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बृहस्पति ग्रह-Jupiter Planet In Hindi

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बृहस्पति ग्रह (Jupiter In Hindi) :

बृहस्पति ग्रह सूर्य से पांचवें नंबर का और हमारे सौरमंडल का सबसे बड़ा ग्रह है। बृहस्पति का हमारे नवग्रहों में उच्चतम स्थान है और इन्हें सबसे प्रभावशाली ग्रह माना गया है। बृहस्पति वैदिक ज्योतिष में देवताओं के भी शिक्षक और गुरु माने जाते हैं। बृहस्पति एक बहुत ही शुभ ग्रह तथा भाग्य, नियम, धर्म, दर्शन, अध्यात्म, धन और संतान का प्रतिनिधित्व करता है।

अनुकूल होने पर यह ग्रह नाम, शोहरत, सफलता, सम्मान, धन, संतान और संतान के साथ अच्छे संबंधों देता है। सौर मंडल में मौजूद सभी ग्रहों की तुलना में यह ढाई गुना अधिक भारी है। बृहस्पति ग्रह को शनि, अरुण और वरुण के साथ एक गैसीय ग्रह के रूप में वर्गीकृत किया गया है। इन चारों ग्रहों को बाहरी ग्रह के रूप में जाना जाता है।

इस ग्रह को प्राचीनकाल से ही खगोलविदों द्वारा जाना जाता है और यह अनेकों संस्कृतियों की पौराणिक कथाओं और धार्मिक विश्वासों के साथ जुड़ा हुआ था। इसे जब पृथ्वी से देखा गया तब बृहस्पति -2.94 के सापेक्ष कांतिमान तक पहुंच सकता है, छाया डालने लायक पर्याप्त उज्जवल, जो इसे चंद्रमा और शुक्र के बाद आसमान की औसत तृतीय सर्वाधिक चमकीली वस्तु बनाता है।

अपने तेज घूर्णन की वजह से बृहस्पति का आकार एक चपटा उपगोल है। बृहस्पति ग्रह मुख्य रूप से गैसों का बना है और इसलिए एक गैस की दिग्गज कंपनी के रूप में जाना जाता है। इसके बाहरी वातावरण में विभिन्न अक्षांशों पर कई पृथक दृश्य पट्टियाँ नजर आती है जो अपनी सीमाओं के साथ अलग-अलग वातावरण के परिणामस्वरूप बनती है।

यह ग्रह एक शक्तिशाली चुंबकीय क्षेत्र और एक धुंधले ग्रहीय वलय प्रणाली से घिरा हुआ है। बृहस्पति ग्रह का अनेक मौकों पर रोबोटिक अंतरिक्ष यान द्वारा विशेष रूप से पहले पायोनियर और वॉयजर मिशन के दौरान और बाद में गैलीलियों यान के द्वारा अंवेषण किया जाता रहा है। फरवरी 2007 में न्यू होराएजंज प्लूटो सहित बृहस्पति की यात्रा करने वाला अंतिम अंतरिक्ष यान था। इस यान की गति बृहस्पति के गुरुत्वाकर्षण का प्रयोग कर बढाई गई थी।

बृहस्पति ग्रह की रुपरेखा :

बृहस्पति ग्रह का द्रव्यमान 18,98,130 खरब किलोग्राम है। बृहस्पति ग्रह का भूमध्य रेखिए व्यास 1,42,984 किलोमीटर और दृविय व्यास 1,33,709 किलोमीटर है। बृहस्पति ग्रह की भूमध्यरेखा की लंबाई 4, 39,264 किलोमीटर और सूर्य से दूरी 77 करोड़, 83 लाख 40 हजार 821 किलोमीटर है। बृहस्पति के ज्ञात उपग्रहों की संख्या 67 है। बृहस्पति ग्रह का एक साल पृथ्वी के 11.86 साल के बराबर होता है। बृहस्पति ग्रह की सतह का औसतन तापमान -108०C होता है।

बृहस्पति ग्रह का गठन :

बृहस्पति प्राथमिक तौर पर गैसों और तरल पदार्थों से बना हुआ है। चार गैसीय ग्रहों में सबसे बड़ा होने के साथ यह 1,42,984 किलोमीटर विषुववृत्तिय व्यास के साथ सौरमंडल का भी सबसे बड़ा ग्रह है। बृहस्पति का 1.326 ग्राम/सेंटीमीटर3 का घनत्व गैसीय ग्रहों में दूसरा सबसे अधिक लेकिन सभी चार स्थलीय ग्रहों से कम है।

बृहस्पति ग्रह की रासायनिक संरचना :

बृहस्पति ग्रह का उपरी वायुमंडल 88-92% हाइड्रोजन और 8-92% हीलियम से बना है और यहाँ प्रतिशत का तात्पर्य अणुओं की मात्रा से है। हीलियम परमाणु का द्रव्यमान हाइड्रोजन परमाणु से चार गुना अधिक होता है। यह संरचना तब बदल जाती है जब इसके द्रव्यमान के अनुपात को विभिन्न परमाणुओं के योगदान के रूप में वर्णित किया जाता है।

इस तरह से वातावरण लगभग 75% हाइड्रोजन और 24% हीलियम द्रव्यमान द्वारा और शेष एक प्रतिशत द्रव्यमान अन्य तत्वों से मिलकर बना होता है। इसके आंतरिक भाग में घने पदार्थ मिलते हैं इस प्रकार मौटे तौर पर वितरण 71% हाइड्रोजन, 24% हीलियम और 5% अन्य तत्वों के द्रव्यमान का होता है।

बृहस्पति ग्रह का चुंबकीय क्षेत्र हमारे सौर मंडल के किसी भी अन्य ग्रह से ज्यादा शक्तिशाली है और वैज्ञानिक कहते हैं कि इसकी वजह से बृहस्पति के भीतर की धातु हाइड्रोजन है। बृहस्पति के वायुमंडल में मीथेन, जल वाष्प, अमोनिया और सिलिकॉन आधारित यौगिक मिले है। इसमें कार्बन, इथेन, हाइड्रोजन सल्फाइड, फोस्फाइन और सल्फर के होने के संकेत मिले हैं।

वायुमंडल के बाह्यतम परत में जमीं हुई अमोनिया के क्रिस्टल होते हैं। अवरक्त पराबैंगनी मापन के माध्यम से जांचने पर बेंजीन और अन्य हाइड्रोकार्बन की मात्रा भी पाई गई है। उपरी वायुमंडल में नियान की मात्रा 20 भाग प्रति दस लाख है जो सूर्य में प्रचुर मात्रा में लगभग 10 भाग प्रति दस लाख होती है। स्पेक्ट्रोस्कोपी के आधार पर शनि संरचना में बृहस्पति के समान समझा जाता है लेकिन अन्य दो गैसीय ग्रहों युरेनस और नेपच्यून के पास अपेक्षाकृत बहुत कम हाइड्रोजन और हीलियम है।

बृहस्पति ग्रह का द्रव्यमान :

बृहस्पति का द्रव्यमान हमारे सौरमंडल के अन्य सभ ग्रहों के संयुक्त द्रव्यमान का 2.5 गुना है। यह इतना बड़ा है कि सूर्य के साथ इसका बेरिसेंटर सूर्य की सतह के उपर सूर्य के केंद्र से 1.068 सौर त्रिज्या पर स्थित है। इस ग्रह की त्रिज्या पृथ्वी से 11 गुना बड़ी है पर यह अपेक्षाकृत बहुत कम घना है।

बृहस्पति ग्रह का आयतन 1321 पृथ्वियों के बराबर है तो द्रव्यमान पृथ्वी से मात्र 318 गुना है। बृहस्पति ग्रह की त्रिज्या सूर्य की त्रिज्या का लगभग 1/10 है और इसका द्रव्यमान सौर द्रव्यमान का हजारवां हिस्सा मात्र है इसलिए दोनों निकायों का घनत्व समान है। इस ग्रह को एक सितारा बनने हेतु हाइड्रोजन संलयन के लिए 75 गुना बड़ा होने की आवश्यकता होगी सबसे छोटे लाल बौना तारे की त्रिज्या गुरु से लगभग 30% ज्यादा है।

इसके बाद भी गुरु ग्रह अभी भी सूर्य से प्राप्त गर्मी की तुलना में ज्यादा विकरित करता है और यह प्राप्त कुल सौर विकिरण के बराबर ही ऊष्मा की मात्रा अपने भीतर उत्पादित करता है। यह अतिरिक्त तापीय विकिरण उष्मप्रवैगिकी प्रकिया के माध्यम से केल्विन-हेल्महोल्ट्ज तंत्र द्वारा उत्पन्न होती है। इस प्रक्रिया के परिणामस्वरूप ग्रह में प्रतिवर्ष लगभग 2 सेंटीमीटर संकुचन होता है। पहले जब यह ग्रह बना था तब यह बहुत ही तप्त था और इसका व्यास भी वर्तमान से दो गुना था।

बृहस्पति ग्रह की आंतरिक संरचना :

बृहस्पति का घना कोर तत्वों के एक मिश्रण के साथ बना है जो कुछ हीलियम युक्त तरल हाईड्रोजन धातु की परत से ढंका है और इसकी बाहरी परत मुख्य रूप से आणविक हाइड्रोजन से बनी हुई है। इस आधारभूत रुपरेखा के अतिरिक्त वहां अभी भी बहुत अनिश्चितता है।

इतनी गहराई के पदार्थों पर ताप और दाब के गुणों को देखते हुए प्रायः इसके कोर को चट्टानी जैसा माना गया है परन्तु इसकी विस्तृत संरचना अज्ञात है। सन् 1997 में गुरुत्वाकर्षण माप द्वारा कोर के अस्तित्व का सुझाव दिया गया था जो इशारा कर रहा है कि कोर का द्रव्यमान पृथ्वी के द्रव्यमान का 12 से 45 गुना या बृहस्पति के कुल द्रव्यमान का लगभग 4%-14% है। इसका कोर क्षेत्र घने धातु हाइड्रोजन से घिरा हुआ है जो बाहर की तरफ बृहस्पति की त्रिज्या के लगभग 78% तक फैला है।

हीलियम और नियान वर्षा की बूंदों के रूप में इस परत से होकर तेजी से नीचे की तरफ बरसते हैं जिससे उपरी वायुमंडल में इन तत्वों की बहुतायत में कमी हो जाती है। धातु हाइड्रोजन की परत के ऊपर हाइड्रोजन का पारदर्शी आंतरिक वायुमंडल स्थित है। इस गहराई पर तापमान क्रांतिक तापमान के ऊपर होता है जो हाईड्रोजन के लिए सिर्फ 33 केल्विन है।

इस अवस्था में द्रव और गैस में कोई भेद नहीं रह जाता है तब हाइड्रोजन को परम क्रांतिक तरल अवस्था में होना कहा जाता है। ऊपरी परत में गैस की तरह व्यवहार करना हाइड्रोजन के लिए ज्यादा सुगम होता है जो नीचे की तरफ विस्तार के साथ 1000 किलोमीटर गहराई तक बना रहता है और ज्यादा गहराई में यह तरल जैसा होता है।

एक बार नीचे उतर जाने पर गैस धीरे-धीरे घर्म और घनी होती जाती है लेकिन भौतिक रूप से इसकी कोई स्पष्ट सीमा रेखा नहीं है। बृहस्पति के भीतर कोई की तरफ जाने से ताप और दाब में तेजी से वृद्धि होती है। यह माना जाता है कि 10,000 केल्विन तापमान और 200 GPa दबाव के चरण संक्रमण क्षेत्र पर जहाँ हाइड्रोजन अपने क्रांतिक बिंदु से ज्यादा गर्म होती है और धातु बन जाती है। कोर की सीमा पर तापमान 36,000 केल्विन और आंतरिक दबाव 3000-4500 GPa होने का अनुमान है।

बृहस्पति ग्रह का वायुमंडल :

बृहस्पति पर सौरमंडल का सबसे बड़ा ग्रहीय वायुमंडल है जो ऊँचाई में 5000 किलोमीटर तक फैला हुआ है। बृहस्पति ग्रह पर कोई धरातल नहीं है इसलिए साधारणतया वायुमंडल के आधार को उस बिंदु पर माना जाता है जहाँ वायुमंडलीय दाब 10 बार इकाई के समान या पृथ्वी के सतही दबाव का 10 गुना हो।

बृहस्पति ग्रह की बादल परत :

बृहस्पति हमेशा अमोनिया क्रिस्टल और संभवतः अमोनियम हाइड्रोसल्फाइड के बादलों से ढंका रहता है। यह बादल ट्रोपोपाउस में स्थित हैं और विभिन्न अक्षांशों की धारियों में व्यवस्थित है इन्हें उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों के रूप में जाना जाता है। इन धारियों को हल्के रंग के क्षेत्रों और गहरे रंग की पट्टियों में उपविभाजित किया गया है।

इन विरोधी परिसंचरण आकृतियों की पारस्परिक क्रिया तूफान और अस्तव्यस्तता की वजह होती है। क्षेत्रों में पवन की गति 100 मीटर/सेकेण्ड होना आम बात है। क्षेत्रों की चौडाई, रंग और तीव्रता में साल-दर-साल भिन्नता देखी गई है लेकिन उनमें इतनी स्थिरता बनी रहती है कि खगोलविद पहचानकर उन्हें कोई नाम दे सके।

बादल परत की गहराई लगभग 50 किलोमीटर है और यह बादलों के दो पटवों से मिलकर बनी है। एक निचला मोटा पटाव और एक पतला साफ सुथरा क्षेत्र। बृहस्पति ग्रह के वातावरण में बिजली की चमक के प्रमाण मिलने से लगता है कि अमोनिया परत के अंदर जलीय बादलों की एक पतली परत हो सकती है।

बिजली की यह चमक जलीय ध्रुवता की वजह से होती है जो जलीय बादलों को बिजली उत्पादन के लिए जरूरी पृथक आवेश बनाने के लिए सक्षम बनाती है। यह विद्युतीय चमक पृथ्वी पर होने वाली बिजली की चमक से हजार गुना तक शक्तिशाली हो सकती है। बढती आंतरिक गर्मी से प्रेरित होकर जलीय बादल गरज का रूप ले सकते है। बृहस्पति के बादलों का नारंगी और भूरापन यौगिकों द्वारा उमड़ने की वजह से है और रंगों में यह बदलाव तब होता है जब सूर्य का पराबैंगनी प्रकाश इसे उजागर करता है।

बृहस्पति पर विशाल लाल धब्बा और अन्य छोटे भंवर :

बृहस्पति पर सबसे जानी पहचानी आकृति विशाल लाल धब्बा या ग्रेट रेड स्पॉट है। यह पृथ्वी से भी बड़ा एक प्रति चक्रवाती तूफान है जो भूमध्यरेखा के दक्षिण में 22० पर स्थित है। इसके अस्तित्व को सन् 1831 से या इससे भी पहले सन् 1665 से जान लिया गया था। गणितीय मॉडल बताते है कि यह तूफान शाश्वत है और इस आकृति का अस्तित्व चिरस्थायी है।

इस तूफान का आकार इतना पर्याप्त है कि इसे 12 सेंटीमीटर एपर्चर या उससे अधिक भू-आधारित दूरदर्शी से आसानी से देखा जा सकता है। यह अंडाकार धब्बा 6 घंटे की अवधि के संग वामावर्त घूर्णन करता है। इसकी लंबाई 24 से 40,000 किलोमीटर और चौडाई 12 से 14,000 किलोमीटर है।

यह इतना बड़ा है कि इसमें तीन पृथ्वियां समा जाए। इस तूफान की अधिकतम ऊँचाई उपरी बादलों से भी 8 किलोमीटर उपर है। इस गैसीय ग्रह के अशांत वातावरण में इस प्रकार के तूफान होना आम बात है। बृहस्पति पर सफेद और भूरे रंग के बेनाम अनेको छोटे धब्बे है। सफेद धब्बे उपरी वातावरण के अंदर अपेक्षाकृत शांत बादल से मिलकर बने है इसके विपरीत भूरे धब्बे गर्म होते है और सामान्य बादल परत के अंदर बनते है।

इससे पहले वॉयजर इस आकृति की तूफानी प्रवृत्ति की पुष्टि करता, यह जान लिया गया था कि इस धब्बे का संबंध इस ग्रह की किसी गहरी रचना से नहीं था और इस बात के सबूत थे जैसे – इसकी घूर्णन गति अपने आस-पास मौजूद वातावरण की अपेक्षा भिन्न है और कभी यह तेज घूमता है तो कभी बहुत धीरे। यह तूफानी धब्बा अपने दर्ज इतिहास के दौरान किसी भी संभावित नियत आवर्ती निशानी के सापेक्ष ग्रह के चारों तरफ कई बार यात्रा कर चुका है।

बृहस्पति ग्रह के ग्रहीय छल्ले :

बृहस्पति ग्रह में एक धुंधली वलय प्रणाली है जो मुख्यतः तीन भागो में बनी है। अंदरूनी छल्ला, अपेक्षाकृत चमकीला मुख्य छल्ला और बाहरी पतला छल्ला। ऐसा लगता है कि यह छल्ले शनि ग्रह के छल्लों जैसे बर्फीले न होकर धूल से बने हैं। इसका मुख्य छल्ला एड्रास्टीया और मीटस चंद्रमा की सामग्री के छिटकने से बना है।

यह चाँद पर वापस गिरने वाली वह सामग्री है जिसे बृहस्पति के शक्तिशाली गुरुत्वाकर्षण ने अपनी तरफ खींच लिया है। इस घूमती हुई सामग्री की कक्षा की दिशा बृहस्पति की तरफ है। इसी प्रकार थीबी और ऐमलथीया चंद्रमा, दो अलग-अलग घटकों की धूलयुक्त बाहरी छल्ले बनाते है। ऐमलथीया की कक्षा के साथ वहां चट्टानी छल्ले के भी प्रमाण मिले है जो इसी चंद्रमा के मलबे से बने हो सकते है।

बृहस्पति ग्रह का मेग्नोटोस्फेयर :

बृहस्पति ग्रह का व्यापक चुंबकीय क्षेत्र या मेग्नेटोस्फेयर पृथ्वी की तुलना में 14 गुना शक्तिशाली है। भूमध्यरेखा पर 4.2 गॉस से लेकर ध्रुवों पर 10 से 14 गॉस तक का विचरण इसे सौरमंडल का सबसे शक्तिशाली चुंबकीय क्षेत्र बनता है। इसकी उत्पत्ति भंवर से होती है जो हाइड्रोजन कोर के अंदर सुचालक पदार्थों के घूमने से बनती है।

लो चंद्रमा पर ज्वालामुखी बड़ी मात्रा में सल्फरडाई आक्साइड गैस उत्सर्जित करके अपनी कक्षा के साथ गैस टॉरस बनाता है। यह गैस मेग्नोटोस्फेयर में आयनिकृत होकर सल्फर और ऑक्सीजन आयन उत्पादित करती है। ये दोनों बृहस्पति के वायुमंडल से उत्पन्न हाइड्रोजन आयनों से मिलकर बृहस्पति के विषुवव्रत तल में एक प्लाज्मा चादर बनाते है।

इस चादर में प्लाज्मा ग्रह के साथ-साथ घूमने लगता है और चुंबकीय डिस्क की तुलना में द्विध्रुवीय विरूपण की वजह बनता है। प्लाज्मा चादर के अंदर इलेक्ट्रोन एक शक्तिशाली रेडियो तरंग उत्पन्न करते है जो 0.6 से 0.3 मेगा हर्ट्ज परास का विस्फोट उत्पन्न करता है। बृहस्पति ग्रह का मेग्नेटोस्फेयर ग्रह के ध्रुवीय क्षेत्रों से तीव्र धारा की रेडियो उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार है।

लो चन्द्रमा पर ज्वालामुखी गतिविधि , बृहस्पति ग्रह के मेग्नेटोस्फेयर में गैस फेंककर ग्रह के आस-पास कणों का टॉरस बनाती है। जैसे ही लो टॉरस से होकर गुजरता है टकराहट से आल्फवेन तरंग उत्पन्न होती है जो आयनित पदार्थ को वहन कर बृहस्पति के ध्रुवीय क्षेत्रों में ले जाती है।

परिणामस्वरूप, साइक्लोट्रोन मेसर तंत्र के माध्यम से रेडियो तरंगें उत्पन्न होती है और सौर ऊर्जा एक शंकू आकार की सतह के साथ बाहर की तरफ फैलती है। जब पृथ्वी इस शंकु को काटती है, बृहस्पति से रेडियों उत्सर्जन, सौर रेडियो उत्सर्जन से ज्यादा हो सकता है।

बृहस्पति ग्रह की परिक्रमा एवं घूर्णन :

बृहस्पति एक ही ऐसा ग्रह है जिसका सूर्य के संग साझा द्रव्यमान केंद्र सूर्य के आयतन से बाहर स्थित है। बृहस्पति की सूर्य से औसत दूरी 77 करोड़ 80 लाख किलोमीटर है तथा सूर्य का एक पूरा चक्कर पृथ्वी के प्रत्येक 11.86 साल में लगाता है। शनि ग्रह की तुलना में दो-तिहाई कक्षीय अवधि सौरमंडल के इन दो बड़े ग्रहों के बिच 5:2 का परिक्रमण तालमेल बनाता है।

बृहस्पति ग्रह के सूर्य के 5 चक्कर और शनि सूर्य के दो चक्कर समान समय में लगाते है। इसकी अंडाकार कक्षा पृथ्वी की तुलना में 1.31० झुकी हुई है। 0.048 विकेंद्रता की वजह से गुरु की सूर्य से दूरी विविधतापूर्ण है। इसके उपसौर और अपसौर के मध्य का अंतर 7.5 करोड़ किलोमीटर है।

बृहस्पति ग्रह का अक्षीय झुकाव केवल 3.13० होने से पृथ्वी और मंगल जैसे महत्वपूर्ण मौसमी परिवर्तनों का इस ग्रह को कोई भी अनुभव नहीं है बृहस्पति का घूर्णन सौरमंडल के सभी ग्रहों में सबसे तेज है यह अपने अक्ष पर एक घूर्णन 10 घंटे से थोड़े कम समय में पूरा करता है जिससे भूमध्य रेखीय उभार बनता है जो भूआधारित दूरदर्शी से आसानी से दिखाई देता है।

इस घूर्णन को 24.79 मीटर/सेकेण्ड2 भूमध्य रेखीय सतही गुरुत्वाकर्षण की तुलना में भूमध्य रेखा पर 1.67 मीटर/सेकेण्ड2 केंद्राभिमुख त्वरण की आवश्यकता होती है इस प्रकार भूमध्य रेखीय सतह पर परिणामी त्वरण सिर्फ 23.12 मीटर/सेकेण्ड2 होता है। इस ग्रह का आकार चपटा उपगोल जैसा है जिसका अर्थ है इसके भूमध्यरेखा के आर-पार का व्यास इनके ध्रुवों के मध्य के व्यास से 9275 किलोमीटर ज्यादा लंबा है।

बृहस्पति एक ठोस ग्रह नहीं है इसके उपरी वायुमंडल में अनेक घूर्णन गतियाँ है। इसके ध्रुवीय वायुमंडल का घूर्णन भूमध्यरेखीय वायुमंडल से 5 मिनट लंबा है। गतियों की तीन प्रणालियों को सापेक्षिक निशानी के रूप में प्रयोग किया गया है विशेषरूप से जब वायुमंडलीय लक्षणों का अभिलेख किया जाता है।

प्रणाली एक में 10० उत्तर से 10० दक्षिण अक्षांशों पर लागू 9 घंटे 50 मिनट 30.0 सेकेण्ड पर सबसे कम अवधि। प्रणाली दो में इसके उत्तर और दक्षिण के सभी अक्षांशों पर लागू घूर्णन अवधि 9 घंटे 55 मिनट 40.6 सेकेण्ड। तीसरी प्रणाली को पहले रेडियो खगोलविद ने परिभाषित किया था यह ग्रह के मेग्नेटोस्फेयर से मेल खाता है, यह अवधि बृहस्पति की अधिकारिक घूर्णन अवधि है।

बृहस्पति का अवलोकन :

बृहस्पति आसमान में चौथा सबसे चमकदार निकाय है किसी समय पर मंगल ग्रह बृहस्पति से उज्ज्वल दिखाई देता है। यह पृथ्वी के संदर्भ में बृहस्पति की स्थिति पर निर्भर करता है। यह दृश्य परिमाण में भिन्न हो सकते हैं जैसे निम्न विमुखता पर -2.9 जैसी तेज चमक से लेकर सूर्य के साथ संयोजन के दौरान -1.6 जैसा मंद। बृहस्पति का कोणीय व्यास भी इसी तरह 50.1 से 29.8 आर्क सेकेंडों तक बदलता है।

अनुकूल विमुखता तब पाई जाती है जब बृहस्पति अपसौर से होकर गुजर रहा होता है। यह स्थिति हर चक्कर में एक बार पाई जाती है जैसे बृहस्पति मार्च 2011 में अपसौर के पास पहुंचा , सितंबर 2010 में एक अनुकूल विमुखता थी। सूर्य के चारों तरफ बृहस्पति के साथ कक्षीय दौड़ में पृथ्वी हर 398.2 दिनों पर बृहस्पति को पार कर लेती है इस अवधि को एक संयुक्त काल कहा जाता है।

इस स्थिति में बृहस्पति पृष्ठभूमि सितारों के संदर्भ में प्रतिगामी गति अंतर्गत गुजरता दिखाई देता है। यही वजह है कि इस अवधि के लिए बृहस्पति रात्रि आसमान में पीछे जाता हुआ प्रतीत होता है एक पश्च गति का प्रदर्शन करता है। बृहस्पति की 12 वर्षीय कक्षीय अवधि राशिचक्र के दर्जन ज्योतिषीय चिन्हों से मेल खाती है और यह चिन्हों के ऐतिहासिक मूल हो सकते है।

यही वजह है हर बार जब बृहस्पति विमुखता तक पहुंचता है, यह पहले की तरफ लगभग 30० खिसक गया होता है जो एक राशि चक्र की चौडाई है। बृहस्पति की कक्षा पृथ्वी की कक्षा से बाहर की तरफ है, बृहस्पति का स्थिति कोण जैसा पृथ्वी से देखा गया, कभी 11.5० से अधिक नहीं होता है। यही वजह है जब भूआधारित दूरबीन के माध्यम से इसे देखा जाता है, ग्रह हमेशा लगभग पूरी तरह से प्रदीप्त दिखाई देता है। सिर्फ बृहस्पति के लिए अंतरिक्ष यान मिशन के दौरान ही इस ग्रह का अर्द्ध चंद्राकर रूप प्राप्त किया गया।

बृहस्पति ग्रह का पूर्व दूरबीन अनुसंधान :

बृहस्पति ग्रह का प्रक्षेपण 7 वीं या 8 वीं शताब्दि ईपू के बेबिलोनीयन खगोलविदों से होता चला आ रहा है। चीनी खगोल विज्ञान इतिहासकार जि जेझोंग ने दावा किया है कि एक चीनी खगोलशास्त्री गैन डी ने बिना दृश्य साधनों की मदद के 362 ईपू में बृहस्पति के चंद्रमाओं में से एक की खोज की है।

अगर सही है तो यह गैलिलियो की खोज से लगभग दो सहस्त्राब्दियों पहले की बात होगी। अपनी दूसरी सदी की अल्मागेस्ट कृति में हेल्लेनिस्टिक खगोलविद क्लाडियस टोलेमस ने पृथ्वी के सापेक्ष बृहस्पति की गति की व्याख्या के लिए डेफेरेंटस और एपिसाइकल्स पर आधारित एक भुकेंद्रिय ग्रहीय मॉडल का निर्माण किया जिसने पृथ्वी के चारों तरफ इसकी कक्षीय अवधि 4332.38 या 11.86 सालों के रूप में दी।

499 में भारतीय गणित और खगोल विज्ञान के उत्तम युग से एक गणितज्ञ खगोलशास्त्री, आर्यभट्ट ने भी बृहस्पति की कक्षीय अवधि का अनुमान 4332.2722 दिन या 11.86 सालों के रूप में लगाने के लिए एक भुकेंद्रिय मॉडल का इस्तेमाल किया था।

बृहस्पति ग्रह का भू-आधारित दूरदर्शी अनुसंधान :

सन् 1610 में गैलिलियो गैलिली ने एक दूरदर्शी का प्रयोग करके बृहस्पति के चार बड़े चंद्रमाओं – आयो, युरोपा, गैनिमीड और कैलीस्टो की खोज की यह गैलिलियाई चन्द्रमा के रूप में जाने जाते है और पृथ्वी के अतिरिक्त अन्य चंद्रमाओं का पहला दूरदर्शीय अवलोकन माना जाता है। यह गैलिलियो की भी खगोलीय गति की एक प्रथम खोज थी जिसके केंद्र पर स्पष्ट रूप से पृथ्वी नहीं थी।

यह कोपर्निकस के ग्रहों की गति का सूर्य केंद्रीय सिद्धांत के पक्ष में एक प्रमुख बात थी, गैलिलियो के इस कोपर्निकस सिद्धांत के मुखर समर्थन ने उन्हें न्यायिक जाँच के भयावह घेरे में ला खड़ा किया। सन् 1660 के दौरान बृहस्पति पर धब्बों और रंगीन पट्टियों की खोज के लिए कैसिनी ने एक नई दूरबीन का उपयोग किया और ध्यान से देख तो ग्रह चपटा दिखाई दिया।

वे ग्रह की घूर्णन अवधि का अनुमान लगाने में भी सक्षम थे। सन् 1690 में कैसिनी ने देखा कि वातावरण भिन्न-भिन्न घूर्णन के अधीन चलायमान है। विशाल लाल धब्बा बृहस्पति के दक्षिणी गोलार्द्ध में एक प्रख्यात अंडाकार आकृति है इसे सन् 1664 में रॉबर्ट हुक द्वारा पहले देखा गया हो सकता है और सन् 1665 में गियोवन्नी कैसिनी द्वारा हालाँकि यह विवादस्पद है।

औषध विक्रेता हेनरिक स्च्वाबे ने सन् 1831 में विशाल लाल धब्बे के विस्तार को दिखाने के लिए सबसे पहले ज्ञात आरेखण प्रस्तुत किया। लाल धब्बा कथित तौर पर सन् 1878 में विशिष्ट बनने से पहले सन् 1665 और 1708 के मध्य कई मौकों पर दृष्टि से खो गया था। यह सन् 1883 और 20 वीं सदी के आरंभ में लुप्त होने के रूप में दर्ज हुआ था।

बृहस्पति ग्रह का रेडियो दूरदर्शी अनुसंधान :

सन् 1955 में बर्नार्ड बर्क और केनेथ फ्रेंकलिन ने बृहस्पति से आने वाली 22.2 मेगाहर्ट्ज रेडियो संकेतों की बौछारों का पता लगाया। बौछारों की यह अवधि ग्रह के घूर्णन से मेल खाई और वे इस जानकारी का इस्तेमाल कर घूर्णन दर को परिष्कृत करने में भी सक्षम थे।

बृहस्पति से आने वाली रेडियो बौछारें दो रूपों में पाई गई थी कई सेकेण्ड तक चलने वाली लंबी बौछारें और छोटी बौछारें जिसकी अवधि सेकेण्ड के 100 वें भाग से कम थी। वैज्ञानिकों ने पाया है कि बृहस्पति से प्रसारित रेडियो संकेतों के तीन रूप थे। पहला संकेत यह था कि डेकामीट्रिक रेडियो बौछारें बृहस्पति के घूर्णन के साथ बदलती है और बृहस्पति के चुंबकीय क्षेत्र के साथ आयो के संपर्क से प्रभावित हो रही है।

दूसरा संकेत यह था कि डेसीमीट्रिक रेडियो उत्सर्जन सन् 1959 में पहली बार फ्रैंक ड्रेक और हेन ह्वातुम द्वारा अवलोकित की गई। इस संकेत की उत्पत्ति बृहस्पति भूमध्य रेखा के इर्द-गिर्द की एक टॉरस आकार की पट्टी से हुई थी। यह संकेत बृहस्पति के चुंबकीय क्षेत्र में त्वरित इलेक्ट्रानों से साइक्लोट्रोन विकिरण की वजह से होता है। तीसरा संकेत यह था कि तापीय विकिरण बृहस्पति के वातावरण में गर्मी द्वारा उत्पादित होता है।

बृहस्पति ग्रह का अंवेषण :

सन् 1973 के बाद से कई स्वचालित अंतरिक्ष यानों ने बृहस्पति का दौरा किया है विशेष रूप से उल्लेखनीय पायोनियर 10 अंतरिक्ष यान है, बृहस्पति के इतना समीप पहुंचने वाला पहला अंतरिक्ष यान जो सौरमंडल के इस बड़े ग्रह के गुणों और तथ्यों की जानकारी वापस भेज सके।

सौरमंडल के अंदर अन्य ग्रहों के लिए उड़ान ऊर्जा की कीमत पर संपन्न होती है जो अंतरिक्ष यान के वेग में शुद्ध परिवर्तन, धक्का या डेल्टा-V के द्वारा वर्णित किया जाता है। पृथ्वी से बृहस्पति के लिए निम्न पृथ्वी कक्षा से होहमान्न स्थानांतरण कक्षा में प्रवेश के लिए एक 6.3 किलोमीटर/सेकेण्ड डेल्टा-V की आवश्यकता होती है।

तुलना के लिए निम्न पृथ्वी कक्षा पर पहुंचने के लिए 9.7 किलोमीटर/सेकेण्ड डेल्टा-V की आवश्यकता होगी। अच्छे भाग्य की वजह से बृहस्पति पहुंचने के लिए ग्रहीय उड़ानों की ऊर्जा की जरूरत को गुरुत्वाकर्षण की मदद से कम किया जा सकता है अन्यथा लंबी अवधि की उड़ान की कीमत काफी हो सकती है।

बृहस्पति ग्रह के लिए पहली उड़ान :

सन् 1973 के शुरू में अनेक अंतरिक्ष यानों ने ग्रहीय उड़ान की कुशलताओं का प्रदर्शन किया है जिसने उनको बृहस्पति के अवलोकन क्षेत्र के अंदर ला दिया। पायोनियर मिशन ने बृहस्पति के वायुमंडल और उनके चंद्रमाओं की पहली समीपी छवियों को प्राप्त किया।

उसने पाया कि ग्रह के पास का विकिरण क्षेत्र उम्मीद से कहीं अधिक शक्तिशाली था लेकिन दोनों अन्तरिक्ष यान इस वातावरण में जीवित रहने में सफल रहे। इस अंतरिक्ष यान के प्रक्षेप पथ का उपयोग ग्रहीय प्रणाली के आकलन को बड़े पैमाने पर परिष्कृत करने के लिए किया गया।

ग्रह द्वारा रेडियो संकेतों को ढंकने का परिणाम बृहस्पति के व्यास और ध्रुवीय स्पॉट राशि के बेहतर माप के रूप में हुआ। 6 साल बाद वॉयेजर मिशन से गैलिलियन चंद्रमाओं की समझ में बहुत सुधार हुआ और बृहस्पति के छल्लों की खोज हुई। उसने यह भी पुष्टि की कि विशाल लाल धब्बा प्रतिचक्रवाती था।

छवियों की तुलना से पता चला है कि पायोनियर मिशन के बाद लाल धब्बे का रंग बदल गया था और यह बदलाव नारंगी से गहरे भूरे रंग की तरफ था। आयनित परमाणुओं के टॉरस की खोज आयो के कक्षीय पथ के साथ-अथ हुई थी और चंद्रमाओं की अताहों पर जहाँ ज्वालामुखी पाए गए कुछ में फूटने की प्रक्रिया चल रही थी।

जैसे ही अंतरिक्ष यान ग्रह के पीछे से गुजरा रात्रि पक्ष के वातावरण से इसने बिजली की चमक अवलोकित की। बृहस्पति से मुठभेड़ के लिए अगला मिशन , यूलिसेस सौर यान ने सूर्य के चारों तरफ एक ध्रुवीय कक्षा प्राप्त करने के लिए उड़ान कलाबाजी का प्रदर्शन किया। इस गुजारें के दौरान अंतरिक्ष यान ने बृहस्पति के मेग्नेटोस्फेयर के अध्ध्यनों का संचालन किया। यूलिसेस के पास कैमरा नहीं होने से कोई छवि नहीं ली गई थी।

बृहस्पति ग्रह का गैलिलियो मिशन :

अब तक सिर्फ गैलिलियो ने बृहस्पति का चक्कर लगाया है जो 7 दिसंबर, 1995 को बृहस्पति के चारों तरफ की कक्षा में चला गया। इसने सात साल भी ज्यादा इस ग्रह का चक्कर लगाया और सभी गैलिलियाई चंद्रमाओं और ऐमलथीया की बहुत-उड़ानों का वाहक बना।

इस अंतरिक्ष यान ने धूमकेतु सुमेकर लेवी 9 की टक्कर का भी साक्ष्य दिया जब यह सन् 1994 में बृहस्पति पर पहुंचा और घटना के लिए एक अद्वितीय लाभप्रद अवसर दिया। उच्च प्राप्ति रेडियो प्रसारण एंटीना की असफल तैनाती की वजह से इसकी मूल डिजाइन क्षमता सिमित थी हालाँकि बृहस्पति प्रणाली के विषय में गैलिलियो से मिली जानकारी व्यापक थी।

एक वायुमंडलीय प्रविष्ठी यान जुलाई 1995 में अंतरिक्ष यान से छोड़ा गया था जिसने 7 दिसंबर को ग्रह के वायुमंडल में प्रवेश किया था। इसने पैराशूट से वायुमंडल की 150 किलोमीटर की यात्रा की, 57.6 मिनटों के लिए आंकड़े इकट्ठे किए और उस दबाव के द्वारा कुचल दिया गया जिसके अधीन वह उस समय था।

उसके बाद वह पिघल गया होगा और संभवतः वाष्पीकृत हो गया होगा। गैलिलियो यान ने भी दुर्भाग्य से इसी प्रकार के इससे भी ज्यादा द्रुत परिवर्तन का अनुभव किया जब 21 सितंबर, 2003 को इसे जानबूझ कर 50 किलोमीटर/सेकेण्ड से ज्यादा वेग से इस ग्रह की तरफ चलाया गया यह आत्मघाती कदम एक उपग्रह को भविष्य की किसी भी संभावित दुर्घटना से और दूषित होने से बचाने के लिए उठाया गया था और यह उपग्रह है, युरोपा-एक चाँद जिसमें जीवन को शरण देने की संभावना है ऐसी धारणा रही है।

