु धाम गौलोक सुहावन, यमुना गोवर्धन वृन्दावन।

देख देव मन में ललचाये, बास करन बहुत रूप बनाये।
कोउ बानर कोउ मृग के रूपा, कोउ वृक्ष कोउ लता स्वरूपा।
आनन्द लें गोलोक धाम के, परम उपासक रूप नाम के।
द्वापर अंत भये अवतारी, कृष्णचन्द्र आनन्द मुरारी।

महिमा तुम्हरी कृष्ण बखानी, पूजा करिबे की मन ठानी।
ब्रजवासी सब के लिये बुलाई, गोवर्धन पूजा करवाई।
पूजन कूं व्यंजन बनवाये, ब्रजवासी घर घर ते लाये।
ग्वाल बाल मिलि पूजा कीनी, सहस भुजा तुमने कर लीनी।

स्वयं प्रकट हो कृष्ण पूजा में, मांग मांग के भोजन पावें।
लखि नर नारि मन हरषावें, जै जै जै गिरिवर गुण गावें।
देवराज मन में रिसियाए, नष्ट करन ब्रज मेघ बुलाए।
छाया कर ब्रज लियौ बचाई, एकउ बूंद न नीचे आई।

सात दिवस भई बरसा भारी, थके मेघ भारी जल धारी।
कृष्णचन्द्र ने नख पै धारे, नमो नमो ब्रज के रखवारे।
करि अभिमान थके सुरसाई, क्षमा मांग पुनि अस्तुति गाई।
त्राहि माम मैं शरण तिहारी, क्षमा करो प्रभु चूक हमारी।

बार बार बिनती अति कीनी, सात कोस परिकम्मा दीनी।
संग सुरभि ऐरावत लाये, हाथ जोड़ कर भेंट गहाए।
अभय दान पा इन्द्र सिहाये, करि प्रणाम निज लोक सिधाये।
जो यह कथा सुनैं चित लावें, अन्त समय सुरपति पद पावैं।

गोवर्धन है नाम तिहारौ, करते भक्तन कौ निस्तारौ।
जो नर तुम्हरे दर्शन पावें, तिनके दुख दूर ह्वै जावे।
कुण्डन में जो करें आचमन, धन्य धन्य वह मानव जीवन।
मानसी गंगा में जो नहावे, सीधे स्वर्ग लोक कूं जावें।

दूध चढ़ा जो भोग लगावें, आधि व्याधि तेहि पास न आवें।
जल फल तुलसी पत्र चढ़ावें, मन वांछित फल निश्चय पावें।
जो नर देत दूध की धारा, भरौ रहे ताकौ भण्डारा।
करें जागरण जो नर कोई, दुख दरिद्र भय ताहि न होई।

श्याम शिलामय निज जन त्राता, भक्ति मुक्ति सरबस के दाता।
पुत्रहीन जो तुम कूं ध्यावें, ताकूं पुत्र प्राप्ति ह्वै जावें।
दण्डौती परिकम्मा करहीं, ते सहजहिं भवसागर तरहीं।
कलि में तुम सक देव न दूजा, सुर नर मुनि सब करते पूजा।

||दोहा||

जो यह चालीसा पढ़ै, सुनै शुद्ध चित्त लाय।
सत्य सत्य यह सत्य है, गिरिवर करै सहाय।
क्षमा करहुँ अपराध मम, त्राहि माम् गिरिराज।
श्याम बिहारी शरण में, गोवर्धन महाराज।


*Giriraj Chalisa In English*

||doha||

bandahun veena vaadinee, dhari ganapati ko dhyaan.
mahaashakti raadha, sahit krshn karau kalyaan.
sumiran kari sab devagan, guru pitu baarambaar.
baranau shreegiriraaj yash, nij mati ke anusaar.

||chaupaee||

jay ho jay bandit giriraaja, braj mandal ke shree mahaaraaja.
vishnu roop tum ho avataaree, sundarata pai jag balihaaree.
svarn shikhar ati shobha paaven, sur muni gan darashan koon aaven.
shaant kandara svarg samaana, jahaan tapasvee dharate dhyaana.