भविष्य के प्रोब और रद्द मिशन :

नासा के पास हाल ही ने एक मिशन के अंतर्गत एक ध्रुवीय कक्षा से बृहस्पति का विस्तार में अध्धयन चल रहा है। जूनो नाम का यह अंतरिक्ष यान 2011 में प्रक्षेपित हुआ था और 2016 के अंत तक यथास्थान पहुंच जाएगा। युरोपा बृहस्पति प्रणाली मिशन, बृहस्पति और उनके चंद्रमाओं के अंवेषण के लिए नासा/इसा का संयुक्त प्रस्ताव है।

फरवरी 2009 में यह घोषणा की गई थी कि इसा/नासा ने इस मिशन को टाइटन शनि प्रणाली मिशन से आगे प्राथमिकता दी। इस मिशन के लिए इसा का योगदान अभी भी इसा की अन्य परियोजनाओं के साथ वित्तीय खींचतान से जूझ रहा है। इसकी प्रक्षेपण दिनांक 2020 के आसपास होगी। युरोपा बृहस्पति प्रणाली मिशन, नासा के नेतृत्व वाली बृहस्पति युरोपा परिक्रमा यान और इसा के नेतृत्व वाली बृहस्पति गैनिमीड परिक्रमा यान दोनों को शामिल करता है।

बृहस्पति के चंद्रमाओं युरोपा, गेनीमेड और कैलिस्टो पर उपसतह तरल महासागरों की संभावना की कझ से वहां के बर्फीले चंद्रमाओं के विस्तृत अध्धयन में विशेष रूचि रही है। वित्तीय कठिनाईयों ने प्रगति को विलंबित कर दिया है। नासा के जीमो को 2005 में रद्द कर दिया गया था। एक यूरोपीयन जोवियन युरोपा परिक्रमा मिशन का भी अध्धयन किया गया था। इस अभियान का स्थान युरोपा बृहस्पति प्रणाली मिशन ने ले लिया था।

बृहस्पति के उपग्रह :

बृहस्पति ग्रह के 66 प्राकृतिक उपग्रह है इनमें से 10 किलोमीटर से कम व्यास के 50 उपग्रह है और इन सभी को सन् 1975 के बाद खोजा गया था। चार सबसे बड़े चंद्रमा आयो, युरोपा, गैनिमीड और कैलिस्टो, गैलिलीयन चंद्रमा के नाम से जाने जाते हैं।

गैलिलीयन चंद्रमा :

सौरमंडल के कुछ बड़े उपग्रहों, लो, युरोपा और गैनिमीड की कक्षाएं एक विशिष्ट स्वरूप बनाते है जिसे लाप्लास रेजोनेंस के नाम से जाना जाता है। लो उपग्रह बृहस्पति के चार चक्कर लगाने में जितना समय लेता है ठीक उतने ही समय में युरोपा पूरे दो चक्कर और गैनिमीड पूरे एक चक्कर लगाता है।

यह रेजोनेंस, तीन बड़े चंद्रमाओं के गुरुत्वाकर्षण प्रभाव की वजह से बनता है जो उनकी कक्षाओं के आकार को विस्तृत कर अंडाकार कर देते है क्योंकि प्रत्येक चाँद अपने हर एक पूरे चक्कर में पड़ोसी चाँद से एक ही बिंदु पर अतिरिक्त खिचाव प्राप्त करता है। दूसरी तरफ बृहस्पति से ज्वारीय बल, कक्षाओं को वृत्तिय बनाने की कोशिश करता है।

चंद्रमाओं का वर्गीकरण :

वॉयजर मिशन की खोजों से पूर्व बृहस्पति के चंद्रमा अपने कक्षीय तत्वों की समानता के आधार पर बड़े ही सलीके के साथ 4 समूहों में व्यवस्थित किए गए थे। बाद में नए छोटे बाहरी चंद्रमाओं की बड़ी संख्या ने तस्वीर जटिल कर दी। अब मुख्य 6 समूह माने जाते है हालाँकि उनमे से कुछ दूसरों से अलग है। मूल उपविभाजन, 8 अंदरूनी नियमित चंद्रमाओं को समूह में बांटना है जिनकी कक्षाएं बृहस्पति के संग बने हुए लगते है।

शेष चंद्रमा अंडाकार और झुकी कक्षाओं के संग अज्ञात संख्या में छोटे-छोटे अनियमित चंद्रमाओं से मिलकर बने है। यह हडप लिए गए क्षुद्रग्रहों या हडप लिए गए क्षुद्रग्रहों के खंड माने गए है। अनियमित चंद्रमा जिस समूह में शामिल है समान कक्षीय गुण साझा करते है इस प्रकार वे एक ही मूल की उपज हो सकते हैं।

सौर प्रणाली के साथ सहभागिता :

सूर्य के साथ बृहस्पति के गुरुत्वाकर्षण प्रभाव ने सौरमंडल को आकार देने में बहुत सहायता की है, ज्यादातर ग्रहों की कक्षाएं सूर्य के भूमध्यरेखीय तल की जगह पर बृहस्पति के कक्षीय ताल के समीप स्थित है। क्षुद्रग्रह बेल्ट में किर्कवुड अंतराल अधिकांशतः बृहस्पति के कारण है और यह ग्रह अंदरूनी सौरमंडलीय इतिहास के चन्द्रप्रलय के लिए जिम्मेदार हो सकता है।

अपने चंद्रमाओं के साथ बृहस्पति का गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र उन कई क्षुद्रग्रहों को भी नियंत्रित करता है जो लांग्रगियन बिंदुओं के क्षेत्रों में बसे है और अपनी-अपनी कक्षाओं में सूर्य के आस-पास बृहस्पति का अनुसरण करते है। ये ट्रोजन क्षुद्रग्रह के रूप में जाने जाते हैं और ग्रीक कैम्प और ट्रोजन कैम्प में विभाजित है।

इनमे से पहला 588 एचिलेस को सन् 1906 में मैक्स वोल्फ द्वारा खोजा गया उसके बाद दो हजार से भी ज्यादा और खोजे जा चुके हैं जिनमें से सबसे बड़ा 624 हेक्टोर है। बृहस्पति परिवार के ज्यादातर लघु अवधि धूमकेतु उन धूमकेतुओं के रूप में परिभाषित है जिनके अर्ध्य मुख्य अक्ष बृहस्पति के अक्षो से छोटे है।

बृहस्पति परिवार के धूमकेतु नेप्चून कक्षा के पार कुइपर बेल्ट में निर्मित माने जाते हैं। बृहस्पति ग्रह के साथ समीपी मुठभेड़ों के दौरान उनकी कक्षाएं एक छोटी अवधि में तब्दील कर दी गई और बाद में सूर्य और बृहस्पति के साथ नियमित गुरुत्वाकर्षण प्रभाव द्वारा वृत्ताकार हो गई।

टक्कर :

बृहस्पति ग्रह को सौरमंडल का वेक्यूम क्लीनर कहा जाता है, विशाल गुरुत्वीय कूप और अंदरूनी सौरमंडल के पास स्थित होने की वजह से यह सौरमंडलीय ग्रहों के सबसे सतत भीषण टक्करों को झेलता है। सन् 1997 के ऐतिहासिक खगोलीय आरेखण के एज सर्वेक्षण ने सुझाव दिया था कि हो सकता है सन् 1690 में खगोल विज्ञानी कैसिनी ने एक टक्कर का निशान दर्ज किया हो।

सर्वेक्षण की गई 8 दूसरे उम्मीदवारों की टिप्पणियाँ एक टक्कर के होने की संभावना बहुत कम है या न के बराबर है। 13 जुलाई, 1994 से लेकर 22 जुलाई, 1994 की समयावधि के दौरान, धूमकेतु सुमेकर-लेवी 9 के 20 से ज्यादा टुकड़े बृहस्पति के दक्षिणी गोलार्द्ध से टकराए, सौरमंडल के दो निकायों के मध्य की इस टक्कर ने पहला प्रत्यक्ष अवलोकन उपलब्ध कराया था।

इस टक्कर ने बृहस्पति के वायुमंडल की संरचना पर उपयोगी आंकड़े प्रदान किए। 19 जुलाई, 2009 में प्रणाली 2 में लगभग 216 डिग्री देशांतर पर इस टक्कर स्थल को खोज लिया गया था। यह टक्कर अपने पीछे बृहस्पति के वायुमंडल में एक कला धब्बा छोड़ गया जो आकार में ओवल बीए के समान है।

इन्फ्रारेड प्रेक्षण ने जहाँ पर यह टक्कर हुई एक उजले धब्बे को दिखाया है जिसका अर्थ है इस टक्कर ने बृहस्पति के दक्षिण ध्रुव के नजदीक के क्षेत्र में निचले वायुमंडल को गर्म कर दिया। टक्कर की दूसरी घटना जो पूर्व प्रेक्षित टक्करों से छोटी है 3 जून, 2010 को शौकिया खगोल विज्ञानी एंथोनी वेसलें द्वारा आस्ट्रेलिया में पाई गई और बाद में फिलीपिंस में एक और शौकिया खगोल विज्ञानी द्वारा इस खोज को वीडियो पर कैद कर लिया गया है।

बृहस्पति पर जीवन की संभावना :

सन् 1953 में मिलर-उरे प्रयोग ने प्रदर्शन किया कि आद्य पृथ्वी के वायुमंडल में उपस्थित बिजली और रासायनिक यौगिकों का एक संयोजन ऐसे कार्बनिक यौगिक बना सकते है जो जीवन रूपी ईमारत की ईंटों की तरह काम आ सकते हैं। ऐसा ही कृत्रिम वातावरण जिसमे पानी, मीथेन, अमोनिया और आणविक हाइड्रोजन सम्मिलित हो, सभी अणु अभी भी बृहस्पति के वातावरण में है।

बृहस्पति के वायुमंडल में एक शक्तिशाली ऊर्ध्वाधर वायु परिसंचरण प्रणाली है जो इन यौगिकों को वहन करके निचले क्षेत्रों में ले जाएगा। वायुमंडल के आंतरिक भाग के अंदर का उच्च तापमान इन रसायनों को तोड़ देगा जो पृथ्वी-सदृश्य जीवन के गठन में बाधा पहुंचाएगा। यह माना जा रहा है की पृथ्वी के समान बृहस्पति पर जीवन की ज्यादा संभावना नहीं है वहां के वायुमंडल में पानी की सिर्फ छोटी सी मात्रा है और बृहस्पति की आंतरिक गहराई में संभावित ठोस सतह असाधारण दबाव के अधीन होगी।

सन् 1976 मर वॉयजर मिशन से पूर्व यह धारणा थी कि अमोनिया या जल आधारित जीवन बृहस्पति के उपरी वायुमंडल में विकसित हो सकता है। यह परिकल्पना स्थलीय समुद्र की पारिस्थितिकी पर आधारित है जिसके अनुसार शीर्ष स्तर पर सरल संश्लेषक प्लवक है निचले स्तर पर यह प्लवक मछली का भोजन है और समुद्री शिकारी जो मछली का शिकार करते है। बृहस्पति ग्रह के चंद्रमाओं में से कुछ चंद्रमाओं पर भूमिगत महासागरों की उपस्थिति ने जीवन की ज्यादा संभावना होने की अटकलों को जन्म दिया है।

पौराणिकी :

बृहस्पति ग्रह को प्राचीन काल से ही जान लिया गया था। यह रात को आसमान में आँखों से देखा जा सकता है और कभी-कभी दिन के समय भी देख जा सकता है जब सूरज नीचे हो। बेबीलोनियन से यह निकाय उनके देवता मर्डक का प्रतिनिधि है। वे क्रांतिवृत्त के साथ इस ग्रह की लगभग 12 वर्षीय कक्षीय अवधि का प्रयोग उनकी राशि चक्र के नक्षत्रों को परिभाषित करने करते थे।

रोमन लोगों ने इसका नाम जुपिटर रखा जो रोमन पौराणिक कथाओं के प्रमुख देवता है जिसका नाम आद्य-भारत-यूरोपीय संबोधन परिसर से आता है। जोवियन बृहस्पति का विशेषणीय रूप है और इसका प्राचीन विशेषणीय रूप जोवियन है जो मध्य युग में ज्योतिषियों द्वारा नियोजित था जिसका अर्थ खुशी या आनंदित भाव से आया है जिसे बृहस्पति के ज्योतिषीय प्रभाव के लिए उत्तरदायी ठहराया गया है।

बृहस्पति की विशेष जानकारी :

बृहस्पति ग्रह का रंग – पीला, दिन – गुरुवार और अंक – 3 है। बृहस्पति ग्रह की दिशा – पूर्वोत्तर, राशिस्वामी – धनु और मीन और नक्षत्र स्वामी – पुनर्वसु , विशाखा और पूर्वाभाद्रपद है। बृहस्पति ग्रह का रत्न – पुखराज, धातु – सोना, देव – ब्रह्मा है। बृहस्पति ग्रह की उच्च राशि -कर्क है और नीच राशि मकर है।

बृहस्पति ग्रह का मूल त्रिकोण -धनु, महादशा समय – 16 साल और बीज मंत्र – ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं स: गुरवे नमः है। बृहस्पति ग्रह बैंकिंग, न्यायालय, संपत्ति, संतान, एश्वर्य, राजनीति, वकालत, पीला रंग, वेद, वर्ण, ज्ञानी, गुरु, विद्या, पुत्र, तीर्थयात्रा, पौत्र, बुद्धि, धार्मिक कार्य, न्यायधीश व विवाह आदि का कारकत्व है।

शुभ फल या लक्षण :

जिनकी जन्मकुंडली में बृहस्पति शुभ स्थिति में होता है ऐसे व्यक्ति विद्वान्, शासक, मंत्री, शासनप्रिय, आचार्य, न्यायधीश, अर्थशास्त्री, अध्यापक, लेखक, कवि, प्रशासनिक अधिकारी, धार्मिक पुरुष या किसी अन्य उच्च पद पर आसीन होते हैं। इस ग्रह से प्रभावित व्यक्ति शारीरिक तौर पर मोटे तथा लंबे कद के हो सकते है। इनकी आँखों में चमक और चेहरे पर तेज स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। ये बहुत ही परिश्रमी, सत्य बोलने वाले, ज्ञानी, अपने विचारों से प्रभावित करने वाले और धार्मिक धार्मिक प्रवृत्ति के होते हैं।

अशुभ फल और लक्षण :

जन्मकुंडली में विभिन्न परिथितियाँ ऐसी हो सकती हैं की जिसमें बृहस्पति ग्रह नीच का अशुभ फल देने वाला हो जाता है जैसे गुरु का अस्त होना, शत्रु राशि में होना, क्रूर भावों या 6, 8, 12 भावों में होना, पाप गृह के साथ आदि हो सकते हैं। ऐसी स्थिति में जातक को कुछ अशुभ फल देखने पड़ सकते हैं जैसे – मोटापा, पाचन में गडबडी, गुर्दे की बीमारी, सोना गुम होना या चोरी होना, हर्निया, चर्बी की वृद्धि, मानसिक तनाव, अति आशावादी, बच्चों से चिंता और दूसरों पर अधिक भरोसे से हानि आदि हो सकते हैं ।

बृहस्पति के विषय में रोचक तथ्य :

रोमन लोगों ने अपने रोमन भगवान के बाद इस ग्रह बृहस्पति नाम दिया था। प्रथ्वी से अधिक चमकने वाले ग्रहों में बृहस्पति का तीसरा स्थान है इससे पहले चन्द्रमा और शुक्र ग्रह आते हैं। बृहस्पति मुख्य रूप से हाइड्रोजन और हीलियम से बना है। बृहस्पति भी भारी तत्वों की एक चट्टानी कोर है। बृहस्पति ग्रह के चंद्रमाओं की 64 कक्षा है।

चार सबसे बड़े चाँद जिन्हें गैलीलियन चंद्रमा भी कहा जाता ही वे सन् 1610 में गैलिलियो गैलिली द्वारा खोजे गए थे। बृहस्पति के सबसे बड़े चंद्रमा को गेनीमेड कहा जाता है और इसका व्यास बुध ग्रह के व्यास से भी ज्यादा है। बृहस्पति ग्रह पर विशाल लाल जगह पर एक लगातार तूफान पृथ्वी से भी बड़ा है।

यह तूफान सन् 1655 में अस्तित्व में आया था जो अब तक का सबसे लंबा तूफान माना जाता है। बृहस्पति की रिंग्स धूल से बनी हुई हैं जो शनि ग्रह की आइस रिंग्स की तरह दिखाई देती हैं। बृहस्पति ग्रह से सूर्य की औसत दुरी लगभग 778 लाख किलोमीटर है जो पृथ्वी से सूर्य के लगभग 5.2 गुना दुरी के बराबर है। बृहस्पति ग्रह का रोटेशन सौर प्रणाली में सभी ग्रहों की सबसे तेज है।

यह कम-से-कम 10 घंटे में एक पूर्ण रोटेशन पूरा करती है। बृहस्पति सूर्य का एक पूरा चक्कर लगाने में पृथ्वी के 11.86 साल लगाती है। बृहस्पति ग्रह के उपरी वायुमंडल के बादलों को बेल्ट और जोनों में बांटा गया है। वे मुख्य रूप से अमोनिया क्रिस्टल, सल्फर और दो यौगिक के मिश्रण से बने रहे हैं। बृहस्पति की आंतरिक सतह रॉक, धातु और हाईड्रोजन यौगिकों से बनी हुई है।

आठ अंतरिक्ष यानों ने बृहस्पति का दौरा किया है। बृहस्पति ग्रह को सौर मंडल का वकुएम क्लीनर भी कहा जाता है क्योंकि यह पृथ्वी को विनाशकारी हमलों से बचाता है जिसकी वजह से हम सुरक्षित जीवन जी रहे हैं। बृहस्पति ग्रह हमारे सौरमंडल का सबसे बड़ा और सबसे भारी ग्रह है।

बृहस्पति ग्रह को सौरमंडल का रक्षा कवच भी कहा जाता है हालाँकि गैस के बादलों से ढके इस गृह के विषय में इंसान की समझ कुछ ज्यादा नहीं रही है। बृहस्पति ग्रह का आकार 1300 पृथ्वियों के बराबर है जो बृहस्पति ग्रह का वजन सौर मंडल के सारे ग्रहों के कुल वजन से ढाई गुना अधिक है।

बृहस्पति ग्रह पर दिन बाकी सभी ग्रहों से छोटा होता है बृहस्पति ग्रह 9 घंटे 55 मिनट में अपनी धुरी के समक्ष एक पूरा चक्कर करता है। बृहस्पति ग्रह की कोई भी जमीन नहीं है यह पूरी तरह से गैस से बना है। बृहस्पति ग्रह की कोर यानि इसके केंद्रीय हिस्से के विषय में कहा जाता है कि यह चट्टानों से बना है।

बृहस्पति ग्रह सबसे पुराने ग्रहों में से एक है जिसके माध्यम से हम पृथ्वी की उत्पत्ति के विषय में पता लगा सकते हैं। बृहस्पति ग्रह की सतह का औसतन तापमान 180 डिग्री सेल्सियस है। आज तक बृहस्पति ग्रह पर 9 यान भेजे जा चुके हैं – सन् 1973 में पायोनीयर 10 भेजा गया, सन् 1974 में पायनीयर 11, सन् 1979 में वॉयजर 1 और 2, सन् 1992 में युलेसिस, सन् 1995 में गैलिलियो, सन् 2000 में कैसिनी, सन् 2007 में न्यू होराइजन्स, 5 अगस्त, 2011 में जूनो आदि सभी यान बृहस्पति ग्रह के पास से होकर गुजरे थे।

8 दिसंबर, 1995 में बृहस्पति ग्रह की कक्षा में पहुंचने वाला पहला यान गैलिलियो था जो 2003 तक बृहस्पति ग्रह की कक्षा के चक्कर लगता रहा। आने वाले समय में पहली बार नासा का यान जूनो बृहस्पति ग्रह को बहुत ही समीप से देखेगा। जूनो यान बृहस्पति ग्रह के बादलों के आर-पार देखने में सक्षम होगा।

जूनो यान को नासा के द्वारा 5 अगस्त, 2011 को अंतरिक्ष में छोड़ा गया। लगभग आधा सफर करने के बाद अक्टूबर 2013 में जूनो नाम का ये अंतरिक्ष यान पृथ्वी की ओर लौट आया था यह किसी भी तकनीकी खराबी की वजह से नहीं बल्कि वैज्ञानिक ढंक से इसकी गति बढ़ाने का तरीका था।

जब जूनो पृथ्वी की ओर लौट रहा था तो पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण शक्ति ने जूनो को बड़ी तेजी से बृहस्पति ग्रह की ओर धकेल दिया ऐसा करने से जूनो की स्पीड 14 हजार प्रति किलोमीटर के हिसाब से बढ़ से बढ़ गई। जूनो की औसतन रफ्तार 38000 किलोमीटर प्रति घंटा है लेकिन बृहस्पति ग्रह की कक्षा में पहुंचने पर इसकी गति 2 लाख 66 हजार प्रति किलोमीटर घनता हो जाएगी। लगभग 35 मिनट तक अपने इंजन को जलाने के बाद जूनो अपनी गति को कम करेगा।

गति कम होने के बाद जूनो बृहस्पति ग्रह की कक्षा को बाँट लेगा और लगभग 20 महीनों तक जूनो बृहस्पति के 37 चक्कर लगाएगा। जूनो यूनान की देवी का नाम है जिसे बृहस्पति की पत्नी माना जाता है। ग्रीक कथाओं के अनुसार बृहस्पति नाम का देवता खुद को बादलों से ढक कर रखता है और बृहस्पति की पत्नी जनों की बादलों के आर-पार देख सकती है।

बृहस्पति ग्रह का वायुमंडल बादलों की परतों और पेटियों से बना है। हम जो बृहस्पति के चित्र देख पाते हैं वो बृहस्पति के उपर स्थित इन बादलों की परतों और पेटियों के ही होते हैं। यह बादल विभिन्न तत्वों की रासायनिक प्रतिक्रियाओं की वजह से रंग-बिरंगे नजर आते हैं।

बृहस्पति के बादलों के निचे इसकी सतह ठोस नहीं गैसीय होती है और इसका गैसीय घनत्व गहराई के साथ बढ़ता जाता है। बृहस्पति ग्रह पर पिछले 350 सालों से एक बवंडर चल रहा है जो लाल बादलों से बना हुआ है। यह बवंडर इतना बड़ा है कि इसमें तीन पृथ्वियां समा सकती हैं।

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शनि ग्रह-Saturn Planet In Hindi

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शनि ग्रह (Saturn In Hindi) :

शनि ग्रह हमारे सौरमंडल का दूसरा सबसे बड़ा ग्रह और 6 वां ग्रह है। औसत व्यास में पृथ्वी से नौ गुना बड़ा शनि एक गैस दानव है जबकि इसका औसत घनत्व पृथ्वी का एक आठवां है, अपने बड़े आयतन के साथ यह पृथ्वी से 95 गुना से भी कम बड़ा है। शनि ग्रह की खोज सबसे पहले खगोल विज्ञानी गैलिलियो गैलिली द्वारा सन् 1610 में की गई थी। इसका खगोलीय चिन्ह ħ है।

शनि ग्रह का आंतरिक ढांचा लोहा, निकल और चट्टानों के एक कोर से बना है जो धातु हाइड्रोजन की एक मोटी परत से घिरा हुआ है तरल हाइड्रोजन और तरल हीलियम की एक मध्यवर्ती परत तथा एक बाह्य गैसीय परत है। ग्रह अपने ऊपरी वायुमंडल के अमोनिया क्रिस्टल की वजह से एक हल्का और पीला रंग दर्शाता है। माना गया है कि धातु हाइड्रोजन परत के अंदर की विद्युतीय धारा, शनि के ग्रहीय चुंबकीय क्षेत्र को उभार देती है जो पृथ्वी की तुलना में कमजोर है।

शनि ग्रह की रुपरेखा :

शनि का भूमध्य रेखीय व्यास 1,20,536 किलोमीटर और ध्रुवीय व्यास 1,08,728 किलोमीटर है। शनि ग्रह का द्रव्यमान 5,68,319 खरब अरब किलोग्राम है। शनि ग्रह के 62 उपग्रह हैं और छल्ले 30 + (7 समूह) है। शनि ग्रह की ऑर्बिट दुरी 1,426,666,422 किलोमीटर है।

शनि ग्रह की कक्षा अवधि 10,756 दिन और सतह का तापमान -139 डिग्री सेल्सियस है। शनि ग्रह के पहले रिकॉर्ड 8 वीं सदी ईसा पूर्व है। शनि ग्रह का एक साल पृथ्वी के 29.45 साल या 10,755.70 दिन के बराबर होता है। शनि ग्रह का एक दिन 10 घंटे 34 मिनट का होता है। शनि का भूमध्यरेखीय घेरा 3,62,882 किलोमीटर है।

शनि ग्रह के भौतिक लक्षण :

शनि ग्रह एक गैस दानव के रूप में वर्गीकृत है क्योंकि बाह्य भाग मुख्य रूप से गैस का बना है और एक सतह का अभाव है यद्यपि इसका एक ठोस कोर होना चाहिए। ग्रह का घूर्णन इसके चपटे अंडाकार आकार धारण करने की वजह है इस वजह से यह ध्रुवों पर चपटा और भूमध्यरेखीय और ध्रुवीय त्रिज्याओं के मध्य लगभग 10% का अंतर है – क्रमशः 60,268 किलोमीटर बनाम 54,364 किलोमीटर।

सौरमंडल में अन्य गैस दानव, बृहस्पति, युरेनस और वरुण भी चपटे हैं लेकिन कुछ हद तक। शनि सौरमंडल का एकमात्र ग्रह है जो पानी से कम घना लगभग 30% कम है। यद्यपि शनि का कोर पानी से बहुत घना है, गैसीय वातावरण की वजह से ग्रह का औसत विशिष्ट घनत्व 0.69 ग्राम/सेंटीमीटर3 है। बृहस्पति पृथ्वी के द्रव्यमान का 318 गुना है जबकि शनि पृथ्वी के द्रव्यमान का 95 गुना है, बृहस्पतिऔर शनि एक साथ सौरमंडल के कुल ग्रहीय द्रव्यमान का 92% सहेजते है।

शनि ग्रह का वायुमंडल :

शनि ग्रह का बाह्य वायुमंडल 96.3% आणविक हाइड्रोजन और 3.25% हीलियम सम्मिलित करता है। हीलियम का यह अनुपात सूर्य से इस तत्व की प्रचुरता की तुलना में बहुत कम है। हीलियम से भारी तत्वों की मात्रा सही-सही गयब नहीं है लेकिन अनुपातों को सौरमंडल के गठन से निकली प्रारंभिक प्रचुरता से मिलान के लिए ग्रहण किया हुआ है।

शनि ग्रह के कोर क्षेत्र में स्थित एक महत्वपूर्ण अंश के साथ इन भारी तत्वों का कुल द्रव्यमान पृथ्वी के द्रव्यमान का 19 से 31 गुना होने का अनुमान है। अंश मात्रा की मोनिया, एसिटिलीन, ईथेन, प्रोपेन, फोस्फाइन और मीथेन शनि ग्रह के वायुमंडल में खोजी गई है।

ऊपरी बादल अमोनिया क्रिस्टल से बने हुए हैं जबकि निचले स्तर के बादल या तो अमोनियम हाइड्रोसल्फाइड या जल से मिलकर बने हुए दिखाई देते हैं। सूर्य से निकली पराबैंगनी विकिरण ऊपरी वायुमंडल में मीथेन वियोजन की वजह बनती है और बवंडरों व विसरण से नीचे ले जाए जा रहे परिणामी उत्पादों के साथ एक हाइड्रोकार्बन रासायनिक प्रतिक्रियाओं की श्रंखला का प्रतिनिधित्व करती है। यह प्रकाश रासायनिक चक्र शनि के वार्षिक मौसमी चक्र द्वारा ठीक की हुई है।

शनि के षट्कोण :

वायुमंडल में उत्तरी ध्रुवीय भंवर के आसपास लगभग 78०उ. पर एक दृढ षट्कोणीय लहर स्वरूप सबसे पहले वॉयजर की छवियों में उल्लेखित हुआ था। उत्तरी ध्रुवीय षट्कोण की हर सीधी भुजाएं लगभग 13,800 किलोमीटर लंबी है जो उन्हें पृथ्वी के व्यास से बड़ा बनाती है।

यह पूरा ढांचा 10 घंटे 39 मिनट 24 सेकेण्ड की अवधि के साथ घूमता है जो शनि ग्रह के आंतरिक ढाचे के घूर्णन अवधि के बराबर माना हुआ है। यह षट्कोणीय आकृति दृश्यमान वायुमंडल के अन्य बादलों की तरह देशांतर में बदलाव नहीं करता। इस स्वरूप का मूल बड़े अटकलों का विषय है। अधिकांश खगोलविद विश्वास करते हैं यह वायुमंडल में कुछ खड़ी लहर पद्धति की वजह से हुआ था। बहुभुजी आकार तरल पदार्थ के अंतरीय घूर्णन के माध्यम से प्रयोगशाला में दोहराया जा चुका है।

दक्षिणी ध्रुव भंवर :

दक्षिण ध्रुवीय क्षेत्र के हबल दूरबीन के प्रतिचित्रण एक तेज धारा की उपस्थिति का संकेत करते है लेकिन न ही किसी शक्तिशाली ध्रुवीय भंवर का और न ही किसी षट्कोणीय खड़ी लहर का। नासा ने नवंबर 2006 में सुचना दी थी कि कैसिनी ने दक्षिणी ध्रुव के साथ जकड़ा हुआ एक चक्रवात सदृश्य तूफान देखा था जो एक स्पष्ट रूप से परिभाषित आईवोल था।

यह अवलोकन विशेष रूप से उल्लेखनीय है क्योंकि आईवोल बादल पहले कभी पृथ्वी के अतिरिक्त किसी अन्य ग्रह पर नहीं देखे गए थे। उदाहरण के लिए गैलिलियो अंतरिक्ष यान से प्राप्त छवियाँ बृहस्पति के विशालकाय लाल धब्बे में कोई आईवोल नहीं दिखाते। दक्षिणी ध्रुव तूफान अरबों सालों तक के लिए मौजूद होना चाहिए। यह भंवर पृथ्वी के आकार के बराबर है और इसकी 550 किलोमीटर की हवाएं है।

शनि की अन्य आकृतियाँ :

कैसिनी ने मोतियों क माला के रूप में उपनामित मेघ आकृतियों की एक श्रंखला प्रेक्षित की जो उत्तरी अक्षांश में पाई गई।

शनि का चुंबकीय क्षेत्र :

शनि ग्रह का एक आंतरिक क्षेत्र है जिसका एक सरल और सुडौल आकार है – एक चुंबकीय द्विध्रुव। भूमध्यरेखा पर इसकी ताकत -0.2 गॉस बृहस्पति के इर्द-गिर्द के क्षेत्र का लगभग एक बीसवां और पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र की तुलना में थोडा कमजोर है। फलस्वरूप शनि ग्रह का बृहस्पति की तुलना में काफी छोटा चुंबकीय क्षेत्र है।

जब वॉयजर 2 ने चुंबकीय क्षेत्र में प्रवेश किया सौरवायु का दबाव बहुत ज्यादा था और चुंबकीय क्षेत्र सिर्फ 19 शनि त्रिज्याओं जितना विस्तारित हुआ या 1.1 लाख किलोमीटर है हालाँकि यह कई घंटो के अंदर बढ़ा और लगभग तीन दिनों तक बना रहा। अधिकांश संभावना है इसका चुंबकीय क्षेत्र बृहस्पति के बराबर ही उत्पन्न हुआ है – तरल धातु में धाराओं द्वारा हाइड्रोजन परत एक धातु हाइड्रोजन डाइनेमो कहलाती है।

यह चुंबकीय क्षेत्र सूर्य से निकले सौर वायु कणों को विक्षेपित करने में कुशल है। टाइटन चंद्रमा शनि ग्रह के चुंबकीय क्षेत्र के बाहरी हिस्से के भीतर परिक्रमा करता है और टाइटन के बाहरी वायुमंडल के आयनित कणों से निकले प्लाज्मा का योगदान करता है। शनि ग्रह का चुंबकीय क्षेत्र पृथ्वी की ही तरह ध्रुवीय ज्योति पैदा करता है।

शनि की परिक्रमा एवं घूर्णन :

सूर्य और शनि ग्रह के मध्य की औसत दूरी 1.4 अरब किलोमीटर से ज्यादा है। 9.69 किलोमीटर/सेकेण्ड की एक औसत परिक्रमण गति के साथ सूर्य के चारो तरफ एक घुमाव पूर्ण करने के लिए यह शनि ग्रह के 10,759 पृथ्वी दिवस लेता है। शनि ग्रह की दीर्घवृत्ताकार कक्षा पृथ्वी के परिक्रमा तल के सापेक्ष 2.48० झुकी हुई है।

0.056 की विकेंद्रता की वजह से शनि और सूर्य के बीच की दूरी उपसौर और अपसौर के मध्य लगभग 15.5 करोड़ किलोमीटर से अलग होती है जो उसके परिक्रमण मार्ग के साथ-साथ ग्रह के सूर्य से निकटतम और सबसे दूर के बिंदु हैं। शनि ग्रह पर दृश्यामान आकृतियाँ भिन्न-भिन्न दरों पर घूमती है जो अक्षांश पर निर्भर करती है और यह बहुल घूर्णन अवधियाँ विभिन्न क्षेत्रों के लिए आवंटित की गई है – प्रणाली एक का काल 10 घंटे 14 मिनट है और भूमध्यरेखा क्षेत्र शामिल करता है जो दक्षिणी भूमध्यरेखीय पट्टी के उत्तरी किनारे से लेकर उत्तरी भूमध्यरेखीय पट्टी के दक्षिणी किनारे तक विस्तारित है।

प्रणाली दो में शनि ग्रह के बाकी सभी अक्षांश 10 घंटे 38 मिनट 25.4 सेकेण्ड की एक घूर्णन अवधि के साथ आवंटित किए गए हैं। प्रणाली तीन वॉयजर दौर के दौरान ग्रह से उत्सर्जित रेडियो उत्सर्जन पर आधारित है। इसका 10 घंटे 39 मिनट 22.4 सेकेण्ड का एक काल है। शनि ग्रह के घूर्णन का नवीनतम आकलन कैसिनी, वॉयजर और पायनियर से मिले विभिन्न मापनों के एक संकलन पर आधारित है जिसकी सुचना सितंबर 2007 में मिली थी और यह 10 घंटे 32 मिनट 35 सेकेण्ड है।

शनि ग्रह के छल्ले :

शनि ग्रह ग्रहीय छल्लों की प्रणाली के लिए बेहतर जाना जाता है जो उसे दृष्टिगत रूप से अनूठा बनाता है। ये छल्ले शनि की भूमध्यरेखा के ऊपर 6630 किलोमीटर से लेकर 1,20,700 किलोमीटर तक विस्तारित है, औसतन लगभग 20 मीटर की मोटाई में और अंश मात्रा की थोलीन अशुद्धियों एवं 7% अनाकार कार्बन के साथ 93% जल बर्फ से बने हुए हैं।

छल्लों को बनाने वाले कणों के आकार के परास धूल कणों से लेकर 10 मीटर तक है हालाँकि अन्य गैस दानवों की भी वलय प्रणालियाँ है लेकिन शनि ग्रह की सबसे बड़ी और सबसे ज्यादा दृश्यमान है। छल्लों की उत्पत्ति के विषय में दो मुख्य परिकल्पनाएं हैं। एक परिकल्पना है कि छल्ले शनि ग्रह के एक नष्ट चाँद के अवशेष मिले हैं।

दूसरी परिकल्पना है कि छल्ले छोड़ी गई मूल निहारिकीय सामग्री है जिनसे शनि ग्रह बना है। केंद्रीय छल्लों की कुछ बर्फ एनसेलेडस चंद्रमा के बर्फ ज्वालामुखी से आती है। प्राचीनकाल में खगोलविदों ने माना छल्ले ग्रह के साथ-साथ बने जब अरबो सालो पहले ग्रह का गठन हुआ। बावजूद इन ग्रहीय छल्लों की उम्र शायद कुछ सैंकड़ों लाख सालो की है।

ग्रह से 12 लाख किलोमीटर की दूरी पर मुख्य छल्ले से परे विरल फोबे वलय है जो अन्य छल्लों से 27 डिग्री के कोण पर झुका हुआ है और फोबे की तरह प्रतिगामी रीति में परिक्रमा करता है। पैंडोरा और प्रोमेथियस के साथ शनि के चंद्रमाओं में से कुछ छल्लों को सीमित रखने और उन्हें बाहर फैलने से रोकने के लिए सैफर्ड चाँद के रूप में काम करते है। पान और एटलस शनि के छल्लों में निर्बल रैखिक घनत्व तरंगों की वजह है।

शनि ग्रह के प्राकृतिक उपग्रह :

शनि ग्रह के कम-से-कम 62 चंद्रमा हैं उनमें से 53 के औपचारिक नाम है। सबसे बड़ा चंद्रमा टाइटन छल्ले सहित शनि के आसपास की कक्षा में द्रव्यमान का 90% से ज्यादा समाविष्ट करता है। एक कमजोर वायुमंडल के साथ-साथ शनि के दूसरे सबसे बड़े चंद्रमा रिया की अपनी एक स्वंय की कमजोर वलय प्रणाली हो सकती है।

कई अन्य चंद्रमा बहुत छोटे हैं व्यास में 10 किलोमीटर से कम के 34 है और 14 बाकी 50 किलोमीटर से कम लेकिन 10 किलोमीटर से बड़े हैं। परंपरागत रूप से शनि के अधिकांश चंद्रमा ग्रीक पौराणिक कथाओं के दिग्गजों पर नामित किए गए है। टाइटन एक बड़े वायुमंडल वाला सौरमंडल का एकमात्र उपग्रह है जिसमें एक जटिल कार्बनिक रसायन शास्त्र पाया जाता है।

यह हाइड्रोकार्बन झीलों वाला एकमात्र उपग्रह है। शनि का चंद्रमा एनसेलेडस अक्सर सूक्ष्मजैविक जीवन के लिए एक संभावित आधार के रूप में माना गया है। इस जीवन के साक्ष्य उपग्रह के लवण बहुल कणों को सम्मिलित करते है जिसमें एक महासागर की तरह संगठन मिलते है जो इंगित करता है एनसेलेडस की अधिकांश निष्कासित बर्फ तरल लवण जल के वाष्पीकरण से आती है।

शनि का अंवेषण :

शनि ग्रह के प्रेक्षण एवं अंवेषण में तीन मुख्य चरण रहे हैं। पहले युग में आधुनिक दूरबीन के अविष्कार से पहले के प्राचीन प्रेक्षण थे। 17 वीं सदी में शुरू हुआ पृथ्वी से उत्तरोतर और ज्यादा उन्नत दूरबीन प्रेक्षण करना संभव बना। एनी प्रकार के या तो परिक्रमा द्वारा या फ्लाईबाई द्वारा अंतरिक्ष यान द्वारा यात्रा से हुए हैं। 21 वीं सदी के प्रेक्षण पृथ्वी से तथा शनि ग्रह के कैसिनी परिक्रमा यान से जारी है।

शनि का प्राचीन प्रेक्षण :

शनि ग्रह को प्रागैतिहासिक काल से जान लिया गया है। प्राचीनकाल में सौरमंडल में सुदूर के पांच ज्ञात ग्रह थे और इसलिए विभिन्न पौराणिक कथाओं के मुख्य पात्र थे। बेबिलोनियाई खगोलविदों ने शनि ग्रह की गतिविधियों को व्यवस्थित रूप से प्रेक्षित और दर्ज किया। प्राचीनकाल की रोमन पौराणिक कथाओं में शनि देवता जिससे ग्रह ने अपना नाम लिया कृषि के देवता थे।

रोमनों ने सेटर्नस को यूनानी देवता क्रोनस के समकक्ष माना। यूनानियों ने सबसे बाहरी ग्रह क्रोनस को पवित्र बनाया और रोमनों ने भी यही किया था। अलेक्जैंड्रिया में रहने वाले एक यूनानी टॉलेमी में शनि ग्रह की एक विमुखता का प्रेक्षण किया जो इसकी कक्षा के तत्वों के उनके निर्धारण के लिए एक आधार था।

हिन्दू ज्योतिषशास्त्र में नौ ज्योतिषीय वस्तुएं है जिसे नवग्रह के रूप में जाना जाता है शनि उनमें से एक है जो शनि देव के रूप में जाने गए, जीवन में अच्छे और बुरे कर्मो के प्रदर्शन के आधार पर वह प्रत्येक का न्याय करते है। प्राचीन चीनी और जापानी संस्कृति ने शनि ग्रह को भूतारा के रूप में नामित किया।

यह पांच तत्वों पर आधारित था जो पारंपरिक रूप से प्राकृतिक त्त्वोन्न वर्गीकृत करने के लिए प्रयुक्त हुए थे। प्राचीन हिब्रू में शनि को शब्बाथाइ कहा हुआ है और इसकी दूत कैसिएल है। इसकी बुद्धि या लाभदायक भावार्थ एगियल है तथा इसकी भावना जाजेल है। ओटोमन तुर्की, उर्दू एवं मलय में, इसका जुहाल नाम अरबी से व्युत्पन्न हुआ है।

शनि का यूरोपीय प्रेक्षण :

शनि ग्रह के छल्लों को स्पष्ट देखने के लिए कम-से-कम एक 15 मिलीमीटर व्यास के दूरबीन की आवश्यकता होती है इसलिए सन् 1610 में गैलिलियो द्वारा सबसे पहले देखने तक यह ज्ञात नहीं था। उन्होंने उन्हें शनि ग्रह की ओर के दो चंद्रमाओं जैसा समझा। यह तब तक नहीं हुआ जब तक क्रिश्चियन हुय्गेंस ने बड़ी दूरबीन आवर्धन प्रयुक्त किया जिससे यह धारणा खंडित हुई थी।

हुय्गेंस ने शनि ग्रह के चंद्रमा टाइटन की खोज की, गियोवन्नी डोमेनिको कैसिनी ने बाद में चार अन्य चंद्रमाओं को खोजा – ओएपिटस, रिया, टेथिस और डीओन। सन् 1675 में कैसिनी ने एक अंतराल खोजा जो अब कैसिनी विभाजन के रूप में जाना जाता है आगे महत्व की और कोई खोजे सन् 1789 तक नहीं बनी जब विलियम हर्शेल ने दो चंद्रमाओं माइमस और एनसेलेडस को खोजा।

अनियमित आकार का उपग्रह हिपेरायन जिसका टाइटन के साथ एक अनुनाद है एक ब्रिटिश दल द्वारा सन् 1848 में खोजा गया था। सन् 1899 में विलियम हेनरी पिकरिंग ने फोबे की खोज की, एक बहुत अधिक अनियमित उपग्रह जो शनि के साथ तुल्यकालिक रूप में नहीं घूमता जैसे कि बड़े ग्रह करते हैं।

फोबे पाया गया ऐसा पहला उपग्रह था जो एक प्रतिगामी कक्षा में शनि की परिक्रमा के लिए ज्यादा-से-ज्यादा एक साल लेता है। 20 वीं शताब्दि के दौरान टाइटन के अनुसंधान ने सन् 1944 में इस पुष्टिकरण की अगुआई की कि इसका एक मोटा वायुमंडल था – सौरमंडल के चंद्रमाओं के मध्य एक अद्वितीय विशेषता।

पायनियर 11 फ्लाईबाई :

सितंबर 1979 में पायनियर 11 शनि ग्रह के लिए ढोया गया पहला फ्लाईबाई बना जब यह ग्रह के बादलों के शीर्ष से 20,000 किलोमीटर के अंदर से गुजरा था। ग्रह और उसके चंद्रमाओं की तस्वीरें खोंची गई हालाँकि उसकी स्पष्टता सतह की विस्तारपूर्वक मंत्रणा के लिहाज से बहुत हल्की थी।

अंतरिक्ष यान ने शनि ग्रह के छल्लों का भी अध्धयन किया, पतले एक छल्ले का खुलासा हुआ और उसकी सच्चाई यह है कि छल्ले का श्याह अंतराल चमकता है जब इसे उच्च चरण कोण पर देखा गया जिसका अर्थ है कि वे बारीक़ प्रकाश बिखरने वाली सामग्री शामिल करते है। इसके अतिरिक्त पायनियर 11 ने टाइटन का तापमान मापा था।

वॉयजर फ्लाईबाई :

नवंबर 1980 में वॉयेजर 1 यान ने शनि ग्रह की प्रणाली के लिए फ्लाईबाई का आयोजन किया था। इसने ग्रह, उसके छल्लों और उपग्रहों की पहली उच्च स्पष्टता की तस्वीरें प्रेषित की। सतही आकृतियाँ और अनेक चंद्रमाओं को पहली बार देखा गया था। वॉयजर 1 टाइटन के पास से गुजरा और चंद्रमा के वायुमंडल की जानकारी को बढ़ाया।

इसके साबित कर दिया था कि टाइटन का वायुमंडल दृश्य तरंगदैर्घ्य के प्रति अभेद्य है इसलिए कोई सतही विवरण देखना नहीं हो पाया था। फ्लाईबाई ने अंतरिक्ष यान के प्रक्षेपवक्र को सौरमंडल के तल से बाहर की तरफ बदला। लगभग एक साल के बाद अगस्त 1981 में वॉयजर 2 ने शनि ग्रह की प्रणाली का अध्धयन जारी रखा।

शनि ग्रह के चंद्रमाओं की समीपी तस्वीरें अधिग्रहीत हुयी साथ ही वातावरण और छल्ले में परिवर्तन के सबूत भी प्राप्त हुए। भाग्य अच्छा न होने की वजह से फ्लाईबाई के दौरान यान का फिरने वाला कैमरा मंच कुछ दिनों के लिए अटक गया जिससे प्रतिचित्रण की कुछ योजनाओं की क्षति हुई थी।

शनि ग्रह का गुरुत्वाकर्षण अंतरिक्ष यान के प्रक्षेपवक्र को युरेनस की तरफ मोड़ने के लिए प्रयुक्त हुआ था। यान ने ग्रह के छल्ले के पास या अंदर परिक्रमारत कई नए उपग्रहों साथ ही साथ छोटे मैक्सवेल अंतर्ला और कीलर अंतराल की खोज और पुष्टि की।

कैसिनी-हुय्गेंस अंतरिक्ष यान :

1 जुलाई, 2004 को कैसिनी हुय्गेंस अंतरिक्ष यान ने शनि कक्षा प्रविष्टि के कौशल का प्रदर्शन किया था और शनि के इर्द-गिर्द की कक्षा में प्रवेष किया था। प्रविष्टि के पूर्व कैसिनी पहले ही बड़े पैमाने पर प्रणाली का अध्धयन कर चूका था। जून 2004 में इसने फोबे का एक मिपी फ्लाईबाई का आयोजन किया था जिसने उच्च स्पष्टता की छवियों और डेटा को प्रेषित किया था।

शनि ग्रह के सबसे बड़े चंद्रमा टाइटन के कैसिनी फ्लाईबाई ने बड़ी झीलों, द्वीपों और पहाड़ों के साथ-साथ उनके तटों की रडार छवियों को भी कैद किया था। इस ऑर्बिटर ने हुय्गेंस यान के 25 दिसंबर, 2004 में रवाना होने से पहले दो टाइटन फ्लाईबाई पूरा किया था।

हुय्गेंस 14 जनवरी, 2005 को टाइटन की सतह पर उतरा और वायुमंडलीय अवतरण के दौरान एवं लैंडिंग के बाद डेटा की बाढ़ भेजी थी। आरंभिक 2005 के बाद वैज्ञानिकों ने शनि ग्रह पर बिजली खोज निकाली है और इस बिजली की शक्ति पृथ्वी की बिजली की लगभग 1000 गुना है। साल 2006 में नासा ने खबर दी कि कैसिनी ने शनि ग्रह के चंद्रमा एनसेलेडस के सोते में प्रस्फुटित हो रहे तरल जल जलाशयों के प्रमाण पाए थे।

मई, 2011 में एक एनसेलेडस फोकस समूह सम्मेलन में नासा के वैज्ञानिकों ने सुचना दी कि एनसेलेडस जीवन जैसा हम जानते हैं के लिए सौरमंडल में पृथ्वी से परे सबसे ज्यादा रहने योग्य जगह के रूप में उभर रहा है। जुलाई 2006 में कैसिनी छवियों ने टाइटन के उत्तरी ध्रुव के पास हाइड्रोकार्बन झीलों के सबूत प्रदान किए जिसकी मौजूदगी की पुष्टि जनवरी 2007 में हुई थी।

मार्च 2007 में टाइटन के उत्तरी ध्रुव के पास की दूसरी छवियों ने हाइड्रोकार्बन समुद्र का खुलासा किया उनमें से सबसे बड़ा लगभग-लगभग कैस्पियन सागर के आकार का है। अक्टूबर 2006 में यान ने शनि के दक्षिणी ध्रुव के एक आईवोल में एक 8000 किलोमीटर व्यास के चक्रवात जैसे तूफान का पता लगाया। अप्रैल 2013 में कैसिनी ने ग्रह के उत्तरी ध्रुव के एक तूफान की छवियाँ प्रेषित की, 530 किलोमीटर/घंटा से भी तेज हवाओं वाला यह तूफान पृथ्वी पर पाए जाने वाले तूफानों से 20 गुना बड़ा है।

शनि का प्रेक्षण :

शनि आँखों से आसानी से दिखने वाले 5 ग्रहों में सनसे दूर का ग्रह है बाकी के चार बुध, शुक्र, मंगल और बृहस्पति है। शनि ग्रह रात के समय आकाश में आँखों को एक चमकदार पीले प्रकाश पुंज के समान दिखाई देता है जिसका सापेक्ष कान्तिमान आमतौर पर एक और शून्य के बीच है।

शनि ग्रह राशिचक्र के पृष्ठभूमि के तारामंडल के विरुद्ध क्रांतिवृत्त के पुरे परिपथ को बनाने के लिए लगभग 291/2 वर्ष लेता है। अधिकांश लोगों को शनि के छल्ले को साफ तरीके से समझने के लिए कम-से-कम 20 गुना प्रकाशिक के साथ आवर्धक की आवश्यकता होगी। जब भी यह आसमान में दिखाई दता है अधिकांश समय तक प्रेक्षण हेतु एक लाभदायक लक्ष्य है।

शनि ग्रह जब विमुखता पर या इसके समीप है, ग्रह और उनके छल्लों को सबसे अच्छा देखा गया है भले ही शनि 2003 के आखिरी वक्त में पृथ्वी और सूर्य के समीप था। 17 दिसंबर , 2002 के विमुखता के दौरान पृथ्वी के सापेक्ष उसके छल्लों के अनुकूल अभिविन्यास की वजह से शनि अपनी सबसे अधिक चमक पर दिखा था।

शनि भारतीय संस्कृति में :

भारतीय संस्कृति में शनि देव को सूर्य पुत्र माना गया है। उनके संबंध में अनेकों भ्रांतियां हैं इसलिए उन्हें मारक, अशुभ और दुःख कारक के जैसे अनेक रूपों वाला भी माना गया है। शनि ग्रह मोक्ष देने वाला एकमात्र ग्रह है। शनि ग्रह प्रकृति में संतुलन को बनाए रखता है। वे प्रत्येक प्राणी के साथ न्याय करते हैं।

शनि सिर्फ अनुचित विषमता और अस्वाभाविक समता को आश्रय देने वाले लोगों को ही प्रताड़ित करते है। फलित ज्योतिष शास्त्रों में शनि को अनेक नामों से बुलाया जाता है जैसे- मंदगामी, सूर्य-पुत्र, शनिश्चर आदि। शारीरिक रोगों में शनि को वायु विकार, कंप, हड्डी व दंत रोगों का कारक माना गया है।

शनि के सात वाहक हाथी, घोडा, हिरण, गधा, कुत्ता, भैंसा और गिद्ध है। उनकी पत्नी नीलादेवी है। भारत देश में प्रायः हर शहर में शनि देव के मन्दिर स्थापित है। इनमें महाराष्ट्र के सीग्नापुर का शनि मन्दिर सुप्रसिद्ध है। शनि देव की पूजा के लिए शनिवार का दिन शुभ माना जाता है।

शनि वैश्विक संस्कृति में :

ज्योतिष में शनि ग्रह पारंपरिक रूप से एक्वारियस तथा कैप्रिकॉन के सत्तारूढ़ ग्रह है। दिवस सैटर डे, शनि ग्रह पर नामित है जो कृषि के रोमन देवता सैटर्न से प्राप्त हुआ है। पृथ्वी की कक्षा और उससे आगे के लिए भारी पेलोड प्रमोचन के लिए सैटर्न समुदाय के रॉकेट अधिकतर वर्नहेर वॉन ब्राउन के नेतृत्व में जर्मन रॉकेट वैज्ञानिकों के एक दल द्वारा विकसित हुए थे। मूल रूप से एक सैन्य उपग्रह प्रक्षेपक के रूप में प्रस्तावित इन रॉकेटों को अपोलो कार्यक्रम के लिए प्रक्षेपण वाहन के रूप में अपनाया गया।

शुभ फल और लक्षण :

शनि देव के बहुत से शुभ लक्षण होते हैं जैसे – जातक रचनात्मक होता है, कलात्मक अभिव्यक्ति में माहिर होना, बुद्धिमान बनाता है, जातक घटनाओं व अनुभवों का उचित विश्लेषण करने की क्षमता रखता है, जातक में अच्छी निर्णय क्षमता व दूरदर्शिता देखने को मिलती है।

राजनीती में सफल और बेहतर नीतिकार बनाता है, धन की प्राप्ति कराता है, व्यापार में लाभ मिलना, लाटरी शेयर बाजार से अचानक लाभ मिलना, सुखमय वैवाहिक जीवन प्रदान करना, धनी पत्नी मिले, उत्तम संतान प्राप्त हो, लंबी आयु प्रदान करता है आदि।

अशुभ फल और लक्षण :

शनि देव के बहुत से अशुभ लक्षण भी होते हैं जैसे – विवाह देरी से होना, समय पर हो जाये तो अलग होने की स्थिति उत्पन्न होना, मान हानि होना, नशे की लत लग जाना, व्यभिचारि होना, कई स्त्रियों या पुरुषों से संबंध होना, आर्थिक संकट आना, ऋण नहीं चूका पाना, कोर्ट केस हो जाना, एक्सीडेंट होना, सर में चोट लगना, अनिष्ट का भय बना रहना, जातक के कामों में रुकावट आना या देरी होना, मानसिक रोग लग जाना, धन हानि हो जाना, संतान प्राप्ति में बाधा आना, उचित शिक्षा प्राप्त न होना, पुलिस कार्यवाही होना, कोर्ट कचहरी के चक्कर में पड़ना आदि।

शांति के लिए उपाय :

शनि ग्रह शांति के बहुत से उपाय हैं जैसे – ताऊ जी के साथ अपने संबंधों को सुधारें, चींटियों को काले तिल दें, किसी जरुरतमन्द बुजुर्ग को लाठी खरीदकर दें जससे उन्हें चलने में आसानी हो, पीपल के पेड़ के पास सरसों के तेल का दिया जलाएं, शनिवार का व्रत करें, रोज शनि देव के मंत्र की एक माला जरुर करें, कामगारों व मजदूरों से मधुर संबंध रखें, आशीर्वाद लें, सात्विक भोजन ग्रहण करें, उडद की दाल का दान करें, छाता दान करें, किसी का पैसा या हिस्सा कभी भी न हडपे, ऐसी स्थिति में शुभ शनी भी अशुभ फल देने लगता है, जामुन के पेड़ लगायें, शिव या बजरंगबली की उपासना करें, शनि की पूरी महादशा में रात में भोजन से पहले शनि चालीसा का पाठ जरुर करें आदि।

अगर कुंडली में शनि शुभ हो तो नीलम धारण किया जा सकता है लेकिन नीलम धारण करने से पहले किसी योग्य विद्वान को अपनी पत्री जरुर दिखाएँ। अगर शनि अशुभ हो तो किसी भी तरह से नीलम धारण न करें। इसे दूध गंगाजल में धोकर पंचधातु में सूर्यास्त के बाद मिडल फिंगर में शनिवार के दिन को पहनें। नीलम के आभाव में नीली का उपयोग किया जा सकता है।

शनि ग्रह की विशेषताएं :

भारतीय ज्योतिष में शनि देव को कर्मफलदाता यानि की पृथ्वी पर उपस्थित प्राणी मात्र के उचित-अनुचित कर्मों के फल प्रदान करने के वाले न्यायकर्ता के रूप में जाना जाता है। शनि देव के नक्षत्र पुष्य, अनुराधा व उत्तराभाद्रपदा होते हैं। शनि देव मकर और कुंभ राशि के स्वामी होते हैं तथा तीसरी, सातवीं और दसवीं दृष्टि से देखते हैं।

जब कुंडली में शनि देव की स्थिति उचित नहीं होती है तो इनको उन्माद, वात, भंगदर व गठिया रोग आदि देने वाला कहा गया है। शनि देव की उच्च राशि तुला और नीच राशि मेष है। शनि देव को स्वभाव से पापी और क्रूर कहा जाता है। शनि देव बुध व शुक्र को अपना मित्र, गुरु को सम और सूर्य, चंद्र व मंगल को शत्रु मानते हैं।

सामान्यतः शनि देव को दुःख प्रदाता ग्रह मान लिया जाता है को आधा सच है। सभी को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि शनि देव को न्यायधीश का पद प्राप्त है और ये हमारे कामों के अनुसार ही शुभ-अशुभ फल देते हैं। अगर शनि देव कुंडली में शुभ हों तो मान-सम्मान, पद-प्रतिष्ठा प्राप्त करने में सहायक होते हैं। शनि देव को मोक्ष प्रदायक भी माना जाता है।

शनि देव का रत्न नीलम है। शनि देव की दिशा पश्चिम है और कुंडली के सातवें भाव में शनि देव को दिशा बल मिलता है तथा इन्हें दंत, हड्डियों, वात व कम्प विकार का कारक कहा जाता है। शनि देव का शुभ दिन शनिवार होता है और रंग काला होता है। शनि देव की धातु लोहा और आराध्य देव शिव को कहा जाता है। इनका महादशा समय 19 और बीज मंत्र ॐ प्रां प्रीं प्रौं सः शनैश्च्राय नमः है।

शनि ग्रह के विषय में रोचक तथ्य :

शनी ग्रह पृथ्वी से 95 गुना भारी है लेकिन शनि का घनत्व पृथ्वी से कम है और साथ ही शनि ग्रह का तापमान 180 डिग्री सेल्सियस है। शनि ग्रह के चारो तरफ एक पत्थरों की वलय हमेशा चक्कर लगाती रहती है आकार की दृष्टि से यह दूसरा सबसे बड़ा ग्रह है। वलय होने की वजह से इसे कुंडली ग्रह भी कहा जाता है।

शनि ग्रह मुख्यतः हीलियम और हाइड्रोजन गैस पाई जाती है। शनि ग्रह के वलय 20 किलोमीटर प्रति सेकेण्ड की गति से इसके चारों तरफ घूमते है यह काफी छोटे-छोटे कणों द्वारा बना हुआ है इस वलय की मोटाई लगभग 15 किलोमीटर है। शनि ग्रह के 61 उपग्रह है जिनमें टिटान, डीआन, इपापेटस, रीय हाइपेरियन, मीमांस तथा फोबे है टिटान शनि ग्रह का सबसे बड़ा उपग्रह तथा पैन सबसे छोटा उपग्रह है।

शनि ग्रह की कक्षा की उत्केंद्रता लगभग 0.056 है तथा इसकी औसत अक्षीय गति 9.6 किलोमीटर/सेकेण्ड है। शनि ग्रह का द्रव्यमान पृथ्वी की अपेक्षा 22 गुना ज्यादा है तथा इसका पलायन वेग 36 किलोमीटर/सेकेण्ड है। शनि ग्रह पृथ्वी से नौ गुना बड़ा ग्रह है। शनि ग्रह लोहा, निकल और चट्टानों के कोर से बना हुआ है ये धातु हाइड्रोजन की परत से घिरा है।

शनि ग्रह पर हवा 1800 किलोमीटर प्रति घंटे की स्पीड तक पहुंच जाती है लेकिन नेपच्यून गरजा पर इससे ज्यादा हवा चलती है। शनि ग्रह पर 10 घंटे और 39 मिनट का एक दिन होता है और एक साल 10,759.22 दिनों का होता है। शनि ग्रह पर तूफान महीने बाद या साल बाद आते हैं।

2004 में शनि ग्रह पर बहुत तेज तूफान आया था जिसे ड्रैगन स्टॉर्म का नाम दिया गया। शनि ग्रह के छल्ले लगभग एक ही तले पर लगे हैं। यह छोटे-छोटे कणों से लेकर बड़े-बड़े टुकड़ों से बने हुए हैं। सभी छल्ले बर्फ से बने हुए हैं जो शुक्र की परिक्रमा करते रहते हैं। इसे रोमन देवता सैटर्नस के नाम से भी जाना जाता है और क्रोनस के रूप में यूनानियों के लिए जाना जाता था।

शनि एक समतल ग्रह है। शनि ग्रह के उपरी वायुमंडल बादलों के बैंड में बांटा गया है। शनि ग्रह की उपरी परतों में अधिकतर अमोनिया युक्त बर्फ है। उन्हें नीचे बादल बहुत हद तक पानी बर्फ कर रहे हैं। नीचे की परतों में ठंडे हाइड्रोजन और सल्फर युक्त बर्फ के मिश्रण की परतें हैं। इसके उत्तरी ध्रुव के इर्द-गिर्द के क्षेत्र के बादलों की एक हेक्सगोनल के आकार का पैटर्न है।

शनि ग्रह इतना बड़ा है कि पृथ्वी इसमें 755 बार आ सकती है। सैटर्नियन छल्ले अधिकतर बर्फ की मात्रा और कार्बनमय धूल की छोटी मात्रा के बने होते हैं। ये छल्ले ग्रह से ज्यादा-से-ज्यादा 1,20,700 किलोमीटर बाहर खिंचाव पर स्थित है लेकिन आश्चर्यजनक रूप से बहुत पतले होते हैं केवल 20 मीटर मोटी रिंग्स। शनि ग्रह के पास 150 चंद्रमा और छोटे मूनलेट्स है।

सबसे बड़े चंद्रमा टाइटन और रिया हैं। अगर आप 75 मील प्रति घंटे की रफ्तार से गाड़ी चला रहे हो तो आपको इसके एक छल्ले को पार करने में 258 दिन लग जाएँगे। शनि ग्रह पर हवा की रफ्तार 1100 मील प्रति घंटे है, यह हमारे सौरमंडल में सबसे अधिक विंड़ेस्ट ग्रह है। शनि ग्रह का घनत्व बहुत कम है अगर इसे पानी में डाले तो ये तेरने लगने लगता है।

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अरुण ग्रह-Uranus Planet In Hindi

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अरुण ग्रह (Uranus In Hindi) :

अरुण ग्रह हमारे सौरमंडल में सूर्य से सातवाँ ग्रह है। व्यास के आधार पर यह सौरमंडल का तीसरा बड़ा और द्रव्यमान के आधार पर चौथा बड़ा ग्रह है। अरुण ग्रह आकर में तीसरा बड़ा तथा सूर्य से दूरी में सातवें स्थान पर है। द्रव्यमान में यह पृथ्वी से 14.5 गुना ज्यादा भारी और आकार में पृथ्वी से 4 गुना ज्यादा है लेकिन औसत रूप से देखा जाए तो पृथ्वी से बहुत कम घना है क्योंकि पृथ्वी पर पत्थर और अन्य भारी पदार्थ ज्यादा प्रतिशत में हैं जबकि अरुण पर गैस ज्यादा है।

अरुण ग्रह आकार में पृथ्वी से 63 गुना ज्यादा बड़ा है। अरुण ग्रह की खोज 13 मार्च , 1781 में विलियम हरशल ने इसकी खोज की थी। अरुण एक ऐसा ग्रह है जिसे दूरबीन द्वारा देखा जा सकता है। अरुण ग्रह में घना वायुमंडल पाया जाता है जिसमें मुख्य रूप से हाइड्रोजन व अन्य गैसें हैं। अरुण ग्रह अपनी धुरी पर सूर्य की तरफ इतना झुका हुआ है कि लेटा हुआ दिखाई देता है। इसके सभी उपग्रह भी पृथ्वी की विपरीत दिशा में परिभ्रमण करते हैं।

अरुण ग्रह की रुपरेखा :

अरुण ग्रह की सूर्य से दूरी 287 करोड़ 6 लाख 58 हजार 186 किलोमीटर है। अरुण ग्रह के ज्ञात उपग्रह 27 है और द्रव्यमान 86,81,030 अरब किलोग्राम है। अरुण ग्रह का भूमध्यरेखीय व्यास 51,118 किलोमीटर है और ध्रुवीय व्यास 49,964 किलोमीटर है। अरुण ग्रह की भूमध्य रेखा की लंबाई 159,354 किलोमीटर है। अरुण ग्रह का एक साल पृथ्वी के 84.2 साल या 30,685.15 दिन के बराबर है। अरुण ग्रह की सतह का तापमान -197०C और खोज तिथि 13 मर्च , 1781 में विलियम हर्शेल द्वारा है।

अरुण ग्रह की कक्षा और घूर्णन :

अरुण ग्रह शुक्र ग्रह की तरह पूर्व से पश्चिम की ओर घूमता है जबकि अन्य ग्रह पश्चिम से पूर्व की तरफ घूमते हैं। यह सूर्य की परिक्रमा 84 साल में एक बार कर पाता है और इसका घूर्णन 10 से 25 घंटे है। इसकी सूर्य से औसत दूरी लगभग 3 अरब किलोमीटर है। अरुण ग्रह पर सूर्य प्रकाश की तीव्रता पृथ्वी की तुलना में लगभग 1/1400 है।

सबसे पहले इसके कक्षीय तत्वों की गणना सन् 1783 में पियरे सीमोन लाप्लास द्वारा की गई थी। वक्त के साथ अनुमानित और अवलोकित कक्षाओं के मध्य की विसंगतियाँ नजर आणि आरंभ हो गई और सन् 1841 में जॉन काउच एडम्स ने सबसे पहले प्रस्तावित किया कि यह अंतर किसी अदृश्य ग्रह के गुरुत्वाकर्षण खिंचाव की वजह से हो सकता है।

सन् 1845 में उर्बैन ली वेर्रियर ने अरुण की कक्षा पर अपना स्वतंत्र अनुसंधान शुरू किया। 23 सितंबर, 1846 को जोहान गोटफ्राइड गाले ने एक न्य ग्रह खोजा बाद में इसका नाम वरुण रखा गया। अरुण के अंदर की घूर्णन अवधि 17 घंटे 14 मिनट है। सभी महाकाय ग्रहों की तरह इसका ऊपरी वायुमंडल भी घूर्णन की दिशा में काफी शक्तिशाली हवाओं को महसूस करता है।

अरुण ग्रह का अक्षीय झुकाव :

अरुण ग्रह अपने अक्ष पर लगभग 82० झुका हुआ है जिससे यह लेटा हुआ दिखाई देता है इसलिए इसे लेता हुआ ग्रह भी कहा जाता है। अरुण का अक्षीय झुकाव 97.77 डिग्री है इसलिए इसकी घूर्णन धूरी सौरमंडल तल के साथ लगभग समानांतर है। यह उसको अन्य प्रमुख ग्रहों के विपरीत पूरी तरह से भिन्न मौसमी परिवर्तन देता है।

अन्य ग्रह सौरमंडल तल पर डोलते लटुटओं की तरह घूमते हुए देखे जा सकते हैं जबकि अरुण एक डोलती लुढ़कती गेंद की तरह परिभ्रमण करता है। अरुण संक्रांति के समय के आसपास, एक ध्रुव लगातार सूर्य के सामने रहता है जबकि दूसरा ध्रुव परे रहता है।

सिर्फ भूमध्यरेखा के आसपास का संकरा पट्टा द्रुत दिन-रात के चक्रों को महसूस करता है लेकिन क्षितिज पर बहुत नीचे सूर्य के साथ जिस प्रकार से पृथ्वी के ध्रुवीय क्षेत्रों में होता है। अरुण की कक्षा के दूसरी तरफ सूर्य के सामने के ध्रुवों का अभिविन्यास उल्ट है। हर ध्रुव 42 सालों के आसपास लगातार उजाला पाता है फिर अलगे 42 साल अँधेरे में गुजारता है। विषुवों के समय के पास सूर्य अरुण के विषुववृत्त के सामने होता है और दिन-रात के चक्रों की एक समयावधि देता है उसी तरह जैसी वह अधिकतर अन्य ग्रहों में देखी गई। अरुण अपने सबसे हाल के विषुव पर 7 दिसंबर, 2007 को पहुंचा था।

अरुण ग्रह की दृश्यता :

सन् 1994 से 2006 तक अरुण का आभासी परिमाण +5.6 और +5.9 के मध्य घटता बढ़ता रहा, नग्न आखों की दृश्यता की सीमा के ठीक अंदर रखने पर परिमाण +6.5 का होता है। इसका कोणीय व्यास 3.4 और 3.7 आर्क सेकेण्ड है, तुलना के लिए शनि ग्रह के लिए 16 से 20 आर्क सेकेण्ड और बृहस्पति के लिए 32 से 45 आर्क सेकेण्ड है।

विमुखता पर अरुण रात के समय आकाश में नग्न आँखों से दीखता है और दूरबीन के साथ शहरी परिवेश में भी एक आसन लक्ष्य बन जाता है। 15 और 23 सेंटीमीटर व्यास के बड़े शौकिया दूरबीनों के साथ यह ग्रह एक हल्की हरी नीली चकती के जैसा दिखाई देता है। 25 सेंटीमीटर या इससे व्यापक की एक बड़ी दूरबीन के साथ बादल के स्वरूप को यहाँ तक कि कुछ बड़े उपग्रहों को देख सकते हैं।

अरुण ग्रह की आंतरिक संरचना :

अरुण का द्रव्यमान पृथ्वी के द्रव्यमान की तुलना में 14.5 गुना है जो वृहदाकार ग्रहों में सबसे कम है। इसकी त्रिज्या वरुण ग्रह की तुलना में थोड़ी सी अधिक और पृथ्वी की त्रिज्या की चार गुना है। नतीजतन 1.27 ग्राम/सेंटीमीटर3 का घनत्व अरुण को शनि के बाद सबसे कम घना गढ़ बनाता है। यह मान इंगित करता है कि मुख्य रूप से विभिन्न प्रकार के बर्फों से बना है जैसे- जल, अमोनिया और मीथेन।

अरुण ग्रह के आंतरिक भाग में बर्फ की समग्र मात्रा सही से ज्ञात नहीं है, मॉडल के चुनाव के हिसाब से भिन्न-भिन्न आंकड़े उभरकर सामने आते है, यह पृथ्वी के द्रव्यमान के 9.3 और 13.5 के मध्य होना चाहिए। हाइड्रोजन और हिलियामं समग्र का सिर्फ एक छोटा सा हिस्सा बनाते है। बाकी गैर बर्फ की मात्रा चट्टानी सामग्री से बनी है।

अरुण ग्रह की संरचना का मानक मॉडल यह है कि यह ग्रह तीन परतों से बना है। इसके केंद्र में एक चट्टानी कोर, मध्य में एक बर्फीला मेंटल और एक बाहरी गैसीय छिलका। कोर 0.55 पृथ्वी द्रव्यमान के साथ अपेक्षाकृत छोटा है और त्रिज्या अरुण की 20% त्रिज्या से कम है, मेंटल 13.4 पृथ्वी द्रव्यमान के साथ ग्रह की एक बड़ी राशि शामिल करता है जबकि उपरी वायुमंडल 0.5 पृथ्वी द्रव्यमान की तौल के साथ तुलनात्मक रूप से अवास्तविक है और अरुण के अंतिम किनारे की 20% त्रिज्या पर विस्तारित है। अरुण की कोर का घनत्व 9 ग्राम/सेंटीमीटर3 के आसपास है, केंद्र में 80 लाख बार का दबाव और लगभग 5000 केल्विन का तापमान है।

अरुण ग्रह का आंतरिक ताप :

अरुण का आंतरिक ताप साफ तरीके से अन्य वृहदाकार ग्रहों की तुलना में कम जान पड़ता है, खगोलीय शब्दों में इसके पास एक निम्न तापीय प्रवाह है। अरुण का आंतरिक तापमान इतना कम क्यों है यह अभी भी समझ से बिलकुल परे है। वरुण जो आकार और संरचना में अरुण का द्विगुणा है, 2.61 गुना अधिक ऊर्जा अंतरिक्ष में विकृत करता है जितना वह सूर्य से प्राप्त करता है।

अरुण द्वारा अवरक्त वर्णक्रम के भाग से छोड़ी गई कुल शक्ति उसके अपने वातावरण में अवशोषित सौर ऊर्जा की १.०६ ± ०.०८ गुना है। असल में अरुण का तापीय प्रवाह सिर्फ ०.०४२ ± ०.०४७ वॉट/मी२ है, जो ०.०७५ वॉट/मी२ के लगभग पृथ्वी के आंतरिक तापीय प्रवाह से कम है।

अरुण ग्रह के ट्रोपोपाउस में दर्ज हुआ निम्नतम तापमान 49 केल्विन है जो अरुण को सौरमंडल में सबसे ठंडा ग्रह बनाता है। इस विसंगति के लिए एक परिकल्पना सुझाव देती है कि जब अरुण एक विशालकाय प्रहारित निकर के द्वारा ठोका गया, अरुण की अधिकांश आद्य गर्मी के निष्कासन की वजह से बना, यह गर्मी एक खत्म हो चुके कोर तापमान के साथ छोड़ी गई थी। एक अन्य परिकल्पना है कि अरुण के ऊपरी परतों में किसी प्रकार का अवरोध उपस्थित है जो कोर की गर्मी को सतह तक पहुंचने से रोकता है।

अरुण का चुंबकीय क्षेत्र :

वॉयेजर 2 की पहुंच से पूर्व अरुण के मेग्नेटोस्फेयर का कोई भी मापन नहीं लिया गया था इसलिए इसकी प्रकृति एक रहस्य बनी हुई है। सन् 1986 से पहले खगोलविदों ने अरुण के चुंबकीय क्षेत्र को सौरवायु के साथ की रेखा में होने की उम्मीद की थी इसके बाद इसका ग्रह के ध्रुवों के साथ मिलान हो गया था जो क्रांतिवृत्त में स्थित है।

वॉयेजर के अवलोकनों ने दर्शाया कि दो कारणों की वजह से अरुण का चुंबकीय क्षेत्र विशिष्ट है, एक तो क्योंकि यह ग्रह के ज्यामितीय केंद्र से शुरू नहीं होता है और दूसरा क्योंकि यह घूर्णी अक्ष से 59० पर झुका हुआ है। असल में यह चुंबकीय द्विध्रुव ग्रह के केंद्र से दक्षिण घूर्णी ध्रुव की तरफ ग्रहीय व्यास के अधिकतम एक तिहाई जितना खिसक गया है।

उच्च असममितीय मैग्नेटोस्फेयर में इस अप्रत्याशित ज्यामितीय परिणामस्वरूप, जहाँ दक्षिणी अर्धागोलार्ध में की सतह पर चुंबकीय क्षेत्र का सामर्थ्य निम्नतम 0.1 गॉस हो सकता है, इसी तरह उत्तरी अर्धागोलार्ध में यह उच्चतम 1.1 गॉस हो सकता है। सतह र औसत क्षेत्र बल 0.23 गॉस है। तुलना के लिए पृथ्वी का चुंबकीय क्षेत्र मोटे तौर पर दोनों ध्रुव पर शक्तिशाली है और चुंबकीय भूमध्यरेखा मोटे तौर पर अपनी भौगोलिक भूमध्यरेखा के साथ समानांतर है।

अरुण के चंद्रमा :