dronagiri ke tum yuvaraaja, bhaktan ke saadhau hau kaaja.
muni pulasty jee ke man bhaaye, jor vinay kar tum koon laaye.
munivar sangh jab braj mein aaye, lakhi brajabhoomi yahaan thaharaaye.
vishnu dhaam gaulok suhaavan, yamuna govardhan vrndaavan.

dekh dev man mein lalachaaye, baas karan bahut roop banaaye.
kou baanar kou mrg ke roopa, kou vrksh kou lata svaroopa.
aanand len golok dhaam ke, param upaasak roop naam ke.
dvaapar ant bhaye avataaree, krshnachandr aanand muraaree.

mahima tumharee krshn bakhaanee, pooja karibe kee man thaanee.
brajavaasee sab ke liye bulaee, govardhan pooja karavaee.
poojan koon vyanjan banavaaye, brajavaasee ghar ghar te laaye.
gvaal baal mili pooja keenee, sahas bhuja tumane kar leenee.

svayan prakat ho krshn pooja mein, maang maang ke bhojan paaven.
lakhi nar naari man harashaaven, jai jai jai girivar gun gaaven.
devaraaj man mein risiyae, nasht karan braj megh bulae.
chhaaya kar braj liyau bachaee, eku boond na neeche aaee.

saat divas bhee barasa bhaaree, thake megh bhaaree jal dhaaree.
krshnachandr ne nakh pai dhaare, namo namo braj ke rakhavaare.
kari abhimaan thake surasaee, kshama maang puni astuti gaee.
traahi maam main sharan tihaaree, kshama karo prabhu chook hamaaree.

baar baar binatee ati keenee, saat kos parikamma deenee.
sang surabhi airaavat laaye, haath jod kar bhent gahae.
abhay daan pa indr sihaaye, kari pranaam nij lok sidhaaye.
jo yah katha sunain chit laaven, ant samay surapati pad paavain.

govardhan hai naam tihaarau, karate bhaktan kau nistaarau.
jo nar tumhare darshan paaven, tinake dukh door hvai jaave.
kundan mein jo karen aachaman, dhany dhany vah maanav jeevan.
maanasee ganga mein jo nahaave, seedhe svarg lok koon jaaven.

doodh chadha jo bhog lagaaven, aadhi vyaadhi tehi paas na aaven.
jal phal tulasee patr chadhaaven, man vaanchhit phal nishchay paaven.
jo nar det doodh kee dhaara, bharau rahe taakau bhandaara.
karen jaagaran jo nar koee, dukh daridr bhay taahi na hoee.

shyaam shilaamay nij jan traata, bhakti mukti sarabas ke daata.
putraheen jo tum koon dhyaaven, taakoon putr praapti hvai jaaven.
dandautee parikamma karaheen, te sahajahin bhavasaagar taraheen.
kali mein tum sak dev na dooja, sur nar muni sab karate pooja.

||doha||

jo yah chaaleesa padhai, sunai shuddh chitt laay.
saty saty yah saty hai, girivar karai sahaay.
kshama karahun aparaadh mam, traahi maam giriraaj.
shyaam bihaaree sharan mein, govardhan mahaaraaj.

The post श्री गिरिराज चालीसा-Giriraj Chalisa In Hindi & English appeared first on hindimeaning.com.

श्री बालाजी चालीसा-Balaji Chalisa In Hindi & English

$
0
0

*श्री बालाजी चालीसा*

|| दोहा ||

श्री गुरू चरण चितलाय के धरें ध्यान हनुमान |
बालाजी चालीसा लिखें दास स्नेही कल्याण ||
विश्व विदित वर दानी संकट हरण हनुमान |
मेंहदीपुर प्रकट भये बालाजी भगवान ||

|| चोपाई ||

जय हनुमान बालाजी देव , प्रकट भए यहाँ तीनों देवा |
प्रेतराज भैरव बलवाना, कोतवाल कप्तान हनुमाना |
मेहदीपुर अवतार लिया है, भक्तो का उध्दार किया है |
बालरूप प्रकटे है यहां पर, संकट वाले आते है जहाँ पर |

डाकनि, शाकनि अरु जिन्दनी, मशान चुडैल भूत भूतनी |
जाके भय से सब भाग जाते, स्याने भोपे यहाँ घबराते |
चौकी बंधन सब कट जाते, दूत मिले आनंद मनाते |
सच्चा है दरबार तिहारा, शरण पडे सुख पावे भारा |

रूप तेज बल अतुलित धामा, सन्मुख जिनके सिय रामा |
कनक मुकुट मणि तेज प्रकाशा, सवकी होवत पूर्ण आशा |
महंत गणेशपुरी गुणीले, भए सुसेवक राम रंगीले |
अद्भुत कला दिखाई कैसी, कलयुग ज्योति जलाई जैसी |

ऊँची ध्वज पताका नभ में, स्वर्ण कलश है उन्नत जग मे |
धर्म सत्य का दंका बाजे, सियाराम जय शंकर राजे |
आना फिराया मुगदर घोटा, भूत जिंद पर पडते सोटा |
राम लक्ष्मण सिय ह्रदय कल्याणा, बाल रूप प्रकटे हनुमाना |

जय हनुमंत हठीले देवा, पुरी परिवार करत है सेवा |
चूरमा, मिश्री, मेवा, पुरी परिवार करत है सेवा |
लड्डू, चूरमा, मिश्री, मेवा, अर्जी दरखास्त लगाऊँ देवा |
दया करे सब विधि बालाजी, लंकट हरण प्रकटे बालाजी |

जय बाबा की जन-जन उचारे, कोटिक जन आए हेरे द्वारे |
बाल समय रवि भक्षहि लीन्हा, तिमिर मय जग कीन्ही तीन्हा|
देवन विनती की अति भारी, छाँड दियो रवि कष्ट निहारी |
लाँघि उदधि सिया सुधि लाए, लक्ष हित संजीवन लाए |

रामानुज प्राण दिवाकर, शंकर सुवन माँ अंजनी चाकर |
केसरी नंदन दुख भव भंजन, रामानंद सदा सुख सुख संदन |
सिया राम के प्राण प्यारे, जय बाबा की भक्तउचारे |
संकट दुख भंजन भगवाना, हया दरहु हे कृप्या निधाना |

सुमर बाल रूप कल्याणा, करे मनोरथ पूर्ण कामा |
अष्ट सिध्दि नव निधि दातारी, भक्त जन आवे बहु भारी |
मेवा अरु मिष्ठान प्रवीना, भेट चढावें धनि अरु दीना |
नृत्य करे नित न्यारे-न्यारे, रिध्दि-सिध्दियाँ जाके द्वारे |

अर्जी का आदेश मिलते ही, भैरव भूत पकडते तब ही |
कोतवाल कप्तान कृपाणी, प्रेतराज संकट कल्याणी |
चौकी बंधन कटते भाई, जो जन करते है सेवकाई |
रामदास बाल भगवंता, मेहदीपुर प्रकटे हनुमंता |

जो जन बालाजी मे आते है, जन्म-जन्म के पाप नशाते |
जल पावन लेकर घर आते, निर्मल हो आनंद मनाते |
क्रूर कठिन संकट भगजावे, सत्य धर्म पथ राह दिखावे |
जो सत पाठ करे चालीसा, तापर प्रसन्न होय बागीसा |
कल्याण स्नेही, स्नेह से गावे, सुख समृध्दि रिध्दि सिध्दि पावे |