अरुण ग्रह के 27 उपग्रह है जिसमें प्रमुख हैं – मिरांडा, एरियल, ओबेरॉन, टाइटैनिया, कौर्ड़ेनिया, ओफेलिया आदि हैं। इस उपग्रहों के लिए नामों को शेक्सपीयर और अलेक्जेंडर पोप की कृतियों के पात्रों से चुना गया है। यह युरेनस उपग्रहीय प्रणाली गैस दानवों के मध्य सबसे कम बड़ी है सचमुच इन प्रमुख उपग्रहों का संयुक्त द्रव्यमान अकेले ट्राईटोन के आधे से भी कम होगा।

इन उपग्रहों में सबसे बड़े टाईटेनिया की त्रिज्या मात्र 788.9 किलोमीटर या चाँद के आधे से भी कम है लेकिन शनि के दूसरे सबसे बड़े चंद्रमा रिया से थोड़ी सी अधिक है जो टाईटेनिया को सौरमंडल में आठवां सबसे बड़ा चन्द्रमा बनाता है। इन चंद्रमाओं का अपेक्षाकृत निम्न एल्बिडो का विचरण अम्ब्रियल के लिए 0.20 से एरियल के लिए 0.35 है।

यह चंद्रमा एक संपीडित बर्फीली चट्टानें है जो मोटे तौर पर 50% बर्फ और 50% चट्टान से बनी है। यह बर्फ अमोनिया और कार्बनडाई ऑक्साइड को शामिल किए हो सकते हैं। इन उपग्रहों में से एरियल की सतह कुछ संघात के साथ नवीकृत जान पडती है जबकि अम्ब्रियल की पुराणी दिखाई देती है।

अरुण ग्रह के विषय में रोचक तथ्य :

इसका आकार पृथ्वी से चार गुना बढ़ा है लेकिन इसे बिना दूरबीन के देखा नहीं जा सकता है। मीथेन गैस की अधिकता की वजह से यह हरे रंग का दिखाई देता है। अरुण ग्रह में शनि की चारो तरफ वलय पाए जाते हैं जिनके नाम – अल्फा, बीटा, गामा, डेल्टा एवं इप्सिलॉन।

अरुण और वरुण ग्रह के वातावरण में बृहस्पति और शनि की तुलना में बर्फ ज्यादा है – पानी की बर्फ के अलावा इनमें जमी हुई अमोनिया और मीथेन गैसों की बर्फ भी है। अरुण ग्रह का नाम आकाश के रोमन देवता के नाम पर रखा गया है। अरुण ग्रह पर सूर्योदय पश्चिम दिशा में और सूर्यास्त पूर्व में होता है। अरुण ग्रह पर दिन लगभग 11 घंटे का होता हो।

हमारे सौरमंडल में चार ग्रहों को गैस दानव कहा जाता है क्योंकि इनमे मिट्टी पत्थर की जगह पर ज्यादातर गैस है और इनका आकार बहुत ही विशाल है। अरुण इनमे से एक है – बाकी तीन बृहस्पति , शनि ओए वरुण हैं। इनमे से अरुण की बनावट वरुण से बहुत मिलती-जुलती है।

अरुण और वरुण के वातावरण में बृहस्पति और शनि की तुलना में बर्फ ज्यादा है – पानी की बर्फ के अलावा इनमें जमी हुई अमोनिया और मीथेन गैसों की बर्फ भी है इसलिए कभी-कभी खगोलशास्त्री इन दोनों को बर्फीले गैस दानव नाम की श्रेणी में डाल देते हैं। सौरमंडल के सभी ग्रहों में से अरुण का वायुमंडल सबसे ठंडा पाया गया है और उसका न्यूनतम तापमान -49 कैल्विन देखा गया है।

इस ग्रह में बादलों के कई तल देखे हैं मानना है कि सबसे नीचे पानी के बदल हैं और सबसे उपर मीथेन गैस के बादल हैं। यह भी माना जाता है कि अगर किसी तरह के अरुण के बिलकुल बीच में जाकर उसका केंद्र देखा जाए तो वहां बर्फ और पत्थर पाए जाते हैं। इसका दिन लगभग 11 घंटे का होता है। इसका तापमान 18०C है और इसके 21 उपग्रह है।

नासा का वायेजर 2 जनवरी, 1986 में अरुण के पास पहुंचा। अरुण ग्रह की सतह से 81,000 किलोमीटर उपर इसके चक्कर लगाने लगा। इसने इस ग्रह के 11 छोटे चंद्रमाओं को खोजा था। अरुण के जो उपग्रह है उनके नाम शेक्सपीयर और अलैग्जेंडर पोप की रचनाओं के पत्रों के नाम के उपर रखे गए हैं।

अरुण ग्रह की धुरी के झुकाव का कोण 97 डिग्री है। इसका अर्थ यह है कि अरुण दक्षिणी ध्रुव सीधे पृथ्वी की तरफ इशारा किया हुआ है। ग्रह के इस अनूठे झुकाव की वजह से यहाँ की एक रात पृथ्वी के 21 सालों के बराबर होती है इसका अर्थ यह है कि यहाँ पर 21 सालो तक सूर्य की रोशनी तथा गर्मी नहीं आती है।

इस ग्रह पर वातावरण में मुख्य रूप से हाइड्रोजन, हीलियम और मीथेन गैस से बना है। मीथेन सूर्य से प्राप्त सभी लाल किरणों को अवशोषित कर नीले रंग को दर्शाता है इसी वजह से यह ग्रह खुबसूरत नीले रंग में दिखाई देता है। वीनस के समान अरुण ग्रह भी पूर्व से पश्चिम तक घूर्णन करता है ठीक पृथ्वी के विपरीत। अरुण ग्रह की कक्षीय गति प्रति सेकेण्ड 6.6 किलोमीटर है। अरुण ग्रह के पास बहुत पतले काले रंग की दो रिंग्स है।

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वरुण ग्रह-Neptune Planet In Hindi

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वरुण ग्रह (Neptune In Hindi) :

नेप्चून ग्रह को वरुण ग्रह भी कहा जाता है। वरुण ग्रह सौरमंडल का सबसे दूर सूर्य से आठवें नंबर पर स्थित है। खगोल की खोजबीन के पश्चात यह अज्ञात ग्रह 23 सितंबर, 1846 को पहली बार दूरबीन से देखा गया और इसका नाम नॅप्टयून रख दिया गया। नॅप्टयून प्राचीन रोमन धर्म में समुद्र के देवता थे जो स्थान प्राचीन भारत में वरुण देवता का रहा है इसलिए इस ग्रह को हिंदी में वरुण कहा जाता है।

इस ग्रह पर अधिक मात्रा में गैस होने की वजह से यह सौरमंडल के इतिहास में सूर्य में समाहित हो सकता है। व्यास के आधार पर नेपच्यून ग्रह चौथा सबसे बड़ा ग्रह है। वरुण ग्रह का द्रव्यमान पृथ्वी से 17 गुना ज्यादा है और अपने पडोसी ग्रह अरुण से थोडा ज्यादा है।

खगोलीय इकाई के हिसाब से वरुण की कक्षा सूरज से 30.1 ख०ई० की औसत दूरी पर है यानि वरुण पृथ्वी के मुकाबले में सूरज से लगभग 30 गुना ज्यादा दूर है। वरुण को सूरज की एक पूरी परिक्रमा करने में 164.79 साल लगते हैं यानि एक वरुण साल 164.79 पृथ्वी सालों के बराबर है। हमारे सौरमंडल में चार ग्रहों को गैस दानव कहा जाता है क्योंकि इनमें मिट्टी पत्थर की जगह ज्यादातर गैस है और इनका आकार बहुत ही विशाल है वरुण भी इनमें से एक ग्रह है।

वरुण ग्रह की रुपरेखा :

वरुण ग्रह का द्रव्यमान 1,02,410 खरब अरब किलोग्राम है। वरुण ग्रह का भूमध्यरेखीय व्यास 49,528 किलोमीटर है और ध्रुवीय व्यास 48,682 किलोमीटर है। वरुण ग्रह की सूर्य से औसतन दूरी 449 करोड़ 83 लाख 96 हजार 441 किलोमीटर है। वरुण ग्रह का एक साल पृथ्वी के 164.79 साल या 60,190 दिन के बराबर है। वरुण ग्रह का भूमध्यरेखीय घेरा 1,55,600 किलोमीटर है और सतह का औसतन तापमान -201०C है। वरुण ग्रह के ज्ञात उपग्रह 14 और ज्ञात छल्ले 5 हैं।

वरुण ग्रह की खोज और नामकरण :

वरुण पहला ग्रह था जिसकी अस्तित्व की भविष्यवाणी उसे बिना कभी देखे ही गणित के अध्धयन से की गई थी और जिसे फिर उस आधार पर खोजा गया। यह तब हुआ जब अरुण की परिक्रमा में आश्चर्यजनक गडबडी पाई गई जिनका अर्थ सिर्फ यही हो सकता था कि एक अज्ञात पड़ोसी ग्रह उस पर अपना गुरुत्वाकर्षक प्रभाव दाल रहा है।

खगोल में खोजबीन करने के पश्चात यह अज्ञात ग्रह 23 सितंबर, 1846 को पहली बार दूरबीन से देखा गया और इसका नाम नेपच्यून रख दिया गया। नेपच्यून प्राचीन रोमन धर्म में समुद्र के देवता थे जो स्थान प्राचीन भारत में वरुण देवता का रहा है इसलिए इस ग्रह को हिंदी में वरुण कहा जाता है। रोमन धर्म में नेपच्यून के हाथ में त्रिशूल होता था इसलिए वरुण का खगोलशास्त्रिय चिन्ह ♆ है।

वरुण ग्रह का रूप-रंग और मौसम :

जहाँ पर अरुण ग्रह केवल एक गोले का रूप दिखाता है जिसपर कोई निशान या धब्बे नहीं हैं वहन वरुण पर बादल, तूफान और मौसम का बदलाव स्पष्ट दिखाई देता है। माना जाता है कि वरुण ग्रह पर तूफानी हवा सौरमंडल के किसी भी ग्रह से अधिक तेज चलती है और 2100 किलोमीटर प्रति घंटा तक की गतियाँ देखी जा चुकी हैं।

जब सन् 1989 में वॉयेजर द्वितीय यान वरुण के पास से गुजरा तो वरुण ग्रह पर एक बड़ा गाढ़ा धब्बा दिखाई दे रहा था जिसकी तुलना बृहस्पति के बड़े लाल धब्बे से की गई है क्योंकि वरुण सूरज से इतना दूर है इसलिए उसका ऊपरी वायुमंडल बहुत ही ठंडा है और वहां का तापमान -128० सेंटीग्रेड तक गिर सकता है।

इसके बड़े आकार की वजह से इस ग्रह के बड़े केंद्र में इसके गुरुत्वाकर्षण के भयंकर दबाव से तापमान 5000० सेंटीग्रेड तक पहुंच जाता है। वरुण ग्रह के आसपास कुछ छितरे से उपग्रही छल्ले भी हैं जिन्हें वॉयेजर द्वितीय ने देखा था। वरुण ग्रह का हल्का नीला रंग अपने ऊपरी वातावरण में मौजूद मीथेन गैस से आता है।

वरुण ग्रह की परिक्रमा एवं घूर्णन :

वरुण और सूर्य के बीच की औसत दूरी 4.50 अरब किलोमीटर है एवं यह औसतन हर 164.79 ± 0.1 सालों में सूर्य की परिक्रमा पूरी करता है। 11 जुलाई, 2011 को वरुण ने सन् 1846 में इसकी खोज के बाद से अपनी पहली द्रव्यकेंद्रीय परिक्रमा पूरी की हालाँकि यह हमारे आसमान में अपनी सटीक खोज स्थिति में नहीं दिखा था क्योंकि पृथ्वी अपनी 365.25 दिवसीय परिक्रमा में एक भिन्न स्थान में थी।

वरुण ग्रह का स्वप्न और छद्म प्रभाव :

पश्चिमी ज्योतिषियों के अनुसार वरुण ग्रह सपनों और छद्म प्रभावों का ग्रह है। यह भावों, राशियों एवं अन्य ग्रहों को अपना विशिष्ट प्रभाव देता है। राशियों में यह गुरु के साथ मीन राशि का आधिपत्य साझा करता है। इसे भौतिक और आध्यात्मिक दुनिया के मध्य की कड़ी मानते हैं। मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से यह जातक के अवचेतन के संबंधों के विषय में जानकारी देता है।

इस ग्रह की ऊर्जा को धोखे, भ्रम और निराशाजनक लत के रूप में देखा जा सकता है। जातक की कुंडली में वरुण ग्रह जिस स्थान पर होगा उस स्थान से संबंधित चमत्कार पैदा करेगा। बारह भावों और बारह राशियों में वरुण ग्रह के असर को देखा जा सकता है। हर राशि और भाव में वरुण रहस्य, आदर्श, अध्यात्म और कल्पनाओं के तीव्र असर का समावेश कर देगा।

उदाहरण के तौर पर यदि वरुण ग्रह दूसरे भाव में है तो जातक धन कमाने के लिए नए और असामान्य तरीकों को काम में लेगा। वरुण एक राशि में लगभग 14 साल तक रहता है। इसके चलते पूरी एक जनरेशन के स्वभाव में एक जैसा प्रभाव भी देखा जा सकता है। भारतीय परिपेक्ष्य में देखे तो आजादी के पहले के सालों को 14-14 सालों में विभाजित करें तो हर दौर में एक विशिष्ट श्रेणी के लोग अधिक आए।

आजादी के बाद भी पीढ़ियों की विशिष्टता के दौर जारी हैं। कोई राष्ट्रवादी पीढ़ी है तो कोई भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज बुलंद करने वाली। कोई दौर पश्चिमी अंधानुकरण वालों का रहा तो कोई दौर देश के लिए काम करने वाले लोगों का रहा। पश्चिमी देशों को देखा जाए तो मिथुन राशि बौद्धिकता की परिचायक है।

सन् 1887 से 1901 के मध्य रचनात्मक जीनियस लोगों की भरमार रही। इसी प्रकार वर्तमान दौर में वरुण ग्रह कुभ राशि में है। यह राशि मानवतावाद और मौलिक चिंतन वाली है। इस दौर के लोग परंपरागत सोच से हटकर काम करने वाले और मानवता की सहायता करने वाले काम करने वाले सिद्ध हो सकते हैं।

वरुण ग्रह के गोचर :

इस ग्रह को एक राशि चक्र पूरा करने में 164 साल का समय लगता है। ऐसा माना जाता है कि वरुण ग्रह का प्रभाव इस पर निर्भर करता है कि हम इससे प्रभाव से पैदा हुई स्थितियों के साथ जीने की कोशिश कर रहे हैं अथवा इसका विरोध कर रहे हैं। यह ग्रह अपने गोचर के पहले चरण में भ्रम उत्पन्न करता है और बाद में स्थितियों को चमत्कारिक रूप से साफ दिखाता है।

असल में यह अमूर्त से हमारे तीसरी शक्ति से संपर्क का माध्यम बनता है और अपने गोचर के अंत में फिर से भौतिक जगत में ले आता है। इस ग्रह का प्रभाव कहाँ कितना होगा और किस प्रकार कार्य करेगा इस विषय में भी बताना कुछ मुश्किल है लेकिन संकेत निकाले जा सकते हैं पर ठीक-ठीक क्रियाविधि बताना टेढ़ा काम है।

वरुण ग्रह को एक राशि चक्र पूरा करने में लगभग 164 साल का समय लगता है। एक सामान्य व्यक्ति को इतनी लंबी अवधि तक जिंदा नहीं रहता है। दूसरी बात यह भी है कि कोई एक ज्योतिषी वरुण के प्रभावों का अध्धयन करने जितना भी नहीं जी सकता। ऐसे में प्राचीन घटनाओं, महापुरुषों की जीवनियों और इतिहास के साक्ष्यों को वरुण ग्रह के गोचर के साथ मिलाकर अध्धयन करके कुछ निष्कर्ष निकाले गए हैं।

रहस्य के मालिक इस ग्रह के विभिन्न भावों में प्रभावों के बारे में कई जगह बताया गया है। वरुण ग्रह के अधिकार की राशि गुरु की दूसरी और भचक्र की आखिरी राशि मीन दी गई है। इसी के साथ बारहवां भाव भी वरुण का प्रिय भाव बताया गया है।

1. पहले भाव में गोचर : यह दिमाग , शरीर और आत्मा को प्रभावित करता है। इन्हें ज्यादा ऊर्जा क्षेत्र में ले जाता है। जातक आसपास के लोगों की भावनाओं को ज्यादा दक्षता से समझने लगते हैं। जातक जब दूसरे लोगों से संपर्क करेंगे तो एक छद्म वातावरण का निर्माण करेगा। ऐसे लोग प्रेक्टिकल होने की जगह पर आदर्शवादी, स्वप्नवादी अथवा संवेदनशील दृष्टिकोण अपनाएंगे। कुछ जातकों का आत्मविश्वास घट भी सकता है। इनके जीवन की राह अनिश्चित होती है।

2. दुसरे भाव में गोचर : यह नैतिक एवं अन्य प्रकार के मूल्यों में तेजी से बदलाव करता है। दूसरे भाव में वरुण के पहुंचने पर जातक धन को लेकर लापरवाह भी हो जाते हैं। इससे लंबे समय में वित्तीय असुरक्षा का वातावरण बनता है। ऐसे समय में घोटाले और सट्टेबाजी का दौर तेज हो जाता है।

3. तीसरे भाव में गोचर : तीसरे भाव में विचरण के दौरान जातक अंतर्ज्ञान के विषय में जानना और समझना शुरू करता है। ऐसे जातकों को दुनियादारी की सामान्य बातें समझने में मुश्किल हो सकती है जैसे – सरकारी अथवा अन्य स्त्रोतों से मिले आंकड़े। ऐसे समय में जातक दिए गए समय पर पहुंचने मने चूक करने लगता है यहाँ तक कि उसे तारीख और वर भी ध्यान नहीं रहते। संगीत, कविता और अन्य कला क्षेत्रों में ऐसे जातक तेजी से अपनी जगह बनाने लगते हैं। ये जातक ज्यादा कल्पनाशील हो जाते हैं और जीवन के लिए नए रास्ते अपनी कल्पनाओं के आधार पर तय करने लगते हैं। इन जातकों की कवित्व शक्ति न सिर्फ कविताएँ गढने के काम आती है बल्कि कई बार प्रेरणादायक भी बन जाती हैं।

4. चौथे भाव में गोचर : गोचर के चौथे भाव में आया वरुण आपके परिवार, भूतकाल या पारिवारिक जीवन में उलझने अथवा विभ्रम की स्थिति उत्पन्न करता है। रिश्तों के प्रति आप व्यवहारिक की जगह पर आदर्शत्मक सोच रखने लगते हैं। यदि आप सचेत नहीं होते हैं तो वरुण ग्रह की यह स्थिति कई प्रकार की नई परेशानियाँ भी खड़ी कर देता है। परिवार के प्रति आपका कोई कमिटमेंट न होना परिवार के सदस्यों के लिए अवसाद तथा दुःख का कारण बनने लगता है। जब आपके परिवार को आपके त्याग की आवश्यकता होती है तब आप उसके लिए उपलब्ध नहीं होते हैं। इस गोचर के दौरान आप सामान्य से ज्यादा नींद लेने लगते हैं जिसका एक कारण आपका जल्दी थक जाना भी हो सकता है।

5. पांचवें भाव में गोचर : वरुण के इस गोचर के दौरान आपके जीवन में रोमांस को ज्यादा शिद्दत से महसूस करने लगते हैं। इसी दौरान एक गडबड होती है कि आप अपने प्रेमी अथवा जीवनसाथी से प्रेम अथवा व्यवहार के संबंध में कई प्रकार की उम्मीदें बांधना शुरू कर देते हैं भले ही वह यर्थार्थ से दूर ही क्यों न हो। ऐसे में संबंधों में तनाव की स्थिति बनने लगती है इसी के साथ आपकी संतान के संबंध में कई प्रकार की उलझने सामने आने लगती हैं। अगर रचनाशीलता के कोण से देखें तो यह आपके जीवन का सर्वश्रेष्ठ समय भी हो सकता है।

6. छठे भाव में गोचर : गोचर में छठे भाव के अनुसार आपकी रूचि दवाओं या रसायनों के प्रति बढने लगती है। ऐसे में गौर देने वाली बात यह है कि तनाव इस लंबे कालखंड में आपको शारीरिक तौर पर तोडकर रख सकता है। इस दौरान आपका पेशा मदद संबंधी सेवाओं में हो सकता है और इसमें दान और अन्य सहायता सेवाएं भी शामिल हो सकती हैं। स भाव में वरुण ग्रह की स्थिति आपकी दैनिकचर्या और जीवनचर्या को प्रभावित करने वाली भी सिद्ध हो सकती है।

7. सातवें भाव में गोचर : नजदीकी साझेदारों से दो प्रकार का व्यवहार देखने को मिल सकता है। साझेदारी में अनिश्चितता की अथिति आपको परेशान करने लगती है इसके साथ ही स्वंय आपके व्यवहार में अपने साझेदार अथवा पत्नी या पति के प्रति खराबी आने लगती है। साझा टूटने की समस्या भी आप खुद बढ़ाने लगते हैं। दूसरों को आकर्षित करने की प्रवृत्ति बढने के साथ ही आपमें एक स्वाभाविक असुरक्षा की भावना भी बढने लगती है इससे आपके इर्द-गिर्द के लोग परेशान होने लगते हैं।

8. आठवें भाव में गोचर : वरुण के इस गोचर के दौरान आपके सामने साझा किए गए धन और संपत्ति के संबंध में समस्याएं बढने लगती हैं वहीं दूसरी तरफ ऋण और अन्य वित्तीय सहायताएं भी उम्मीद से बेहतर अंदाज में मिलने लगती हैं। निजी संबंधों में प्रगाढ़ता आती है। इस दौरान यह मेरा है वह तुम्हारा है वाली भावनाएं भी अपेक्षाकृत कम हो जाती हैं। आपके साझेदार की वित्तीय स्थिति खराब होने से व्यापार या व्यवसाय का आपका हिस्सा भी खराब होने लगता है। इस दौर में धोखे से सावधान रहने की बहुत अधिक आवश्यकता होती है।

9. नौवें भाव में गोचर : आपके जीवन से जुडी चीजों में बढ़ोतरी होने के संकेत मिलने लगते हैं चाहे वह परिवार हो या सम्माज, धन हो या सफलता यहाँ तक कि आध्यात्मिक क्षेत्र में भी उन्नति के मौके मिलते हैं। आपके व्यक्तित्व में भी कुछ ज्यादा आकर्षण बढ़ता है। आपके स्वभाव में कुछ रहस्यमयी भावों के साथ दूसरों के प्रति नाजुकता का भाव आता है इससे समाज और सर्किल में आपकी पकड़ तेजी से बढती हैभावों से जुड़े कला क्षेत्रों में आपका रुझान भी तेजी से बढ़ता है। यात्रा, कानूनी मामलों और उच्च शिक्षा के प्रति उलझनें बढने की समस्या रहती है।

10. दसवें भाव में गोचर : आपकी नजर पर एक धुंधलापन आने लगता है इससे अच्छे भले चल रहे जीवन में भूचाल की आशंका परेशान करने लगती है। यदि आपने अपने जीवन का एक उद्देश्य बना रखा है तो वरुण के इस भाव में गोचर के दौरान आपको इसकी उपदेयता पर शक होने लगता है। आपके करियर और साख के साथ बहुत सी अनपेक्षित घटनाएँ, संयोग, निजता और रहस्य खेलने लगते हैं। भले ही दूसरे लोगों को लगता रहे कि आप जैसे पहले थे वैसे सब भी हैं लेकिन आप अंदर से परेशान होते हैं। अपने इस व्यवहार को काबू करके आप सफलता से इस दौर को पार कर सकते हैं।

11. ग्यारहवें भाव में गोचर : वरुण का यहाँ पर यह प्रभाव होता है कि आपकी सामाजिक प्रतिष्ठा में तेजी से बढ़ोतरी होती है। इस राशि भ्रमण के दौरान यह ग्रह आपको खुद से अलग लगभग हर चीज से एक सुरक्षित दूरी बनाने के लिए बाध्य करता है। इससे हो सकता है कि आपके मित्र समूह या संगठन में आपकी साख को बट्टा लग रहा हो लेकिन आप सुरक्षित रहने में ही भलाई समझने लगते हैं। यह दौर आपको सिखाता है कि कौन मित्र है और किनसे दूरी रखनी है।

12. बाहरवें भाव में गोचर : वरुण ग्रह का यह सबसे प्रिय भाव है। यहाँ गोचर कर रहा ग्रह आपको अकेले में बैठकर आनन्द लेने योग्य बनाता है। इस समय आपको किसी की भी आवश्यकता नहीं रहती। इस समय आप बेहतरीन सपने लेते हैं। प्रकृति में हो रहे परिवर्तनों को आप ज्यादा शिद्दत से महसूस करने लगते हैं। तीसरी शक्ति के प्रति आस्था भी वरुण के इस गोचर के दौरान तेजी से बढती है।

वरुण ग्रह के विषय में रोचक तथ्य :

वरुण ग्रह का नाम सागर के रोमन देवता के नाम पर रखा गया है। वरुण ग्रह अरुण ग्रह से मिलता जुलता है इसे अरुण ग्रह का सहोदर अथवा जुड़वाँ भाई कहते है। वरुण ग्रह सूर्य से दूरस्थ आठवां ग्रह है। वरुण ग्रह की खोज 1946 जॉन गेले ने की थी। वरुण ग्रह के वायुमंडल में मुख्य रूप से हाइड्रोजन गैस पाई जाती है इसके साथ ही कुछ मात्रा में मीथेन गैस भी पाई जाती है इसी वजह से ही यह ग्रह हरे रंग का दिखाई देता है।

वरुण ग्रह 166 सालों में सूर्य की परिक्रमा करता है और 12.7 घंटे में अपनी दैनिक गति पूरी करता है। वरुण ग्रह पृथ्वी के मुकाबले में सूरज से लगभग 30 गुना ज्यादा दूर है। वरुण ग्रह पूर्वजों के लिए नहीं जाना जाता था क्योंकि इस ग्रह का कोई पूर्वज ग्रह नहीं है। वरुण ग्रह बहुत तेजी से अपनी धुरी पर घूमता है। वरुण ग्रह बर्फ दिग्गजों में सबसे छोटा है।

वरुण ग्रह पर एक बहुत ही सक्रिय जलवायु है। वरुण ग्रह की रिंग बहुत ही पतली है। वरुण ग्रह के पास 14 चंद्रमा है। आज तक सिर्फ एक ही अंतरिक्ष यान वरुण ग्रह पर भेजा गया है। वरुण ग्रह का सबसे बड़ा चंद्रमा ट्राईटन है इसे ब्रिटिश खगोल विज्ञानी विलियम लास्सेल्ल द्वारा सन् 1846 में खोजा गया था। वरुण ग्रह पर हर दिन लगभग 16 घंटे 6.5 मिनट का रहता है।

वरुण ग्रह सूर्य की परिक्रमा 164.79 सालों में पूरी करता है और अपनी धुरी पर एक चक्कर पूरा करने के लिए 16 घंटे 7 मिनट का समय लेता है। वरुण ग्रह की बनावट बिलकुल युरेनस ग्रह की तरह की है। युरेनस की तरह वरुण ग्रह भी चट्टानों और बर्फ से बना है लेकिन वरुण ग्रह का रंग युरेनस से ज्यादा नीला है।

वरुण ग्रह के लगभग चार छल्ले हैं पृथ्वी पर इन छल्लों को दूरबीन से देखने पर यह छल्ले टूटे हुए दिखाई देते है। वरुण ग्रह की पृथ्वी से दूरी बहुत अधिक होने की वजह से यह एक टिमटिमाते तारे के समान दिखाई देता है। वरुण ग्रह की सतह का तापमान -220 डिग्री सेंटीग्रेड है।

वरुण ग्रह का अक्ष इसकी परिक्रमा पथ से 30 डिग्री तक झुका हुआ है इस ग्रह पर 41 सालों तक एक जैसा ही मौसम रहता है। वरुण पहला ग्रह है जिसके होने का अनुमान गणितीय आधार पर लगाया गया था। जब वैज्ञानिको ने युरेनस की कक्षा का अध्धयन किया तो उन्होंने पाया कि युरेनस की कक्षा न्यूटन के सिद्धांतों का पालन नहीं करती।

इससे अनुमान लगाया गया कि कोई अन्य ग्रह युरेनस की कक्षा को प्रभावित करता है। फ्रांस के ले वेरीएर और इंग्लैण्ड के एडम्स ने स्वतंत्र रूप से बृहस्पति , शनि और युरेनस की स्थिति के आधार पर वरुण के स्थान की गणना की। 23 सितंबर , 1846 को इस ग्रह को गणना के किए गए स्थान के पास खोज लिया गया था।

वरुण ग्रह की खोज के बाद इस ग्रह की खोज के श्रेय के लिए एडम्स और ले वेरीयर के बीच विवाद पैदा हो गया। इसके बाद वरुण ग्रह की खोज का श्रेय इन दोनों वैज्ञानिकों को दिया गया लेकिन बाद में किए गए अध्ध्यनों से पता लगा कि इन दोनों वैज्ञानिकों द्वारा लगाए गए वरुण ग्रह के स्थान से वह विचलित हो जाता है और उन के द्वारा की गई गणना के स्थान पर वरुण का मिलना एक संयोग मात्र था।

इससे पूर्व भी जब गैलिलियो बृहस्पति का अध्धयन कर रहे थे तब उन्होंने वरुण ग्रह को बृहस्पति के पास देखा गया था जिसे उन्होंने अपने द्वारा बनाए गए चित्रों में अंकित किया। उन्होंने दो रातों तक वरुण को एक तारे के संदर्भ में अपना स्थान बदलते हुए देखा लेकिन बाद की रातों में वरुण गैलिलियो की दूरबीन के दृश्यपटल से दूर चला गया।

आकाश में सिर्फ तारे गति करते नजर नहीं आते सिर्फ ग्रह, उपग्रह और उल्का आदि ही गति करते हुए नजर आते है अगर गैलिलियो ने पहले की कुछ रातो में वरुण को देखा होता तो उन्हें इसकी गति दिखाई देती और इस ग्रह की खोज का श्रेय गैलिलियो को मिलता है।

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चंद्रमा-Moon In Hindi |Chandra In Hindi|

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चंद्रमा (Moon In Hindi) :

चाँद हमारी पृथ्वी का एकमात्र प्राकृतिक उपग्रह है। वैज्ञानिकों का मानना है कि आज से लगभग 450 करोड़ साल पहले थैया नाम के उल्का पिंड से टक्कर होने की वजह से पृथ्वी से एक टुकड़ा अलग हो गया था जो चाँद बना गया। यह सौरमंडल का पांचवां सबसे विशाल प्राकृतिक उपग्रह है। पृथ्वी के बीच से चंद्रमा के बीच तक की दूरी 384,803 किलोमीटर है।

यह दूरी पृथ्वी की परिधि के 30 गुना है। अगर चंद्रमा पर खड़े होकर प्रथ्वी को देखा जाए तो पृथ्वी स्पष्ट रूप से अपने अक्ष पर घूर्णन करती हुई नजर आती है लेकिन आसमान में उसकी स्थिति हमेशा स्थिर बनी रहती है। चाँद का व्यास पृथ्वी का एक चौथाई है और द्रव्यमान 1/81 है। वैदिक ज्योतिष में चंद्रमा सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण ग्रह है।

चन्द्र देवता मुख्यतः प्रकाश, मन, माता और शरीर में उपस्थित जल के कारक होते हैं। इनका स्वभाव सत्रैन माना जाता है और ये देव ग्रहों की श्रेणी में आते हैं। चंद्र सातवीं दृष्टि से देखते हैं। भारतीय संस्कृति में चंद्र देवता की पूजा अर्चना का प्रचलन वैदिक काल से भी पुराना है। मन के कारक चंद्रमा देवता की गति सभी नव ग्रहों में सबसे तीव्र होती है।

चन्द्रमा की आंतरिक संरचना :

चंद्रमा एक विभेदित निकाय है जिसका भुरसायानिक रूप से 3 भाग क्रष्ट, मेंटल और कोर है। चंद्रमा का 240 किलोमीटर त्रिज्या का लोहे की बहुलता युक्त एक ठोस भीतरी कोर है और इस भीतरी कोर का बाहरी भाग मुख्य रूप से लगभग 300 किलोमीटर की त्रिज्या के साथ तरल लोहे से बना हुआ है। कोर के चारो तरफ 500 किलोमीटर की त्रिज्या के साथ एक आंशिक रूप से पिघली हुई सीमा परत है।

संघात खड्ड :

संघात खड्ड निर्माण प्रक्रिया एक अन्य प्रमुख भूगर्भिक प्रक्रिया है जिसने चंद्रमा की सतह को प्रभावित किया है, इन खड्डों का निर्माण क्षुद्रग्रहों और धूमकेतुओं के चन्द्रमा की सतह से टकराने के साथ हुआ है। चंद्रमा के अकेले समीपी पक्ष में ही 1 किलोमीटर से अधिक चौडाई के लगभग 3,00,000 खड्डों के होने का अनुमान है।

इनमें से कुछ के नाम विद्वानों, वैज्ञानिकों, कलाकारों और खोजकर्ताओं पर है। चंद्र भूगर्भिक कालक्रम सबसे प्रमुख संघात घटनाओं पर आधारित है जिसमें नेक्टारिस, इम्ब्रियम और ओरियेंटेल शामिल है। एकाधिक उभरी सतह के छल्लों द्वारा घिरा होना इन संरचनाओं की खास विशेषता है।

पानी की मौजूदगी :

साल 2008 में चंद्रयान अंतरिक्ष यान ने चंद्रमा की सतह पर जल बर्फ के अस्तित्व की पुष्टि की है। नासा ने इसकी पुष्टि की है।

चुंबकीय क्षेत्र :

चंद्रमा का लगभग 1 से 100 नैनोटेस्ला का एक बाह्य चुंबकीय क्षेत्र है। पृथ्वी की तुलना में यह सौवें भाग से भी कम है।

चंद्रमा की उत्पत्ति :

चंद्रमा की उत्पत्ति के लिए आमतौर पर माना जाता है कि एक मंगल ग्रह के शरीर ने धरती को टक्कर मारी, एक मलबे की अंगूठी बनाकर अंततः एक प्राकृतिक उपग्रह, चंद्रमा में एकत्र किया लेकिन इस विशाल प्रभाव परिकल्पना पर कई भिन्नताएं है साथ-ही-साथ वैकल्पिक स्पष्टीकरण और शोध में चंद्रमा कैसे जारी हुआ।

अन्य प्रस्तावित परिस्थितियों में कब्जा निकाय, विखंडन, एक साथ एकत्रित, ग्रहों संबंधी टकराव और टकराव सिद्धांत शामिल हैं। मानव विशाल-प्रभाव परिकल्पना मंगल ग्रह के आकार के शरीर को बताती है थीआ खलती है। पृथ्वी पर प्रभाव पड़ता है जिससे पृथ्वी के चारो तरफ एक बड़ी मलबे की अंगूठी पैदा होती है जिसके बाद चन्द्रमा के रूप में प्रवेश किया जाता है।

इस टकराव की वजह से पृथ्वी के 23.5 डिग्री झुकी हुई धुरी भी उत्पन्न हुई जिससे मौसम उत्पन्न हो गया। चंद्रमा के ऑक्सीजन समस्थानिक अनुपात पृथ्वी के लिए अनिवार्य रूप से बराबर दीखते है। ऑक्सीजन समस्थानिक अनुपात जिसे बहुत सही मापा जा सकता है, हर सौरमंडल निकाय के लिए एक अद्वियीय और विशिष्ट हस्ताक्षर उत्पन्न करता है।

यदि थीया एक अलग प्रोटॉपलैनेट था तो शायद पृथ्वी से एक अलग ऑक्सीजन आइसोटोप हस्ताक्षर होता जैसा भिन्न-भिन्न मिश्रित पदार्थ होता। इसके अतिरिक्त चंद्रमा के टाइटेनियम आइसोटोप अनुपात पृथ्वी के लगभग प्रतीत होता है अगर कम-से-कम किसी भी टकराने वाले शरीर का द्रव्यमान चंद्रमा का हिस्सा हो सकता है।

अशुभ चंद्र के लक्षण :

अशुभ चंद्र के बहुत से लक्षण होते हैं जैसे – मन अशांत रहना, माता को कष्ट मिलना, घबराहट रहना, अनिश्चित भी लगा रहना, घर में दुधारू पशु की मृत्यु अथवा न रहना, मन में आत्महत्या के विचार आना, इच्छा शक्ति का कमजोर होना आदि।

शुभ चंद्र के लक्षण :

शुभ चंद्र के बहुत से लक्षण होते हैं जैसे – जातक सौम्य प्रवृति का होता है, सोच सकारात्मक रहना, जातक मिलनसार, हमेशा प्रसन्न रहने वाला होता है, व्यवहार कुशल होना, विषम परिस्थिति में भी धैर्य न खोना, तीव्र निर्णय क्षमता होना आदि।

चन्द्र ग्रह की शांति के उपाय :

चंद्र को प्रसन्न करने के लिए बहुत से उपायों को बताया गया है जैसे – सोमवार के दिन वृत रखें, माता को प्रसन्न रखें, माँ की सेवा करें, सोमवार के दिन दूध का दान करें, दही, दूध, चावल, सफेद वस्त्र का सोमवार के दिन दान करने से चंद्र के पाप प्रभाव में कम होने लगते हैं, माता और माता के समान स्त्रियों का आशीर्वाद प्राप्त करें, यदि चंद्र कुंडली में शुभ स्थित हो हो तो दाहिने हाथ की सबसे छोटी ऊँगली में मोती धारण करें। मोती सूर्यास्त के बाद शाम के समय धारण करें।

चंद्रमा की विशेषताएं :

कर्क राशि के स्वामी चंद्र कुंडली के चौथे भाव में दिशा बली हो जाते हैं। इनकी महादशा 10 साल की होती है। ये वर्ष राशि में उच्च और वृश्चिक राशि में नीच हो जाते हैं। ज्योतिष शास्त्र में कर्क लग्न की कुंडली में मंगल देवता को इष्ट देवता माना जाता है। मीन लग्न की कुंडली में इष्ट देव चंद्रमा देवता होते हैं।

रोहिणी, हस्त व श्रवण नक्षत्र चंद्र देवता से संबंधित होते हैं। चंद्र का शुभ दिन सोमवार, रंग दुधिया सफेद और दिशा उत्तर पश्चिम है। चंद्र का रत्न मोटी, धातु चांदी और देव शिव, बजरंगबली हैं। चंद्र का मित्र ग्रह सूर्य, मंगल और शत्रु ग्रह बुध, शनि हैं। ॐ श्रां श्रीं श्रौं श्रोक्त्म चंद्रमसे नमः चंद्र का बिज मंत्र है।

चन्द्रमा के विषय में रोचक तथ्य :

चंद्रमा पृथ्वी का एक मात्र उपग्रह है। वैज्ञानिकों का मानना है कि लगभग 450 करोड़ वर्ष पहले थैया नाम के उल्कापिंड से पृथ्वी की टक्कर हुई थी और यह टक्कर इतनी जबर्दस्त थी कि पृथ्वी का कुछ हिस्सा टूटकर गिर गया उसी से चाँद की उत्पत्ति हुई। हमारे चाँद को पृथ्वी की परिक्रमा करने में लगभग 28 दिन लगते हैं और इसे सिंक्रोनस मोशन कहा जाता है।

आज तक चाँद पर केवल 12 इंसान ही गए है। चंद्रमा हमारी पृथ्वी के आकार का केवल 27% हिस्सा है। चाँद पर जाने वाला पूरी दुनिया का सबसे पहला मनुष्य अमेरिका का नील आर्मस्ट्रांग था जिसने चंद्रमा पर पहली बार 20 जुलाई, 1969 को कदम रखा था। जब हम पृथ्वी से चंद्रमा को देखते हैं तो यह गोल दिखाई देता है लेकिन यह गोल होने की जगह पर अंडाकार का है।

पिछले 41 सैलून से चाँद पर कोई इंसान नहीं गया है। अगर पृथ्वी पर से चाँद गायब हो जाए तो पृथ्वी का दिन केवल 6 घंटे का ही रह जायेगा। ब्रह्मांड में उपस्थित सभी 63 उपग्रहों में से चाँद आकार में पांचवें स्थान पर है। चंद्रमा का केवल 59% हिस्सा ही पृथ्वी से नजर आता है। जब पृथ्वी पर चंद्र ग्रहण लगता है तो चाँद पर सूर्य ग्रहण लगता है।

चंद्रमा पर हमारा वजन पृथ्वी के वजन के हिसाब से 6 गुना कम हो जाता है अगर पृथ्वी पर आपका वजन 60 किलो है तो चंद्रमा पर आपका वजन केवल 10 किलो ही रह जाएगा। चन्द्रमा का वजन लगभग 81 अरब अथार्त 8100,00,00,000 टन हैं। आधा चाँद पूरे चाँद से 9 गुना कम चमकदार रहता है। चाँद पर उपस्थित काले धब्बे को चीन में मेंढक कहा जाता है।

चंद्रमा की ऊँची चोटी मानस हुयगोनस है जिसकी लंबाई लगभग 4700 मीटर है। दुनिया के बहुत सारे वैज्ञानिकों के द्वारा चाँद पर पानी होने के दावे किए गए लेकिन सबसे पहले पानी की खोज भारत के द्वारा की गई थी। पृथ्वी से चन्द की दूरी 384,315 किलोमीटर है। चाँद पृथ्वी से हर साल 3.4 सेंटीमीटर दूर खोसक जाता है इस प्रकार 50 अरब साल गुजरने के बाद चाँद पृथ्वी की परिक्रमा 47 दिनों में करेगा।

चाँद की अपनी कोई रौशनी नहीं है है बल्कि यह रौशनी सूर्य से आने वाली रौशनी का रिफ्लेक्शन होता है। अगर आप रात के समय चंद्रमा को ध्यान से देखते हैं तो वह हर रात को एक आकार का नहीं दीखता क्योंकि सूरज की रोशनी चाँद के जिस भाग पर पडती है हमें चाँद का वही हिस्सा पृथ्वी से दिखाई देता है इसलिए हमें चाँद कभी आधा और कभी पूरा गोल दिखाई देता है।

हमें पृथ्वी से चंद्रमा का सिर्फ 59% भाग ही दिखाई देता है क्योंकि इतने भाग में ही सूर्य की किरेन चन्द्रमा पर पडती है जिसकी वजह से यह पृथ्वी से नजर आता है बाकी का बचा हुआ हिस्सा पृथ्वी से कभी बी नहीं दिखाई देता है। चंद्रमा पर 14 दिनों का दिन और 14 दिनों की ही रात भी होती है क्योंकि चंद्रमा पृथ्वी की की परिक्रमा 28 दिनों में करता है।

अंतरिक्ष में जाना वाला पहला भारतीय राकेश शर्मा है। चाँद पर बात करना संभव नहीं है क्योंकि वहां पर हवा नहीं है। चाँद अपने अक्ष पर 1.022 किलोमीटर प्रति सेकेण्ड की रफ्तार से घूमता है जबकि पृथ्वी केवल 465 मीटर प्रति सेकेण्ड की रफ्तार से घुमती है। पृथ्वी पर होने वाले ज्वार भाटा चंद्रमा के गुरुत्वाकर्षण की वजह से ही होते हैं। चाँद आकार में प्लूटो से भी बड़ा है।

चाँद का क्षेत्रफल अफ्रीका के क्षेत्रफल के बराबर है। 95 km/h की गति से कार से चाँद तक पहुंचने के लिए आपको लगभग 6 महीने का समय लगता है। साल 2013 के एक सर्वे के अनुसार 7% अमेरिकंस का मानना है कि चंद्रमा पर लेंडिंग केवल एक धोखा है। जब अंतरिक्ष यात्री एलन सैपर्ड चाँद पर थे तब उन्होंने एक गोल्फ बोल को हिट किया था जो लगभग 800 मीटर दूर तक गया था।

अपोलो अंतरिक्ष यान चाँद से वापस आते समय अपने साथ केवल 296 चट्टानों के टुकड़े साथ लेकर आए थे जिनका वजन 382 किलोग्राम था। हमारी पृथ्वी से आसमान हमेशा नीले रंग का ही दिखाई देता है लेकिन चाँद से आसमान नीला नहीं बल्कि काला दिखाई देता है। अपोलो 11 अंतरिक्ष यान का चंद्रमा लेंडिंग के समय बनाया गया वास्तविक वीडियो टेप नष्ट हो गया था यह गलती से दुबारा प्रयोग किया गया था।

साल 2008 में भारत ने ही पहली बार चाँद पर पानी की खोज की थी और यह पॉइंट में अपने फेक्ट्स अबाउट इण्डिया के पोस्ट में भी बताया है। साल 2004 के बाद से जापान, चीन, अमेरिका और यूरोप ने चाँद पर शोध करने के लिए अपने अंतरिक्ष यान भेजे। जब चाँद पर सूर्य की किरने पडती तो चाँद के एक हिस्से का तापमान 123०C तक पहुंच जाता है जबकि दूसरे हिस्से का तापमान 153०C तक गिर जाता है।

चाँद पर इंसानों के द्वारा चोदे गए 96 बैग ऐसे हैं जिनमें मल, मूत्र और उल्टियाँ हैं। चाँद पर लगभग 1,81,400 किलो का मानव निर्मित मलवा पड़ा हुआ है जिनमें ज्यादातर अंतरिक्ष यान और दुर्घटनाग्रस्त कृत्तिम उपग्रह ही हैं। नील आर्मस्ट्रांग जब पहली बार चाँद पर चले थे तो उनके पास राईट ब्रोदर्स के पहले हवाई जहाज का एक टुकड़ा था।

सन् 1950 में अमेरिका ने परमाणु बम से चंद्रमा को उड़ाने की योजना बनाई थी। अमेरिकी सरकार ने चाँद पर आदमी भेजने और ओसामा बिन लादेन को ढूंढने में समान समय और पैसा खर्च किया था जो 10 साल और 100 बिलियन डॉलर था। चाँद के दिन का तापमान 180०C तक पहुंच जाता है जबकि रात का तापमान -153०C तक। चंद्रमा की गुरुत्वाकर्षण शक्ति बहुत कम है किसी भी प्रकार का वायुमंडल न होने का अर्थ यह है कि सौर वायु और उल्कापिंड के आने का खतरा निरंतर बना रहता है।

चंद्रमा की सतह पर धूल का गुबार सूर्योदय और सूर्यास्त के समय पर मंडराता रहता है इसकी असली वजह अभी तक पता नहीं चल पाई है। बुज एल्ड्रिन चंद्रमा पर पेशाब करने वाले पहले व्यक्ति हैं। चंद्रमा की मिटटी से बारूद जैसी गंध आती है। चंद्रमा पर जाने से पहले वैज्ञानिकों को आइसलैंड में ट्रेनिग दी जाती है।

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सूर्य-Sun In Hindi |सूर्य देव|

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सूर्य (Sun In Hindi) :

सूर्य एक विशालकाय तारा है जिसके चारों तरफ आठों ग्रह और अनेकों उल्काएं चक्कर लगाते रहते हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि यह एक जलता हुआ विशाल पिंड है। इसकी गुरुत्वाकर्षण शक्ति के बल पर ही समस्त ग्रह इसकी तरफ खिंचे रहते है अन्यथा सभी अंधकार में न जाने कहाँ लीन हो जाए।

वेदों के अनुसार सूर्य इस जगह की आत्मा है यही सूर्य नहीं अनेक दुसरे सूर्य भी। सूर्य की पृथ्वी से न्यूनतम दूरी 14.70 करोड़ किलोमीटर है और अधिकतम दूरी 15.21 करोड़ किलोमीटर है। सूर्य का व्यास लगभग 13,92,000 किलोमीटर है। सूर्य का प्रकाश पृथ्वी पर 8 मिनट 16.6 सेकेण्ड में पहुंचता है। सूर्य की आयु करीब 5 बिलियन वर्ष है।

सूर्य में हाईड्रोजन 71%, हीलियम 26.5%, अन्य 2.5% का रासायनिक मिश्रण होता है। सूर्य के साथ सभी तारों में हाईड्रोजन और हीलियम के मिश्रण को संलयन अभिक्रिया कहा जाता है। सूर्य में हल्के-हल्के धब्बे को सौर्यकलन कहते हैं जो चुंबकीय विकिरण उत्सर्जित करते हैं जिससे पृथ्वी के बेतार संचार में खराबी आ जाती है।

इस जलते हुए गैसीय पिंड को दूरदर्शी यंत्र से देखने पर इसकी सतह पर छोटे-छोटे धब्बे दिखाई देते हैं जिन्हें सौर कलंक कहा जाता है। ये कलंक अपने स्थान से सरकते हुए दिखाई देते हैं। जिस तरह पृथ्वी और अन्य ग्रह सूर्य की परिक्रमा करते हैं उसी तरह सूर्य भी आकाशगंगा के केंद्र की परिक्रमा करता है।

सूर्य की विशेषताएं :

सूर्य एक G टाइप मुख्य अनुक्रम तारा है जो सौरमंडल के कुल द्रव्यमान का लगभग 99.86% समाविष्ट करता है। लगभग 90 लाखवें भाग के अनुमानित चपटेपन के साथ यह लगभग गोलाकार है इसका अर्थ है कि इसका ध्रुवीय व्यास इसके भूमध्यरेखीय व्यास से सिर्फ 10 किलोमीटर से अलग है जैसा कि सूर्य प्लाज्मा का बना है और ठोस नहीं है यह अपने ध्रुवों की अपेक्षा अपनी भूमध्यरेखा पर अधिक तेजी से घूमता है।

यह व्यवहार अंतरीय घूर्णन के रूप में जाना जाता है और सूर्य के संवहन व कोर से बाहर की तरफ बहुत अधिक तापमान ढलान की वजह से पदार्थ की आवाजाही की वजह से हुआ है। यह सूर्य के वामावर्त कोणीय संवेग के एक बड़े हिस्से का वहन करती है जैसा क्रांतिवृत्त के उत्तरी ध्रुव से देखा गया और इस तरह कोणीय वेग पुनर्वितरित होता है।

इस वास्तविक घूर्णन की अवधि भूमध्यरेखा पर लगभग 25.6 दिन और ध्रुवों में 33.5 दिन की होती है हालाँकि सूर्य की परिक्रमा के साथ ही पृथ्वी के सापेक्ष हमारी निरंतर बदलती स्थिति की वजह से इस तारे का अपनी भूमध्यरेखा पर स्पष्ट घूर्णन लगभग 28 दिनों का है। इस धीमी गति के घूर्णन का केंद्रापसारक प्रभाव सूर्य की भूमध्यरेखा के सतही गुरुत्वाकर्षण से 1.8 करोड़ गुना कमजोर है। ग्रहों के ज्वारीय प्रभाव भी कमजोर हैं और सूर्य के आकार को खास प्रभावित नहीं करते है।

सूर्य का कोर :

सूर्य का कोर इसके केंद्र से लेकर सौर त्रिज्या के लगभग 20 से 25% तक विस्तारित माना गया है। इसका घनत्व 150 ग्राम/सेंटीमीटर3 तक और तापमान 15.7 करोड़ केल्विन के लगभग है। इसके विपरीत सूर्य की सतह का तापमान लगभग 5800 केल्विन है। सोहो मिशन डेटा के हाल के विश्लेषण विकिरण क्षेत्र के बाकी हिस्सों की तुलना में कोर के तेज घूर्णन दर का पक्ष लेते है।

सूर्य के अधिकांश जीवन में ऊर्जा p-p श्रंखला कहलाने वाली एक चरणबद्ध श्रंखला के माध्यम से नाभिकीय संलयन द्वारा उत्पादित हुई है यह प्रक्रिया हाइड्रोजन को हीलियम में रूपांतरित करती है। सूर्य की उत्पादित ऊर्जा का मात्र 0.8% CNO चक्रEn से आता है। कोर में प्रोटान-प्रोटान श्रंखला दर के सेकेण्ड 9.2×1037 बार पाई जाती है। यह अभिक्रिया चार मुक्त प्रोटोनों का प्रयोग करती है यह प्रत्येक सेकेण्ड लगभग 3.7×1038 प्रोटानों को अल्फा कणों में बदल देती है या लगभग 6.2× 1011 किलो प्रति सेकेण्ड।

हाइड्रोजन से हीलियम संलयन के बाद हीलियम ऊर्जा के रूप में संलयित द्रव्यमान का लगभग 0.7% छोडती है सूर्य 42.6 करोड़ मीट्रिक टन प्रति सेकेण्ड की द्रव्यमान ऊर्जा रूपांतरण दर पर ऊर्जा छोड़ता है, 384.6 योटा वाट या 9.192× 1010 टीएनटी मेगाटन प्रति सेकेण्ड। राशि ऊर्जा पैदा करने में नष्ट हुई है बल्कि यह राशि बराबर की इतनी ही ऊर्जा में तब्दील हुई है और ढोकर उत्सर्जित होने के लिए दूर ले जाई गई जैसा द्रव्यमान ऊर्जा तुल्यता अवधारणा का वर्णन हुआ है।

जीवन चक्र :

सूर्य आज सबसे ज्यादा स्थिर अवस्था में अपने जीवन के लगभग आधे रास्ते पर है। इसमें कई अरब सालों से नाटकीय रूप से कोई बदलाव नहीं हुआ है और आने वाले कई सालो तक यूँ ही अपरिवर्तित बना रहेगा हालाँकि एक स्थिर हाइड्रोजन दहन काल के पहले का और बाद का तारा बिलकुल अलग होता है।

सूर्य का निर्माण :

सूर्य एक विशाल आणविक बादल के हिस्से के ढहने से लगभग 4.57 अरब साल पहले गठित हुआ है जो अधिकांशतः हाइड्रोजन और हीलियम का बना है और शायद इन्हीं ने कई अन्य तारों को बनाया है। यह आयु तारकीय विकास के कंप्यूटर मॉडलों के प्रयोग और न्युक्लियोकोस्मोक्रोनोलोजी के माध्यम से आकलित हुई है।

परिणाम प्राचीनतम सौरमंडल सामग्री की रेडियोमीट्रिक तिथि के अनुरूप है, 4.567 अरब वर्ष। प्राचीन उल्कापातो के अध्धयन अल्पजीवी आइसोटोपो के स्थिर नाभिक के निशान दिखाते है। यह इंगित करता है कि वह स्थान जहाँ पर सूर्य बना उसके समीप एक या एक से अधिक सुपरनोवा जरुर पाए जाने चाहिएं।

किसी समीपी सुपरनोवा से निकली आघात तरंग ने आणविक बादल के अंदर की गैसों को संपीडित करके सूर्य के निर्माण को शुरू किया होगा तथा कुछ क्षेत्र अपने खुद के गुरुत्वाकर्षण के अधीन ढहने से बने होंगे। जैसे ही बादल का कोई टुकड़ा ढहा कोणीय गति के संरक्षण की वजह से यह भी घूमना आरंभ हुआ और बढ़ते दबाव के साथ गर्म होने लगा।

बहुत बड़ी द्रव्य राशि केंद्र में केन्द्रित हुई जबकि बाकी बाहर की तरफ चपटकर एक डिस्क में तब्दील हुई जिनसे ग्रह और अन्य सौरमंडलीय निकाय बने। बादल के कोर के भीतर के गुरुत्व और दबाव ने बहुत अधिक ऊष्मा उत्पन्न की वैसे ही डिस्क के इर्द-गिर्द से और अधिक गैस जुडती गई, अंततः नाभिकीय संलयन को सक्रिय किया। इस तरह सूर्य का जन्म हुआ।

मुख्य अनुक्रम :

सूर्य अपनी मुख्य अनुक्रम अवस्था से होता हुआ लगभग आधी राह पर है जिसके दरम्यान नाभिकीय संलयन अभिक्रियाओं ने हाइड्रोजन को हीलियम में बदला। प्रत्येक सेकेण्ड सूर्य की कोर के अंदर 40 लाख टन से ज्यादा पदार्थ ऊर्जा में परिवर्तित हुआ है और न्यूट्रिनो और सौर विकिरण का निर्माण किया है। इस दर पर सूर्य अब तक लगभग 100 पृथ्वी द्रव्यमान जितना पदार्थ ऊर्जा में परिवर्तित कर चुका है। सूर्य एक मुख्य अनुक्रम तारे के रूप में लगभग 10 अरब साल जितना खर्च करेगा।

कोर हाईड्रोजन समापन के बाद :

सूर्य के पास एक सुपरनोवा के रूप में विस्फोट के लिए पर्याप्त द्रव्यमान नहीं है। बावजूद यह एक लाल दानव चरण में प्रवेश करेगा। सूर्य का लगभग 5.4 अरब साल में एक लाल दानव बनने का पूर्वानुमान है। यह आकलन हुआ है कि सूर्य पृथ्वी सहित सौरमंडल के आंतरिक ग्रहों की वर्तमान कक्षाओं को निगल जाने जितना बड़ा हो जाएगा।

इससे पूर्व कि यह एक लाल दानव बनता है सूर्य की चमक लगभग दोगुनी हो जाएगी और पृथ्वी शुक्र जितना आज है उससे भी ज्यादा गर्म हो जाएगा। एक बार कोर हाइड्रोजन समाप्त हुई सूर्य का उपदानव चरण म विस्तार होगा और लगभग आधे अरब सालों के उपरांत आकार में धीरे-धीरे दोगुना हो जाएगा।

उसके बाद यह आज की तुलना में दो सौ गुना बड़ा और दस हजार गुना और ज्यादा चमकदार होने तक आगामी लगभग आधे अर्ब वर्षों से अधिक तक और ज्यादा तेजी से फैलेगा। यह लाल दानव शाखा का वह चरण है जहाँ पर सूर्य लगभग एक अरब साल बिता चुका होगा और अपने द्रव्यमान का एक तिहाई के इर्द-गिर्द गंवा चुका होगा।

सूर्य के पास अब सिर्फ कुच्ग लाख साल बचे है लेकिन वे बेहद प्रसंगपूर्ण है। पहले कोर हीलियम चौंध में प्रचंडतापूर्वक सुलगता है और सूर्य चमक के 50 गुना के साथ आज की तुलना में थोड़े कम तापमान के साथ अपने हाल के आकार से 10 गुना के आसपास तक वापस सिकुड़ जाता है।

सौर अंतरिक्ष मिशन :

सूर्य के निरिक्षण के लिए रचे गए प्रथम उपग्रह नासा के पायनियर 5, 6, 7, 8 थे। यह 1959 और 1968 के मध्य प्रक्षेपित हुए थे। इन यानों ने पृथ्वी और सूर्य से बराबर दूरी की कक्षा में सूर्य परिक्रमा करते हुए सौर वायु और सौर चुंबकीय क्षेत्र का पहला विस्तृत मापन किया। सन् 1970 में दो अंतरिक्ष यान हेलिओस और स्काईलैब अपोलो टेलिस्कोप माउंट ने सौरवायु और सौर कोरोना के महत्वपूर्ण नए डेटा वैज्ञानिकों को प्रदान किए।

हेलिओस 1 और 2 यान अमेरिकी-जर्मनी सहकार्य थे। इसने अंतरिक्ष यान को बुध की कक्षा के अंदर उपसौर की तरफ ले जा रही कक्षा से सौर वायु का अध्धयन किया। सन् 1973 में स्काईलैब अंतरिक्ष स्टेशन नासा द्वारा प्रक्षेपित हुआ। इसने अपोलो टेलिस्कोप माउंट खे जाने वाला एक सौर वेधशाला मॉड्यूल शामिल किया जो स्टेशन पर रहने वाले अन्तरिक्ष यात्रियों द्वारा संचालित हुआ था।

स्काईलैब ने पहली बार सौर संक्रमण क्षेत्र का और सौर कोरोना से निकली पराबैंगनी उत्सर्जन का समाधित निरिक्षण किया। खोजों ने कोरोनल मास एजेक्सन के पहले प्रेक्षण शामिल किए जो फिर कोरोनल ट्रांजिएंस्त और फिर कोरोनल होल्स कहलाये अब घनिष्ठ रूप से सौर वायु के साथ जुड़े होने के लिए जाना जाता है।

सन् 1980 का सोलर मैक्सीमम मिशन नासा द्वारा शुरू किया गया था। यह अंतरिक्ष यान उच्च सौर गतिविधि और सौर चमक के वक्त के दरम्यान गामा किरणों, एक्स किरणों और सौर ज्वालाओं से निकली पराबैंगनी विकिरण के निरिक्षण के लिए एचा गया था।

प्रक्षेपण के सिर्फ कुछ ही महीने बाद किसी इलेक्ट्रॉनिकस खराबी के कारण यान जस की तस हालत में चलता रहा और उसने अगले तीन साल इसी निष्क्रिय अवस्था में बिताए थे। सन् 1984 में स्पेस स्पेस शटल चैलेंजर मिशन STS-41C ने उपग्रह को सुधार दिया और कक्षा में फिर से छोड़ने से पहले इसकी इलेक्ट्रॉनिकस की मरम्मत की गई। जून 1989 में पृथ्वी के वायुमंडल में दुबारा प्रवेश से पहले सोलर मैक्सीमम मिशन ने मरम्मत के बाद सौर कोरोना की हजारों छवियों का अधिग्रहण किया था।

पुराणों के अनुसार सूर्य :

भूलोक और द्युलोक के बीच में अंतरिक्ष लोक है। इस द्युलोक में सूर्य भगवान नक्षत्र तारों के बीच में विराजमान रहकर तीनों लोकों को प्रकाशित करते हैं। पुरानों के अनुसार सूर्य देवता के पिता का नाम महर्षि कश्यप और माता का नाम अदिति है। इनकी पत्नी का नाम संज्ञा है जो विश्वकर्मा की पुत्री है। संज्ञा से यम नाम के पुत्र और यमुना नाम की पुत्री प्राप्त हुए और अपनी दूसरी पत्नी छाया से इन्हें एक महान प्रतापी पुत्र हुए थे जिनका नाम शनि है।

सूर्य के अशुभ होने पर कष्ट :

अगर लग्न कुंडली में सूर्य सही स्थित न हो या किसी वजह से अशुभ हो जाए तो ऐसा जातक कमजोर होगा। आँखों की बीमारी हो सकती है, हड्डियाँ कमजोर होने की संभावना होती है, अधिक खराब हो जाए तो हार्ट सर्जरी, हार्ट ब्लॉकेज, मान-सम्मान में कमी आती है, पिता के सुख में कमी आती है, प्रतिष्ठा में बाटता लगना आदि स्थितियों से दो-चार होना पड़ता है, रक्तचाप का बढ़ जाना, नेत्र संबंधी विकार हो जाना, बालों का झड़ना या गंजापन आ जाना, तेज ज्वर से पीड़ित होना, हड्डियों संबंधी विकार होना, पिता से संबंध खराब हो जाना, विद्या, धन, यश और मान-सम्मान में कमी आना, मांस मदिरा के सेवन में लिप्त होना, आध्यात्मिक रूचि का क्षीण हो जाना, पुत्र प्राप्ति में बाधा उत्पन्न हो जाना या होने के बाद जीवित न रहना, लांछन लगना, किसी और के लिए किए का गलत परिणाम भुगतना, सरदर्द, बुखार, नेत्र रोग, मधुमेह, मोतीझरा, पित्त रोग,, हैजा आदि बीमारियाँ हो जाना आदि।

सूर्य के शुभ लक्षण :

अगर सूर्य कुंडली में शुभ हो और शुभ स्थित हो तो ऐसे जातकों की मैनेजमेंट स्किल्स गजब की होती है। विपरीत स्थिति में बहुत उम्दा प्रदर्शन करते हैं, बड़े फैसले लेने से घबराते हैं, आने अधीनस्तों का ध्यान रखने वाले होते हैं, ऊँचे सरकारी गैरसरकारी पदों पर आसीन होते हैं, मान प्रतिष्ठा में दिन दुगनी रात चौगुनी तरक्की होती है।

सूर्य गृह की शांति के उपाए :

लग्नकुंडली में सूर्य शुभ स्थित हो और बलाबल में कमजोर हो तो सूर्य रत्न माणिक धारण करना उचित रहता है। माणिक के उपरत्न गार्नेट, रेड टर्मेलाइन हैं। माणिक के अभाव में उपरत्नों का उपयोग किया जा सकता है। किसी भी रत्न को धारण करने से पहले किसी योग्य ज्योतिषी से कुंडली का उचित निरिक्षण जरुर करवाएं।

प्रतिदिन सूर्य देव को प्रणाम करें, सादा जल चढ़ाएं, पिता या पिता के समान बुजुर्गों की सेवा करें, उनका आशीर्वाद लें, गुड, सोना, तांबा और गेंहूँ का दान करें, लाल चंदन को घिसकर स्नान के जल में मिलाएं, फिर इस पानी से नहाएं, गायत्री मंत्र या आदित्य ह्रदय मंत्र का जाप करें, रविवार के दिन व्रत रखें, सूर्य देव के आराध्य शिव की पूजा करें, शिव को बिल्व पत्री चढ़ाएं आदि।

शुभ रत्न :

अगर जातक की कुंडली में सूर्य देव शुभ पर कमजोर हो टी ऐसी स्थिति में माणिक्य रत्न धारण किया जा सकता है। माणिक्य रत्न चढ़ते पक्ष में रविवार को अनामिका में धारण किया जाता है। इसे सोने, पीतल या तांबे की अंगूठी में धारण करना चाहिए। यहाँ उल्लेखनीय है कि कुंडली संबंधी कोई भी उपाय करने से पहले किसी योग्य विद्वान से परामर्श जरुर करें। कौतूहलवश किया गया कोई भी उपाय आपके लिए और बड़ी समस्या खड़ी कर सकता है।

सूर्य की विशेषताएं :

हिन्दू मान्यताओं में सूर्य को विशेष रूप से भगवान का रूप माना जाता है। उन्हें सत्व गुण का माना जाता है और वे आत्मा, राजा, प्रतिष्ठा, ऊँचे व्यक्तियों या पिता का प्रतिनिधित्व करते हैं। सूर्य मेष राशी में उच्च और तुला राशी में नीच होते हैं। सिंह लग्न के प्रभाव में पैदा हुए जातक सिंह राशि के अंतर्गत आते हैं। वर्तमान परिपेक्ष्य में सिंह लग्न के जातक उच्च पदासीन होते देखे गए हैं।

मुसीबत में सुबोर्डिनेट्स के हितैषी होते हैं मुश्किल समय में आसानी से घबराते नहीं हैं और विपरीत परिस्थितियों में इनके लिए निर्णय विजय दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। सूर्य की सुभ दिशा पूर्व है, दिन रविवार और तत्व अग्नि है। सूर्य का लिंग पुरुष और शुभ रत्न माणिक है। सूर्य का महादशा समय 6 साल है। सूर्य का शुभ अंक 1 और मित्र ग्रह गुरु, चंद्र और मंगल हैं जबकि शत्रु ग्रह शुक्र और शनि हैं। सूर्य का मूल मंत्र ॐ सूर्याय नमः है और सूर्य का बीज मंत्र ॐ ह्रां ह्रौं सः सूर्याय नमः है।

सूर्य के विषय में रोचक तथ्य :

सूर्य सूर्यमंडल में लगभग 86 प्रतिशत वजन सूर्य का है। सूर्य की उम्र लगभग 9 बिलियन साल है। पृथ्वी से सूर्य की दूरी लगभग 14,95,97,900 किलोमीटर है। शुक्र ग्रह सूर्य की परिक्रमा करने में 224.7 दिन लेता है। सूर्य पृथ्वी से लगभग 100 गुना अधिक बड़ा एक तारा है और पृथ्वी से लगभग 333,400 गुना भारी है। सूर्य का व्यास लगभग 14 लाख किलोमीटर है।

अगर सूर्य को फुटबॉल मान लिया जाए तो पृथ्वी एक कांच की गोली के बराबर होगी। सूर्य की किरणें पृथ्वी पर आने के लिए 8 मिनट 17 सेकेण्ड का समय लेती हैं। सूरज की किरणों की गति 3 लाख किलोमीटर प्रति सेकेण्ड होती है। सूर्य से सबसे समीप और तेज गति का ग्रह बुध ग्रह है।

सूर्य हमारी आकाशगंगा के धुरी की परिक्रमा 25 करोड़ सालों में करता है। सूर्य 74% हाइड्रोजन, 24% हीलियम से बना है और इसके अतिरिक्त सूर्य में ऑक्सीजन, कार्बोन, लोहा, नियोन भी उपस्थित है। सूर्य की बाहरी सतह का तापमान 5760 डिग्री सेल्सियस है और सूर्य का अंदरूनी तापमान 1 करोड़ 50 लाख डिग्री सेल्सियस है। सूर्य ग्रहण तब होता है जब पृथ्वी और सूर्य के मध्य में चंद्रमा आ जाता है।

पृथ्वी की तरह सूर्य भी कठोर नहीं है क्योंकि सूर्य में भारी मात्रा में गैसें पाई जाती हैं। सूर्य का गुरुत्वाकर्षण पृथ्वी से 28 गुना अधिक है। अगर धरती पर आपका वजन 60 किलोग्राम है तो सूर्य पर आपका वजन 1680 किलोग्राम होगा। सूर्य की किरणें प्लूटो तक पहुंचने में 5 घंटे 30 मिनट का समय लेती हैं। सूर्य के अंदरूनी तापमान के एक सेकेण्ड के प्रयोग से परे अमेरिका को अगले 38000 वर्षों तक बिजली की जरूरत नहीं पड़ेगी।

सूर्य की परिक्रमा करने में सबसे अधिक समय समय प्लूटो अथार्त बौना ग्रह लेता है यह सूर्य की परिक्रमा लगभग 248 वर्षों में करता है। मंगल ग्रह सूर्य की परिक्रमा 687 दिनों में करता है। पृथ्वी पर प्रत्येक साल सूर्यग्रहण लगता है। एक साल में अदिक-से-अधिक 5 बार सूर्य ग्रहण लग सकता है और यह ग्रहण 7 मिनट 40 सेकेण्ड से लेकर 20 तक चल सकता है। सूर्य पृथ्वी से 13 लाख गुना बड़ा है। सूर्य पृथ्वी से 3 लाख 30 हजार गुना भारी है।

सूर्य 21 जून को कर्क रेखा पर और 22 दिसंबर को मकर रेखा पर लंबवत चमकता है। 21 मार्च को और 23 सितंबर को सूर्य की स्थिति भूमध्य रेखा पर सर्वत्र दिन और रात बराबर होते हैं। सूर्य भारी मात्रा में सौरवायु उत्पन्न करता है जिसमें इलेक्ट्रॉन और प्रोटान जैसे कण होते है। यह वायु इतनी तेज और शक्तिशाली होती है कि इसमें उपस्थित इलेक्ट्रॉन और प्रोटान सूर्य के शक्तिशाली गुरुत्व से भी बाहर निकल जाते हैं।

पृथ्वी जैसे शक्तिशाली चुंबकीय क्षेत्र वाले ग्रह ऐसे कणों को पृथ्वी के पास पहुंचने से पहले ही मोड़ देते हैं। अगर सूर्य के केंद्र से एक पनीर के टुकड़े जैसे भाग को पृथ्वी की सतह पर रख दिया जाए तो कोई भी चट्टान या कोई भी चीज इसे पृथ्वी के 150 किलोमीटर भीतर तक धसने से नहीं रोक सकती। सूर्य की सतह का क्षेत्रफल पृथ्वी के क्षेत्रफल से 11990 गुना अधिक है।

सूर्य का गुरुत्वाकर्षण पृथ्वी से 28 गुना अधिक है यानि पृथ्वी पर आपका वजन 60 किलो है तो सूर्य पर यह 1680 किलो होगा। सूर्य के एक वर्ग सेंटीमीटर से जितनी ऊर्जा उत्पन्न होती है इतनी ऊर्जा 100 वाट के 64 बल्बों को जगाने के लिए बहुत होगी। सूर्य की जितनी ऊर्जा पृथ्वी पर पहुंचती है इतनी ऊर्जा संपूर्ण मनवो द्वारा खपत की ऊर्जा से 6000 गुना अधिक होती है।

पृथ्वी पर हर स्थान पर 360 दिनों में एक बार सूर्य ग्रहण जरुर नजर आता है। अब से 5 अरब साल बाद सूर्य अब से 40% अधिक चमकने लगेगा। सारे सागर, महासागर और नदियों का पानी जलवाष्प बनकर अंतरिक्ष में उड़ जाएगा। अब से 7 अरब 70 करोड़ साल बाद सूर्य लाल दानव का रूप धारण कर लेगा। यह लगभग 200 गुना बड़ा हो जाएगा और बुध ग्रह तक पहुंच जाएगा।

7 अरब 90 करोड़ साल बाद सूर्य एक सफेद वोने में बदल जाएगा तब इसका आकार केवल शुक्र ग्रह के जितना होगा। सूर्य का आकार इतना बड़ा है कि इसके भीतर 13 लाख पृथ्वी समा सकती हैं। सौरमंडल का 99.86% हिस्सा सूर्य से घिरा है बाकी सिर्फ 0.14% में ही पृथ्वी और अन्य ग्रह आते हैं। क्योंकि हमारी पृथ्वी दीर्घ वृत्ताकार में परिक्रमण करती है इसलिए सूर्य की धरती से दूरी घटती बढती रहती है।

जहाँ एक तरफ 45 डिग्री तापमान पर हम लोग गर्मी से बेहाल हो जाते हैं वहीं सूर्य के भीतर का तापमान लगभग 1,50,00,000 डिग्री सेल्सियस है। सूर्य के भीतर हर सेकेण्ड में 7 करोड़ टन हाइड्रोजन ईंधन 6 करोड़ 95 लाख टन हीलियम में बदल जाता है और बचा 5 लाख टन गामा किरणों में बदल जाता है। हमारी आकाशगंगा में 200,000,000,000 तारे उपस्थित हैं जिनमे से एक सूर्य भी हैं जो पृथ्वी के सबसे समीप का तारा है। हर सेकेण्ड में सूर्य से एक खरब परमाणु बमों जितनी एनर्जी निकल रही है।

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पंडित रामप्रसाद बिस्मिल-Ram Prasad Bismil

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पंडित रामप्रसाद बिस्मिल जी किसी भी परिचय के मोहताज नहीं हैं। उनके द्वारा लिखे गए सरफरोशी की तमन्ना जैसे अमर गीत ने हर भारतीय के दिल में जगह बनाई और अंग्रेजों से भारत देश की आजादी के लिए वो चिंगारी चेदी जिसने ज्वाला का रूप लेकर ब्रिटिश शासन के भवन को लाक्षाग्रह में बदल दिया।

ब्रिटिश साम्राज्य को दहला देने वाले काकोरी कांड को रामप्रसाद बिस्मिल जी ने ही अंजाम दिया था। देशभक्ति की भावना से भरी हुई हमेशा क्रांतिकारी स्वतंत्रता सेनानियों के द्वारा दोहराई जाने वाली इन पंक्तियों के रचियता राम प्रसाद बिस्मिल उन महान स्वतंत्रता सेनानियों में से एक थे जो देश की आजादी के लिए अंग्रेजी शासन से संघर्ष करते हुए शहीद हो गए थे।

इन्होने वीर रस से भरी हुई, लोगों के दिलों को जोश से भर देने वाली अनेक कविताएँ लिखीं। इन्होने अनेक भावविहल कर देने वाली गद्य रचनाएँ भी लिखी। इनकी क्रांतिकारी गतिविधियों की वजह से सरकार द्वारा इन पर मुकदमा चलाकर फांसी की सजा दे दी गई थी। इन्होने अपने देश को गुलामी की बेड़ियों से मुक्त करने के लिए अपना सबकुछ न्यौछावर कर दिया था।

राम प्रसाद बिस्मिल का जन्म :

राम प्रसाद बिस्मिल जी का जन्म 11 जून, 1897 में उत्तर प्रदेश के शाहजहाँपुर जिले में हुआ था। राम प्रसाद बिस्मिला के पिता का नाम मुरलीधर था और माता का नाम मूलमती था। बिस्मिल जी के पिता मुरलीधर कचहरी में सरकारी स्टॉम्प बेचा करते थे और उनकी माता मूलमति एक कुशल गृहिणी थीं।

राम प्रसाद बिस्मिल के पूर्वज :