|| दोहा ||

मंद बुध्दि मम जानके क्षमा करो गुणखान |
संकट मोचन क्षमहु मम दास स्नेही कल्याण ||


*Balaji Chalisa In English*

|| doha ||

shree guroo charan chitalaay ke dharen dhyaan hanumaan |
baalaajee chaaleesa likhen daas snehee kalyaan ||
vishv vidit var daanee sankat haran hanumaan |
menhadeepur prakat bhaye baalaajee bhagavaan ||

|| chopaee ||

jay hanumaan baalaajee dev , prakat bhe yahaan teenon deva |
pretaraaj bhairav balavaana, kotavaal kaptaan hanumaana |
mehadeepur avataar liya hai, bhakto ka udhdaar kiya hai |
baalaroop prakate hai yahaan par, sankat vaale aate hai jahaan par |

daakani, shaakani aru jindanee, mashaan chudail bhoot bhootanee |
jaake bhay se sab bhaag jaate, syaane bhope yahaan ghabaraate |
chaukee bandhan sab kat jaate, doot mile aanand manaate |
sachcha hai darabaar tihaara, sharan pade sukh paave bhaara |

roop tej bal atulit dhaama, sanmukh jinake siy raama |
kanak mukut mani tej prakaasha, savakee hovat poorn aasha |
mahant ganeshapuree guneele, bhe susevak raam rangeele |
adbhut kala dikhaee kaisee, kalayug jyoti jalaee jaisee |

oonchee dhvaj pataaka nabh mein, svarn kalash hai unnat jag me |
dharm saty ka danka baaje, siyaaraam jay shankar raaje |
aana phiraaya mugadar ghota, bhoot jind par padate sota |
raam lakshman siy hraday kalyaana, baal roop prakate hanumaana |

jay hanumant hatheele deva, puree parivaar karat hai seva |
choorama, mishree, meva, puree parivaar karat hai seva |
laddoo, choorama, mishree, meva, arjee darakhaast lagaoon deva |
daya kare sab vidhi baalaajee, lankat haran prakate baalaajee |

jay baaba kee jan-jan uchaare, kotik jan aae here dvaare |
baal samay ravi bhakshahi leenha, timir may jag keenhee teenha|
devan vinatee kee ati bhaaree, chhaand diyo ravi kasht nihaaree |
laanghi udadhi siya sudhi lae, laksh hit sanjeevan lae |

raamaanuj praan divaakar, shankar suvan maan anjanee chaakar |
kesaree nandan dukh bhav bhanjan, raamaanand sada sukh sukh sandan |
siya raam ke praan pyaare, jay baaba kee bhaktuchaare |
sankat dukh bhanjan bhagavaana, haya darahu he krpya nidhaana |

sumar baal roop kalyaana, kare manorath poorn kaama |
asht sidhdi nav nidhi daataaree, bhakt jan aave bahu bhaaree |
meva aru mishthaan praveena, bhet chadhaaven dhani aru deena |
nrty kare nit nyaare-nyaare, ridhdi-sidhdiyaan jaake dvaare |

arjee ka aadesh milate hee, bhairav bhoot pakadate tab hee |
kotavaal kaptaan krpaanee, pretaraaj sankat kalyaanee |
chaukee bandhan katate bhaee, jo jan karate hai sevakaee |
raamadaas baal bhagavanta, mehadeepur prakate hanumanta |

jo jan baalaajee me aate hai, janm-janm ke paap nashaate |
jal paavan lekar ghar aate, nirmal ho aanand manaate |
kroor kathin sankat bhagajaave, saty dharm path raah dikhaave |
jo sat paath kare chaaleesa, taapar prasann hoy baageesa |
kalyaan snehee, sneh se gaave, sukh samrdhdi ridhdi sidhdi paave |

|| doha ||

mand budhdi mam jaanake kshama karo gunakhaan |
sankat mochan kshamahu mam daas snehee kalyaan ||

The post श्री बालाजी चालीसा-Balaji Chalisa In Hindi & English appeared first on hindimeaning.com.

Viewing all 910 articles
Browse latest View live


<script src="https://jsc.adskeeper.com/r/s/rssing.com.1596347.js" async> </script>