रामप्रसाद बिस्मिल जी के दादा जी मूल रूप से ग्वालियर राज्य से थे। इनका पैत्रक क्षेत्र ब्रिटिश शासनकाल में चंबल नदी के किनारे तोमरघार प्रांत के नाम से जाना जाता था। इस प्रदेश में रहने वाले लोग निर्भीक, साहसी और अंग्रेजों से सीधे रूप से चुनौती देने वाले थे।

रामप्रसाद बिस्मिल जी में भी यहीं का पैतृक खून था जिसका प्रमाण उन्होंने अंग्रेजों के विरुद्ध क्रांतिकारी गतिविधियों को कार्यान्वित करके दिया था। बिस्मिल जी के दादा जी नारायणलाला को पारिवारिक झगड़ों की वजह से अपना गाँव छोड़ना पड़ा था। नारायणलाल अपने दोनों पुत्रों मुरलीधर और कल्याणमल को लेकर शाहजहाँपुर आ गए थे और वहीं पर रहने लगे।

इनके दादा जी ने शाहजहाँपुर आकर एक दवा बेचने वाले की दुकान पर 3 रूपए प्रति महीने की नौकरी की थी। नारायण लाल के यहाँ आने के वक्त इस क्षेत्र में भीषण अकाल पड़ रहा था। ऐसे वक्त में इनकी दादी ने बड़ी कुशलता से अपनी गृहस्थी को संभाला था।

कुछ समय पश्चात ही इनकी दादी ने आर्थिक तंगी को दूर करने के लिए तीन-चार घरों में जाकर पिसाई का काम शुरू कर दिया और काम से वापस आकर अपने बच्चों के लिए खाना बनाती थी। इनके परिवार ने मुसीबतों का सामना करके कष्टों के बाद खुद को स्थापित करके समाज में अपनी प्रतिष्ठित जगह बनाई थी।

इनके दादा जी ने कुछ वक्त बाद नौकरी छोडकर पैसे, दुअन्नी, चवन्नी आदि बेचने की दुकान शुरू कर दी जिससे अच्छी आमदनी होने लगी थी जिससे अच्छी आमदनी होने लगी थी। नारायणलाल ने अपने बड़े बेटे को थोड़ी बहुत शिक्षा दिला दी और जीजान से मेहनत करके एक मकान भी खरीद लिया।

बिस्मिल के पिता जी मुरलीधर के विवाह के योग्य होने पर इनकी दादी जी ने अपने मायके में इनका विवाह कर दिया था। मुरलीधर जी अपने पिता जी के साथ कुछ समय अपने ननिहाल में रहने के बाद अपने परिवार और पत्नी को विदाकराकर शाहजहाँपुर आ गए थे।

राम प्रसाद बिस्मिल जी की शिक्षा :

बिस्मिल जी को 6 साल की उम्र में पढने के लिए बैठा दिया गया था। इनके पिताजी इनकी पढाई पर विशेष ध्यान देते थे क्योंकि वो पढाई का वास्तविक महत्व बहुत अच्छी तरह से समझते थे। उनके पिता जी को पता था कि अगर वो थोड़ी सी पढाई भी नहीं कर पाते तो जिस प्रतिष्ठित स्थान पर वो थे उसपर कभी भी नहीं पहुंच पाते।

वो बिस्मिल की पढाई को लेकर बहुत सख्त रहते और इनके द्वारा जरा भी लापरवाही होने पर बहुत कठोरता से व्यवहार करते और इन्हें बहुत बुरी तरह से पिटते थे। बिस्मिल जी की आत्मकथा के तथ्यों से यह पता चलता है कि एक बार इनके पिता इन्हें पढ़ा रहे थे उनके द्वारा बार-बार कोशिश कराने के बाद भी ये उ अक्षर नहीं लिख पा रहे थे।

कचहरी जाने का वक्त हो जाने की वजह से इनके पिता इन्हें उ अक्षर लिखने का अभ्यास करने के लिए कह गए थे। उनके जाने के साथ ही बिस्मिल भी खेलने के लिए चले गए थे। शाम को इनके पिता ने कचहरी से आने के बाद उ लिखकर दिखाने के लिए कहा। बहुत बार अभ्यास करने के बाद भी वे सही तरीके से उ नहीं बना पाए थे।

इस पर इनके पिता ने नाराज होकर इतनी पिटाई लगाई कि जिस छड से उन्होंने पीटा था वो लोहे की छड भी टेडी हो गई थी। सात साल की उम्र में इन्हें उर्दू की शिक्षा प्राप्त करने के लिए मौलवी के पास भेजा गया था जिनसे इन्होने उर्दू सीखी थी। इसके बाद इन्हें स्कूल में भर्ती कराया गया था।

लगभग 14 साल की उम्र में बिस्मिल ने चौथी कक्षा को उत्तीर्ण किया। इन्होने कम उम्र में ही उर्दू, हिंदी और इंग्लिश भाषा की शिक्षा प्राप्त की। अपनी कुछ पारिवारिक परिस्थितियों की वजह से इन्होने 8वीं के आगे की पढाई नहीं की थी।

राम प्रसाद बिस्मिल का प्रारंभिक जीवन :

राम प्रसाद बिस्मिल जी का जन्म एक हिन्दू परिवार में हुआ था जो हिन्दू धर्म की सभी मान्यताओं का अनुसरण करता था। बिस्मिल जी के माता-पिता को बिस्मिल जी से पहले एक और पुत्र प्राप्त हो चुका था लेकिन जन्म के कुछ महीनों के बाद ही किसी अज्ञात बीमारी की वजह से उसकी मृत्यु हो गई थी जिससे इनके जन्म के वक्त से ही इनकी दादी बहुत ही सावधान हो गई थीं।

वे हर स्थान पर उनकी सलामती की दुआएं मांगती थीं। जब राम प्रसाद जी दो महीने के थे तब इनका स्वास्थ्य भी अपने स्वर्गवासी भाई की तरह ही गिरने लगा। इन्हें किसी भी दवा से कोई फायदा नहीं होता था। अतः किसी ने सलाह दी कि इनके ऊपर से सफेद खरगोश का उतारा करके उसे छोड़ दिया जाए अगर कोई समस्या होगी तो यह खरगोश मर जाएगा।

ऐसा ही किया गया और सब लोगो को यह देखकर आश्चर्य हुआ कि थोड़ी दूर जाने के बाद ही वह खरगोश मर गया और इसके बाद से उनका स्वास्थ्य धीरे-धीरे ठीक होने लगा। जब राम प्रसाद बिस्मिला जी केवल सात साल के थे उनके पिता उन्हें हिंदी अक्षरों का ज्ञान कराने लगे।

उस समय उर्दू भाषा का भी बोलबाला था इसलिए हिंदी भाषा की शिक्षा के साथ-साथ बालक को उर्दू पढ़ने के लिए एक मौलवी साहब के पास भेजा जाता था। बिस्मिला जी एक पिता उनकी शिक्षा पर विशेष ध्यान देते थे और पढाई के मामले में जरा भी लापरवाही करने पर मार भी पडती थी।

8 वीं कक्षा तक वे हमेशा कक्षा में प्रथम आते थे लेकिन कुसंगति की वजह से उर्दू मिडिल परीक्षा में वह निरंतर दो साल अनुत्तीर्ण हो गए। बिस्मिला की इस अवनति से सभी को बहुत दुःख हुआ और दो बार एक ही परीक्षा में अनुत्तीर्ण होने पर उनका मन भी उर्दू की पढाई से उठ गया था। इसके बाद उन्होंने अंग्रेजी पढने की इच्छा व्यक्त की थी।

उनके पिता अंग्रेजी भाषा पढने के पक्ष में नहीं थे लेकिन बिस्मिला जी की माँ के कहने पर मान गए थे। 9वीं कक्षा में जाने के बाद बिस्मिला जी आर्य समाज के संपर्क में आए और उसके बाद उनके जीवन की दशा ही बदल गई। आर्य समाज मंदिर शाहजहाँपुर में वह स्वामी सोमदेव के संपर्क में आए।

जब बिस्मिला 18 साल के थे तब स्वाधीनता सेनानी भाई परमानंद को ब्रिटिश सरकार ने गदर षडयंत्र में शामिल होने के लिए फांसी की सजा सुनाई। इस खबर को पढकर बिस्मिल जी बहुत अधिक विचलित हुए और मेरा जन्म शीर्षक से एक कविता की रचना की और उसे स्वामी सोमदेव को दिखाया।

इस कविता में देश को अंग्रेजी हुकुमत से मुक्ति दिलाने की प्रतिबद्धिता दिखाई दी थी। इसके बाद रामप्रसाद जी ने अपनी पढाई छोड़ दी और सन् 1916 में कांग्रेस के लखनऊ अधिवेशन के दौरान कांग्रेस के नरमदल के विरोध के बाद भी लोकमान्य बालगंगाधर तिलक की पूरे लखनऊ शहर में शोभायात्रा निकली थी।

इसी अधिवेशन के दौरान उनकी मुलाकात केशव बलिराम हेडगेवार , सोमदेव शर्मा और मुकुंदीलाल आदि से हुई थी। इसके बाद कुछ साथियों की सहायता से उन्होंने अमेरिका की स्वतंत्रता का इतिहास नाम की किताब प्रकाशित की जिसे उत्तर प्रदेश सरकार ने प्रकाशित होते ही प्रतिबंधित कर दिया था।

राम प्रसाद बिस्मिल के कार्य :

जब कभी भारत के स्वाधीनता इतिहास में महान क्रांतिकारियों की बात होगी तब भारत माँ के इस वीर पुत्र का जिक्र अवश्य होता है। राम प्रसाद बिस्मिल एक महान क्रांतिकारी ही नहीं थे बल्कि उच्च कोटि के कवि, शायर, अनुवादक, बहुभाषाविद और साहित्यकार भी थे।

इन्होने अपनी बहादुरी और सूझ-बूझ से अंग्रेजी हुकुमत की नींद उड़ा दी और भारत की आजादी के लिए सिर्फ 30 साल की उम्र में अपने प्राणों की आहुति दे दी थी। बिस्मिल उपनाम के अलावा वे राम और अज्ञात के नाम से भी लेख और कविताएँ लिखते थे। उनकी प्रसिद्ध रचना सरफरोशी की तमन्ना गाते हुए पता नहीं कितने क्रांतिकारी देश की आजादी के लिए फांसी के तख्ते पर झूल गए थे।

राम प्रसाद बिस्मिला जी ने मैनपुरी कांड और काकोरी कांड को अंजाम देकर अंग्रेजी सरकार के साम्राज्य को हिला दिया था। करीब 11 साल के क्रांतिकारी जीवन में उन्होंने कई पुस्तकें लिखीं और खुद ही उन्हें प्रकाशित किया। उनके जीवनकाल में प्रकाशित हुई लगभग सभी किताबों को ब्रिटिश सरकार ने जब्त कर लिया था।

माँ के व्यक्तित्व का प्रभाव :

अपनी माँ के व्यक्तित्व का रामप्रसाद बिस्म्मिल जी पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा था। अपने जीवन की सभी सफलताओं का श्रेय उन्होंने अपनी माँ को ही दिया है। माँ के प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त करते हुए उन्होंने लिखा है कि अगर मुझे ऐसी माता नहीं मिलती तो मैं भी अतिसाधारण मनुष्यों की तरह संसार चक्र में फंसकर जीवन निर्वाह करता।

शिक्षा के अलावा क्रांतिकारी जीवन में भी उन्होंने वैसे ही मेरी मदद की जैसे मेजिनी की उनकी माता ने की थी। माता जी का मेरे लिए सबसे बड़ा उपदेश यही था कि किसी के प्राण मत लो। उनका कहना था कि अपने शत्रु को भी कभी प्राण दंड नहीं देना। उनके इस आदेश की पूर्ति करने के लिए मुझे विवशतापूर्ण एक-दो बार अपनी प्रतिज्ञा भंग करनी पड़ी।

पारिवारिक परिवेश या वातावरण :

रामप्रसाद बिस्मिल जी के जन्म के समय तक इनका परिवार पूर्ण रूप से समाज में एक प्रतिष्ठित और संपन्न परिवारों में गिना जाने लगा था। इनके पिताजी ने विवाह के बाद नगरपालिका में 15 रूपए प्रति महीने की नौकरी कर ली और जब वो इस नौकरी से ऊब गए तो इन्होने वो नौकरी छोडकर कचहरी में सरकारी स्टॉम्प बेचने का काम शुरू कर दिया।

इनके पिता मुरलीधर सच्चे दिल और स्वभाव से ईमानदार थे। इनके सरल स्वभाव की वजह से समाज में इनकी प्रतिष्ठा खुद ही बढ़ गई थी। बिस्मिल जी के दादाजी इनसे बहुत प्यार करते थे। उन्हें गाय पालने का काफी शौक था इसलिए खुद ग्वालियर जाकर बड़ी-बड़ी गाय खरीदकर लाते थे। बिस्मिल जी से स्वभाविक प्रेम होने की वजह से अप्पने साथ बड़े प्रेम से रखते थे।

इन्हें खूब दूध पिलाते थे और व्यायाम भी करवाते थे। जब संध्या के समय पूजा के लिए मंदिर जाते थे तो बिस्मिल को अपने कंधों पर बिठाकर अपने साथ ले जाते थे। बिस्मिल पर अपने पारिवारिक परिवेश और पैतृक गाँव का प्रभाव बहुत ज्यादा पड़ा जो उनके चरित्र में मौत के वक्त तक भी परिलक्षित होता था।

तत्कालीन परिवेश का प्रभाव :

कुमार अवस्था में पहुंचते ही बिस्मिल जी को उर्दू के उपन्यास पढने का बहुत शौक लग गया था। नए-नए उपन्यास खरीदने के लिए इन्हें रुपयों की जरूरत होने लगी थी। अगर वो उपन्यास के लिए अपने पिता से पैसे मांगते तो बिलकुल नहीं मिलते इसलिए इन्होने अपने पिता के सन्दुक से पैसे चुराने शुरू कर दिए।

इसके साथ ही इन्हें नशा करने और सिगरेट पीने की भी लत लग गई थी। जिस पुस्तक विक्रेता से बिस्मिल जी उपन्यास खरीदकर पढ़ते थे वे उनके पिता जी का परिचित था। उसने इस बात की शिकायत उनके पिता से कर दी जिससे घर में इनकी हरकतों पर नजर रखी जाने लगी।

इस पर इन्होने उस पुस्तक विक्रेता से पुस्तकें खरीदना छोड़ दिया और किसी और से पुस्तकें खरीदकर पढने लगे। लेकिन ऐसा कहा जाता है कि झूठ छुपाए नहीं छुपता है। यह कहावत बिस्मिल जी पर पूरी तरह से चरितार्थ हुई थी। एक दिन ये नशे की हालत में अपने पिता के सन्दुक से पैसे चुरा रहे थे।

होश में न होने की वजह से इनसे संदूक खटक गई और आवाज को सुनकर इनकी माँ जाग गईं व उन्होंने इन्हें चोरी करते हुए देखा लिया। इससे इनके सभी रहस्य खुल गए। जब इनकी तलाशी ली गई तो इनके पास से बहुत से उपन्यास और पैसे मिले।

बिस्मिल जी की सच्चाई से पर्दा उठने के बाद संदूक का टला बदल दिया गया और उनके पास से मिले उपन्यासों को जलाने के साथ-साथ उनकी हर छोटी-छोटी हरकतों पर नजर रखी जाने लगी। अपनी इन्हीं गलत हरकतों की वजह से ही वो निरंतर मिडिल परीक्षा में दो बार फेल भी हुए थे। कठोर प्रतिबंधों की वजह से इनकी आदतें चुटी नहीं परन्तु बदल अवश्य गईं।

उद्दण्ड स्वभाव :

रामप्रसाद बिस्मिल जी अपने बचपन में बहुत शरारती और उद्दण्ड स्वभाव के थे। दूसरों के बागों के फल तोड़ने और अन्य शरारतें करने में उन्हें बहुत आनन्द आता था। इस पर उन्हें अपने पिता जी के क्रोध का भी सामना करा पड़ता था। वे बुरी तरह से पिटते थे लेकिन इसका भी उन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता था। एक बार किसी के पेड़ से आडू तोड़ने पर उन्हें इतनी मार पड़ी थी कि वह दो दिनों तक बिस्तर से नहीं उठ सके थे।

किशोर अवस्था में बुरी आदतें :

यह एक कडवा सच है कि अभिभावकों की हर अच्छी-बुरी आदतों का प्रभाव बच्चों पर जरुर पड़ता है। बेशक से बच्चे अपने बड़ों की बुरी आदतों का विरोध नहीं कर पाते लेकिन उनके अचेतन मन में एक विरोध की भावना घर कर जाती है। कभी-कभी बच्चे खुद भी उन बुरी आदतों की तरफ आकृष्ट हो जाते हैं क्योंकि उनका स्वभाव ही जिज्ञासु होता है।

बच्चे के साथ मार-पीट और कठोर व्यवहार उसे जिद्दी बना देता है। बिस्मिल जी के एक मित्र थे चटर्जी जिनकी दवाओं की दुकान थी। चटर्जी को अनेक प्रकार के नशों के आदि थे। उन्हें उनसे अगाध प्रेम था जो उनके दोस्त में दुर्गुण थे वे सभी बिस्मिल जी में भी आ गए।

आत्मसुधार के प्रयास के लिए नया रास्ता :

रामप्रसाद बिस्मिल के आत्मसुधार की कोशिशों पर इनकी दादी और इंक माँ के स्वभाव का बहुत अधिक प्रभाव पड़ा। इन्होने अपनी की साहसिक प्रवृत्ति को सुना और महसूस किया था साथ-साथ इनकी माँ विद्वान और बुद्धिमान थी जिससे इन्हें बुरी प्रवृत्ति से छुटकारा पाने में बहुत हद तक मदद मिली थी।

उसी वक्त इनके घर के पास के ही मंदिर में एक विद्वान पंडित आकर रहने लगे थे। बिस्मिल उनके चरित्र से प्रभावित हुए ओए उनके साथ रहने लगे थे। उस पुजारी के सानिध्य में रहते हुए इन्हें खुद ही अपने दुर्व्यसनों से नफरत होने लगी थी। दूसरी ओर स्कूल में इनकी मुलाकात सुशील चंद्र सेन से हुई। ये उनके घनिष्ट मित्र बन गए। सेन के संपर्क में आकर इन्होने सिगरेट पीना भी छोड़ दिया।

मंदिर के पुजारी जी के साथ रहते हुए बिस्मिल जी ने देव पूजा करने की पारंपरिक रीतियों को सिख लिया था। वो दिन रात भगवान की पूजा करने लगे थे। इन्होने व्यायाम करना भी शुरू कर दिया जिससे इनका शरीर मजबूत होने लगा। इस तरह की कठिन साधना शक्ति से बिस्मिल का मनोबल बढ़ गया और किसी भी काम को करने के लिए दृढ संकल्प करने की प्रवृत्ति भी विकसित हुई।

बुराईयों से मुक्ति :

अपनी इन बुरी आदतों की वजह से बिस्मिल जी मिडिल कक्षा में दो साल अनुत्तीर्ण हो गए थे। उनकी इच्छा पर उन्हें अंग्रेजी स्कूल में प्रवेश दिलवा दिया गया था। उनके घर के पास में एक मंदिर था। इन्हीं दिनों इस मंदिर में एक नए पुजारी जी आ गए जो बड़े ही उदार और चरित्रवान व्यक्ति थे।

बिस्मिल जी अपने दादाजी के साथ पहले से ही मंदिर में जाने लगे थे। नए पुजारीजी से भी बिस्मिल जी प्रभावित हुए थे। वे प्रतिदिन मंदिर में आने-जाने लगे थे। पुजारी जी के संपर्क में वह पूजा-पाठ सिखने लगे। पुजारी जी पूजा पाठ के साथ-साथ उन्हें संयम-सदाचार, ब्रह्मचर्य का उपदेश भी देते थे। इन सबका बिस्मिल जी पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा।

वे समय का सदुपयोग करने लगे। उनका ज्यादातर समय पढने और ईश्वर की उपासना में ही व्यतीत होने लगा। उन्हें इस काम में बहुत आनन्द आने लगा था। इसके साथ ही वे व्यायाम भी नियमित रूप से करने लगे थे। उनकी सभी बुरी आदतें छूट गई लेकिन सिगरेट को चोदना थोडा मुश्किल लग रहा था। इस समय वह रोज लगभग 50 से 60 सिगरेट पी जाते थे।

इस बुराई को न छोड़ पाने का उन्हें दुःख था। वह समझते थे कि उनकी बुरी आदतें कभी नहीं छूट पाएंगी। उर्दू स्कूल को छोडकर उन्होंने मिशन स्कूल की पांचवी कक्षा में नाम लिखा लिया। यहाँ पर उनका अपने सहपाठी सुशीलचन्द्र सेन से विशेष प्रेम हो गया। अपने इसी सहपाठी के संपर्क में आने से उनकी सिगरेट पीने की आदत भी छूट गई।

नया विश्वास नया जीवन :

जिन दिनों राम प्रसाद बिस्मिल जी अपने घर के पास वाले मंदिर में ईश्वर की आराधना करते थे तभी उनकी मुलाकात मुंशी इंद्रजीत से हुई जो आर्य समाजी विचारधारा के थे। उनका मंदिर के पास ही रहने वाली किसी सज्जन के घर आना जाना था। बिस्मिल जी की धर्म में अभिरुचि देखकर मुंशी इंद्रजीत ने उन्हें संध्या उपासना करने की सलाह दी।

बिस्मिल जी ने संध्या के बारे में उनसे विस्तार से पूछा। मुंशी जी ने संध्या का महत्व और उपासना क विधि उन्हें समझाई। इसके बाद उन्होंने बिस्मिल जी को आर्य समाज के सिद्धांतों के विषय में भी बताया और पढने के लिए सत्यार्थ प्रकाश दिया। सत्यार्थ प्रकाश पढने पर बिस्मिल जी के विचार में एक अभूतपूर्व परिवर्तन आया था।

उन्हें वैदिक धर्म को जानने का मौका प्राप्त हुआ। इससे उनके जीवन में नए विचारों और विश्वासों का जन्म हुआ। उन्हें एक नया जीवन मिला। उन्हें सत्य, संयम, ब्रह्मचर्य का महत्व आदि समझ में आया था। उन्होंने अखंड ब्रह्मचर्य व्रत का प्रण किया इसके लिए उन्होंने अपनी पूरी जीवनचर्या ही बदल डाली।

आर्य समाज की तरफ झुकाव और ब्रह्मचर्य का पालन :

राम प्रसाद बिस्मिल जी अब नियम पूर्वक मंदिर में रोज पूजा करते थे। एक दिन मुंशी इंद्रजीत ने इन्हें पूजा करते हुए देखा और इनसे बहुत ज्यादा प्रभावित हुए। वो इनसे मिले और संध्या वंदना करने की सलाह दी। इस पर बिस्मिल ने उनसे संध्या क्या है यह प्रश्न पूछा।

मुंशी जी ने इन्हें आर्य समाज के कुछ उपदेश देते हुए इन्हें संध्या करने की विधि बताई और साथ में स्वामी दयानंद द्वारा रची गई सत्यार्थ प्रकाश पढने के लिए दी। बिस्मिल जी अपनी दैनिक दिनचर्या को करने के साथ-साथ सत्यार्थ प्रकाश का अध्धयन करने लगे।

इसमें बताए गए स्वामी जी के उपायों से बिस्मिल जी बहुत अधिक प्रभावित हुए थे। पुस्तक में स्वामी जी द्वारा बताए गए ब्रह्मचर्य के नियमों का पूर्ण रूप से पालन करने लगे। इन्होने चारपाई को छोडकर तख्त या धरती और केवल एक कंबल बिछाकर सोना शुरू कर दिया।

रात के समय भोजन करना छोड़ दिया यहाँ तक कि कुछ समय के लिए इन्होने नमक खाना भी छोड़ दिया।प्रतिदिन सुबह 4 बजे उठकर व्यायाम आदि करते। इसके बाद स्नान आदि करके 2 से तीन घंटों तक भगवान की पूजा करने लगे। इस प्रकार ये पूरी तरह से स्वस्थ हो गए।

आर्य समाज के कट्टर अनुयायी और पिता से विवाद :

स्वामी दयानंद जी की बातों का राम प्रसाद बिस्मिल जी पर इतना घर प्रभाव पड़ा कि ये आर्य समाज के सिद्धांतों को पूर्ण रूप से अनुसरण करने लगे और आर्य समाज के कट्टर अनुयायी बन गए थे। इन्होने आर्य समाज द्वारा आयोजित सम्मेलनों में भाग लेना शुरू कर दिया।

इन सम्मेलनों में जो भी सन्यासी महात्मा आते बिस्मिल जी उनके प्रवचनों को बहुत ही ध्यान के साथ सुनकर उन्हें अपनाने की पूरी कोशिश करते थे। बिस्मिल जी को प्रणायाम सीखने का बहुत शौक था। अतः जब भी कोई सन्यासी आता ये उसकी पूरी तरह समर्पित होकर सेवा करते थे। जब ये सातवीं कक्षा में थे उस समय इनके क्षेत्र में सनातन धर्म का अनुसरण करने वाले पंडित जगत प्रसाद जी आए थे।

उन्होंने आर्य समाज की आलोचना करते हुए इस धर्म का खंडन करना आरंभ कर दिया था। इसका आर्य समाज के समर्थकों ने इसका विरोध किया। अपने-अपने धर्म को अधिक श्रेष्ठ साबित करने के लिए सनातन-धर्मी पंडित जगत प्रसाद और आर्य समाजी स्वामी अखिलानंद के मध्य शास्त्रार्थ हुआ। उनकी पूरी शास्त्रार्थ संस्कृत में हुई थी।

जिसका जनसमूह पर अच्छा प्रभाव पड़ा था। आर्य समाज में आस्था होने की वजह से बिस्मिल जी ने स्वामी अखिलानंद की सेवा की लेकिन दोनों धर्मों में एक-दूसरे से खुद को श्रेष्ठ साबित करने की होड़ लगी हुई थी जिसका प्रमाण अपने धर्म के अनुयायियों की संख्या में वृद्धि करके ही दिया जा सकता था। जिससे किसी सनातन धर्मी ने इनके पिता को बिस्मिल जी के आर्य समाजी होने की सुचना दे दी थी।

बिस्मिल जी का परिवार सनातन धर्म में पूर्ण आस्था रखता था और इनके पिता कट्टर सनातन धर्मी थे। उन्हें उन्हें किसी बाहर वाले व्यक्ति से इनके आर्य समाजी होने का पता चला तो उन्होंने खुद को बहुत अपमानित महसूस किया क्योंकि वो बिस्मिल के आर्य समाजी होने से पूरी तरह से अनजान थे।

अतः घर आकर उन्होंने इनसे आर्य समाज छोड़ देने के लिए कहा। समाज की उंच-नीच के बारे में बताया लेकिन बिस्मिल जी ने अपने पिता की बात मानने की जगह पर उन्हें उल्टा समझना शुरू कर दिया। अपने पुत्र को इस प्रकार बहस करते देख वे खुद को और अपमानित महसूस करने लगे।

उन्होंने क्रोध में आकर यहाँ तक कह दिया कि या तो आर्य समाज छोड़ दो या मेरा घर छोड़ दो। इस पर बिस्मिल जी ने अपने सिद्धांतों पर अटल रहते हुए घर छोड़ने का निश्चय किया और अपने पिता के पैर चुकर उसी वक्त घर छोडकर चले गए।

इनका शहर में कोई भी परिचित नहीं था जहाँ ये कुछ समय के लिए रह सकें इसलिए ये जंगल की तरफ चले गए।वहां पर उन्होंने एक दिन और एक रात बिताए थे। इन्होंने नदी में नहाकर पूजा अर्चना की। जब इन्हें भूख लगी तो खेत से हरे चने तोडकर खा लिए। दूसरी ओर इनके इस तरह घर से चले जाने पर घर में सभी लोग परेशान हो गए थे।

मुरलीधर जी को भी गुस्सा शांत होने पर अपनी गलती का एहसास हुआ और उन्हें खोजने में लग गए। दूसरे दिन शाम के समय जब ये आर्य समाज मंदिर पर स्वामी अखिलानंद जी का प्रवचन सुन रहे थे तब इनके पिता दो व्यक्तियों के साथ वहां पर आए और उन्हें अपने साथ घर ले गए।

कुमार सभा की सदस्यता :

आर्य समाज से प्रभावित युवकों ने आर्य समाज मंदिर में कुमार सभा की स्थापना की थी। हर शुक्रवार को कुमार सभा की एक बैठक होती थी। यह सभा धार्मिक पुस्तकों पर बहस, निबंध लेखन, वाद-विवाद आदि का आयोजन करती थी। बिस्मिल जी भी इसके सदस्य थे। यही से उन्होंने सार्वजनिक रूप से बोलना शुरू किया।

कुमार सभा के सदस्य शहर और आसपास लगने वाले मेलों में आर्य समाज के सिद्धांतों का प्रचार करते थे तथा बाजारों में भी इस विषय में व्याख्यान देते थे। इस तरह का प्रचार कार्य मुसलमानों को सहन नहीं हुआ था। संप्रदायिक वैमनस्य बढने का खतरा दिखाई देने लगा। अतः बाजारों में व्याख्यान देने पर प्रतिबंध लगा दिया गया।

आर्य समाज के बड़े-बड़े नेता लोग कुमार सभा के सदस्यों को अपने संकेतों पर नाचना चाहते थे लेकिन युवक उनका नियंत्रण स्वीकार करने को किसी तरह तैयार नहीं थे। कुमार सभा के लिए आर्य समाज में टला लगा दिया गया। उन्हें मंदिर में सभा नहीं करने के लिए बाध्य कर दिया गया था।

चेतावनी दी गई कि उन्होंने मंदिर में सभा की तो उन्हें पुलिस द्वारा बाहर निकलवा दिया जाएगा। इससे युवकों को बहुत निराशा हुई उन्हें ऐसी आशा नहीं थी। फिर भी वे दो-तीन महीनों तक मैदान में ही अपनी साप्ताहिक बैठक करते रहे थे। सदा ऐसा करना संभव नहीं था अतः कुमार सभा समाप्त हो गई थी।

बुजुर्ग आर्य समाजियों ने अपनी नेतागिरी दिखाने के लिए युवकों की भावनाओं की हत्या कर दी थी। कुमार सभा के टूट जाने पर भी उसका शहर की जनता पर अच्छा प्रभाव पड़ चुका था। लखनऊ में संपन्न होने वाले कांग्रेस के अधिवेशन के साथ अखिल भारतीय कुमार सभा का भी वार्षिक सम्मेलन होने वाला था।

बिस्मिल जी इनमे भाग लेने के इच्छुक थे। इसमें भाग लेने पर कांग्रेस का अधिवेशन देखने का भी मौका मिल जाता। उन्होंने अपनी यह इच्छा अपने घर वालों के सामने रखी थी लेकिन उनके पिता और दादा इससे सहमत नहीं हुए थे। दोनों ने इसका प्रबल विरोध किया सिर्फ उनकी माता जी ने ही उन्हें भेजने का समर्थन किया।

उन्होंने पुत्र को वहां जाने के लिए खर्चा भी दिया जिसकी वजह से उन्हें पति की डांट-फटकार का भी सामना करना पड़ा था। बिस्मिल जी लखनऊ गए और अखिल भारतीय कुमार सम्मेलन में भाग लिया था। इस सम्मेलन में लाहौर और शाहजहाँपुर की कुमार सभाओं को ही सबसे ज्यादा पुरस्कार प्राप्त हुए थे। देश के सभी प्रमुख समाचार पत्रों ने इस समाचार को प्रकाशित किया था।

अस्त्रों-शस्त्रों से लगाव :

बिस्मिल जी जिन दिनों मिशन स्कूल में विद्यार्थी थे और कुमार सभा की बैठकों में भाग लेते थे उन्हीं दिनों मिशन स्कूल के एक अन्य विद्यार्थी से उनका परिचय हुआ। वह विद्यार्थी भी कुमार सभा की बैठकों में आता था। बिस्मिल जी के भाषणों का उस पर प्रभाव पड़ा। दोनों का परिचय धीरे-धीरे गहरी मित्रता में बदल गया।

वह भी बिस्मिल जी के पडोस में रहता था और पास ही के गाँव का रहने वाला था। वह जिस गाँव का रहने वाला था उस गाँव में हर घर में बिना लाइसेंस के हथियार रहते थे। इसी तरह के बंदूक, तमंचे आदि सभी गाँव में ही बनते थे। वहां पर सभी हथियार टोपीदार होते थे। इस मित्र के पास भी गाँव में ही बना एक नाली का एक छोटा-सा पिस्तौल था जिसे वह अपने पास ही रखता था।

उसने वह पिस्तौल बिस्मिल जी को रखने के लिए दे दिया था। बिस्मिल जी के मन में भी हथियार रखने की तीव्र इच्छा थी। उनके पिता पंडित मुरलीधर की कई लोगों से शत्रुता थी जिसकी वजह से उनके शत्रुओं ने उन पर कई बार लाठियों से प्रहार किया था। बिस्मिल जिस इसका प्रतिशोध लेना चाहते थे।

इस पिस्तौल के मिलने पर उन्हें बहुत अधिक प्रसन्नता हुई। उन्होंने उसे चलाकर देखा लेकिन वह किसी काम का भी न था। अतः उन्होंने उसे यूँ ही घर के किसी कोने में फेंक दिया। इससे मित्र से बिस्मिल जी का प्रेम बहुत अधिक बढ़ गया। दोनों दोस्त साथ-साथ बैठते और खाना खाते। शाम के समय बिस्मिल जी अपने घर से खाना लेकर उसी के पास पहुंच जाते।

एक दिन उस मित्र के पिताजी गाँव से उससे मिलने आए। उन्हें इन दोनों की इतनी गहरी मित्रता पसंद नहीं आई थी। उन्होंने बिस्मिल को वहां न आने की चेतावनी दी और कहा कि अगर वह न माने तो उनको गाँव से गुंडे बुलवाकर बुरी तरह पिटवा दिया जाएगा। फलतः इसके बाद बिस्मिल जी ने उस मित्र के पास जाना छोड़ दिया लेकिन वह उनके घर बराबर आता रहा।

हथियार खरीदने की इच्छा :

हथियार खरीदने की उनकी इच्छा बढती ही गई। वे हथियार खरीदने के लिए लगातार कोशिश करते रहे लेकिन कोई सफलता प्राप्त नहीं हुई। इसी बिच उन्हें अपनी बहन की शादी के मौके पर ग्वालियर जाने का अवसर प्राप्त हुआ। उन्होंने सुना था कि ग्वालियर राज्य में हथियार बहुत ही आसानी से मिल जाते हैं। इसके लिए उन्होंने अपनी माँ से धन माँगा था।

माँ ने उन्हें करीब 125 रूपए दिए थे। धन लेने के बाद बिस्मिल जी हथियारों की खोज में चल दिए। वे किसी भी हालत में इस मौके को हाथ से नहीं जाने देना चाहते थे। हथियारों की खोज में बहुत से स्थानों पर घूमें। टोपी वाले पिस्तौल और बंदूकें तो मिली थीं लेकिन कारतूसी हथियार कहीं पर भी दिखाई नहीं देते थे।

वस्तुतः उन्हें हथियारों की पहचान भी नहीं थी। अंत में उनकी मुलाकात एक व्यक्ति से हुई जिसने उन्हें असली रिवोल्वर देने का वादा किया। बिस्मिल जी उस व्यक्ति के साथ गए। उस व्यक्ति ने उन्हें 5 गोलियों वाला रिवोल्वर दिया और उसकी कीमत 75 रूपए लगाई। बिस्मिल जी ने इस रिवोल्वर को खरीद लिया। इससे उन्हें बहुत प्रसन्नता हुई।

इसमें बारूद भरी जाती थी। उस व्यक्ति में बिस्मिल जी को रिवालवर के साथ थोसी सी बारूद और कुछ टोपियाँ भी दी थीं। रिवाल्वर को लेकर बिस्मिल जी शाहजहाँपुर आए। रिवाल्वर कितने काम का है यह देखने के लिए उन्होंने उसका परीक्षण करना चाहा। उस व्यक्ति ने जो बारूद दी थी वह उत्तम श्रेणी की नहीं थी।

पहली बार उसमें बारूद भरकर उन्होंने फायर किया लेकिन गोली सिर्फ 15 से 20 गज की दूरी पर ही गिरी। उन्हें इससे बहुत निराशा हुई। अब यह स्पष्ट हो गया था कि वे ठग लिए गए थे। ग्वालियर से लौटने पर माता जी ने पूछा कि क्या लाए हो तो बिस्मिल जी को अपनी असफलता से सब बताने का साहस नहीं हुआ अतः उन्होंने बात टाल दी और शेष पैसे माँ को लौटा दिए।

विदेशी राज्य के विरुद्ध प्रतिज्ञा :

लाहौर षडयंत्र के मामले में सन् 1915 में प्रसिद्ध क्रांतिकारी भाई परमानंद को फांसी की सजा सुना दी गई थी। बिस्मिल जी भाई परमानंद जी के विचारों से प्रभावित थे और उनके दिल में इस महान देशभक्त के लिए अपार श्रद्धा थी। इस निर्णय का समाचार पढकर बिस्मिल जी को देशानुराग जग पड़ा।

उन्होंने उसी वक्त अंग्रेजों के अत्याचारों को मिटने और मातृभूमि की स्वतंत्रता के लिए सतत प्रयत्न करने की प्रतिज्ञा ली। यद्यपि भाई परमानंद की फांसी की सजा के बाद में महामना मदनमोहन मालवीय तथा देशबंधु एंडयुज के प्रयत्नों से आजन्म कारावास में बदल दिया गया लेकिन बिस्मिल जीवन भर अपनी प्रतिज्ञा पर अटल रहे।

इस प्रतिज्ञा के बाद उनका एक नया जुवन शुरू हुआ। पहले वह एक सामान्य मध्यवर्गीय परिवार के पुत्र थे इसके बाद वह आर्यसमाज से प्रभावित हुए और एक सच्चे सात्त्विक आर्यसमाजी बने तथा इस प्रतिज्ञा के बाद उनका जीवन मातृभूमि के लिए समर्पित हो गया। यह उनके दिल में देश प्रेम के बिज का पहला अंकुरण था।

स्वामी सोमदेव से भेंट :

बिस्मिल जी के घर से चले जाने की वजह से उनके पिता जी ने उनका अधिक विरोध करना बंद कर दिया। ये जो भी काम करते थे वो चुपचाप शान कर लेते थे। इस तरह से इन्होने अपने सिद्धांतों पर चलते हुए अपना सारा ध्यान समाज की सेवा के कामों और अपनी पढाई पर लगा दिया। इन्होने अपनी क्लास में पहला स्थान प्राप्त किया।

इनका यह क्रम आठवीं क्लास तक जारी रहा। बिस्मिल जी को अपने दादा-दादी जी से साहस व विद्रोह और माता-पिता से दृढता एवं बुद्धिमत्ता विरासत में मिली थी। इसके साथ ही मंदिर के पुजारी के संपर्क में रहने से मन का संकल्प और शांति की प्रेरणा को ग्रहण कर लिया था।

अब सिर्फ एक महान व्यक्तित्व को प्रतिबिंबित करने वाली एक ही भावना बाकी रह गई थी वह अपने देश के लिए अपना सब कुछ न्यौछावर करने की भावना थी। इसके लिए एक उच्चकोटि के गुरु की आवश्यकता थी। इनकी यह आवश्यकता भी जल्द ही पूरी हो गई क्योंकि इनकी मुलाकात स्वामी सोमदेव से हो गई थी।

स्वामी सोमदेव आर्य समाज के प्रचार के लिए बिस्मिल जी के गाँव के पास वाले गाँव में आए थे लेकिन वहां की जलवायु स्वामी जी के स्वास्थ्य के लिए लाभप्रद नहीं थी। अतः उन्होंने इनके गाँव शाहजहाँपुर के आर्य समाज के मंदिर में रहना शुरू कर दिया था। बिस्मिल जी इनके व्यक्तित्व से बहुत ज्यादा प्रभावित हुए और पूरे मन से इनकी सेवा करने लगे थे।

ये स्वामी जी के प्रवचनों को बहुत ध्यान से सुनते और अपने गुरु के बताए हुए रास्ते पर चलने की हर संभव कोशिश करते थे। उनके बताए गए सिद्धांतों को समाज के हित में प्रयोग करते। स्वामी जी के सानिध्य में रहने के बाद ये पूरी तरह से सत्यवादी बन गए। किसी भी परिस्थिति में इनके मुंह से सिर्फ सच ही निकलता था।

परमानंद को फांसी की सजा का बिस्मिल के व्यक्तित्व पर प्रभाव :

आचार्य सोमदेव जी हर क्षेत्र में उच्चकोटि का ज्ञान रखते थे। उनके अर्जित ज्ञान की वजह से ही वे लोगों को शीघ्र ही अपने व्यक्तित्व से आकर्षित कर लेते थे। उनके परामर्श के लिए लाला हरदयाल उनसे संपर्क करते रहते थे। राजनीति में स्वामी जी के ज्ञान की कोई सीमा नहीं थी।

वो अक्सर बिस्मिल जी को धार्मिक व राजनीतिक उपदेश देते थे लेकिन बिस्मिल जी से राजनीति में ज्यादा खुलकर बात नहीं करते थे। वे बस इन्हें देश की राजनीति के संबंध में जानकारी रखने के लिए कहते और इन्हें तत्कालीन परिस्थितियों के संदर्भ में व्याख्यान देने के साथ-साथ अलग-अलग राजनीतिज्ञों की पुस्तकों का अध्धयन करने की सलाह देते थे।

इस प्रकार बिस्मिल जी में धीरे-धीरे देश के लिए कुछ कर गुजरने की इच्छा जाग्रत होने लगी। उन्ही के प्रोत्साहन पर इन्होने लखनऊ के कांग्रेस अधिवेशन में भाग लिया था। सन् 1916 में लाहौर षडयंत्र के अभियुक्तों पर मुकदमा चलाया जा रहा था।

बिस्मिल जी इस मुकदमें से संबंधित हर खबर को बहुत गहराई से पढ़ते थे क्योंकि ये इस मुकदमे के मुख्य अभियुक्त भाई परमानंद द्वारा लिखी गई किताब तावारीख हिन्द को पढकर इनके विचारों से बहुत ज्यादा प्रभावित हो गए थे। मुकदमों के अंत में जब परमानंद को फांसी की सजा सुनाई गई तो उस वक्त बिस्मिल जी बहुत आहत हुए थे।

इन्होने महसूस किया कि अंग्रेज बहुत अत्याचारी है। इनके शासनकाल में भारतियों के लिए कोई न्याय नहीं है। अतः उन्होंने बदला लेने की प्रतिज्ञा ली। इस प्रकार प्रतिज्ञा करने के बाद वे स्वामी सोमदेव के पास गए। उन्हें परमानंद को फांसी की सजा के फैसले का समाचार सुनाने के बाद अपनी प्रतिज्ञा के विषय में बताया।

इस पर स्वामी जी ने कहा कि प्रतिज्ञा करना आसान है लेकिन उसे निभा पाना बहुत मुश्किल है। इस पर रामप्रसाद बिस्मिल जी ने कहा कि अगर गुरुदेव का आशीर्वाद उनके साथ रहा तो वो पूरी शिद्दत के साथ अपनी प्रतिज्ञा को पूरा करेंगे। इसके बाद से स्वामी जी ने खुलकर इनसे राजनीतिक मुद्दों पर बात करने लगे और साथ ही इन्हें राजनीति की शिक्षा भी देने लगे थे। इस घटना के बाद से इनके क्रांतिकारी जीवन का शुरू हुआ।

लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक जी का आगमन :

सन् 1916 में लखनऊ में कांग्रेस का अधिवेशन था जिसमें सम्मिलित होने के लिए बाल गंगाधर तिलक आ रहे थे। जब यह खबर क्रांतिकारी विचारधारा के समर्थकों को मिली तो वे सब बहुत उत्साह से भर गए लेकिन जब उन्हें यह पता चला कि तिलक जी का स्वागत सिर्फ स्टेशन पर ही किया जाएगा तो उन सब के उत्साह पर पानी फिर गया।

बिस्मिल जी को जब यह खबर मिली तो वे भी अन्य प्रशंसकों की तरह लखनऊ स्टेशन पहुंच गए। इन्होने अपने कुछ साथियों के साथ मिलकर विचार-विमर्श किया कि जैसे एक राष्ट्र के नेता का स्वगत होना चाहिए उसी तरह से तिलक जी का भी स्वागत बहुत ही भव्य तरीके से किया जाना चाहिए। दूसरे दिन लोकमान्य तिलक जी स्टेशन पर स्पेशल ट्रेन से पहुंचे।

उनके आने की खबर मिलते ही स्टेशन पर उनके प्रशंसकों की बहुत बड़ी भीड़ इकठ्ठा हो गई। ऐसा लग रहा था जैसे पूरा लखनऊ उन्हें एक बार देखने के लिए उमड़ पड़ा हो। लोकमान्य तिलक जी के स्टेशन पर उतरते ही कांग्रेस की स्वागत-कारिणी के सदस्यों ने उन्हें घेरकर गाड़ी में बैठा लिया और पूरा स्टेशन नारों से गूंज उठा।

तिलक जी भारी जन समूह से घिरे मुस्कुरा रहे थे। इनके मित्रों ने एक और गाड़ी की व्यवस्था की। उस गाड़ी के घोड़ों को खोल दिया गया और तिलक जी को उसमें बैठाकर खुद अपने हाथों से गाड़ी खींचकर जुलुस को निकाला। पूरे रास्ते इन पर फूलों की वर्षा की गई।

कांग्रेस की गुप्त समिति से संबंध :

रामप्रसाद बिस्मिल जी लखनऊ में कांग्रेस अधिवेशन में शामिल होने गए थे। लखनऊ कांग्रेस अधिवेशन में भाग लेने जाने पर बिस्मिल जी कुछ क्रांतिकारी विचारों वाले युवकों के संपर्क में आए। इन युवकों का मत था कि देश की तत्कालीन दुर्दशा की एकमात्र वजह अंग्रेज ही थे। बिस्मिल जी भी इन विचारों से प्रभावी हुए।

अतः देश की स्वतंत्रता के लिए उनके मन में कुछ विशेष काम करने का विचार आया। यहीं पर उन्हें पता चला कि क्रांतिकारियों की एक गुप्त समिति भी है। यहाँ इनकी मुलाकात कांग्रेस के उन सदस्यों से हुई जो कांग्रेस के भीतर क्रांतिकारी गतिविधियों को कर्यान्वित करने के लिए गुप्त समिति का निर्माण कर रहे थे।

इस समिति का मुख्य उद्देश्य क्रांतिकारी मार्ग से देश की स्वतंत्रता प्राप्त करना था। इन सब का पता चलने पर बिस्मिल जी के मन में भी इस समिति का सदस्य बनने की तीव्र इच्छा हुई। वह भी समिति के कार्यों में सहयोग देने लगे। वे अपने एक मित्र के माध्यम से इसके सदस्य बन गए और थोड़े ही वक्त में वह समिति की कार्यकारिणी के सदस्य बना लिए गए।

इस समिति के सदस्य बनने के बाद बिस्मिल जी फिर अपने घर शाहजहाँपुर आ गए। समिति के पास आय का कोई स्त्रोत न होने की वजह से धन की बहुत कमी थी। बिस्मिल जी के अंदर जो क्रांतिकारी विचार उमड़ रहे थे अब उन्हें कर्यान्वित करने का वक्त आ गया था। ये बाहर से ही इस समिति के सदस्यों के कामों में सहायता करने लगे।

इनकी लगन को देखकर गुप्त समिति के सदस्यों ने इनसे संपर्क किया और इन्हें कार्यकारिणी समिति का सदस्य बना लिया। गुप्त समिति के पास बहुत कम कोष था और क्रांतिकारी गतिविधियों को जारी रखने के लिए अस्त्र-शस्त्रों की जरूरत थी। समिति की धन की आवश्यकता को पूरी करने के लिए बिस्मिल जी ने पुस्तक प्रकाशित करके उसके धन को समिति के कोष में जमा करके लक्ष्यों की प्राप्ति करने का विचार सामने रखा।

इससे दोहरे उद्देश्यों की प्राप्ति की जा सकती थी। एक ओर किताब को बेचकर धन प्राप्त किया जा सकता था तो दूसरी ओर लोगों में क्रांतिकारी विचारो को जगाया जा सकता था। बिस्मिल जी ने दो बार अपनी माँ से 200-200 रूपए लिए और अमेरिका को आजादी कैसे मिली नाम की पुस्तक का प्रकाशन किया।

पुस्तक की बिक्री हो जाने के बाद इन्होने अपनी माँ से लिए रूपए वापस के दी और सारे हिसाब करने के बाद में 200 रूपए बच गए जिससे इन्होने हथियार खरीदे। पूरी किताबें अभी बिक नहीं पाई थीं कि इन्होने सन् 1918 में देशवासियों के नाम संदेश नाम से पर्चे छपवाए। संयुक्त प्रांत की सरकार ने इनकी किताब और पर्चे दोनों पर बैन लगा दिया।

सरकार द्वारा प्रतिबंधित किताबों की बिक्री :

28 नवरी, 1918 को रामप्रसाद बिस्मिल ने लोगों में क्रांतिकारी विचारों को जागृत करने के लिए देशवासियों के नाम संदेश के शीर्षक से पर्चे छपवाकर अपनी कविता मैनपुरी की प्रतिज्ञा के साथ बांटा। इनकी किताब पर सरकार ने बेचने के लिए रोक लगा दी जिस पर इन्होने अपने साथियों की सहायता से कांग्रेस अधिवेशन के दौरान बची हुई प्रतियों को बेचने की योजना बनाई। सन् 1918 में कांग्रेस के दिल्ली अधिवेशन के दौरान शाहजहाँपुर सेवा समिति की तरफ से स्वंयसेवकों का एक दल एंबुलेंस से गया।

इस दल के साथ बिस्मिल और इनके कुछ साथी गए। स्वंयसेवकों का दल होने की वजह से पुलिस ने इनकी कोई तलाशी नहीं ली और वहां पहुंचकर इन्होने खुले रूप से पुस्तकों को बेचना शुरू कर दिया था। पुलिस ने शक होने पर आर्य समाज द्वारा बेचीं जा रही किताबोब की जाँच करना शुरू कर दिया। इतने में बिस्मिल जी ने बची हुई प्रतियों को इकट्ठा करके दल के साथ वहां से फरार हो गए थे।

मैनपुरी षडयंत्र :

स्वामी सोमदेव रामप्रसाद बिस्मिल जी के विचारों और कार्यों को जान चुके थे कि ये अपने देश के लिए कुछ भी कर गुजरने के लिए तैयार है। राम प्रसाद बिस्मिला जी ने अंग्रेजी साम्राज्यवाद से लड़ने और देश को आजाद कराने के लिए मातृदेवी नाम की एक क्रांतिकारी संगठन की स्थापना की।

इस काम के लिए उन्होंने ओरैया के पंडित गेंदा लाल दीक्षित की सहायता ली। गेंदा लाल दीक्षित जी उत्तर प्रदेश में ओरैया जिले के डीएवी पाठशाला में अध्यापक थे। स्वामी सोमदेव जी चाहते थे कि इस काम में बिस्मिला जी की सहायता कोई अनुभवी व्यक्ति ही करे इस वजह से उन्होंने उनकी मुलाकात पंडित गेंदा लाल से कराया था।

बिस्मिल जी की तरह पंडित जी ने भी शिवाजी समिति नामक एक क्रांतिकारी संगठन की स्थापना की थी। दोनों ने मिलकर इटावा, मैनपुरी, आगरा और शाहजहाँपुर जिलों के युवकों को देश सेवा के लिए संगठित किया था। जनवरी 1918 में बिस्मिल जी ने देशवासियों के नाम संदेश नामक एक पैम्फलेट प्रकाशित किया और अपनी कविता मैनपुरी की प्रतिज्ञा के साथ-साथ इसका भी वितरण करने लगे।

सन् 1918 में उन्होंने अपने संगठन को मजबूत करने के लिए 3 डकैती भी डाली। सन् 1918 में कांग्रेस के दिल्ली अधिवेशन के दौरान पुलिस ने उनको और उनके संगठन के दूसरे सदस्यों को प्रतिबंधित साहित्य बेचने के लिए छापा डाला लेकिन बिस्मिल जी भागने में सफल हो गए थे।

पुलिस से मुठभेड़ के बाद उन्होंने यमुना में छलांग लगा दी और तैरकर आधुनिक ग्रेटर नॉएडा के बीहड़ों में चले गए। इन बीहड़ों में उन दिनों सिर्फ बबूल के पेड़ ही हुआ करते थे और इंसान कहीं दूर-दूर तक दिखाई नहीं देता था। एक तरफ मैनपुरी षडयंत्र मुकदमे में ब्रिटिश सरकार के जज ने फैसला सुनाते हुए बिस्मिल और दीक्षित को भगोड़ा घोषित कर दिया।

बिस्मिल जी ने ग्रेटर नॉएडा के एक छोटे से गाँव रामपुर में स्थान लिया और कई महीनों तक वहाँ के निर्जन जंगलों में घूमते रहे। इसी दौरान उन्होंने अपना क्रांतिकारी उपन्यास बोल्शेविकों की करतूत लिखा और यौगिक साधन का हिंदी अनुवाद भी किया।

इसके बाद बिस्मिल कुछ वक्त तक इधर-उधर भटकते रहे और जब फरवरी 1920 में सरकार ने मैनपुरी षडयंत्र के सभी बंदियों को रिहा कर दिया तब वो भी शाहजहाँपुर वापस लौट गए। सितंबर 1920 में कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में वो शाहजहाँपुर कांग्रेस कमेटी के अधिकृत प्रतिनिधि के रूप में शामिल हुए थे।

वहां पर उनकी मुलाकात लाला लाजपतराय से हुई थी जो उनकी लिखी हुई पुस्तकों से बहुत अधिक प्रभावित हुए और उनका परिचय कलकत्ता के कुछ प्रकाशकों से करा दिया। इन्हीं प्रशासकों में से एक उमादत्त शर्मा ने आगे चलकर सन् 1922 में बिस्मिल की एक किताब कैथेराइन छापी थी।

सन् 1921 में उन्होंने कांग्रेस के अहमदाबाद अधिवेशन में भाग लिया और मौलाना हसरत मोहनी के साथ मिलकर पूर्ण स्वराज का प्रस्ताव कांग्रेस के साधारण सभा में पारित करवाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। शाहजहाँपुर लौटकर उन्होंने लोगों को असहयोग आंदोलन में भाग लेने के लिए प्रेरित किया।

चौरी-चौरा कांड के बाद गाँधी जी ने असहयोग आंदोलन वापस ले लिया तो सन् 1922 के हुए अधिवेशन में बिस्मिल और उनके साथियों के विरोध स्वरूप कांग्रेस में फिर दो विचारधाराएँ बन गई जिनमें से एक उदारवादी और दूसरी विद्रोही।

पलायनावस्था में साहित्य सृजन :

बिस्मिल जी ने एक छोटे से गाँव रामपुर जहांगीर में शरण ली और कई महीनों तक यहाँ के निर्जन जंगलों में घूमते हुए गाँव के गुजरों की गाय भैंस च्रयीं थीं। यहीं पर रहकर उन्होंने अपना क्रांतिकारी उपन्यास बोल्शेविको की करतूत लिखा था। यमुना किनारे की जमीन उन दिनों पुलिस से बचने के लिए सुरक्षित समझी जाती थी। अतः बिस्मिल ने उस निरापद स्थान का पूरा इस्तेमाल किया बिस्मिल जी की एक विशेषता यह भी थी कि वे एक स्थान पर ज्यादा दिनों तक ठहरते नहीं थे।

कुछ दिन रामपुर जहाँगीर में रहकर अपनी सगी बहन शास्त्री देवी के गाँव कोसला में भी रहे। उनकी खुद की बहन भी उन्हें पहचान नहीं पाई थी। कोसमा से चलकर वे बाह पहुंचे। कुछ दिन बाह में रहकर वहां से पिन्नहट, आगरा होते हुए ग्वालियर रियासत स्थित अपने दादा जी के गाँव बरबई चले गए। इस तरह से वे बहुत से स्थानों पर घुमे थे।

बिस्मिल जी की भूमिगत गतिविधियाँ :

मैनपुरी षडयंत्र के मुख्य आरोपी के रूप में फरार होते वक्त इन्होने यमुना में छलांग लगाई थी जिससे इनका कुर्ता नदी में बह गया था और ये तैरकर सुरक्षित नदी के दूसरे किनारे पर चले गए। इनके कुर्ते को नदी में देखकर पुलिस कर्मचारियों को लगा कि शायद गोली लगने की वजह से इनकी मौत हो गई है जिससे पूरी दुनिया में इन्हें मृत मान लिया गया।

वहीं पर जब बिस्मिल जी को यह पता चला कि उन्हें घोषित कर दिया गया है तो उन्होंने मैनपुरी षडयंत्र पर फैसला होने तक अपने आप को प्रत्यक्ष न करने का फैसला किया। ये सन् 1919 से 1920 के मध्य में भूमिगत होकर काम करने लगे। इसी बीच इन्होने अपने किसी भी करीबी से कोई भी संपर्क नहीं किया।

सन् 1919 से 1920 में भूमिगत रहते हुए बिस्मिल जी उत्तर प्रदेश के कई गाँवों में रहे। कुछ वक्त के लिए रामपुर जहाँगीर गाँव में रहे जो वर्तमान समय में ग्रेटर नॉएडा के गौतम बुद्ध जिले में आता है, कुछ दिनों के लिए मैनपुरी जिले के कोसमा गाँव में और आगरा जिले के बाह और पिन्नहट गांवों में रहे थे। ये अपनी माँ से कुछ पैसा उधार लेने के लिए अपने पैतृक गाँव भी गए।

आम नागरिक का जीवन :

सन् 1920 में सरकार ने अपनी उदारता की नीति की वजह से मैनपुरी षडयंत्र मुकदमे के आरोपियों को मुक्त करने की घोषणा कर दी। इस घोषणा के बाद बिस्मिल जी अपने गाँव शाहजहाँपुर वापस लौट आए और अपने जिले के अधिकारीयों से आकर मिले।

उन अधिकारीयों ने इनसे एक शपथ पत्र लिया जिस पर यह लिखवाया गया कि वे आगे से किसी भी क्रांतिकारी गतिविधि में भाग नहीं लेंगे। इनके इस तरह का शपथ पत्र देने पर इन्हें अपने गाँव में शांतिपूर्वक रहने की अनुमति मिल गई।

शाहजहाँपुर आने के बाद बिस्मिल जी ने आम नागरिक का जीवन जीना आरंभ कर दिया। ये कुछ दिनों तक भारत सिल्क निर्माण कंपनी के प्रबंधक के रूप में कार्यरत रहे लेकिन बाद में इन्होने बनारसी दास के साथ मिलकर साझेदारी में अपना खुद का सिल्क बनाने का उद्योग स्थापित कर लिया था।

बिस्मिल जी ने कम वक्त में ही खुद को इस व्यवसाय में स्थापित करके बहुत धन अर्जित कर लिया था। इतना सब कुछ करने के बाद भी इन्हें आत्मिक शांति नहीं मिल रही थी क्योंकि अभी तक ये ब्रिटिश सरकार को भारत से बाहर करने की अपनी प्रतिज्ञा को पूरा नहीं कर पाए थे।

बिस्मिल जी का असहयोग आन्दोलन में योगदान :

जिस वक्त बिस्मिल जी आम नागरिक के रूप में जीवन जी रहे थे उस वक्त देश में अंग्रेजों के विरुद्ध असहयोग आन्दोलन चल रहा था। गाँधी जी से प्रेरित होकर बिस्मिल जी शाहजहाँपुर के स्वंय सेवक दल के साथ अहमदाबाद के कांग्रेस अधिवेशन में गए। इनके साथ कांग्रेस के वरिष्ठ सदस्य प्रेमकृष्ण खन्ना और अशफाक उल्ला खां भी थे।

इन्होने एक अन्य कांग्रेस सदस्य मौलाना हसरत मौहानी के साथ पूर्ण स्वराज्य की भूमिका वाले प्रस्ताव को पास कराने में सक्रिय भूमिका भी निभाई। कांग्रेस के अधिवेशन से लौटने के बाद इन्होने संयुक्त प्रांत के युवान को असहयोग में भाग लेने के लिए प्रेरित किया। ये सभाओं को आयोजित करके उनमें भाषण देते।

इनके उग्र भाषणों और कविताओं से लोग बहुत प्रभावित हुए और ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध असहयोग आंदोलन में भाग लेने लगे। इन कामों की वजह से ये ब्रिटिश सरकार के शत्रु बन गए। इनकी अधिकांश पुस्तकों और लेखो को सरकार ने प्रकाशित करने और बेचने पर प्रतिबंध लगा दिया।

क्रांतिकारी पार्टी की स्थापना :

सन् 1922 में गाँधी जी द्वारा असहयोग आंदोलन को वापस लेने की वजह से बिस्मिल जी ने अपने नेतृत्व में संयुक्त प्रांत के युवाओं को संगठित करके क्रांतिकारी दल का निर्माण किया। गदर पार्टी के संस्थापक लाला हरदयाल की सहमती से सन् 1923 में पार्टी के संविधान को बनाने के लिए ये इलाहाबाद गए।

पार्टी के मुख्य लक्ष्यों और उद्देश्यों को पीले रंग के कागज पर लिखा गया। इसकी वजह से इस पार्टी को पीला कागज संविधान भी कहा जाता था। पार्टी की स्थापना और उद्देश्यों के निर्माण में बिस्मिल के साथ-साथ शचीन्द्र नाथ सान्याल और जय गोपाल मुखर्जी शामिल थे। क्रांतिकारी पार्टी के सदस्यों की पहली सभा का आयोजन 3 अक्टूबर, 1923 को कानपुर में किया गया था।

इस सभा में बंगाल प्रांत के प्रसिद्द क्रांतिकारी शचींद्रनाथ सान्याल को पार्टी का चैयरमैन चुना गया था। बिस्मिल जी को शाहजहाँपुर जिले के नेतृत्व के साथ-साथ शस्त्र विभाग का प्रमुख नियुक्त किया गया था। सभा में समिति ने सबकी सहमति से पार्टी के नाम को बदलकर हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन रख दिया गया था।

एच०आर०ए० का गठन :

सितंबर 1923 में हुए दिल्ली के विशेष कांग्रेस अधिवेशन में असंतुष्ट नवयुवकों ने एक क्रांतिकारी पार्टी बनाने का फैसला किया। प्रसिद्द क्रांतिकारी लाला हरदयाल जो उन दिनों विदेश में रहकर देश को आजादी दिलाने की कोशिश कर रहे थे ने एक पत्र लिखकर बिस्मिल जी को शचींद्रनाथ सान्याल और यदु गोपाल मुखर्जी से मिलकर नई पार्टी का संविधान तैयार करने पर विचार-विमर्श किया था।

3 अक्टूबर, 1924 को हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन की एक बैठक कानपूर में की गई थी जिसमें शचींद्रनाथ सान्याल, योगेश चंद्र चटर्जी और राम प्रसाद बिस्मिल जैसे बहुत से प्रमुख सदस्यों ने भाग लिया था। पार्टी के लिए फंड एकत्रित करने के लिए 25 दिसंबर, 1924 को बमरौली में डकैती डाली गई थी।

घोषणा पत्र का प्रकाशन :

क्रांतिकारी पार्टी की तरफ से 1 जनवरी, 1925 को किसी गुमनाम जगह से प्रकाशित और 28 से 31 जनवरी, 1925 के मध्य पूरे हिंदुस्तान के सभी प्रमुख स्थानों पर वितरित 4 पर्चे के पैम्फलैट दि रिवोल्यूशनरी में बिस्मिल जी ने विजय कुमार के छद्म नाम से अपने दल की विचारधारा का लिखित रूप से खुलासा करते हुए साफ-साफ शब्दों में घोषित कर दिया था कि क्रांतिकारी इस देश की शासन व्यवस्था में किस तरह का बदलाव चाहते हैं और इसके लिए वे क्या-क्या कर सकते हैं?

सिर्फ इतना ही नहीं उन्होंने गाँधी जी की नीतियों का मजाक बनाते हुए यह प्रश्न भी किया था कि जो व्यक्ति खुद को आध्यात्मिक कहता है वह अंग्रेजों से खुलकर बात करने में क्यों डरता है? उन्होंने हिंदुस्तान के सभी जवानों को असे छद्मवेषी महात्मा के बहकावे में न आने की सलाह देते हुए उनकी क्रांतिकारी पार्टी में शामिल होकर अंग्रेजों से टक्कर लेने का खुला आह्वान किया था।

दि रिवोल्यूशनरी के नाम से अंग्रेजी में प्रकाशित इस क्रांतिकारी घोषणापत्र में क्रांतिकारियों के वैचारिक चिंतन को भली भांति समझा जा सकता है। इस पत्र का अविकल हिंदी काव्यानुवाद अब हिंदी विकिस्त्रोत पर भो उपलब्ध है।

काकोरी कांड :

हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के सदस्यों ने अपने संगठन के उद्देश्यों को लोगों तक पहुँचाने के लिए सन् 1925 में द रिव्युनरी के नाम से 4 पेजों का घोषणा पत्र छापकर संपूर्ण भारत में इसे बांटा था। इस पत्र में अंग्रेजों से क्रांतिकारी गतिविधियों के द्वारा भारत को आजाद कराने की घोषणा के साथ-साथ गाँधी जी की नीतियों की आलोचना की और युवाओं को इस संगठन में भाग लेने के लिए निमंत्रण भी दिया था।

इस घोषणा पत्र के जारी होते ही ब्रिटिश सरकार की पुलिस बंगाल के क्रांतिकारियों की गिरफ्तारी करने लगी। पुलिस ने शचींद्रनाथ सान्याल को इस घोषणा पत्र की बहुत सारी प्रतियों के साथ गिरफ्तार कर लिया। शीर्ष नेता की गिरफ्तारी के बाद संगठन की पूरी जिम्मेदारी बिस्मिल जी पर आ गई थी। संगठन कार्यों के कर्ता-धर्ता अब ये ही बन गए थे।

एच०आर०ए० के समक्ष एक साथ दोहरे संकट आ खड़े हुए थे। एक तरफ अनुभवशाली नेताओं का गिरफ्तार होना और दूसरी तरफ संगठन के समक्ष आर्थिक समस्या। जिन क्रांतिकारी उद्देश्यों के लिए इस संगठन को स्थापित किया गया उन्हें संचालित करने के लिए धन की आवश्यकता थी।

इसके लिए संगठन की एक बैठक बुलाई गई और और उसमें डकैती करके धन इकट्ठा करने का फैसला लिया गया लेकिन गांवों में डाका डालने से संगठन के लिए पर्याप्त हथियार खरीदने के लिए धन जमा नहीं हो पाता जिससे अंग्रेजों के विरुद्ध क्रांतिकारी गतिविधियों के कार्यरूप में परिणित किया जा सके।

इस बैठक में रामप्रसाद बिस्मिल, राजेन्द्र लाहिड़ी, अशफाक उल्ला खां, रोशन सिंह, रामकृष्ण खत्री, शचींद्रनाथ बख्शी, चन्द्रशेखर आजाद आदि ने भाग लिया था। पार्टी के कार्य हेतु धन की जरूरत को पूरा करने के लिए बिस्मिल जी ने सरकारी खजाना लूटने की योजना बनाई गई और उसके नेतृत्व में सिर्फ 10 लोगों ने लखनऊ के पास काकोरी स्टेशन पर ट्रेन को रोककर 9 अगस्त, 1925 को सरकारी खजाना लूटा था।

इस योजना में चन्द्रशेखर आजाद, रामप्रसाद बिस्मिला, अशफाक उल्ला खान, राजेन्द्र लाहिड़ी और रोशन सिंह शामिल थे। इस घटना को ही इतिहास में काकोरी कांड के नाम से जाना जाता है। इस घटना ने पूरे देश के लोगों का ध्यान अपनी ओर एकत्रित कर लिया था।

खजाना लूटने के बाद चन्द्रशेखर आजाद पुलिस के चंगुल से भाग निकले थे लेकिन 26 सितंबर, 1925 को बिस्मिल के साथ पूरे देश में 40 से भी ज्यादा लोगों को काकोरी डकैती मामले में गिरफ्तार कर लिया गया था। राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खान, राजेन्द्र लाहिड़ी और रोशन सिंह को फांसी की सजा सुनाई गई थी लेकिन बाकी के क्रांतिकारियों को 4 साल की कैद और कुछ क्रांतिकारियों को कला पानी की सजा दी गई थी।

फांसी की सजा और अपील :

रामप्रसाद बिस्मिल जी को अशफाक उल्ला खां, राजेन्द्र लाहिड़ी और रोशन सिंह सहित मौत की सजा सुनाई गई थी। साथ ही ये भी कहा गया कि फांसी की सजा की स्वीकृति अवध के चीफ कोर्ट से ली जाएगी और अपील एक सप्ताह के अंदर ही हो सकेगी।

6 अप्रैल, 1927 को सेशन जज ने अपना आखिरी फैसला सुनाया जिसके बाद 18 जुलाई, 1927 को अवध चीफ कोर्ट में अपील हुई जिसके परिणामस्वरूप कुछ सजाएं कम हुई और कुछ बढ़ा दी गई। राम प्रसाद बिस्मिल जी ने अपील करने से पहले पूरे प्रांत क गवर्नर को सजा माफी के संदर्भ में एक मेमोरियल भेजा था।

इस मेमोरियल में इन्होने यह प्रतिज्ञा की थी कि अब वे भविष्य में कभी भी किसी क्रांतिकारी दल से कोई भी संबंध नहीं रखेंगे। इस मेमोरियल का जिक्र उन्होंने अपनी अंतिम दया की अपील में की और उसकी एक प्रति भी चीफ कोर्ट को भेजी लेकिन चीफ कोर्ट के जजों ने इनकी कोई भी प्रार्थना स्वीकार नहीं की।

चीफ कोर्ट में अपील की बहस के दौरान इन्होने खुद की लिखी बहस भेजी जिसका बाद में प्रकाशन भी किया गया। इनकी लिखी बहस पर चीफ कोर्ट के जजों को विश्वास नहीं हुआ कि ये बहस इन्होने खुद लिखी है। साथ ही इन जजों को यह भी भरोसा हो गया कि अगर बिस्मिल को खुद ही इस केस की पैरवी करने की अनुमति दे दी गई।

तब यह कोर्ट के समक्ष अपने पेश किए गए तथ्यों के द्वारा सजा माफ़ कराने में सफल हो जायेंगे। अतः इनकी प्रत्येक अपील को खारिज कर दिया गया। कोर्ट ने इन्हें निर्दयी हत्यारे और भयंकर षडयंत्रकारी आदि नाम दिए गए।

गोरखपुर जेल में फांसी :

कोर्ट की 18 महीने तक चली लंबी प्रक्रिया के बाद रामप्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खां, राजेन्द्र लाहिड़ी और रोशन सिंह की फांसी की सजा को बरकरार रखा गया। राम प्रसाद बिस्मिल जी को 19 दिसंबर, 1927 को ब्रिटिश सरकार द्वारा सुबह आठ बजे गोरखपुर जेल में फांसी दे दी गई थी।

बिस्मिल जी के साथ अशफाक को फैजाबाद जेल में और रोशन सिंह को इलाहबाद के नैनी जेल में फांसी दी गई थी जबकि राजेन्द्र लाहिड़ी को फांसी की तय तारीख से दो दिन पहले 17 दिसंबर को गोंडा जेल में फांसी दे दी गई थी। जिस वक्त उन्हें फांसी लगी थी उस वक्त जेल के बाहर हजारों लोग उनके अंतिम दर्शनों की प्रतीक्षा कर रहे थे।

अस्थि कलश की स्थापना :

बिस्मिल जी की फांसी की सूचना के साथ लाखों की संख्या में उनकी जेल के बाहर एकत्रित हो गए। इतनी बड़ी संख्या में भीड़ को देखकर ब्रिटिश जेल के अधिकारी डर गए। उन्होंने जेल का मुख्य द्वार बंद कर दिया। इस पर भीड़ ने जेल की दीवार को तोड़ दिया और बिस्मिल जी के पार्थिव शरीर को सम्मान के साथ उनके माता-पिता के समक्ष लाए।

शहर के लोगों को बिस्मिल जी के अंतिम दर्शन के लिए उनके शरीर को गोरखपुर के घंटाघर पर रखा गया था। हजारों लोग उनकी शवयात्रा में शामिल हुए और उनका अंतिम संस्कार वैदिक मंत्रों के साथ राप्ती के तट पर किया गया था। इनके शोक सम्मेलन के जुलुस में हिंदी साहित्य के महान लेखक होने के साथ-साथ ही कल्याण हनुमान प्रसाद पोद्दार के संस्थापक महावीर प्रसाद द्विवेदी और राजनीतिज्ञ गोविंद वल्लभ पंत भी शामिल हुए थे।

ये दोनों अंतिम संस्कार की अंतिम विधि होने तक वहां पर उपस्थित रहे थे। क्रांति की देवी के पुजारी स्वंय तो देश के लिए शहीद हो गए लेकिन अपनी शहादत के साथ युवा क्रांतिकारियों के एक नई फौज के निर्माण को प्रशस्त कर गए। बिस्मिल जी की अंत्येष्टि के बाद बाबा राघव दस ने गोरखपुर के पास स्थित देवरिया जिले के बरहज नामक स्थान पर ताम्रपत्र में उनकी अस्थियों को संचित करके एक चबूतरा जैसा स्मृति स्थल बनवा दिया।

बिस्मिल जी की कविताएँ और गजलें :

राम प्रसाद बिस्मिल जी ने बहुत सी कविताएँ और गजलें लिखीं थीं जिसमें से प्रमुख हैं सरफरोशी की तमन्ना, जज्वये शहीद, जिन्दगी का राज और बिस्मिल की तडप आदि हैं।

बिस्मिल जी की रचित पुस्तकें :

रामप्रसाद बिस्मिल जी की बहुत सी पुस्तकों का विवरण मिलता है जैसे – मैनपुरी षडयंत्र, स्वदेशी रंग, चीनी षडयंत्र, तपोनिष्ठ अरविंद घोष की कारावास की कहानी, अशफाक की याद में, सोनाखान के अम्र शहीद वीरनारायण सिंह, जनरल जार्ज वाशिंगटन, अमेरिका कैसे स्वाधीन हुआ आदि।

बिस्मिल जी की आत्मकथा :

प्रताप प्रेस कानपूर से काकोरी के शहीद नाम की एक किताब के भीतर जो आत्मकथा प्रकाशित हुई थी उसे ब्रिटिश सरकार ने सिर्फ जब्त ही नहीं किया बल्कि अंग्रेजी भाषा में अनुवाद करवाकर पूरे हिंदुस्तान की ख़ुफ़िया पुलिस और जिअल कलेक्टर्स को सरकारी टिप्पणियों के साथ भी भेजा था कि इसमें जो कुछ भी बिस्मिला ने लिखा है वह बिलकुल सत्य नहीं है।

उसने सरकार पर जो भी आरोप लगाए हैं वे निराधार हैं। कोई भी हिंदुस्तानी जो सरकारी सेवा में है इसे सच न माने। इस सरकारी टिप्पणी से इस बात का पता चला कि ब्रिटिश सरकार ने बिस्मिला को इतना अधिक खतरनाक समझ लिया था कि उनकी आत्मकथा से सरकारी तंत्र में बगावत फैलने का भय हो गया था।

आज के समय में उत्तर प्रदेश के सी०आई०डी० हेडक्वार्टर लखनऊ के गोपनीय विभाग में मूल आत्मकथा का अंग्रेजी अनुवाद आज भी सुरक्षित रखा हुआ है। रामप्रसाद बिस्मिल जी की जो आत्मकथा काकोरी षडयंत्र के नाम से आज पाकिस्तान के सिंध प्रान्त में तत्कालीन पुस्तक प्रकाशक भजनलाल बुकसेलर ने आर्ट प्रेस, सिंध से पहली बार सन् 1927 में बिस्मिल को फांसी दिए जाने के कुछ दिनों के बाद ही प्रकाशित कर दी थी।

वह भी सरफरोशी की तमन्ना ग्रंथावली के भाग तीन में अविकल रूप से सुसम्पादित होकर सन् 1997 में आ चुकी है। यहाँ पर यह बताना भी जरूरी है कि सन् 1947 में स्वतंत्रता मिलने के बाद कुछ आर्यसमाजी लोगों ने इसे दुबारा प्रकाशित कराया था।

सरफरोशी की तमन्ना :

काकोरी कांड में गिरफ्तार होने के बाद अदालत में सुनवाई के दौरान क्रन्तिकारी रामप्रसाद बिस्मिल ने “सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है देखना है जोर कितना बाजु-ए-कातिल में है ?”की कुछ पंक्तियाँ कही थीं। बिस्मिल कविताओं और शायरी लिखने के बहुत शौकीन थे।

फांसी के फंदे को गले में डालने से पहले भी बिस्मिल ने ‘सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में हैं’ के कुछ शेर पढ़े थे। वैसे तो ये शेर पटना के अजीमाबाद के मशहूर शायर बिस्मिल अजीमाबाद की रचना थी लेकिन इसकी पहचान राम प्रसाद बिस्मिल को लेकर अधिक बन गई। राम प्रसाद बिस्मिल जी की पूरी गजल इस तरह से है –

सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है, देखना है जोर कितना बाज़ु-ए-कातिल में है?
वक्त आने दे बता देंगे तुझे ऐ आस्माँ! हम अभी से क्या बतायें क्या हमारे दिल में है?
एक से करता नहीं क्यों दूसरा कुछ बातचीत, देखता हूँ मैं जिसे वो चुप तेरी महफ़िल में है.
रहबरे-राहे-मुहब्बत! रह न जाना राह में, लज्जते-सेहरा-नवर्दी दूरि-ए-मंजिल में है.
अब न अगले वल्वले हैं और न अरमानों की भीड़, एक मिट जाने की हसरत अब दिले-‘बिस्मिल’ में है.
ए शहीद-ए-मुल्को-मिल्लत मैं तेरे ऊपर निसार, अब तेरी हिम्मत का चर्चा गैर की महफिल में है.
खींच कर लाई है सब को कत्ल होने की उम्मीद, आशिकों का आज जमघट कूच-ए-कातिल में है.
सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है, देखना है जोर कितना बाज़ु-ए-कातिल में है?
है लिए हथियार दुश्मन ताक में बैठा उधर, और हम तैय्यार हैं सीना लिये अपना इधर.
खून से खेलेंगे होली गर वतन मुश्किल में है, सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है.
हाथ जिनमें हो जुनूं, कटते नही तलवार से, सर जो उठ जाते हैं वो झुकते नहीं ललकार से,
और भड़केगा जो शोला-सा हमारे दिल में है, सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है.
हम तो निकले ही थे घर से बांधकर सर पे कफन, जाँ हथेली पर लिये लो बढ चले हैं ये कदम.
जिन्दगी तो अपनी महमां मौत की महफिल में है, सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है.
यूं खड़ा मकतल में कातिल कह रहा है बार-बार, “क्या तमन्ना-ए-शहादत भी किसी के दिल में है?
सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है, देखना है जोर कितना बाज़ु-ए-कातिल में है?
दिल में तूफानों की टोली और नसों में इन्कलाब, होश दुश्मन के उड़ा देंगे हमें रोको न आज.
दूर रह पाये जो हमसे दम कहाँ मंज़िल में है! सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है.
जिस्म वो क्या जिस्म है जिसमें न हो खूने-जुनूँ, क्या वो तूफाँ से लड़े जो कश्ती-ए-साहिल में है.
सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है। देखना है जोर कितना बाज़ु-ए-कातिल में है ?

बिस्मिल जी पर भगत सिंह जी के विचार :

जनवरी, 1928 के किरती में भगत सिंह जी ने काकोरी के शहीदों के बारे में लेख लिखा था। भगत सिंह जी ने काकोरी के शहीदों को फांसी के हालात शीर्षक लेख में बिस्मिल जी के विषय में लिखते हैं कि – श्री रामप्रसाद बिस्मिल बड़े होनहार नौजवान थे। गजब के शायर थे। देखने में भी बहुत सुंदर थे। बहुत योग्य थे।

जानने वाले कहते हैं कि अगर किसी और स्थान या किसी और देश या किसी और समय पैदा हुए होते तो सेनाध्यक्ष बनते। आपको पूरे षडयंत्र का नेता माना गया। चाहे बहुत ज्यादा पढ़े हुए नहीं थे लेकिन फिर भी पंडित जगतनारायण जैसे सरकारी वकील की सुध-बुध भुला देते थे। चीफ कोर्ट में अपनी अपील खुद ही लिखी थी जिससे जजों को कहना पड़ा कि इसे लिखने में अवश्य किसी बुद्धिमान और योग्य व्यक्ति का हाथ है।

बिस्मिल जी पर रज्जू भैया के विचार :

रज्जू भैया ने एक पुस्तक में बिस्मिल जी के बारे में लिखा है कि – मेरे पिता जी सन् 1921 से 1922 के करीब शाहजहाँपुर में इंजीनियर थे। उनके नजदीक ही इंजीनियरों की उस कॉलोनी में काकोरी कांड के प्रमुख सहयोगी श्री प्रेमकृष्ण खन्ना के पिता श्री रायबहादुर रामकृष्ण खन्ना भी रहते थे। श्री रामप्रसाद बिस्मिल जी प्रेमकृष्ण खन्ना से साथ बहुधा इस कॉलोनी के लोगों से मिलने आते थे।

मेरे पिता जी मुझे बताया करते थे की बिस्मिल की के प्रति सभी के मन में अपार श्रद्धा थी। उनका जीवन बड़ा शुद्ध और सरल, प्रतिदिन नियमित योग और व्यायाम, की वजह से शरीर बड़ा पुष्ट, बलशाली और मुखमंडल ओज तथा तेज से व्याप्त था। उनके तेज और पुरुषार्थ की छाप उन पर जीवन भर बनी रही। मुझे भी एक सामाजिक कार्यकर्ता मानकर इ प्राय बिस्मिल जी के बारे में बहुत सी बातें बताया करते थे।

बिस्मिल जी पर रामविलास शर्मा के विचार :

हिंदी के प्रखर विचारक रामविलास शर्मा ने अपनी पुस्तक स्वाधीनता संग्राम: बदलते परिप्रेक्ष्य में बिस्मिल जी के बारे में बहुत ही बेवाक टिप्पणी की है कि – ऐसा कब होता है कि एक क्रांतिकारी दूसरे क्रांतिकारी की छवि का वर्णन करे और दोनों ही शहीद हो जाएँ।

रामप्रसाद बिस्मिल 11 दिसंबर,1927 को शहीद हुए, उससे पहले मई 1927 में भगत सिंह ने किरती में काकोरी के वीरों से परिचय लेख लिखा। उन्होने बिस्मिल के विषय में लिखा कि ऐसे नौजवान कहाँ से मिल सकते हैं? आप युद्ध विद्या में बड़े कुशल है और आज उन्हें फांसी का दंड मिलने की वजह भी बहुत हद तक यही है।

इस वीर को फांसी का दंड मिला और अप हंस दिए। ऐसा निर्भीक वीर, ऐसा सुंदर जवान, ऐसा योग्य और उच्चकोटि का लेखक और निर्भय योद्धा मिलना बहुत मुश्किल है। सन् 1922 से 1927 तक रामप्रसाद बिस्मिल ने एक लंबी वैचारिक यात्रा पूरी की। उनके आहे की कड़ी थे भगत सिंह।

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प्लूटो ग्रह – Pluto Planet In Hindi

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प्लूटो ग्रह जिसे यम के नाम से भी जाना जाता है सौरमंडल का दूसरा सबसे बड़ा बौना ग्रह है। प्लूटो को कभी सौरमंडल का सबसे बाहरी ग्रह माना जाता था लेकिन अब इसे सौरमंडल के बाहरी काइपर घेरे की सबसे बड़ी खगोलीय वस्तु माना जाता है। काइपर घेरे की अन्य वस्तुओं की तरह प्लूटो का आकार और द्रव्यमान बहुत छोटा है। प्लूटो का आकार पृथ्वी के चंद्रमा से केवल एक तिहाई है।

सूरज के आसपास इसकी परिक्रमा की कक्षा भी थोड़ी बढ़ेगी – यह कभी वरुण की कक्षा के भीतर जाकर सूरज से 30 खगोलीय इकाई दूर होता है तो कभी दूर जाकर सूर्य से 45 खगोलीय इकाई पर पहुंच जाता है। प्लूटो काइपर घेरे की अन्य वस्तुओं की तरह ज्यादातर जमी हुई नाइट्रोजन की बर्फ, पानी की बर्फ, और पत्थरों का बना हुआ है। यम को सूर्य की एक पूरी परिक्रमा करने में 248.09 साल लगते हैं।

छात्र ने किया था प्लूटो का नामकरण :

प्लूटो की खोज सन् 1930 में अमेरिका वैज्ञानिक क्लाइड डब्यू टॉमबॉग ने की थी। पहले इसे ग्रह मान लिया गया था लेकिन साल 2006 में वैज्ञानिकों ने इसे ग्रहों की श्रेणी से बाहर कर दिया। प्लूटो का नाम ऑक्सफोर्ड स्कूल ऑफ लंदन में 11 वीं की छात्रा वेनेशिया बर्ने ने रखा था। वैज्ञानिकों ने लोगों से पूछा था कि इस ग्रह का क्या नाम रखा जाए तो इस बच्ची ने इसका नाम प्लूटो सुझाया था। इस बच्ची ने कहा था कि रोम में अँधेरे के देवता को प्लूटो कहते हैं इस ग्रह पर भी हमेशा अँधेरा रहता है इसलिए इसका नाम प्लूटो रखा जाए। प्लूटो 248 साल में सूर्य का एक चक्कर लगा पाता है।

प्लूटो ग्रह की रुपरेखा :

प्लूटो ग्रह का द्रव्यमान 13050 अरब किलोग्राम है। यम ग्रह का व्यास लगभग 2372 किलोमीटर है। प्लूटो की सूर्य से दूरी 587 करोड़ 40 लाख किलोमीटर है। प्लूटो ग्रह के ज्ञात उपग्रह 5 हैं और प्लूटो का एक साल पृथ्वी के 246.04 साल के बराबर हैं।

प्लूटो ग्रह का रंगरूप :

प्लूटो ग्रह का व्यास लगभग 2300 किलोमीटर है अथार्त पृथ्वी का 18 प्रतिशत है। प्लूटो का रंग काला, नारंगी और सफेद का मिश्रण है। कहा जाता है कि जितना अंतर प्लूटो के रंगों के मध्य होता है उतना सौरमंडल की बहुत ही कम वस्तुओं में देखा जाता है अथार्त उनपर रंग ज्यादातर एक जैसे ही होते हैं। सन् 1994 से लेकर 2003 तक किए गए अध्धयन में देखा गया है कि प्लूटो ग्रह के रंगों में बदलाव आया है। उत्तरी ध्रुव का रंग थोडा उजला हो गया था और दक्षिणी ध्रुव थोडा गाढ़ा। माना जाता है कि यह प्लूटो पर बदलते मौसमों का इशारा है।

प्लूटो ग्रह का वायुमंडल :

प्लूटो ग्रह का वायुमंडल बहुत पतला है जिसमें नाइट्रोजन, मीथेन और कार्बन डाईऑक्साइड है। जब प्लूटो परिक्रमा करते हुए सूर्य से दूर हो जाता है तो उस पर ठंड बढ़ जाती है और इन्हीं गैसों का कुछ भाग जमकर बर्फ की तरह उसकी सतह पर गिर जाता है जिससे उसका वायुमंडल और भी पतला हो जाता है। जब प्लूटो सूर्य के पास आता है तब उसकी सतह पर पड़ी इस बर्फ का कुछ भाग गैस बनकर वायुमंडल में आ जाता है।

प्लूटो ग्रह का चंद्रमा :

प्लूटो ग्रह के 5 ज्ञात उपग्रह हैं – सन् 1978 में खोजा गया शैरान जो सबसे बड़ा है और जिसका व्यास प्लूटो के व्यास का आधा है, वर्ष 2005 में खोजे गए दो नन्हे चंद्रमा निक्स और हाएड्रा, स्टिक्स और 20 जुलाई, 2011 को घोषित किया गया कर्बेरॉस जो आकार में 30 किलोमीटर चौड़ा है। शैरान सबसे बड़ा है और प्लूटो के बहुत नजदीक भी है।

इनकी कक्षाओं का केंद्र इनके अंदर न होकर कहीं बीच में ही है इसलिए कभी-कभी इन्हें जोड़ा या युग्मक वाले ग्रह भी कहा जाता है जो एक-दूसरे के साथ-साथ चलते हैं। अंतर्राष्ट्रीय खगोलीय संघ ने आज तक युग्मक बौने ग्रहों की कोई भी ठोस परिभाषा नहीं गढ़ी है इसलिए फिलहाल आधिकारिक तौर पर शैरान को प्लूटो का उपग्रह ही माना जाता है।

ग्रह का बौना ग्रह :

सन् 1930 में अमेरिका खगोलशास्त्री क्लाइड टॉमबौ ने प्लूटो को खोज निकाला और इसे सौरमंडल का नौवा ग्रह मान लिया गया। धीरे-धीरे प्लूटो के विषय में कुछ ऐसी बातें पता चली जो अन्य ग्रहों से बिलकुल अलग थीं जैसे- इसकी कक्षा बहुत ही अजीब थी।

अन्य ग्रह के बाहर एक अंडाकार कक्षाओं में सूर्य की परिक्रमा करते हैं लेकिन प्लूटो की कक्षा वरुण की कक्षा की तुलना में कभी सूर्य के अधिक समीप होती थी तो कभी कम। इसकी कक्षा अन्य ग्रहों की कक्षा की तुलना में ढलान पर थी। अन्य ग्रहों की कक्षाएं किसी एक ही चपटे हुए चक्र में हैं जिस तरह जलेबी के लच्छे एक ही चपटे आकार में होते हैं।

प्लूटो की कक्षा इस चपटे चक्र से कोण पर थी। स्मरण रहे कि इस कोण के कारण प्लूटो और वरुण की कभी टक्कर नहीं हो सकती क्योंकि उनकी कक्षाएं एक-दूसरे को कभी नहीं काटती हालाँकि चित्रों में कभी-कभी ऐसा लगता है। इसका आकार बहुत ही छोटा होता था। इससे पहले सबसे छोटा ग्रह बुध था। प्लूटो बुध से आधे से भी छोटा था।

इन बातों से खगोलशास्त्रियों के मन में शंका बन गई थी कि कहीं प्लूटो वरुण का कोई भागा हुआ उपग्रह तो नहीं है हालाँकि इसकी संभावना भी कम थी क्योंकि प्लूटो और वरुण परिक्रमा करते हुए कभी अधिक समीप नहीं आते। सन् 1990 के बाद वैज्ञानिकों को बहुत सी वरुण-पार वस्तुएं मिलने लगीं जिनकी कक्षाएं, रूपरंग और बनावट प्लूटो से मिलती जुलती थी।

आज वैज्ञानिकों ने यह जान लिया है कि सौरमंडल के इस क्षेत्र में एक पूरा घेरा है जिसमें ऐसी ही वस्तुएं पाई जाती है जिनमें से प्लूटो केवल एक है। इसी घेरे का नाम काइपर घेरा रखा गया। साल 2004 से 2005 में इसी काइपर घेरे में हउमेया और माकेमाके मिले जो बहुत बड़े थे। साल 2005 में काइपर घेरे से भी बाहर एरिस मिला जो प्लूटो से बड़ा था।

ये सभी बाकी ग्रहों से अलग और प्लूटो से मिलते-जुलते थे। अंतर्राष्ट्रीय खगोलीय संघ असमंजस में पड़ गया क्योंकि लगने लगा कि ऐसी कितनी ही वस्तुएं आने वाले सालों में मिलेंगी। या तो ये सभी ग्रह थे या फिर प्लूटो को ग्रह बुलाना बंद करके कुछ और बुलाने की आवश्यकता थी। 13 सितंबर, 2006 को इस संघ ने ऐलान किया कि प्लूटो ग्रह नहीं है और उन्होंने एक नई बौना ग्रह श्रेणी स्थापित की। प्लूटो, हउमेया, माकेमाके और ऍरिस अब बौने ग्रह कहलाते हैं।

न्यू होराइजंस :

न्यू होराइजंस अमेरिकी अंतरिक्ष अनुसंधान संस्था नासा का एक अंतरिक्ष शोध यान है जो प्लूटो के अध्धयन के लिए छोड़ा गया था। इस यान का प्रक्षेपण 19 जनवरी, 2006 को किया गया था जो नौ साल के बाद 14 जुलाई, 2015 को प्लूटो के सबसे समीप से होकर गुजरा। प्लूटो और इसके उपग्रह शैरान के सबसे निकट से यह यान 14 जुलाई, 2015 को 12:03:50 बजे गुजरा।

इस वक्त इस यान की प्लूटो से दूरी लगभग 12,500 किलोमीटर थी और यह लगभग 14 किलोमीटर प्रति सेकेण्ड के वेग से गुजर रहा था। नासा के अन्तरिक्ष यान न्यू होराइजंस मिलने वाले सिग्नल को लेकर वैज्ञानिकों में चिंता बढ़ रही है। वैज्ञानिक इस बात की पुष्टि का इंतजार कर रहे हैं कि क्या यान का सफर वास्तव में सफल रहा या नहीं।

वैज्ञानिकों को बुधवार सुबह पता चला कि अंतरिक्ष यान ने ठीक से काम किया या नहीं। इससे पहले मंगलवार को अमेरिकी अन्तरिक्ष एजेंसी नासा का अंतरिक्ष यान नौ साल के सफर के बाद प्लूटो के समीप पहुंचा था। न्यू होराइजंस ने प्लूटो का व्यास 2,370 किलोमीटर बताया है जबकि इसका व्यास 2300 किलोमीटर माना जाता था।

इस नई जानकारी के बाद अब इस बात की पुष्टि हो जाती है कि प्लूटो और सौरमंडल की बाहरी सीमा में अब तक का सबसे बड़ा ग्रह है। नासा ने अपना अंतरिक्ष यान एक खास अभियान पर भेजा है जो प्लूटो की नई तस्वीरें और जानकारियां जुटाएगा।

न्यू होराइजंस के साथ उपकरण बर्फीले ग्रह प्लूटो की सतह की विशेषताओं, उसकी बनावट और वायुमंडल का विस्तृत नक्शा तैयार करेगा। संभावना है कि इससे प्लूटो के विषय में नई-नई बातें सामने आ सकती हैं जो सौरमंडल के विषय में हमारी सोच बदल सकती है। इस अभियान के साथ ही अब सोलर सिस्टम के सभी ग्रहों पर एक-एक बार यान पहुंच चुका है। प्रोफेसर स्टीफन हॉकिंग ने इस अभियान के लिए वैज्ञानिकों को बधाई दी है।

प्लूटो को ग्रह की पंक्ति से निकालने का कारण :

साल 2006 में आई०ए०यू० की चेक गणराज्य की राजधानी प्राग में एक मीटिंग हुई जहाँ पर ऑफिशियली सौरमंडल के ग्रह प्लूटो को नौवें स्थान से हटा दिया गया। अब यहाँ पर वैज्ञानिको को जो करना था उन्होंने वो कर दिया प्लूटो को हटाना था हटा दिया लेकिन जब यह खबर अन्य वैज्ञानिकों को मिली तो दुनिया के बहुत से वैज्ञानिकों ने इस फैसले की आलोचना भी की कि बिना किसी वजह के प्लूटो को हटाना सही नहीं है।

वैज्ञानिको के इस विरोध की एक वजह तो यह थी कि आई०ए०यू० में दुनिया भर के करीब 10 हजार वैज्ञानिक शामिल हैं लेकिन चेक रिब्लिक ने जब प्लूटो को सौरमंडल के ग्रह की पंक्ति से हटाया तब केवल 4% वैज्ञानिक ही इस निर्णय के साथ थे।

मतलब लगभग 400 वैज्ञानिक ऐसे थे जो प्लूटो को हटाना चाहते थे और अन्य 9600 वैज्ञानिक ऐसे थे जो इस निर्णय से सहमत नहीं थे फिर भी वैज्ञानिक इतने छोटे से पैनल ने यह निर्णय ले लिया जिसको दुनिया के कई संगठन अवमान्य घोषित कर चुके हैं।

हमारे सौरमंडल में ग्रहों के होने की और उसकी पहचान के लिए भी कुछ सिद्धांत तय किए गए हैं। जिनको आधार मानकर हम यह तय कर सकते हैं कि वह ग्रह है या उपग्रह है या कोई उल्कापिंड है लेकिन प्लूटो के एक ग्रह होने के लिए उसके पास बहुत प्रमाण थे फिर भी ग्रहों की पंक्ति से हटा दिया गया।

प्लूटो ग्रह के विषय में रोचक तथ्य :

प्लूटो सौरमंडल के ग्रहों के सात उपग्रहों से छोटा है जिनमें पृथ्वी का चंद्रमा भी शामिल है। प्लूटो पृथ्वी के चाँद के व्यास का 65% और द्रव्यमान का केवल 18% है। प्लूटो की कक्षा बहुत अधिक अंडाकार है जिसकी वजह से प्लूटो के लगभग 20 साल वरुण के मुकाबले सूर्य के अधिक समीप रहता है।

हाल ही में यह जनवरी 1979 से फरवरी 1999 तक वरुण के मुकाबले सूर्य के ज्यादा समीप रहा। प्लूटो का एक तिहाई भाग जल बर्फ से बना है जो पृथ्वी पर उपस्थित पानी से तीन गुना अधिक है। इसका बाकी का दो तिहाई भाग चट्टानों से बना हुआ है। इसके चमकदार क्षेत्र नाइट्रोजन की बर्फ के साथ कुछ मात्रा में मीथेन, इथेन, कार्बन मोनो ऑक्साइड की बर्फ से ढके है।

प्लूटो का वायुमंडल निश्चित नहीं है। जब यह सूर्य के समीप होता है तो इस पर जमी हुई नाइट्रोजन, मीथेन और कार्बन मोनो ऑक्साइड गैसों में बदल जाती है लेकिन सूर्य से दूर होने पर यह फिर से जम जाती है और इसका कोई वायुमंडल नहीं रहता। वैज्ञानिक चाहते है कि इस ग्रह पर यान तब भेजा जाए जब इसका वायुमंडल न हो।

प्लूटो के पास आज तक एक ही अंतरिक्ष यान पहुंच पाया है और वह है न्यू होराइजंस। यह यान 19 जनवरी, 2006 को लांच किया गया था और 14 जुलाई, 2015 को कुछ ही घंटे के लिए प्लूटो के पास से गुजरा। इस यान ने इतने से समय में ही इस ग्रह की बहुत सी तस्वीरें लीं और कई गणनाएं भी की।

इन तस्वीरों में साफ-साफ दिखाई दे रहा था कि प्लूटो पर कई बर्फीली पर्वत श्रंखलाएं हैं। इसके अलावा यह भी पता चला कि प्लूटो का आकार अनुमान से बड़ा है। प्लूटो की खोज अरुण और वरुण की गति के आधार पर की गई गणना में गलती की वजह से हुई। इस गलती के अनुसार अरुण-वरुण की कक्षा पर अन्य कोई पिंड प्रभाव डालता है।

वैज्ञानिक क्लाइड टामबाग इस गलती से अनजान थे और उन्होंने सारे आकाश का सावधानीपूर्वक निरिक्षण करके प्लूटो को खोज निकाला। लेकिन प्लूटो की खोज के बाद यह पता चला कि यह ग्रह इतना छोटा है कि किसी दूसरे ग्रह की कक्षा पर प्रभाव नहीं डाल सकता।

वैज्ञानिकों को इस गणना की गलती का पता चला तब तक नहीं चला जब तक वायेजर द्वितीय से प्राप्त आंकड़ों से यह स्पष्ट नहीं हो गया की अरुण और वरुण की कक्षाएं न्यूटन के नियमों का पालन करती है और उन पर कोई अन्य X ग्रह प्रभाव नहीं डालता। वैज्ञानिक इस X ग्रह को प्लूटो की खोज के बाद भी वायेजर द्वितीय से लिए गए आंकड़ों से प्राप्त होने तक खोजते रहे लेकिन यह X ग्रह मिलना ही असंभव था क्योंकि कोई X ग्रह नहीं था।

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Agreement In Spanish

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Agreement – acuerdo


For Example :

1. We are pretty much in agreement. (Estamos más o menos de acuerdo)

2. I think we have an agreement. (Creo que tenemos un acuerdo.)

3. He needed her agreement to try, even if they weren’t ready yet. (Él necesitaba que ella lo intentara todavía)


Synonym Words Of Agreement In Spanish :

Agreement : Accord, arrangement, compliance, compromise, concession, consonance, mediation, reconciliation, understanding, accession.

Acuerdo : cumplimiento, compromiso, concesión, consonancia, mediación, reconciliación, entendimiento, adhesión.


Antonyms Words Of Agreement In Spanish :

Agreement = Denial, difference, disagreement, dissension, dissent, fight, refusal, discord, disharmony, dislike, dissimilarity, disunity.

Acuerdo : Negación, diferencia, desacuerdo, disensión, disidencia, lucha, rechazo, discordia, desarmonía, aversión, disimilitud.


Related Verbs Of Agreement In Spanish :

Adverb (Adverbio) = Agradablemente.

Noun (Sustantivo) = Acuerdos, aceptabilidad, de acuerdo, de acuerdo, de acuerdo, de acuerdo.

Adjective (adjetivo)= Agradable, de acuerdo, de acuerdo.

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Furthermore In Spanish

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Furthermore = además


For Example :

1. And furthermore we don’t even know what language they spoke. (Y, además, ni siquiera sabemos qué idioma hablaban.)

2. Furthermore, it’s simply not true. (Además, simplemente no es verdad.)

3. And furthermore, there’s some signs. (Y, además, hay algunos signos.)

4. Furthermore they were themselves quite old. (Además, ellos eran bastante viejos.)


Synonym Words Of Furthermore In Spanish :

Furthermore = Moreover, additionally, along, as well, besides, likewise, not to mention, to boot, too, what is more, what’s more, withal.

además : Por otra parte, además, junto con, además, para no mencionar, para arrancar, también, lo que es más, lo que es más, sin embargo.


Antonyms Words Of Furthermore In Spanish :

Furthermore = Contrariwise, opposing, opposite, reverse.

además : Por el contrario, opuesto, opuesto, inverso.


Related Verbs Of Furthermore In Spanish :

Adverb (Adverbio) = Lejos, más lejos, más lejos, más allá, más lejos, además.

Noun (Sustantivo) = Lejos, lejos, adelanto, adelantos, más allá, más allá.

Adjective (adjetivo)= Lejos, más lejos, más lejos, más lejos, más lejos, más adelante, más lejos.

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Liability iIn Spanish

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Liability = responsabilidad


For Example :

1. A human mate was a liability he couldn’t afford. (Una pareja humana era una responsabilidad que no podía permitirse.)

2. But I think you’ve become a liability to me, Gabriel. (Pero creo que te has convertido en una responsabilidad para mí, Gabriel.)

3. Don’t admit liability for the accident. (No admitir responsabilidad por el accidente.)

4. Our warranty clearly states the limits of our liability. (Nuestra garantía establece claramente los límites de nuestra responsabilidad.)

5. They have denied liability for the accident. (Han negado la responsabilidad por el accidente.)


Synonym Words Of Liability In Spanish :

Liability = Accountability, answerability, burden, charge, culpability, debt, duty, legal, responsibility, obligation, amenability, amenableness.

responsabilidad : rendición de cuentas, responsabilidad, carga, cargo, culpabilidad, deuda, deber, legal, responsabilidad, obligación, responsabilidad, amabilidad.


Antonyms Words Of Liability In Spanish :

Liability = Advantage, benefit, profit, aid, assistance, blessing, certainty, help.

responsabilidad : Ventaja, beneficio, beneficio, ayuda, asistencia, bendición, certeza, ayuda.


Related Verbs Of Liability In Spanish :

Adverb (Adverbio) = Liably.

Noun (Sustantivo) = pasivos, responsabilidad.

Adjective (adjetivo)= responsable.

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Survive In Spanish

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Survive = Sobrevivir


For Example :

1. in war an aunt and another relative survived. (en la guerra, una tía y otro pariente sobrevivieron.)

2. So who is going to survive this time? (Entonces, ¿quién va a sobrevivir esta vez?)

3. All life on the earth needs oxygen to survive. (Toda la vida en la tierra necesita oxígeno para sobrevivir.)


Synonym Words Of Survive In Spanish :

Survive = Bear, continue, endure, exist, get, through, go on, handle, keep.

Sobrevivir : Oso, continuar, soportar, existir, obtener, seguir, seguir, manejar, mantener.


Antonyms Words Of Survive In Spanish :

Survive = Depart, die, discontinue, neglect, perish, refuse, reject, give up, leave, quit, stop, cease.

Sobrevivir : Salir, morir, descontinuar, descuidar, perecer, rechazar, rechazar, renunciar, irse, renunciar, detenerse, cesar.


Related Verbs Of Survive In Spanish :

Adverb (Adverbio) = Survivably, survivingly.

Noun (Sustantivo) = Supervivencias, supervivencia, supervivencia, supervivencia, supervivencia, supervivencia, survivalists, survivals, survivor, survivors.

Adjective (adjetivo)= Survivable, Surviving.

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Though In Spanish

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Though = aunque


For Example :

1. though, it might be unpleasant. (sin embargo, podría ser desagradable.)

2. Though she was sick, she finished the task. (Aunque estaba enferma, ella terminó la tarea.)

3. She looked as though he were going to a funeral. (Ella parecía como si fuera a un funeral.)

4. I still feel guilty though, despite not doing anything wrong. (Aún así me siento culpable, a pesar de no haber hecho nada malo.)


Synonym Words Of Though In Spanish :

Though = Nevertheless, still, yet, after all, all the same, anyhow, anyway, even so, for all that, howbeit, in any case, nonetheless.

aunque : Sin embargo, todavía, sin embargo, después de todo, de todos modos, de todos modos, aun así, por todo eso, sin embargo, en cualquier caso, no obstante.


Antonyms Words Of Though In Spanish :

Though = Accordingly, consequently, ergo, for this reason, hence, so thence, therefore, thus.

aunque : En consecuencia, en consecuencia, ergo, por esta razón, por lo tanto, así desde allí, por lo tanto, así.

 

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Betrayed In Spanish

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Betrayed = traicionado


For Example :

1. His confidence has been betrayed. (Su confianza ha sido traicionada.)

2. Their friends are busy betraying them. (Sus amigos están ocupados traicionándolos.)

3. Labour promised one and then betrayed us. (El trabajo prometió uno y luego nos traicionó.)

4. Suppose I harm a friend by betraying a confidence. (Supongamos que hago daño a un amigo traicionando una confianza.)

5. Why did he betray his friend? (¿Por qué traicionó a su amigo?)


Synonym Words Of Betrayed In Spanish :

Betrayed = Abandoned, deceived, forsook, grassed, misled, seduced, bluffed.

traicionado : Abandonados, engañados, abandonados, empapados, engañados, seducidos, engañados.


Antonyms Words Of Betrayed In Spanish :

Betrayed = Aided, assisted, helped, holp, stayed, defended, hid.

traicionado : Ayudaron, ayudaron, ayudaron, holgazanearon, se quedaron, defendieron, se escondieron.


Related Verbs Of Betrayed In Spanish :

Adverb (Adverbio) = Traicionando.

Noun (Sustantivo) = Traición, traiciones, traidor, traidores, traiciones, traiciones.

Adjective (adjetivo)= Traicionable, traicionado, traicionando.

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Cabinet In Spanish

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Cabinet = gabinete


For Example :

1. She closed the cabinet door, troubled. (Cerró la puerta del gabinete, preocupada.)

2. She opened one cabinet, not surprised to see white bone china. (Abrió un armario, sin sorprenderse de ver porcelana blanca.)

3. He tilted his head towards one cabinet in response. (Él inclinó su cabeza hacia un gabinete en respuesta.)

4. A matching china cabinet held fine china, crystal and silverware. (Un armario de porcelana a juego contenía fina porcelana, cristal y platería.)

5. She pointed to the cabinet near the sink. (Señaló el armario cerca del fregadero.)


Synonym Words Of Cabinet In Spanish :

Cabinet = Case, chiffonier, closet, commode, container, depository, dresser, escritoire, locker.

gabinete : Estuche, chiffonier, closet, inodoro, contenedor, depositario, tocador, escritorio, taquilla.


Antonyms Words Of Cabinet In Spanish :

Cabinet = Individual, One.

gabinete : Uno.


Related Verbs Of Cabinet In Spanish :

Adverb (Adverbio) = cabinetly, cabinetlikely.

Noun (Sustantivo) = gabinete, gabinetes.

Adjective (adjetivo)= gabinete, parecido a un gabinete.

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Owe In Spanish

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Owe = deber


For Example :

1. The company owes money to more than 60 banks. (La compañía debe dinero a más de 60 bancos.)

2. I owe you an apology. (Te debo una disculpa.)

3. I owe a big debt of gratitude to her. (Le debo una gran deuda de gratitud.)

4. He was out of work owing to a physical injury. (Él estaba sin trabajo debido a una lesión física.)


Synonym Words Of Owe In Spanish :

Owe = Incur, lost, be beholden, be bound, be contracted, behind, be in arrears, be in debt.

deber : Incurrir, perder, ser obligado, estar obligado, ser contratado, atrás, estar en mora, estar en deuda.


Antonyms Words Of Owe In Spanish :

Owe = Pay, resolve, settle.

deber : Pagar, resolver.


Related Verbs Of Owe In Spanish :

Adverb (Adverbio) = Debería.

Noun (Sustantivo) = Debe, propietario, propietarios, propiedad, propiedades.

Adjective (adjetivo)= Owed, owing, own, owned, owning.

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Elegant In Spanish

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Elegant = elegante


For Example :

1. My, what an elegant dress! (¡Qué elegante vestido!)

2. The whole arrangement is elegant and ingenious. (Todo el arreglo es elegante e ingenioso.)

3. They entered the elegant, newly decorated, and luxurious dining room. (Entraron en el comedor elegante, recién decorado y lujoso.)

4. He was so elegant in a suit and so masculine in western attire.(Era tan elegante en un traje y tan masculino en el atuendo occidental.)


Synonym Words Of Elegant In Spanish :

Elegant = Beautiful, chic, classic, classy, delicate, dignified, exquisite, fancy, fashionable, graceful.

elegante : Hermoso, elegante, clásico, delicado, digno, exquisito, de moda.


Antonyms Words Of Elegant In Spanish :

Elegant = Common, dull, inferior, insignificant, old-fashioned, plain, poor.

elegante : Común, aburrido, inferior, insignificante, pasado de moda, sencillo, pobre.


Related Verbs Of Elegant In Spanish :

Adverb (Adverbio) = esmeradamente.

Noun (Sustantivo) = elegancia.

Adjective (adjetivo)= elegante.

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Recall In Spanish

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Recall = recordar


For Example :

1. I don’t recall. (No recuerdo.)

2. I can’t really recall. (Realmente no puedo recordar.)

3. Ken couldn’t recall his name. (Ken no podía recordar su nombre.)

4. I don’t recall asking you for help. (No recuerdo pedirte ayuda.)

5. I can’t recall the last time we met. (No puedo recordar la última vez que nos encontramos.)


Synonym Words Of Recall In Spanish :

Recall = Remembrance, anamnesis, memory, recollection, reminiscence.

recordar : recuerdo, anamnesis, memoria, reminiscencia.


Antonyms Words Of Elegant In Spanish :

Recall = Amnesia, forgetfulness, restoration.

recordar : Amnesia, olvido, restauración.


Related Verbs Of Elegant In Spanish :

Adverb (Adverbio) = Recordablemente, de manera retrospectiva, recuerda.

Noun (Sustantivo) = recordar, recallability.

Adjective (adjetivo)= revocable, recordado, recordando.

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Determined In Spanish

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Determined = determinado


For Example :

1. I was determined to know beans. (Estaba decidido a saber frijoles.)

2. Determined little guy, isn’t he? (Pequeño individuo resuelto, ¿no?)

3. It only made me more determined, though. (Sin embargo, solo me hizo más decidido.)

4. He’s determined to keep me. (Está decidido a retenerme.)

5. We are determined to be starved before we are hungry. (Estamos decididos a morir de hambre antes de que tengamos hambre.)


Synonym Words Of Determined In Spanish :

Determined = Decisive, dogged, driven, gritty, heroic, indomitable, persistent.

determinado : Decisivo, obstinado, impulsivo, arenoso, heroico, indomable, persistente.


Antonyms Words Of Determined In Spanish :

Determined = Irresolute, undetermined, weak, yielding, changeable, flexible, indefinite, soft.

determinado : Irresoluto, indeterminado, débil, flexible, cambiante, flexible, indefinido, suave.


Related Verbs Of Determined In Spanish :

Adverb (Adverbio) = decididamente

Noun (Sustantivo) = determinante, determinantes, determinación.

Adjective (adjetivo)= determinante, determinado.

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Mortgage In Spanish

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Mortgage = hipoteca


For Example :

1. They were originally of the nature of mortgage bonds on the national lands. (Originalmente eran de la naturaleza de los bonos hipotecarios en las tierras nacionales.)

2. Once free of mortgage, the consecration took place on 28th June, 1910. (Una vez libre de hipoteca, la consagración tuvo lugar el 28 de junio de 1910.)


Synonym Words Of Mortgage In Spanish :

Mortgage = Advance, bank loan, bridging loan, contract, debt, hypothecation.

hipoteca : Anticipo, préstamo bancario, préstamo puente, contrato, deuda, hipoteca.


Antonyms Words Of Mortgage In Spanish :

Mortgage = asset, irresponsibility, credit, cash, excess, profit.

hipoteca : activo, irresponsabilidad, crédito, efectivo, exceso, ganancia.


Related Verbs Of Mortgage In Spanish :

Adverb (Adverbio) = hipotecaria, hipotecaria e, hipotecariamente.

Noun (Sustantivo) = hipoteca, hipotecas.

Adjective (adjetivo)= hipotecario, hipotecado.

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